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Thursday, August 12, 2021

स्वतंत्रता दिवस पर संपादकीय

राजनैतिक स्वार्थों ने प्रजातांत्रिक मूल्यों को तार तार कर दिया है
15 अगस्त 1947 को हमारा देश अंग्रेजी हुकूमत से आजाद हुआ था। आज हम 75 वां स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं। भारत ने शासन चलाने के लिये प्रजातंत्र, समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों को अंगीकार किया था। भारत के साथ ही पाकिस्तान भी आजाद हुआ था। लेकिन हमारे देश के तत्कालीन कर्णधारों ने दूरदर्शिता और समझदारी के साथ देश के बहुमुखी विकास की ऐसी ठोस बुनियाद रखी थी कि आज हम विश्व के महत्वपूर्ण और ताकतवर देशों में गिने जाते है। वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तान बहुत ही निचली पायदान पर पहुँच गया है और अपने लोगों के पेट पालने के लिये याचक की दृष्टि से पूरी दुनिया को निहारते रहता है।
       आजादी मिलने के बाद महात्मा गांधी ने कहा था कि ये आजादी तभी सही मायने में आजादी मानी जायेगी जब इसका लाभ देश के अंतिम छोर के व्यक्ति तक पहुचे। जनता की सत्ता जनता के ही हाथों में रहे। इसीलिए प्रजातंत्र को अंगीकार किया गया जिसमें जनता का, जनता के द्वारा, जनता के लिये शासन चलाने की व्यवस्था है। देश के संविधान में बाबा साहेब अम्बेडकर ने हर पाँच साल में चुनाव कराने और देश के पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए सीमित अवधि के लिये आरक्षण का भी प्रावधान किया ताकि देश के हर नागरिक को विकास के बराबरी से अवसर मिल सके। गरीब और गरीब और अमीर और अमीर न होते जाये।
       देश की 75 साल की विकास यात्रा भी कोई सीधी सरल नहीं रही वरन कई उतार चढ़ावों से होकर गुजरी है। आजाद होते वक्त देश में जहाँ सुई भी नहीं बनती थी वहीं आज भारत की गिनती परमाणु बम रखने वाले देशों में होती है। बापू के सपने को साकार करते हुऐ देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने संविधान संशोधन कर हर पांच साल में तीन स्तरीय पंचायती राज और स्थानीय निकायों के चुनाव अनिवार्य कर जनता की सत्ता जनता के हाथों में सौपने का कार्य किया। इन 75 सालों में देश मे प्रजातंत्र भी मजबूत तो हुआ लेकिन उस मुकाम तक नहीं पहुँचा जहां तक पहुँचना था। पिछले कुछ सालों में ऐसा देखा जा रहा है कि पार्टियों और नेताओं के राजनैतिक स्वार्थों ने प्रजातांत्रिक मूल्यों को छलनी करके रख दिया है। सत्ता पक्ष और विपक्ष की हठधर्मिता के चलते प्रजातंत्र के सर्वोच्च मंदिर संसद को भी कई बार शर्मसार होना पड़ा है।प्रजातंत्र में पक्ष और विपक्ष दोनों की ही विचारधाराओं के प्रति जनता अपना मत देती है और बहुमत प्राप्त करने वाला पक्ष सत्ता के संचालन के साथ ही विपक्ष के सम्मान की भी रक्षा करने की जवाबदारी निभाता है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में ऐसा क्या हो गया है कि प्रजातांत्रिक अधिकारों के चलते सत्ता पक्ष के किसी निर्णय या नीति से असहमति रखने वाले लोगों को राम भक्त या राष्ट्र भक्त नहीं होने का लेबल चस्पा कर देना आम बात हो गयी है। कोई भी मौका मिलते ही राजनैतिक वार करने से कोई भी चूकता ही नही है। इसका ताजा उदाहरण हाल ही में देखा गया जब सालों बाद भारतीय हॉकी टीम के ओलम्पिक में अच्छे प्रदर्शन के तत्काल बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नाम से दिये जाने वाले खेल रत्न पुरस्कार का नाम बदलकर हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के नाम से दिये जाने की घोषणा कर दी। प्रधानमंत्री यदि चाहते तो मेजर ध्यानचंद के नाम से किसी और पुरस्कार की घोषणा कर सकते थे जो उनकी गरिमा और कद को बढ़ाने वाला कदम साबित हो सकता था। लेकिन उन्होंने प्रधानमंत्री पद की गरिमा के बजाय अपनी राजनैतिक कुंठा को ही प्रदर्शित करना बेहतर समझा है।
     75 सालों में पिछले कुछ वर्षों से पार्टियों और नेताओं द्वारा राजनैतिक हितों को देशहित से ज्यादा महत्व देने के कारण देश में प्रजातांत्रिक मूल्य तार तार हो गये है। स्वतंत्रता दिवस की हीरक जयंती पर हमारी यही अपेक्षा है कि देश में दिनों दिन प्रजातांत्रिक मूल्यों की तेजी से पुनर्स्थापना हो और भारत दुनिया का सबसे मजबूत प्रजातंत्र वाला देश बन जाये। स्वतंत्रता दिवस की हीरक जयंती पर यही हमारी शुभकामनाएं है।।
आशुतोष वर्मा
अंबिका सदन
16 शास्त्री वार्ड
बारापत्थर, सिवनी 480661 मध्यप्रदेश
मो 9425175640


Saturday, July 3, 2021

 

प्रेस विज्ञप्ति
सिवनी। जिले ने कोविड 19 की दूसरी लहर में बहुत कुछ खोया है। इसकी संभावित तीसरी लहर से निपटने के लिये तैयारियां जारी है जिसका बच्चों पर अधिक प्रभाव पड़ने की बात कही जा रही है। पूरे जिले में 11 बाल रोग विशेषज्ञ चिकित्सकों के पद स्वीकृत है जो सभी रिक्त पड़े है और कई विकास खंडों में पद ही स्वीकृत नहीं है। जनप्रतिनिधियों और प्रशासनिक अधिकारियों को पहल कर शासन से इन पदों पर शीघ्र डॉक्टरों को भेजने का आग्रह किया जाना आवश्यक है। उक्ताशय की बात प्रेस को जारी विज्ञप्ति में वरिष्ठ कांग्रेस नेता आशुतोष वर्मा ने कही है।
अपनी विज्ञप्ति में इंका नेता आशुतोष वर्मा ने कहा है कि कोविड 19 की दूसरी लहर जिले के लिये बहुत विनाशकारी रही है। चिकित्सकीय कमियों का खामियाजा जिले के लोगों को भुगतना पड़ा है। कई लोग असमय ही काल के गाल में समा गए थे। जिले के जनप्रतिनिधियों और प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा इन कमियों को दूर करने के अथक प्रयास किये गये लेकिन ये सुविधाएं जब प्राप्त हुयीं तब कोविड 19 की दूसरी लहर काफी हद तक नियंत्रित हो गयी थी। लेकिन फिर भी इन सेवाओं का उपयोग किया गया और मरीजों को उसका लाभ भी मिला।
कांग्रेस नेता आशुतोष वर्मा ने आगे यह भी उल्लेख किया है कि दूसरी लहर के दौरान हुये विलम्ब से सबक लेकर संभावित तीसरी लहर से निपटने की तैयारियां शुरू कर दी गयी है। बैठकों के दौर और निर्देश जारी करने का सिलसिला भी जारी
है। कोविड 19 के विशेषज्ञ डॉक्टर यह मानते है कि इस लहर का असर बच्चों पर ज्यादा होगा।इस लिहाज से हमारे जिले की हालत अत्यंत चिंताजनक है। प्राप्त जानकारी के अनुसार जिला अस्पताल में 7,लखनादौन में 2 तथा घंसौर और केवलारी में 1-1 कुल 11 बाल रोग विशेषज्ञ चिकित्सक के पद स्वीकृत है जो सभी रिक्त पड़े हुये है। जबकि कि छपारा, कुरई, बरघाट,धनोरा विकास खंड मुख्यालयों में बाल रोग विशेषज्ञ के पद स्वीकृत ही नहीं है। इसिलए सबसे पहले जिले के सभी जनप्रतिनिधियों सांसद द्वय डॉ ढाल सिंह बिसेन और फग्गनसिंह कुलस्ते एवं विधायक गण दिनेश मुनमुन राय, राकेशपाल सिंह, योगेंद्र सिंह और अर्जुन काकोडिया को सयुक्त रूप से सरकार पर दवाब बनाकर बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टरों के रिक्त पदों को भरने और जहाँ पद स्वीकृत नहीं है वहां पद स्वीकृत कराने की दिशा में कारगर प्रयास करना जनहित में है। जिले में बिना बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टरों के तीसरी सम्भावित लहर को रोकने की कल्पना करना भी बेमानी होगी।
अपनी विज्ञप्ति में कांग्रेस नेता आशुतोष वर्मा ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और स्वास्थ्य मंत्री डॉ प्रभुराम चौधरी से आग्रह किया है कि वे तत्काल ही बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टरों रिक्त पदों को भरने तथा शेष चार विकास खण्डों में 1-1 पद भी स्वीकृत कर वहां भी पद स्थापना करने के आदेश जारी करने का कष्ट करें ताकि जिले के नोनिहालों को कोविड 19 की संभावित तीसरी लहर से कारगर तरीके से बचाने के प्रयास किये जा सकें।
सधन्यवाद।
सादर प्रकाशनार्थ।
भवदीय,
आशुतोष वर्मा,
प्रदेश प्रतिनिधि,
मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी
मो 9425174640

प्रति,
श्री               ,पत्रकार,
सिवनी

Tuesday, September 8, 2020

राष्ट्रीय प्रतीक है कमल भाजपा के चुनाव चिन्ह के रूप नहीं हो सकता उपयोग : आशुतोष वर्मा

प्रेस विज्ञप्ति
सिवनी । देश ने संविधान के साथ ही 8 राष्ट्रीय प्रतीकों को अंगीकार किया था जिनका उपयोग सिर्फ सरकार ही कर सकती है। राष्ट्रीय फूल के रूप में कमल ( Lotus ) को राष्ट्रीय प्रतीक स्वीकार किया गया है। भारतीय जनता पार्टी का चुनाव चिन्ह भी कमल है जो कि विधिसम्मत नहीं है और  प्रतीक और नाम( अनुचित उपयोग की रोकथाम ) अधिनियम 1950 के तहत दण्डनीय अपराध है । इसलिये भारतीय जनता पार्टी के चुनाव चिन्ह कमल को जप्त किया जाये। उक्ताशय की मांग करते हुये वरिष्ठ इंका नेता आशुतोष वर्मा ने मुख्य चुनाव आयुक्त श्री सुनील अरोरा को एक पत्र आवश्यक दस्तावेजों के साथ भेजा है।
उक्ताशय की जानकारी देते हुए इंका वर्मा ने प्रेस को जारी विज्ञप्ति में आगे उल्लेख किया है कि 26 जनवरी 1950 को देश ने  भारतीय संविधान और 8 राष्ट्रीय प्रतीकों को अंगीकार किया था। राष्ट्रीय प्रतीकों की संख्या अब 20 हो चुकी है। जिनका उपयोग सिर्फ सरकार कर सकती है। इन राष्ट्रीय प्रतीकों में  निम्न प्रतीक सम्मलित है :- भारत का राष्ट्रीय ध्वज - तिरंगा, भारत का राष्ट्रीय चिन्ह -  अशोक स्तम्भ,भारत का राष्ट्रीय गान - जन गण मन,भारत कासर्वोच्च राष्ट्रीय पुरस्कार - भारत रत्न,भारत का राष्ट्रगीत - वन्दे मातरम,भारत का राष्ट्रीय पशु - बाघ,भारत का राष्ट्रीय फूल-कमल,भारत का राष्ट्रीय फल - आम,इस सूची में सातवें नम्बर पर भारत के राष्ट्रीय फूल के रूप में कमल का उल्लेख किया गया है जो कि भारतीय जनता पार्टी का चुनाव चिन्ह है। इसके महत्व का उल्लेख करते हुऐ लिखा गया है कि,"कमल का वैज्ञानिक नाम नील्यूम्बो न्यूसीफेरा है. इसे भारत के राष्ट्रीय फूल के रुप में अंगीकृत किया गया है. यह फूल भारत के पारंपरिक मूल्यों और संस्कृतिक गर्व को प्रदर्शित करता है.इसका प्रयोग देश भर में धार्मिक अनुष्ठानों आदि के लिये भी किया जाता है।"
  इंका नेता आशुतोष वर्मा ने पत्र में आगे लिखा है कि इन सभी राष्ट्रीय प्रतीकों को देश ने 26 जनवरी 1950 को अंगीकार किया था और इन प्रतीकों को राष्ट्रीय सम्मान के रूप में स्वीकार किया गया था। इन राष्ट्रीय प्रतीकों के दुरुपयोग को The Emblems & Names (Prevention of Improper Use) Act, 1950 की धारा 3 के तहत नियंत्रित करने का प्रावधान किया गया है। जिसमे यह उल्लेख किया गया है कि इन राष्ट्रीय प्रतीकों का उपयोग सिर्फ  सरकार ही कर सकती है। सरकार के अलावा अन्य किसी के द्वारा यदि इन प्रतीकों का उपयोग किया जाता है तो वह धारा 5  के अंतर्गत दंडनीय अपराध है।
 पत्र में इंका नेता वर्मा ने आगे उल्लेख किया है कि भरतीय जनता पार्टी एक राजनैतिक दल है जो राष्ट्रीय प्रतीक कमल का उपयोग चुनाव चिन्ह के रूप में कर रही है। यह The Emblems & Names (Prevention of Improper Use) Act, 1950 की धारा 5 के तहत एक दंडनीय कृत्य है। इस तरह भारतीय जनता पार्टी अपने राजनैतिक हितों की पूर्ति हेतु राष्ट्रीय प्रतीक का दुरुपयोग कर रही है जो कि न्यायसंगत नहीं है।
पत्र के अंत मे वरिष्ठ इंका नेता आशुतोष वर्मा ने मुख्य चुनाव आयुक्त श्री सुनील अरोरा से आग्रह किया है कि वे भारतीय जनता पार्टी के चुनाव चिन्ह कमल को जप्त करने की कृपा करें ताकि निष्पक्ष तरीके से प्रजातांत्रिक मूल्यों के आधार पर निर्वाचन कार्य भविष्य में सम्पन्न हो सकें। इंका नेता वर्मा ने अपने पत्र की प्रति कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी, राहुल गांधी,प्रियंका गांधी, मुकुल वासनिक, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह, और सांसद विवेक तनखा को भी आवश्यक पहल करने हेतु प्रेषित की है।
सधन्यवाद।
सादर प्रकाशनार्थ
भवदीय,

(आशुतोष वर्मा ),
प्रदेश प्रतिनिधि,
मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी,
अंबिका सदन,
16 शास्त्री वार्ड,
सिवनी मध्यप्रदेश 480661
मो 9425174640
प्रति,
श्री                ,पत्रकार
सिवनी

Tuesday, August 13, 2019

स्वतंत्रता दिवस 2019 के लिये आलेख



धारा 370 हटने के बाद दुनिया से गुहार लगाने से पहले भारत पाकिस्तान को आतंकवादी राष्ट्र घोषित करे
आज पूरा देश आजादी की 72 वीं सालगिरह मना रहा है। 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ था और डिवाइड एंड रूल नीति के तहत जाते जाते भी अंग्रेजों ने भारत के दो टुकड़े कर एक नये राष्ट्र पाकिस्तान को बनवा दिया था। आजादी के इतने साल भी विभाजन को लेकर आरोपों का राजनैतिक दौर चालू रहता है। इसके साथ ही यह जुमला भी अक्सर सुनने को मिलता रहता है कि इन 72 सालों में हुआ क्या? आजादी के इन 72 सालों में कांग्रेस के साथ साथ विपक्ष की सरकारें भी रहीं है। इन सरकारों का नेतृत्व मोरारजी देसाई, चरण सिंह, वी.पी. सिंह, चंद्रशेखर, एच्.डी.देवगौड़ा,आई.के. गुजराल, अटलबिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी ने किया है। आज भी देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही है जिहोंने अपना दूसरा कार्यकाल प्रारंभ किया है। यह भी सही है कि इतने सालों में देश ने कितना विकास किया? इसका मूल्यांकन होना चाहिये। ना तो यह कहना सही है कि देश में कुछ भी विकास नही हुआ और ना ही यह कहना सही है कि हमने विकास की सारी मंजिलें पार कर ली है। सही तो यह है कि हमने बहुत कुछ पा लिया है और अभी बहुत कुछ पाना शेष है। आज हम विकास की ऊचाइयों को छूकर विश्व में जो कीर्तमान स्थापित कर रहे वो सारे संसाधन देश ने आजादी के बाद देश में ही विकसित किये है।
         आजादी की 72 वीं सालगिरह के 10 दिन पहले 5 अगस्त 2019 को मोदी सरकार के गृह मंत्री अमित शाह ने एक विधेयक पेश कर कश्मीर से धारा 370 हटाने और राज्य का विभाजन कर जम्मू कश्मीर और लद्दाख दो केंद्र शासित प्रदेश बनाने का प्रावधान रखा गया था जिसमे जम्मू कश्मीर में तो विधानसभा होगी लेकिन लद्दाख बिना विधानसभा वाला केंद्र शासित प्रदेश होगा । राष्ट्रपति शासन लागू रहने और विधानसभा भंग होने के कारण राष्ट्रपति जी ने अपने ही प्रतिनिधि राज्यपाल की सलाह पर यह आदेश जारी किया था। आजादी के वक्त जम्मू कश्मीर रियासत बिना शर्त भारत मे शामिल होने को तैयार नहीं थी। वहाँ के राजा हरिसिह ने कुछ शर्तों के साथ शामिल होना स्वीकार किया था। ये तमाम शर्ते ही धारा 370 के रूप में संविधान में शामिल की गयीं जिसमे यह भी प्रावधान था कि जम्मू कश्मीर की संविधान सभा की अनुशंसा पर विशेष दर्जा दिए जाने के इस अस्थायी प्रावधान को समाप्त भी किया जा सकता है। लेकिन 1956 में जम्मू कश्मीर की संविधान सभा समाप्त हो गयी थी और अब इस विधेयक को पारित करते समय मेहबूबा मुफ़्ती तथा भाजपा की संयुक्त सरकार के भंग हो जाने के बाद वहाँ विधानसभा भी नही थी। धारा 370 को समाप्त करने को लेकर इस समय समर्थन और विरोध का दौर जारी है। दोनों के ही अपने अपने तर्क है। धारा 370  समाप्त करने वाले समर्थकों का यह कहना है कि ये एक देश, एक विधान और एक निशान के सिद्धांत के विपरीत था तो विरोधी उन्हें नागालैंड का उदाहरण देकर उनकी करनी की याद दिलाने के साथ साथ यह भी सवाल दाग रहें है कि ऐसे में मोदी जी का सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास का नारा कैसे सही साबित होगा? वैसे अभी भी देश मे धारा 371 A से लेकर धारा 371 J तक के प्रावधानों के तहत देश के कई राज्यों को कुछ मामलों में विशेषाधिकार प्राप्त है जिनमे  कुछ राज्यों में आम भारतीय नागरिक को वहाँ की जमीन  नहीं खरीद सकने के प्रावधान भी शामिल है। इन राज्यों में नागालैंड, सिक्किम, मिजोरम, गोवा, हिमाचल प्रदेश,अरुणांचल प्रदेश, आसाम,मणिपुर के साथ ही गुजरात, महाराष्ट्र, हैदराबाद और कर्नाटक के कुछ हिस्से भी शामिल है। वैसे जनसंघ से लेकर भाजपा तक हमेशा उनके घोषणा पत्र में धारा 370 हटाने का वायदा शामिल रहता था जिसे पूरा करने का मोदी सरकार दावा कर रही है। धारा 370 हटाने की प्रक्रिया में संवैधानिक रूप से कोई भूल चूक हुई है या नही? इसका फैसला तो सर्वोच्च न्यायालय ही कर सकता है।
  सरकार का यह भी मानना है कि जम्मू कश्मीर में धारा 370 के कारण ही यहाँ का विकास अवरुद्ध हुआ है और आतंकवाद को बढ़ावा मिला है। वैसे विकास की दृष्टि से जम्मू कश्मीर देश के किन अन्य राज्यों से पिछड़ा है? इसका मूल्यांकन करना भी जरूरी है। हां यह सही है कि पिछले कई वर्षों से सीमापार आतंकवादी गतिविधियों पर जरूर अंकुश नही लग पा रहा है और आये दिन सीमा पार या आतंकवादी हमलों में हमारे सुरक्षा बलों के जवान जरूर शहीद हो रहे है। इस बात को लेकर भारत पूरी दुनिया से पाकिस्तान को आतंकवादी राष्ट्र घोषित करने की मांग भी कर रहा है। अब जब धारा 370 हटने के बाद पाकिस्तान भारत से व्यापारिक और राजनयिक संबंध तोड़ने की घोषणा कर चुका है तो भारत को भी अब उसे आतंकवादी राष्ट्र घोषित करने में देरी नही करनी चाहिए।
     सरकार का यह दावा है कि उसके इस कदम से जम्मू कश्मीर में आतंकवाद समाप्त होगा, सीमापार से घुसपैठ रुकेगी, अमन चैन कायम होगा और विकास के नए आयाम स्थापित होंगे। सरकार का यह दावा कितना सही और कितना गलत साबित होगा यह तथ्य तो भविष्य की गर्त में छिपा है। लेकिन स्वतंत्रता दिवस की 72 वीं वर्षगांठ पर हमारी यही अपेक्षायें और शुभकामनाएं है कि जम्मू कश्मीर सहित पूरा देश आतंकवाद और सीमापार की घुसपैठ के चुंगल से मुक्त होकर दिन दूनी रात चौगुनी उन्नति करें।

आशुतोष वर्मा,
16 शास्त्री वार्ड, बारा पत्थर,
सिवनी मध्यप्रदेश 480661
मो 9425174640

Sunday, August 11, 2019

स्वतंत्रता दिवस 2019 पर आलेख



धारा 370 हटने के बाद दुनिया से गुहार लगाने से पहले भारत पाकिस्तान को आतंकवादी राष्ट्र घोषित करे
आज पूरा देश आजादी की 72 वीं सालगिरह मना रहा है। 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ था और डिवाइड एंड रूल नीति के तहत जाते जाते भी अंग्रेजों ने भारत के दो टुकड़े कर एक नये राष्ट्र पाकिस्तान को बनवा दिया था। आजादी के इतने साल भी विभाजन को लेकर आरोपों का राजनैतिक दौर चालू रहता है। इसके साथ ही यह जुमला भी अक्सर सुनने को मिलता रहता है कि इन 72 सालों में हुआ क्या? आजादी के इन 72 सालों में कांग्रेस के साथ साथ विपक्ष की सरकारें भी रहीं है। इन सरकारों का नेतृत्व मोरारजी देसाई, चरण सिंह, वी.पी. सिंह, चंद्रशेखर, एच्.डी.देवगौड़ा,आई.के. गुजराल, अटलबिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी ने किया है। आज भी देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही है जिहोंने अपना दूसरा कार्यकाल प्रारंभ किया है। यह भी सही है कि इतने सालों में देश ने कितना विकास किया? इसका मूल्यांकन होना चाहिये। ना तो यह कहना सही है कि देश में कुछ भी विकास नही हुआ और ना ही यह कहना सही है कि हमने विकास की सारी मंजिलें पार कर ली है। सही तो यह है कि हमने बहुत कुछ पा लिया है और अभी बहुत कुछ पाना शेष है। आज हम विकास की ऊचाइयों को छूकर विश्व में जो कीर्तमान स्थापित कर रहे वो सारे संसाधन देश ने आजादी के बाद देश में ही विकसित किये है।
         आजादी की 72 वीं सालगिरह के 10 दिन पहले 5 अगस्त 2019 को मोदी सरकार के गृह मंत्री अमित शाह ने एक विधेयक पेश कर कश्मीर से धारा 370 हटाने और राज्य का विभाजन कर जम्मू कश्मीर और लद्दाख दो केंद्र शासित प्रदेश बनाने का प्रावधान रखा गया था जिसमे जम्मू कश्मीर में तो विधानसभा होगी लेकिन लद्दाख बिना विधानसभा वाला केंद्र शासित प्रदेश होगा । राष्ट्रपति शासन लागू रहने और विधानसभा भंग होने के कारण राष्ट्रपति जी ने अपने ही प्रतिनिधि राज्यपाल की सलाह पर यह आदेश जारी किया था। आजादी के वक्त जम्मू कश्मीर रियासत बिना शर्त भारत मे शामिल होने को तैयार नहीं थी। वहाँ के राजा हरिसिह ने कुछ शर्तों के साथ शामिल होना स्वीकार किया था। ये तमाम शर्ते ही धारा 370 के रूप में संविधान में शामिल की गयीं जिसमे यह भी प्रावधान था कि जम्मू कश्मीर की संविधान सभा की अनुशंसा पर विशेष दर्जा दिए जाने के इस अस्थायी प्रावधान को समाप्त भी किया जा सकता है। लेकिन 1956 में जम्मू कश्मीर की संविधान सभा समाप्त हो गयी थी और अब इस विधेयक को पारित करते समय मेहबूबा मुफ़्ती तथा भाजपा की संयुक्त सरकार के भंग हो जाने के बाद वहाँ विधानसभा भी नही थी। धारा 370 को समाप्त करने को लेकर इस समय समर्थन और विरोध का दौर जारी है। दोनों के ही अपने अपने तर्क है। धारा 370  समाप्त करने वाले समर्थकों का यह कहना है कि ये एक देश, एक विधान और एक निशान के सिद्धांत के विपरीत था तो विरोधी उन्हें नागालैंड का उदाहरण देकर उनकी करनी की याद दिलाने के साथ साथ यह भी सवाल दाग रहें है कि ऐसे में मोदी जी का सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास का नारा कैसे सही साबित होगा? वैसे अभी भी देश मे धारा 371 A से लेकर धारा 371 J तक के प्रावधानों के तहत देश के कई राज्यों को कुछ मामलों में विशेषाधिकार प्राप्त है जिनमे  कुछ राज्यों में आम भारतीय नागरिक को वहाँ की जमीन  नहीं खरीद सकने के प्रावधान भी शामिल है। इन राज्यों में नागालैंड, सिक्किम, मिजोरम, गोवा, हिमाचल प्रदेश,अरुणांचल प्रदेश, आसाम,मणिपुर के साथ ही गुजरात, महाराष्ट्र, हैदराबाद और कर्नाटक के कुछ हिस्से भी शामिल है। वैसे जनसंघ से लेकर भाजपा तक हमेशा उनके घोषणा पत्र में धारा 370 हटाने का वायदा शामिल रहता था जिसे पूरा करने का मोदी सरकार दावा कर रही है। धारा 370 हटाने की प्रक्रिया में संवैधानिक रूप से कोई भूल चूक हुई है या नही? इसका फैसला तो सर्वोच्च न्यायालय ही कर सकता है।
  सरकार का यह भी मानना है कि जम्मू कश्मीर में धारा 370 के कारण ही यहाँ का विकास अवरुद्ध हुआ है और आतंकवाद को बढ़ावा मिला है। वैसे विकास की दृष्टि से जम्मू कश्मीर देश के किन अन्य राज्यों से पिछड़ा है? इसका मूल्यांकन करना भी जरूरी है। हां यह सही है कि पिछले कई वर्षों से सीमापार आतंकवादी गतिविधियों पर जरूर अंकुश नही लग पा रहा है और आये दिन सीमा पार या आतंकवादी हमलों में हमारे सुरक्षा बलों के जवान जरूर शहीद हो रहे है। इस बात को लेकर भारत पूरी दुनिया से पाकिस्तान को आतंकवादी राष्ट्र घोषित करने की मांग भी कर रहा है। अब जब धारा 370 हटने के बाद पाकिस्तान भारत से व्यापारिक और राजनयिक संबंध तोड़ने की घोषणा कर चुका है तो भारत को भी अब उसे आतंकवादी राष्ट्र घोषित करने में देरी नही करनी चाहिए।
     सरकार का यह दावा है कि उसके इस कदम से जम्मू कश्मीर में आतंकवाद समाप्त होगा, सीमापार से घुसपैठ रुकेगी, अमन चैन कायम होगा और विकास के नए आयाम स्थापित होंगे। सरकार का यह दावा कितना सही और कितना गलत साबित होगा यह तथ्य तो भविष्य की गर्त में छिपा है। लेकिन स्वतंत्रता दिवस की 72 वीं वर्षगांठ पर हमारी यही अपेक्षायें और शुभकामनाएं है कि जम्मू कश्मीर सहित पूरा देश आतंकवाद और सीमापार की घुसपैठ के चुंगल से मुक्त होकर दिन दूनी रात चौगुनी उन्नति करें।

आशुतोष वर्मा,
16 शास्त्री वार्ड,
सिवनी मध्यप्रदेश 480661
मो 9425174640

Tuesday, January 23, 2018

Gantantra divas

आज के दिन स्वतंत्र भारत ने अपना संविधान अंगीकार किया था। डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की अध्यक्षता वाली संविधान सभा ने इसको बनाया था। देश ने इस संविधान के अनुसार प्रजातांत्रिक शासन प्रणाली स्वीकार की जिसमें जनता का,जनता के लिये,जनता के द्वारा शासन तंत्र बनाया जाता है। संविधान के अनुसार देश ने धर्मनिरपेक्ष प्रजातांत्रिक समाजवादी व्यवस्था को अपनाया। संविधान निर्माताओं ने विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के रूप में तीन स्तम्भों को मान्यता प्रदान की है। इसके साथ ही तीनों अंगों की कार्यप्रणाली पर सतत निगरानी की जवाबदारी मीडिया की मानी गयी थी। हमारे संविधान में कुछ संवैधानिक संस्थाओं की भी व्यवस्था की गयी जिनसे यह अपेक्षा की गई है कि वे राजनेतिक प्रभाव से परे रहकर अपना काम करेंगी जिनमें निर्वाचन आयोग, कैग आदि शामिल है। हमारे संविधान की उम्र 69 वर्ष की हो गयी है। इसमें समय समय पर आवश्यकता के अनुसार संशोधन भी किये गये। बीते कुछ वर्षों से धर्मनिरपेक्षता को लेकर राजनीतिक विवाद छिड़ा रहा। कोई किसी पर संतुष्टिकारण का आरोप लगाता तो कोई किसी को छद्म धर्मनिरपेक्ष कहता रहा। समय समय पर राजनेतिक हस्तक्षेप के आरोप भी चस्पा होते रहे है। जिनके पीछे प्रमुख कारण यह रहा है कि सेवानिवृत्त होने कुछ समय पहले ही कोई राजनेतिक रूप से महत्वपूर्ण निर्णय देने के बाद संबंधित पदाधिकारी राजनेतिक पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर लेता है या फिर सरकार उसे किसी बड़े पद देकर उपकृत कर देती है। इन तमाम विवादों के चलते हुये भी न्याय पालिका पर देश के आम आदमी का विश्वास अडिग रहा है। आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि यदि देश मे किसी के साथ अन्याय होगा तो उसे न्यायपालिका से न्याय जरूर मिलेगा। लेकिन हाल में घटित एक घटना ने पूरे देश को चौकाकर रख दिया है। पिछले 69 सालों से ऐसा होता रहा है कि न्याय माँगने के लिये लोग न्यायालय जाते थे लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के चार वरिष्ठ न्यायाधीशों मीडिया के सामने आकर न्याय के लिये जनता की अदालत में गुहार लगा दी है। इन्होंने ना केवल देश के मुख्य न्यायाधीश को कठघरे में खड़ा कर दिया वरन न्यायपालिका में राजनेतिक रूप से प्रकरणों को बैंच में दिये जाने की बात भी ईशारों ईशारों में कह डाली गयी। इस घटना ने पूरे देश को हतप्रभ कर दिया है। यह एक महत्वपूर्ण विचारणीय प्रश्न है कि आखिर ऐसा क्या हो गया था कि इतने वरिष्ठ न्यायाधीश गण मीडिया तक पहुच गये? क्या इस मामले में न्यायपालिका की छवि प्रभावित नही हुयी है? क्या न्यायपालिका से  निष्पक्ष न्याय की चाहत रखने वाले आम आदमी के मन में संदेह नही पैदा हो गया है? क्या इस घटना ने हमारे संविधान और प्रजातंत्र की जड़ों को झकझोर कर नही रख दिया है?  ये तमाम ऐसे प्रश्न है जिनके न केवल हमें जवाब तलाश करने है वरन गणतंत्र दिवस की पावन बेला में यह संकल्प भी लेना है कि हमें अपने संवैधानिक और प्रजातांत्रिक मूल्यों की रक्षा करना है ताकि आम आदमी की आजादी को ग्रहण ना लग सके। यही गणतंत्र दिवस पर हमारी शुभकामनाएं है।



संवैधानिक और प्रजातांत्रिक मूल्यों की रक्षा का संकल्प लें ताकि आजादी को ग्रहण ना लगे






Monday, October 16, 2017

अंधकार पर प्रकाश की जीत का पर्व है दीपावली। इस दिन भगवान राम 14 साल के वनवास के बाद रावण का वध करके अयोध्या लौटे थे तो अयोध्या वासियों ने घी के दिये जलाकर उनका स्वागत किया था। अमावस्या की काली रात के अंधेरे को दिये जलाकर दूर करते है। आज कल झालरों से भी रोशनी की जाती है। इन दिनों देश मे यह अभियान भी चलाया जा रहा है कि चीन की झालरों और फाटकों का बहिष्कार करो और स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करो। क्योंकि चीन का इतिहास देश के साथ धोखा देने का रहा है। हमारे नेता तो चीन जाकर निवेश करने और उद्योग लगाने की बात करते है लेकिन जनता से इन छोटी छोटी चीजों के बहिष्कार करने का आव्हान करते है। इसका वास्तविक कारण हमें तलाशना पड़ेगा। वास्तव में देखा जाये तो चीन हमारा पाकिस्तान की तरह शत्रु देश तो है ही लेकिन हर मामले में हमारा प्रतिद्वंद्वी देश भी है। आर्थिक रूप से हमें उसकी चुनोतियो का सामना करना चाहिए। आज देश नोटबंदी और जी एस टी के आर्थिक प्रयोग के दौर से गुजर रहा है। सत्ता दल का कहना है कि आगे अच्छे दिन आयेंगे जबकि विपक्ष का मानना है कि इन कदमों से देश में आर्थिक अंधकार छा गया है और देश के विकास की दर गिर गई है। सत्ता दल और विपक्ष भले ही कुछ भी कहें लेकिन एक बात तो सच है कि आज बाज़ार में चीजें तो ढेर सारी है लेकिन लोगों की जेबों में जरूरत की चीजों के लिये भी पैसे की कमी है। इस कारण लोगों के मन में भी अंधकार छा गया है। जब वर्तमान में ही कुछ सूझ ना रहा हो तो भविष्य में तो अंधकार छटने की उम्मीद करना बेमानी ही है। आज जरूरत इस बात की भी है कि हमारे उद्योग लागत मूल्य और बिक्री मूल्य में अंतर को कम करें और लिये जाने वाले भारी मुनाफे में भी कमी करें। तभी हम अंतरराष्ट्रीय बाजार में होने वाली प्रतियोगिता में टिक पायेंगे। सरकार को भी मूल्य निर्धारण में अपना ऐसा नियंत्रण रखना चाहिये कि सिर्फ उद्योगपति और कारपोरेट जगत को ही नही वरन आम आदमी को भी राहत मिल सके। आज देश में दीवाली की अमावस्या की काली रात का अंधकार ही दियों से दूर नही करना है वरन आर्थिक अंधकार को दूर करने के कारगर उपाय भी ढूढऩे है। तभी लोगों के मन का अंधकार भी दूर हो पायेगा और आम आदमी भी खुश रह पायेगा। तो आइये आज हम अपने सीमित आर्थिक साधनों से अपनी जरूरतों को पूरी करने का संकल्प ले ताकि हम भी खुश रह सकें और देश को भी खुशहाल बना सकें।