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Saturday, January 26, 2013


स्थानीय पुलिस बल की मौजूदगी में केन्द्रीय गृह मंत्री शिंदे का पुतला जलाकर खूब आग तापी भाजपाइयों ने
बीते दिनों हुये सिवनी वृहत्ताकार सहकारी समिति के चुनाव में एक बार इंका और भाजपा के बीच सियासी नूरा कुश्ती सरे आम दिखायी दी। कांग्रेस के एक उप गुट ने भाजपा के एक गुट से तालमेल बिठाकर सदस्यों का चुनाव लड़ा। इसमें यह समझोता किया गया कि सहकारी बैंक का प्रतिनिधि एवं एक उपाध्यक्ष भाजपा काहोगा तथा समिति का अध्यक्ष एवं एक उपाध्यक्ष इंका का होगा। इंका और भाजपा की लाल बत्तियों से लेकर चिमनियों तक के बीच खेली जा रही नूरा कुश्ती के चलते आज यह कहना संभव नहीं हैं कि जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष पद पर किस पार्टी के किस गुट का नेता बन जायें। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव पूरे देश में चौंकाने वाला साबित हुआ। प्रदेश भाजपा में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के समर्थक नरेश तोमर की ताजपोशी के बाद डॉ. बिसेन को राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव में प्रस्तावक बनाया जाना भाजपायी हल्कों में खासा चर्चित हैं। जिला भाजपा ने अध्यक्ष नरेश दिवाकर के नेतृत्व में केन्द्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे के विवादास्पद बयान को लेर धरना प्रदर्शन किया और यू.पी.ए. तथा शिंदें का पुतला दहन भी किया। उल्लेखनीय है कि शिंदे ने जयपुर में  यह कह दिया था कि संघ और भाजपा में भगवा आतंकवादी तैयार किये जाते हैं। स्थानीय पुलिस बल की भारी उपस्थिति में गांधी चौक में भाजपा के कार्यकर्त्ताओं ने केन्द्रीय गृह मंत्री शिंदे का पुतला जलाया और आराम से पूरा पुतला जलते तक भीषण ठंड़ के मौसम में खूब आग भी तापी।  
सहकारी समितियों के चुनेाव में भी चर्चित रही नूरा कुश्ती-बीते दिनों हुये सिवनी वृहत्ताकार सहकारी समिति के चुनाव में एक बार इंका और भाजपा के बीच सियासी नूरा कुश्ती सरे आम दिखायी दी। कांग्रेस के एक उप गुट ने भाजपा के एक गुट से तालमेल बिठाकर सदस्यों का चुनाव लड़ा। इसमें यह समझोता किया गया कि सहकारी बैंक का प्रतिनिधि एवं एक उपाध्यक्ष भाजपा काहोगा तथा समिति का अध्यक्ष एवं एक उपाध्यक्ष इंका का होगा। नूरा कुश्ती के इस समझोते के तहत लड़े गये चुनाव में इन्हें सफलता मिली और कांग्रस के शिव सनोड़िया अध्यक्ष एवं भाजपा के सहकारी क्षेत्र के एक पुरोधा विजय सिंह बघेल बैंक प्रतिनिधि चुन लिये गये। वैसे तो कांग्रेसी यह दावा कर रहें है कि उन्हें 75 प्रतिशत समितियों में सफलता मिल गयी हैं। यदि इसमें कांग्रेस के बैंक प्रतिनिधि और अध्यक्ष चुने गये हैं तो यह माना जाना चाहिये कि जिलासहकारी बैंक के अधिकांश संचालक कांग्रेस के चुन जायेंगेंऔर बैंक पर कांग्रेस का कब्जा हो जायेगा। लेकिन यदि सिवनी सह. समिति की तर्ज पर चुनाव हुये है तो यह दावा अंत में खोखला भी साबित हो सकता हैं। वैसे वर्तमान में भाजपा के अशोक टेकाम बैंक के अध्यक्ष हैं और वे पूरी ताकत से दोबारा अध्यक्ष बनने की जुगत जमा रहें हैं लेकिन भाजपा के अलग अलग गुट अपने पाले में अध्यक्ष पद लाने की जुगाड़ जमा रहें हैं। इस गुटबाजी के चलते कौन सा गंट कांग्रेस के हाथ मिलाकर संचालक के चुनावों में कौन सा खेल खेल जाये? इसे लेकर सियासी हल्कों में तरह तरह के कयासे लगाये जा रहे हैं। वैसे सिवनी सहकारी समिति के शपथ ग्रहण समारोह मेें विस उपाध्यक्ष हरवंश सिंह ने मंड़ी और इन चुनावों में मिली सफलता के जिला इंकाध्यक्ष हीरा आसवानी की रणनीति की तारीफ की हैं। दूसरी तरफ मंड़ी चुनावों में मिली हार के कारण जिला भाजपा अध्यक्ष एवं मविप्रा के अध्यक्ष नरेश दिवाकर भी यह कोशिश कर रहें हैं कि येन केन प्रकारेण ना केवल भाजपा का वरन उनके अपने गुट का  भाजपा नेता बैंक का अध्यक्ष बन जाये। इंका और भाजपा की लाल बत्तियों से लेकर चिमनियों तक के बीच खेली जा रही नूरा कुश्ती के चलते आज यह कहना संभव नहीं हैं कि जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष पद पर किस पार्टी के किस गुट का नेता बन जायें। आज आलम यह हैं कि अपने हितों के सामने इस जिले के इंका और भाजपा नेताओं के लिये पार्टी हितों की बलि चढ़ा देना कोई अनहोनी बात नहीं रह गयी हैं। 
राष्ट्रीय अध्यक्ष के प्रस्तावक बनने से कद बढ़ा डॉ. बिसेन का-भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव पूरे देश में चौंकाने वाला साबित हुआ। आर.एस.एस. की सहमति से वर्तमान अध्यक्ष नितिन गडकरी का दोबार अध्यक्ष चुना जाना लगभग निश्चित था। भ्रष्टाचार के तमाम आरोपों के बाद भी संघ ने गडकरी को हरी झंड़ी दे दी थी लेकिन भाजपा की आपसी घमासान और एक दिन पहले गडकरी के ठिकानों पर डले आयकर विभाग के छापों ने सारे पासें एक बार में ही पलट का रख दिये। रातों रात सारा खेल बदल गया और पूर्व अध्यक्ष राजनाथ सिंह की एक बार फिर से ताजपोशी हो गयी। जितना राष्ट्रीय स्तर पर यह चुनाव चर्चित रहा उससे कम जिले में भी यह चर्चित नहीं रहा। इसका प्रमुख कारण यह था कि प्रदेश से अध्यक्ष पद के लिये प्रस्तावकों की सूची में जिले के वरिष्ठ भाजपा नेता डॉ. ढ़ालसिंह बिसेन को शामिल किया गया था। प्रदेश भाजपा में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के समर्थक नरेश तोमर की ताजपोशी के बाद डॉ. बिसेन को राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव में प्रस्तावक बनाया जाना भाजपायी हल्कों में खासा चर्चित हैं। ऐसा माना जा रहा है कि डॉ. बिसेन की इस उपलब्धि से जिले की  भाजपा में उनका कद और अधिक बढ़ जायेगा। उल्ललेखनीय है कि डसॅ. बिसेन बरघाट विस से चार बार विधायक रहें हैं इस दौरान वे विधानसभा में भाजपा विधायक दल के सचेतक एवं 2003 से 2008 के बीच प्रदेश के विभिन्न महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री भी रह चुके हैं। प्रदेश भाजपा से वे राष्ट्रीय समिति के सदस्य भी रहें हैं। 
पुलिस बल की मौजूदगी में देश के गृह मंत्री शिंदे का पुतला फूंका भाजपाइनेयों -जिला भाजपा ने अध्यक्ष नरेश दिवाकर के नेतृत्व में केन्द्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे के विवादास्पद बयान को लेर धरना प्रदर्शन किया और यू.पी.ए. तथा शिंदें का पुतला दहन भी किया। उल्लेखनीय है कि शिंदे ने जयपुर में  यह कह दिया था कि संघ और भाजपा में भगवा आतंकवादी तैयार किये जाते हैं। राजनाथ सिंह ने राष्ट्रीय भाजपा के अध्यक्ष बनने के तत्काल बाद ही इसके विरोध का राष्ट्र व्यापी आव्हान किया था। इसकी के तहत जिला मंख्यालय में यह आयोजन किया था। इस धरने को भाजपा के कई नेताओं ने संबोधित किया और केन्द्र सरकार और सोनिया गांधी पर निशाने साधे। भाजपा नेताओं ने महामहिम राष्ट्रपति महोदय से गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे को बर्खास्त करने की भी मांग की हैं। स्थानीय पुलिस बल की भारी उपस्थिति में गांधी चौक में भाजपा के कार्यकर्त्ताओं ने केन्द्रीय गृह मंत्री शिंदे का पुतला जलाया और आराम से पूरा पुतला जलते तक भीषण ठंड़ के मौसम में खूब आग भी तापी। वैसे तो उपस्थिति के हिसाब से यह धरना सिर्फ औपचारिक ही कहा जा सकता है लेकिल भारी ठंड़ और बारिश तथा बदली के बीच संपन्न इस आयोजन  में भाजपा नेताओं के तेवर काफी आग उगलने वाले थे। वैसे तो महात्मा गांधी की हत्या के बाद से ही संघ विवादों के घेरे में रहा हैं तथा उसे अपने आप को हिन्दूवादी संगठन कहने में कभी कोई संकोच भी नहीं रहा हैं। लेकिन केन्द्र सरकार के गृह मंत्री के बयान ने उन्हें और भाजपा को आक्रमक होने का एक मौका दे दिया और मिशन 2013 और मिशन 2014 में जुटी भाजपा ने इसका पूरा पूरा फायदा उठानें में कोई कसर भी नहीं छोड़ी। सभा स्थल पर मौजूद एक आम आदमी यह टिप्पणी बहुत अधिक सटीक थी कि वैसे तो राजनीति में सारे नेता सब कुछ करते औा कहते हैं लेकिन राष्ट्रहित को ध्यान में रखते हुये ऐसा कुछ नहीं कहना चाहिये जिससे पड़ोसी देश की सीमाओं पर सेनिकों के साथ हाने वाले अत्याचार और अधिक बढ़ जाये। बात भले ही कुछ अटपटी लगे लेकिन यह आम आदमियों की नेताओं के बारे में बनी सोच को जरूर उजागर करती हैं। “मुसाफिर“
दर्पण झूठ ना बोले, सिवनी
 26 जनवरी 2013 से साभार      

Thursday, January 24, 2013


गण और तंत्र देश हित को सर्वोपरि माने तभी सार्थकता 
15 अगस्त 1947 को देश गुलामी की जंजीरों से आजाद हुआ था। 26 जनवरी 1950 को देश ने अपने संविधान को अंगीकार कर एक विशाल गणतांत्रिक देश के रूप में अपनी पहचान बनायी ।आज हम गणतंत्र दिवस की 63 वीं सालगिरह मना रहें हैं। इन सालों में एक सवाल हमारे सामने जरूर आया है कि आखिर हमारे देश में गण के लिये तंत्र है या तंत्र के लिये गण ? यह सवाल क्यों आज हमारे सामने आया इसके लिये कमोबेश गण और तंत्र दोनों ही अपनी जवाबदारी  से मुकर नहीं सकते हैं। संविधान बनाने वालों की धारणा थी कि गण देश के प्रति अपने कर्त्तव्यों को बखूबी निभाये और तंत्र निष्पक्ष और निर्भीक होकर गण की सेवा करें। संविधान में गण याने आम आदमी को मताधिकार देकर सबसे अहम जवाबदारी डाली थी कि वो अच्छी जन प्रतिनिधियों को चुनकर देश को दे। क्या हम आज यह कह सकते हैं कि गण अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन ठीक से कर रहें है? क्या चुनावी राजनीति में सदगुणों और बुद्धिबल पर धनबल और बाहुबल हावी नहीं हो गया है?यदि इन आधारों पर जन प्रतिनिधियों का निर्वाचन होगा तो फिर प्रजातांत्रिक मूल्यों में गिरावट तो आयेगी ही जिसके परिणाम अंततः हमें भोगने पड़ेंगें।
गण जब तंत्र चलाने के लिये अच्छे एवं गुणवान जनप्रतिनिधि चुनकर नहीं देंगें तो भला तंत्र को नियंत्रित करने का अधिकार रखने वाली सरकार अच्छी कैसे बन पायेगी? राजनैतिक दल भी सिद्धान्तों और नीतियों को दर किनार करके महज सत्ता पाने के लक्ष्य को लेकर गठबंधन करते दिखायी दे रहें है। समाज के हर क्षेत्र में राजनीति के हावी हो जाने के कारण प्रशासनिक तंत्र में भी राजनैतिक हस्तक्षेप इतना अधिक बढ़ गया है कि नैतिक अनैतिक के बीच की विभाजन रेखा ही कहीं गुम हो गयी हैं। महज वोट हासिल करने की खातिर सर्व धर्म समभाव की भावना कहीं गुम होते दिखायी दे रही हैं।
गणतंत्र दिवस की 63 वीं वर्षगांठ पर आज इन सवालों के जवाब तलाशना समय की मांग बन गयी हैं। ऐसा भी नहीं है कि आजादी के बाद देश में कुछ विकास हुआ ही नहीं हैं। हां इस बात पर विवाद जरूर हो सकता हैं कि जितना विकास होना था उतना शायद ना हुआ हो। आज यह वक्त का तकाजा हैं कि गण सिर्फ यह ना सोचे कि देश हमें क्या दे रहा है वरन वे ये भी सोचें कि वे देश को क्या दे रहें ? इसके साथ ही चुनाव की प्रजातांत्रिक प्रक्रिया में जो विकृतियां आ गयी हैं और धनबल और बाहुबल का जो बोलबाला हो गया हैं उसे रोकने के उपाय किये जायें। प्रशासनिक तंत्र को भी अपने मात्र हितों के लिये राजनैतिक हस्तक्षेप को नकार कर निष्पक्ष और निर्भीक बनना समय की मांग हैं। देश में ना सिर्फ गण के लिये तंत्र या तंत्र के लिये गण हो वरन गण और तंत्र आपसी तालमेल से देश हित को सर्वोपरि मान कर देश की पताका पूरी दुनिया में शान के साथ फहरायें, यही गणतंत्र दिवस पर हमारी हार्दिक शुभकामनायें हैं।