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Monday, April 29, 2013


राहुल के सामने खुलासा नहीं हुआ कि सिवनी में बागियों को टिकिट और भीतरघातियों को पद क्यों देते है हरवंश ?
इस बात का आभास तो राहुल को पहले से ही था कि प्रदेश में कांग्रेस दिग्गी,कमलनाथ,सिंधिया,पचौरी और भूरिया गुट में बंटी हुयी हैं। लेंकिन अपने प्रवास के दौरान इस बात को खुलकर देख लिया कि उनके सामने भी यह रुकी नहीं। हालांकि राहुल गांधी ने काफी सख्त लहजे में गुटबाजी समाप्त करने की नसीहत दी है लेकिन प्रदेश के दिग्गजों पर इसका कितना असर होगा? यह कहना अभी संभव नहीं हैं। राहुल गांधी को शायद इस बात की जानकारी ही नहीं लग पायी कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस में जिले भी पट्टेदारों के बीच बंटे हुये हैं।ये पट्टेदार इतना अधिक सिर्फ अपना हित साधने के आदी हो चुके हैं कि वे अपने ही नेता के अन्य समर्थकों का हित भी नहीं देखना चाहते है। ऐसी स्थिति में उनसे कांग्रेस के हित देखने की तो कल्पना भी करना बेमानी ही होगी।कई अधिकृत नेता तो पहुंच ही नहीं पाये और पट्टेदारों के कृपा पात्र नेताओं को ना सिर्फ पास जारी कर दिये गये वरन उन्होंने मुखर होकर अपनी बात भी रखी। सिवनी जिला कांग्रेस का गढ़ माना जाता था। अब कांग्रेस का एक ही विधायक हैं।ऐसा क्यों और किसके कारण हो रहा है? इसका खुलासा भी राहुल के सामने नहीं हो पाया। जिन नेताओ ने कहना मान कर कांग्रेस के खिलाफ विधानसभा का चुनाव बागी होकर लड़ लिया उन्हें उसी क्षेत्र से विस की टिकिट और जिन्होंने कांग्रेस को हराने के लिये भीतरघात कर पार्टी को हराने का काम किया उन्हें संगठन में पद देकर नवाजने का सिलसिला सालों से बदस्तूर जारी हैं। 
राहुल भी रूबरू हुये प्रदेश कांग्रेस की गुटबाजी से- विगत 24 और 25 अप्रेल का दिन प्रदेश की कांग्रेस की राजनीति के लिये बहुत ही अहम रहा हैं। इन दिनों कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी मिशन 2013 और 2013 की नब्ज टटोलने के लिये आये थे। प्रदेश कांग्रेस के दिग्गज नेता भी चिंतित थे कि ना जाने कब कौन सी बात जानलेवा बन जाये। अपने दो दिनों के प्रवास में वैसे तो राहुल गांधी ने अपनी तरफ से प्रदेश में कांग्रेस की जमीनी हकीकत पता करने के पूरे प्रयास कियो लेकिन उन्हें कितनी हकीकत पता लग पायी इसे लेकर तरह तरह की चर्चायें हैं। इस बात का आभास तो राहुल को पहले से ही था कि प्रदेश में कांग्रेस दिग्गी,कमलनाथ,सिंधिया,पचौरी और भूरिया गुट में बंटी हुयी हैं। लेंकिन अपने प्रवास के दौरान इस बात को खुलकर देख लिया कि उनके सामने भी यह रुकी नहीं। केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ तो इस दौरान आये ही नहीं। जो बड़े नेता थे उनके समर्थक भी अलग अलग खेमों में दिखायी दिये। चुनाव जीतने के लिये इन दिग्गजों में एका करना सबसे बड़ी जरूरत हैं। हालांकि राहुल गांधी ने काफी सख्त लहजे में गुटबाजी समाप्त करने की नसीहत दी है लेकिन प्रदेश के दिग्गजों पर इसका कितना असर होगा? यह कहना अभी संभव नहीं हैं। 
कांग्रेस में जिले भी बंटे हुये है पट्टेदारों के बीच-कांग्रेस के सिस्टम को आमूल चूल बदल देने का संकल्प लेने वाले राहुल गांधी को शायद इस बात की जानकारी ही नहीं लग पायी कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस में जिले भी पट्टेदारों के बीच बंटे हुये हैं। प्रदेश के किसी ना किसी दिग्गज नेता का पट्ठा हर जिले का पट्टेदार बना बैठा है। ये पट्टेदार इतना अधिक सिर्फ अपना हित साधने के आदी हो चुके हैं कि वे अपने ही नेता के अन्य समर्थकों का हित भी नहीं देखना चाहते है। ऐसी स्थिति में उनसे कांग्रेस के हित देखने की तो कल्पना भी करना बेमानी ही होगी। हालात यह हैं कि ऐसे पट्टेदारों का ना सिर्फ समूचे संगठन पर उनका उही कब्जा है वरन स्थानीय निकायों के जन प्रतिनिधि भी उनके अपने ही चुने जाते हैं। यदि किसी दूसरे नेता को कांग्रेस की टिकिट भी मिल जाती है तो वे उसे निपटाने में भी कोई परहेज नहीं कर पाते है। पट्टेदार खुद के भले के लिये भाजपा नेताओं के साथ नूरा कुश्ती खेलने में भी संकोच नहीं करते हैं। ऐसे में प्रदेश में जिलों के हालात यह हो गये हैं कि इनमें पट्टेदार कों ताकतवर हो गये हैं लेकिन कांग्रेस का सफाया सा हो गया हैं। 
पोल ना खुलने की जुगत में लगे रहे पट्टेदार-कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी के सामने कहीं अपनी पोल ना खुल जाये इसकी जुगत जमाने में ही पट्टेदार लगे रहे। इस प्रयास में यह तक किया गया कि किस नेता को उनके कार्यक्रम में जाने की पात्रता है और किसे नही? इसका खुलासा ही नहीं किया गया। प्रदेश कांग्रेस के निर्देश के अनुसार नेताओं से उनके फोटो तो मंगवा लिये गये लेकिन आखरी तक यह नहीं बताया गया कि उन्हें राहुल के कार्यक्रम में जाना हैं। ऐसी स्थिति में कई अधिकृत नेता तो पहुंच ही नहीं पाये और पट्टेदारों के कृपा पात्र नेताओं को ना सिर्फ पास जारी कर दिये गये वरन उन्होंने मुखर होकर अपनी बात भी रखी। ऐसे हालात में कितनी सच्चायी राहुल के सामने आयी होगी इसका अंदाज सहज ही लगाया जा सकता है। 
सिवनी जिले के पट्टेदार बन बैठे हैं हरवंश-पिछले लगभग पंद्रह सालों से जिले के इकलौते कांग्रेस विधायक और विस उपाध्यक्ष हरवंश सिंह पट्टेदार बने हुये हैं। यह जिला कांग्रेस का गढ़ माना जाता था। सन 1952 से लेकर 1990 तक जिले के सभी विस क्षेत्रों पर कांग्रेस का कब्जा रहा करता था। सिर्फ 1962 का चुनाव ऐसा था जिसमें कांग्रेस तीनों सामान्य सीटें राम राज्य परिषद से हार गयी थी लेकिन दोनों आदिवासी क्षेत्रों में कांग्रेस की ही जीत हुयी थी। लेकिन पांच साल बाद ही कांग्रेस ने 1967 में पुनः पांचों सीटें जीती और 1977 की जनता लहर में भी कांग्रेस का यह किला सुरक्षित रहा और समूचे उत्तर भारत में इसने एक रिकार्ड बनाया था। कांग्रेस में जिले में गुटबाजी तब भी थी लेकिन टिकिट मिलने में एक दूसरे के प्रत्याशी को कटवाने तक सीमित थी लेकिन टिकिट मिलने के बाद कांग्रेस को निपटाने का काम नहीं होता था जो अब होने लगा हैं। आज हालात यह हैं कि हरवंश सिंह तो केवलारी से 1993 से लगातार कांग्रेस के विधायक हैं लेकिन उनके ही क्षेत्र से कांग्रेेस लोकसभा में नहीं जीतती हैं। इसके लिये उनसे कभी सवाल जवाब भी नहीं किया गया। सिवनी और बरघाट सीट से कांग्रेस पांच चुनाव लगातार हार चुकी हैं। और तो और 1977 और 1990 के चुनाव मे भी कांग्रेस के सबसे मजबूत किले रहे लखनादौन को भी भाजपा 2003 में ध्वस्त कर चुकी हैं। ऐसा क्यों और किसके कारण हो रहा है? इसका खुलासा भी राहुल के सामने नहीं हो पाया। 
बागियों को टिकिट और भीतरघातियों को बांटे गये पद-अक्सर यह कहा जाता है कि बड़ा काम करने वाले को बड़ा और छोटा काम करने वाले को छोटा इनाम दिया जाता हैं। ऐसा ही कुछ इस जिले में होता रहा है। जिन नेताओ ने कहना मान कर कांग्रेस के खिलाफ विधानसभा का चुनाव बागी होकर लड़ लिया उन्हें उसी क्षेत्र से विस की टिकिट और जिन्होंने कांग्रेस को हराने के लिये भीतरघात कर पार्टी को हराने का काम किया उन्हें संगठन में पद देकर नवाजने का सिलसिला सालों से बदस्तूर जारी हैं। जब हरवंश सिंह प्रदेश के पंचायत मंत्री थे तब उनके गृह जिले से 1998 का चुनाव बागी हाकर कांगेस के जनपद अध्यक्ष बेनी परते ने लड़ा और 2001 में हुये उप चुनाव में ही उन्हें उसी क्षेत्र से कांग्रेस की टिकिट मिल गयी।हरवंश सिंह के केवलारी क्षेत्र के जनपद के उपाध्यक्ष भोयाराम ने 1998 का चुनाव बरघाट क्षेत्र से बागी होकर लड़ा और 2003 में उन्हें बरघाट से ही पार्टी की टिकिट मिल गयी। 1996 में कांग्रेस की विमला वर्मा के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले आदिवासी नेता शोभाराम भलावी ने 44 हजार वोट लेकर कांग्रेस को हराने में अहम भूमिका निभायी उन्हें 1997 एवं 2000 में केबिनेट मंत्री के दर्जे के साथ निगम अध्यक्ष बनाया गया और फिर 2003 में लखनादौन से विस चुनाव में टिकिट दे दी गयी। कहा जाता है कि प्रदेश में गौड़वाना गणतंत्र पार्टी की नींव यहीं से मजबूत हुयी थी। भीतरघातियों को पार्टी संगठन में पद देने वालों की संख्या तो इतनी अधिक है कि उसका उल्लेख करना ही संभव नहीं हैं। ऐसा नहीं है कि राहुल गांधी के सामने कोई भी तथ्य सामने ना आये हों। नेताओं ने आदिवासी और मुस्लिम वोटों के कांग्रेस से खफा होने का उल्लेख जरूर किया लेकिन ऐसा क्यों हो रहा है? इसका खुलासा नहीं हो पाया। अपने कर,फर और बल से हरवंश सिंह इस बार भी सफल रहें कि राहुल गांधी के सामने उनकी पोल खुलने से बच गयी। “मुसाफिर”  
दर्पण झूठ ना बोले
30 अप्रेल 2013 से साभार

Monday, April 15, 2013


जनता द्वारा जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा से चर्चित हुयी चौपाल
हरवंश और नीता की लोकप्रियता पर लगा  सवालिया निशान
सिवनी। नवागत युवा कलेक्टर की छपारा में लगायी गयी रात्रि चौपाल सियासी हल्कों चर्चा का विषय बनी हुयी हैं। विस उपाध्यक्ष हरवंश सिंह और विधायक तथा प्रदेश भाजपा की पूर्व महिला मोर्चे की अध्यक्ष नीता पटेरिया की उपस्थिति में आयोजित इस चौपाल में नागरिकों ने जन समस्याओं के प्रति जन प्रतिनिधियों की लापरवाही और गलती करने वाले अपनों को संरक्षण देने वालों को भी खूब आड़े हाथों लिया।
उल्लेखनीय है कि जिले के युवा कलेक्टर भरत यादव ने अपनी पहली रात्रि कालीन चौपाल ग्राम छपारा में विगत दिनों लगायी। लंबे समय से समस्याओं की अनदेखी के कारण लोगों में भारी आक्रोश था। सरपंच की कार्यप्रणाली और भ्रष्टाचार से लोग लंबे समय से परेशान थे और शिकायतें करके थक गये थे। लेकिन कोई कार्यवाही ना होने से निराश हो गये थे। 
पिछले कई दिनों से लाइन कटने के कारण छपारा में पानी नहीं मिल रहा था। पंचायत की सरपंच की अनदेखी की शिकायत लोगों ने प्रशासनिक अधिकारियों और जन प्रतिनिधियों से भी की थी। लेकिन राजनैतिक संरक्षण प्राप्त सरपंच के खिलाफ कोई कुछ करने को तैयार नहीं था। ब्लाक का प्रतिनिधित्व करने वाले दोनों विधायकों से भी लोगों ने फरियाद की थी। लेकिन नतीजा सिफर ही निकला।
जब यह पता कि जिले के कलेक्टर छपारा में चौपाल लगाने जा रहें हैं तो भारी संख्या में लोग वहां एकत्रित हो गये। उपस्थित जन समुदाय ने नवागत कलेक्टर के सामने ना केवल जम कर अपनी भड़ास निकाली वरन मौके पर मौजूद जन प्रतिनिधियों को भी आड़े हाथों लिया। लोगों का आरोप था कि सरपंच की लापरवाही के कारण लोगों को भुगतना पड़ रहा हैं। 
ऐसा बताया जा रहा है चौपाल में मौजूद दोनों जनप्रतिनिधियों हरवंश सिंह और नीता पटेरिया को लोगों ने पूरी तरह दर किनार कर दिया था। लोगों का कहना था कि जिनको हमने चुना जब वो हमारी कोई सुध लेने को तैयार नहीं हैं तो भला उनसे फिर गुहार करने से क्या फायदा है? 
कांग्रेस के हरवंश सिंह और भाजपा की नीता पटेरिया दोनों ही प्रदेश स्तर नेता हैं। उनके अपने गृह नगर और क्षेत्र में किसी शासकीय कार्यक्रम जनता द्वारा उनकी उपेक्षा की जाना सियासी हल्कों में चर्चित हैं। अपने ही मतदाताओं से मिली इस उपेक्षा को भले ही ये नेता अनदेखा कर दें लेकिन राजनैतिक क्षेत्रों में यह चर्चा चालू हो गयी हैं कि इस घटना ने इंका और भाजपा के इन दोनों नेताओं की लोकप्रियता पर सवालिया निशान लगा दिया हैं। चुनावी साल में जनता का यह रुख नेताओं के लिये शुभ संकेत नहीं माना जा रहा हैं। 
सा. दर्पण झूठ ना बोले 
16 अप्रेल 2013 से साभार

सिवनी विस और नपा में क्या कुछ कांग्रेसी नेता जानबूझ कर अल्प संख्यक कार्ड खेल कर अपना स्वार्थ साधते हैं?
सिवनी जिले में कभी कांग्रेस का मजबूत किला हुआ करता था। आज जिले में काग्रेस का किला ध्वस्त होकर एक खंड़हर बन कर रह गया हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ और समर्पित कांग्रेसी आज भी इस खंड़हर को सुधार कर इतिहास दोहराने की कल्पना तो संजोये हुये है लेकिन उन्हें कांग्रेस के संगठनात्मक और सक्रिय क्षेत्र से धकेल कर दर किनार कर दिया गया हैं। ़सन 1980 में इंदिरा गांधी की शानदार वापसी के बाद कांग्रेस की टिकिट पर सिवनी विस क्षेत्र से चुनाव अब्दुल रहमान फारूखी सिवनी विस क्षेत्र से चुनाव जीते थे। सन 1985 के विस चुनाव में जिले के वरिष्ठ कांग्रेसी नेता एवं वर्तमान में प्रदेश प्रतिनिधि शफीक पटेल से केवलारी क्षेत्र से कांग्रेस की टिकिट के लिये आवेदन लगवाया गया जहां से विमला वर्मा, लंबें समय से विधायक थीं। 1990 के चुनाव में कांग्रेस की टिकिट पर हरवंश सिंह चुनाव हार गये और 1993 का चुनाव केवलारी से लड़कर आज तक वे विधायक हैं। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि 1985 के बाद से आज तक कभी केवलारी क्षेत्र से मुस्लिम वर्ग को टिकिट देने की मांग नहीं उठ रहीं है और ना ही कांग्रेस का कोई मुस्लिम नेता टिकिट मांगता है। जबकि सिवनी और केवलारी क्षेत्र में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या लगभग बराबर हैं।
ध्वस्त होकर खंडहर बन चुका है कांग्रेस का किला -सिवनी जिले में कभी कांग्रेस का मजबूत किला हुआ करता था। आजादी के बाद से लेकर 1962 तक जिले में एक छत्र कांग्रेस का वर्चस्व था। 1962 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को तगड़ा झटका लगा और तीनों सामान्य सीटें, बरघाट,सिवनी और केवलारी, कांग्रेस हार गयी तथा राम राज्य परिषद ने कब्जा कर लिया। लेकिन अगले ही विधान सभा चुनाव 1967 में कांग्रेस ने ये तीनों ही सीटें जीत ली थी। तब से लेकर 1990 तक सिर्फ बरघाट सीट को छोड़कर, जहां कांग्रेस एक बार जीतती तो एक बार हारती थी,कांग्रेस का पूरे जिले में कब्जा रहा। यहां तक 1977 की जनता आंधी, जिसमें समूचे उत्तर भारत में कांग्रेस हार गयी थी,उसमें भी जिले के पांचों विस क्षेत्रों में कांग्रेस ने जीत हासिल कर एक कीर्तिमान बनाया था। 1990 के विस चुनाव में कांग्रेस को चार सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था। पहली बार आदिवासी क्षेत्र घंसौर में भी कांग्रेस की दिग्गज श्रीमती उर्मिला सिंह को हार का सामना करना पड़ा था। इसके अलावा केवलारी से विमला वर्मा और सिवनी से हरवंश सिंह भी चुनाव हार गये थे। लेकिन कांग्रेस 1993 में 1967 का इतिहास नहीं दोहरा पायी और दोनों आदिवासी क्षेत्रों के अलावा सिर्फ केवलारी से हरवंश सिंह ही चुनाव जीत पाये थे। और अब हालात यह हैं कि पिछले दो चुनावों से सिर्फ कांग्रेस के हरवंश सिंह  ही केवलारी विस क्षेत्र से चुनाव जीत रहें हैं। आज जिले में काग्रेस का किला ध्वस्त होकर एक खंड़हर बन कर रह गया हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ और समर्पित कांग्रेसी आज भी इस खंड़हर को सुधार कर इतिहास दोहराने की कल्पना तो संजोये हुये है लेकिन उन्हें कांग्रेस के संगठनात्मक और सक्रिय क्षेत्र से धकेल कर दर किनार कर दिया गया हैं।
कांग्रेस में जानबूझ कर खेला जाता है माइनरटी कार्ड?-़सन 1980 में इंदिरा गांधी की शानदार वापसी के बाद कांग्रेस की टिकिट पर अब्दुल रहमान फारूखी सिवनी विस क्षेत्र से चुनाव जीते थे। लेकिन उनका कार्यकाल समाप्त होने के पहले ही उनका इंतकाल हो गया था। 1983 में जिले की राजनीति में हरवंश सिंह नये क्षत्रप के रूप में उभर कर आये और मंत्री के दर्जे के साथ निगम का अध्यक्ष बनाया गया। उन दिनों जिले में दबंग एवं ईमानदार छवि वाली वरिष्ठ नेत्री विमला वर्मा की तूती बोलती थी। जिले में पहली बार अल्पसंख्यक मुस्लिम वर्ग  को एक कार्ड के रूप में इस्तेमाल किया गया। सन 1985 के विस चुनाव में जिले के वरिष्ठ कांग्रेसी नेता एवं वर्तमान में प्रदेश प्रतिनिधि शफीक पटेल से केवलारी क्षेत्र से कांग्रेस की टिकिट के लिये आवेदन लगवाया गया जहां से विमला वर्मा,1990 के चुनाव को छोड़कर, 1967 से लगातार विधायक चुनी जा रहीं थीं। जबकि 1980 मेूं सिवनी से मुस्लिम वर्ग के अब्दुल रहमान फारूखी चुनाव जीते थे। ऐसे हालात में सिवनी के बजाय केवलारी से मुस्लिम वर्ग की दोवेदारी इस वर्ग के हित के लिये नहीं वरन राजनैतिक कारणों से की गयी थी। इसके बाद जिले के राजनैतिक समीकरणों में बदलाव आया और 1990 के चुनाव में कांग्रेस की टिकिट पर हरवंश सिंह ने चुनाव लड़ा और वे 6086 वोटों से चुनाव हार गये। इस क्षेत्र से चुनाव लड़ने वाले पांच मुस्लिम प्रत्याशियों ने 5345 वोट लेकर मतों का भारी विभाजन करा दिया था। हरवंश सिंह आज भी यह मानते हैं कि सिवनी क्षेत्र के मुस्लिम वर्ग के कारण उनकी चुनावी पारी कमी शुरुआत हार से हुयी थी। इस चुनाव के बाद जिले के राजनैतिक समीकरणों में बदलाव क्षेत्र के सांसद रहे पं. गार्गीशंकर की मृत्यु  के कारण बदल गये। 1991 में सिवनी लोस क्षेत्र से विमला वर्मा कांग्रेस की टिकिट पर चुनाव लड़ कर जीत गयीं। केवलारी विस क्षेत्र खाली हो गया। सन 1993 के विस चुनाव में कांग्रेस ने यह नीति बनायी थी कि पांच हजार से पिछला चुनाव हारने वाले नेताओं को टिकिट नहीं दी जायेगी। इसीलिये हरवंश सिंह ने सिवनी के बजाय केवलारी क्षेत्र से   टिकिट मांगी और वहां से चुनाव जीतकर आज तक वे उसी क्षेत्र से विधायक हैं। यहां यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि सिवनी और केवलारी विस क्षेत्रों में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या लगभग बराबर हैं। लेकिन 1993 के चुनाव से सिवनी विस क्षेत्र और नगरपालिका अध्यक्ष के चुनाव में लगता है कि जानबूझ कर मुस्लिम कार्ड खेला जाता हैं। कांग्रेस के जो नेता मुस्लिमों के मसीहा बनकर उन्हें टिकिट के लिये प्रेरित करते हैं वास्तव में उनका उद्देश्य उन्हें टिकिट दिलाने के बजाय शायद मुस्लिम वर्ग में कांग्रेस के खिलाफ नाराजगी पैदा करने कर भाजपा को लाभ पहुंचाने का ही रहता हैं। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि 1985 के बाद से आज तक कभी केवलारी क्षेत्र से मुस्लिम वर्ग को टिकिट देने की मांग नहीं उठ रहीं है और ना ही कांग्रेस का कोई मुस्लिम नेता टिकिट मांगता है। ब्लकि केवलारी क्षेत्र के मुस्लिम नेता भी सिवनी से दावेदार बनने की कोशिश करते हैं। इसी रणनीति के कारण सिवनी विस से आशुतोष वर्मा दो बार, राजकुमार पप्पू खुराना और प्रसन्न मालू और पालिका अध्यक्ष के चुनाव में संजय भारद्वाज चुनाव हारते आ रहें हैं। ऐसी ही बिसात इस बार भी बिछायी जा रही हैं। सिवनी विस क्षेत्र से मुस्लिम प्रत्याशी की मांग जोर शोर से उठ गयी हैं। प्रदेश कांग्रेस के महामंत्री एवं मुस्लिम नेता साजिद अली का बीते दिनों नगरागमन हुआ था। उन्होंने ने भी सिवनी से मुस्लिम प्रत्याशी की मांग का समर्थन किया था। उनसे मिलने वाले बहुसंख्यक समाज के कई कांग्रेस के नेताओं और दावेदारों ने भी यह कह दिया कि इस क्षेत्र से मुस्लिम प्रत्याशी बना दिया जाय। यह चर्चा भी हुयी की यदि अल्पसंख्यक वर्ग को टिकिट नहीं देना है तो ऐसा प्रसार प्रचार ना किया जाये जिससे मुस्लिम समुदाय में पार्टी के खिलाफ नाराजगी पनप जाये। राजनैतिक विश्लेषकों का तो यहां तक कहना है कि आज भी यह जिला भाजपा का गढ़ नहीं बना है वरन कांग्रेसियों के भीतरघात के कारण ही बी.जे.पी. चुनाव जीत जाती हैं। कांग्रेस में यह प्रवृत्ति पिछले कुछ सालों में तेजी से इसलिये भी पनप रही है क्योंकि जिले में कांग्रेस के बागियों और भीतरघात करने वाले नेताओं को पुरुस्कृत करने का सिलसिला चल रहा हैं।“मुसाफिर”

सा. दर्पण झूठ ना बोले 
16 अप्रेल 2013 से साभार

Monday, April 8, 2013


कांग्रेस में अपने समर्थकों से कोई किसी को वट वृक्ष तो कोई दूसरे को बेशर्म की झाड़ी बता कर तुलना कर रहें हैं
विस उपाध्यक्ष हरवंश सिंह अपने समर्थकों को यह समझाने में जुटे हुये हैं कि वट वृक्ष के नीचे कोई भी पौधा पनप नहीं सकता हैं और इंका नेता आशुतोष वर्मा वट वृक्ष है इसलिये इनसे बच के रहें। इसके जवाब में आशुतोष वर्मा के साथी यह कहने में कोई संकोच नहीं कर रहें हैं कि वट वृक्ष के नीचे तो कोई पौधा पनप नहीं सकता लेकिन जहां बेशर्म की बेल फैल जाये वहां कोई पौधा पनपना तो दूर ऊग भी नहीं पाता हैं। काम निकलने के बाद हरवंश सिंह किसी भी नेता से ऐसा किनारा करते हैं कि मानो उसे कभी जानते भी ना हों। भाजपा अध्यक्ष नरेश दिवाकर की अनुशंसा पर भाजपा ने गोमती ठाकुर को महिला, रूपा सेठ को व्यापारी,प्रदीप बैस को विधि एवं शफीक पटेल को अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ का जिला अध्यक्ष नियुक्त किया हैं। एक ऐसी नेता को जो कि जिला भाजपा अध्यक्ष पद की दावेदार रही हो उसे जिला महिला मोर्चे का अध्यक्ष बनाना सियासी हल्कों में चर्चित हैं। एक तरह से यदि भाजपा उन्हें प्रदेश संगठन में कोई जगह देती तो यह जरूर उनका सम्मान होता लेकिन जिले के एक मोर्चे की जवाबदारी देना समझ से परे हैं।  कांग्रेस इस बात को लेकर चर्चित है कि इसमें गुमनाम से चेहरों को ये दायित्व सौंपे जा रहें हैं। कुछ ही दिनों पहले कांग्रेस सेवादल प्रमुख के रूप में डॉ. राजेन्द्र  साहू को नियुक्त किया गया। कई सालों बाद अखबारों में कांग्रेस का कोई ऐसा विज्ञापन छपा जिसमें इंका पुरोधा हरवंश सिंह का नाम तो था लेकिन उनकी फोटो नहीं थी।  
इंकाइयों में चर्चित हैं वट वृक्ष और बेशर्म की झाड़ी -अब इसे कोई संयोग कहें या चुनावी रणनीति कि हर बार चुनावी साल में कांग्रेस में नेताओं द्वारा उपमा देने का काम चालू हो जाता हैं। इस काम की शुरुआत जिले के इंका महाबली हरवंश सिंह चालू करते हैं।अभी हाल ही में यह चर्चा जोरों पर है कि विस उपाध्यक्ष हरवंश सिंह अपने समर्थकों को यह समझाने में जुटे हुये हैं कि वट वृक्ष के नीचे कोई भी पौधा पनप नहीं सकता हैं और इंका नेता आशुतोष वर्मा वट वृक्ष है इसलिये इनसे बच के रहें। इसके जवाब में आशुतोष वर्मा के साथी यह कहने में कोई संकोच नहीं कर रहें हैं कि वट वृक्ष के नीचे तो कोई पौधा पनप नहीं सकता लेकिन जहां बेशर्म की बेल फैल जाये वहां कोई पौधा पनपना तो दूर ऊग भी नहीं पाता हैं। राजनीति में इसकी बेहतर मिसाल हरवंश सिंह से बढ़कर कहीं और मिल ही नहीं सकती हैं। इंकाई यह कहते भी देखे जा रहें हैं कि वट वृक्ष में कुछ तो ऐसे गुण होते हैं जिनके कारण उसे पूजने की परंपरा रही हैं लेकिन जहां भी बेशर्म की बेल फैल जाती है लोग उससे परेशान हो जाते और उसे जड़ से उखाड़ने की कोशिश तो करते हैं लेकिन उससे मुक्ति पाना कठिन रहता हैं। अब कलयुग में यदि लोग बेशर्मी से बेशर्म की झाड़ी को ही पूजने लगे तो भला कोई क्या कर सकता है? यहां यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि ऐसा ही कुछ पिछले चुनाव के दौरान भी हुआ था जब हरवंश सिंह ने इंका नेता आशुतोष वर्मा को अमर बेल कहना चालू किया था और कांग्रेसियों को यह बताते थे कि अमर बेल जिस पेड़ से लिपटती है उसका रस चूस कर खुद तो हरी भरी रहती हैं लेकिन पेड़ निचुड़ जाता हैं। तो जवाब में कुछ इंकाइयों ने हरवंश सिंह को हींग कहना शुरू कर दिया था जो कि हरे भरे पेड़ को सुखा कर ठ़ूंठ बना देती हैं। उदाहरण के रूप में कई नेताओं के नाम भी गिनाये जाते थे जो कि उनकी संगत में सूख कर ठूंठ हो गये थे। वैसे तो जिले में कांग्रेस का इतिहास इस बात का गवाह कि काम निकलने के बाद हरवंश सिंह किसी भी नेता से ऐसा किनारा करते हैं कि मानो उसे कभी जानते भी ना हों। ऐसा ही कुछ हरवंश सिंह का सियासी इतिहास भी रहा हैं जिस सीढ़ी से चढ़कर उन्होंने मंजिल पायी है उसे लुड़काने में कभी कोई संकोच नहीं किया और अगली मंजिल पाने के लिये एक नयी सीढ़ी की तलाश कर ली। अभी तक तो वे ऐसा सफलता पूर्वक करते रहें हैं और उम्मीद कर रहें कि अगली वैतरणी भी वे ऐसे ही पार कर लेंगें। 
भाजपा में चल रहीं हैं मोर्चों की नियुक्तियां -मिशन 2013 . 2014 के लिये कांग्रेस और भाजपा में बिसात बिछना चालू हो गयी हैं। दोनों ही दलों में इन दिनों मोर्चा संगठनों में नियुक्ति का दौर शुरू हो गया हैं। नव नियुक्त भाजपा अध्यक्ष नरेश दिवाकर की अनुशंसा पर भाजपा ने गोमती ठाकुर को महिला, रूपा सेठ को व्यापारी,प्रदीप बैस को विधि एवं शफीक पटेल को अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ का जिला अध्यक्ष नियुक्त किया हैं। इनमें से रूपा सेठ और शफीक पटेल पर भाजपा ने दोबारा विश्वास व्यक्त किया हैं। जबकि प्रदीप बैस और गोमती ठाकुर को नया प्रभार दिया गया हैं। विधि प्रकोष्ठ के अध्यक्ष विनोद सोनी थे और महिला प्रकोष्ठ की जिम्मेदारी पूर्व नपा अध्यक्ष पार्वती जंघेला के पास थी। उल्ललेखनीय है कि नपा अध्यक्ष रहते हुये पार्वती जंघेला पर तीन लाख रुपये की रिकवरी प्रदेश सरकार द्वारा निकाली गयी थी जो कि आज तक वसूल नहीं की गयी हैं। भाजपा के नेतृत्व वाली नगरपालिका ने ना कोई कार्यवाही की और ना ही जिला प्रशासन ने सद दिशा में कोई कार्यवाही की हैं। भ्रष्टाचार की शिकायत पर चली लंबी जांच के बाद रिकवरी का यह आदेश सिर्फ कागजों में ही सीमित होकर रह गया हैं। संगठन के महत्वपूर्ण पद में बैठे रहने के कारण उन पर कोई भी हाथ डालने की हिम्मत नहीं कर पाया था। उनके स्थान पर भाजपा की वरिष्ठ महिला नेता गोमती ठाकुर को महिला मोर्चे का प्रभार मिलना भी चर्चित हैं। भाजपायी हल्कों में चर्चा है कि वे जिला भाजपा अध्यक्ष पद के लिये नरेश दिवाकर गुट की प्रबलतम दावेदार थी। तत्कालीन अध्यक्ष सुजीत जैन से नाराज नरेश अब गोमती को अध्यक्ष बनवाना चाह रहें थे। लेकिन राजनैतिक घटनाचक्र कुछ ऐसा घूमा कि सभी दावेदारों को दरकिनार कर नरेश को स्वयं ही अध्यक्ष बनना पड़ा। ऐसे हालात में एक ऐसी नेता को जो कि जिला भाजपा अध्यक्ष पद की दावेदार रही हो उसे जिला महिला मोर्चे का अध्यक्ष बनाना सियासी हल्कों में चर्चित हैं। एक तरह से यदि भाजपा उन्हें प्रदेश संगठन में कोई जगह देती तो यह जरूर उनका सम्मान होता लेकिन जिले के एक मोर्चे की जवाबदारी देना समझ से परे हैं। लेकिन जिला भाजपा अध्यक्ष अभी तक सर्वाधिक महत्वपूर्ण युवा मोर्चे के जिला अध्यक्ष की घोषणा नहीं करा पाये हैं जिसे लेकर यह चर्चा हैं कि वे इस मामले में अपने ही समर्थकों की दावेदारी के कारण असमंजस में हैं।
चर्चित हैं कांग्रेस की गुमनाम नियुक्तियां-वैसे तो कांग्रेस भी अपनी बिसात बिछाने में लगी हैं। जहां एक ओर मोर्चों की नियुक्तियों में भाजपा वरिष्ठ नेताओं को इनमें नियुक्त करने को लेकर चर्चित हैं तो कांग्रेस इस बात को लेकर चर्चित है कि इसमें गुमनाम से चेहरों को ये दायित्व सौंपे जा रहें हैं। कुछ ही दिनों पहले कांग्रेस सेवादल प्रमुख के रूप में डॉ. राजेन्द्र  साहू को नियुक्त किया गया। कई सालों बाद अखबारों में कांग्रेस का कोई ऐसा विज्ञापन छपा जिसमें इंका पुरोधा हरवंश सिंह का नाम तो था लेकिन उनकी फोटो नहीं थी। लेकिन उसमें उनके पुत्र रजनीश सिंह की फोटो जरूर थी। इसके माध्यम से यह संदेश अवश्य गया कि अब कांग्रेसियों को पुत्र प्रसाद भी मिल सकता हैं। वहीं अब जिला महिला कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में कविता कहार की नियुक्ति की चर्चा हैं। बताया जा रहा है कि कविता कहार कुरई विकास खंड़ की रहने वाली हैं। इनका महिला कांग्रेस की गतिविधियों में कितना योगदान रहा हैं? इसका खुलाया तो महिला कांग्रेस की अध्यक्ष रहीं हेमलता जैन ही कर सकतीं हैं। बताया तो यहां तक जा रहा है कि इस मामले में ना तो कांग्रेस अध्यक्ष हीरा आसवानी और ना ही कार्यकारी नरेश मरावी को ही कोई जानकारी है। ऐसे गुमनाम चेहरों की ताजपोशी को लकर इंकाइयों में खासी चर्चा है और कांग्रेसी नेता उन कारणों को तलाशने में जुट गयें हैं जिनकी वजह से जिले इंकाई पट्टेदार हरवंश सिंह ने उन्हें इन पदों से नवाजा हैं। “ मुसाफिर“ 

दर्पण झूठ ना बोले 
09 अप्रेल 2013 से साभार

Monday, April 1, 2013


क्या हरवंश शिवराज नूरा कुश्ती के चलते ही  घोषणायें पूरी ना होने के बाद भी सी.एम.को जिले में नहीं घेरा कांग्रेस ने?
होली के त्यौहार का जिला भाजपा ने भरपूर उपयोग किया और जिले से लेकर मंड़ल स्तर तक होली मिलन समारोह आयोजित किये गये।  आशय यही था कि प्रदेश में अपनी ही सरकार रहने के बाद भी सालों से उपेक्षित पड़ा भाजपा का कार्यकर्त्ता अपने मन की पूरी भड़ास निकाल ले और आने वाले मिशन 2013 और 2014 के लिये एक बार फिर कमर कस ले। होली मिलन के जिला स्तरीय कार्यक्रम में जिले के पूर्व सांसद एवं पूर्व केन्द्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल की उपस्थिति विशेष रूप से उल्लेखनीय रही। प्रहलाद पटेल जबलपुर या बालाघाट क्षेत्र से दिल्ली पहुचने की कोशिश कर रहें हैं। भाजपायी हल्कों में यह भी चर्चा है कि दोनों ही क्षेत्रों के सांसद राकेश सिंह और के.डी.देशमुख अब विधायक का चुनाव लड़ने के उत्सुक हैं। कांग्रेस की बैठक में  चुनावी साल में घोषणावीर मुख्यमंत्री की जिले की अधूरी पड़ी घोषणाओं को लेकर उन्हें घेरने की कोई रणनीति नहीं बनायी गयी। जबकि जिले में उन घोषणाओं के पूरा ना होने से भारी जन असंतोष हैं। विस उपाध्यक्ष हरवंश सिंह की उपस्थिति में हुयी इस बैठक में शिवराज सिंह को कठघरे में कांग्रेस द्वारा खड़ा ना किये जाने को लेकर सियासी हल्कों में तरह तरह की चर्चायें हैं। वैसे भी हरवंश शिवराज नूरा कुश्ती के आरोप जिले से लेकर प्रदेश तक में समय समय पर लगते रहें हैं।  
होली मिलन से भड़ास निकालने की कोशिश की भाजपा ने-होली का त्यौहार वैसे भी साल भर की मन की भड़ास निकाल कर आगे के मधुर संबंधों को मनाने के त्यौहार के रूप में देखा जाता है। इस त्यौहार का जिला भाजपा ने भरपूर उपयोग किया और जिले से लेकर मंड़ल स्तर तक होली मिलन समारोह आयोजित किये गये। मंड़लों में जिला स्तर के नेता भी प्रभारी बनाकर भेजे गये। आशय यही था कि प्रदेश में अपनी ही सरकार रहने के बाद भी सालों से उपेक्षित पड़ा भाजपा का कार्यकर्त्ता अपने मन की पूरी भड़ास निकाल ले और आने वाले मिशन 2013 और 2014 के लिये एक बार फिर कमर कस ले। सियासी हल्कों में जारी चर्चाओं के अनुसार भाजपा का जमीनी स्तर कार्यक र्त्ता जितना अपनी उपेक्षा से दुखी है उतना ही अपने जिला स्तर के उन नेताओं से भी दुखी है जिनकी प्रशासनिक स्तर पर चल तो खूब रही हैं लेकिन वे उनसे यह कह कर पल्ला झाड़ लेते है कि क्या करें उनकी अधिकारी सुन ही नहीं रहें हैं। अब यह तो अभी कहा नहीं जा सकता कि होली मिलन के कार्यक्रम से कितनी भड़ास अभी निकली होगी और कितनी चुनाव में निकलेगी?
प्रहलाद की सक्रियता से क्या बदलेंगें समीकरण? -होली मिलन के जिला स्तरीय कार्यक्रम में जिले के पूर्व सांसद एवं पूर्व केन्द्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल की उपस्थिति विशेष रूप से उल्लेखनीय रही। हालांकि कुछ दिन पहले ही भाजपा नेता संजय जोशी केे एक कार्यक्रम में केवलारी भी आये थे। बालाघाट जिले में उनका आना जाना भी बना रहता हैं। जबलपुर में वे रह रहें हैं। जिला भाजपा अध्यक्ष नरेश दिवाकर के निर्देश पर यह कार्यक्रम आयोजित हुआ था। हालांकि लोग अभी इस बात को भूले नहीं हैं कि जब राष्ट्रीय मजदूर महासंघ के के अध्यक्ष बनने के बाद प्रहलाद पटेल का सिवनी में स्वागत किया गया था तो नरेश समर्थक सुजीत जैन के जिला भाजपा अध्यक्ष रहते हुये उनके सहित अधिकांश पदाधिकारियों ने इस कार्यक्रम से परहेज रखा था और उसमें शामिल तक नहीं हुये थे। भाजपा के मिशन 2014 को ध्यान में रखते हुये प्रहलाद पटेल की सक्रियता को राजनैतिक विश्लेषक लोक सभा चुनाव से जोड़कर देख रहें हैं। प्रहलाद पटेल जबलपुर या बालाघाट क्षेत्र से दिल्ली पहुचने की कोशिश कर रहें हैं। भाजपायी हल्कों में यह भी चर्चा है कि दोनों ही क्षेत्रों के सांसद राकेश सिंह और के.डी.देशमुख अब विधायक का चुनाव लड़ने के उत्सुक हैं। दोनों ही लोकसभा क्षेत्रों से भाजपा चुनाव जीतते आ रही हैं। सिवनी और बालाघाट क्षेत्र से वे भाजपा के सांसद भी रह चुकें हैं। जिले की सिवनी और बरघाट विस सीटें अब बालाघाट संसदीय क्षेत्र में हैं। इस परिप्रक्ष्य में यदि उनकी सक्रियता जिले में बढ़ती है तो जिले के भाजपायी समीकरणों में भारी बदलाव की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता हैं।
क्या हीरा भी हुये हरवंश की कूटनीति का शिकार? -मुख्यमंत्री यिावराज सिंह चौहान के आगमन के एक दिन पूव जिला कांग्रेस कमेटी की विस्तारित कार्यकारिणी की बैठक जिला इंकाध्यक्ष हीरा आसवानी के निवास पर आयोजित हुयी। इस बैठक में ओला,कर्फ्यू सहित अन्य मुद्दों पर चर्चा हुयी लेकिन चुनावी साल में घोषणावीर मुख्यमंत्री की जिले की अधूरी पड़ी घोषणाओं को लेकर उन्हें घेरने की कोई रणनीति नहीं बनायी गयी। जबकि जिले में उन घोषणाओं के पूरा ना होने से भारी जन असंतोष हैं। विस उपाध्यक्ष हरवंश सिंह की उपस्थिति में हुयी इस बैठक में शिवराज सिंह को कठघरे में कांग्रेस द्वारा खड़ा ना किये जाने को लेकर सियासी हल्कों में तरह तरह की चर्चायें हैं। वैसे भी हरवंश शिवराज नूरा कुश्ती के आरोप जिले से लेकर प्रदेश तक में समय समय पर लगते रहें हैं। उल्लेखनीय है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने हरवंश सिंह को शिवराज सिंह के खिलाफ बहुचर्चित डंपर कांड़ की जांच समिति का अध्यक्ष बनाया था। इसके तत्काल बाद ही हरवंश सिंह तत्कालीन सांयसद नीता पटेरिया के साथ हुये एक विवाद के बाद दर्ज करायी गयर एफ.आई.आर. के बाद धारा 307 के जान से मारने के प्रयास के अभियुक्त बन गये थे। इन दोनों के संयोग ने ही हरवंश शिवराज नूरा कुश्ती की नींव रखी थी। ना तो आज तक डंपर कांड़ की जांच रिपोर्ट का कोई अता पता है और ना ही पुलिस आज तक हरवंश सिंह के विरुद्ध धारा 307 का अदालत में कोई चालान ही पेश कर पायी हैं। लेकिन यदि कोई कहे कि कांग्रेस की इस बैठक में किसी को घेरने का काम नहीं किया गया तो यह भी गलत हैं। कांग्रेस की इस बैठक में अपने ही जिला अध्यक्ष हीरा आसवानी को घेंरने की योजना पर अमल किया गया। वैसे इस बात के चर्चे जिले के इंकाई हल्कों में कई महीने से थे कि जिला कांग्रेस अध्यक्ष हीरा आसवानी से हरवंश सिंह खफा हैं और जल्दी ही उपाध्यक्ष नरेश मरावी को कार्यकारी अध्यक्ष बना कर हरवंश सिंह एक तीर से दो शिकार करने वाले हैं। कुछ इंका नेताओं का तो यहां तक दावा है कि विगत सितम्बर माह में जब प्रभारी बी.के.हरप्रिसाद के सामने इंका नेता राजकुमार खुराना ने कांग्रेस की जिले में दुर्गति के लिये हरवंश सिंह को खुलेआम कठघरे में खड़ा किया था तब हरवंश सिंह यह चाहते थे कि खुराना के आरोपों का जवाब दूसरे दिन जिला इंकाध्यक्ष हीरा आसवानी दें लेकिन जब जिला इंकाध्यक्ष ने ऐसा नहीं किया तो उसी वक्त हरवंश सिंह ने भोपाल में ही मौजूद उपाध्यक्ष नरेश मरावी को कार्यकारी अध्यक्ष बनने के लिये तैयार रहने को कह दिया था। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि नरेश मरावी प्रदेश इंकाध्यक्ष कांतिलाल भूरिया के भी नजदीकी हैं।  इस नाते वे इस बार आश्वस्त हैं कि उन्हें बरघाट सीट से विधानसभा की टिकिट मिल जायेगी। केवलारी विस क्षेत्र के आदिवासी नेता नरेश मरावी का विस चुनाव लड़ना चूंकि हरवंश सिंह के लिये असुविधा का कारण बनता इसीलिये इस योजना पर अमल किया गया। अब कार्यकारी अध्यक्ष रहते नरेश मरावी टिकिट से भी वंचित हो जायेंगें और उनकी हरवंश सिंह से नाराजी का कोई सीधा कारण भी नहीं रहेगा।जब हीरा आसवानी सभी जगह जांच करवा कर आ गये और उन्हें कोई विशेष आपरेशन कराने की जरूरत डाक्टरों ने नहीं बतायी उसके बाद उनकी ही मर्जी बताकर इस बैठक में एक प्रस्ताव पास कर नरेश मरावी को कार्यप्रभारी उपाध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव पास कर लिया गया।समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचार के अनुसार तो इस बैठक में नरेश मरावी को कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया गया हैं और उम्मीद की जा रही हैं कि शीघ्र ही इस संबंध में हरवंश सिंह प्रदेश कांग्रेस से आदेश जारी करा देंगें। किसी ने सच ही कहा है कि हरवंश सिंह के लिये राजनीति के आगे पारिवारिक संबंधाों की कोई कीमत नहीं हैं। “मुसाफिर”  
सा. दर्पण झूठ ना बोले
2 अप्रेल 2013 से साभार