कमलनाथ को काले झंड़े दिखाने वाले जनमंच ने शिवराज के आने पर विज्ञप्ति जारी कर लगायी गुहार
जनमंच ने कमलनाथ के आगमन पर काले झडे़ं दिखायश्े जबकि शिवराज सिंह के आगमन पर केवल विज्ञप्ति जारी अपने कर्त्तव्यों की इतिश्री कर ली। इससे क्या यह प्रमाणित नहीं होता हैं कि जनमंच पर भाजपा की बी टीम बन कर आरोप गलत नहीं हैं? शायद इसीलिये जनमंच से जन दूर हो गया है और केवल मंच ही शेष रह गया है। जिले के केवलारी विस क्षेत्र से डॉ. वसंत तिवारी की दावेदारी के समचार अखबारों में सुर्खियां बने हुये हैं। अपने दावे को पुख्ता बताने के लिये डॉ. तिवारी के समर्थन में प्रकाशित होने वाले समाचारों में सन 1993 के टिकिट वितरण के मामले को उछाला जा रहा हैं। बताया जा रहा है कि तत्कालीन सांसद कु. विमला वर्मा ने अपने कर्म क्षेत्र केवलारी को छोड़कर अपने कोटे की टिकिट सिवनी से आशुतोष वर्मा को दिलवा दी। लेकिन यह तथ्य सही नहीं हैं। केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ के दौरे के बाद सिवनी विस क्षेत्र से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लडने वाले मुनमुन राय का बयान अखबारों में सुर्खियों में रहा कि उन्हें किसी नाथ की जरूरत नहीं हैं उनके साथ 30 हजार मतदाताओं का साथ हैं। यह जगजाहिर से उन्हें भाजपा और इंका के असंतुष्टों ने खुले आम मदद की थी। इंका के क्षत्रप का तो उन्हें खुला समर्थन प्राप्त था।
नाथ के लिये काले झंड़े शिवराज के लिये सिर्फ विज्ञप्ति..वाह जनमंच-जिले के नागरिकों द्वारा फोर लेन के संघर्ष के लिये जनमंच नामक गैर राजनैतिक संगठन का गठन किया गया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट में सिवनी का मामला दर्ज हो जाने के बाद इसके चंद कर्त्ता धर्त्ताओं ने इसके राजनीतिकरण करने का प्रयास प्रारंभ कर दिया था। कार्यक्रमों में जहां एक तरफ कांग्रेस नेताओं का विरोध तो किया जाता था लेकिन भाजपा के नेताओं पर निशाना साधने से परहेज किया जाने लगा था। इस कारण धीरे धीरे कई प्रमुख लोगों ने इससे किनारा करना चालू कर दिया था। धीरे धीरे यह जन धारणा बनने लगी थी कि जनमंच भाजपा की टीम बन गयी है। एक तरफ तो केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ पर आरोप लगा कि उन्होंने फोर लेन में व्यवधान डाले तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने भी स्थानीय मिशन स्कूल ग्राउंड़ में यह सिंह गर्जना की थी कि सूरज चाहे पूरब की जगह पश्चिम से ऊगने लगे लेकिन फोर लेन सिवनी से ही जायेगी। इतना ही नहीं जनमंच के प्रतिनधिमंड़ल को भी शिवराज सिंह ने दो बार यह आश्वासन दिया था कि वो जनमंच का प्रतिनधि मंड़ल अपने साथ दिल्ली ले जायेंगें और प्रधानमंत्री सहित अन्य केन्द्रीय मंत्रियों से मिलवा कर समस्या को दूर करने का प्रयास करेंगें। यह बात जनमंच के संजय तिवारी ने खुद अखबारों में विज्ञप्तियां प्रकाशित कर छपवायी थी। हाल ही 13 जून को केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ का सिवनी आगमन हुआ था। इस दौरान जनमंच ने उनको काले झंड़े दिखाकर अपना विरोध प्रगट किया था। इसके ठीक 9 दिन बाद जब प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सिवनी आये तो जनमंच ने उनसे विज्ञप्ति जारी करके गुहार लगाना ही उचित ही समझा। जनमंच ने उनको काले झंड़े दिखाना जरूरी नहीं समझा। जनमंच के इस दोहरे चरित्र से यह स्पष्ट हो गया है कि जनमंच अब एक गैर राजनैतिक संगठन नहीं रह गया हैं। होना तो यह था कि शिवराज को भी काले झंड़े दिखाये जाते और उनकी कई अधूरी घोषणाओं के पूरे ना होने पर उनका विरोध किया जाता। इन तमाम बातो ऐसा लगना स्वभाविक ही है कि जनमंच अब भाजपा की बी टीम के रूप में काम करने वाला मंच बन कर रह गया है जिससे जन दूर हो गये है।
केवलारी से वसंत का दवाःतथ्यों को तोड़ मरोड़ कर परोसा -जिले के केवलारी विस क्षेत्र से डॉ. वसंत तिवारी की दावेदारी के समचार अखबारों में सुर्खियां बने हुये हैं। अपने दावे को पुख्ता बताने के लिये डॉ. तिवारी के समर्थन में प्रकाशित होने वाले समाचारों में सन 1993 के टिकिट वितरण के मामले को उछाला जा रहा हैं। इसमें कुछ तथ्यों को ऐसे तोड़ मरोड़ कर पेश किया जा रहा है जिसमें जिले की वरिष्ठ इंका नेत्री कु. विमला वर्मा कां इंगित कर डॉ. तिवारी के त्याग को प्रचारित किया जा रहा हैं। बताया जा रहा है कि तत्कालीन सांसद कु. विमला वर्मा ने अपने कर्म क्षेत्र केवलारी को छोड़कर अपने कोटे की टिकिट सिवनी से आशुतोष वर्मा को दिलवा दी। लेकिन यह तथ्य सही नहीं हैं। सन 1990 में सिवनी क्षेत्र से स्व. हरवंश सिंह चुनाव लड़े थे और वे 6086 वोटों से चुनाव हार गये थे। कांग्रेस ने यह नीति बनायी थी कि पिछला चुनाव पांच हजार से अधिक वोटों से हारने वालों को टिकिट नहीं देगी। स्व. हरवंश सिंह उन दिनों प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी महामंत्री थे और वे ये बात जानते थे कि उनको सिवनी से टिकिट नहीं मिलेगी। इसीलिये उन्होंने कु विमला वर्मा के सांसद बन जाने के बाद केवलारी जैसे सुरक्षित क्षेत्र से टिकिट पाने की रणनीति बनायी थी। उल्लेखनीय है कि 1967 से लेकर 1985 तक कांग्रेस से विमला वर्मा ही चुनाव जीत रहीं थीं। 1990 में वे चुनाव हारीं थीं। अपनी रणनीति के तहत स्व. हरवंश सिंह ने जब जगतगुरू शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी महाराज से बर्रा में भागवत करायी थी तब से ही उन्होंने केवलारी के केन्द्र में रख कर काम करना चालू कर दिया था। सांसद के रूप में विमला वर्मा ने केवलारी क्षेत्र से जिन तीन नामों का पैनल दिया था उसमें डॉ. वसंत तिवारी,स्व. ठा. रामनारायण सिंह और दादू राघवेन्द्रनाथ सिंह के नाम शामिल थे।लेकिन प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी महामंत्री होने के नाते अपनी राजनैतिक रसूख के साथ उन्होंनें स्वामी जी का भी आर्शीवाद प्राप्त कर लिया था जो कि उनकी टिकिट में निर्णायक साबित हो गया था। इन सब बातों को डॉ. वसंत तिवारी भी जानते हैं। लेकिन एक सच्चे कांग्रेसी के रूप में उन्होंनें केवलारी में कांग्रेस का काम किया और बाद में वे जनपद अध्यक्ष भी बने। अब वे यदि टिकिट की दावेदारी कर रहें हैं तो अपना दावा खें इसमें कोई बुरायी नहीं हैं लेकिन तथ्यों को तोड़ने मरोड़ने वाले कोई तथ्य यदि अखबारों में प्रकाशित होते है तो उनका खंड़न करने का साहस भी उन्हें दिखाना चाहिये।
कोई नाथ की चाह नहीं मुनमुन को-केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ के दौरे के बाद सिवनी विस क्षेत्र से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लडने वाले मुनमुन राय का बयान अखबारों में सुर्खियों में रहा कि उन्हें किसी नाथ की जरूरत नहीं हैं उनके साथ 30 हजार मतदाताओं का साथ हैं। यहां यह उल्लेखनीय है कि ऐसे समाचार आये थे कि उन्होंने कांग्रेस में प्रवेश हेतु कमलनाथ से प्रयास किया था। इसके संबंध में उन्होंने यह बयान जारी किया है। मुनमुन राय ने 2008 का चुनाव सिवनी से लड़ा था। यह जगजाहिर से उन्हें भाजपा और इंका के असंतुष्टों ने खुले आम मदद की थी। इंका के क्षत्रप का तो उन्हें खुला समर्थन प्राप्त था। उनके तमाम समर्थकों ने सरेआम अपने हाथों में पंजे के बजाय कप बसी थाम ली थी। यह बात अलग है कि कांग्रेस में या भाजपा में किसी के भी खिलाफ कोई अनुशासनात्मक कार्यवाही नहीं हुयी थी। लेकिन कम से कम मुनमुन राय तो इस बात को भली भांति समझते ही है कि उन्हें तीस हजार वोट कैसे और किसके सहारे मिले थे? हालांकि वे इस बार भी सिवनी से चुनाव लड़ने की तैयारी में है लेकिन इस बार उन्हें नये सिरे से रणनीति बनाये बिना सम्मानजनक स्थिति बनाये रखना बहुत ही कठिन होगा। जिले में कांग्रेस का नया परिवेश कितनामजबूत होगा और भाजपा और निर्दलीयों के लिये कितना चुनौतीपूर्ण होगा? यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। “मुसाफिर“
दर्पण झूठ ना बोले
25 जून 2013 से साभार