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Monday, February 25, 2013


इस बार भी कफ्र्यू में नहीं आये हरवंश सिंह
सिवनी। इसी महीने नगर ने सांप्रदायिक सदभाव बिगड़ जाने के कारण नागरिकों ने एक सप्ताह तक कफ्र्यू का दंश भोगा लेकिन विस उपाध्यक्ष एवं जिले के इकलौते इंका विधायक हरवंश सिंह ने इस दौरान नगर में आकर लोगों के हाल जानने की कोई जरूरत नहीं समझी।
छपारा में एक हरिजन युवक के साथ की गयी घृणित एवं अमानवीय घटना के बाद पुलिस ने अपराधियों को तत्काल ही हिरासत में लेकर जेल भेज दिया था। लेकिन इसके बाद भी भाजपा के हम सफर माने जाने वाले विश्व हिन्दू परिषद एवं बजरंग दल ने सिवनी बंद का आव्हान किया और हालात बेकाबू हो जानें के कारण शहर में कफ्र्यू लगा दिया गया था।
इस कफ्र्यू के दौरान अमन चैन और आपसी भाई चारा बनाये रखने की अपील करने के लिये जिला इंका अध्यक्ष हीरा आसवानी के निवास स्थान पर एक बैठक रखी गयी थी। इस बैठक के दौरान ही शहर में कफ्र्यू लगाने के आदेश जारी कर दिये गये जिसकी जानकारी के आभाव में बैठक समाप्त होने के बाद लोग अपने अपने घरों के लिये रवाना हो गये। इसी बीच रास्ते में बस स्टेन्ड पर जिला इंका प्रवक्ता जे.पी.एस.तिवारी पुलिस की लाठियों के शिकार होकर लहू लुहान हो  गये। लेकिन इसकी निंदा तक किसी इंका पदाधिकारी ने करना जरूरी नहीं समझा और ना ही दोषियों के खिलाफ कार्यवाही करने की मांग ही की गयी।    
उल्लेखनीय है कि  6 दिसम्बर 1992 में भी जब अयोध्या मसले को लेकर शहर में 19 दिन का कफ्र्यू लगाया गया था तब भी कफ्र्यू की पूरी अवधि में हरवंश सिंह सिवनी नहीं आये थे। यहां यह भी विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि हरवंश सिंह 1990 में सिवनी विधान सभा से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़े थे और भाजपा के स्व. महेश शुक्ला से चुनाव हार गये थे। इसलिये उस समय तमाम लोगों को उनसे यह अपेक्षा थी कि वे भाजपा के राज में लोगों को मिले जख्मों पर मरहम लगाने  एवं उनका दुख दर्द बांटने उनके बीच में आये।
यह भी एक महज संयोग ही है या कुछ और कि 1992 और 2013 में जब दोनों बार कफ्र्यू लगा तो प्रदेश में भाजपा की सरकार है और दोनों ही बार, 92 में प्रदेश कांग्रेस के महामंत्री और अभी विधानसभा उपाध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण पद पर रहते हुये भी, हरवंश सिंह ने नगर में आना जरूरी नहीं समझा।
दर्पण झूठ ना बोले
26 फरवरी 2013 से साभार



इस बार भी कफ्र्यू में नहीं आये हरवंश सिंह
सिवनी। इसी महीने नगर ने सांप्रदायिक सदभाव बिगड़ जाने के कारण नागरिकों ने एक सप्ताह तक कफ्र्यू का दंश भोगा लेकिन विस उपाध्यक्ष एवं जिले के इकलौते इंका विधायक हरवंश सिंह ने इस दौरान नगर में आकर लोगों के हाल जानने की कोई जरूरत नहीं समझी।
छपारा में एक हरिजन युवक के साथ की गयी घृणित एवं अमानवीय घटना के बाद पुलिस ने अपराधियों को तत्काल ही हिरासत में लेकर जेल भेज दिया था। लेकिन इसके बाद भी भाजपा के हम सफर माने जाने वाले विश्व हिन्दू परिषद एवं बजरंग दल ने सिवनी बंद का आव्हान किया और हालात बेकाबू हो जानें के कारण शहर में कफ्र्यू लगा दिया गया था।
इस कफ्र्यू के दौरान अमन चैन और आपसी भाई चारा बनाये रखने की अपील करने के लिये जिला इंका अध्यक्ष हीरा आसवानी के निवास स्थान पर एक बैठक रखी गयी थी। इस बैठक के दौरान ही शहर में कफ्र्यू लगाने के आदेश जारी कर दिये गये जिसकी जानकारी के आभाव में बैठक समाप्त होने के बाद लोग अपने अपने घरों के लिये रवाना हो गये। इसी बीच रास्ते में बस स्टेन्ड पर जिला इंका प्रवक्ता जे.पी.एस.तिवारी पुलिस की लाठियों के शिकार होकर लहू लुहान हो  गये। लेकिन इसकी निंदा तक किसी इंका पदाधिकारी ने करना जरूरी नहीं समझा और ना ही दोषियों के खिलाफ कार्यवाही करने की मांग ही की गयी।    
उल्लेखनीय है कि  6 दिसम्बर 1992 में भी जब अयोध्या मसले को लेकर शहर में 19 दिन का कफ्र्यू लगाया गया था तब भी कफ्र्यू की पूरी अवधि में हरवंश सिंह सिवनी नहीं आये थे। यहां यह भी विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि हरवंश सिंह 1990 में सिवनी विधान सभा से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़े थे और भाजपा के स्व. महेश शुक्ला से चुनाव हार गये थे। इसलिये उस समय तमाम लोगों को उनसे यह अपेक्षा थी कि वे भाजपा के राज में लोगों को मिले जख्मों पर मरहम लगाने  एवं उनका दुख दर्द बांटने उनके बीच में आये।
यह भी एक महज संयोग ही है या कुछ और कि 1992 और 2013 में जब दोनों बार कफ्र्यू लगा तो प्रदेश में भाजपा की सरकार है और दोनों ही बार, 92 में प्रदेश कांग्रेस के महामंत्री और अभी विधानसभा उपाध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण पद पर रहते हुये भी, हरवंश सिंह ने नगर में आना जरूरी नहीं समझा।
दर्पण झूठ ना बोले
26 फरवरी 2013 से साभार




थोथा चना बाजे घना ही साबित हुयी शिवराज की मेडिकल काॅलेज की घोषणा
भाजपा के जनप्रतिनिधियों की चुप्पी बनी चर्चा का विषय
सिवनी। प्रदेश भर में घोषणावीर मुख्यमंत्री की छवि बनाने वाले शिवराज सिंह चैहान की जिले में मेडिकल कालेज बनाने की घोषणा भी खोखली साबित हो रही हैं। तत्कालीन कलेक्टर ने तत्काल ही इसके लिये एक समिति का गठन भी कर दिया था लेकिन वो सिर्फ अखबारों तक ही सीमित होकर रह गयी। भाजपा सरकार के इन नौ सालों में जिले को कुछ भी नहीं मिला और सभी जनप्रतिनिधि भी मौन साधकर ही बैठे रहे।
जिले में जब शिवराज सिंह चैहान ने 21 अक्टूबर 2009 को स्थानीय मिशन स्कूल ग्रांउड़ में प्रायवेट सेक्टर में मेडिकल काॅलेज खोलने की घोषणा की थी तो लोगों  के साथ ही मंचासीन जनप्रतिनिधियों ने भी भारी तालियां बजाकर इसका स्वागत किया था। विकास की राह देखते जिले के नागरिकों को यह उम्मीद बंध गयी थी कि चलो एक बड़ी सौगात तो जिले को मिल ही जायेगी। 
मुख्यमंत्री की घोषणा के तत्काल बाद ही तत्कालीन जिला कलेक्टर मनोहर दुबे ने इसके लिये ण्क शासकीय समिति भी गठित कर दी थी। इसके समाचार भी प्रमुखता से अखबारों में प्रकाशित हुये थें। लेकिन अभी तक इस संबंध में कोई भी ठोस कार्यवाही नहीं हो पायी हैं।
सिवनी जिला मुख्यलय में मेडिकल कालेज के लिये आवश्यक 300 बिस्तर वाला शासकीय इंदिरा गांधी चिकित्सालय भी हैं। बीच में यह भी समाचार प्रकाशित हुआ था किे कटनी के पूर्व भाजपा विधायक सुकीर्ति जैन ने सिवनी में मेडिकल कोलज के लिये एम.ओ.यू. साइन कर दिया हैं। लेकिन प्राप्त जानकारी के अनुसार अब वे भी इसमें रुचि नहीं ले रहें तभी आज तक वे सिवनी आये भी नहीं हैं। 
जिले में बालाघाट सिवनी के सांसद के.डी.देशमुख, सिवनी,बरघाट एवं लखनादौन के विधायक नीता पटेरिया, कमल मर्सकोले और शशि ठाकुर एवं नगर पालिका के अध्यक्ष राजेश त्रिवेदी भी भाजपा के ही हैं। इसके बाद भी वे अपनी ही सरकार के मुख्यमंत्री से उनकी घोषणा पूरी नहीं करा पा रहें हैं। भाजपा के ही जनप्रतिनिधियों का इस बारे में मौन रहना समझ से परे हैं।
कुल मिलाकर घोषणा के तीन साल बीत जाने के बाद भी शिवराज सिंह चैहान की मेडिकल कोलेज की घोषणा थोथा चना बाजे घना ही साबित हो रही हैं।   

दर्पण झूठ ना बोले
26 फरवरी 2013 से साभार




क्र्फयू के लिये जितनी प्रशासनिक खामियां जवाबदार है उतनी ही जनप्रतिनिधियों की उदासीनता और भाजपा की गुटबाजी भी जवाबदार है
 छपारा की एक घटना को लेकर बिगड़े सांप्रदायिक तनाव के कारण सिवनी शहर के आम लोगों ने कफ्र्यू का दंश झेला। कफ्र्यू हटने के बाद झन झन कर आ रही खबरों को यदि सही माना जाये तो आम आदमी को यह भुगतमान भाजपा की स्थानीय गुटबंदी के कारण भोगना पड़ा हैं। नगर में लगे क्र्फयू के लिये जितनी प्रशासनिक  खामियां जिम्मेदार हैं उतनी ही जनप्रतिनिधियों की उदासीनता भी जवाबदार हैं। जिले में हुये मंड़ी चुनावों में कांग्रेस का परचम फहरने के समाचार सुर्खियों में रहे। मंडि़यों में अध्यक्ष उपाघ्यक्ष चुने जाने के बाद कांग्रेस के बड़े बड़े धुरंधर नेताओं के फोटो के साथ अखबारों में विज्ञापन भी प्रकाशित हुये कि इनके कारण कांग्रेस ने जीत का परचम फहराया। लेकिन चुनाव के बाद जो खबरें सियासी हल्कों में चर्चित हैं वे चैंका देने वाली है। बीते दिनों हुयी भीषण ओला वृष्टि ने किसानों की कमर तोड़ कर रख दी हैं। इसमें सिवनी विकास खंड़ के गांव ज्यादा प्रभावित हुये हैं। कई बुजुर्गों का तो यह भी कहना हैं कि उन्होंने इतने बड़े ओले कभी देखे नहीं हैं। जैसे ही यह खबर मिली कि ओले से किसानों का भारी नुकसान हुआ है तो तत्काल ही राजनैतिक दलों के नेताओं और जनप्रतिनिधियों ने तत्काल ही प्रभावित क्षेत्रों का दौरा कर सरकार से राहत देने की मांग की है। 
क्या भाजपायी गुटबंदी के कारण क्र्फयू का दंश भोगा शहर ने?-छपारा की एक घटना को लेकर बिगड़े सांप्रदायिक तनाव के कारण सिवनी शहर के आम लोगों ने कफ्र्यू का दंश झेला। लगभग एक सप्ताह तक लोग मानो अपने अपने घरों में नजर बंद से हो गये थे। कफ्र्यू हटने के बाद झन झन कर आ रही खबरों को यदि सही माना जाये तो आम आदमी को यह भुगतमान भाजपा की स्थानीय गुटबंदी के कारण भोगना पड़ा हैं। राजनैतिक एवं प्रशासनिक क्षेत्रों में व्याप्त चर्चा के अनुसार भाजपा के ही एक गुट ने प्रशासन को यह आश्वासन दे दिया था कि छपारा की घटना के विरोध में विहिप और बजरंग दल का बंद का आव्हान शांति पूर्वक निपट जायेगा इसलिये इस बंद को हो जाने दें। इसे देखते हुये भाजपा के ही एक अन्य गुट ने बंद को सफल बनाने एवं तनाव पैदा करने में अपनी भूमिका खुले आम निभायी। जबकि वास्तविकता यह थी कि जिस हरिजन युवक के साथ दो मुस्लिम युवकों ने घृणित एवं अमानवीय घटना की थी उसे तत्काल ही पुलिस ने हिरासत में लेकर  समुचित धारायें लगाकर उन्हे ना सिर्फ कोर्ट में पेश कर दिया था वरन रिमांड़ पर जेल भी भेज दिया था। ऐसे हालात में होना यह चाहिये था कि जिले के सभी भाजपा नेताओं को एक जुट होकर प्रदेश की भाजपा सरकार का बचाव करना चाहिये था और बंद का आव्हान करने वाले अपने ही अनुशांगिक संगठनों के लोगों  को यह समझाना था कि आखिर विरोध करके आप लोग मांग क्या करोगे जबकि सभी आरोपी जेल में बंद हैं। इस सबकी जवाबदारी यदि देखा जाये तो सिवनी की भाजपा  विधायक नीता पटेरिया और जिला भाजपा अध्यक्ष नरेश दिवाकर की ही प्रमुख रूप से बनती हैं। ऐसा क्यों नहीं हो पाया? इसे लेंकर राजनैतिक हल्कों में कई तरह की चर्चाये चल रहीं हैं। यह खुलासा होना भी महत्वपूर्ण है कि आखिर 7 फरवरी को मस्जिद और मंदिर में जो घटनायें हुयी उनके आरोपी कौन थे? हालाकि इसका खुलासा आज तक नहीं हो पाया हैं। लेकिन इसे लेकर तरह तरह की चर्चायें स्थान और परिस्थितियों को लेकर जारी हैं। इसी साल नवम्बर में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर भी सियासी चर्चायें हो रहीं हैं। राजनैतिक कारणों से यदि सांप्रदायिक सदभाव बिगाड़ने के प्रयास किये जाते तो इसकी निंदा होना स्वभाविक ही हैं। नगर में लगे क्र्फयू के लिये जितनी प्रशासनिक खामियां जिम्मेदार हैं उतनी ही जनप्रतिनिधियों की उदासीनता भी जवाबदार हैं। जो हो गया सो हो गया लेकिन अब जरूरत इस बात की है कि भविष्य में ऐसा कुछ ना हो जिससे जिले का अमन चैन दांव पर लगें और निर्दोष आम लोगों को इसका खामियाजा भुगतना पड़े इसके लिये सभी जनप्रतिनिधियों और प्रशासनिक अमले को कारगर प्रयास करना चाहिये। 
क्या जिले में कहीं कांग्रेस बची है?-जिले में हुये मंड़ी चुनावों में कांग्रेस का परचम फहरने के समाचार सुर्खियों में रहे। जिले की छः में से 5 मंडि़यों में कांग्रेस का कब्जा हुआ हैं। मंडि़यों में अध्यक्ष उपाघ्यक्ष चुने जाने के बाद कांग्रेस के बड़े बड़े धुरंधर नेताओं के फोटो के साथ अखबारों में विज्ञापन भी प्रकाशित हुये कि इनके कारण कांग्रेस ने जीत का परचम फहराया। लेकिन चुनाव के बाद जो खबरें सियासी हल्कों में चर्चित हैं वे चैंका देने वाली है। जिन मंडि़यों में कांग्रेस समर्थित उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की थी उन मंडि़यों में खुले आम सौदेबाजी हुयी। सौदागर भी इतने माहिर थे कि एक ही माल के कई खरीददार एक साथ तैयार कर रखे थे और वो भी ऐसे ही नहीं वरन पूरी कीमत एडवांस के रूप में जमा करवा कर। लेकिन इसमें भी इतना फर्क जरूर था कि कांग्रेस और भाजपा के लिये कीमत अलग अलग थी। अब यदि मंड़ी के चुनाव में मंड़ी के सदस्यों की भी यदि बोली लग जाये तो कौन सी बड़ी बात है? कहा जाता है कि मोहब्बत और जंग में सब कुछ जायज है और जो जीता वही सिकन्दर माना जाता हैं। राजनीति में मोहब्बत तो अब कहीं दिखती नहीं नहीं हैं। रही बात जंग की तो उसमें तो तरकश के सारे तीरों को आजमाने को गलत नहीं कहा जा सकता। जिले की सर्वाधिक महत्वपूर्ण मंड़ी में भी कांग्रेस ने लगातार तीसरी बार अपना कब्जा बरकरार रखा हैं। पिछले दो चुनावों में किसान सीधे अध्यक्ष चुनते थे लेकिन इस बार अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष का चुनाव सदस्यों के माध्यम से हुआ था। इस महत्वपूर्ण मंड़ी में कांग्रेस के रणनीतकारों के रूप में राहुल गांधी के करीबी युवक कांग्रेस के राष्ट्रीय समन्वयक राजा बघेल और जिला पंचायत के अध्यक्ष मोहन चंदेल उभर कर सामने आये थे। कांग्रेस की इस उपलब्धि के लिये वे बधायी के पात्र हैं। लेकिन इन चुनावों में एक सवाल जरूर उभर कर सामने आया है कि जिले में आखिर कांग्रेस रह कहां गयी है? जहां कांग्रेस समर्थित सदस्यों के बहुमत के बाद भी धन बल के आधार पर चुनाव जीता जाये। शायद यही कारण है कि लोकसभा और विधानसभा के चुनावों में कांग्रेस को उन क्षेत्रों में हार का सामना करना पड़ता है जिन क्षेत्रों में धनबल या बाहुबल के आधार के अधार पर इतने बड़े पैमाने पर यह सब कुछ मेनेज नहीं किया जा सकता है। 
किसानों के लिये संवेदना या ओला महोत्सव?-बीते दिनों हुयी भीषण ओला वृष्टि ने किसानों की कमर तोड़ कर रख दी हैं। इसमें सिवनी विकास खंड़ के गांव ज्यादा प्रभावित हुये हैं। कई बुजुर्गों का तो यह भी कहना हैं कि उन्होंने इतने बड़े ओले कभी देखे नहीं हैं। जैसे ही यह खबर मिली कि ओले से किसानों का भारी नुकसान हुआ है तो तत्काल ही राजनैतिक दलों के नेताओं और जनप्रतिनिधियों ने तत्काल ही प्रभावित क्षेत्रों का दौरा कर सरकार से राहत देने की मांग की है। यह स्वभाविक भी है कि जब जनता मुसीबत में हो तो राजनैतिक नेताओं को उनकी मदद में आगे आना चाहिये। इसमें भाजपा और कांग्रेस के नेता भी शामिल है जिन्होंने प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया। लेकिन इस सबकी चर्चाये होना जब शुरू हुयी तब नेताओं के फोटों साथ अखबारों में समाचार प्रकाशित होना चालू हुये कि फलां नेता फंला गांव पहुचा और किसानों के प्रति संवेदना व्यक्त की। ऐसा लगता था कि मानेा नेता लोग फोटोग्राफर से लैस होकर ही दौरे पर गयें हों। प्रशासनिक स्तर पर फसलों सहित किसानों की हुयी क्षति का आंकलन ठीक ढंग से हो और उन्हें अधिकतम राहत मिल सके इसके लिये संयुक्त प्रयास होने चाहिये। अक्सर यह शिकायत रह जाती हैं वास्तविक पीडि़त किसान तो रह जाते है और जुगाड़ लगाने वाले कामयाब हो जाते हैं। जयरत इस बात की भी है कि आर.बी.सी. में ऐसे बहुत से संशोधन कराना जरूरी है जिनसे किसानों को वास्तव में राहत मिल सके। वर्तमान में सिंचित भूमि में 5 हजार और असिंचित में 32 सौ 50 रु. प्रति हेक्टेयर अधिकतम देने का प्रावधान हैं। जबकि वास्तविकता यह है कि यदि सरकार के ही बीज निगम से बीज लेकर किसान  बोनी करता है तो आधे का तो बीज ही हो जाता है और खाद,डीजल और बिजली तथा लेबर चार्ज अतिरिक्त लगता हैं। इस लिये नियम में ऐसा संशोधन होना चाहिये कि किसान को कम से कम लागत की राशि तो राहत के रूप में मिल सके। यदि नेता किसानों को अधिकतम मुआवजा नहीं दिला पाये और संशोधन की दिशा में कारगर कदम नहीं उठा पाये तो उनके द्वारा व्यक्त की गयी संवेदनाये बेकार रहेंगी और ऐसा लगेगा मानों वे ओला महोत्सव में भाग लेने गयें हों और अखबारों में अपने समाचार और फोटो छपवाकर अपने कत्र्तव्यों की इतिश्री कर ली हो। “मुसाफिर”       

दर्पण झूठ ना बोले
26 फरवरी 2013 से साभार


Tuesday, February 12, 2013


ऐसा कुछ करें कि फिर लहराये गंगा जमुनी तहजीब की पताका
धीरे धीरे अब शहर का माहौल सुधरते जा रहा हैं। फिजां में अमन चैन एक बार फिर से दिखने लगा हैं। उम्मीद की जा रही हैं कि जल्दी ही लोगों को कर्फ्यू से निजात मिल जायेगी। 
बीते दिनों ग्राम छपारा में एक अर्ध विक्षिप्त अनुसूचित जाति के युवक के साथ घटित घृणित घटना प्रकाश में आयी थी। पुलिस में रिपोर्ट दर्ज होने के बाद तत्काल ही समुचित धाराओं के तहत आरोपियों को गिरफ्तार करके कोर्ट में पेश कर दिया गया था। कोर्ट ने 15 दिन के रिमांड़ पर उन्हें जेल भी भेज दिया था।
छपारा में एक अनुसूचित जाति के युवक के साथ जो कुछ घटा उसकी जितनी भी निंदा की जाये वह कम हैं। समाज के पिछड़े तबके के एक युवक के साथ ऐसा होना हमें किसी बर्बर युग की याद दिला देता हैं। 
इस घटना को लेकर विश्व हिन्दू परिषद और बजरंग दल ने 6 फरवरी को छपारा और सिवनी में बंद का आव्हान कर दिया। किसी भी घटना के विरोध में जब कोई आंदोलन किया जाता हैं तो यहीं मांग ज्ञापन में की जाती है कि दोषियों तो तत्काल गिरफ्तार करो और उनके विरुद्ध सख्त कार्यवाही करो।
सामान्य तौर पर यह धारणा है कि विहिप और बजरंग दल प्रदेश में सत्तारूढ़ दल भाजपा के हमसफर ही हैं। फिर एक ऐसी घटना , जिसमें दोषियों के खिलाफ कार्यवाही हो चुकी थी, के खिलाफ बंद का आयोजन करने वालों को सत्ता दल के स्थानीय नेता,जन प्रतिनिधि या प्रशासनिक प्रमुख यह बात क्यों नहीं समझा पाये कि इस बंद का अब कोई औचित्य नहीं हैं? 
दिनांक 5 फरवरी की रात को इस बंद की घोषणा कर दी गयी थी। उसके बाद 6 फरवरी को शहर में जो कुछ हुआ उसने कई सवाल पैदा कर दिये हैं। प्रतिबंधात्मक कार्यवाही के रूप में दोनों ही पक्षों के निगरानी शुदा लोगों को हिरासत में क्यों नहीं लिया गया? मामले की संवेदनशीलता को देखते हुये 5 फरवरी की रात को ही अतिरिक्त पुलिस बल क्यों नहीं बुलाया गया? दिनांक 6 फरवरी को सुबह से ही प्रतिबंधात्क धारा 144 क्यों नहीं लगायी गयी? दोपहर लगभग 3 बजेे धारा 144 लगने के बाद भी दोनों ही पक्षों के बड़े बड़े समूह क्यों एकत्रित होने दिये गये? सापं्रदायिक सदभाव से जुड़े इस मामले में धार्मिक स्थलों की सुरक्षा व्यवस्था क्यों नहीं सुनिश्चित की गयी? जिसके कारण ही 7 फरवरी की रात तक हालात ऐसे बिगड़ गये कि शहर में कर्फ्यू लगाना पड़ा। सामाजिक और घार्मिक क्षेत्रों में काम करने वाले संगठनों ने अमन चैन लाने के प्रयास क्यों नहीं किये? या प्रशासन द्वारा उनकी सेवायें लेने में परहेज किया गया?
शहर में कर्फ्यू भी लगा तो ऐसा कि ना तो 8 फरवरी को लोगों को अखबार पढ़ने को मिले और ना ही पानी तथा दूध आदि अति आवश्यक चीजें ही लोगों को मिल पायीं। प्रेस को भी मात्र दो घंटे के लिये ही पास जारी किये गये। जिससे अखबार छपने और बंटने के काम में भी व्यवधान पैदा हो गया। जिले का नेतृत्व और हमारे सभी राजनैतिक दलों के जनप्रतिनिधि भी इस सारे मामले में ना जाने क्यों मूक दर्शक ही बने रहे। 
कभी हमारा जिला समूचे प्रदेश में गंगा जमुनी तहजीब के लिये मशहूर था। सन साठ के दशक में जब जबलपुर में ऊषा भार्गव कांड़ हुआ था और प्रदेश के कई जिले सांप्रदायिक आग की लपेट में आ गये थे तक हमारा सिवनी जिला शांति के टापू के रूप में पूरे प्रदेश में चिन्हित हुआ था। फिर ना जाने अगले दस सालों में क्या हो गया कि हर 21 सालों में सिवनी ऐसे कर्फ्यू की चपेट में आ जाता है जैसे कि हर 14 साल में कुंभ का मेला भरता हो। सबसे पहला सांप्रदायिक दंगा 22 नवम्बर 1971 को हुआ था जब शहर में पहली बार कर्फ्यू लगा था। इसके बाद 6 दिसम्बर 1992 को अयोध्या में ढहाये गये विवादित ढांचे के कारण शहर जो कर्फ्यू की चपेट में आया तो उसका दंश लोगों को 19 दिनों तक भोगना पड़ा था। इसके 21 साल बाद ही फिर 7 फरवरी 2013 को छपारा की एक अमानवीय घटना के कारण शहर में कर्फ्यू लगा जो अभी भी रात में लागू हैं। आज अब आवश्यक्ता इस बात की है कि सभी राजनैतिक दल,प्रशानिक अधिकारी,जनप्रतिनिधि,सामाजिक और धार्मिक क्षेत्र का नेतृत्व वाले और अमन चैन पसंद सभी नागरिक मिल जुल कर ऐसा कुछ करें कि भविष्य में ऐसा बदनुमा दाग हमारे माथे पर कभी ना लगे और एक बार फिर हमारे जिले की गंगा जमुनी संस्कृति की पताका पूरे प्रदेश में फहर सके।

Monday, February 4, 2013


शिवराज की प्रशासनिक पकड़ ना होने से भ्रष्टाचार का चरम पर पहुंचना भाजपा को पड़ सकता है भारी?
भाजपा नेता लोगों को टका सा जवाब 
देते हैं कि अधिकारी सुनते ही नहीं
सिवनी । प्रदेश में भाजपा की सरकार बने 9 साल पूरे हो गये हैं। लेकिन सरकार की प्रशासनिक अमले पर पकड़ ना बन पाने के कारण आम जनता तो दूर भाजपायी तक त्रस्त हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की यह कमी भाजपा को भारी पड़ सकती हैं। 
प्रदेश में स्थापित 10 साल की कांग्रेस की दिग्गी सरकार को भाजपा की तेज तर्रार साध्वी उमा भारती ने उखाड़ फेंका था। उस वक्त भाजपा का यह नारा खूब लोकप्रिय हुआ था कि “सरकार तुम बदलो, व्यवस्था हम बदलेंगें“। प्रदेश के मतदाताओं ने सरकार तो बदल दी लेकिन भाजपा व्यवस्था अभी तक नहीं बदल पायी हैं।
प्रदेश की मुख्यमंत्री की कुर्सी पर उमा भारती तो कुछ समय ही बैठ पायीं। हुबली कांड़ के कारण उन्हें स्तीफा देना पड़ और उनकी जगह बाबूलाल गौर मुख्यमंत्री बने। लेकिन कुछ ही समय बाद उन्हें भी गद्दी छोड़नी पड़ी और शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बने और लगभग सात साल वे मुख्यमंत्री हैं। 
इस दौरान शिवराज द्वारा बनायी गयी लोक लुभावन योजनाओं के कारण उन्हें लोकप्रियता भले ही हासिल हो गयी हो लेकिन प्रशासनिक अमले पर अपनी पकड़ ना बना पाने के कारण आम आदमी त्रस्त हैं। 
आम आदमी त्रस्त होकर जब भाजपा के जनप्रतिनिधियों या नेताओं के पास निराकरण के लिये जाता हैं तो उन्हें एक टका सा जवाब मिल जाता हैं कि क्या करें अधिकारी कुछ सुन ही नहीं रहें हैं। प्रशासनिक अमले की इस निरंकुशता के चलते स्थानीय स्तर पर सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं का कोई नियंत्रण ही नहीं रह गया हैं। कहा तो यहां तक जा रहा है कि प्रदेश स्तर पर भाजपा नेताओं द्वारा की गयी शिकायतें भी कारगर साबित नहीं हो पा रहीं हैं। बताया जाता है कि जिले के शीर्ष अधिकरियों के तार सीधे भोपाल से जुड़े होने के कारण वे किसी की परवाह ही नहीं करते हैं।
प्रदेश सरकार की प्रशासन पर पकड़ ना होने से आम आदमी के साथ साथ भाजपा के नेता और कार्यकर्त्ता भी त्रस्त हैं। इससे ना केवल भ्रष्टाचार चरम पर पहुंच गया है वरन लोक लुभावन योजनाओं का लाभ लेने के लियें भी लोगों को चढ़ोत्री चढ़ाना उनकी मजबूरी बन गयी हैं।
भाजपा के शासन काल के दौरान ही प्रदेश में अधिकारियो के यहां डाले गये लोकायुक्त या आयकर अधिकारियों के छापों में उनके यहां करोड़ों रुपयों की आय से अधिक संपत्ति पायी है। और तो और परिवहन विभाग के बाबू और नगर निगम के चपरासी तक केरोड़ों में खेलते पकड़े गये हैं। यह प्रदेश में निरंकुश भ्रष्टाचार के आरोपों की पुष्टि ही करती हैं।
इतना ही नहीं वरन प्रदेश के एक दर्जन से अधिक मंत्री लोकायुक्त की जांच के घेरे में हैं। बताया जाता है कि राजनैतिक दवाब के चलते अभी तक ये मामले अभी भी लंबित पड़े पड़े हैं। कई दर्जन अधिकारियों के खिलाफ लोकायुक्त की जांच पूरी हो हो गयी हैं और वे दोषी भी पाये गये हैं लेकिन प्रदेश सरकार की लोकायुक्त को अनुमति ना मिलने कारण मामले कोर्ट तक नहीं पहुंच पाये हैं। 
प्रदेश सरकार और उसके मुखिया शिवराज सिंह चौहान की यह कमजोरी आने वाले समय में भाजपा को भारी भी पड़ सकती हैं।    

शिवराज की प्रशासनिक पकड़ ना होने से भ्रष्टाचार का चरम पर पहुंचना भाजपा को पड़ सकता है भारी?
भाजपा नेता लोगों को टका सा जवाब 
देते हैं कि अधिकारी सुनते ही नहीं
सिवनी । प्रदेश में भाजपा की सरकार बने 9 साल पूरे हो गये हैं। लेकिन सरकार की प्रशासनिक अमले पर पकड़ ना बन पाने के कारण आम जनता तो दूर भाजपायी तक त्रस्त हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की यह कमी भाजपा को भारी पड़ सकती हैं। 
प्रदेश में स्थापित 10 साल की कांग्रेस की दिग्गी सरकार को भाजपा की तेज तर्रार साध्वी उमा भारती ने उखाड़ फेंका था। उस वक्त भाजपा का यह नारा खूब लोकप्रिय हुआ था कि “सरकार तुम बदलो, व्यवस्था हम बदलेंगें“। प्रदेश के मतदाताओं ने सरकार तो बदल दी लेकिन भाजपा व्यवस्था अभी तक नहीं बदल पायी हैं।
प्रदेश की मुख्यमंत्री की कुर्सी पर उमा भारती तो कुछ समय ही बैठ पायीं। हुबली कांड़ के कारण उन्हें स्तीफा देना पड़ और उनकी जगह बाबूलाल गौर मुख्यमंत्री बने। लेकिन कुछ ही समय बाद उन्हें भी गद्दी छोड़नी पड़ी और शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बने और लगभग सात साल वे मुख्यमंत्री हैं। 
इस दौरान शिवराज द्वारा बनायी गयी लोक लुभावन योजनाओं के कारण उन्हें लोकप्रियता भले ही हासिल हो गयी हो लेकिन प्रशासनिक अमले पर अपनी पकड़ ना बना पाने के कारण आम आदमी त्रस्त हैं। 
आम आदमी त्रस्त होकर जब भाजपा के जनप्रतिनिधियों या नेताओं के पास निराकरण के लिये जाता हैं तो उन्हें एक टका सा जवाब मिल जाता हैं कि क्या करें अधिकारी कुछ सुन ही नहीं रहें हैं। प्रशासनिक अमले की इस निरंकुशता के चलते स्थानीय स्तर पर सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं का कोई नियंत्रण ही नहीं रह गया हैं। कहा तो यहां तक जा रहा है कि प्रदेश स्तर पर भाजपा नेताओं द्वारा की गयी शिकायतें भी कारगर साबित नहीं हो पा रहीं हैं। बताया जाता है कि जिले के शीर्ष अधिकरियों के तार सीधे भोपाल से जुड़े होने के कारण वे किसी की परवाह ही नहीं करते हैं।
प्रदेश सरकार की प्रशासन पर पकड़ ना होने से आम आदमी के साथ साथ भाजपा के नेता और कार्यकर्त्ता भी त्रस्त हैं। इससे ना केवल भ्रष्टाचार चरम पर पहुंच गया है वरन लोक लुभावन योजनाओं का लाभ लेने के लियें भी लोगों को चढ़ोत्री चढ़ाना उनकी मजबूरी बन गयी हैं।
भाजपा के शासन काल के दौरान ही प्रदेश में अधिकारियो के यहां डाले गये लोकायुक्त या आयकर अधिकारियों के छापों में उनके यहां करोड़ों रुपयों की आय से अधिक संपत्ति पायी है। और तो और परिवहन विभाग के बाबू और नगर निगम के चपरासी तक केरोड़ों में खेलते पकड़े गये हैं। यह प्रदेश में निरंकुश भ्रष्टाचार के आरोपों की पुष्टि ही करती हैं।
इतना ही नहीं वरन प्रदेश के एक दर्जन से अधिक मंत्री लोकायुक्त की जांच के घेरे में हैं। बताया जाता है कि राजनैतिक दवाब के चलते अभी तक ये मामले अभी भी लंबित पड़े पड़े हैं। कई दर्जन अधिकारियों के खिलाफ लोकायुक्त की जांच पूरी हो हो गयी हैं और वे दोषी भी पाये गये हैं लेकिन प्रदेश सरकार की लोकायुक्त को अनुमति ना मिलने कारण मामले कोर्ट तक नहीं पहुंच पाये हैं। 
प्रदेश सरकार और उसके मुखिया शिवराज सिंह चौहान की यह कमजोरी आने वाले समय में भाजपा को भारी भी पड़ सकती हैं।    

कांग्रेसियों द्वारा कांग्रेसियों को हरा कर कांग्रेस को ही निपटा देने संबंधी हरवंश सिंह के बयान की जिले के राजनैतिक हल्कों में चर्चा
साल का वह एक दिन 30 जनवरी का होता था जब समूचा शहर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को अपने श्रृद्धांजली अर्पित कर उन्हें नमन करता था। लेकिन अब 30 जनवरी को ना तो डिस्लरी का भैंपू सुनायी देता है और ना ही डालडा फेक्टरी का सायरन क्योंकि ये दोनों ही फेक्टरियां अब बंद हो चुकीं हैं। यह सच्चायी हमें यह सोचने को मजबूर कर देंती हैं कि हम अपने जिले के विकास के लिये कुछ नया लाना तो दूर पुराना भी सहेज कर नहीं रख पायें हैं। हम मतदाताओं का काम तो जनप्रतिनिधियों को चुनने का रहता हैं। हमारी समस्याओं को प्रदेश और केन्द्र सरकार तक पहुंचाना और उनका निराकरण कराना हमारे जनप्रतिनिधियों का काम होता हैं। जिले में कांग्रेस और भाजपा में कोई और समानता हो या ना हो लेकिन एक समानता जरूर दिखायी दे रही हैं कि दोनों ही पार्टियों में जब भी कोई समिति गठित होती है तो वह जम्बो जेट ही होती हैं। अब देखना यह है कि कांग्रेस और भाजपा में किसकी जम्बो जेट फौज चुनाव की जंग जीतती हैं। हरवंश सिंह ने कहा है कि कांग्रेसियों द्वारा कांग्रेसियों को निपटाने के कारण आज कांग्रेस ही निपट गयी है। कहा जा रहा है कि उनके इस बयान की पुष्टि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया ने भी यह कह कर दी हैं कि हरवंश सिंह ने क्या गलत कहा है। 
नया लाना तो दूर पुराना भी सहेजकर नहीं रख पाये हम-आज से कई बरस पहले साल में एक दिन सुबह 11 बजने के एक मिनिट पहले,11बजे और 11 बजकर दो मिनिट पर शहर की डिस्लरी का भौंपू सुनायी देता था। फिर इसमें डालडा फेक्टरी का सायरन भी शामिल हो गया था। साल का वह एक दिन 30 जनवरी का होता था जब समूचा शहर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को अपने श्रृद्धांजली अर्पित कर उन्हें नमन करता था। लेकिन अब 30 जनवरी को ना तो डिस्लरी का भौंपू सुनायी देता है और ना ही डालडा फेक्टरी का सायरन क्योंकि ये दोनों ही फेक्टरियां अब बंद हो चुकीं हैं। यह सच्चायी हमें यह सोचने को मजबूर कर देंती हैं कि हम अपने जिले के विकास के लिये कुछ नया लाना तो दूर पुराना भी सहेज कर नहीं रख पायें हैं। जिले के औद्योगिक विकास के इस पिछड़ेपन के लिये कौन दोषी है? इस पर जरूर विवाद हो सकता हैं। इसका दोष कांग्रेस भाजपा पर और भाजपा कांग्रेस पर मढ़ सकती हैं लेकिन यह कहने में कोई संकोच नहीं होना चाहिये इसके ना सिर्फ कांग्रेस और भाजपा वरन हम सभी दोषी हैं। जिले के जनप्रतिनिधि यदि दोषी हैं तो हम सभी मतदाता भी इस बात के लिये बराबरी के दोषी हैं कि हम ऐसे नाकारा जनप्रतिनिधियों को बार बार चुनकर भेज देते हैं। जब बिना कुछ ही चुनाव जीते जा सकते हैं तो भला नेताओं को कुछ करने की जरूरत ही क्यों महसूस होगी? विकास के लिये आवश्यक बड़ी रेल लाइन आज भी विज्ञप्तियों और छोटे मोटे आंदोलनों तक ही सीमित रह गयी हैं तो उत्तर दक्षिण गलियारे के तहत बन रही फोर लेन का विवाद भी अभी तक सुलझा नहीं हैं। मामले चाहे प्रदेश सरकार के कारण लंबित हों या केन्द्र सरकार के इसके लिये क्या जिले के हमारे जनप्रतिनिधि दोषी नहीं हैं? हम मतदाताओं का काम तो जनप्रतिनिधियों को चुनने का रहता हैं। हमारी समस्याओं को प्रदेश और केन्द्र सरकार तक पहुंचाना और उनका निराकरण कराना हमारे जनप्रतिनिधियों का काम होता हैं। जबकि आज हमारे जिले का प्रतिनिधित्व तीन सांसद और चार विधायक कर रहें हैं। सन 2013 और 14 चुनावी साल हैं इसमें हमें हमारे जनप्रतिनिधियों से हिसाब लेना चाहिये नहीं तो चुनाव के समय फिर से एक बार गल्ती दोहरा कर हमें आने वाले पांच सालों तक एक बार फिर पछताने के अलावा कुछ हाथ नहीं आने वाला हैं। 
इंका और भाजपा में से किसकी जम्बो जेट फौज जीतेगी चुनावी जंग?-जिले में कांग्रेस और भाजपा में कोई और समानता हो या ना हो लेकिन एक समानता जरूर दिखायी दे रही हैं कि दोनों ही पार्टियों में जब भी कोई समिति गठित होती है तो वह जम्बो जेट ही होती हैं। इन दिनों जिले में भाजपा की मंड़ल समितियों की घोषणायें हो रही हैं। सभी समितियों में भारी भरकम मात्रा में कार्यकर्त्ताओं को पद देकर संतुष्ट किया जा रहा हैं। इसी तरह कांग्रेस में भी संगठन की मोर्चा समितियों सहित सभी में ढ़ेरों पदाधिकारी बना दिये गये थे। दोनों ही पार्टियों की यह कार्यवाही आने वाले विस और लोस चुनावों को ध्यान में रख कर की जा रही हैं। भाजपा में मंड़ल समितियों में अध्यक्ष के अलावा 6 उपाध्यक्ष,2 महामंत्री,6 मंत्री,1 कोषाध्यक्ष सहित 60 सदस्यों की समिति बन रहीं तो वहीं जिले में अध्यक्ष सहित 91 सदस्यीय कार्यकारिणी समिति बनना है जिसमें 8 उपाध्यक्ष, 3 महामंत्री,8 मंत्री एवं 1 कोषाध्यक्ष की नियुक्ति होगी। जिले में भाजपा के 24 मंड़ल हैं। इनमें  1 हजार 4 सौ 40 कार्यकर्त्ताओं को पदों से नवाजा गया हैं। जिले में 91 इस तरह कुल 1 हजार 5 सौ 31 नेताओं को पदों पर बिठाया जा रहा हैं। इसी तरह कांग्रेस में भी जिले एवं ब्लाक की भारी भरकम समितियों के अलावा सेवादल,महिला कांग्रेस,युवक कांग्रेस एवं एन.एस.यू.आई में नेताओं को पदों पर बिठाया गया हैं। समितियों में संतुलन के नाम पर अभी भी नियुक्तियों का दौर चालू ही हैं। एक बात यह भी है कि इन दिनों कांग्रेस और भाजपा दोनों को ही पार्टियों को प्रदेश और केन्द्र सरकार के खिलाफ जिले में आंदोलन करना पड़ता हैं। दोनों ही पार्टियों में आलम एक सा ही हैं। हजारों पदधिकारियों वाली भाजपा और कांग्रेस के आंदोलन के सैकड़ों लोग भी शिरकत नहीं करते हैं। और तो और अपनी अपनी पार्टी के महापुरुषों की जयंती और पुण्य तिथि के अवसर पर पार्टी कार्यालयों में आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में तो संख्या अगुलियों पर गिनने लायक ही रहती हैं। इस पर अंकुश ना तो जिला भाजपा अध्यक्ष नरेश दिवाकर लगा पा रहें हैं और ना ही इंकाध्यक्ष हीरा आसवानी। इससे क्या ऐसा प्रतीत नहीं होता हैं कि पदाधिकारियों की लंबी फौज को अपने महापुरुषों और नेताओं के प्रति कोई श्रृद्धा नहीं हैं क्योंकि पार्टियों में उन्हें पद उनके आकाओं के रहमोकरम पर मिले हैं और उनकी इस लापरवाही से उनके आका जब नाराज नहीं होते हैं तो भला उनकी राजनैतिक सेहत पर क्या असर पड़ेगा? अब देखना यह है कि कांग्रेस और भाजपा में किसकी जम्बो जेट फौज चुनाव की जंग जीतती हैं।
कांग्रेसी ही कांग्रेस की हार का कारण सबंधी हरवंश का बयान चर्चित-प्रदेश के वरिष्ठ कांग्रेस नेता एवं विस उपाध्यक्ष ठा. हरवंश सिंह का पिपरिया में दिया गया एक बयान इन दिनों अखबारों की सुर्खियों में है। अपने बयान में हरवंश सिंह ने यह कहा था कि कांग्रेसियों द्वारा कांग्रेसियों को निपटाने के कारण आज कांग्रेस ही निपट गयी है। कहा जा रहा है कि उनके इस बयान की पुष्टि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया ने भी यह कह कर दी हैं कि हरवंश सिंह ने क्या गलत कहा है। यहां यह उल्लेखनीय है कि पिछले दस सालों हरवंश सिंह जिले के इकलौते कांग्रेसी विधायक हैं। जिले से कांग्रेस की टिकिट पर चुनाव लड़कर लोकसभा,विधानसभा और नगर पालिका अध्यक्ष का चुनाव हारने वाले नेता भी उनके इस बयान को सही मानते है। फर्क सिर्फ इतना है कि हारने वाले नेताओं की अगुंलिया किसी और कांग्रेसी के बजाय उनकी ओर ही सालों से उठती रहीं हैं। इस जिले में एक विशेष बात यह और रही हैं कि बागी होकर या भीतरघात करके कांग्रेस को हराने वाले नेताओं को पुरुस्कृत भी किया जाता हैं। इस कारण अब जिले में कांग्रेस के यह हाल हो गये हैं कि स्थानीय निकायों में कांग्रेस का बहुमत होने के बाद भी अध्यक्ष या उपाध्यक्ष बनने के लिये पार्टी के लोगों को ही पैसा देना पड़ता है जब उसे वोट मिलते हैं। इसीलिये जिले में कांग्रेस तो नेस्त नाबूत हो गयी है लेकिन धनबल और बाहुबल पर राजनीति करने वाले नेता ही सिरमौर हो गये हैं। “मुसाफिर“
साप्ताहिक दर्पण झूठ ना बोले
05 फरवरी 2013 से साभार