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Monday, March 18, 2013


युवक कांग्रेस वातावरण बनाने का काम सिवनीके साथ अन्य विस क्षेत्रों में भी करे तो कांग्रेस को लाभ हो सकता है
भाजपा में भी कई मोर्चा संगठन हैं जिनमें युवा मोंर्चा और महिला मोर्चा प्रमुख हैं। बीते दिनों इन संगठनों की कमान ठा. नवनीत सिंह और पार्वती जंघेला के हाथों में थी। इन दोनों ही संगठनों की भूमिका विशेष उल्लेखनीय नहीं रही।अब देखना यह है कि नव नियुक्त भाजपा अध्यक्ष नरेश दिवाकर चुनावी साल में इन संगठनों की जवाबदारी किसे सौंपते है? कांग्रेस में चार मोर्चा संगठन,युवक कांग्रेस,महिला कांग्रेस, सेवादल और एन.एस.यू.आई. है। वर्तमान में शिव सनोड़िया,हेमलता जैन,ठा. रजनीश सिंह और प्रवेश भालोटिया इनके अध्यक्ष हैं। विपक्ष में रहते हुये यदि मोर्चा संगठन वातावरण बनाने का काम बिना ये सोचे करें कि किस विस क्षेत्र से कौन चुनाव लड़ेगा तो यह कांग्रेस के लिये लोस और विस चुनाव में लाभकारी हो सकता हैं। लेकिन आजकल कांग्रेस में यह संस्कृति बची ही नहीं हैं कि नेता के बजाय कांग्रेस की सोचे। नरेश दिवाकर ने सिवनी छिंदवाड़ा और बालाघाट जिले के कॉलेजों के लिये अलग विश्वविद्यालय खोलने की मांग की हैं। उन्होंने अपने पत्र में यह भी उल्लेख किया है कि इस विश्वविद्यालय का मुख्यालय सिवनी में ही रखा जाये। भैगोलिक,आर्थिक और प्रशासनिक दृष्टि से इसका मुख्यालय सिवनी बनना चाहिये था लेकिन जिले के भाजपा के नेता और जनप्रतिनिधि अपने ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से यह सौगात जिले को नहीं दिला पाये।
भाजपा में मोर्चा संगठन चर्चित नहीं रहे-किसी भी राजनैतिक संगठन में मोर्चा संगठनों की अपनी एक अलग ही अहमियत होती हैं। पार्टी की राजनैतिक विचारधारा के अनुसार अपनी अपनी गतिविधियां चलाकर ये मोर्चा संगठन ऐसा माहौल बनाते है जो समय समय पर पार्टी के लिये लाभदायक रहता हैं। भाजपा में भी कई मोर्चा संगठन हैं जिनमें युवा मोंर्चा और महिला मोर्चा प्रमुख हैं। बीते दिनों इन संगठनों की कमान ठा. नवनीत सिंह और पार्वती जंघेला के हाथों में थी। इन दोनों ही संगठनों की भूमिका विशेष उल्लेखनीय नहीं रही। येन केन प्रकारेण निर्देशों का पालन करने की औपचारिकता निभाते ही ये देखे गये। जहां तक पार्वती जंघेला का संबंध है उन पर पालिका अध्यक्ष रहते हुये भ्रष्टाचार का आरोप प्रमाणित हो गया था और उन पर तीन लाख रुपये की रिकवरी भी प्रदेश सरकार द्वारा निकाली गयी थी जो कि पालिका द्वारा अभी तक वसूल नहीं की गयी है।रहा सवाल युवा मोर्चे का तो ठा. नवनीत का कार्यकाल भी कोई विशेष उल्लेखनीय नहीं रहा हैं। छपारा के रहने वाले नवनीत सिंह पर भाजपायी ही स्वजातीय जिले के इकलौते इंका विधायक एवं विस उपाध्यक्ष ठा. हरवंश सिंह से सांठ गांठ के आरोप लगाते देखे गये हैं। ऐसे में भला युवा मोर्चे की आक्रमक गतिविधियों की उम्मीद कैसे की जा सकती थी? अब देखना यह है कि नव नियुक्त भाजपा अध्यक्ष नरेश दिवाकर चुनावी साल में इन संगठनों की जवाबदारी किसे सौंपते है? 
कांग्रेस में भी खस्ता हाल हैं मोर्चा संगठनों के-जहां तक कांग्रेस का सवाल है तो कांग्रेस में चार मोर्चा संगठन,युवक कांग्रेस,महिला कांग्रेस, सेवादल और एन.एस.यू.आई. है। वर्तमान में शिव सनोड़िया,हेमलता जैन,ठा. रजनीश सिंह और प्रवेश भालोटिया इनके अध्यक्ष हैं। सेवादल के अध्यक्ष ठा. रजनीश सिंह के नेतृत्व में जिले में 1998 से 2003 के कार्यकाल में बड़े बड़े सेवादल के कैम्प लगे थे जिनमें हजारों की संख्या में कार्यकर्त्ताओं ने प्रशिक्षण लिया था। उस वक्त रजनीश सिंह के पिता ठा. हरवंश सिंह प्रदेश सरकार के तीन तीन विभागों के कद्दावर मंत्री थे। लेकिन 2003 के बाद से सेवादल की गतिविधियां जिले में नहीं के बराबर हैं। वर्तमान में रजनीश सिंह जिला इंका के महामंत्री भी हैं। सुश्री हेमलता जैन पिछले लगभग 18 सालों से महिला कांग्रेस की जिला अध्यक्ष हैं। काफी लंबे अर्से से महिला कांग्रेस की उपलब्धि भी नहीं दिखायी दी हैं। युवक कांग्रेस में संगठन अब जिला और ब्लाक स्तर पर ना होकर विधानसभा और लोकसभा के आधार पर बनाया गया हैं। सिवनी विस क्षेत्र में इसकी कमान शिव सनोड़िया के हाथों में हैं। उल्लेखनीय है कि सनोड़िया भी लंबे समय तक छात्र संगठन के जिला अध्यक्ष रहें हैं और फिर युवक कांग्रेस का दायित्प संभाला हैं। पिछले कुछ महीनों से सिवनी विस क्षेत्र में वातावरण बनाने का काम युवक कांग्रेस के राष्ट्रीय समन्वयक राजा बघेल के नेतृत्व में किया जा रहा हैं। लेकिन सिवनी विस क्षेत्र के अलावा जिले के अन्य विस क्षेत्रों में युवक कांग्रेस की गतिविधियां भी शून्य ही हैं। एन.एस.यू.आई. के अध्यक्ष प्रवेश भालोटिया की कांग्रेस के कार्यक्रमों में तो उपस्थिति दिखायी देती हैं लेकिन संगठन के स्तर पर उनके खाते में भी कोई विशेष उपलब्धि नहीं हैं। विपक्ष में रहते हुये यदि मोर्चा संगठन वातावरण बनाने का काम बिना ये सोचे करें कि किस विस क्षेत्र से कौन चुनाव लड़ेगा तो यह कांग्रेस के लिये लोस और विस चुनाव में लाभकारी हो सकता हैं लेकिन आजकल कांग्रेस में यह संस्कृति बची ही नहीं हैं कि नेता के बजाय कांग्रेस की सोचे। नेता हित देखना ही चलन हो गया है क्योंकि उससे ही तो खुद का  हित भी सधता हैं। यदि चुनावी साल में भी ऐसा ही सब कुछ चलता रहा तो जिले में कांग्रेस का भगवान ही मालिक है।
अब सिवनी में यूनिवरसिटी की बात-महाकौशल विकास प्राधिकरण एवं जिला भाजपा के अध्यक्ष नरेश दिवाकर ने सिवनी छिंदवाड़ा और बालाघाट जिले के कॉलेजों के लिये अलग विश्वविद्यालय खोलने की मांग की हैं। उन्होंने अपने पत्र में यह भी उल्लेख किया है कि इस विश्वविद्यालय का मुख्यालय सिवनी में ही रखा जाये।यहां यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि सन 1996 में सिवनी सहित नरसिंहपुर,मंड़ला एवं बालाघाट जिले को सागर विश्वविद्यालय से प्रथक करके जबलपुर विश्वविद्यालय में शामिल कर दिया था जबकि छिंदवाड़ा जिले को सागर विश्वविद्यालय में यथावत रहने दिया गया था। सागर विश्वविद्यालय का स्थान देश के ख्याति प्राप्त विश्वविद्यालयों में शामिल था लेकिन जब सिवनी जिले को इससे अलग कर जबलपुर विश्वविद्यालय में शामिल किया गया तो यहां के जनप्रतिनिधि मौन ही रहे। सन 1998 में छात्र राजनीति से राजनीति में आये नरेश दिवाकर पहली बार विधायक चुने गये। लेकिन उन्होंने भी इस दिशा में कोई प्रयास करना उचित नहीं समझा। वैसे एक नये विश्वविद्यालय को खोलने का प्रस्ताव स्वागत योग्य हैं। लेकिन यदि ऐसा हो भी गया तो उसका मुख्यालय सिवनी ही रहेगा छिंदवाड़ा नहीं इस बात की गारंटी कोई नहीं दे सकता। वैसे भी भाजपा के शासन काल में ही प्रदेश सरकार ने नया सतपुड़ा संभाग बनाने की घोषणा की थी। छिंदवाड़ा,सिवनी और बालाघाट जिले को मिलाकर यह संभाग बनना था। भैगोलिक,आर्थिक और प्रशासनिक दृष्टि से इसका मुख्यालय सिवनी बनना चाहिये था लेकिन जिले के भाजपा के नेता और जनप्रतिनिधि अपने ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से यह सौगात जिले को नहीं दिला पाये। हां यह कह कर भाजपा नेता अपनी पीठ खुद थपथपा सकते हैं कि केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ के भारी दवाब के बाद भी अभी तक संभाग का गठन रुकवाने में वे सफल रहें हैं। फिर ऐसे में यह मानना तो गलत ही होगा कि यदि खुदा ना खास्ता यह विश्वविद्यालय खुला भी तो नरेश दिवाकर इसका मुख्यालय सिवनी में ही बनवा पायेंगें। वैसे उन्होंने खुद अपने पत्र में सिवनी,छिंदवाडा़ और बालाघाट जिले का जिक्र किया हैं ना कि छिंदवाड़ा,सिवनी और बालाघाट का। बात चाहे जो भी हो और चाहे विश्वविद्यालय खुले या ना खुले चुनावी साल में नरेश दिवाकर छात्रों को यह संदेश देने में तो सफल हो गयें है कि वे उनके हितों के वर्तमान से अच्छे रक्षक और शुभचिंतक हैं। वैसे यदि चलते चलते यह उपलब्धि ही जिले को मिल जाये तो बहुत हैं वरन जिले के खाते में आश्वासनों और घोषणाओं के अलावा और कुछ तो आया नहीं हैं।“मुसाफिर”
सा.दर्पण झूठ ना बोले 19 मार्च 2013 से साभार









थोथा चना बाजे घना साबित हो रहीं हैं शिवराज की घोषणायें: तीन
तीन साल पहले मुख्यमंत्री द्वारा शिलान्यास की गयी थोक सब्जी मंड़ी में एक ईंट भी नहीं लगी
सिवनी। घोषणायें तो दूर प्रदेंश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह ने जिस थोक सब्जी मंड़ी का शिलान्यास 2009 में किया था उसमें आज तक एक ईंट भी नहीं लग पायी हैं। आकाशवाणी केन्द्र की घोषणा भी महज घोषणा बन कर ही रह गयी हैं।
पूरे प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की छवि एक घोषणावीर मुख्यमंत्री की बन कर रह गयी हैं। सिवनी जिले में भी आलम कुछ अलग नहीं हैं। कई घोषणायें ऐसी हैं जो महज शिवराज सिंह जी के मुंह से निकल कर भर रह गयीं हैं उन पर आज तक अमल नहीं हुआ हैं।
प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान विगत 21 अक्टूबर 2009 को सिवनी आये थे। इसी दौरे में शिवराज सिंह ने बीज निगम के प्रांगण में थोक सब्जी मंड़ी का भूमि पूजन किया था। यहां यह विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं कि नगर में थोक सब्जी मंड़ी की समस्या बहुत पुरानी हैं। एक सर्व सुविधा युक्त थोक सब्जी मंड़ी की मांग लंबे अर्से से की जा रही थी। 
जब मुख्यमंत्री ने इसका भूमि पूजन किया तो भाजपा के कई नेताओं और जनप्रतिनिधियों ने अखबारों में लंबी लंबी विज्ञप्तियां जारी करके उनका आभार व्यक्त किया था। लेकिन इन तीन सालों में उसमें एक ईंट भी क्यों नहीं लगी? इसकी चिंता किसी ने भी नहीं की हैं। अब तो शायद भूमिपूजन के पत्थर को भी तलाशने जायेंगें तो पता नहीं कहां वो धूल खाता दिखेगा।
इसी तरह मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 27 अप्रेल 2008 को स्थानीय पॉलेटेक्निक मैदान में मंच से यह घोषणा की थी कि सिवनी में आकाश वाणी केन्द्र खुलेगा। हालांकि आकाशवाणी केन्द्र खोलने का काम केन्द्र सरकार का है लेकिन राज्य सरकार या मुख्यमंत्री की ओर से इस दिशा में क्या कार्यवाही की गयी? इसका खुलासा भी आज तक नहीं हुआ हैं और ना ही किसी भाजपा नेता ने अपने ही मुख्यमंत्री को इस बाबद याद दिलानें की ही कोई कोशिश की हैं।  
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 26 जुलाई 2008 को लखनादौन में आचार संहिता लागू होने की संभावना को देखते हुये कोई घोषणा तो नहीं की थी फिर भी उन्होंने यह जरूर कहा था कि अगली सरकार भी हमारी ही बनेगी तब मध्यप्रदेश देश का नंबंर एक प्रदेश और सिवनी प्रदेश का नंबंर एक जिला बनेगा।
जिस जिले में मुख्यमंत्री द्वारा सार्वजनिक मंच से की गयी घोषणायें ही पूरी ना हुयीं हो तो भला वह प्रदेश का नंबंर एक जिला कैसे बन सकता है? हां यह जरूर हो सकता है कि सिवनी जिला इस बारे में नंबंर एक बन गया हो जहां मुख्यमंत्री द्वारा की गयी सबसे ज्यादा घोषणायें पूरी ना हुयीं हों। 
चुनावी साल में बजट के पहले और बजट सत्र के दौरान भी भाजपा के किसी भी जनप्रतिनिधि ने इस बाबद कोई प्रयास नहीं किया कि शिवराज की एकाध सौगात ही शिव की नगरी सिवनी को मिल जाये।   
सा. दर्पण झूठ ना बोले से साभार

Tuesday, March 5, 2013


थोथा चना बाजे घना साबित हो रहीं हैं शिवराज की घोषणायें: दो 
फोर लेन,नरसिंग कालेज,बेडमिंटन हाल और दलसागर के सपने अभी भी हैं अधूरे
भाजपा के जनप्रतिनिधियों की चुप्पी भी है जवाबदार
सिवनी। समूचे प्रदेश में घोषणावीर मुख्यमंत्री की छबि बनाने वाले शिवराज सिंह की ख्याति जिले में भी ऐसी ही हैं।फोर लेन के मामले में उनहोंने घोषणा की थी कि सूरज चाहे पूव्र की जगह पश्चिम से ऊगने लगे लेकिन फोर लेन सिवनी से ही जायेगी।
अपने सिवनी प्रवास के दौरान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने स्थानीय मिशन स्कूल ग्राउंड में दिनांक 21 अक्टूबर 2009 को आपने सिंह गर्जना की थी कि सूरज चाहे पूर्व की बजाय पश्चिम से ऊगने लगे लेकिन फोर लेन रोड सिवनी से ही जायेगा। इसके साथ ही आपने जनमंच के प्रतिनिधि मंड़ल को दो बार आश्वासन दिया था कि वे उनके कुछ सदस्यों को अपने साथ दिल्ली ले जायेंगें और प्रधानमंत्री,भू तल परिवहन मंत्री और वन एवं पर्यावरण मंत्री से मिलवा कर मामले का हल करायेंगें। इसके बाद जिले के कुरई विकास खंड़ के ग्राम सुकतरा में शिवराज ने दिनांक 16 दिसम्बर 2010 को एक बार फिर मंच से अपने भाषण में लोगों को आश्वस्त किया था कि फोरलेन सिवनी से ही जायेगा। 
यहां यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि विवाद वाली रोड कुरई विकास खंड़ की ही हैं जो कि बरघाट विधानसभा क्षेत्र में आता है जिसका प्रतिनिधित्व भाजपा के युवा आदिवासी विधायक कमल मर्सकोले करते हैं। हालांकि विधायक कमल और मविप्रा के अध्यक्ष नरेश दिवाकर ने अनशन और फिर आमरण अनशन की घोषणा की थी लेकिन जानकारों का मानना भाजपा की गुटबाजी के चलते यह आंदोलन भी मांग पूरी कराये बिना ही स्थगित कर दिया गया था।
इतना ही नहीं वरन मिशन स्कूल में मुख्यमंत्री ने नरसिंह काफलेज के लिये 6ः करोड़,बेडमिंटन हॉल के लिये 45 लाख रु. देने की भी घोषणा की थी। इसके साथ ही मुख्यमंत्री ने यह भी कहा था कि दलसागर तालाब को ऐसा सजाया जायेगा कि यहां के लोग अपने मेहमानों को इसे दिखाने में गर्व महसूस कर सकें। दलसागर के आज के हालात देखकर शहर के लोग यह कहने से भी नहीं चूक रहें हैं कि शिवराज जी मेहमानों को यहां लाने में गर्व तो महसूस नहीं होगा वरन शर्म जरूर लगेगी। प्राकृतिक रूप से दो टापू वाले दलसागर तालाब में आपके कार्यकाल में एक टापू और बन गया हैं। क्योंकि इकट्ठी की गयी सिल्ट तक पानी आ जाने के कारण नहीं निकाली जा सकी जिसे लोग अब तीसरा टापू कहने लगें हैं। 
मुख्यमंत्री की इन घोषणाओं के पूरे ना होने के लिये जिले के भाजपा के जनप्रतिनिधि और संगठन के पदाधिकारी भी कम दोषी नहीं हैं जिन्होंने अपनी ही सरकार से मुख्यमंत्री की सार्वजनिक घोषणा के बाद भी शहर को ये सौगातें नहीं दिला पाये।  



रेल बजट में जिले की अनदेखी के लिये के.डी. के  हास्यासप्रद    प्रस्ताव और बसोरी सिंह की चुप्पी बराबरी की जवाबदार है
प्रदेश भाजपा ने चुनावी रणनीति के तहत यह तय किया है कि जिन सीटों पर भाजपा हारी है उन सीटों को जीतने केे विशेष प्रयास किये जायेंगें।लेकिन जिला भाजपा की घोषित की गयी  कार्यकारिणी को देख कर ऐसा नहीं लग रहा हैं। यहां यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि जिले की चार विधानसभा सीटों में से एक मात्र केवलारी क्षेत्र ही ऐसा हैं जहां से भाजपा लगातार पिछले चार चुनाव से हार रही हैं। यदि चारों चुनावों के बाद भाजपा प्रत्याशियों द्वारा लगाये गये भीतरघाती नेताओं की सूची बनायी जाये तो शायद जिले का एक भी ऐसा नेता नहीं बचेगा जिस पर हरवंश सिंह से सांठ गांठ और नूरा कुश्ती के आरोप ना लगाये गयें हों। हमेशा की तरह इस बार भी जिले को विशेष सौगात नहीं मिली हैं। बजट में रामटेक सिवनी गोटेगांव रेल लाइन को सर्वे के लिये फिर शामिल कर लिया है। इसके साथ ही सिवनी छपारा लखनादौन एवं सिवनी बरघाट कटंगी नयी रेल लाइन को सर्वे के लिये शामिल किया गया हैं। इसके अलावा नरोगेज कनवर्शन के लिये दस करोड़ रुपये की राशि दी गयी हैं। जबकि छिंदवाड़ नागपुर के लिये 200 करोड़ रु. आवंटित किये गये हैं। ऐसा लगता है कि जिले के नेताओं चाहे वे भाजपा के हों या कांग्रेस के किसी की भी दिल्ली में कोई बकत नहीं हैं और केन्द्र सरकार पर दवाब बनाना तो दूर अनपे आला कमान ते भी सशक्त तरीके से अपनी बात कहने का साहस नहीं जुटा पा रहें हैं।
ऐसे कैसे जीतेगी भाजपा केवलारी से?-प्रदेश में तीसरी पारी खेलने के लिये बेताब भाजपा जी जान एक कर रही हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एवं अध्यक्ष नरेन्द्रसिंह तोमर नित नये प्रयोग कर रहें हैं और फैसले ले रहें हैं। भाजपा ने चुनावी रणनीति के तहत यह तय किया है कि जिन सीटों पर भाजपा हारी है उन सीटों को जीतने केे विशेष प्रयास किये जायेंगें।लेकिन जिला भाजपा की घोषित की गयी  कार्यकारिणी को देख कर ऐसा नहीं लग रहा हैं। यहां यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि जिले की चार विधानसभा सीटों में से एक मात्र केवलारी क्षेत्र ही ऐसा हैं जहां से भाजपा लगातार पिछले चार चुनाव से हार रही हैं। प्रदेश के कद्दावर कांग्रेस नेता एवं विस उपाध्यक्ष उपाध्यक्ष ठा. हरवंश सिंह इस क्षेत्र के एवं जिले के इकलौते कांग्रेस विधायक हैं। एक मजेदार बात यह रही हैं कि हर चुनाव में भाजपा का प्रत्याशी बदलने के साथ ही भाीतरघात के आरोप लगने वाले नेताओं के नाम भी बदलते रहें हैं। यदि चारों चुनावों के बाद भाजपा प्रत्याशियों द्वारा लगाये गये भीतरघाती नेताओं की सूची बनायी जाये तो शायद जिले का एक भी ऐसा नेता नहीं बचेगा जिस पर हरवंश सिंह से सांठ गांठ और नूरा कुश्ती के आरोप ना लगाये गयें हों। ऐसे राजनैतिक हालात में नव नियुक्त जिला भाजपा अध्यक्ष नरेंश दिवाकर से यह उम्मीद की जा रही थी कि इस बार वे संगठन में केवलारी क्षेत्र के नेताओं को विशेष महत्व देकर कुछ ऐसी रणनीति  बनायेंगें कि केवलारी में भाजपा को मात दी जा सके। लेकिन जब भाजपा की बहुप्रतीक्षित कार्यकारिणी की घोषणा हुयी तो ऐसा कुछ राजनैतिक रूप से दिखा नहीं। जिले के आठ उपाध्यक्षों में से एक मुकेश बघेल,धनोरा,तीन महामंत्रियों में एक श्रीराम ठाकुर कान्हीवाड़ा एवं आठ मंत्रियों में दो राकेश बैस तथा रधा साहू छपारा तथा कार्यकारिणी सदस्य 11 एवं विशेष आमंत्रित सदस्यों में 8 नेताओं को केवलारी क्षेत्र से लिया गया है जबकि अकेले सिवनी शहर से अध्यक्ष सहित आठ पदाधिकारी,12 कार्यकारिणी एवं 18 विशेष आमंत्रित सदस्य बनाये गये हैं। इसके अलावा भी सिवनी विस क्षेत्र से पदाधिकारी एवं सदस्य बनाये गये हैं। इन हालातों में प्रदेश नेतृत्व की मंशानुसार भाजपा केवलारी विस क्षेत्र में कैसे जीत दर्ज करेगी? इसे लेकर भाजपायी हल्कों में ही अभी से तरह तरह की चर्चायें व्याप्त हैं। 
रेल बजट में जिले की फिर हुयी अनदेखी-हाल ही में केन्द्र सरकार के रेल मंत्री पवन बंसल ने रेल बजट पेश किया हैं। हमेशा की तरह इस बार भी जिले को विशेष सौगात नहीं मिली हैं। बजट में रामटेक सिवनी गोटेगांव रेल लाइन को सर्वे के लिये फिर शामिल कर लिया है। इसके साथ ही सिवनी छपारा लखनादौन एवं सिवनी बरघाट कटंगी नयी रेल लाइन को सर्वे के लिये शामिल किया गया हैं। इसके अलावा नरोगेज कनवर्शन के लिये दस करोड़ रुपये की राशि दी गयी हैं। जबकि छिंदवाड़ नागपुर के लिये 200 करोड़ रु. आवंटित किये गये हैं। यहां यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि बालाघाट के भाजपा सांसद के.डी.देशमुख के द्वारा सिवनी लखनादौन और सिवनी कटंगी लाइन के प्रस्ताव दिये गये थे और पिछले वर्ष भी इन्हें बजट में सर्वे के लिये शामिल किया गया था। जबकि पिछले तीन चार रेल बजट से रामटेक गोटेगांव रेल लाइन के सिये सर्वे और सर्वे अपग्रेट करने के लिये बजट प्रावधान होते रहें हैं। यहां यह भी विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि यह नयी रेल लाइन भी जिले में धूमा,लखनादौन छपारा सिवनी होते हुये खवास रामटेक तक जायेगी। ऐसी परिथिति में सांसद देशमुख द्वारा प्रस्तावित की गयी सिवनी छपारा लखनादौन नयी रेल लाइन का प्रस्ताव करना समझ से परे हैं। जबकि रामटेक गोटेगांव नयी रेल लाइन के संबंध में बिलासपुर जोन के मुख्य अभियंता द्वारा इंका नेता आशुतोष वर्मा , जो कि इस लाइन के लिये विगत कई वर्षों से गांधीवादी तरीके  से आंदोलन चला रहें हैं, को 19 अक्टूबर 2012 को सूचित किया था कि रामटेक बरास्ता  सिवनी गोटेगांव रेल लाइन का अपडेटिंग सर्वे कार्य पूरा हो चुका हैं तथा इसकी लागत 1482.17 करोड़ रु. हैं एवं इसकी रिपोर्ट एवं एस्टीमेट रेल्वे बोर्ड को 8 फरवरी 2012 को भेज दिया हैं। इस आधार पर संेसद में यदि जिले के सांसद देशमुख और बसोरी सिंह मसराम संसद में बात उठाते तो शायद जिले को यह महत्वपूर्ण सौगात मिल सकती थी। लेकिन देशमुख ने सिवनी लखनादौन का नया हास्यासप्रद प्रस्ताव रख दिया। वाह के.डी. वाह क्या बात है। जबकि विपक्षी दल के सांसद होने के नाते वे इस मुद्दे को लेकर भी केन्द्र सरकार को कठघरे में खड़ा कर सकते कि आखिर ऐसे क्या कारण है कि सरकार कांग्रेस के ही तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व.नरसिंहारव द्वारा घोषित रामटेक गोटेगांव रेल लाइन के लिये 1996 से लेकर आज जक बजट आवंटित क्यों नहीं कर पा रही हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि इस लाइन की मांग तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री एवं कांग्रेस की सांसद कु. विमला वर्मा ने उठायी थी इसीलिये ये तमाम अड़गें डाले जा रहें हो कि यह मांग पूरी होने से उनके द्वारा जिले को दी गयी सौगातों की सूची में यह एक और महत्वपूर्ण उपलब्धि जुड़ जायेगी। इससे भी ज्यादा आश्चर्यजनक बात यह है कि कांग्रेस सांसद बसोरी सिंह मसराम भी इसे लेकर सक्रिय नहीं हुये जबकि गोटेगांव से लेकर छपारा तक का मार्ग उनके मंड़ला संसदीय क्षेत्र में आता हैं। इसके बाद भी वे चुप ही रह गये। लेकिन इस बात के लिये क्यों रोना रोया जाय जबकि खुद सोनिया गांधी ने मंड़ला तक बड़ी लाइन की घोषणा चुनावी सभा में की थी और आज भी वह सर्वे के जंजाल में ही उलझी हुयी हैं। जब बसोरी सिंह जी इस बात की याद भी सोनिया गांधी या केन्द्र सरकार को दिला पाये तो उनसे भला और किसी बात की क्या उम्मीद की जा सकती है? इन तमाम बातों से ऐसा लगता है कि जिले के नेताओं चाहे वे भाजपा के हों या कांग्रेस के किसी की भी दिल्ली में कोई बकत नहीं हैं और केन्द्र सरकार पर दवाब बनाना तो दूर अनपे आला कमान ते भी सशक्त तरीके से अपनी बात कहने का साहस नहीं जुटा पा रहें हैं। 
शाबाश सुजीत?- जिला भाजपा की नव गठित कार्यकारिणी में एक आश्चर्यजनक तथ्य यह भी है कि निवर्तमान जिला भाजपा अध्यक्ष सुजीत जैन को प्रथम उपाध्यक्ष बनाया गया हैं। हालांकि यह बात जरूर है कि कभी जब कोई अप्रत्याशित राजनैतिक परिस्थिति आती है तो प्रथम उपाध्यक्ष ही कार्यकारी अध्यक्ष बनता हैं। लेकिन ऐसे बिरले ही उदाहरण मिलेंगें कि कभी किसी पार्टी में निवर्तमान अध्यक्ष नयी कार्यसमिति में उपाध्यक्ष बना हो। वैसे तो भाजपा में सरकार में यह विपरीत चलन जरूर रहा हैं कि मुख्यमंत्री रहने के बाद भी कैलाश जोशी और बाबूलाल गौर दूसरे के मंत्री मंड़ल में मंत्री बने लेकिन संगठन में ऐसी कोई परंपरा नहीं दिखी। सुजीत जैन के उपाध्यक्ष बनने को उनके समर्थक इसे पार्टी के प्रति उनका समर्पण मान रहें तो उनके विरोधी यह कहने से नहीं चूक रहें है कि सत्तारूढ़ पार्टी के किसली पद पर बने रहना उनकी मजबूरी है इसीलिये पुनः अध्यक्ष ना बन पाने के बाद भी वे उपाध्यक्ष बन गये। यह भी कहा जा रहा है कि आखिर इससे फर्क क्या पड़ रहा है पहले भी वे डी.एन. के समर्थक थे और आज भी उन्हें उनके ही नेतृत्व में तो उपाध्यक्ष रहना हैं। “मुसाफिर“              
दर्पण झूठ ना बोले
05 मार्च 2013 से साभार