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Monday, October 12, 2015

ना जाने क्या हो गया है जिले की फिजा और लोगों के मिजाज को?
एक वक्त था जब सिवनी जिला अविभाजित मध्यप्रदेश में शांति और अमन चैन का टापू माना जाता था। पूरे प्रदेश में जिले के साम्प्रदायिक सौहार्द की मिसाल दी जाती थी। मिसाल भी ऐसे ही नहीं दी जाती थी। उसकी भी एक खास वजह थी। एक समय जब 1962 में जबलपुर में सांप्रदायिक दंगा हुआ था, जिसे ऊषा भार्गव कांड़ के नाम से जाना जाता है,तब इसकी चपेट में पूरा प्रदेश आ गया था लेकिन जबलपुर की सीमा से लगा सिवनी जिला इससे अछूता रहा था और यहां आपसी भाई चारा बना रहा था। जबकि सिवनी में भी शांति मार्च निकाला गया था।
जिले में पहली बार नवम्बर 1971 में सांप्रदायिक सदभाव बिगड़ा था। एक व्यक्ति के पास से मांस पकड़ने की घटना हुयी थी तब उस समय जिला मुख्यालय सिवनी में कर्फ्यू भी पहली बार लगा था। लेकिन इस दौरान भी आगजनी और लूट पाट की घटनायें ही हुयीं थीं और किसी की जान नहीं गयी थी।
इस घटना के बाद जिले में ऐसी कोई सांप्रदायिक घटना नहीं घटी थी जिसके कारण कानून और व्यवस्था भंग हुयी हो। लेकिन 6 दिसम्बर 1992 के अयोध्या में घटी घटना के कारण पूरे देश में सांप्रदायिक तनाव हो गया था और जगह जगह दंगे हुये थे। अयोध्या में राम जन्म भूमि और बाबरी मस्जिद विवाद लंबे समय से चल रहा था। हिन्दू घर्मावलंबी जिसे राम मंदिर कहते थे उसे ही मुस्लिम घर्मावलंबी बाबरी मस्जिद कहते थे तो सरकार उसे विवादास्पद ढ़ांचा कहती थी। इस दिन अध्येध्या में एकत्रित हुये कारसेवकों ने इसे गिरा दिया था और देश में दंगे भड़क गये थे। इस दौरान सिवनी में 19 दिन कर्फ्यू लगा रहा था जो अब तक का रिकार्ड है। इस दौरान भी आगजनी और लूट पाट की घटनायें तो हुयी लेकिन किसी की भी जान नहीं गयी थी। इस घटना के बाद ही जिले के माथे पर सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील जिला होने का कलंक लग गया और सरकार की नजर में यह संवेदनशील जिला हो गया। लेकिन इसके बावलूद भी सरकार ने ऐसे कोई सुरक्षात्मक उपाय नहीं किये कि जिले के अमन चैन को बनाये रखने के लिये जिला प्रशासन को तत्काल सुविधा हो सके। और तो और जिले में एसएएफ की एक बटालियन तक रखने की व्यवस्था नहीं की गयी जिससे वक्त आने पर फोर्स की कमी महसूस नहीं होती।
इस घटना के बाद 2013 तक जिले में कर्फ्यू लगाने की नौबत नहीं आयी हालांकि जिला मुख्यालय में सांप्रदायिक कारणों से तनाव जरूर रहे। जिला मुख्यालय में पुलिस थाने में पूंछ तांछ के दौरान 4 दिसम्बर 1995 को शरीफ नामक मुस्लिम युवक की मौत हो गयी थी। इससे शहर में सांप्रदायिक तनाव तो जरूर पैदा हो गया था परंतु कर्फ्यूू लगाने की नौबत नहीं आयी थी। बरघाट में 11 जुलाई 2004 में गा्रम खारी के एक मुस्लिम परिवार के सदस्य वारिस की हत्या से भी सांप्रदायिक तनाव हो गया था लेकिन बिना कर्फ्यू लगाये ही स्थिति नियंत्रण में कर ली गयी थी।
इसके बाद बकरीद के मौके पर 11 जुलाई 2006 को शहर में हुये ऊूंट कांड़ को लेकर भी तनाव तो जरूर फैल गया था लेकिन उस समय लोगों को कर्फ्यू का दंश नहीं झेलना पड़ा था।  इसी तरह 17 दिसम्बर 2009 को कान्हीवाड़ा थाने के अंर्तगत ग्राम सुकतरा के एक मंदिर में घटी घटना के कारण भी जिला में मुख्यालय सांप्रदायिक तनाव फैल गया था और लोग सड़कों पर उतर आये थे। लेकिन इस दौरान भी बिना कर्फ्यू लगे स्थिति नियंत्रण में हो गयी थी। 
जिले के छपारा कस्बे में 2 फरवरी 2013 केो एक आदिवासी युवक के साथ घटी घटना के कारण छपारा के साथ साथ सिवनी नगर में भी 6 फरवरी से सांप्रदायिक सदभाव बिगड़ गया था और फिर तरह तरह की घटनायें घटित होने लगीं थीं। महावीर टाकीज के पास एकत्रित अनियंत्रित हो रही भीड़ के कारण दिनांक 8 फरवरी को जिला प्रशासन ने समय दिये बिना ही तत्काल प्रभाव से कर्फ्यू लगा दिया था जिससे कई निर्दोष नागरिक भी पिट गये थे। शहर को इस कर्फ्यू से 16 फरवरी को निजात मिली थी।
बीते दिनों जिले के बरघाट कस्बे में घटी एक घटना ने सांप्रदायिक सौहार्द को तहस नहस कर के रख दिया। 4 अक्टूबर 2015 को भाजपा के बरघाट मंड़ल के महामंत्री और ग्राम पंचायत लोहारा के पूर्व सरपंच कपूरचंद ठाकरे के साथ एक छोटी सी घटना को लेकर रजा और नासिर ने उसके साथ इतनी गंभीर मारपीट कर दी थी कि वह ना सिर्फ कोमा में आ गया वरन उसी दिन रात को तीन बजे उसने नागपुर के अस्पताल में दम तोड़ दिया। इस गंभीर और निंदनीय आपराधिक कृत्य के लिये पुलिस ने तत्काल ही उसी दिन दोनों आरोपियों को धारा 307 के तहत हिरासत में लेकर कोर्ट में पेश कर जेल में भेज दिया था। इस क्रिया की प्रतिक्रिया होनी थी लेकिन इतनी वीभत्स्य हो जायेगी ऐसा सोचा भी नहीं था। 5 अक्टूबर को सुबह से लोगों का जुड़ना चालू हो गया और एक रैली निकाली गयी जिसने आरोपियों के घरों के अलावा कई जगह तोड़ फोड़,लूट पाट और आगजनी की घटना भी कर डाली। इसी दौरान मस्जिद से एक आपत्तिजनक एनाउंसमेंट होने का भी आरोप लगा। पुलिस बल की कमी के कारण प्रशासन भी मजबूर था। पुलिस बल के आते ही बरघाट में 5 अक्टूबर को दोपहर लगभग 3 बजे पहली बार कर्फ्यू लगा दिया गया और स्थिति को नियंत्रित किया गया। ऐसे में एक सवाल यह भी उठता है कि जब 4 अक्टूबर की रात को तीन बजे ही चोटिल भाजपा नेता की मृत्यु हो गयी तो सुरक्षात्मक उपाय क्यों नहीं किये गये? उसी समय से अतिरिक्त पुलिस बल बुलाने के प्रयास क्यों नहीं किये गये? यह बात सभी मानते हैं कि पुलिस बल की कमी के कारण ही बरघाट की फिजा बिगड़ गयी थी। प्रशासन ने साक्ष्यों के आधार पर फिजा बिगाड़ने वालों पर कार्यवाही करना प्रारंभ की और 7 अक्टूबर को पांच लोगों को हिरासत में लेकर जेल भेज दिया जिसमें बरघाट नगर पंचायत के पूर्व अध्यक्ष भाजपा नेता विजय सूर्यवंशी भी शामिल थे। इसके बाद ही 8 अक्टूबर को सांसद,विधायक और जिला भाजपा अध्यक्ष के नेतृत्व में एक विशाल प्रनिनिधि मंड़ल ने जिला प्रशासन से भेंट कर यह मांग कर डाली कि इस मामले में किसी भी निर्दोष व्यक्ति के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं होना चाहिये। इसके बाद से अभी तक धर पकड़ की कार्यवाही थम गयी है। बरघाट में 12 अक्टूबर से दिन में सोलह घंटे की छूट दी गयी है।
इन घटनाओं को देखते हुये सरकार से यह अपेक्षा है कि जिले में एक एसएएफ की बटालियन रखने की व्यवस्था करे ताकि पुलिस बल की कमी के कारण जिले की फिजा फिर कभी ना बिगड़ पाये। 

दर्पण झूठ ना बोने,सिवनी
13 अक्टूबर 2015 से साभार 

Tuesday, September 15, 2015

कांग्रेस से गद्दारी कर पद पाने का सालों से चला आ रहा सिलसिला प्रदेश कांग्रेस के पुर्नगठन में बखूबी दिखायी दिया 
एक अर्से से लंबित रहा प्रदेश कांग्रेस का अंततः पुर्न गठन हो ही गया है। इस बार जिले के तीन नेताओं को इसमें स्थान दिया गया है। केवलारी के विधायक रजनीश हरवंश सिंह को महामंत्री एवं राजा बघेल और बरघाट के विनोद वासनिक को सचिव बनाया गया है। जहां एक ओर 40 सदस्यीय महामंत्रियों की सूची में रजनीश सिंह का नाम 31 वें नंबंर पर हैं तो 80 सदस्यीय सचिवों की सूची में राजा बघेल का नाम दूसरे नंबंर है। इसे भी राजनैतिक कद मापने के हिसाब से एक महत्वपूर्ण पहलू माना जा रहा है। लेकिन विनोद वासनिक की नियुक्ति ने इसमें भी एक पेंच फंसा दिया है कि प्रदेश स्तर पर कौन किससे भारी है? जिले में यह भी चर्चित है कि जिन 16 जिलों में नये कांग्रेस अध्यक्ष बनना है उनमें सिवनी जिला भी शामिल है। इसके प्रयास में लगे नेता यह मानकर चल रहें हैं कि ऐसा होना ही है।प्रदेश कांग्रेस में लिये गये तीनों ही नेता सिर्फ कमलनाथ के प्रति ही निष्ठावान नहीं हैं। इन सभी की निष्ठा प्रदेश के अन्य क्ष्त्रपों के लिये भी है। इसलिये राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि जिला कांग्रेस का अध्यक्ष पद उसी केा मिलेगा जिसकी निष्ठा सिर्फ कमलनाथ के प्रति हो। इसलिये परिवर्तन होने की स्थिति में राजकुमार पप्पू खुराना की ताजपोशी निश्चित मानी जा रही है। पालिका अध्यक्ष आरती शुक्ला ने प्रस्तावों को तय करने के पहले अनौपचारिक रूप से पार्टी के पार्षदों की बैठक करके विचार भी किया गया था। लेकिन भाजपा की गुटबाजी ने एक बार फिर पालिका में पूर्ण बहुमत होने के बाद भी आखिर फजीता ही कराया।
राजा दूसरे तो रजनीश का नाम 31 वें नंबंर पर -एक अर्से से लंबित रहा प्रदेश कांग्रेस का अंततः पुर्न गठन हो ही गया है। अभी तक प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव पुरानी कार्यकारिणी से ही काम चला रहे थे। इस बार जिले के तीन नेताओं को इसमें स्थान दिया गया है। केवलारी के विधायक रजनीश हरवंश सिंह को महामंत्री एवं राजा बघेल और बरघाट के विनोद वासनिक को सचिव बनाया गया है। अखबारों में प्रकाशित समाचारों के अनुसार विनोद वासनिक की नियुक्ति को लेकर विवाद सामने आया है। बताया गया है कि हाल ही में हुये बरघाट नगर पंचायत के चुनाव में उन पर अपने अनुज निर्दलीय रंजीत वासनिक के पक्ष में काम करने का आरोप लगा था जिसे लेकर जिला कांग्रेस ने प्रदेश कांग्रेस की अनुशंसा पर 6 साल के लिये निष्कासित कर दिया गया था। उल्लेखनीय है कि इस चुनाव में कांग्रेस के अनिल ठाकुर मात्र 45 वोटों से रंजीत वासनिक से चुनाव हार गये थे। ऐसी स्थिति में वे प्रदेश कांग्रेस के सचिव कैसे बन गये? यह एक शोध का विषय बना हुआ है। वैसे जिले में यह कोई एकमात्र नया उदाहरण नहीं हैं। इसके पहले भी नगरपालिका सिवनी के 2009 के चुनाव में कांग्रेस के प्रत्शयशी संजय भारद्वाज की भीतरघात की शिकायत पर राजा बघेल के खिलाफ भी अनुशासनात्मक कार्यवाही की गयी थी। लेकिन पिछली बार उन्हें भी प्रदेश कांग्रेस में सचिव बना दिया गया था। वैसे तो पिछले कई वर्षों से जिले में यह परंपरा सर चल रही है कि चुनाव में पार्टी की खिलाफत करो और बाद में पार्टी में बड़ा पद लेकर पुरुस्कृत हो जाओं। शायद जिले में कांग्रेस के पतन का यह भी एक बड़ा कारण रहा है जिससे पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्त्ता हतोत्साहित हो रहें है। पार्टी में पद देते समय पार्टी के प्रति निष्ठा के बजाय नेताओं प्रति निष्ठा भारी पड़ जाती हैं और पार्टी के लिये मरने मिटने वाले लोग मुंह ताकते रह जाते है। रालनैतिक विश्लेषकों का यह भी मानना है कि यदि सूची में क्रमांक देखा जाये तो एक बात और उभर कर सामने आती है कि जहां एक ओर 40 सदस्यीय महामंत्रियों की सूची में रजनीश सिंह का नाम 31 वें नंबंर पर हैं तो 80 सदस्यीय सचिवों की सूची में राजा बघेल का नाम दूसरे नंबंर है। इसे भी राजनैतिक कद मापने के हिसाब से एक महत्वपूर्ण पहलू माना जा रहा है। लेकिन विनोद वासनिक की नियुक्ति ने इसमें भी एक पेंच फंसा दिया है कि प्रदेश स्तर पर कौन किससे भारी है?
यदि बदलाव हुआ तो पप्पू होंगें कांग्रेस अध्यक्ष-प्रदेश कांग्रेस के पुर्नगठन के साथ ही जिले में यह भी चर्चित है कि जिन 16 जिलों में नये कांग्रेस अध्यक्ष बनना है उनमें सिवनी जिला भी शामिल है। इसके प्रयास में लगे नेता यह मानकर चल रहें हैं कि ऐसा होना ही है। जबकि अभी प्रदेश कांग्रेस ने उन जिलों के नाम घोषित नहीं किये हैं जिनके अध्यक्ष बदले जाने का प्रस्ताव आला कमान के पास लंबित है। वैसे भी महाकौशल क्षेत्र के क्षत्रप पूर्व केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ माने जाते हैं। प्रदेश कांग्रेस में कांग्रेस के जिन तीन नेताओं रजनीश सिंह,राजा बघेल और विनोद वासनिक को लिया गया है उनके लिये कमलनाथ की सहमति तो जरूर होगी लेकिन सियासी हल्कों में यह भी चर्चा है कि ये तीनों ही नेता सिर्फ कमलनाथ के प्रति ही निष्ठावान   नहीं हैं। इन सभी की निष्ठा प्रदेश के अन्य क्ष्त्रपों के लिये भी है। इसलिये राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि जिला कांग्रेस का अध्यक्ष पद उसी केा मिलेगा जिसकी निष्ठा सिर्फ कमलनाथ के प्रति हो। वर्तमान जिला कांग्रेस अध्यक्ष हीरा आसवानी को बदलने का प्रस्ताव यदि विचाराधीन होगा तो ऐसी स्थिति में सिवनी विस के दो बार कांग्रेस प्रत्याशी रहें तथा दो बार नगरपालिका अध्यक्ष की टिकिट दिलाने वाले राजकुमार पप्पू खुराना का अध्यक्ष बनना लगभग तय माना जा रहा है। वैसे जिले में अल्पसंख्यक नेता के रूप में असलम भाई का नाम भी चर्चा में है लेकिन तकनीकी रूप से पप्पू खुराना भी अल्पसंख्यक वर्ग में आतें हैं। राजनैतिक समीक्षकों का मानना है कि जिले के कमलनथ खेमे से किसी और नेता का नाम चर्चा में नहीं हैं इसलिये परिवर्तन होने की स्थिति में राजकुमार पप्पू खुराना की ताजपोशी निश्चित मानी जा रही है।
गुटबाजी का खामियाजा भुंगता पालिका में भाजपा ने -नगर पालिका के सम्मेलन में विचारार्थ लाये जाने वाले तीस प्रस्तावों में से कुछ को लेकर बहुम कुछ राजनैतिक दांव पेंच खेले गये है। पालिका अध्यक्ष आरती शुक्ला ने प्रस्तावों को तय करने के पहले अनौपचारिक रूप से पार्टी के पार्षदों की बैठक करके विचार भी किया गया था। लेकिन भाजपा की गुटबाजी ने एक बार फिर पालिका में पूर्ण बहुमत होने के बाद भी आखिर फजीता ही कराया। ऐसा क्यों हो रहा है? इसे लेकर भाजपायी हल्कों में तरह तरह की चर्चायें सुनायी देती रहतीं है। सिवनी विधानसभा क्षेत्र से आगामी चुनाव लड़ने के इच्दुक भाजपा नेताओं की यह इच्छा नहीं हैं आरती शुक्ला का कार्यकाल अच्छा रहें क्योंकि उनकी राजनैतिक पारिवारिक पृष्ठ भूमि है और उनके ससुर स्व.महेश शुक्ला  ना केवल सिवनी विधानसभा के पहले भाजपा विधायक थे वरन पटवा सरकार में मंत्री भी रहे थे। इसीलिये अंदरूनी तौर पर भाजपा नेताओं द्वारा ही समय समय पर दांव पेंच खेले जाते रहे हैं। वैसे भी पालिका में भाजपा की गुटबाजी खुल कर देखी जा सकती है। इस बार तीन सड़कों के प्रस्ताव को लेकर भी भारी राजनीति हुयी। एसपी बंगले अपर बैनगंगा कालोनी वाली रोड़ सर्वाधिक राजनीति में फंसी क्योंकि इस रोड़ पर सिवनी विधायक मुनमुन राय का घर है। विरोध के इस एक मात्र मुद्दे ने यह तक भुला दिया कि इस रोड़ से पूरे शहर के सैकड़ों बच्चे कोचिंग के लिये दो पहिया वाहनों से जाते हैं। क्योंकि शहर की सबसे अच्छी कोंचिंग इसी रोड़ पर है। समाज के जागरूक लोगों का मुनमुन विरोध इस कदर हावी रहा है कि इस संवेदनशील मुद्दे तक को दरकिनार दिया। जनसंपर्क कार्यालय से बबरिया स्कूल तथा बाहुबली से पालेटेक्निक कालेज वाली रोड़ पर भी रानजीति गयी जबकि इन्हीं सड़कों काी जर्जर हालत के समाचार सुर्खी बने रहते थे। समय के साथ सुविधानुसार राजनीति का यह सिलसिला ही जिले के विकास में बाधक साबित हो रहा है।“मुसाफिर”
साभार
दर्पण झूठ ना बोले, सिवनी
15 सितम्बर 15   





Monday, August 31, 2015

लखनादौन को जिला बनाने की मांग
क्या एक विधानसभा क्षेत्र  की सीमाओं का विस्तार दो जिलों तक हो सकता है या फिर होगा परिसीमन?
तीस तक नहीं हो सकता परिसीमनःप्रस्तावित क्षेत्र में पहले दो ही विस क्षेत्र थेः अब तीन विस क्षेत्र आते हैं प्रस्तावित क्षेत्र मेंः कैसे होगा  इसका हल? 
सिवनी। लखनादौन को जिला बनाने की मांग बहुत पुरानी हैं। आज से लगभग 12-13 साल पहले सोनिया गांधी के लखनादौन प्रवास की तैयारियों की कांग्रेस की बैठक में डॉ. आनंद तिवारी ने यह मांग उठायी थी तब यह कह कर दबा दिया गया था कि जिला क्या संभाग बनाने की मांग कर लो। लेकिन अंदर ही अंदर यह मांग सुलगती रही और अब इसे लेकर विगत पंद्रह दिनों से आंदोलन चल रहा है जिसे भारी जन समर्थन भी मिल रहा है।
जब परिसीमन हुआतो लोकसभा और जिले का एक विस क्षेत्र विलुप्त हो गया तब क्षेत्र कुछ इस तरह से काटे गये कि आज लखनादौन जिले के लिये जो सीमायें प्रस्तावित की जा रहीं हैं उसमें जिले के चार में से तीन विस क्षेत्रों के हिस्से शामिल है। इन क्षेत्रों में लखनादौन के अलावा केवलारी और सिवनी विस क्षेत्र के हिस्ससे भी आ रहें हैं जो कि छपारा विकास खंड़ के इलाके है। 
यहां यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है वर्तमान परिसीमन के पहले जिलें के लो पांच विस क्षेत्र थे एनमें से दो लखनादौन और घंसौर क्षेत्र छपारा,लखनादौन,घंसौर और धनोरा विकास खंड़ में आते थे जो कि वर्तमान में प्रस्तावित लखनादौन जिले की सीमायें है। शेष चार विकासखंड़ों सिवनी,बरघाट,केवलारी और कुरई में सिवनी,केवलारी और बरघाट विस क्षेत्र आते थे जो कि सामान्य क्षेत्र थे। 
पिछले परिसीमन के दौरान केन्द्र की अटल सरकार ने यह प्रतिबंध लगा दिया था कि सन 2030 तक इसके बाद परिसीमन नहीं हो सकेगा। वैसे हर दस साल में जनगणना के बाद देश के लोकसभा एवं विधानसभा क्षेत्रों का परिसीमन होता था। पछिला परिसीमन 2001 की जन गणना के आधार पर हुआ था जबकि अब 2011 की जन गणना भी पूरी हो गयी है लेकिन केन्द्र सरकार के प्रतिबंध के कारण परिसीमन 2030 तक होना संभव नहीं है। 
सामान्य तौर पर एक से अधिक जिलों में लोकसभा क्षेत्र की सीमायें तो विस्तारित होतीं हैं लेकिन विधानसभा क्षेत्रों के मामले में ऐसी कोंई नजीर सामने नहीं आयीं है। ब्लकि परिसीमन आयोग के निर्देश ऐसे रहते है कि विस क्षेत्रों के परिसीमन में जहां तक संभव हो ग्राम पंचायत भी ना तोड़ी जाये तो फिर जिले से ही बाहर जाने का तो कोई सवाल ही नहीं उठता हैं।
इस मांग को लेकर चलाये जा रहे इस आंदोलन को भारी जन समर्थन मिल रहा हैं। जन भावनाओं का प्रजातंत्र में आदर किया जाना चाहिये यह भी सही हैं लेकिन यदि विस क्षेत्रों वाला पेंच फंसा तो फिर इसका क्या और कैसे हल निकलेगा? इस पर भी विचार करना बहुत जरूरी है नहीं तो जन भावनाओं के साथ एक बड़ा खिलवाड़ हो जायेगा।  
दर्पण ढूठ ना बोले सिवनी
01 सितम्बर 2015 से साभार

Monday, August 24, 2015

अतिथि बनाकर बुलाने पर भी गौरी भाऊ से परहेज के चलते क्या सिवनी आने से  कतराते हैं सांसद बोध सिंह?
बालाघाट संसदीय क्षेत्र के सांसद बोधसिंह भगत भी एक अलग ही मिजाज के आदमी है। यदि कोई किसी को अतिथि बनाकर बुलाता है तो ऐसा महसूस होता है कि उसे सम्मान दिया जा रहा है और उसका सीना गर्व से फूल जाता है। लेकिन सांसद भगत तो अपने ही क्षेत्र में अपनी ही पार्टी की सरकार के कार्यक्रमों में अतिथि बनाये जाने के बाद भी परहेज कर जाते हैं और शरीक नहीं होते हैं। जबकि जिले की बरघाट और सिवनी विस सीट से उन्हें लगभग 70 हजार वोटों की बढ़त मिली थी नहीं तो बालाघाट जिले के 6 विस क्षेत्रों से तो वे मात्र 20 हजार वोट की ही लीड ले पाये थे। भाजपायी हल्कों में चल रही चर्चाओं के अनुसार सांसद जी की गौरी भाऊ से पटती नहीं हैं इसलिये वे गोल मार जाते है। विगत 20 अगस्त को व्यापम घोटाले के विरोध में जबलपुर में पूर्व केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ के नेतृत्व में विशाल जेल भरो आंदोलन हुआ जिसमें लगभग 20 हजार गिरफ्तारी हुयी।सभी लोगों ने अपने अपने निजी प्रयास किये और अपने नेतृत्व में अपने समर्थकों को ले जाने का प्रयास किया। कांग्रेस के दिग्गज नेता कमलनाथ के सामने अपनी शानदार उपस्थिति दर्ज कराना ही नेताओं का लक्ष्य रहा। शिवराजसिंह चौहान ने जिले को मेडिकल कॉलेज की सौगात देने की घोषणा करके जनता की खूब तालियां बटोरीं थीं। लेकिन अब ऐसा प्रतीत हो रहा है कि सिवनी के भाग्य से मेडिकल कालेज छिन रहा है ।  
अतिथि बनने पर भी नहीं आते सांसद बोधसिंह-बालाघाट संसदीय क्षेत्र के सांसद बोधसिंह भगत भी एक अलग ही मिजाज के आदमी है। यदि कोई किसी को अतिथि बनाकर बुलाता है तो ऐसा महसूस होता है कि उसे सम्मान दिया जा रहा है और उसका सीना गर्व से फूल जाता है। लेकिन सांसद भगत तो अपने ही क्षेत्र में अपनी ही पार्टी की सरकार के कार्यक्रमों में अतिथि बनाये जाने के बाद भी परहेज कर जाते हैं और शरीक नहीं होते हैं। जबकि जिन मतदाताओं ने उन्हें चुनकर सांसद बनाया है उनके प्रति तो उनके बहुत सारे कर्त्तव्य भी है लेकिन ना जाने क्यों वे सिवनी जिले से ना केवल मंुह चुराते है वरन यहां की समस्याओं के प्रति भी गंभीर नहीं है। जबकि जिले की बरघाट और सिवनी विस सीट से उन्हें लगभग 70 हजार वोटों की बढ़त मिली थी नहीं तो बालाघाट जिले के 6 विस क्षेत्रों से तो वे मात्र 20 हजार वोट की ही लीड ले पाये थे। भाजपायी हल्कों में चल रही चर्चाओं के अनुसार सांसद जी की गौरी भाऊ से पटती नहीं हैं इसलिये वे गोल मार जाते है। अब भाजपा के इन दो दिग्गज नेताओं की लड़ाई का खामियाजा जिले को भुगतना पड़ रहा है। अभी हाल ही में बरघाट में नगर पंचायत में लगभग सवा करोड़ रुपयों के कामों का भूमिपूजन प्रभारी मंत्री गौरीशंकर बिसेन के द्वारा किया गया जिसमें सांसद बोधसिंह भगत और फग्गनसिंह कुलस्ते दोनों ही विशिष्ट अतिथि बनाये गये थे। इसी तरह 15 अगस्त को जिले के दलसागर तालाब में दलसागर महोत्सव आयोजित किया गया इसमें भी ओनों ही सांसद विशिष्ट अतिथि थे लेकिन दोनों ही कार्यक्रमों में सांसद कुलस्ते तो आये लेकिन बोधसिंह भगत ने हमेशा की तरह कन्नी काट लिया। जबकि बरघाट और सिवनी दोनों ही विधानसभा क्षेत्र कुलस्ते के संसदीय क्षेत्र में नहीं आते है। कार्यक्रमों से परहेज करें और चाहें तो जिले में बिल्कुज ना आये लेकिन कम से कम जिले की समस्याओं के प्रति तो जागरूक रहें तो वैसा भी नहीं है। फोर लेन के मामले में जरूर उनके एक दो बयान आये लेकिन वे भी सही नहीं निकले। रामटेक गोटेगांव नई रेल लाइन और छिंदवाड़ा नैनपुर के गेज परिवर्तन के संबंध में भी ना जाने क्यों भगत जी ने चुप्पी ही साध रखी है जबकि ये तीनों ही मांगें केन्द्र सरकार से संबंधित हैं और बिना उनके प्रयास किये पूरी भी नहीं होने वाली हैं। जिले के भाजपा के इकलौते विधायक कमल मर्सकोले और दोनों भाजपा सांसदों को इसं संबंध में कारगर पहल करना चाहिये ताकि जिले के लोगों को ये मूलभूत सुविधायें मिल सकें। 
कमलनाथ के नेतृत्व में हुआ जंगी प्रर्दशनःजिले में बजी अपनी अपनी ढपली -विगत 20 अगस्त को व्यापम घोटाले के विरोध में जबलपुर में पूर्व केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ के नेतृत्व में विशाल जेल भरो आंदोलन हुआ जिसमें लगभग 20 हजार लोगों ने अपनी गिरफ्तारी दी। इस आंदोलन में जिले के कांग्रेस नेताओं ने भी अलग अलग ग्रुप में अपनी भागीदारी की है। केवलारी के इंका विधायक रजनीश सिंह के नेतृत्व में स्व. हरवंश सिंह के समर्थकों ने अपनी गिरफ्तारी दी। इसमें जिला कांग्रेस अध्यक्ष हीरा आसवानी,राजा बघेल, असलम भाई और मोहन चंदेल सहित कई नेता शामिल थे। जबकि एक अलग ग्रुप के रूप में सिवनी विस के पूर्व प्रत्याशी राजकुमार पप्पू खुराना के नेतृत्व में उनके समर्थकों ने भी हिस्सा लिया। उल्लेखनीय है कि व्यापम घोटाले की सी.बी.आई. जांच के बाद प्रदेश में यह पहला विशाल आंदोलन था जिसकी अगुवायी पूर्व केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ ने की है। कांग्रेस की आक्रामक नीति के चलते ऐसे और भी आयोजन किया जाना प्रस्तावित है। वेस्े तो प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने जबलपुर संभाग के अन्य जिलों में इसमें शामिल होने के लिये कोई दिशा निर्देश जारी नहीं किये थे। ऐसा दावा जिले के कांग्रेस के पदाधिकारियों का था। वैसे भी जिले में कांग्रेस या कांग्रेस के नेताओं के द्वारा कोई ऐसे संगठित प्रयास नहीं किये गये कि जिले के ज्यादा से ज्यादा लोग इसमें पहुंच सकें। सभी लोगों ने अपने अपने निजी प्रयास किये और अपने नेतृत्व में अपने समर्थकों को ले जाने का प्रयास किया। ब्लाक कांग्रेस के लेवल पर भी कोई प्रयास नहीं हुये। कांग्रेस के दिग्गज नेता कमलनाथ के सामने अपनी शानदार उपस्थिति दर्ज कराना ही नेताओं का लक्ष्य रहा। इसीलिये सभी नेता अपनी अपनी ढपली बजाते देखे गये।
क्या मुख्यमंत्री को अपनी ही जुबान की कद्र नहीं हैं? -कई साल पहले सविनी के मिशन स्कूल की सभा में मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने जिले को मेडिकल कॉलेज की सौगात देने की घोषणा करके जनता की खूब तालियां बटोरीं थीं। बीच में प्रदेश सरकार ने सदन और प्रेस कॉंफ्रेंस में दावा किया था कि केन्द्र सरकार को छिंदवाड़ा और शिवपुरी नहीं वरन मूल प्रस्ताव के अनुरुप सिवनी और सतना के प्रस्ताव भेजे गये हैं। फिर भाजपा नेताओं ने दावा किया कि यहां पीपीडी मोड का कॉलेज खुलेगा। जेकिन पीपीडी मोड के कालेजों के समय भी सरकार ने सिवनी का प्रस्ताव लंबित रख दिया और ऐसा अखबारों से पता चला है कि केन्द्र सरकार द्वारा पोषित मेडिकल कालेजों की सूची में भी पूर्व की ही भांति छिंदवाड़ा और शिवपुरी का प्रस्ताव भेज दिया गया है। अब ऐसा प्रतीत हो रहा है कि सिवनी के भाग्य से मेडिकल कालेज छिन रहा है जबकि मेडिकल कालेज के हिसाब से 80 के दशक में ही कु. विमला वर्मा के समय सरकारी अस्पताल खुल चुका था। भाजपा और उसके जनप्रतिनिधि शायद जिले के हितों का इसलिये ध्यान नहीं रखने के आदी हो गये हैं कि बिना कुछ दिये वे चुनाव जीत जाते हैं तो फिर भला कुछ देने से क्या फायदा। रहा सवाल विपक्ष याने कांग्रेस के विधायकों रजनीश सिंह और योगेन्द्र सिंह का तो सिवनी मुख्यालय उनके क्षेत्र में नहीं आता है तो वे भी रुचि लेते नहीं दिखते है।वैसे तो एक कहावत है कि झूठ बोले कौव्वा काटे यह चरितार्थ होती है या नहीं और मुख्यमंत्री को कौव्वा काटता है कि नहीं?“मुसाफिर”   
दर्पण झूठ ना बोले सिवनी
24 अगस्त 2015 से साभार
अतिथि बनाकर बुलाने पर भी गौरी भाऊ से परहेज के चलते क्या सिवनी आने से  कतराते हैं सांसद बोध सिंह?
बालाघाट संसदीय क्षेत्र के सांसद बोधसिंह भगत भी एक अलग ही मिजाज के आदमी है। यदि कोई किसी को अतिथि बनाकर बुलाता है तो ऐसा महसूस होता है कि उसे सम्मान दिया जा रहा है और उसका सीना गर्व से फूल जाता है। लेकिन सांसद भगत तो अपने ही क्षेत्र में अपनी ही पार्टी की सरकार के कार्यक्रमों में अतिथि बनाये जाने के बाद भी परहेज कर जाते हैं और शरीक नहीं होते हैं। जबकि जिले की बरघाट और सिवनी विस सीट से उन्हें लगभग 70 हजार वोटों की बढ़त मिली थी नहीं तो बालाघाट जिले के 6 विस क्षेत्रों से तो वे मात्र 20 हजार वोट की ही लीड ले पाये थे। भाजपायी हल्कों में चल रही चर्चाओं के अनुसार सांसद जी की गौरी भाऊ से पटती नहीं हैं इसलिये वे गोल मार जाते है। विगत 20 अगस्त को व्यापम घोटाले के विरोध में जबलपुर में पूर्व केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ के नेतृत्व में विशाल जेल भरो आंदोलन हुआ जिसमें लगभग 20 हजार गिरफ्तारी हुयी।सभी लोगों ने अपने अपने निजी प्रयास किये और अपने नेतृत्व में अपने समर्थकों को ले जाने का प्रयास किया। कांग्रेस के दिग्गज नेता कमलनाथ के सामने अपनी शानदार उपस्थिति दर्ज कराना ही नेताओं का लक्ष्य रहा। शिवराजसिंह चौहान ने जिले को मेडिकल कॉलेज की सौगात देने की घोषणा करके जनता की खूब तालियां बटोरीं थीं। लेकिन अब ऐसा प्रतीत हो रहा है कि सिवनी के भाग्य से मेडिकल कालेज छिन रहा है ।  
अतिथि बनने पर भी नहीं आते सांसद बोधसिंह-बालाघाट संसदीय क्षेत्र के सांसद बोधसिंह भगत भी एक अलग ही मिजाज के आदमी है। यदि कोई किसी को अतिथि बनाकर बुलाता है तो ऐसा महसूस होता है कि उसे सम्मान दिया जा रहा है और उसका सीना गर्व से फूल जाता है। लेकिन सांसद भगत तो अपने ही क्षेत्र में अपनी ही पार्टी की सरकार के कार्यक्रमों में अतिथि बनाये जाने के बाद भी परहेज कर जाते हैं और शरीक नहीं होते हैं। जबकि जिन मतदाताओं ने उन्हें चुनकर सांसद बनाया है उनके प्रति तो उनके बहुत सारे कर्त्तव्य भी है लेकिन ना जाने क्यों वे सिवनी जिले से ना केवल मंुह चुराते है वरन यहां की समस्याओं के प्रति भी गंभीर नहीं है। जबकि जिले की बरघाट और सिवनी विस सीट से उन्हें लगभग 70 हजार वोटों की बढ़त मिली थी नहीं तो बालाघाट जिले के 6 विस क्षेत्रों से तो वे मात्र 20 हजार वोट की ही लीड ले पाये थे। भाजपायी हल्कों में चल रही चर्चाओं के अनुसार सांसद जी की गौरी भाऊ से पटती नहीं हैं इसलिये वे गोल मार जाते है। अब भाजपा के इन दो दिग्गज नेताओं की लड़ाई का खामियाजा जिले को भुगतना पड़ रहा है। अभी हाल ही में बरघाट में नगर पंचायत में लगभग सवा करोड़ रुपयों के कामों का भूमिपूजन प्रभारी मंत्री गौरीशंकर बिसेन के द्वारा किया गया जिसमें सांसद बोधसिंह भगत और फग्गनसिंह कुलस्ते दोनों ही विशिष्ट अतिथि बनाये गये थे। इसी तरह 15 अगस्त को जिले के दलसागर तालाब में दलसागर महोत्सव आयोजित किया गया इसमें भी ओनों ही सांसद विशिष्ट अतिथि थे लेकिन दोनों ही कार्यक्रमों में सांसद कुलस्ते तो आये लेकिन बोधसिंह भगत ने हमेशा की तरह कन्नी काट लिया। जबकि बरघाट और सिवनी दोनों ही विधानसभा क्षेत्र कुलस्ते के संसदीय क्षेत्र में नहीं आते है। कार्यक्रमों से परहेज करें और चाहें तो जिले में बिल्कुज ना आये लेकिन कम से कम जिले की समस्याओं के प्रति तो जागरूक रहें तो वैसा भी नहीं है। फोर लेन के मामले में जरूर उनके एक दो बयान आये लेकिन वे भी सही नहीं निकले। रामटेक गोटेगांव नई रेल लाइन और छिंदवाड़ा नैनपुर के गेज परिवर्तन के संबंध में भी ना जाने क्यों भगत जी ने चुप्पी ही साध रखी है जबकि ये तीनों ही मांगें केन्द्र सरकार से संबंधित हैं और बिना उनके प्रयास किये पूरी भी नहीं होने वाली हैं। जिले के भाजपा के इकलौते विधायक कमल मर्सकोले और दोनों भाजपा सांसदों को इसं संबंध में कारगर पहल करना चाहिये ताकि जिले के लोगों को ये मूलभूत सुविधायें मिल सकें। 
कमलनाथ के नेतृत्व में हुआ जंगी प्रर्दशनःजिले में बजी अपनी अपनी ढपली -विगत 20 अगस्त को व्यापम घोटाले के विरोध में जबलपुर में पूर्व केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ के नेतृत्व में विशाल जेल भरो आंदोलन हुआ जिसमें लगभग 20 हजार लोगों ने अपनी गिरफ्तारी दी। इस आंदोलन में जिले के कांग्रेस नेताओं ने भी अलग अलग ग्रुप में अपनी भागीदारी की है। केवलारी के इंका विधायक रजनीश सिंह के नेतृत्व में स्व. हरवंश सिंह के समर्थकों ने अपनी गिरफ्तारी दी। इसमें जिला कांग्रेस अध्यक्ष हीरा आसवानी,राजा बघेल, असलम भाई और मोहन चंदेल सहित कई नेता शामिल थे। जबकि एक अलग ग्रुप के रूप में सिवनी विस के पूर्व प्रत्याशी राजकुमार पप्पू खुराना के नेतृत्व में उनके समर्थकों ने भी हिस्सा लिया। उल्लेखनीय है कि व्यापम घोटाले की सी.बी.आई. जांच के बाद प्रदेश में यह पहला विशाल आंदोलन था जिसकी अगुवायी पूर्व केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ ने की है। कांग्रेस की आक्रामक नीति के चलते ऐसे और भी आयोजन किया जाना प्रस्तावित है। वेस्े तो प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने जबलपुर संभाग के अन्य जिलों में इसमें शामिल होने के लिये कोई दिशा निर्देश जारी नहीं किये थे। ऐसा दावा जिले के कांग्रेस के पदाधिकारियों का था। वैसे भी जिले में कांग्रेस या कांग्रेस के नेताओं के द्वारा कोई ऐसे संगठित प्रयास नहीं किये गये कि जिले के ज्यादा से ज्यादा लोग इसमें पहुंच सकें। सभी लोगों ने अपने अपने निजी प्रयास किये और अपने नेतृत्व में अपने समर्थकों को ले जाने का प्रयास किया। ब्लाक कांग्रेस के लेवल पर भी कोई प्रयास नहीं हुये। कांग्रेस के दिग्गज नेता कमलनाथ के सामने अपनी शानदार उपस्थिति दर्ज कराना ही नेताओं का लक्ष्य रहा। इसीलिये सभी नेता अपनी अपनी ढपली बजाते देखे गये।
क्या मुख्यमंत्री को अपनी ही जुबान की कद्र नहीं हैं? -कई साल पहले सविनी के मिशन स्कूल की सभा में मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने जिले को मेडिकल कॉलेज की सौगात देने की घोषणा करके जनता की खूब तालियां बटोरीं थीं। बीच में प्रदेश सरकार ने सदन और प्रेस कॉंफ्रेंस में दावा किया था कि केन्द्र सरकार को छिंदवाड़ा और शिवपुरी नहीं वरन मूल प्रस्ताव के अनुरुप सिवनी और सतना के प्रस्ताव भेजे गये हैं। फिर भाजपा नेताओं ने दावा किया कि यहां पीपीडी मोड का कॉलेज खुलेगा। जेकिन पीपीडी मोड के कालेजों के समय भी सरकार ने सिवनी का प्रस्ताव लंबित रख दिया और ऐसा अखबारों से पता चला है कि केन्द्र सरकार द्वारा पोषित मेडिकल कालेजों की सूची में भी पूर्व की ही भांति छिंदवाड़ा और शिवपुरी का प्रस्ताव भेज दिया गया है। अब ऐसा प्रतीत हो रहा है कि सिवनी के भाग्य से मेडिकल कालेज छिन रहा है जबकि मेडिकल कालेज के हिसाब से 80 के दशक में ही कु. विमला वर्मा के समय सरकारी अस्पताल खुल चुका था। भाजपा और उसके जनप्रतिनिधि शायद जिले के हितों का इसलिये ध्यान नहीं रखने के आदी हो गये हैं कि बिना कुछ दिये वे चुनाव जीत जाते हैं तो फिर भला कुछ देने से क्या फायदा। रहा सवाल विपक्ष याने कांग्रेस के विधायकों रजनीश सिंह और योगेन्द्र सिंह का तो सिवनी मुख्यालय उनके क्षेत्र में नहीं आता है तो वे भी रुचि लेते नहीं दिखते है।वैसे तो एक कहावत है कि झूठ बोले कौव्वा काटे यह चरितार्थ होती है या नहीं और मुख्यमंत्री को कौव्वा काटता है कि नहीं?“मुसाफिर”   
दर्पण झूठ ना बोले सिवनी
24 अगस्त 2015 से साभार

Thursday, August 13, 2015

तिरंगे के भगवा और हरे रंग के पक्षधर ये ना भूले कि दोनों के बीच शांति का प्रतीक सफेद रंग भी है जिसके बिना देश की प्रगति की कल्पना संभव नहीं
आज हम 69 वां स्वतंत्रता दिवस मना रहे है। अंग्रेजों की 2 सौ साल की गुलामी के बाद आज के दिन हमें आजादी मिली थी। जिन अंग्रेजों के राज में कभी सूरज नहीं डूबता था उन्हें अहिंसा के हथियार से हमने देश से खदेड़ दिया था। हमने अपने संविधान में धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनने का संकल्प लिया था लेकिन कुछ तबकों में फैली संप्रदायिक ताकतों के चलते  हमें देश को एक और अखंड़ रखने के लिये आजादी के बाद भी तीन तीन गांधियों,महात्मा गांधी,इंदिरा गांधी और राजीव गांधी, की शहादत देनी पड़ी। आज भी देश के कुछ हिस्सों में आतंकवाद का खतरा मंड़रा रहा है। आये दिन पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान युद्ध विराम और सीमाओं का उल्लंघन करके सीमा पर गोलीबारी करते रहता है। हमारे जवान ना केवल उनका मुंहतोड़ जवाब देते है वरन कई जवान तो शहीद भी हो जाते है। इसके अलावा सांप्रदायिक हिंसा की घटनायें भी हमें शर्मिंदा करती रहतीं हैं। हमें यह समझना और मानना पड़ेगा कि आतंवादियों और अपराधियों का कोई भी धर्म या मजहब नहीं होता। कोई भगवान या खुदा नहीं होता। वो सिर्फ आतंकवादी या अपराधी ही होता है। लेकिन आजादी के इतने साल बाद भी देश में बहुत से ऐसे लोग हैं जो आतंकवादियों और अपराधियों में रंग के आधार पर परहेज करते है। कभी कोई हरे रंग का पक्षधर दिखायी देता है तो कभी कोई भगवे रंग के पक्ष में लामबंदी करते दिखता है। जबकि होना यह चाहिये कि आतंकवादी हो या अपराधी उससे उसके कर्मों के आधार पर व्यवहार किया जाये ना कि धर्म या जाति के आधार पर। वैसे तो हमने अपने राष्ट्र ध्वज में भी केसरिया (भगवे) और हरे रंग का प्रयोग किया है लेकिन दोनों ही रंगों के बीच में सफेद रंग पर अशोक चक्र भी बनाया है। हालांकि इन रंगो के  प्रतीक कुछ और माने गये थे लेकिन आज के परिपेक्ष्य में देखें तो भगवे और हरे रंग के पक्षधर के रूप में जो लोग भी सामने आये है वे शायद यह भूल गयें हैं कि इन दोनों रंगों के बीच में शांति के प्रतीक सफेद रंग को भी रखा गया है। ताकि सभी वर्गों और धर्मों के बीच अमन चैन और शांति बनी रहे। सिर्फ भगवे और हरे रंग से तिरंगा पूरा नहीं हो सकता जब तक कि उसके बीच में शांति का प्रतीक सफेद रंग नहीं होगा। इसलिये आज यह समय की मांग है कि देश के सभी राजनैतिक दल जात पात,धर्म मजहब, भाषा और क्षेत्रीयता की भावना को वरीयता ना दें और संविधान की मूल भावना के अनुरूप देश को एक मजबूत और विकसित धर्म निरपेक्ष राष्ट्र बनाने में प्राण प्रण से जुट जायें। तो आइये आज के दिन हम यह संकल्प लें कि आतंकवादियों और अपराधियों में हम मजहब या धर्म के आधार पर हरे या भगवे रंग का पक्षधर बनने के बजाय तिरंगें के तीनों रंगों का सम्मान करते हुये आपसी भाईचारा और अमन चैन कायम करके देश को प्रगति के पथ पर तेजी से अग्रसर करने में जुट जायेंगें। 

Monday, July 27, 2015

शहर में दो गर्ल्स कॉलेज हैं या सरकार के मंत्री उमाशंकर गुप्ता ने सदन में मुनमुन के सवाल का गलत जवाब दिया है? 
   सिवनी के विधायक दिनेश मुनमुन राय ने नेता जी सुभाषचंद्र बोस कन्या महाविद्यालय के संबंध में विधानसभा में प्रश्न पूछा। इसका जवाब देते हुये प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री उमाशंकर गुप्ता ने जवाब दिया कि,सिवनी के नेताजी सुभाषचंद्र बोस कन्या माविद्यालय के पास भवन नहीं हैं इस वजह से यूजीसी से राशि नहीं मिल पा रही है। जबकि बींझावाड़ा की भूमि पर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वोरा ने गर्ल्स कालेज का भूमिपूजन किया था जिसमें कालेज भवन के साथ साथ पचास पचास सीट के दो हास्टल भी बनाये गये थे। लेकिन शहर से दूरी को मुद्दा बनाकर जब विरोध पुनः हुआ तो तत्कालीन भाजपा विधायक नरेश दिवाकर की पहल पर उस अपने खुद के भवन को छोड़कर इस कालेज को एक बार फिर उसी जेल भवन में ले जाया गया।इसी दौरान शासकीय कन्या महाविद्यालय का नामकरण नेताजी सुभाषचंद्र बोस कन्या महाविद्यालय के रूप में कर दिया गया। लेकिन कालेज का स्थापना वर्ष तो एक ही है। व्यापम के विरोध में प्रदेश कांग्रेस के आव्हान पर 16 जुलाई को जिले में भी बंद का आव्हान किया गया था। कांग्रेस के इस बंद को जिल मुख्यालय लगभग सभी बड़े कस्बों में आशातीत सफलता मिलने से जिले के कांग्रेसी उत्साहित है। प्रदर्शनकारी युवा कांग्रेसी कार्यकर्त्ताओं पर पुलिस ने अश्रु गैस के गोलों के साथ जम कर लाठी भी भांजी जिसमें सिवनी जिले के बरघाट विस क्षेत्र के युवक कांग्रेस के अध्यक्ष देवेन्द्र ठाकुर भी घायल हो गये और उनके हाथ की हड्डी टूट गयी।

मुनमुन के सवाल से उठे कई सवाल-सिवनी के विधायक दिनेश मुनमुन राय ने नेता जी सुभाषचंद्र बोस कन्या महाविद्यालय के संबंध में विधानसभा में प्रश्न पूछा। इसका जवाब देते हुये प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री उमाशंकर गुप्ता ने जवाब दिया कि,सिवनी के नेताजी सुभाषचंद्र बोस कन्या माविद्यालय के पास भवन नहीं हैं इस वजह से यूजीसी से राशि नहीं मिल पा रही है। जेल भवन की भूमि को महाविद्यालय को देने के लिये उच्च शिक्षा विभाग ने अर्धशासकीय पत्र लिखकर इस संबंध में कार्यवाही करने को लिखा है। विधायक के प्रश्न और मंत्री के द्वारा दिये गये जवाब से यह सवाल पैदा हो गया है कि क्या शहर के दो गर्ल्स कॉलेज है? ऐसा सवाल इसलिये उठ खड़ा हुआ क्योंकि सन 1980 के दशक में जिले में छात्राओं को उच्च शिक्षा मिले इसकी मांग उठने लगी थी। प्रदेश की तत्कालीन दबंग कांग्रेस सरकार की मंत्री कु. विमला वर्मा की पहल पर जिले के सिवनी मुख्यालय में शासकीय कन्या महाविद्यालय खोला गया था जो अपने शुरुआती दिनों में एमएलबी स्कूल में लगा था। फिर कुछ समय बाद इसे जेल के भवन में स्थानान्तरित कर दिया गया था। जब प्रदेश के मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा थे तब प्रदेश के उच्चशिक्षा मंत्री चित्रकांत जैसवाल जिले के प्रभारी मंत्री थे। उसी समय इस कालेज के भवन के लिये राशि स्वीकृत हुयी और जिले की प्रथ महिला कलेक्टर श्रीमती आभा अस्थाना ने निकटवर्ती ग्रात बींझावाड़ा की लगभग 40 एकड़ शासकीय भूमि चिन्हित की जिसमें से 15 एकड़ जमीन गर्ल्स कालेज के लिये आवंटित की गयी एवं शेष जमीन कलेक्टरेट सहित ऐसे शासकीय कार्यालयों को आवंटित कर दी थी जिनके स्वयं के भवन नहीं थे। इसी भूमि पर प्रदेश के मुख्यमंत्री वोरा ने गर्ल्स कालेज का भूमिपूजन किया था जिसमें कालेज भवन के साथ साथ पचास पचास सीट के दो हास्टल भी बनाये गये थे। छुट पुट स्थानीय विरोध के बाद भी गर्ल्स कॉलेज नये भवन में ले जाया गया एवं आवागमन की दिक्कत को देखते हुये एक कालेज बस भी सरकार ने दिलायी थी।लेकिन शहर से दूरी को मुद्दा बनाकर जब विरोध पुनः हुआ तो तत्कालीन भाजपा विधायक नरेश दिवाकर की पहल पर उस अपने खुद के भवन को छोड़कर इस कालेज को एक बार फिर उसी जेल भवन में ले जाया गया। और कालेज के उस भवन का तो कुछ उपयोग हो भी रहा है लेकिन हास्टल के दोनों भवन बिना चालू हुये ही खंडहर में तबदील होते जा रहे है। तात्कालिक राजनैतिक लाभ के लिये गये इस निर्णय से कालेज का कितना नुकसान हुआ इसका अंदाज तो सदन में दिये गये उच्च शिक्षा मंत्री के बयान से ही लग रहा है खुद का भवन ना होने के कारण यूजीसी के अनुदान प्राप्त नहीं हो सकते है। इससे कालेज का पूरा विस्तार ही थम गया है। इसी दौरान शासकीय कन्या महाविद्यालय का नामकरण नेताजी सुभाषचंद्र बोस कन्या महाविद्यालय के रूप में कर दिया गया। लेकिन कालेज का स्थापना वर्ष तो एक ही है। सदन में उच्च शिक्षा मंत्री गुप्ता द्वारा दिये गये बयान से प्रतीत होता है कि शहर में या तो दो गर्ल्स कॉलेज हैं या फिर उन्होंने सदन में गलत बयानी की है कि जिले के कन्या महाविद्यालय के पास अपना खुद का भवन नहीं हैं क्योंकि नेता जी सुभाषचंद्र बोस कन्या महाविद्यालय के रूप में जिले के शासकीय कन्या महाविद्यालय का ही नामकरण किया गया था। अब यह एक शोध का विषय बन गया है कि जिस कालेज का एक भवन हो और वह अपने भवन में नहीं लग रहा है तो क्या यूजीसी उसी कालेज के लिये दूसरा भवन बनाने के लिये राशि देगी? और क्या जिले की छात्राओं को दिखाये जा रहे सपने पूरे होंगें? इनके जवाब भविष्य की गर्त में छिपे हुये हैं।
व्यापम के विरोध में कांग्रेस का बंद रहा सफल-व्यापम के विरोध में प्रदेश कांग्रेस के आव्हान पर 16 जुलाई को जिले में भी बंद का आव्हान किया गया था। कांग्रेस के इस बंद में जिले भर में व्यवसायिक प्रतिष्ठान बंद रखने का आव्हान कांग्रेस ने किया था। कांग्रेस के इस बंद को जिला मुख्यालय लगभग सभी बड़े कस्बों में आशातीत सफलता मिलने से जिले के कांग्रेसी उत्साहित है। जिस तरह से भाजपा के समर्थकों ने सोशल मीडिया पर बंद का विरोध किया था उससे ऐसा लगता था कि भाजपा के लोग सड़क पर उतरकर शायद बंद का विरोध करें। कुछ जानकारों का ऐसा मानना है कि भाजपा के कुछ नेताओं की ऐसी तैयारी भी थी लेकिन शहर में कांग्रेस के सभी गुट के लोगों के एक साथ सड़क पर उतर कर बंद में सहयोग देने के लिये की गयी अपील अधिक कारगर साबित हुयी और लोगों ने स्वयं ही अपने प्रतिष्ठान बंद रखे। प्रदेश के युवाओं की योग्यता के साथ किये गये शिवराज सरकार के व्यापम के खूनी खिलवाड़ के खिल
ाफ लोगों में आक्रोश था और इसी के चलते कांग्रेस को अपने बंद में सफलता मिली। राष्ट्रीय और प्रादेशिक स्तर पर कांग्रेस जिस आक्रामक तरीके से इस मामले को उठा रही है उससे प्रदेश में पहली बार भाजपा और शिवराज सिंह बेकपुट पर दिखायी दे रहे हैं। इस मामले में भाजपा आला कमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के स्तीफे को लेकर चाहे जो भी निर्णय ले लेकिन इस मामले से प्रदेश में भाजपा की साख को जरूर धक्का लगा है।  
घेराव के दौरान देवेन्द्र ठाकुर की हड्डी टूटी-व्यापम के विरोध की श्रृंखला में प्रदेश युवक कांग्रेस ने मुख्यमंत्री निवास के घेराव की घोषणा की थी। इसमें जिले से कई युवा कांग्रेसी शरीक हुये थे। प्रदर्शनकारी युवा कांग्रेसी कार्यकर्त्ताओं पर पुलिस ने अश्रु गैस के गोलों के साथ जम कर लाठी भी भांजी जिसमें सिवनी जिले के बरघाट विस क्षेत्र के युवक कांग्रेस के अध्यक्ष देवेन्द्र ठाकुर भी घायल हो गये और उनके हाथ की हड्डी टूट गयी। कांग्रेस शासनकाल में कभी ये ही भाजपा के कार्यकर्त्ता गला फाड़ फाड़ कर नारे लगाते थे कि लाठी गोली की सरकार नहीं चलेगी चलेगी और आज भाजपा की सरकार ही अपने मुख्यमंत्री के निवास तक लोग ना पहुंच पाये इसके लिये लाठियां भांज रही है। “मुसाफिर” 
दर्पण झूठ ना बोले सिवनी
28 जुलाई 2015 से साभार 






Monday, June 15, 2015

वक्त पर सोना बाद में रोना फिर दूसरांे को कोसना ही क्या  जिले की नियति बन कर रह गयी है ?
कमलनाथ ने प्ररंभ किये भोपाल,इंदौर दिल्ली और मुबंई की  हवाई यात्रा चालू कराने के प्रयास: जिले के सांसद फग्गनसिंह कुलस्ते और बांधसिंग भगत बैठे हैं चुप: वक्त निकल जाने पर क्या फिर दूसरों को कोसेंगे जिले के नेता?
सिवनी ।  मध्यप्रदेश सरकार ने पिछले दिनों केबिनेट मीटिंग में प्रदेश की दस हवाई पट्टियों को निजी विमानन कंपनियों के उपयोग के लिये भी अनुमति दे दी है। इसमें सिवनी के साथ छिंदवाड़ा भी शामिल है। छिंदवाड़ा से हवायी यात्रा प्रारंभ कराने के प्रयास भी प्रारंभ हो गये हैं लेकिन जिले के सांसद अभी सो रहें है। वक्त पर सोना बाद में रोना और फिर दूसरों को कोसना ही क्या जिले की नियति बन कर रह गयी है।
मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार ने प्रदेश की दस हवाई पट्टियों को निजी हवाई कंपनियों के उपयोग के लिये छूट देने का निर्णय अपनी केबिनेट बैठक में कर लिया है। प्रदेश सरकार के इस निर्णय से इन दसों जिलों में भविष्य में यात्रियों के लिये हवाई यात्रा की सुविधा भी उपलब्ध हो सकती है। प्रदेश के पिछड़े जिलों हवाई यात्रा की सुविधा उपलब्ध होने से जिलों में औद्योगिक विकास के अवसर बढ़ते हैं क्योंकि अच्छे और बड़े उद्योगपति कम समय में यात्रा करने के लिहाज से हवाई यात्रा करना पसंद करते हैं जिससे उनके समय की बचत होती है। 
प्रदेश सरकार ने जिन दस हवाई पट्टियों को यह अनुमति दी है उनमें छिंदवाड़ा के साथ ही सिवनी भी शामिल है। इस अनुमति के मिलते ही अपने क्षेत्र को सब कुछ दिलाने की ललक रखने वाले कांग्रेस के सांसद पूर्व केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ ने जबलपुर से छिंदवाड़ा होते हुये भोपाल,इंदौर दिल्ली और मुंबई के लिये हवाई यात्रा उपलब्ध कराने के प्रयास भी प्रारंभ कर दिये हैं जो कि विगत दिनों अखबारों की सुर्खियां भी बने रहे। ये प्रयास कितने और कब कारगर साबित होते हैं? यह तो भविष्य की गर्त में हैं लेकिन प्रयास प्रारंभ होना भी कम महत्वपूर्ण नहीं हैं। 
छिंदवाड़ा के साथ ही सिवनी जिले की हवायी पट्टी को भी प्रदेश सरकार यह अनुमति प्रदान की है लेकिन हमारे जिले के दोनों भाजपा सांसद पूर्व केंद्रीय मंत्री फग्गनसिंह कुलस्ते और बोध सिंह भगत के कोई ऐसे प्रयास प्रकाश में नहीं आये हैं कि उन्होनें जिले के लोगों को हवाई यात्रा उपलब्ध कराने के लिये किये हो। आज जबकि देश और प्रदेश में भाजपा की सरकार है तो जिले के सांसदों को इस दिशा में प्रयास कर लोगों को यह सुविधा उपलब्ध करानी चाहिये क्योंकि जबलपुर से छिंदवाड़ा सिवनी होकर ही हवाई मार्ग भी जायेगा। लेकिन जिले के सांसदों की यह उदासीनता कहीं ऐसा ना हो कि जिले को मिल सकने वाली इस सुविधा से भी वंचित करा दे। 
अभी तक जिला ऐसी ही उपेक्षा के चलते बड़ी रेल लाइन,संभाग और मेडिकल कॉलेज जैसी उपलब्धियों से वंचित हो गया है। हर चीज को पाने के लिये समय पर प्रयास करना जरूरी होते हैं। यदि ऐसा ना किया जाये तो यह जनप्रतिनिधियों की व्यक्तिगत क्षति ना होकर जिले की क्षति हो जाती है। बीते पंद्रह वर्षों से हमेशा यह देखा जा रहा है कि जिले के जनप्रतिनिधि वक्त पर सोते रहते हैं और फिर बाद में रोते हैं। शायद अपनी छिपाने के लिये ही फिर दूसरे को कोसने का काम चालू कर देते हैं। 
यह सब देख देख कर जिले के लोग अब यह सोचने को मजबूर हो गये हैं कि वक्त पर सोना बाद में रोना और फिर दूसरों को कोसना ही क्या जिले की नियति बन कर रह गयी है? 
दर्पण झूठ ना बोले सिवनी 1
16 दजून 2015 से साभार


  



शासकीय मेडिकल कॉलेज छिनने पर कमलनाथ पर आरोप लगाने वाले क्या अब सुषमा और शिवराज पर लगायेंगें आरोप? 
   प्रदेश सरकार ने हाल ही में हुयी केबिनेट की बैठक में पगदेश में तीन जिलों में पी.पी.पी. मोड के मेडिकल कालेज खेलने की स्वीकृति दे दी है लेकिन इन जिलों साथ ही सिवनी जिले के लिये पूर्ण की गयी प्रक्रिया के बाद भी उसे मंजूरी ना देकर लंबित रख दिया गया है। इन जिलों में विदिशा के नाम के जुड़ने से यह एक चिंता का विषय बन गया है। केन्द्र शासन द्वारा पोषित किये जाने वाले जो मेडिकल कॉलेज प्रदेश में खुलने वाले हैं उस प्रस्ताव में भी विदिशा जिले का नाम शामिल है। पहले जिन सात जिलों के नाम प्रदेश सरकार के द्वारा बताये गये थे उनमें  प्रमुख रूप से विदिशा, शिवपुरी और छिंदवाड़ा बताये गये थे। ये तीनों ही वी आई पी क्षेत्र थे । लोकसभा चुनावों के बाद और नपा तथा नगर निगम चुनावों के पहले विवाद चालू हुआ प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा की प्रेस कांफ्रेंस और सदन में दिये गये इस बयान से कि प्रदेश सरकार के मूल प्रस्ताव के अनुसार केन्द्र सरकार द्वारा खोले जाने वाले मेडिकल कालेज सिवनी और सतना में ही खोले जायेंगें ना कि छिंदवाड़ा और शिवपुरी में । इससे विवाद हो गया था और पीपीपी  मोड के कालेज की प्रक्रिया जिले के लिश्े चालू हो गयी थी। जिला योजना समिति के चुनाव में कांग्रेस ने अपना बहुमत बना लिया है। जिला पंचायत से निर्वाचित होने वाले 14 में से 11 सदस्य कांग्रेस के चुने गये है। सर्वाधिक महत्वपूर्ण एवं रोचक चुनाव रहा नगर पालिका सिवनी के निर्वाचन का जहां से कांग्रेस के संतोष नान्हू पंजवानी ने भाजपा के अलकेश रजक को 10 के मुकाबले 14 मतों से पराजित कर दिया।  
सरकारी छिंदवाड़ा तो क्या पीपीपी मोड का  मेडिकल कालेज सुषमा ले गयीं विदिशा?-प्रदेश सरकार ने हाल ही में हुयी केबिनेट की बैठक में पगदेश में तीन जिलों में पी.पी.पी. मोड के मेडिकल कालेज खेलने की स्वीकृति दे दी है लेकिन इन जिलों साथ ही सिवनी जिले के लिये पूर्ण की गयी प्रक्रिया के बाद भी उसे मंजूरी ना देकर लंबित रख दिया गया है। वैसे तो यह एक सामान्य प्रक्रिया कही जाती है लेकिन इन जिलों में विदिशा के नाम के जुड़ने से यह एक चिंता का विषय बन गया है। उल्लेखनीय है कि केन्द्र शासन द्वारा पोषित किये जाने वाले जो मेडिकल कॉलेज प्रदेश में खुलने वाले हैं उस प्रस्ताव में भी विदिशा जिले का नाम शामिल है। यहां यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि इस मामले में प्रदेश सरकार के जिम्मेदार मंत्री और अधिकारियों के अलग अलग बयान आते रहें है। पहले जिन सात जिलों के नाम प्रदेश सरकार के द्वारा बताये गये थे उनमें  प्रमुख रूप से विदिशा, शिवपुरी और छिंदवाड़ा बताये गये थे। ये तीनों ही वी आई पी क्षेत्र थे जहां से लोकसभा की तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष  एवं वर्तमान में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिंया सांछ थे। ये तीनों ही आज भी इन्हीं क्षेत्रों सांसद है। लेकिन लोकसभा चुनावों के बाद और नपा तथा नगर निगम चुनावों के पहले विवाद चालू हुआ प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा की प्रेस कांफ्रेंस और सदन में दिये गये इस बयान से कि प्रदेश सरकार के मूल प्रस्ताव के अनुसार केन्द्र सरकार द्वारा खोले जाने वाले मेडिकल कालेज सिवनी और सतना में ही खोले जायेंगें ना कि छिंदवाड़ा और शिवपुरी में जिन्हें तत्कालीन यू.पी.ए. सरकार ने बदल दिया था। लेकिन नगर निगम चुनाव के पूर्व छिंदवाड़ा आये मुख्यमंत्री शिवराज सिंह नें आम सभा में यह घोषणा कर दी थी कि मेरे रहते कोई भी माई का लाल छिंदवाड़ा का हक नहीं छीन सकता यह मेडिकल कालेज यहीं खुलेगा ना जाने कौन ऐसी अफवाहें फैला रहा है। अब भला मुख्यमंत्री जी को यह कौन बताता कि यदि यह अफवाह है तों इसे और कोई नहीं ब्लकि उनके मंत्रीमंडल के सदस्य और स्वास्थ्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने फैलायी है। इसके बाद छिंदवाड़ा के सांसद कमलनाथ पर एक बार फिर यह आरोप लगया जाने लगा कि वे सिवनी का हक छीन रहें हैं जबकि 2013 में जब सात जिलों के नाम घोषित किये गये थे तब उनमें सिवनी का नाम शामिल ही नहीं था। जबकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह सालों पहले सिवनी में मेडिकल कालेज खोलने की घोषणा करके सभा में तालियां बजवा चुके थे। मुख्यमंत्री ने यह भी कहा था कि पी.पी.पी. माडल में मेडिकल कालेज सिवनी में खुलेगा। इसके लिये प्रक्रिया भी प्रारंभ की गयी जिसमें यह पता चला था डॉ. सुनील अग्रवाल के जिंदल ग्रुप और सुखसागर ग्रुप में से किसी को सरकार यह खोलने की अनुमति देने वाली है। पिछले दिनों जब केबिनेट की बैठक में पी.पी.पी. माडल में तीन जिलो के लिये तो मंजूरी दे दी गयी लेकिन उसमें सिवनी का नाम शामिल नहीं था ब्लकि विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के क्षेत्र और  मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के गृह जिले विदिशा का नाम शामिल था जबकि केन्द्र शासन द्वारा खोले जाने मेडिकल कालेजों में विदिशा का नाम शामिल है और उसमें तो विवाद भी नहीं है। प्रदेश सरकार के इस निर्णय से जिले के राजनैतिक क्षेत्रों में तरह तरह की चर्चायें चाले हो गयी है। कुछ लोगों का मानना है कि या तो विदिशा में दो दो मेडिकल कॉलेज खोले जा रहें या फिर कहीं ऐसा तो नहीं कि केन्द्र शासन द्वारा खोले जाने वाले मेडिकल काफलेजों की सूची से विदिशा का नाम भी इसलिये कट गया हो क्योंकि वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की गुड बुक में नहीं है। इसीलिये पी.पी.पी. माडल के मेडिकल कॉलेज में सिवनी का नाम रोक कर विदिशा में यह खोला जा रहा है। यदि ऐसा हो रहा है तो मेडकल कॉलेज कमलनाथ द्वारा छीने जाने का आरोप लग रहा था तो अब वही आरोप क्या विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर नहीं लगना चाहिये? यदि ऐसा हो रहा है तो जिले के भाजपा के सांसद द्वय फग्गन सिंह कुलस्ते और बोध सिंह भगत तथा विधायक कमल मर्सकोले को जिले के हित के लिये लड़ना चाहिये और यदि जरूरत हो तो इसके लिये जिले के अन्य जन प्रतिनिधियों को इसमें शामिल कर एक सशक्त पक्ष जिले का रखना समय की मांग है। 
जिला योजना समिति के कांग्रेस ने किया कब्जा -जिला योजना समिति के चुनाव में कांग्रेस ने अपना बहुमत बना लिया है। जिला पंचायत से निर्वाचित होने वाले 14 में से 11 सदस्य कांग्रेस के चुने गये है जबकि लखनादौन और बरघाट नगर पंचायत से गोल्हानी निर्विरोध चुन लिये गये हैं। जिसमें सिवनी के विधायक मुनमुन राय की विशेष भूमिका बतायी जा रही है। सर्वाधिक महत्वपूर्ण एवं रोचक चुनाव रहा नगर पालिका सिवनी के निर्वाचन का जहां से कांग्रेस के संतोष नान्हू पंजवानी ने भाजपा के अलकेश रजक को 10 के मुकाबले 14 मतों से पराजित कर दिया। यहां यह विशेष रूप से उल्ल्ेखनीय है कि पालिका में अध्यक्ष सहित 25 सदस्यों में से 13 भाजपा के 8 कांग्रेस के हैं। इसके बाद भी भाजपा की हार होना राजनैतिक हल्कों में चर्चित है। जबकि भाजपा ने इसी पालिका में कांग्रेस के नान्हू पंजवानी को हरा कर पहली बार अपना उपाध्यक्ष जिताया था। ऐसा क्यों और कैसे हुआ? इसे लेकर भाजपा में तरह तरह की चर्चायें चल रहीं हैं। एक तरफ कुछ भाजपा नेताओं का कहना है कि उपाध्यक्ष चुनाव के समय पार्षदों से जो वायदे किये गये थे वे कुछ पार्षदों के साथ पूरे नहीं किये गये तो इसीलिये उन्होंने अपनी नाराजगी बतायी हैं तो वहीं दूसरी ओर कुछ भाजपा नेता यह भी कह रहें हैं कि भाजपा के एक गुट ने जान बूझ कर भाजपा को वोट नहीं देकर हरा दिया तो कुछ यह कहने से भी नहीं चूक रहें कि सब कुछ पैसे का खेल है। अब जो भी हो लेकिन भाजपा की यह हार भाजपा के चाल चरित्र और और चेहरे को बेनकाब जरूर कर गया है। “मुसाफिर”
दर्पण झूठ ना बोले सिवनी 1



16 दजून 2015 से साभार

Monday, June 8, 2015

मोदी बनवा रहे राव का स्मारक लेकिन उनके सांसद रामटेक गोटेगांव रेल लाइन की राव की घोषणा  से कर रहे परहेज
   जबलपुर से प्रकाशित होने वाले राष्ट्रीय स्तर के प्रमुख समाचार पत्र में रामटेक से गोटेगांव व्हाया सिवनी रेल लाइन में मामले में प्रकाशित समाचार इन दिनों जिलें में चर्चा का केन्द्र बना हुआ है। 1996 में देश के प्रधानमंत्री नरसिंहाराव ने इस परियोजना की घोषणा जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी सरस्वती की उपस्थिति में की थी। इस मांग को प्रधानमंत्री के सामने तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री और सिवनी की सांसद कु. विमला वर्मा ने रखी थी। जिले से चुने गये दोनों भाजपा सांसद फग्गनसिंह कुलस्ते और बोधसिंह भगत ने इस ओर कोई ध्यान ही नहीं दिया जबकि केन्द्र की मोदी सरकार ने दिल्ली में कांग्रेस के दिवंगत प्रधानमंत्री नरसिंहाराव का स्मारक बनाने का निर्णय लेकर सबको चौंका दिया है। जिपं में कांग्रेस के 11 और भाजपा के 6 और दोनो ही पार्टी के 1 1 बागी सदस्य चुन कर आये थे लेकिन अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष के चुनाव में कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी थी और भाजपा ने दोनों ही पद जीत लिये थे। इन चुनावों में जिले भर के सारे कांग्रेसी नेता लगे हुये थे और सदस्यों को मार्गदर्शन भी दे रहे थे। इस बार समितियों के चुनाव में ना तो जिले के किसी नेता ने मार्गदर्शन दियालेकिन समितियों में कांग्रेस ने कब्जा कर लिया है। जिले में इस बार कमल या शिशि ठाकुर को मिल लालबत्त्ी सकती है ।  
क्या सांसद द्वय रामटेक गोंटेगांव रेल के लिये करेंगें प्रयास?-जबलपुर से प्रकाशित होने वाले राष्ट्रीय स्तर के प्रमुख समाचार पत्र में रामटेक से गोटेगांव व्हाया सिवनी रेल लाइन में मामले में प्रकाशित समाचार इन दिनों जिलें में चर्चा का केन्द्र बना हुआ है। इस समाचार में उल्लेख किया गया है कि 1996 में देश के प्रधानमंत्री नरसिंहाराव ने इस परियोजना की घोषणा जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी सरस्वती की उपस्थिति में की थी। उन्होंने यह भी कहा था कि इसमें रेल्वे को नफा नुकसान नहीं देखना चाहिये क्योंकि इसके बनने से आदिवासी क्षेत्रों को विकास का मौका मिलेगा। लेकिन बीस साल होने को आ गये हैं अब तक मामला सिर्फ सर्वे तक ही पहुंच पाया है। इस समाचार के प्रकाशित होने से जिले के राजनैतिक हल्कों में कुछ सवाल हवा में तैरने लगे हैं। उल्लेखनीय है कि इस मांग को प्रधानमंत्री के सामने तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री और सिवनी की सांसद कु. विमला वर्मा ने रखी थी। 1996 में कांग्रेस सरकार के दौरान ही इसके ट्रेफिक सर्वे के आदेश हो गये थे लेकिन लोस चुनाव में कांग्रेस तथा सिवनी से विमला वर्मा चुनाव हार गयीं थीं। इसके बाद उनके सक्रिया राजनीति से स्वास्थ्य कारणों से हट जाने के बाद इस योजना के लिये भले ही इंका नेता आशुतोष वर्मा सहित कई नेताओं ने आंदोलन चलाये हों लेकिन यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि इस योजना को स्थानीय कांग्रेस की गुटबाजी का खामियाजा भुगतना पड़ा। जबकि इसके लिये शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी ने स्वयं भी दो बार पत्र लिख की आंदोलन को आर्शीवाद दिया था। इसके बाद लगातार अभी तक भाजपा के सांसद चुने जाते रहें लेकिन ना जाने किन राजनैतिक कारणों से उन्होंने ना केवल इस योजना के लिये कोई प्रयास किये वरन अव्यवहारिक नये नये सुझाव देकर जिले की आवाज को ही कमजोर किया । उनके पास एक बहाना भी था कि क्या करें केन्द्र में कांग्रेस की सरकार है और हमारी कोई सुनता ही नहीं हैं। लेकिन पिछले एक साल से राज्य के साथ साथ केन्द्र में भी भाजपा की सरकार है लेकिन जिले से चुने गये दोनों भाजपा सांसद फग्गनसिंह कुलस्ते और बोधसिंह भगत ने इस ओर कोई ध्यान ही नहीं दिया जबकि केन्द्र की मोदी सरकार ने दिल्ली में कांग्रेस के दिवंगत प्रधानमंत्री नरसिंहाराव का स्मारक बनाने का निर्णय लेकर सबको चौंका दिया है। मोदी सरकार यदि सही में स्व. नरसिंहाराव के प्रति सम्मान प्रगट करना चाहती है तो उसे गोटेगांव सिवनी रामटेक नई रेल लाइन को मुजूरी देकर बनाना चाहिये क्योंकि यह प्रधानमंत्री के रूप में संभवतः उनकी अंतिम सार्वजनिक घोषणा थी जो अब चालू भी नहीं हो पायी है। जिले से निर्वाचित दोनों सांसद यदि इस बारे में प्रधानमंत्री से बात कर उनका ध्यानाकर्षित कराये तो तो शायद जिले को विकास के नये आयाम तक पहुचने का अवसर मिल सकता है।  
 जिपं समितियों के चुनाव में कांग्रेस का कब्जा-बीते दिनों जिला पंचायत की समितियों के चुनाव संपन्न हुये। उल्लेखनीय है कि जिपं में कांग्रेस के 11 और भाजपा के 6 और दोनो ही पार्टी के 1 1 बागी सदस्य चुन कर आये थे लेकिन अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष के चुनाव में कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी थी और भाजपा ने दोनों ही पद जीत लिये थे। इन चुनावों में जिले भर के सारे कांग्रेसी नेता लगे हुये थे और सदस्यों को मार्गदर्शन भी दे रहे थे लेकिन अंतिम समय में सदस्यों की राय के विपरीत उम्मीदवार थोपे जाने के कारण हार का सामना करना पड़ा था। इस समय भी कांग्रेस के कुछ नताओं की यह राय थी कि कांग्रेस के चुने हुये सदस्य काफी अनुभवी है इसीलिये पहला दौर इनके बीच ही होने दिया जाये और यदि सर्वसम्मति से ये प्रत्याशी चयन कर लेते है तो उसे मान लिया जाये लेकिन इस सलाह की अनदेखी कर दी गयी। इस बार समितियों के चुनाव में ना तो जिले के किसी नेता ने मार्गदर्शन दिया और ना ही जिला कांग्रेस ने कोई बैठक ही बुलायी फिर कांग्रेस के सदस्यों ने आपसी तालमेल से अधिकांश समितियों में अपना बहुमत बना लिया हैं और उनमें कांग्रेस का सभापति बनना तय है। जबसे जिला पंचायत का गठन हुआ है तबसे जिला पंचायत पर लगातार चार बार कांग्रेस का कब्जा रहा था लेकिन इस बार पहली बार खुद का स्पष्ट बहुमत होने के बाद भी कांग्रेस अपना अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष नहीं बना पायी लेकिन समितियों में कांग्रेस का कब्जा बरकरार रहने से कुछ तो संतुलन बन ही जायेगा।
कमल या शशि को मिल सकती है लालबत्ती-प्रदेश में इन दिनों मंत्रीमंड़ल विस्तार और निगमों में नियुक्ति किये जाने की चर्चायें राजनैतिक हल्कों में जारी हैं। बताया जा रहा है कि दिल्ली में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की आलाकमान से इस संबंध में चर्चा भी हो चुकी हैं। इसे लेकर जिले के भाजपायी नेताओं के बीच भी लालबत्ती पाने की होड़ लग गयी है। वैसे तो शिवराज सिंह ने अभी तक अपने मंत्रीमंड़ल में शिव की नगरी सिवनी की उपेक्षा ही की है। भाजपा के तीन तीन विधायक होने के बाद भी उन्होंने  किसी को भी मंत्री नहीं बनाया था जबकि कांग्रेस के शासनकाल में हमेशा जिले से दो दो मंत्री रहें है। लेकिन इस चुनाव में भाजपा से जिले के एकमात्र विधायक कमल मर्सकोले ही है। यदि शिवराज ने शिव की नगरी सिवनी से परहेज नहीं रखा तो ऐसा माना जा रहा है कि कमल मर्सकोले  का मंत्री बनना तय माना जा रहा है। वैसे शिवराज सिंह ने अपने दूसरे कार्यकाल में नदेश दिवाकर और डॉ. ढ़ालसिंह बिसेन को लाल बवैसे शिवराज सिंह ने अपने दूसरे कार्यकाल में नरेश दिवाकर और डॉ. ढ़ालसिंह   बिसेन को लालबत्ती से नवाजा था। यदि इस बार भी ऐसा ही करने की मुख्यमंत्री ने सोचा तो ऐसा माना जा रहा है कि लखनादौन क्षेत्र की दो बार विधायक रही और इस बार चुनाव हार जाने वाली आदिवासी महिला नेत्री शशि ठाकुर को किसी निगम में लालबत्ती दी जा सकती है। अब किसको क्या मिलेगा या दोनों खाली हाथ रह जायेंगें? यह तो शिवराज सिंह का पिटारा खुलने के बाद ही पता चल पायेगा। “मुसाफिर”  
सा. दर्पण झूठ ना बोले सिवनी 
09 जून 2015 से साभार

Monday, May 25, 2015

मोदी सरकार की पहली सालगिरह पश्चाताप दिवस के रूप में मना रहें हैं देशवासी: आशुतोष
वायदों को चुनावी जुमला बनाया भाजपा नेताओं ने: अपने आप को ठगा हुआ महसूस कर रहा है पेरा देश: जिले के पाले में भी कुछ आया नहीं: ऐसे में कैसे आयेंगें अच्दे दिन?

सिवनी। केन्द्र सरकार के एक साल पूरा होने पर प्रधानमंत्री मोदी,भाजपा और पूरी सरकार जश्न मना रही है। लेकिन आम देशवासी अपने आप को ठगा हुआ महसूस कर इसे पश्चाताप दिवस के रूप में मनाने को मजबूर है। भाजपा नेता ही अपनी पार्टी के चुनावी वायदों को जुमला कहकर पल्ला झाड़ रहें हैं। जिले में भी ना फोर लेन बनी, ना बड़ी रेल लाइन आयी, ना संभाग बना,ना मेडिकल कालेज खुला और ना ही सिवनी मॉडल शहर बन पाया तो भला अच्छे दिन कैसे महसूस हो सकते हैं? प्रधानमंत्री के गृह प्रदेश उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के परिणाम ने ही भाजपा को आइना दिखा दिया है। उक्ताशय के उदगार वरिष्ठ कांग्रेस नेता आशुतोष वर्मा ने प्रेस को जारी एक विज्ञप्ति में व्यक्त किये हैं। 
इंका नेता वर्मा ने आगे कहा है कि आगामी 26 मई को केन्द्र की मोदी सरकार का एक साल पूरा होने जा रहा है। इसे जश्न के रूप में मनानें के लिये मोदी सरकार और भाजपा युद्ध स्तर पर तैयारियां कर रही है। प्रधानमंत्री सहित तमामा वरिष्ठ नेता रैलियां आदि करके मोदी सरकार की उपलब्धियों का बखान करेगें। लेकिन आम देशवासी अपने आप को ठगा हुआ महसूस कर रहा है और इस दिन को पश्चाताप दिवस के रूप में मनाने को मजबूर हो गया है।
इंका नेता आशुतोष वर्मा ने विज्ञप्ति में उल्लेख किया है कि प्रधानमंत्री मोदी सहित भाजपा के तमाम नेताओं ने जनता से जो भी वायदे किये थे उन्हें सरकार बनने के बाद भाजपा ने भुला दिया। इतना ही नहीं ब्लकि इन चुनावी वायदों को एक जुमला करार देकर भाजपा नेताओं ने देश की भोली भाली जनता की भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया है। आज वह इस बात का पश्चाताप कर रहा है कि क्यों उसने इन पर भरोसा किया। इसीलिये आम मतदाता आज पश्चाताप कर रहा है क्योंकि अच्छे दिन आये नहीं,ना तो काला धन वापस आया और खाते में 15 लाख रु. जमा हुये,विदेशों में पहली बार किसी प्रधानमंत्री ने देश की पिछली सरकार पर खेद जनक टिप्पणियां की ह,ैंअंर्तराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें कम होने के बाद भी पेट्रोल डीजल के दाम बढ़ रहें हैं,मंहगायी बढ़ रही है,नव युवक आज भी रोजगार की राह तक रहें हैं,आतंकवादियों को बिरयानी खिलाने के आरोप लगाने वाले उन्हें फांसी देने के बजाय छोडरहे है, पाकिस्तान के खिलाफ दहाड़ने वाले अब उसकी हरकतों पर खामोश है,विदेश मंत्री देश में और प्रधानमंत्री विदेश में पाये जा रहें हैं,पूंजी पतियों के आये अच्छे दिन और किसान कर रहें हैं आत्म हत्या,देश में मोदी के और विदेश में रुपये के भाव लगातार गिर रहें हैं,बदलाव की बात करने वाले मोदी बदले की राजनीति कर रहें हैं,इतिहास में पहली बार देश के प्रधानमंत्री के विदेश में पुतले जले,कश्मीर में धारा 370 हटाने की बात करके चुनाव लड़ने के बाद उसका समर्थन करने वाले मुफ्ती के साथ सरकार बनाने डाली।
जिले के वरिष्ठ इंका नेता आशुतोष वर्मा ने आगे उल्लेख किया है कि जिले के मतदाताओं ने भी भाजपा के वायदों पर विश्वास कर अच्छे दिन आने की आस में जिले के दोनों भाजपा प्रत्याशियों को प्रचंड़ बहुमत से जिता दिया था। लेकिन एक साल पूरा होने के बाद भी फोर लेन बनी नहीं, बड़ी रेल लाइन आयी नहीं, रामटेक गोटेंगांव रेल लाइन को बजट नहीं, मेडिकल कॉलेज खुला नहीं, संभाग बना नहीं और मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद भी शहर माडल शहर नहीं बन पाया। इन हालातों में अच्छे दिन तो महसूस हुये ही नहीं इसलिये लोग पश्चाताप दिवस मना रहें हैं। 
इंका नेता वर्मा ने प्रधानमंत्री के गृह प्रदेश उत्तर प्रदेश की एक विधानसभा सीट के हाल ही में हुये उप चुनाव का हवाला देते हुये कहा है कि विगत माह भाजपा की एक परंपरागत सीट पर उप चुनाव हुआ था जिसमे जीत सपा की हुयी दूसरे स्थान पर कांग्रेस रही और जनता ने भाजपा को तीसरे स्थान पर ढकेल कर अपने गुस्से का इजहार कर प्रधानमंत्री मोदी और समूची भाजपा को आइना दिखा दिया है। 
                                                                               
  

Monday, April 27, 2015

प्रदेश में दो दर्जन जिलों के कांग्रेस अध्यक्ष बदलने के समाचार से रैली के लिये जिले के कांग्रेसियों में हुआ उर्जा का संचार
   चुनाव के बाद कांग्रेस की ना तो चुनाव के बाद कोई समीक्षा बैठक हुयी और ना ही अपने कहने के बाद प्रदेश कांग्रेस के सचिव राजा बघेल इसे आयोजित करा पाये। इतना ही नहीं जिला कांग्रेस ने चुनाव परिणामों के विपरीत होने पर भी कोई जांच समिति तक गठित नहीं की है? सदस्यों के चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद चुनावों की कमान केवलारी के विधायक रजनीश हरवंश सिंह ने संभाल ली थी। जिला पंचायत के चुनावों के बाद समितियों के चुनावों के लिये बुलायी गयी पहली बैठक ही अध्यक्ष मीना बिसेन सहित अन्य सदस्यों के साथ बहिष्कार के कारण पूरी नहीं हो सकी। फिलहाल तो आगाज अच्छा नहीं माना जा सकता अब अंजाम क्या होगा? इसके लिये तो समय का इंतजार करना पड़ेगा। बीते दिनो कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की वापसी के बाद दिल्ली में आयोजित किसान रैली में जिले से भी अलग अलग गुटों में लोग गये। वैसे इस रैली में जाने और ले जाने के लिये जिले में कुछ ज्यादा ही सक्रियता दिखायी दी। राहुल गांधी की किसान रैली में अपने आप राहुल का खास बताने वाले प्रदेश कांग्रेस के सचिव राजा बघेल की इस रैली में शामिल होने के लिये की गयी हवाई यात्रा मीडिया में सुर्खी बन गयी। रैली में शामिल होने के लिये राजा बघेल के साथ जिला कांग्रेस के महामंत्रीगण शिव सनोड़िया और संतोष नान्हू पंजवानी ने नागपुर से दिल्ली का सफर हवायी जहाज से तय किया गया। 
आखिर जयचंदों को दंड़ित नही कर पायी कांग्रेस-जिला पंचायत चुनावों के जयचंदों को आखिर दंड़ित नहीं कर पायी कांग्रेस। और आखिर करती भी कैसे? ना तो चुनाव के बाद कोई समीक्षा बैठक हुयी और ना ही अपने कहने के बाद प्रदेश कांग्रेस के सचिव राजा बघेल इसे आयोजित करा पाये। इतना ही नहीं जिला कांग्रेस ने चुनाव परिणामों के विपरीत होने पर भी कोई जांच समिति तक गठित नहीं की है? उल्लेखनीय है कि जिला कांग्रेस द्वारा घोषित समर्थित प्रत्याशियों में सये 11 तक तथा एक कांग्रेस की बागी सहित कुल 12 सदस्य जीते थे लेकिन फिर भी 19 सदस्यीय जिला पंचायत में कांग्रेस अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का चुनाव हार गयी थी। सदस्यों के चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद चुनावों की कमान केवलारी के विधायक रजनीश हरवंश सिंह ने संभाल ली थी। जिला कांग्रेस अध्यक्ष हीरा आसवानी ने सदस्यों की बैठक रजनीश के गृह ग्राम बर्रा में ही आयोजित की थी। हालांकि इस बैठक में रजनीश हरवंश सिंह ने जिले के तमाम वरिष्ठ कांग्रेसियों को बैठक में आमंत्रित किया था लेकिन चुनाव हारने के बाद किसी से भी ना तो उन्होंने विचार विमर्श कर हार के कारणों को जानने की कोशिश की और ना ही बागियों को दंड़ित करने के संबंध में ही कोई चर्चा की गयी। वैसे भी कांग्रेस में पिछले कई से यह परंपरा सी बन गयी है कि एक चुनाव में भीतरघात करो तो अगले चुनाव में इनाम पाओ। इसी के कारण आज कांग्रेस में अनुशासन नाम की चीज ही नहीं रह गयी है क्योंकि यदि कोई अनुशासन का पाठ पढ़ाता है तो उसे तपाक से जवाब मिल जाता है कि क्यों फलां चुनाव में आपने क्या किया था? भूल गये क्या?या ये तक कहने में नहीं चूकते कि सूपा बोले तो बोले अब तो छलनी भी बोंल रही है। इन हालातों में कांग्रेस में कभी अनुशासन बन पायेगा या नहीं? इस बारे में कुछ भी कहना संभव ही नहीं है।
जिला पंचायत का आगाज अच्छा नहीं हुआ-जिला पंचायत के चुनावों के बाद समितियों के चुनावों के लिये बुलायी गयी पहली बैठक ही अध्यक्ष मीना बिसेन सहित अन्य सदस्यों के साथ बहिष्कार के कारण पूरी नहीं हो सकी। उस दिन कमिश्नर द्वारा अधिकृत्त प्राधिकारी भी चुनाव कराने के लिये उपस्थित थे। बताया जाता है कि कांग्रेस के अशोक सिरसाम ने प्रस्ताव रखा था कि प्रत्येक समिति में सदस्यों की संख्या पांच रखी जाये। लेकिन अध्यक्ष श्रीमती मीना बिसेन सदस्य संख्या दस रखना चाहतीं थीं। बजाय कोई समन्वय बनाने के जब अध्यक्ष अपनी बात पर अड़ीं रहीं तो कांग्रेस के 11 सदस्य भी अड़ गये। बीच का कोई रास्ता निकालने के बजाय अध्यक्ष ने अन्य सदस्यों के साथ बैठक का ही बहिष्कार कर दिया जिससे चुनाव हीं नहीं हो पाये। भाजपा के बड़े बड़े रणनीतिकारों द्वारा कांग्रेस का स्पष्ट बहुमत होने के बाद भी अपना अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष बनवाने का दावा किया था उन भाजपा नेताओं को अब इस बात पर भी ध्यान देना चाहिये कि जिला पंचायत का संचालन सही तरीके से हो और जिले के विकास में कोई अवरोध पैदा ना हो। फिलहाल तो आलम यह है कि अभी समितियों के चुनाव ही नहीं हुये हैं तो भला काम प्रारंभ होने की तो बात ही दूर की है। भाजपा के उन वरिष्ठ जनप्रतिनिधियों और नेताओं को अब मार्गदर्शन देने के लिये आगे आना चाहिये जिन्होंने जिताने का श्रेय लिया था। फिलहाल तो आगाज अच्छा नहीं माना जा सकता अब अंजाम क्या होगा? इसके लिये तो समय का इंतजार करना पड़ेगा।  
एक समाचार से आयी कांग्रेस में सक्रियता-बीते दिनो कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की वापसी के बाद दिल्ली में आयोजित किसान रैली में जिले से भी अलग अलग गुटों में लोग गये। वैसे इस रैली में जाने और ले जाने के लिये जिले में कुछ ज्यादा ही सक्रियता दिखायी दी। इस रैली में हवाई जहाज से लेकर ट्रेन और बस से भी लोग दिल्ली पहुचें। इस सक्रियता के पीछे का रहस्य जानने वालों का दावा है कि ऐसा इसलिये हुआ क्योंकि चंद दिनों पहल ही अखबारों में एक समाचार प्रमुखता से छपा था कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव और प्रभारी मोहन प्रकाश के बीच दो दर्जन जिला अध्यक्षों और 50 ब्लाक अध्यक्ष बदलने की सहमति बन गयी हैं और दिल्ली में आयोजित होने वाली किसान रैली के बाद यह बदलाव किया जायेगा। राजनैतिक विश्लेष्कों का मानना है कि इस समाचार ने जिले में कांग्रेसियों में उर्जा का संचार कर दिया और जिला अध्यक्ष बनने के हर दावेदार यह मानने लगे कि इन दो दर्जन बदले जाने अध्यक्षों में सिवनी तो शामिल हैं ही। इसी आशा और विश्वास ने मृतप्राय कांग्रेस में जान डाल दी। सांशल मीडिया में चर्चित फोटो और समाचारों के अनुसार जिले के केवलारी विधायक रजनीश सिह एक प्रतिनिधि मंडल उनके क्ष्ेात्र का गया था जिसमें शामिल होकर ही प्रदेश कांग्रेस के सचिव राजा बघेल और उनके साथियों ने कांग्रेस के नेताओं से भेंट की। दूसरी तरफ प्रदेश कांग्रेस के प्रतिनिधि राजकुमार पप्पू खुराना के नेतृत्व में एक गुट भी शामिल हुआ जिसने रैली में भाग लेने के अलावा कांग्रेस सांसद कमलनाथ से भी भेंट की थी। अब जिले के कांग्रेस नेताओं की मनोकामना पूरी होगी या यह समाचार भीड़ बढ़ाने के लिये प्रायोजित समाचार था? यह तो समय आने पर ही साफ हो पायेगा।
राजा की हवाई यात्रा बनी मीडिया की सुर्खी-राहुल गांधी की किसान रैली में अपने आप राहुल का खास बताने वाले प्रदेश कांग्रेस के सचिव राजा बघेल की इस रैली में शामिल होने के लिये की गयी हवाई यात्रा मीडिया में सुर्खी बन गयी। रैली में शामिल होने के लिये राजा बघेल के साथ जिला कांग्रेस के महामंत्रीगण शिव सनोड़िया और संतोष नान्हू पंजवानी ने नागपुर से दिल्ली का सफर हवायी जहाज से तय किया गया। स्वयं के द्वारा व्हाटस अप पर अप लोड की गयी फोटो ना केवल चर्चित हुयीं वरन जिला भाजपा के महामंत्री संतोष नगपुरे इस पर टिप्पणी भी कर डाली कि मोदी के राज में किसान इतने संपन्न हो गये हैं कि हवाई यात्रा करके रैली में शामिल हो रहें हैं। इसके जवाब में कांग्रेस के लोगों  ने भी टिप्पणी और विषय चर्चा में आ गया। इसके बाद इस यात्रा को लेकर स्थानीय समाचार पत्रों ने भी प्रमुखता से समाचार प्रकाशित किये। हालांकि हवाई जहाज से यात्रा करना कोई ऐसा मुद्दा भी नहीं था जिस पर इतनी चर्चा हो लेकिन खुद की अपलोड की गयी फोटो ही इस मुसीबत का कारण बन गयीं अब भला इसे क्या कहा जाये?“मुसाफिर“
साभार 
दर्पण झूठ ना बोले सिवनी
28 अप्रेल 2015


Monday, March 30, 2015

जिला पंचायत चुनाव में डाले गये वोटों में एक ही खाने में पायी गयी एक से अधिक सीलों से गोपनीयता भंग नहीं हुयी?
भाजपा के रणनीतिकारों के अनुसार उन्होंने जो व्यवस्था जमायी थी उससे एक वोट कम मिला तो कैसे? भाजपा के रणनीतिकारों को कांग्रेस के सदस्यों के साथ साथ अपनी खुद की पार्टी के सदस्यों को भी “मैनेज“ करना पडा। भाजपायी सूत्रों का दावा है कि जो एक वोट निरस्त हुआ है वो भाजपा के किसी जयचंद का ही है। प्रदेश कांग्रेस के सचिव राजा बघेल ने बहुत स्पष्ट शब्दों में यह कहा था कि हर चुनाव के बाद समीक्षा बैठक होना चाहिये और उसके अनुसार कार्यवाही होना चाहिये ना कि कभी भी किसी चुनाव को लेकर आरोप प्रत्यारोप लगते रहें। इंका के वरिष्ठ नेता आशुतोष वर्मा ने अपने संबोधन में कहा था कि कांग्रेस के जिन उम्मीदवारों को जनादेश मिला हैं उन्हें सब नेता अपना मानें। अपनों में ज्यादा अपना तलाशने के प्रयास नुकसानदायक हो जाते हैं। लेकिन इतिहास में पहली बार कांग्रेस ने बहुमत होने के बाद भी जिला पंचायत पर अपना कब्जा बरकरार नहीं रख पायी जो कि पिछले चार चुनावों से बना हुआ था। इसे लेकर राजनैतिक हल्कों में तरह तरह की चर्चायें हैं। बीते दिनों संपन्न इस चुनाव में तीन या चार मतपत्रों में एक ही प्रत्याशी के सामने वाले खाने में एक से अधिक सील लगी पायी गयीं। इन मतपत्रों में दो से लेकर चार और पांच सीले लगी पायीं गयीं। एक बात और आश्चर्य के साथ यह पायी कि सभी सीलें स्पष्ट रूप से दिखायी दे रहीं थी। क्या मात्र 19 वोटों में ऐसा करना गोपनीयता को भंग करने वाला कृत्य नहीं हैं? क्या इन वोटों को निरस्त नहीं किया जाना चाहिये था ? 
जिपं चुनाव में भाजपायी जयचंद की भी चर्चा-जिला पंचायत के चुनावों के बाद जयचंदों की चर्चा थमने का नाम ही ले रहीं है। भाजपा के रणनीतिकारों के अनुसार उन्होंने जो व्यवस्था जमायी थी उससे एक वोट कम मिला तो कैसे? भाजपा को 6 तथा उसकी बागी गोमती ठाकुर सहित कुल 7 मेम्बर थे। भाजपा के रणनीतिकारों का दावा है कि उन्होंने कांग्रेस के तीन मेम्बरों को मैनेज किया था। एक कांग्रेसी वोट उन्हें चंद्रशेखर चर्तुवेदी का विधायक मुनमुन राय के माध्यम से मिलना था।इस तरह भाजपा को अध्यक्ष के लिये 11 वोट मिलना थे लेकिन भाजपा को दस वोट ही मिले। और एक वोट निरस्त हो गया। भाजपायी सूत्रों का दावा है कि जो एक वोट निरस्त हुआ है वो भाजपा के किसी जयचंद का ही है। चूंकि भाजपा अल्पतम में होने के बाद भी चुनाव जीत गयी है इसीलिये वहां जयचंद की तलाश करने के बजाय जीत श्रेय लेने का सिलसिला जारी  है। अखबारों में विज्ञापनों की होड़ लगी हुयी हैं। भाजपा के बड़े नेताओं ्रके साथ जिले के इकलौते भाजपा विधायक कमल मर्सकोले और निर्दलीय विधायक दिनेश मुनमुन राय की फोटो े प्रकाशित हो रही हैं और उन्हें इन चुनावों का कुशल रणनीतिकार माना जा रहा है।संगठन को सत्ता से प्रमुख मानने वाली भाजपा के हाल भी कंछ अलग थे। इन चुनावों में भाजपा के जिलाध्यक्ष वेदसिंह ठाकुर की भूमिका भी सत्तासीनों के बगलगीर होने से ज्यादा और कुछ नहीं थी। इसके अलावा एक बात और सामने आयी है कि भाजपा के रणनीतिकारों को कांग्रेस के सदस्यों के साथ साथ अपनी खुद की पार्टी के सदस्यों को भी “मैनेज“ करना पडा।  
प्रदेश सचिव के कहने के बाद भी नहीं हो पायी कांग्रेस की समीक्षा बैठक-नव निर्वाचित जिला पंचायत सदस्यों के अभिनंदन के लिये आयोजित बैठक में ही प्रदेश कांग्रेस के सचिव राजा बघेल ने बहुत स्पष्ट शब्दों में यह कहा था कि हर चुनाव के बाद समीक्षा बैठक होना चाहिये और उसके अनुसार कार्यवाही होना चाहिये ना कि कभी भी किसी चुनाव को लेकर आरोप प्रत्यारोप लगते रहें। इसके पूर्व इंका के वरिष्ठ नेता आशुतोष वर्मा ने अपने संबोधन में कहा था कि कांग्रेस के जिन उम्मीदवारों को जनादेश मिला हैं उन्हें सब नेता अपना मानें। अपनों में ज्यादा अपना तलाशने के प्रयास नुकसानदायक हो जाते हैं। इन्हीें कांग्रेसी मेम्बरों में से जिन्हें ज्यादा मेम्बर पसंद करें उसे अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष बनाना चाहिये। लकिन जब जिला पंचायत के अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष के चुनाव हुये तो दोनो ही पदों पर कांग्रेस का हार का सामना करना पड़ा। हालांकि इस चुनाव के पहले इंका विधायक रजनीश सिंह के निावास स्थान बर्रा में जिले के कांग्रेस नेताओं की प्रदेश के पर्यवेक्षकों सुरेश राय और पाली भाटिया की उपस्थिति और जिला इंकाध्यक्ष हीरा आसवानी की अध्यक्षता में एक बैठक रखी गयी जिसमें विधायक योगेन्द्र सिंह बाबा सहित सभी नेता शामिल हुये। इस बैठक में कांग्रेस समर्थित चंद्रशेख चर्तुवेदी के अलावा सभी सदस्य शामिल हुये जो कि बाद में भाजपा की ओर से उपाध्यक्ष बने। बैइक के उदबोधनों के बाद रात में अधिकांश नेता चले गये लेकिन पर्यवेक्षक सहित सभी सदस्य रात को वहीं रहें। सदस्यों की रायशुमारी के अलावा प्रत्याशी चयन के लिये और क्या प्रक्रिया अपनायी गयी इसकी जानकारी अधिकांश नेताओं को नहीं दी गयी और दूसरे दिन सुबह लगभग सवा दस बजे मेम्बरों की उपस्थिति में सुरेश राय ने अध्यक्ष पद के लिये ऊषा पटले के नाम के साथ ही उपाध्यक्ष पद के लिये अशोक सिरसाम के नाम की घोषणा कर दी थी और तत्काल ही वाहनों में सवार होंकर काफिला सिवनी रवाना कर दिया गया था। किसी भी मेम्बर की किसी भी नेता से बात ही नहीं हुयी कि मेम्बर इस फैसले से संतुष्ट हैं कि नहीं? यहां यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि श्रीमती पटेल केवलारी क्षेत्र से निर्वाचित हुयीं है तो अशोक सिरसाम के निर्वाचन क्षेत्र में केवलारी विस के एक प्रमुख राजनैतिक केन्द्र भोमा सहित कुछ गांव आते हैं। उम्मीद की जा रही थी कि प्रदेश कांग्रेस सचिव राजा बघेल के निर्देश के अनुसार इस बार समीक्षा बैठक होगी जिसमें खुल कर सभी बातों की चर्चा होगी और जयचंदों को तलाश कर उन्हें दंड़ित किया जायेगा लेकिन ऐसा कुछ भी तक नहीं हो पाया है। चुनाव के बाद कुछ मेम्बरों ने कांग्रेस के कुछ नेताओं को यह जरूर बताया कि अधिकांश मेम्बरों की राय अध्यक्ष पद के लिये चित्रलेखा नेताम और उपाध्यक्ष पद के लिये जयकेश ठाकुर के लिये थी लेकिन उन पर यह फैसला थोप दिया गया। यदि ऐसा भी हाता तो क्याा होता? यह कहना आसान नहीं हैं लेकिन इतिहास में पहली बार कांग्रेस ने बहुमत होने के बाद भी जिला पंचायत पर अपना कब्जा बरकरार नहीं रख पायी जो कि पिछले चार चुनावों से बना हुआ था। इसे लेकर राजनैतिक हल्कों में तरह तरह की चर्चायें हैं। 
मतपत्र में एक से अधिक सील से क्या गोपनीयता भंग नहीं होती?-सिवनी जिला पंचायत में मात्र 19 सदस्य मतपत्र के माध्यम से वेट डालकर अपने अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष का चुनाव करते हैं। बीते दिनों संपन्न इस चुनाव में तीन या चार मतपत्रों में एक ही प्रत्याशी के सामने वाले खाने में एक से अधिक सील लगी पायी गयीं। इन मतपत्रों में दो से लेकर चार और पांच सीले लगी पायीं गयीं। एक बात और आश्चर्य के साथ यह पायी कि सभी सीलें स्पष्ट रूप से दिखायी दे रहीं थी। क्या मात्र 19 वोटों में ऐसा करना गोपनीयता को भंग करने वाला कृत्य नहीं हैं? क्या इन वोटों को निरस्त नहीं किया जाना चाहिये था?ये ऐसे सवाल है जो कि इस चुनाव के बाद से सियासी हल्कों में चर्चित हैं। यह बात भी साफ है कि जनादेश के अनुसार तो यह चुनाव कांग्रेस को जीतना था। लेकिन भाजपा की जीत से यह स्पष्ट है कि कुछ मैनेज किया गया। जब मैनेजमेंट किया जाता है तो यह भी सुनिश्चित करने का प्रयास किया जाता है कि यह पता चल जाये कि जिसये मैनेज किया है उसने वोट दिया है कि नहीं? क्या एक से अधिक लगायी गयी सीलें इसी योजना का हिस्सा थी? यदि ऐसे वोट निकले थे तो फिर निरस्त करने की मांग क्यों नहीं की गयी? प्रशासनिक अधिकारी तो यह कह सकते हैं कि ऐसी कोई आपत्ति नहीं लगायी गयी। तब यह सवाल  ाी उठता है कि क्या जो एक वोट निरस्त हुआ है उसके लिये आपत्ति लगायी गयी थी?क्या मतदान की गोपनीयता बनाये रखना निर्वाचन में लगे प्रशासनिक अमले की जवाबदारी नहीं हैं? ये तमाम ऐसे सवाल है जो इसलिये चर्चित हो रहें हैं क्योंकि प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा ने बहुमत ना होने के बाद भी अपना अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष बनवा लिया है। “मुसाफिर“
सा. दर्पण झूठ ना बोले सिवनी
31 मार्च 2015 से साभार

Monday, March 23, 2015

बहुमत के बाद भी जिला पंचायत अध्यक्ष ,उपाध्यक्ष का चुनाव हारने वाली कांग्रेस जयचंदों को दंड़ित कर पायेगी?
 जिला पंचायत के चुनावों में कांग्रेस को बहुमत होने के बाद भी शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा। जिले के ग्रामीण मतदाताओं ने जिला पंचायत में कांग्रेस का जनादेश दिया था लेकिन अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के पद पर भाजपा की मीना बिसेन और चंद्रशेखर चर्तुवेदी चुनाव जीत गयें हैं। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने सिवनी में भाजपा का अध्यक्ष बिठाने के लिये प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था और ऐसे विचार उन्होंने जिले के कुछ विधायकों से भी व्यक्त कर सहयोग का अनुरोध किया था। जब प्रदेश का मुखिया ही जनादेश के विपरीत ऐसा प्रतिष्ठा का प्रश्न बना ले तो कुछ भी हो सकना संभव था। जब हर तरह के प्रयास के बाद भी बात नहीं बनी तो गोमती ठाकुर  बात मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान से करायी गयी। विश्वसनीय सूत्र तो यहां तक दावा कर रहें हैं कि उन्हें महिला आयोग का सदस्य बना कर लाल बत्ती से नवाजने के लिये आश्वस्त कर दिया गया है। इस चुनाव में कांग्रेस का स्पष्ट बहुमत हाने के बाद भी कांग्रेस चुनाव हार गयी और भाजपा ने पहली बार बीस साल बाद जिला पंचायत में कब्जा कर लिया और उसकी मीना बिसेन अध्यक्ष बनीं। जबकि घंसौर से कांग्रेस समर्थित प्रत्याशी घोषित किये गये चंद्रशेखर चर्तुवेदी भाजपा से उपाध्यक्ष चुने गये।कांग्रेस में हार का विश्लेषण किया जा रहा है और जयचंदों को तलाश कर उन्हें दंड़ित करने की बात की जा रही हैं। लेकिन क्या कांग्रेस जयचंदों को दंड़ित कर पायेगी?
जिपं में कांग्रेस की हार और भाजपा की जीत हुयी चर्चित-जिला पंचायत के चुनावों में कांग्रेस को बहुमत होने के बाद भी शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा। जिले के ग्रामीण मतदाताओं ने जिला पंचायत में कांग्रेस का जनादेश दिया था लेकिन अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के पद पर भाजपा की मीना बिसेन और चंद्रशेखर चर्तुवेदी चुनाव जीत गयें हैं। हालांकि इस चुनाव में जिले के कांग्रेस के दोनों विधायक रजनीश सिंह और योगेन्द्र सिंह बाबा तथा भाजपा की ओर से कमल मर्सकोले और दिनेश मुनमुन राय सक्रिय थे। इस 19 सदस्यीय जिला पंचायत में कांग्रेस के 11 और भाजपा के 6 तथा दोनों ही पार्टियों के एक एक बागी चुनाव जीते थे। पंचायती राज लागू होने के बाद से लगातार चार बार कांग्रेस ने अपना कब्जा बनाये रखा था जो कि बीस साल बाद स्पष्ट बहुमत होने के बाद भी समाप्त हो गया। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस के रणनीतिकार अपने क्षेत्र से निर्वाचित सदस्य को अध्यक्ष बनाने के मोह से परे नहीं रह पाये। इस कारण योग्यता की तुलना में क्षेत्रीयता हावी हो गयी और परिणाम विपरीत आ गये। यह भी कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने सिवनी में भाजपा का अध्यक्ष बिठाने के लिये प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था और ऐसे विचार उन्होंने जिले के कुछ विधायकों से भी व्यक्त कर सहयोग का अनुरोध किया था। जब प्रदेश का मुखिया ही जनादेश के विपरीत ऐसा प्रतिष्ठा का प्रश्न बना ले तो कुछ भी हो सकना संभव था। जिले के प्रभारी मंत्री गौरीशंकर बिसेन और सांसदद्वय फग्गनसिंह कुलस्ते तथा बोधसिंह भगत भी इस प्रयास में जुट गये थे। अंततः भाजपा की मीना बिसेन को 10,कांग्रेस की केवलारी क्षेत्र से चुनी गयीं ऊषा दयाल पटेल को 8 तथा 1 वोट निरस्त हुआ जबकि उपाध्यक्ष पद में भाजपा के चंद्रशेखर चर्तुवेदी और कांग्रेस के अशोक सिरसाम को 9 9 वोट मिले और एक वोट इसमें भी निरस्त हुआ। इस तरह कांग्रेस के खेमे के अध्यक्ष पद में दो तथा उपाध्यक्ष पद में एक वोट बाहर गया और कहा जाता है कि प्रत्याशी चयन से नाराज एक सदस्य ने दोनों ही समय अपना वोट एक ही तरीके से निरस्त करवा दिया। कांग्रेसी खेमें में एक तरफ तो इस बात को लेकर खोज जारी है कि आखिर अपनें में ही जयचंद कौन हैं? तो दूसरी तरफ कुछ नेताओं का यह भी मानना है कि कांग्रेसी सदस्य जयचंद क्यों बने? इसके कारणों को भी तलाशना चाहिये। चुनाव के बाद कुछ कांग्रेसी सदस्यों ने प्रत्याशी चयन के तरीके से भी नाराजगी जतायी हैं तो कुछ सदस्यों का यह भी कहना है कि सदस्यों की राय कुछ और थी और उन पर यह निर्णय थोपा गया था। इसीलिये कांग्रेस को हार का सामना पड़ा। कुछ राजनैतिक प्रेक्षक तो यह मान रहें कि जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने इस चुनाव को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था तो फिर कहीं भी कुछ भी हो जाना असंभव नहीं हैं?
शिवराज से बात करने के बाद मानीं गोमती?-जिले के भाजपा नेताओं ने जिला पंचायत की चार बार लगातार चुनाव जीतने वाली गोमती ठाकुर को इस बार टिकिट नहीं दी थी। लेकिन वो बागी होकर चुनाव लड़ीं थीं और एक ही क्षेत्र से लगातार पांच बार चुनाव जीतने का एक रिकार्ड बनाया था। वे भाजपा के स्थानीय नेतृत्व से बुरी तरह नाराज थीं। वे किसी भी कीमत पर भाजपा को अध्यक्ष उपाध्यक्ष पद के चुनाव में उस वक्त तक वोट देने को तैयार नहीं थीं जबकि उन्हें अध्यक्ष पद का उम्मीदवार ना बना दिया जाय। भाजपायी सूत्रों का कहना है कि जब हर तरह के प्रयास के बाद भी बात नहीं बनी तो उनकी बात मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान से करायी गयी। विश्वसनीय सूत्र तो यहां तक दावा कर रहें हैं कि उन्हें महिला आयोग का सदस्य बना कर लाल बत्ती से नवाजने के लिये आश्वस्त कर दिया गया है। यदि ऐसा होता है तो जिले एक मात्र बरघाट क्षेत्र से विधानसभा चुनाव जीतने वाली भाजपा अब इसी क्षेत्र में मीना बिसेन के बाद दूसरी लाल बत्ती देने की तैयारी कर रही है। 
क्या जयचंदों को दंड़ित करेगी कांग्रेस?-अभी तक के जिला पंचायत अध्यक्ष उपाध्यक्ष चुनाव के बारे में देखा जाये तो पहली आदिवासी महिला अध्यक्ष गीता उइके सिवनी विस से थीं तो उपाध्यक्ष झुम्मकलाल बिसेन केवलारी से थे। दूसरी अनुसूचित जाति की महिला अध्यक्ष रैनवती मानेश्वर लखनादौन विस से थीं तो उपाध्यक्ष आलोक वाजपेयी घंसौर विस के थे। तीसरी पिछड़े वर्ग की किरार जाति की महिला अध्यक्ष प्रीता ठाकुर केवलारी क्षेत्र से थीं तो उपाध्यक्ष शक्तिसिंह घंसौर विस के थे। चौथे पिछड़े वर्ग के कुर्मी जाति के अध्यक्ष मोहन चंदेल नये परिसीमन के अनुसार बरघाट क्षेत्र के थे तो उपाध्यक्ष अनिल चौरसिया केवलारी विस के थे। इस तरह यदि देखा जाये तो कांग्रेस ने घंसौर विस को छोड़कर सभी क्षेत्रों से अध्यक्ष दिये थे तो घंसौर क्षेत्र को दो बार उपाध्यक्ष पद दिया गया था। केवलारी क्षेत्र कोे दो बार उपाध्यक्ष तो एक बार अध्यक्ष पद दिया गया था। घंसौर क्षेत्र परिसीमन में समाप्त कर दिया गया था। इस बार पुराने घंसौर क्षेत्र की दावेदार चित्रलेखा नेताम, जो कि पहले जिपं चुनाव में अध्यक्ष पद की दावेदार थीं, प्रबल दावेदार थीं लेकिन कांग्रेस ने केवलारी क्षेत्र की किरार समाज की ऊषा दयाल पटले को अध्यक्ष पद के लिये उम्मीदवार बनाया और सिवनी विकास खंड़ के अशोक सिरसाम को उपाध्यक्ष पद का उम्मीदवार बनाया था जिनक क्षेत्र में केवलारी विस का भोमा सहित कुछ हिस्सा आता हैं।लेकिन इस चुनाव में कांग्रेस का स्पष्ट बहुमत हाने के बाद भी कांग्रेस चुनाव हार गयी और भाजपा ने पहली बार बीस साल बाद जिला पंचायत में कब्जा कर लिया और उसकी मीना बिसेन अध्यक्ष बनीं। जबकि घंसौर से कांग्रेस समर्थित प्रत्याशी घोषित किये गये चंद्रशेखर चर्तुवेदी उपाध्यक्ष चुने गये। इनके पिता जयंतकुमार चर्तुवेदी घंसौर क्षेत्र के वरिष्ठ कांग्रेस नेता है और लंबे समय से कांग्रेस की राजनीति कर रहें है। कांग्रेस में हार का विश्लेषण किया जा रहा है और जयचंदों को तलाश कर उन्हें दंड़ित करने की बात की जा रही हैं लेकिन पिछले बीस सालों से जयचंदों को पुरुस्कृत करने का कांग्रेस में जो सिलसिला चला है उसे देखते हुये यह नहीं लगता कि जयचंदों के खिलाफ कोई कार्यवाही हो पायेगी। “मुसाफिर”     

Tuesday, January 6, 2015

मेडिकल कालेज को लेकर प्रदेश सरकार के जिम्मेदार लोगों के अलग अलग बयानों से राजनीति गर्मायी
 सिवनी के विधायक दिनेश मुनमुन राय ने एक प्रश्न पूछा था। इस तारांकित प्रश्न क्र. 515 का सदन में जवाब 12 दिसम्बर 2014 को प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने दिया था। अपना पूरक प्रश्न पूछने के पहले मुनमुन राय ने कहा कि,“ माननीय अध्यक्ष महोदय आपकी मार्फत मैं माननीय मंत्री जी से इस प्रश्न का जवाब मांगने से पूर्व  माननीय मुख्यमंत्री जी और माननीय स्वास्थ्य मंत्री जी को बधाई दूंगा कि हमारे जिले में पहली बार एक बड़ा काम मेडिकल कालेज का आपके माध्यम से सरकार के माध्यम से होने जा रहा है।”छिंदवाड़ा जिले के विधायक सोहनलाल बाल्मीक ने कहा कि छंदवाड़ा जिले में मेडिकल कालेज पहले स्वीकृत हुआ था और सरकार की गलत नीतियों के कारण मेडिकल कालेज सिवनी में परिवर्तित किया जा रहा है।”जब 2013 में छिंदवाड़ा और शिवपुरी में केन्द्र द्वारा पोषित मेडिकल कालेज खुलने खोले जाने की घोषणा हुयी थी तब प्रदेश सरकार ने इस बात का खुलासा क्यों नहीं किया था कि प्रदेश सरकार ने प्रस्ताव में सिवनी और सतना प्रस्तावित किया था जिसे तत्कालीन केन्द्र सरकार ने बदल कर छिंदवाड़ा और शिवपुरी कर दिया जहां से केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया सांसद थे। जिले में हुये पहले जिला पंचायत चुनाव में भाजपा की गोमती ठाकुर वार्ड क्रं 8 से चुनाव जीती थी। तब से लेकर पिछले चुनाव तक वे लगातार इसी वार्ड से निर्वाचित होते आयीं है। एक बार पार्टी ने उन्हें अध्यक्ष पद का चुनाव भी लड़वाया था लेकिन वे हार गयीं थीं। 
केन्द्र सरकार द्वारा पोषित मेडिकल कालेज से कब छटेगी धुंध?ः-शीतकालीन सत्र में विधानसभा में जिला चिकित्सालय की स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर सिवनी के विधायक दिनेश मुनमुन राय ने एक प्रश्न पूछा था। इस तारांकित प्रश्न क्र. 515 का सदन में जवाब 12 दिसम्बर 2014 को प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने दिया था। अपना पूरक प्रश्न पूछने के पहले मुनमुन राय ने कहा कि,“ माननीय अध्यक्ष महोदय आपकी मार्फत मैं माननीय मंत्री जी से इस प्रश्न का जवाब मांगने से पूर्व  माननीय मुख्यमंत्री जी और माननीय स्वास्थ्य मंत्री जी को बधाई दूंगा कि हमारे जिले में पहली बार एक बड़ा काम मेडिकल कालेज का आपके माध्यम से सरकार के माध्यम से होने जा रहा है।” मुनमुन राय के इतना कहते ही छिंदवाड़ा जिले के विधायक सोहनलाल बाल्मीक ने कहा कि,“अध्यक्ष महोदय यह विषय के बाहर की बात है। मुझे बोलने का मौका नहीं दिया जा रहा है जो बात हमको कहनी चाहिये। मेडीकल कालेज की बात मैंने उठाई हैं। छिंदवाड़ा जिले में मेडिकल कालेज पहले स्वीकृत हुआ था और सरकार की गलत नीतियों के कारण मेडिकल कालेज सिवनी में परिवर्तित किया जा रहा है।” इस पर व्यवधान हुआ। अध्यक्ष महोदय ने कहा कि,“ आप प्रश्न कर दें। यह उनका प्रश्न है। यह आपका प्रश्न नहीं था। आपका प्रश्न था क्या?” इस पर सोहन लाल बाल्मीक ने कहा कि,“ उनकी बधायी का हम विरोध करेंगें। मुनमुन भाई यह छिंदवाड़ा में सेंक्शन था माननीय कमलनाथ के मार्फत ” इस पर फिर व्यवधान हुआ। और चर्चा फिर मूल प्रश्न पर चालू हो गयी। विधानसभा की इस कार्यवाही विवरण में यह स्पष्ट हो गया है कि विधायक मुनमुन राय ने सदन में मेडिकल कालेज के लिये सिर्फ मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री को बधायी भर दी थी। उनकी इस बधायी से ही सदन में विवाद हुआ और छिंदवाड़ा और सिवनी को लेकर एक सवाल खड़ा हो गया। लेकिन एक बात यह भी स्पष्ट हो गयी कि सदन में मौजूद मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री ने इस मामले में चुप्पी साधे रहे । जबकि छिंदवाड़ा की सभा में मुख्यमंत्री ने यह दहाड़ लगायी कि मेडिकल कालेज छिंदवाड़ा में ही खुलेगा और उनके रहते कोई भी माई का लाल छिंदवाड़ा से उसका हक नहीं छीन सकता।  उन्होंने यह तक कह डाला कि यह अफवाह ना जाने कौन फैला रहा है । जबकि प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री ने अपना रिपोर्ट कार्ड पेश करते समय प्रेस को यह बताया था कि प्रदेश सरकार का मूल प्रस्ताव सिवनी और सतना में केन्द्रीय सरकार द्वारा पोषित मेडिकल कालेज खोले जायेंगें जिसे तत्कालीन यू.पी.ए. सरकार ने बदल कर छिंदवाड़ा और शिवपुरी कर दिया था। लेकिन ये कालेज सतना और सिवनी में ही खुलेंगें। छिंदवाड़ा के कलेक्टर ने मुख्यमंत्री के छिंदवाड़ा प्रवास के पूर्व प्रेस कांफ्रेंस लेकर यह कहा कि मेडिकल कालेज छिंदवाड़ा में ही खुलेगा। इसमें कोई भ्रम नहीं हैं। प्रदेश सरकार के जिम्मेदार लोगों के द्वारा दिये गये अलग अलग बयानों से छिंदवाड़ा और सिवनी के राजनैतिक क्षेत्रों में हडकंप मच गया और आंदोलन तथा बयानबाजी होने लगी। इन सब बातों से एक सवाल यह सामने आता है कि जब 2013 में छिंदवाड़ा और शिवपुरी में केन्द्र द्वारा पोषित मेडिकल कालेज खुलने खोले जाने की घोषणा हुयी थी तब प्रदेश सरकार ने इस बात का खुलासा क्यों नहीं किया था कि प्रदेश सरकार ने प्रस्ताव में सिवनी और सतना प्रस्तावित किया था जिसे तत्कालीन केन्द्र सरकार ने बदल कर छिंदवाड़ा और शिवपुरी कर दिया जहां से केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया सांसद थे। ऐसे में यह उठना स्वभाविक है कि क्या इस स्थान परिवर्तन में प्रदेश की भाजपा सरकार और उसके मुखिया की भी सहमति थी? विधानसभा में सिवनी के लिये बधायी स्वीकार करने वाले शिवराज सिंह की छिंदवाड़ा की सभा में लगायी गयी दहाड़ क्या नगर निगम के होने वाले चुनाव के संबंध में थी? इन तमाम बातों से ऐसा लगता है कि हमेशा सिवनी के साथ छल करने वाली प्रदेश सरकार और उसके मुखिया शिवराज सिंह जिले की भोली भाली जनता की भावनाओं के साथ खिलवाड़ कर रहें हैं। ऐसी ही थोथी घोषणाओं के चलते विस चुनाव में भाजपा का मात्र एक विधायक ही जीत पाया जबकि पिछली विस में भाजपा के तीन विधायक थे। यदि ऐसा ही चलते रहा तो जिले में भाजपा का सूपड़ा साफ होने से कोई नहीं रोक पायेगा। 
गामती ठाकुर की उपेक्षा सियासी हल्कों हुयी चर्चित:-मध्यप्रदेश में 1994 से तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने पंचायती राज लागू किया था। देश के प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा संविधान में संशोधन के बाद प्रदेश में पंचायती राज लागू करने वाला पहला प्रदेश मध्यप्रदेश था। जिले में हुये पहले जिला पंचायत चुनाव में भाजपा की गोमती ठाकुर वार्ड क्रं 8 से चुनाव जीती थी। तब से लेकर पिछले चुनाव तक वे लगातार इसी वार्ड से निर्वाचित होते आयीं है। एक बार पार्टी ने उन्हें अध्यक्ष पद का चुनाव भी लड़वाया था लेकिन वे हार गयीं थीं। इस बार भाजपा ने उनके वार्ड से उन्हें उम्मीदवार ना बना कर माया ठाकरे को अपना समर्थित उम्मीदवार बनाया है। लेकिन गोमती ठाकुर भी फिर से पांचवी बार इसी वार्ड से चुनाव लड़ रहीं है। इससे नाराज होकर भाजपा नेतृत्व ने उनसे जिला महिला मोर्चे के अध्यक्ष पद से स्तीफा ले लिया और आनन फानन में उसे मंजूर भी कर लिया। भाजपा की अंदरूनी राजनीति जानने वालों का कहना है कि चूंकि इस बार जिला पंचायत अध्यक्ष का पद महिला अनारक्षित हुआ है इसलिये सालों से अध्यक्ष बनने की लालसा रखने वाली गोमती ठाकुर को दौड़ से बाहर करने के लिये स्थानीय भाजपायी गुटबंदी के चलते गोमती ठाकुर को भाजपा ने अपना प्रत्याशी नहीं बनाया है। यदि वे प्रत्याशी बन कर जीत कर आतीं तो ना केवल जिले में यह रिकार्ड बनता ब्लकि भाजपा में भी सबसे अनुभवी सदस्य वही होतीं और उनके दावे को दरकिनार करना आसान नहीं होता। इसी के चलतें ये सब सियासी चाले चलीं गयी है। यहां यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि श्रीमती गोमती ठाकुर भाजपा की ना केवल वरिष्ठ सक्रिय महिला नेत्री रहीं हैं वरन जिला भाजपा की महामंत्री सहित कई महत्वपूर्ण पदों की जवाबदारी भी निभा चुकीं हैं। ऐसे में उनकी उपेक्षा किया जाना सियासी हल्कों में चर्चित हैं। “मुसाफिर” 
दर्पण झूठ ना बोले, सिवन
6 जनवरी 2015 से साभार