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Sunday, January 31, 2010

सबसे अलग दिखने का भाजपायी दावा निकला खोखला-
सबसे अलग दिखने का भाजपायी दावा जिले में खोखला साबित हो गया हैं। जिले की भाजपायी राजनीति में सर्वोच्च माने जाने वाले संगठन मन्त्री भी आरोपों के घेरे से अपने आप को बचा नहीं पाये हैं। पिछले कई सालों से गुटबाजी के राजरोग से ग्रस्त भाजपा रसातल में जाते जा रही हैं।संघीय पृष्ठभूमि के पूर्व विधायक नरेश दिवाकर की ओर संघीय संगठन मन्त्रियों का झुकाव स्वभाविक ही हैं। लेकिन बीते कुछ सालों से यह सब कुछ इतना एकतरफा चल रहा हैं कि अब असन्तोष अपनी हदें पार कर गया हैं। इसी की परिणिति यह हैं कि जिला पंचायत चुनाव के क्षेत्र क्र. 2 के भाजपा के अधिकृत घोषित किये गये प्रत्याशी गिरधारी पटेल ने पूर्व विधायक नरेश दिवाकर और संगठन मन्त्री सन्तोष त्यागी पर खुले आम ना सिर्फ आरोप लगाये वरन उसे प्रेस को जारी भी किया जो स्थानीय अखबारों में प्रमुखता के साथ प्रकाशित भी हुआ।उनका आरोप था कि उन्हें पहले तो प्रत्याशी घोषित किया गया फिर चुनाव के दो दिन पहले दिवाकर और त्यागी ने क्षेत्र में घूम कर यह प्रचारित किया कि अब बागी राजकुमार अधिकृत प्रत्याश्ी हैं। इसका परिणाम यह हुआ कि ना तो गिरधारी जीते और ना ही राजकुमार ब्लकि जीत इस क्षेत्र से कांग्रेस की हो गई। भाजपायी चटखारे लेकर यह कहने से नहीं चूक रहें हैं कि जब नरेश के साथ त्यागी भी विश्वासघाती हो जायेंगें तो भला रोना रोने अब कार्यकत्ताZ कहां जायेंगेंर्षोर्षोगिरधारी पटेल ने अपने आलाकमान को भेजे पत्र में नरेश और त्यागी दोनों पर ही कांग्रेस से सांठ गांठ करने के आरोप लगाये हैं। सियासी हल्कों में इस आरोप पर यह चर्चा चटखारों के साथ हैं कि नरेश पर ऐसे आरोप तो पहला चुनाव जीतने के समय से ही लगते रहें हैं और वे दोनो चुनाव कांग्रेसियों के बल पर ही जीतते भी रहें हैं। हरवंश नरेश नूरा कुश्ती के किस्से पिछले दस सालों तक चर्चित रहें हैं। यह बात अलग हैं कि हरवंश सिंह आज जिस मुकाम पर हैं उन्हें वहां अब नरेश से नूरा कुश्ती की जरूरत ज्यादा ना बची हो परन्तु जिले के स्तर पर एक दूसरे के हित तो साधे ही जा सकते हैं। मामला जो कुछ भी हो लेकिन एक बात तो अब बिल्कुल साफ हो गई हैं कि सबसे अलग दिखने का भाजपायी दावा तार तार हो चुका हैं और अब जिले में भाजपा भी हरवंशी चाल ही चलने लगी हैं जिसमें बागियों को पुरुस्कृत और निष्ठावानों को तिरस्कृत किया जाता हैं। यह सब किसके कारण हो रहा हैंर्षोर्षो इसे खोजना और इससे बचने के उपाय खोजना तो अब भाजपा का ही काम रह गया हैं।

Saturday, January 30, 2010

काश राहुल जी यह भी कह जाते

अपनी स्पष्टवादिता के लिये मशहूर इंका के युवा राष्ट्रीय महासचिव राहुल गांधी ने अपने मध्यप्रदेश प्रवास के दौरान भोपाल में कांग्रेस कार्यालय मेे यह कह कर एक मिसाल पेश की हैं कि कांग्रेस को कांग्रेस ही हराती हैं यदि कांग्रेस एक रहे तो किसी भी प्रदेश में कांग्रेस को कोई नहीं हरा सकता। उनका यह कथन शत प्रतिशत सही हैं। मैं 57 वषीZय कांग्रेसी कार्यकत्ताZ हूंं। मैंने सन 1974-1975 में स्व. जयप्रकाश नारायण जी की समग्र क्रान्ति के दौर में शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय सिवनी म.प्र. के छात्र संघ अध्यक्ष एवं सागर विश्वविद्यालय छात्र महासंघ के कार्यकारिणी सदस्य का चुनाव कांग्रेसी विचारधारा वाले छात्र के रूप में जीता था। इसके बाद मैं जिला एन.एस.यू.आई. का अध्यक्ष, मध्यप्रदेश युवक कांग्रेस में कार्यकारिणी सदस्य तथा 1978 से 1999 तक जिला कांग्रेस कमेटी का महामन्त्री एवं प्रवक्ता के पद पर भी कार्यरत रहा हंूं तथा पिछले दस सालों से जिले में कांग्रेस के सक्रिय सदस्य के रूप में कार्यरत हूंंं। मुझे इस बात का गौरव प्राप्त हैं कि पार्टी ने मुझे मध्यप्रदेश के सिवनी विधानसभा क्षेत्र से 1993 और 1998 के चुनाव में अपना प्रत्याशी बनाया था। सन 1990 के चुनाव में सिवनी विस क्षेत्र से कांग्रेस से चुनाव लड़कर हारने वाले श्री हरवंश सिंह 1993 के चुनाव में तत्कालीन सांसद कुमारी विमला वर्मा के पुराने निर्वाचन क्षेत्र केवलारी से पार्टी के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे थे। जहां से कु. विमला वर्मा सन 1967 से चुनाव जीतते आ रहीं थी। मैं 93 और 98 के दोनों ही चुनाव राहुल जी के कथानुसार कांग्रेसियों के भीतरघात के कारण ही हारा था। इसके बाद इसी क्षेत्र से 2003 का चुनाव कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में श्री राजकुमार उर्फ पप्पू खुराना और 2008 का चुनाव कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में श्री प्रसन्न मालू हार गये थे। हार का कारण वही था। इतना ही नहीं वरन सिवनी लोकसभा क्षेत्र से 1996 और 1999 में कु. विमला वर्मा,2004 में कु. कल्याणी पांड़े और 2009 में सिवनी बालाघाट क्षेत्र से लोकसभा चुनाव में श्री विश्वेश्वर भगत कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में चुनाव इन्हीं कारणों से हार चुके हैं। नगरपालिका अध्यक्ष सिवनी के चुनाव में 1999 में श्री महेश मालू, 2004 में श्रीमती चमेली सनोड़िया और 2009 के चुनाव में संजय भारद्वाज कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में चुनाव हार चुके हैं।जिले की बरघाट विधानसभा क्षेत्र में भी कांग्रेस 1990 से लगातार चुनाव हार रही हैं। कांग्रेस के अभेद्य गढ़ रहे लखनादौन विस क्षेत्र में भी कांग्रेस 2003 के से हार रही हैं। इसी चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में गौंड़वाना गणतन्त्र पार्टी के रामगुलाम उइके से कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में श्रीमती उर्मिला सिंह चुनाव हार चुकीं हैं। समूचे जिले में हारने वाली कांग्रेस 1993 से लगातार अभी तक सिर्फ केवलारी विधानसभा से जीतते आ रही हैं । यहां के कांग्रेस विधायक हरवंश सिंह आजकल विधानसभा के उपाध्यक्ष हैं। एक बात और विशेष तौर पर गौर करने लायक हैं कि सन 1993 के चुनाव के बाद से इस जिले में कांग्रेस में बागियों को पुरुस्कृत करने की परंपरा चल रही हैं। लोकसभा के 96 के चुनाव के बागी श्री शोभाराम भलावी को पहले केबिनेट रेंक के साथ निगम अध्यक्ष बनाया फिर 2003 में लखनादौन विस क्षेत्र से कांग्रेस के प्रत्याशी अप्रत्याशित रूप से बना दिये गये थें। 1998 के चुनाव में इसी विस क्षेत्र से बागी रहे श्री बेनी परतें इंका के युवा विधायक श्री रणधीर सिंह के असामयिक निधन के बाद 2000 के उप चुनाव में ही कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में टिकिट लाने और जीतने में कामयाब हो गये थे लेकिन अगले चुनाव में इंका विधायक रहते हुये भी उनकी टिकिट काट कर श्री शोभाराम भलावी को टिकिट दे दिया गया। सन 2008 के चुनाव में श्री बेनी परते को फिर से कांग्रेस की टिकिट मिली लेकिन वे चुनाव जीत नहीं पाये। ऐसा ही कुछ बरघाट विधानसभसा क्षेत्र में भी हुआ हैं। 1998 का विधानसभा चुनाव बागी उम्मीदवार के रूप में केवलारी जनपद पंचायत के उपाध्यक्ष श्री भोयाराम चौधरी ने लड़ा था जो कि काग्रेंस की हार कारण बने थे। लेकिन अगले ही विधानसभा चुनाव 2003 में श्री भोयाराम चौधरी को इसी क्षेत्र से कांग्रेस की टिकिट मिली और वे भी हार गये। राहुल जी ने भोपाल में जो कुछ कहा उसके प्रमाण इस जिले में साक्षात देखने को मिले हैं कि काग्रेस कांग्रेस के ही कारण लगातार हारते चली आ रही हैं। हर चुनाव की हार के बाद विश्लेषण भी हुये और हारने वाले पार्टी प्रत्याशियों ने भीतरघात की शिकायतें भी की हैं। लेकिन भीतरघातियों के खिलाफ कोई कार्यवाही होने के बजाय इस जिले में बागियों को पुरुस्कृत और निष्ठावान कार्यकत्ताZओं को तिरस्कृत किया जाता रहा हैं। काश राहुल जी यह भी कह जाते कि अब आने वाले समय में पार्टी से गद्दारी करने वालों बख्शा नहीं जायेगा तो हम जैसे निराशा की गर्त में जाते जा रहे निष्ठावान कांग्रेसियों के हौसले एक बार फिर बुलन्द हो जाते।

Wednesday, January 27, 2010

on republic day of india

`गण´ सुस्त और `तन्त्र´ अनियन्त्रित हो जाये तो कैसे सफल होगा `गणतन्त्र´ आज पूरा देश इकसठवां गणतन्त्र दिवस उल्लास के साथ मना रहा हैं। आज के दिन हमने अपने देश का संविधान लागू किया था।जनता के द्वारा,जनता के लिये,जनता के शासन की व्यवस्था इस संविधान में की गईं थीं।समस्त कायों के सुचारु रूप से संचालन के लिये कार्यपालिका,विधायिका और न्यायपालिका के साथ साथ पारदशीZ प्रशासन के मूल उद्देश्य से प्रेस को चौथे स्तंभ के रूप में मान्यता दी गई थी। संविधान में सभी स्तंभों के कार्यक्षेत्र का स्पष्ट विवरण दिया गया हैं। लेकिन कई बार ऐसे मौके भी आये जब इनमें यह होड़ मच गई कि कौन सर्वोच्च हैं र्षोर्षो ऐसे अवसर भी आये जब कभी विधायिका और न्यायपालिका आमने सामने दिखी तो कभी कार्यपालिका और विधायिका में टकराहट के स्वर सुनायी दिये तो कभी प्रेस पर स्वच्छन्दता के आरोप लगे। ऐसे दौर में कुछ ऐसे अप्रिय वाकये भी हुये जो कि निदंनीय रहे। Þगणß को िश्क्षित कर जागृत करने के अभियान को गति देने के प्रयास किये गये। लेकिन शिक्षा के क्षेत्र में इतने अधिक प्रयोग किये गये कि यह लक्ष्य हमसे आज साठ साल भी दूर ही दिखायी दे रहा हैं।वर्तमान में सरकार शिक्षा की गारंटी देने के उसी प्रकार प्रयास कर रही हें जैसा कि रोजगार गारंटी योजना के तहत रोजगार की गारंटी दी गई हैं। शिक्षा को प्रोत्साहन देकर जागृति लाने की महती आवश्यकता आज भी महसूस की जा रही हैं। ताकि ÞगणÞ चुस्त हो सके। ßतन्त्रß को नियन्त्रित रखना अत्यन्त आवयक हैं। Þतन्त्रÞ यदि निरंकुश हो जाये तो ÞगणÞ के अधिकारो को सुरक्षित रख पाना एक दुष्कर कार्य हो जाता हैं। एक समस्या यह भी हैं कि यदि देश में कोई ईमानदार हैं तो वो बाकी पूरे देश को बेइमान मानने लगता हैं। ऐसी घारणा हैं कि तन्त्र को नियन्त्रित रखने के लिये पारदशीZ प्रशासन होना अत्यन्त आवश्यक हैं। इस दिशा में सरकार द्वारा लागू किया गया सूचना का अधिकार कानून कारगर साबित हो सकता हैं। लेकिन कानूनी बारिकियों और प्रशासनिक अमले की हठधर्मिता कई मामलों में आड़े आते दिखायी दे रही हैं। राजनेता भी तन्त्र से राजनैतिक काम लेकर उन्हें नियन्त्रित करने में असहाय दिख रहें हैं। जिससे तन्त्र अनियन्त्रित ही दिखायी दे रहा हैं। ÞगणÞ यदि सुस्त हो और Þतन्त्रÞ यदि अनियन्त्रित हो भला Þगणतन्त्रÞकैसे सफल हो पायेगार्षोर्षो61 वें गणतन्त्र दिवास की पूर्व संध्या पर हमारी यही कामना हैं कि ÞगणÞ जागृत हो,Þतन्त्रÞ नियन्त्रित हो और राजनेता इस दुष्कर कार्य को कर सकें ताकि Þगणतन्त्रÞ सफल हो सके।

Saturday, January 23, 2010

artical on republic day of india

`गण´ सुस्त और `तन्त्र´ अनियन्त्रित हो जाये तो कैसे सफल होगा `गणतन्त्र´ आज पूरा देश इकसठवां गणतन्त्र दिवस उल्लास के साथ मना रहा हैं। आज के दिन हमने अपने देश का संविधान लागू किया था।जनता के द्वारा,जनता के लिये,जनता के शासन की व्यवस्था इस संविधान में की गईं थीं।समस्त कायों के सुचारु रूप से संचालन के लिये कार्यपालिका,विधायिका और न्यायपालिका के साथ साथ पारदशीZ प्रशासन के मूल उद्देश्य से प्रेस को चौथे स्तंभ के रूप में मान्यता दी गई थी। संविधान में सभी स्तंभों के कार्यक्षेत्र का स्पष्ट विवरण दिया गया हैं। लेकिन कई बार ऐसे मौके भी आये जब इनमें यह होड़ मच गई कि कौन सर्वोच्च हैं र्षोर्षो ऐसे अवसर भी आये जब कभी विधायिका और न्यायपालिका आमने सामने दिखी तो कभी कार्यपालिका और विधायिका में टकराहट के स्वर सुनायी दिये तो कभी प्रेस पर स्वच्छन्दता के आरोप लगे। ऐसे दौर में कुछ ऐसे अप्रिय वाकये भी हुये जो कि निदंनीय रहे। Þगणß को िश्क्षित कर जागृत करने के अभियान को गति देने के प्रयास किये गये। लेकिन शिक्षा के क्षेत्र में इतने अधिक प्रयोग किये गये कि यह लक्ष्य हमसे आज साठ साल भी दूर ही दिखायी दे रहा हैं।वर्तमान में सरकार शिक्षा की गारंटी देने के उसी प्रकार प्रयास कर रही हें जैसा कि रोजगार गारंटी योजना के तहत रोजगार की गारंटी दी गई हैं। शिक्षा को प्रोत्साहन देकर जागृति लाने की महती आवश्यकता आज भी महसूस की जा रही हैं। ताकि ÞगणÞ चुस्त हो सके। ßतन्त्रß को नियन्त्रित रखना अत्यन्त आवयक हैं। Þतन्त्रÞ यदि निरंकुश हो जाये तो ÞगणÞ के अधिकारो को सुरक्षित रख पाना एक दुष्कर कार्य हो जाता हैं। एक समस्या यह भी हैं कि यदि देश में कोई ईमानदार हैं तो वो बाकी पूरे देश को बेइमान मानने लगता हैं। ऐसी घारणा हैं कि तन्त्र को नियन्त्रित रखने के लिये पारदशीZ प्रशासन होना अत्यन्त आवश्यक हैं। इस दिशा में सरकार द्वारा लागू किया गया सूचना का अधिकार कानून कारगर साबित हो सकता हैं। लेकिन कानूनी बारिकियों और प्रशासनिक अमले की हठधर्मिता कई मामलों में आड़े आते दिखायी दे रही हैं। राजनेता भी तन्त्र से राजनैतिक काम लेकर उन्हें नियन्त्रित करने में असहाय दिख रहें हैं। जिससे तन्त्र अनियन्त्रित ही दिखायी दे रहा हैं। ÞगणÞ यदि सुस्त हो और Þतन्त्रÞ अनियन्त्रित हो भला Þगणतन्त्रÞकैसे सफल हो पायेगार्षोर्षो61 वें गणतन्त्र दिवास की पूर्व संध्या पर हमारी यही कामना हैं कि ÞगणÞ जागृत हो,Þतन्त्रÞ नियन्त्रित हो और राजनेता इस दुष्कर कार्य को कर सकें ताकि Þगणतन्त्रÞ सफल हो सके।आशुतोष वर्मा,9425174640

Tuesday, January 19, 2010

wah kya rajneeti hai

बन्दों पर ना आये आंच, आका ऐसी करायें जांच, जिले की कांग्रेसी राजनीति का हाल यह हो गया हैं कि सिवनी और बरघाट विस क्षेत्र से 1990 के चुनाव से कांग्रेस हारती चली आ रही हैं। पिछले तीन लोक सभा चुनावों में भी कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी हैं। हर बार भीतरघात के आरोप प्रत्याशियों ने लगाये लेकिन भीतरघात करने वाले कांग्रेसियों के आका मध्यप्रदेश विधानसभा के उपाध्यक्ष हरवंश सिंह इतने अधिक ताकतवर हो चुकें हैं कि इनके समर्थकों का बाल भी बांका नहीं हो पाता हैं। ऐसा ही कुछ दृश्य इस नगरपालिका चुनाव में भी दिखा। सिवनी के अध्यक्ष पद के इंका प्रत्याशी संजय भारद्वाज ने चुनाव के दौरान ही चार इंका नेताओं जिला इंका के महामन्त्री द्वय हीरा आसवानी,असलम खॉन,युवा इंका के राष्ट्रीय समन्वयक राजा बघेल और नपा उपाध्यक्ष सन्तोष उर्फ नान्हू पंजवानी के खिलाफ लिखित शिकायत की थी। इनमें राजा बधेल और नान्हू पंजवानी को तो निष्कासित और निलंबित कर दिया गया हैं लेकिन असलम भाई को नोटिस जारी किया गया हैं तथा हीरा आसवानी का मामला प्रदेश इंका को भेज दिया गया हैं। इंकाई खेमे में एक बार फिर यह चर्चा चल पड़ी हैं कि हरवंश सिंह इन नेताओं के बचाव में सामने आ गये हैं। वैसे भी इंका में यह कहावत चटखारे के साथ चर्चित रहती हैं कि पार्टी और प्रत्याशी भले ही हारते रहें पर बन्दों पर ना आये आंच, आका ऐसी करायें जांच, अब देखना यह हैं कि जिन इंका नेताओं पर अनुशासन का डं़ड़ा चला हैं वे इस बार भी हमेशा की तरह बच जाते हैं या फिर सजा पाते हैं।आशुतोष वर्मा
क्या विस चुनाव का भुवन का कर्जा चुकाया हरवंश नेर्षोर्षोजिला पंचायत के चुनाव में केवलारी विधानसभा क्षेत्र के वार्ड क्र. 11 का चुनाव अत्यन्त रोचक था। यहां से इंका समर्थक श्रीमती फरीदा साबिर अंसारी के विरुद्ध भाजपा समर्थित प्रत्याशी के रूप में वृन्दा भुवन ठाकुर चुनाव मैदान में थीं। यहां यह विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं कि फरीदा अंसारी 1999 से 2004 तक केवनारी जनपद पंचायत की अध्यक्ष थीं। पिछले जिला पंचयात चुनाव में इसी वार्ड के वे ना केवल सशक्त दावेदार थीं वरन पिछड़ा वर्ग महिला के लिये अध्यक्ष पद आरक्षित होने के कारण वे एक योंग्य उम्मीदवार थीं। लेकिन विधानसभा चुनाव के कुछ समय पहले भाजपा से कांग्रेस में आये आनन्द भगत के लिये क्षेत्रीय इंका विधायक रहवंश सिंह ने फरीदा अंसारी को चुनाव नहीं लड़ने दिया। इस बार जब वे चुनाव लड़ीं तो अध्यक्ष पद अनारक्षित वर्ग के लिये था। दूसरी ओर यह तथ्य भी कम महत्वपूर्ण नहीं हैं कि पंवार समाज की भाजपा समर्थित घोषित की गई प्रत्याशी वृन्दा ठाकुर के पति भुवन ठाकुर ने केवलारी विस क्षेत्र से भाजपा के बागी उम्मीदवार के रूप में 2009 का चुनाव लड़ा था। इससे पंवार समाज के ही भाजपा प्रत्याशी डॉ. ढ़ालसिंह बिसेन समाजिक वोटों में बिखराव के राजनैतिक सन्देश को झुठला नहीं पाये थे। कंवलारी से भाजपा उम्मीदवार के रूप मे 93 और 98 का चुनाव लड़ चुकीं नेहा सिंह के समर्थकों ने यह भी बताया हैं कि इन चुनावों में भी भुवन ने भाजपा के बजाय हरवंश का ही काम किया था और शायद इसीलिये भाजपा नेत्री नेहा सिंह के कांग्रेस प्रवेश के समय उनके साथ भुवन ने कांग्रेस ज्वाइन नहीं की थी। अब तो जिले में कांग्रेस की तरह ही भाजपा में भी बागियों को पुरुस्कृत का दौर शुरू हो गया हैं। इस चयन को लेकर भाजपा में काफी हड़कंप मचा और भाजपा के उगली मंड़ल ने आशा राजपूत को सतर्थित प्रत्याशी घोषित कर दिया। इसके कारण जिले से उन्हें नोटिस भी मिला। भाजपा जैसी अनुशासित पार्टी में इतनी बगावत होने के बावजूद भी भाजपा प्रत्याशी का भारी वोटों से जीतना सियासी गलियारों में चर्चित हैं। ऐसा मानने वालों की भी कमी नहीं हैं कि हरवंश सिंह ने भुवन ठाकुर का विधानसभा चुनाव का कर्जा चुकाने और ताकतवर अंसारी परिवार को धूल चटाने लिये ऐसी सियासी बिसात बिछायी कि एक तीर से दो दो शिकार हो गये।आशुतोष वर्मा

political analysis of seoni

बन्दों पर ना आये आंच, आका ऐसी करायें जांच,
जिले की कांग्रेसी राजनीति का हाल यह हो गया हैं कि सिवनी और बरघाट विस क्षेत्र से 1990 के चुनाव से कांग्रेस हारती चली आ रही हैं। पिछले तीन लोक सभा चुनावों में भी कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी हैं। हर बार भीतरघात के आरोप प्रत्याशियों ने लगाये लेकिन भीतरघात करने वाले कांग्रेसियों के आका मध्यप्रदेश विधानसभा के उपाध्यक्ष हरवंश सिंह इतने अधिक ताकतवर हो चुकें हैं कि इनके समर्थकों का बाल भी बांका नहीं हो पाता हैं। ऐसा ही कुछ दृश्य इस नगरपालिका चुनाव में भी दिखा। सिवनी के अध्यक्ष पद के इंका प्रत्याशी संजय भारद्वाज ने चुनाव के दौरान ही चार इंका नेताओं जिला इंका के महामन्त्री द्वय हीरा आसवानी,असलम खॉन,युवा इंका के राष्ट्रीय समन्वयक राजा बघेल और नपा उपाध्यक्ष सन्तोष उर्फ नान्हू पंजवानी के खिलाफ लिखित शिकायत की थी। इनमें राजा बधेल और नान्हू पंजवानी को तो निष्कासित और निलंबित कर दिया गया हैं लेकिन असलम भाई को नोटिस जारी किया गया हैं तथा हीरा आसवानी का मामला प्रदेश इंका को भेज दिया गया हैं। इंकाई खेमे में एक बार फिर यह चर्चा चल पड़ी हैं कि हरवंश सिंह इन नेताओं के बचाव में सामने आ गये हैं। वैसे भी इंका में यह कहावत चटखारे के साथ चर्चित रहती हैं कि पार्टी और प्रत्याशी भले ही हारते रहें पर बन्दों पर ना आये आंच, आका ऐसी करायें जांच, अब देखना यह हैं कि जिन इंका नेताओं पर अनुशासन का डं़ड़ा चला हैं वे इस बार भी हमेशा की तरह बच जाते हैं या फिर सजा पाते हैं।
क्या विस चुनाव का भुवन का कर्जा चुकाया हरवंश
जिला पंचायत के चुनाव में केवलारी विधानसभा क्षेत्र के वार्ड क्र. 11 का चुनाव अत्यन्त रोचक था। यहां से इंका समर्थक श्रीमती फरीदा साबिर अंसारी के विरुद्ध भाजपा समर्थित प्रत्याशी के रूप में वृन्दा भुवन ठाकुर चुनाव मैदान में थीं। यहां यह विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं कि फरीदा अंसारी 1999 से 2004 तक केवनारी जनपद पंचायत की अध्यक्ष थीं। पिछले जिला पंचयात चुनाव में इसी वार्ड के वे ना केवल सशक्त दावेदार थीं वरन पिछड़ा वर्ग महिला के लिये अध्यक्ष पद आरक्षित होने के कारण वे एक योंग्य उम्मीदवार थीं। लेकिन विधानसभा चुनाव के कुछ समय पहले भाजपा से कांग्रेस में आये आनन्द भगत के लिये क्षेत्रीय इंका विधायक रहवंश सिंह ने फरीदा अंसारी को चुनाव नहीं लड़ने दिया। इस बार जब वे चुनाव लड़ीं तो अध्यक्ष पद अनारक्षित वर्ग के लिये था। दूसरी ओर यह तथ्य भी कम महत्वपूर्ण नहीं हैं कि पंवार समाज की भाजपा समर्थित घोषित की गई प्रत्याशी वृन्दा ठाकुर के पति भुवन ठाकुर ने केवलारी विस क्षेत्र से भाजपा के बागी उम्मीदवार के रूप में 2009 का चुनाव लड़ा था। इससे पंवार समाज के ही भाजपा प्रत्याशी डॉ. ढ़ालसिंह बिसेन समाजिक वोटों में बिखराव के राजनैतिक सन्देश को झुठला नहीं पाये थे। जिले में कांग्रेस की तरह ही भाजपा में भी बागियों को पुरुस्कृत का दौर शुरू हो गया हैं। इस चयन को लेकर भाजपा में काफी हड़कंप मचा और भाजपा के उगली मंड़ल ने आशा राजपूत को सतर्थित प्रत्याशी घोषित कर दिया। इसके कारण जिले से उन्हें नोटिस भी मिला। भाजपा जैसी अनुशासित पार्टी में इतनी बगावत होने के बावजूद भी भाजपा प्रत्याशी का भारी वोटों से जीतना सियासी गलियारों में चर्चित हैं। ऐसा मानने वालों की भी कमी नहीं हैं कि हरवंश सिंह ने भुवन ठाकुर का विधानसभा चुनाव का कर्जा चुकाने और ताकतवर अंसारी परिवार को धूल चटाने लिये ऐसी सियासी बिसात बिछायी कि एक तीर से दो दो शिकार हो गये।

nagar palika upadhyaksh chunav se bhochak raha gayi hai bjp aur congress

पालिका उपाध्यक्ष चुनाव के परिणाम से भौंचक हैं इंका और भाजपा - नपा उपाध्यक्ष के चुनाव में इस बार फिर अप्रत्रूाशित रूप से कांग्रेस के राजिक अकील ने भाजपा की संध्या मनु सोनी को हरा कर इतिहास दोहरा दिया हैं। पिछले चुनाव में भी भाजपा के सुजीत जैन को कांग्रेस के सन्तोष नान्हू पंजवानी नें हराया था। इस बार के चुनाव में इंका और भाजपा में मची गुटबाजी के घमासान के चलते दोनों ही पार्टियों के रणनीतिकार एक दूसरे के दलों के असन्तोष एवं किसके प्रत्याशी बनने पर कौन फूट सकता हैंं इस पर नज़रें गढ़ाये हुये थे।वैसे तो भाजपा के पास 13 एवं इंका के पास राकपा सहित 12 वोट थे। लेकिन चुनाव में इंका को 13 और भाजपा को 12 वोट मिले हैं। कहने को तो भाजपा में एक ही वोट की हेर फेर हुयी हैं लेकिन भाजपा के रणनीतिकार यह मानने को तैयार नहीं हैं कि सेंधमारी में सेट किये इंका के चार वोट उसे नहीं मिले हैं। यदि भाजपा के रणनीतिकारों का यह मानना सही हैं तो फिर इंका और भाजपा दोनों के लिये यह एक गम्भीर चिन्तन का विषय हैं कि इंका के किन चार पार्षदों ने भाजपा को और भाजपा के किन पांच पार्षदों ने कांग्रेस को वोट दिये हैं। भाजपायी खेमे का दावा हैं कि इंका के असन्तुष्ट खेमें के एक जवाबदार नेता के साथ जिला इंका के एक पदाधिकारी ने स्वयं संगठन मन्त्री से भेंट कर चार पार्षदों का समर्थन दिलाने का विश्वास दिलाया था। दूसरी ओर भाजपा में इस बात को लेकर गहन चिन्तन हो रहा हैं 17 वोट बटोरने की रणनीति पर चल रही भाजपा को 12 वोट मिलकर ही कैसे रह गये। भाजपा के एक वर्ग का मानना हैं कि पालिका के पिछले कार्यकाल में हुये भ्रष्टाचार की हर फाइल का पहला पन्ना लोक कर्म समिति के अध्यक्ष मनु सोनी का ही रहता था। जिसका खामियाजा भाजपा के कई पार्षद आज भी कलेक्टर के यहां से मिले नोटिस के रूप में भुगत रहें हैं। इसलिये उनकी पत्नी को पूर्व विधायक नरेश दिवाकर की पहल पर उम्मीदवार बनाने से भाजपा में यह विस्फोट हुआ और भाजपा के पांच पार्षदों ने बगावत कर इंका को वोट कर डाले। इंका की इस जीत ने एक इंकाई खेमें को भी निराश कर दिया हैं जो कि यह चाहता था कि उपध्यक्ष पद में कांग्रेस यदि हार जाती हैं तो कुछ लोगों के सिर पर ठीकरा फोड़नें में आसानी होगी। लेकिन जीत जाने पर ऐसे नेताओं ने जीत के जुलूस में शामिल होने से भी कोई परहेज नहीं किया।

Monday, January 11, 2010

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हरवंश सिंह का कहना,जो जीता वो अपनासिवनी। जिले में पंचायत चुनावों की गहमा गहमी अपने चरम पर हैं। जिले मे तीन चरणों में होने वाले इस चुनाव में इंका ने अपने समर्थित उम्मीदवारों की घोषणा नहीं की हैं। इस संबंध में इंकाइयों के बीच यह जुमला बहुत चर्चित है कि हरवंश सिंह का कहना जो जीता वो अपना। पिछले तीन चुनावों का हवाला देते हुये कांग्रेसियों का यह मानना है कि चुनाव जीतने के लिये यही रणनीति ठीक है जिस पर चलकर कांग्रेस ने तीनों ही बार जिला पंचायत में अपना अध्यक्ष बना लिया था। उल्लेखनीय है कि जिला पंचायत की पहली अध्यक्ष गीता उइके,दूसरी अध्यक्ष रैनवती मानेश्वर और तीसरी अध्यक्ष के रूप में प्रीता ठाकुर कांग्रेस उममीदवार के रूप में चुनाव जीतीं थीं। इनमें गीता उइके अनुसूचित जनजाति,रैनवती मानेश्वर अनुसूचित जाति और प्रीता ठाकुर अन्य पिछड़ा वर्ग की थीं। तीनों ही कैसे अध्यक्ष बनीं और कैसी इनकी गति रहीर्षोर्षो इससे सब भली भांति परिचित ही हैं। इस बार अनारक्षित वर्ग के लिये आरक्षित अध्यक्ष पद जिला पंचायत की कुर्सी पर कौन बैठेगार्षोर्षो इस पर कुछ भी कहना फिलहाल संभव नहीं हैं।आशुतोष वर्मा,सिवनीइंका में भाग्यशाली हैं सुधीर जैनसिवनी। वैसे तो जिला कांग्रेस कमेटी ने जिला पंचायत में अपने समर्थित प्रत्याशियों की सूची जारी नहीं की हैंलेकिन वार्ड नंबंर 4 से जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ रहे ब्लाक कांग्रेस कमेटी सिवनी ग्रामीण के कोषाध्यक्ष सुधीर जैन एक मात्र भाग्यशाली उम्मीदवार हैं जिनके बारे में जिला इंका के समर्थित प्रत्याशी का उल्लेख किया जा रहा हैं। इतना ही नहीं वरन जब सुधीर ने पूरे ताम झाम के साथ के साथ अपना फार्म भरा था तब जिला इंकाध्यक्ष महेश मालू भी उनके साथ फार्म भराने गये थे। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार उस वक्त जिले के अन्य क्षेत्रों से अपना फार्म भर रहे कई इंका नेता जिला निर्वाचन अधिकारी के कार्यालय में उपस्थित थे लेकिन जैसे ही सुधीर जैन का फार्म भरा गया वैसे ही इंकाध्यक्ष वहां से चले गये जिसे लेकर इंकाइयों में तरह तरह की चर्चायें होने लगी हैं। पंचायत चुनाव लड़ रहें तमाम इंका नेता सुधीर जैन को बहुत भाग्यशाली मान रहें हैं जिन्हें ऐसा सहयोग मिल रहा हैे। उललेखनीय हैं कि केवलारी विधानसभा क्षेत्र के अंर्तगत आने वाले वार्ड नंबंर चार से चुनाव लड़ने वाले सुधीर जैन ने क्षेत्रीय विधायक हरवंश सिंह के जन्म दिन पर 60 किलो का केवलाारी विस क्षेत्र के आकार का केक सिवनी स्थित अपनी दुकान पर हरवंश सिंह से ही कटवाया था।आशुतोष वर्मा,सिवनीभाजपा में समर्थित और समर्पित प्रत्याशियों में मचा है घमासानसिवनी। जिला भाजपा ने जिला पंचायत के 19 सदस्यों के साथ ही जिले के आठों जनपद पंचायत पंचायत क्षेत्रों के जनपद सदस्यों के चुनाव के लिये अपने समर्थित प्रत्याशियों की सूची जारी की हैं। लेकिन भाजपा में समर्थित और समर्पित प्रत्याशियों में घमासान मची हुई हैं। भाजपाइयों में चर्चा हैं कि जिले के भाजपा नेताओं ने अपने समर्थकों को भाजपा समर्थित उम्मीदवार बनवाने की होड़ में भाजपा के प्रति समर्पित नेताओं की उपेक्षा की हैं। इसी कारण मुख्यमंत्री सहित अन्य प्रमुख नेताओं की फोटों के साथ अपनी प्रचार प्रसार सामग्री छपवाकर भाजपा के समर्पित उम्मीदवार भाजपा के समर्थित उम्मीदवारों के सामने चुनाव मैदान में डटे हैं। अपने समर्थित प्रत्याशियों के पक्ष में अपने ही पार्टी के समर्पित नेताओं के फार्म ना उठवा पाने वाली जिला भाजपा ने अब ऐसे नेताओं को कारण बताओ नोटिस जारी कर अनुशासन का डंड़ा चलाने की योजना बनायी हैं। अखबारों को जारी भाजपा की अधिकृत विज्ञप्ति में यह बताया गया हें कि जिपं के 19 वाडोZं में से दस वाडोZं में चुनाव मैदान में डटे भाजपा के समर्पित नेताओं को कारण बताओ नोटिस जारी किये गये हैं। समझा जात है कि भारी संख्या में जनपद पंचायतों में भी समर्पित भाजपा नेता चुनाव मैदान में डटे हैं। जिनमें से कुछ को कारण बताओ नोटिस जारी कर दिये गये हें तो तो बाकी को भी ऐसे नोटिस जारी करने की तैयारी प्रारंभ हो गयी हैे। यहां यह उल्लेखनीय हैं कि पिछले कई चुनावों से भाजपा के विरुद्ध काम करने वाले नेताओं को पुरसकृत करने का जो सिलसिला चला हैं उससे अनुशासित पार्टी कही जाने वाली भाजपा की छवि पर काफी विपरीत असर पड़ा हैं।आशुतोष वर्मा,सिवनी

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पंचायत चुनाव प्रचार में भाजपा नेता सक्रिय इंका नेता घर बैठे -जिला पंचायत चुनावों को लेकर राजनैतिक हलचलें अपने शवाब पर आ चुकीं हैं। जिला भाजपा ने जिला पंचायत और जनपद पंचायत सदस्यों के लिये अपनी पार्टी के अधिकृत समर्थित प्रत्याशियों की सूची बाकायदा जारी कर दी हैं। भाजपा के सांसद,विधायक एवं जिला स्तर के नेता चुनाव में अपनी भागीदारी भी चालू कर चुकें हैं। दूसरी ओर जिला कांग्रेस के अध्यक्ष ने चुनाव के लगभग बीस दिन पहले से जिले के इकलौते विधाय ठा. हरवंश सिंह के साथ कई जगह सम्मेलन करके प्रत्याशी चयन की कवायत तो की लेकिन जिला इंका अपनी अधिकृत सूची जारी नहीं कर पायी। एक तरफ भाजपा के नेता खुले आम अपनी पार्टी के अधिकृत उम्मीदवारों के लिये चुनाव प्रचार कर रहें हैं तो दूसरी ओर कांग्रेस के चुनाव लड़ने वाले नेता अपने आप को राजनैतिक रूप से असहाय महसूस कर रहें हैं क्योंकि जिला स्तर का कोई भी नेता इन चुनावों में प्रचार करने नहीं जा पा रहें हैं। जिले के अधिकांश क्षेत्रों में एक से अधिक इंका नेता चुनाव मैदान में डटे हुये हैं।आशुतोष वर्मा सिवनीपंचायत चुनावों में भाजपा भी चलायेगी अनुशासन का डंड़ा -अपने आप को अनुशासित पार्टी मानने वाली भाजपा की हालत इस मामले में अत्यंत खराब हैं। भाजपा की अनुशासन की चादर तार तार हो चुकी हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में सिवनी क्षेत्र में ना केवल भाजपाइयों ने वरन कई जिम्मेदार पदाधिकारियों ने निर्दलीय उम्मीदवार मुनमुन राय की कप प्लेट का काम किया था। इसके पहले केवलारी विस क्षेत्र में कई दिग्गज भाजपाइयों पर इंका प्रत्याशी रहे हरवंश सिंह से सांठगांठ के आरोप लगते रहें हैं लेकिन अनुशासन का डंडा कभी नहीं चला। इसका एक कारण यह भी रहता था कि जिले के अन्य विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा की जीत इंका के भीतरघात और अनुशासनहीनता के कारण मिलती थी। इसलिये भाजपा में भी भीतरघात और अनुशासनहीनता का राज रोग इसे तेजी से लगा कि सारे दावे ही खोखले हो गये। इस बार नपा चुनाव में जहां एक तरफ कांग्रेस ने अनुशासन का डंडा तो चलाया लेकिन इस डर से कुछ बलशाली हाथों ने इस डंडें की मार से कुछ लोगों को बचाने का प्रयास किया कि कहीं ऐसा ना हो कि पीड़ित नेता आका का पिछला अतीत खोलकर ना रख दें और कई चेहरे बेनकाब ना हो जायें। लेकिन भाजपा ने चुनाव के बाद कुछ लोगों को कारण बताओं नोटिस जरूर जारी किया हैं। जिसमें कोई महत्वपूर्ण नेता शामिल नहीं हैं। नव निर्वाचित नपाध्यक्ष राजेश त्रिवेदी के एक समर्थक का इस बारे में कहा गया एक वाक्य काफी अहम हैं कि यदि इस चुनाव में भीतरघात के दोषियों को ईमानदारी से दंड़ित किया जाये तो जिले के भाजपा की पहली पंक्ति का एक भी नेता बाकी नहीं बचेगा। आगामी पंचायत चुनाव में भी भाजपा में असंतोष कम नहीं हैं। नेताओं ने अपनी अपनी पसंद के प्रत्याशी तो बनवा लिये हैं और उन्हें बाकायदा भाजपा का समर्थित प्रत्याशी घोषित कर दिया गया हैं लेकिन कई क्षेत्रों में भाजपा के समर्पित प्रत्याशी के रूप में भाजपा नेता चुनाव मैदान में डटे हुये हैं। राजनैतिक क्षेत्रों में व्याप्त चर्चाओं के अनुसार भाजपा के समर्थित और समर्पित प्रत्याशियों की ज्रग भी कुछ कम रोचक नहीं होगी। क्योंकि ऐसे सभी उम्मीदवार किसी ना किसी दिग्गज के समर्थक हैं। भाजपा में जारी चर्चाओं के अनुसार भाजपा इन चुनावों में अनुशासन के प्रति सख्त रवैया अपनाने वाली हैं और ऐसे नेताओं पर अनुशासन का डंड़ा चलाने की तैयारी कर रही हैं।आशुतोष वर्मा सिवनीजिला इंका प्रवक्ता ये भी तो खुलासा करें कि आखिर कांग्रेसी जिताये किसेर्षोर्षो-जिला कांग्रेस के प्रवक्ता ओमप्रकाश तिवारी ने प्रेस को एक विज्ञप्ति जारी कर जिले के कांग्रेसियो से अपील की है कि वे पंचायत चुनावों में सक्रिय भागीदारी निभायें और विकास के प्रति समर्पित लोगों को जितायें।जिस जिला कांग्रेस के तिवारी जी अध्यक्ष हैं उस जिला कांग्रेस ने अपने उम्मीदवारों की सूची ही जारी नहीं की हैं। ऐसे में आखिर तिवारी जी की बात मान कर जिले के कांग्रेसी जितायें भी तो किसेर्षोर्षो क्योंकि हर उम्मीदवार चुनाव में अपने आप को विकास के प्रति समर्पित बता रहा हैं और क्षेत्र के चहुंमुखी विकास का वायदा भी मतदाताओं से कर रहा हैं।वैसे तो जिला के इकलौते इंका विधायक ठा. हरवंश सिंह और इंकाध्यक्ष महेश मालू ने घूम घूम कर कई सम्मेलन किये थे लेकिन जिले के सर्वमान्य नेता हरवंश सिंह 19 वाडोZं के लिये 19 नाम एकमतेन तय नहीं करा पाये। मजाक मजाक में कांग्रेसियों का यह कथन भी कम रोचक नहीं हैं कि तिवारी जी भले ही जिला कांग्रेस के नाम ना बता पा रहें हों पर कम से कम आका के द्वारा तय किये गये नाम तो बता दें ताकि उनकी अपील पर जिले भर के कांग्रेसी उन्हें जिताने में जुट जायें अन्यथा ऐसा ना हो जाये कि तिवारी जी के कहने पर किसी को चुनाव जिताने में जुटे कांग्रेसियों को बाद में फटकार खाना पड़े क्योंकि आका तो किसी और को जिताना चाहता था और कार्यकत्ताZ किसी और को जिताने में जुट गयें। कांग्रेस में कुल मिलाकर हालात ऐसे हैं कि पूरे जिले मे चुनाव लड़ने वाले कांग्रेसी नेता और समर्थक ही चुनाव में जुटे हुये हैं बाकी किसी भी नेता को चुनाव से कोई लेना देना नहीं हैं। आशुतोष वर्मा सिवनीनपा उपाध्यक्ष पद को लेकर भाजपा और और इंका में घमासान जारी हैं -नव निर्वाचित नपा का सम्मेलन स्थगित होने से उपाध्यक्ष पद के लिये शुरू हुयी कवायत भी शिथिल पड़ गयी हैं। पालिका में कब्जा जमाने में सफल भाजपा अपना उपाध्यक्ष भी बनाना चाहती हें ताकि पिछली बार जैसी परिस्थितियां ना बनें तो दूसरी तरफ इंका भी अपना उपाध्यक्ष बना कर पालिका में अपनी दखंलदाजी बरकरार रखना चाहती हैं। दोनो ही पार्टियों ने हालांकि अभी तक किसी के नाम पर अंतिम मोहर नहीं लगायी हैं लेकिन दोनों ही दलों में इस पद के लिय भारीे मारामारी हैं। भाजपा के 12,इंका के 11 तथा राकपा के 1 पार्षद पालिका में हैं। संख्या की दृष्टि से यदि सब कुछ ठीक ठाक चला तो दोनों ही दलों के उम्मीदवार को 12 12 वोट मिलने की संभावना बनती हैं क्योंकि राकपा के बब्लू भाई दूधवाले अंत में कांग्रेस के उम्मीदवार को वोट दे सकते हैं। यदि बराबर बराबर वोट पड़तें हैं तब अध्यसक्ष का वोट निर्णायक वोट के तौर पर डाला जायेगा जिससे भाजपा के जीतने की संभावना बन सकती हैं लेकिन यदि फैसला बहुमत से हो जाता हें तो फिर निर्णायक वोट डालने की जरूरत ही नही होती हैं। नपा उपाध्यक्ष का पद किसकी झोली में जायेगार्षोर्षो इस पर अभी कुछ भी कहना संभव नहीं हैं।

Friday, January 1, 2010

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सत्ता के बजाय भ्रष्टाचार के विकेन्दीकरण में आरक्षण प्रक्रिया तो दोषी नहींर्षोर्षो संविधान में संशोधन कर राजीव गांधी ने त्रि स्तरीय पंचायती राज्य एवं स्थानीय निकायों के चुनाव हर पांच साल में कराने की अनिवार्यता का प्रावधान किया था। इसका मूल उद्देश्य यह था कि विभिन्न राजनैतिक कारणों से इन वुनावों को टालने की प्रवृति पर अंकुश लगाया जाये और प्रजातंत्र की इन प्राथमिक संस्थाओं मेंं निर्वाचित प्रतिनिधियों का वर्चस्व हो और सत्ता का विकेन्द्रीकरण हो। इन संस्थाओं को अधिकार संपन्न बना कर स्थानीय नेतृत्व के हाथों में इनकी कमान सौंपी जाये। संविधान संशोधन के बाद कद्दावर प्रादेशिक नेताओं के हाथों से यह बात निकल गयी कि वे जब चाहें तब अपनी राजनैतिक सुविधानुसार पंचायतों और स्थानीय निकायों के चुनाव करा सकें। ऐसे भी उदाहरण देखने को मिले हैं कि संभावित हार के कारण अपने मंत्री पद को खतरे में जाता देख सालों नगर पालिकाओं और पंचायतों के चुनाव नहीं होते थे। कई जगह तो कई बार ऐसा भी हुआ हैें कि बीस साल तक नगरपालिका के चुनाव ही नहीं हुये और प्रशासकों के माध्यम से प्रादेशिक नेताओं का अप्रत्यक्ष नियंत्रण स्थानीय निकायों पर बना रहा हैं। राजीव गांधी द्वारा किये गये संविधान संशोधन के बाद स्थानीय निकायों के पहले चुनाव 1994 में हुये थे और तब से लगातार हर पांच साल में ये चुनाव नियमित रूप से हो रहें हैं। नगर पंचायत,नगर पालिका, नगर निगम,जिला पंचायत,जनपद पंचायत और ग्राम पंचायतों के चुनाव राज्य सरकारों द्वारा अपनायी गयी प्रक्रिया के अनुसार नियमित रूप से हो रहें हैं। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ सहित ़कुछ प्रदेशों में वर्तमान में ये चुनाव जारी हैं। संशोधन के बाद होने जा रहें इन चौथे चुनावों की पूर्व संध्या पर अब यह मूल्यांकन करना भी समय की मांग बन गया हैं कि सत्ता के विकेन्द्रीकरण के जिस उद्देश्य से संविधान संशोधन किया गया था वह कितना सफल हुआर्षोर्षोक्या राज्य सरकारों ने इन संस्थाओं को इतने अधिकार दिये कि वे स्वतंत्र रूप से अपना कार्य कर सकेंर्षोर्षोकहीं ऐसा तो नहीं कि सत्ता के विकेन्द्रीकरण के बजाय भ्रष्टाचार का विकेन्द्रीकरण हो गया और यदि ऐसा हो गया हैं तो क्योंर्षोर्षो इन तमाम सवालों के जब हम जवाब तलाशते हैं तो यह पाते हैं कि प्रादेशिक सत्ता पर काबिज राजनेता कदापि मन से नहीं चाहतें हैं कि सत्ता का विकेन्द्रीकरण हो। लेकिन संविधान की बाध्यता के कारण आधे अधूरे अधिकारों से लेस इन स्थानीय निकायों की संस्थाओं पर अधिकारियों के वर्चस्व को समाप्त नहीं किया जा सका हैं। अधिकांश राज्यों में नगरीय निकायों के अध्यक्ष पद का तो सीधे मतदाताओं से निर्वाचन हो रहा हैं लेकिन त्रि स्तरीय पंचायती राज्य में सरपंच के अलावा जनपद पंचायत एवं जिला पंचायत के अधक्ष का निर्वाचन सीधे मतदाताओं के बजाय सदस्यों के माध्यम से ही हो रहा है। इसकी आड़ में ही इन्हें अधिकारों से लैस करने में राज्य सरकारें आना कानी कर जातीं हैं। ऐसा मानने वालों की भी कमी नहीं हैं कि सत्ता के विकेन्द्रीकरण के बजाय भ्रष्टाचार का विकेन्द्रीकरण जरूर हो गया हैं। ऐसा क्यों हो रहा हैंर्षोर्षो जब इस सवाल का जवाब तलाशते हैं तो ऐसा लगता हैं कि इसमें कहीं ना कहीं आरक्षण की प्रक्रिया दोषी हैं। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जन जाति के वर्गोें के लिये तो आरक्षण जनसंख्या के आधार पर होता हें लेकिन अन्य पिछड़ा वर्ग और महिलाओं के लिये आरक्षण लॉट के माध्यम से किया जाता हैं। इस कारण इस बात की अनिश्चितता बनी रहती हैं कि इस चुनाव में निर्वाचित जनप्रतिनिधि को अगली बार उसी क्षेत्र से चुनाव लड़ने की पात्रता रहेगी या नहीर्षोर्षो अन्यथा पहले ऐसा होता था कि कि निर्वाचित जनप्रतिनिधि अगला चुनाव लड़ने के लिये अपनी प्रतिष्ठा और छवि बरकरार रखने के प्रयास करते थे ताकि अगला चुनाव जीत सकें। ऐसे उदाहरणों की भी कमी नहीं हैं कि एक ही ग्रामपंचायत में एक ही व्यक्ति बीस बीस साल तक सरपंच रहते थे और उनका मान सम्मान भी रहता था। ऐसी परिस्थिति में क्या इय बात पर विचार नहीं किया जा सकता हैं कि पांच साल के लिये हाने वाले आरक्षण की अवधि दस साल कर दी जाये ताकि निर्वाचित जनप्रतिनिधियों के सामनें कम से कम एक अवसर तो पुन: चुनने का दिखेगा जिससे हो सकता हैं कि भ्रष्टाचार के मामले में कुछ तो अंकुश लगने की संभावना बन सकती हैं। भ्रष्टाचार के मामले में अधिकांशत: ऐसा भी देखा जा रहा हैं कि उसके खिलाफ कार्यवाही करने वालों में भी दृढ़ इच्छा शक्ति की कमी होती जा रही हैं और राजनैतिक संरक्षण के चलते ऐसे जनप्रतिनिधि येन केन प्रकारेण बच ही जाते हैं। दूसरा सामाजिक रूप से भी पैसा कैसा भी हो उसे सम्मान देने की परंपरा पड़ गयी हैं। इसलिये भी इस लाइलाज बीमारी पर अंकुश नहीं लग पा रहा हैं। भ्रष्टाचार को राजनैतिक शिष्टाचार मानने की बढ़ती प्रवृत्ति पर भी अंकुश लगाना होगा तभी कुछ राहत मिलना संभव हैं।आशुतोष वर्मा09425174640