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Monday, November 26, 2012


किंग मेकर बनने की हेट्रिक बनाने की चाहत पड़ी मंहगी नरेश को स्वयं ही बनना पड़ा जिला भाजपा का किंग
 किंगमेकर इज बेटर देन किंग “ लेकिन बार बार यदि यही प्रयोग दोहराने को प्रयास किया जाये तो खेल बिगड़ भी जाता हैं। ऐसा ही एक वाकया पिछले दिनों जिला भाजपा के चुनाव के दौरान देखने को मिला। किंग मेकर बनने की हेट्रिक बनाने के चक्कर में किंग मेकर को खुद ही किंग बनना पड़ गया। अब किंग मेकर से किंग बने नरेश दिवाकर, जो कि प्रदेश सरकार द्वारा महाकौशल विकास प्राधिकरण के केबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त अध्यक्ष है, अपनी इस नयी ताजपोशी को किस रूप में लेते हैं? इसका खुलासा तो वक्त आने पर ही होगा। इन दिनों जिले में मंड़ी चुनावों को लेकर राजनैतिक हल चल मची हुयी हैं। इंका और भाजपा दोनों ही पार्टियां अपने अपने तरीके से जीत की बिसात बिछाने में लगी हुयी हैं। पूर्व जिला भाजपा अध्यक्ष सुजीत जैन के कार्यकाल में हुये लखनादौन नपं के चुनाव में भाजपा की हुयी करारी हार का खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा और पूरी संभावनाओं के बाद भी वे दोबारा अध्यक्ष नहीं पाये। चुनाव नजदीक आने की संभावनाओं को देखते हुये जिले में भी तीसरे मोर्चे के गठन पर प्रयास प्रारंभ हो गये हैं। युवा सपा नेता एवं एडवोकेट याहया कुरैशी की पहल पर मिशन प्रारंभ हुआ हैं। इसमें वाम दलों सहित नागरिक मोर्चे के भी शामिल होने की संभावना हैं। 
हेट्रिक बनाने की कोशिश आखिर पड़ी महंगी-एक कहावत राजनीति के क्षेत्र में बहुत अधिक प्रचलित हैं।     “ किंगमेकर इज बेटर देन किंग “ लेकिन बार बार यदि यही प्रयोग दोहराने को प्रयास किया जाये तो खेल बिगड़ भी जाता हैं। ऐसा ही एक वाकया पिछले दिनों जिला भाजपा के चुनाव के दौरान देखने को मिला। किंग मेकर बनने की हेट्रिक बनाने के चक्कर में किंग मेकर को खुद ही किंग बनना पड़ गया। जी हां हम बात कर रहें हैं नवनियुक्त जिला भाजपा अध्यक्ष नरेश दिवाकर की। यह तो सर्वविदित ही है कि पिछले दो बार से नरेश दिवाकर किंग मेकर बने हुये थे। पहले उन्होंने सुदर्शन बाझल को जिला भाजपा का अध्यक्ष बनवाया और फिर सुजीत जैन को। लगातार दोनों ही बार जब उनका यह खेल सफल रहा तो फिर उनके मन में हेट्रिक बनाने की मंशा जाग गयी। इसके लिये उन्होंने बिसात भी बहुत ही सोच समझ कर बिछायी थी। इस हेतु दिवाकर ने जातिगत और क्षेत्रीय आधार पर अपने प्रत्याशी तैयार किये थे। इस पद के लिये भाजपा में 12 उम्मीदवारों के नाम सामने आये थे। इनमें सुजीत जैन,सुदर्शन बाझल, अशोक टेकाम,अजय त्रिवेदी,गोमती ठाकुर,देवी सिंह बघेल,राजेन्द्र सिंह बघेल,वेद सिंह ठाकुर,सुदामा गुप्ता,भुवन अवधिया,संतोष अग्रवाल और ज्ञानचंद सनोड़िया के नाम प्रमुख थे। इनमें से प्रथम सात नेताओं को नरेश समर्थक माना जाता हें। इनमें ब्राम्हण, आदिवासी, पंवार,बागरी और जैन समाज के नाम थे जो कि जिले के अलग अलग क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं। लेकिन इस बार प्रदेश आला कमान का यह स्पष्ट निर्देश था कि चुनावी साल होने के कारण वोटिंग नहीं होना चाहिये। चुनाव के एक दिन पहले से जब आम सहमति बनाने की कवायत चालू हुयी तो यह समझ में आ गया था कि अधिकांश दावेदार नरेश दिवाकर के ही हैं। इसी बीच जिले के एक जनप्रतिनिधि ने, जिसका सीधे प्रदेश संगठन में दखल है, ने प्रदेश नेतृत्व को इस बात से अवगत करा दिया कि अधिकांश दावेदार तो भले ही नरेश दिवाकर के समर्थक हैं लेकिन अब उनके ही बीच में आम सहमति बना पाना नरेश के लिये ही संभव नहीं रह गया हैं इसलिये किसी ऐसे वजनदार नेता को जिले की कमान सौंपी जाये जिसे सभी स्वीकार करने को बाध्य हो जायें। इस खबर के मिलने के बाद प्रदेश नेतृत्व ने यह कर लिया कि नरेश दिवाकर को ही कमान सौंप दी जाये। भाजपा नेताओं का दावा तो यह भी है कि अगला चुनाव लड़ने की इच्छा प्रगट करते हुये शुरू में नरेश ने आना कानी की लेकिन बाद में उन्हें यह स्वीकार करना ही पड़ा। बताया जाता है कि सब कुछ तय हो जाने के बाद विधायक कमल मर्सकोले ने नरेश का नाम प्रस्तावित किया और उनके नाम की घोषणा जिला निर्वाचन अधिकारी ने कर दी। बताया तो यह भी जा रहा हैं कि आम सहमति बनाने जैसी कोई कवायत भी इसके बाद नहीं की गयी। अब किंग मेकर से किंग बने नरेश दिवाकर, जो कि प्रदेश सरकार द्वारा महाकौशल विकास प्राधिकरण के केबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त अध्यक्ष है, अपनी इस नयी ताजपोशी को वे किस रूप में लेते हैं? इसका खुलासा तो वक्त आने पर ही होगा। 
भाजपा और इंका के लिये परीक्षा होगी मंड़ी चुनाव -इन दिनों जिले में मंड़ी चुनावों को लेकर राजनैतिक हल चल मची हुयी हैं। इंका और भाजपा दोनों ही पार्टियां अपने अपने तरीके से जीत की बिसात बिछाने में लगी हुयी हैं। पद भार ग्रहण करते ही नव नियुक्त जिला भाजपा अध्यक्ष के लिये ये एक राजनैतिक चुनौती सामने आ गयी हैं। पूर्व जिला भाजपा अध्यक्ष सुजीत जैन के कार्यकाल में हुये लखनादौन नपं के चुनाव में भाजपा की हुयी करारी हार का खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा और पूरी संभावनाओं के बाद भी वे दोबारा अध्यक्ष नहीं पाये। वैसे तो जिला कांग्रेस अध्यक्ष हीरा आसवानी के कार्यकाल का भी यही पहला चुनाव था जहां कांग्रेस का अध्यक्ष पद का प्रत्याशी ही नदारत हो गया था लेकिन पार्षदों के चुनावों में मिली सफलता को आधार बनाकर कांग्रेस के किंग मेकर हरवंश सिंह ने किंग को बचा लिया। इस तरह मंड़ी चुनाव ना सिर्फ दोनों पार्टियों के लिये वरन उनके अध्यक्षों के लिये भी प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गयें हैं। वैसे तो प्रदेश की शिवराज सरकार यह नहीं चाहती थी कि 2013 के विस चुनाव के पहले ग्रामीण क्षेत्र के मतदाताओं का रुझान उजागर हो। इसलिये पिछले दो साल से किसी ना किसी बहाने मंड़ी चुनाव टाले जा रहे थे। लेकिन हाई कोर्ट के आदेश पर जब मंड़ी चुनाव अनिवार्य हो गया तब प्रदेश सरकार ने अध्यक्ष के प्रत्यक्ष निर्वाचन की प्रणाली को ही बदल दिया और सदस्यों के    माध्यम से अध्यक्ष निर्वाचित करने का प्रावधान कर दिया। कांग्रेस के पास यह एक बहुत बड़ा मुद्दा हैं। यदि इसे पूरे जोर शोर से मतदाताओं के बीच उठाया जाता हैं तो इसका लाभ मिल सकता हैं। वैसे भी प्रत्यक्ष निर्वाचन ना होने के कारण अध्यक्ष पद का पूरा दारोमदार जन समर्थन पर कम और “चुनाव     प्रबंधन“ पर अधिक निर्भर करेगा। इसमें हरवंश सिंह और नरेश दिवाकर दोनो ही माहिर हैं। फिर दोनों के बीच समन्वय से राजनीति करने का पिछले 15 सालों से जो खेल चल रहा हैं उसे देखते हुये राजनैतिक क्षेत्रों में यह कयास लगाया जा रहा हैं कि अपने अपने राजनैतिक लाभ के हिसाब से मंड़ी चुनावों में मिले जुले परिणाम सामने आयेंगें। 
जिले में तीसरे मोर्चे के गठन के प्रयास प्रारंभ -चुनाव नजदीक आने की संभावनाओं को देखते हुये जिले में भी तीसरे मोर्चे के गठन पर प्रयास प्रारंभ हो गये हैं। युवा सपा नेता एवं एडवोकेट याहया कुरैशी की पहल पर मिशन प्रारंभ हुआ हैं। इसमें वाम दलों सहित नागरिक मोर्चे के भी शामिल होने की संभावना हैं। बसपा तो इसमें शामिल होने से रही लेकिन यदि गौगपा इसमें शामिल हो जाती हैं तो तो यह चुनावी संभावनाओं पर असर डाल सकता हैं। वैसे तो पूरे प्रदेश सहित जिले में भी राजनैतिक ध्रुवीकरण इंका और भाजपा के बीच में ही है लेकिन ऐसे मोर्चे किसी की हार और किसी की जीत में निर्णायक साबित हो सकते हैं। सियासी हल्कों में यह जरूर माना जा रहा हैं कि जिले में इंका और भाजपा में व्याप्त गुट बाजी का यदि कोई मोहरा बन जायेगा तो उसकी मारक क्षमता कम हो जायेगी क्योंकि आज कल आम मतदाता इतना जागरूक हो गया हैं कि वो इन सब हथकंड़ों को को बखूबी समझने लगा हैं और यह भी समझ चुका हैं कि चुनावी समीकरण अपने पक्ष में करने के लिये जिले के कौन कौन महारथी ऐसे कारनामें करते रहते हैं। वैसे याहया कुरैशी का नाम एक ऐसा नाम है जिस पर अभी कोई ब्रांड़ चस्पा नहीं हैं। इसलिये उनकी अगुवायी में यदि ऐसा कोई प्रयास होता है तो उन्हें बहुत सावधानी से कदम उठाने पड़ेंगें और अतीत के प्रयोंगों से सबक भी लेना पड़ेगा। वरना नतीजा वही ढाक के तीन पात के समान हो जायेगा। “मुसाफिर“ 

Sunday, November 11, 2012


प्रजातंत्र में प्रविष्ट आसुरी शक्तियों को समूल नष्ट करने हर नारगरिक को बनना होगा राम
बुराइयों पर अच्छाइयों की, अधर्म पर धर्म की और आसुरी शक्तियों पर दैवीय शक्तियों की जीत का प्रतीक है दीपावली का त्यौहार। आततायी रावण का वध करके जब भगवान राम अयोध्या वापस आये थे तो अयोध्यावासियों ने घी के दिये जला कर भगवान राम का स्वागत किये थे। इसे ही दिवाली के रूप में मनाते हैं। हम हर साल रावण को जलाते तो जरूर है लेकिन देश में आसुरी शक्तियां नये नये रूप में पनपने लगतीं हैं। जब देश खुशहाल रहेगा तभी तो हम खुशहाल रहेंगें। आजादी के इतने साल बीत जाने के बाद भी देश में भाषावाद,राष्ट्रवाद पर हावी होते क्षेत्रीयतावाद,गठबंधन की राजनीति के दुष्परिणाम, जातिवाद, भ्रष्टाचार जैसी आसुरी शक्तियां पैर पसारे हुये हैं। आज के युग में इन आसुरी शक्तियों को नष्ट करने भगवान श्री राम तो आने से रहे। पूरा देश जिन भगवान राम को मर्यादा पुरषोत्तम और अपना आदर्श मानते हैं आज तो उन्हीं पर तथा कथित राम भक्त ही अगुलियां उठाने से परहेज नहीं कर रहें हैं। इन आसुरी शक्तियों का विनाश हुये बिना राम राज्य की कल्पना करना बेमानी होगा।  इनके समूल नष्ट करने की अपेक्षा किसी सरकार या किसी राजनैतिक दल से करना भी निराश ही करेगा।प्रजातंत्र में आयी  इन आसुरी शक्तियों को नष्ट करने के लिये आज आवश्यक्ता है कि इस पर चिंतन मनन किया जाये। मेरे विचार से आज इस बात की जरूरत हैं कि देश का हर नागरिक जहां जो भी कर रहा हैं वह भगवान राम के आर्दश के अनुरूप करे।”स्वहित” के अलावा परिवार,समाज,प्रदेश और देश के हित का भी ख्याल रखे। पुराने सामाजिक मूल्यों को स्थापित करें। आधुनिकता और आर्थिक चकाचौंध से बाहर आयें। याने देश का हर नागरिक राम बने। और राम के आदर्शाें को आत्मससात करें। तभी विकराल रूप धारण कर चुकी इन आसुरी शक्तियों से छुटकारा पाया जा सकता हैं। भगवान राम देश और देश के हर नागरिक को ऐसी शक्ति प्रदान करें और प्रजातंत्र में आयी इन आसुरी शक्तियों का नाश हो, यही दीपावली के पावन पर्व पर हमारी शुभकामनायें हैं।  
आशुतोष वर्मा
मो. 9425174640

Tuesday, November 6, 2012



बंदूकों के साये में शुरू हुआ पेंच परियोजना का काम
मेघा पाटकर की गयी नजरबंदःतीन साल से ठेकेदार काम नहीं कर पा रहा थाःएस.ए.एफ. की आठ कंपनी लगायी गयीं  
सिवनी । छिंदवाड़ा और सिवनी जिले की अति महत्वाकांक्षी पेंच सिचायी परियोजना के बांध का लंबे समय से लंबित काम अंततः चालू हो गया हैं। वैसे तो पेंच परियोजना बीसों साल से राजनैतिक पेंचों में उलझ कर रह गयी थी। लेकिन आडवानी जी के छिंदवाड़ा प्रवास के दौरान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सार्वजनिक मंच से यह घोषणा की थी कि कोई माई का लाल पेंच परियोजना के काम को नहीं रोक पायेगा। मुख्यमंत्री की इस घोषणा के बाद भी प्रशासनिक सहयोग ना मिलने के कारण मात्र चंद किसानों के विरोध के चलते ठेकेदार काम ही नहीं कर पा रहा था और आइडियल चार्ज के रूप में एक लंबी राशि वह सरकार से लेने का हकदार बन गया था।
पूरे लाव लश्कर के साथ बांध स्थल पर ठेकेदार के आ जाने के बाद भी वह लगभग तीन साल से काम चालू नहीं कर पा रहा था। बताया जा रहा हैं कि ठेकेदार ने इस मामले में कोर्ट जाने की जब बात की तो प्रदेश के मुख्य सचिव के हस्तक्षेप से यह व्यवस्था की गयी हैं भारी पुलिस बल की उपस्थिति में काम चालू कराया जाये। इसी के चलते स्थानीय पुलिस बल के अलावा आठ एस.ए.एफ. की कंपनियां भी तैनात की गयीं हैं।
काम चालू होने की भनक लगते हैं विरोध करने वाले स्थानीय नेताओं के अलावा मेघा पाटकर भी छिंदवाड़ा पहुंच गयीं हैं। विश्वस्त सूत्रों के अनुसार प्रशासन ने उन्हें नजर बंद कर लिया हैं।
यहां यह विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं कि दोनो जिलो के 242 गांवों की 63777 हेक्टेयर भूमि इस योजना से सिंचित होगी। इसके साथ ही 500 मेगावाट बिजली का उत्पादन भी होगा। इससे दोनों जिलों के हजारों किसान लाभान्वित होगें।
उल्लेखनीय हैं इससे प्रभावित होने वाले किसानो का 2006 एवं 2009 में मुआवजा दे दिया गया हें तथा किसानों की मांग पर 2011.2012 की नई गाइड लाइन के अनुसार भी मुआवजा तय कर दिया गया हैं जिसे मात्र बाम्हनवाड़ा गांव के किसानों को छोड़कर सबने ले भी लिया हैं।
मात्र एक गांव के चंद किसानो के कारण सैकड़ों गांवों के हजारों किसानो के हितो की अनदेखी करने वाले आंदोलनकारी भला कैसे किसान हितेषी हो सकते हें। लाभान्वित होने वाले किसानों और पेंच की मांग करने नेताओं और जन प्रतिनिधियों को भी अपनी आवाज बुलंद करना चाहिये ताकि चालू हुआ काम फिर ना रुक सके।      


गरीब जान के मुझको ना तुम भुला देना,
                             तुम्हीं ने दर्द दिया है तुम्हीं दवा देना
प्रदेश के स्थापना दिवस के समारोह मेंविस उपाध्यक्ष हरवंश सिंह ने ध्वजारोहण कर प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के संदेश का वाचन किया। जहां एक ओर स्थानीय भाजपा विधायक नीता पटेरिया आंत्रण पत्र में अतिथि के रूप में नाम छपने के बाद भी कार्यक्रम में अनुपस्थित रहीं वहीं दूसरी ओर आमंत्रण पत्र में नाम ना रहने के बाद भी महाकौशल विकास प्राधिकरण के कबीना मंत्री का दर्जा प्राप्त अध्यक्ष नरेश दिवाकर की कार्यक्रम में उपस्थिति राजनैतिक हल्कों में  चर्चित रही। भाजपा के 23 मंड़लों में से अधिकांश के चुनाव निर्विरोध संपन्न हो गये हैं। वैसे तो बताया यह जा रहा है कि ये सारे चुनाव आम सहमति से हुये हैं लेकिन आम सहमति कैसे बनी? या कैसे बनायी गयी? इसके किस्से भी कम रोचक नहीं हैं। गरीब जान के मुझको ना तुम भुला देना, तम्हीं ने दर्द दिया है तुम्हीं दवा देना”की तर्ज पर भी पूरा खेल हुआ जिला पंचायत के युवा,जुझारू और लोकप्रिय अध्यक्ष मोहन चंदेल के खिलाफ लाये गये अविश्वास प्रस्ताव का। वैसे तो यह रामगोपाल जैसवाल और कांग्रेस की पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष रैनवती मानेश्वर की अगुवायी में लाया गया था लेकिन सियासी हल्कों में यह चर्चा भी थी कि इसके पीछे जिले के इकलौते इंका विधायक हरवंश सिंह का ही आर्शीवाद था।
नीता गायब,हरवंश नरेश रहे साथ-प्रदेश के स्थापना दिवस के समारोह में जिले के इंका विधायक और विस उपाध्यक्ष हरवंश सिंह ने ध्वजारोहण कर प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के संदेश का वाचन किया। इस शासकीय समारोह में जहां एक ओर स्थानीय भाजपा विधायक एवं प्रदेश महिला मोर्चे की अध्यक्ष नीता पटेरिया आंत्रण पत्र में अतिथि के रूप में नाम छपने के बाद भी कार्यक्रम में अनुपस्थित रहीं वहीं दूसरी ओर आमंत्रण पत्र में नाम ना रहने के बाद भी महाकौशल विकास प्राधिकरण के कबीना मंत्री का दर्जा प्राप्त अध्यक्ष एवं सिवनी के पूर्व भाजपा विधायक नरेश दिवाकर की कार्यक्रम में उपस्थिति राजनैतिक हल्कों में ना केवल चर्चित रही वरन स्थानीय अखबारों ने इस पर अपनी अपनी टिप्पणियां भी की हैं। जहां तक विधायक नीता पटेरिया का सवाल है तो यह पहला अवसर नहीं हैं जबकि किसी ऐसे शासकीय कार्यक्रम में वे शामिल ना हुयीं हों जिसमें हरवंश सिंह मुख्य अतिथि रहते हैं। ऐसा पहले भी कई बार हो चुका हैं। रहा सवाल हरवंश सिंह के साथ नरेश दिवाकर के शामिल होने का तो इससे लेकर कांग्रेस और भाजपा दोनो ही पार्टियों में किसी को कोई आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि दोनों ही पार्टियों में इन दोनों नेताओं की राजनैतिक निकटता एक अब एक ओपन सीक्रेट की तरह हो गयी हैं। चुनावी सल में इंका और भाजपा के इन नेताओं के बीच बनने बिगड़ने वाले राजनैतिक समीकरणक्या गुल ख्लिायेंगें? इसे लेकर कयास लगाये जा रहें हैं। इस समारोह में एक और बात विशेष रूप से उल्लेखनीय रही कि जिस दिन प्रदेश का स्थापना दिवस मनाया जाता हैं वही दिन जिले का भी स्थापना दिवस हैं लेकिन पिछले सालों में हमेशा ऐसा होता रहा हैं कि प्रदेश का स्थापना दिवास तो समारोह पूर्वक मना लिया जाता हैं लेकिन जिले की याद ना तो प्रशासनिक अधिकारियों को रहती हैं और ना उन नेताओं को जिनको इस जिले ने  ही उस मुकाम तक पहुंचाया हैं जहां आज वे हैं। अब इसे दुर्भाग्य नहीं तो और क्या कहा जाये कि जिले की माटीका कर्ज ही आज नेताओं को जब याद नहीं रहता तो भला उनसे और उम्मीद भी क्या की जा सकती है? 
भाजपा में बलात आम सहमति बनी निर्विरोध निर्वाचन-इन दिनों जिले में भाजपा के संगठनात्मक चुनाव हो रहें हैं। जिले के 23 मंड़लों में से अधिकांश के चुनाव निर्विरोध संपन्न हो गये हैं। वैसे तो बताया यह जा रहा है कि ये सारे चुनाव आम सहमति से हुये हैं लेकिन आम सहमति कैसे बनी? या कैसे बनायी गयी? इसके किस्से भी कम रोचक नहीं हैं। अधिकांश मंड़लों में हालात यह थे कि एक से अधिक कई कार्यकर्त्ता अध्यक्ष बनने की तैयारी में काफी दिनों से लगे हुये थे। लेकिन बताया जा रहा है कि मिशन 2013 और 2014 को ध्यान में रखते हुये भाजपा के प्रदेश नेतृत्व ने यह यत कर लिया था कि किसी भी हालत में वोटिंग ना करायी जाये। आमतौर पर यह भी तय कर लिया गया था कि क्षेत्रीय विधायकों और जिले के वरिष्ठ नेताओं की पंसद के अनुसार ही चुनाव करायें जायें। इस लिहाज से जिले में तीनों भाजपा विधायक नीता पटेरिया,कमल मर्सकोले और शशि ठाकुर के अलावा जिला भापा अध्यक्ष सुजीत जैन,मविप्रा के अध्यक्ष नरेश दिवाकर और वित्त आयोग के अध्यक्ष डॉ. ढ़ालसिंह बिसेन की पसंद नापसंद ही निर्णायक रही हैं। चुनाव अधिकारियों द्वारा आम सहमति बनाने की कोशिश की जाती थी और उसके बाद भी यदि कोई अड़ जाता था तो उसे बता दिया जाता था कि फला व्यक्ति के लिये ऊपर से निर्देश हैं। इस तरह सीधे नहीं तो बलात आम सहमति बना कर जिसे बनाना रहता था उसे बना दिया गया और इसे निर्विरोध निर्वाचन का जामा पहना दिया गया हैं। इस तरह चुनाव भले ही शांतिपूर्ण तरीके से निपट गयें हों लेकिन अंदर ही अंदर पार्टी के निष्ठावान और समर्पित कार्यकर्त्ताओं के अंदर असंतोष व्याप्त हैं। कॉर बेस कही जाने वाली भाजपा में ऐसे चुनाव इस बात का प्रमाण माने जा रहें हैं कि भाजपा भी अब उसी राजरोग से ग्रस्त हों गयी हैं जिसकी आलोचना करके वो सबसे अलग दिखने का दावा किया करती थी।
अविश्वास प्रस्ताव के नाटकीय अंत का राज क्या?-”गरीब जान के मुझको ना तुम भुला देना, तुम्हीं ने दर्द दिया है तुम्हीं दवा देना”की तर्ज पर भी पूरा खेल हुआ जिला पंचायत के युवा,जुझारू और लोकप्रिय अध्यक्ष मोहन चंदेल के खिलाफ लाये गये अविश्वास प्रस्ताव का। पिछले एक पखवाड़े से जिले के राजनैतिक हल्कों में इसे लेंकर खासी गहमा गहमी थी। वैसे तो यह प्रस्ताव अध्यक्ष पद का चुनाव भाजपा के बैनर तले लड़ने वाले रामगोपाल जैसवाल और कांग्रेस की पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष रैनवती मानेश्वर की अगुवायी में लाया गया था लेकिन सियासी हल्कों में यह चर्चा भी थी कि इसके पीछे जिले के इकलौते इंका विधायक हरवंश सिंह का ही आर्शीवाद था। अविश्वास प्रस्ताव लाने वाले और उससे बचने वाले मोहन चंदेल दोनों ही पक्षों के सदस्य लगातार हरवंश सिंह के संपर्क में बने हुये थे। इंकाई हल्कों में यह भी चर्चा है मोहन चंदेल ने केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ से अपनी निकटता बढ़ा ली थी और इसी के चलते अंत में कमलनाथ के कहने पर अनिच्छा से सही लेकिन संचालन के सारे सूत्र हरवंश सिंह कोे अपने हाथ में लेना पड़ा। लेकिन अविश्वास का वातावरण इतना गहरा चुका था कि कोई किसी पर विश्वास करने को ही राजी नहीं था। इसीलिये यह रणनीति बनायी गयी कि कोई भी सदस्य बैठक में जाये ही नहीं। यह निर्णय लेने के पीछे भी कुछ कारण थे। पहला तो यह कि मोहन पर लगाये गये गंभीर आरोपों पर कोई बहस नहीं हो पायेगी और शेष कार्यकाल वे अपने ऊपर लगे आरोपों के साये में ही पूरा करेंगें। दूसरा यह कि प्रस्ताव भले ही निरस्त हो जाये लेकिन यह संदेश भी जायेगा कि अध्यक्ष के पास बचने के लिये आवश्यक पांच वोट भी थे तभी तो बैठक का बहिष्कार किया गया। प्रस्ताव को गिर गया लेकिन सियासी हल्कों में यह भी चर्चा हैं प्रदेश में पंचायती राज्य के जनक के रूप में दिग्गी राजा के साथ साथ तत्कालीन पंचायत मंत्री हरवंश सिंह भी अपने आप को मानते हैं और एक अच्छा पंचायत राज्य अधिनियम बनाने का श्रेय भी लेते हैं। लेकिन उन्होंने अपने ही गृह जिले में उसी अधिनियम के प्रावधानों का ऐसा घिनौना मजाक उड़ाया है कि उसकी कोई मिसाल ही नहीं हैं। ”मुसाफिर”