हाल ही में हुये लोकसभा चुनाव में एक लाख से भी अधिक वोटों से हारने वाले अरुण जेटली और स्मृति ईरानी को मंत्री मंड़ल में शामिल कर तीन महत्वपूर्ण विभाग सौंपना क्या जनादेश का अनादर नहीं है? क्या लोक तंत्र का अपमान नहीं है? जरा सोचिये........
Wednesday, May 28, 2014
Tuesday, May 27, 2014
- कांग्रेस ने केवलारी में विस चुनाव में जीतने और लोस चुनाव में हारने का लगातार तीसरी बार बनाया रिकार्ड
- मंड़ला लोकसभा क्षेत्र में भाजपा के फग्गनसिंह कुलस्तें ने इंका के ओंकार सिंह मरकाम को 1 लाख दस हजार 4 सौ 63 वोटों से हरा कर अपनी पिछली हार का बदला ले लिया है। मंड़ला क्षेत्र में गौगपा बसपा और नोटा 1 लाख 6 हजार 1 सौ 34 वोट मिलेे है जो जीत हार के अंतर के लगभग बराबर है। आदिवासी बाहुल्य इस क्षेत्र में कांग्रेस की हार इस दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हों गयी है क्योंकि इस क्षेत्र के आठ में चार विधायक कांग्रेस के थे। विधनसभा चुनाव में समूचे प्रदेश में चली शिवराज लहर के बावजूद भी जिले में कांग्रेस का प्रदर्शन अव्छा था। लेकिन चंद महीनों बाद ही हुये लोस चुनाव में जिले के चारों क्षेत्र में कांग्रेस को शर्मनाक पराजय का सामना करना पड़ा है। विधनसभा के 2003,2008 और 2013 और लोकसभा के 2004,2009 और 2014 के चुनावों में केवलारी विधानसभा क्षेत्र का मिजाज एक सा ही रहा है। इन चुनावों में कांग्रेस यहां से विधानसभा का चुनाव तो जीती लेकिन लोकसभा चुनाव में कांग्रेस हारती रही इस बार तो 30 हजार से अधिक रिकार्ड वोटों से कांग्रेस हारी है।कांग्रेस को सिवनी क्षेत्र से 53 हजार 4 सौ 87 वोटों से हार का मुह देखना पड़ा। जबकि अल्प संख्यक मतों में सेंध लगा सकने वाली सपा प्रत्याशी अनुभा कंकर मुंजारे को मात्र 2373 वोट ही मिले। जब मात्र प्रभार मिलने से सिवनी में कांग्रेस सिग्रेट के धुयें के बजाय हुक्के के धुयें में ऐसी गुमी कि ढ़ूढ़े भी नहीं मिल रही है तो जब प्रत्याशी बनेंगें तो ना जाने क्या होगा?
- एक लाख से अधिक वोट से जीत कर फग्गन ने लिया हार का बदला-लोकसभा चुनावों के परिणामों को लेकर सियासी हल्कों में विश्लेषण का दौर जारी है। मंड़ला लोकसभा क्षेत्र में भाजपा के फग्गनसिंह कुलस्तें ने इंका के ओंकार सिंह मरकाम को 1 लाख दस हजार 4 सौ 63 वोटों से हरा कर अपनी पिछली हार का बदला ले लिया है। उल्लेखनीय है कुलस्ते पिछले 2009 के चुनाव में इंका के बसोरी सिह से 65 हजार 53 वोटों से हार गये थे। लेकिन इस चुनाव के परिणामों पर नजर डाली जाये तो मंड़ला क्षेत्र में गौगपा को 56 हजार 5 सौ 72, बसपा को 21 हजार 2 सौ 56 और नोटा को 28 हजार 3 सौ 6 वोट मिले हैं। इस प्रकार तीनों के वोटों को यदि जोड़ा जाये तो ये 1 लाख 6 हजार 1 सौ 34 वोट होते है जो जीत हार के अंतर के लगभग बराबर है। भाजपा के राष्ट्रीय आदिवासी चेहरे के रूप में पहचाने जाने कुलस्ते के क्षेत्र इनमें से कोई नहीं याने नोटा को 28306 वोट मिलना भी एक अलग ही राजनैतिक संकेत दे रहा है। पिछले चुनाव में कुलस्तें को भाजपा विधायकों के क्षेत्र में ही हार का सामना करना पड़ा था जबकि कांग्रेस विधायकों हरवंश सिंह और नर्मदा प्रसाद प्रजापति के क्षेत्र से उन्होंने जीत हासिल की थी। भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी की लहर तो सभी इलाकों में थी लेकिन आदिवासी बाहुल्य इस क्षेत्र में कांग्रेस की हार इस दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हों गयी है क्योंकि इस क्षेत्र के आठ में चार विधायक कांग्रेस के थे।
- जिले के सभी क्षेत्रों में हुयी कांग्रेस की शर्मनाक हार-विधनसभा चुनाव में समूचे प्रदेश में चली शिवराज लहर के बावजूद भी जिले में कांग्रेस का प्रदर्शन अव्छज्ञ था। कांग्रेस ने जिले में अपनी परंपरागत सीट केवलारी पर अपना कब्जा बरकरार रखते हुये ना केवल लखनादौन सीट भाजपा से छीन ली थी वरन बरघाट भाजपा के कमल भी कमल की लाज बमुश्किल 2 सौ कुछ वोटों से ही बचाा पाये थे। जिला मुख्यालय वाली सिवनी सीट पर पिछले पांच चुनावों से अपना कब्जा बनाये रखने वाली भाजपा को यहां निर्दलीय उम्मीदवार ने धूल चटा दी थी जबकि इस बार भाजपा ने अपने दो बार के यहीं से विधायक रहे जिलाध्यक्ष नरेश दिवाकर को उम्मीदवार बनाया था। चंद महीनों बाद ही हुये इस चुनाव के लिये भाजपा ने अपनी कमान वेदसिंह के हाथों सौंप दी थी वहीं दूसरी ओर इस लोस चुनाव में भी कांग्रेस अध्यक्ष हीरा आसवानी ही थे। लेकिन जिले चारों विधानसभा क्षेत्रों में में जिस तरह कांग्रेस को भारी मात मिली है उससे राजनैतिक विश्लेषक भी हैरान है। मंड़ला लोस में आने वाले केवलारी और लखनादौन क्षेत्र से कांग्रेस के विधायक रजनीश हरवंशसिंह और योगेन्द्र सिंह बाबा है जहां से कांग्रेस को क्रमशः 30 हजार 37 और 11 हजार 5 सौ 56 वोटों से हार का सामना पड़ा जबकि बालाघाट लोस क्षेत्र में आने वाली सिवनी और बरघाट सीट से भी क्रमशः 53 हजार 4 सौ 87 तथा 21 हजार 9 सौ 94 वोटों से कांग्रेस को शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा है। जबकि इस बार रजनीश हरवंश सिंह ने जिले के सभी विस क्षेत्रों में सक्रियता दिखा कर अपने पिता के समान जिले का नेता बनने का भी प्रयास किया था। वैसे तो पूरे देश में ही कांग्रेस और भाजपा के नेताओं को चुनाव परिणामों का अंदाजा था लेकिन जो परिणाम आये उनके बारे में किसी भी पार्टी के नेता को ऐसे परिणामों की उम्मीद तो कतई नहीं ही थी। लेकिन जब समूचे उत्तर भारत में जनता लहर में कांग्रेस का सफाया हो गया था तब भी कांग्रेस ने जिले की पांचों सीटें जीत कर एक रिकार्ड बनाया था तो अब क्या हो गया? यह एक विचारणीय प्रश्न तो है ही।
- बड़े मियां तो बड़े मियां छोटे मियां सुभान अल्लाह -विधनसभा के 2003,2008 और 2013 और लोकसभा के 2004,2009 और 2014 के चुनावों में केवलारी विधानसभा क्षेत्र का मिजाज एक सा ही रहा है। हमने इसी कालम में में यह लिखा कि केवलारी क्षेत्र में कांग्रेस का विस जीतने और लोस हारने की परंपरा कायम रहेगी या नया इतिहास बनेगा। लेकिन परिणामों ने बता दिया कि नया इतिहास बनने के बजाय केवलारी ने पुरानी परंपरा का ही निर्वाह किया है। विस चुनावों में 2003 की उमा भारती की आंधी में केवलारी से कांग्रेस के स्व. हरवंश सिह 8 हजार 6 सौ 58 वोटों से चुनाव जीते थे जबकि लोस चुनाव में कांग्रेस की कल्याणी पांड़े 16 हजार 3 सौ 40 वोटों से चुनाव हारीं थीं। इसी तरह 2008 के विस चुनाव में कांग्रेस के स्व. हरवंश सिंह 6 हजार 2 सौ 76 वोटों से चुनाव जीते थे जबकि 2009 के लोस चुनाव में कांग्रेस के सांसद चुने गये बसोरी सिंह 3 हजार 4 सौ 93 वोटों से चुनाव केवलारी से हार गये थे। यहां यह उल्लेखनीय है कि इन दोनों लोस चुनावों में कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए की सरकार बनी थी। शिवराज की लहर वाले 2013 के विस चुनाव में भी यहां से कांग्रेस के रजनीश हरवंश सिंह 4 हजार 8 सौ 3 वोटों से चुनाव जीते थे लेकिन 2014 के मोदी लहर वाले लोस चुनावों में कांग्रेस को यहां से 30 हजार 37 वोटों से हार का सामना करना पड़ा है। कांग्रेस की परंपरागत सीट से इतने अधिक वोटों से कांग्रेस की हार को लेकर राजनैतिक विश्लेषकों में तरह तरह की चर्चा व्याप्त है।
- प्रभार मिला तो ये हाल प्रत्याशी होंगे तो क्या होगा?-सिवनी विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस उमीदवार राजकुमार पप्पू खुराना की 24 हजार से अधिक वोटों हार पर कांग्रेस के टिकिट के प्रबल दावेदार युवातुर्क यह कहते भी देखे गये कि सिवनी में कांग्रेस सिग्रेट के धुएं में उड़ गयी। शायद यही बात वे लोस प्रत्याशी एवं राहुल गांधी की निकटवर्ती हिना कांवरे को भी समझाने में सफल रहे। बताया जाता है कि दक्षिण सिवनी स्थित एक कांग्रेस नेता के यहां आधी रात के बाद एक गोपनीय बैठक हुयी जिसमें कांग्रेस उम्मीदवार के अलावा विधायक रजनीश सिंह,प्रदेश इंका के सचिव राजा बघेल,जिला इंका अध्यक्ष हीरा आसवानी और जिला पंचायत अध्यक्ष मोहन चंदेल शामिल थे। इस बैठक में प्रभार हासिल करने के बाद चुनाव का काम प्रारंभ हुआ तो हालात कुछ अजीब से दिखे।सबको साथ लेकर चलने के बजाय ऐसा महसूस किया गया कि जानबूझ कर कुछ नेताओं को परे रखने की साजिशें पूरे चुनाव के दौरान की जाती रहीं। ऐसा माना जा रहा था कि परिणाम इस बार कुछ अलग आयेंगें लेकिन जब रिजल्ट आया तो कांग्रेस को इस क्षेत्र से 53 हजार 4 सौ 87 वोटों से हार का मुह देखना पड़ा। जबकि अल्प संख्यक मतों में सेंध लगा सकने वाली सपा प्रत्याशी अनुभा कंकर मुंजारे को मात्र 2373 वोट ही मिले जबकि इस चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी मुनमुन राय ना तो क्षेत्र में घुमे थे और ना ही उनकी कोई सक्रियता थी। उन्होंनें मात्र मंच से ही भाजपा को समर्थन दिया था। वोटों से हार का मुह देखना पड़ा। कांग्रेस का एक वर्ग इन युवा तुर्कों से सिवनी विधानसभा क्षेत्र के लिये बड़ी आशायें रखता है। लेकिन जब मात्र प्रभार मिलने से सिवनी में कांग्रेस सिग्रेट के धुयें के बजाय हुक्के के धुयें में ऐसी गुमी कि ढ़ूढ़े भी नहीं मिल रही है तो जब प्रत्याशी बनेंगें तो ना जाने क्या होगा? “मुसाफिर“
- साप्ता. दर्पण झूठ ना बोले सिवनी
- 27 मई 2014 से साभार
Wednesday, May 21, 2014
सदन में व्यापम घोटाले पर होने वाली चर्चा के लिये कांग्रेस में विभीषण तलाश कर भाजपा उन्हें फिर शामिल कर लेगी?
प्रदेश की राजधानी भोपाल सहित जिले में भी इन दिनों दल बदल विरोधी कानून के प्रावधानों पर सियासी हल्कों में चर्चा हो रही है। प्रदेश में तीन निर्दलीय विधायक चुनाव जीते थे। इन तीनों ही निर्दलीय विधायकों ने भाजपा और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सार्वजनिक चुनावी मंचों पर अपनी उपस्थिति दी थी। इसमें सिवनी से चुने गये निर्दलीय विधायक दिनेश मुनमुन राय भी शामिल है। दल बदल विरोधी कानून में यह प्रावधान है कि यदि एक निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव के बाद कोई राजनैतिक दल की सदस्यता लेता है तो वह अयोग्य घोषित हो जावेगा। चर्चा गर्म है कि कांग्रेस के कुछ विधायक भाजपा में शामिल हो सकते है। ये कब और कैसे भाजपा में शामिल होंगें? इसे लेकर तरह तरह के कयास लगाये जा रहें है। अविश्वास प्रस्ताव की तरह ही कांग्रेस में सेंध लगाकर भाजपा के रणनीतिकार आगामी विधानसभा सत्र में हंगामा मचा सकने वाले व्यापम घोटाले से निपटने की रणनीति बना रहें है। इसमें महाकौशल अंचल के विधायकों के नामों को लेकर तरह तरह की चर्चा व्याप्त है। नरेश खुद भी चुनाव हार गये थे। इसलिये नैतिक आधार पर उन्होंनें भाजपा के अध्यक्ष पद से स्तीफा दे दिया था। प्रदेश भाजपा ने जिले की कमान वरिष्ठ नेता वेदसिंह को सौंप दी थी। उनके नेतृत्व में जिले में भाजपा को रिकार्ड तोड़ जीत हासिल हुई और चारों विस क्षेत्रों में भाजपा ने बढ़त ली है।
यदि भाजपा की सदस्यता लेते तो विधायक नहीं रह जाते मुनमुन?-प्रदेश की राजधानी भोपाल सहित जिले में भी इन दिनों दल बदल विरोधी कानून के प्रावधानों पर सियासी हल्कों में चर्चा हो रही है। लोस चुनावों के दौरान जिस तरह से भाजपा के प्रति आकर्षण दिखा और उसके चलते जो आया राम गया राम को ख्ेाल चला इसी कारण यह चर्चा जारी है। प्रदेश में तीन निर्दलीय विधायक चुनाव जीते थे। इन तीनों ही निर्दलीय विधायकों ने भाजपा और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सार्वजनिक चुनावी मंचों पर अपनी उपस्थिति दी थी। इसमें सिवनी से चुने गये निर्दलीय विधायक दिनेश मुनमुन राय भी शामिल है जिन्होंने बालाघाट में मोदी के मंच पर और सिवनी में शिवराज सिंह चौहान के चुनावी मंच पर अपनी उपस्थिति दर्ज करायी थी जिस मंच से भाजपा को जिताने की अपील की गयी थी। लेकिन प्रदेश तीनों ही निर्दलीय विधायकों ने भाजपा में शामिल होने की घोषणा नहीं की थी। लोकसभा चुनाव में भाजपा की सभाओं में शिरकत करने के बाद भी भाजपा में शामिल ना होना चर्चित है। राजनैतिक विश्लेषकों का ऐसा मानना है कि भाजपा का ख्ुालेआम साथ देने के बाद भी भाजपा की औपचारिक रूप से सदस्यता ना लेने का कारण दलबदल विरोधी कानून के प्रावधानों का है। राजीव गांधी की सरकार ने 1985 में दल बदल पर रोक लगाने के लिये दल बदल विरोधी कानून पास किया था। इसमें निर्वाचित जनप्रतिनिधि के अयोग्य घोषित होने का यह प्रावधान है कि ष्प िंद पदकमचमदकमदज बंदकपकंजम रपवदे ं चवसपजपबंस चंतजल ंजिमत जीम मसमबजपवदष्याने यदि एक निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव के बाद कोई राजनैतिक दल की सदस्यता लेता है तो वह अयोग्य घोषित हो जावेगा। राजनैतिक विश्लेषकों का यह दावा है कि इसीलिये प्रदेश के निर्दलीय विधायकों को एक रणनीति के तहत भाजपा की औपचारिक रूप से सदस्यता नहीं दिलायी गयी है क्योंकि यदि ऐसा किया जाता है उनकी विधानसभा की सदस्यता समाप्त हो जावेगी और विधायक बनने के लिये उन्हें फिर से चुनाव लड़ना पड़ेगा। जिन क्षेत्रों में जिन निर्दलीय उम्मीदवारों से भाजपा हारी है वहीं उन्हीं निर्दलीय विधायकों को भाजपा की टिकिट पर फिर से चुनाव जितवाना आसान नहीं होगा। कहा जाता है कि इसीलिये इन निर्दलीय विधायकों को विधिवत सदस्यता नहीं दिलायी गयी है।
क्या कुछ कांग्रेस विधायक भाजपा में शामिल होंगें ?-प्रदेश के राजनैतिक क्षेत्रों में इस बात की भी चर्चा गर्म है कि कांग्रेस के कुछ विधायक भाजपा में शामिल हो सकते है। ये कब और कैसे भाजपा में शामिल होंगें? इसे लेकर तरह तरह के कयास लगाये जा रहें है। कुछ राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा के रणनीतिकार आगामी विधानसभा सत्र में हंगामा मचा सकने वाले व्यापम घोटाले से निपटने की रणनीति बना रहें है। उल्लेखनीय है कि पिछली विधानसभा के अंतिम सत्र में नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह द्वारा लाये गये अविश्वास प्रस्ताव से निपटने के लिये भाजपा ने कांग्रेस के जवाब देने के बजाय कांग्रेस में ही सेंध लगाने की रणनीति बनायी थी। इसी के तहत कांग्रेस विधायक दल के उप नेता चौधरी राकेश सिंह ने बगावत की थी और शिवराज सरकार को घेरने की कांग्रेस की रणनीति धरी की धरी रह गयी थी। शिवराज की तीसरी पारी में व्यापम घोटाला सरकार के गले की फांस बन रहा है। कांग्रेस भी इस मुद्दे को लेकर सरकार को घेरने के प्रयास कर रही है। प्रदेश की राजनीति की अंदरूनी जानकारी रखने वालों का यह दावा है कि अविश्वास प्रस्ताव की तरह ही भाजपा इस बार भी कांग्रेस में सेंध लगाकर ही अपना बचाव करने की रणनीति पर चल रही है। कहा जा रहा है कि भाजपा की सदस्यता ग्रहण करने के इच्छुक कांग्रेस विधायकों से इस दौरान चौधरी राकेश सिंह की भूमिका अदा करवा कर ही उनको सदस्यता देने पर कार्यवाही की जायेगी। इस समय नेता प्रतिपक्ष के रूप में सत्यदेव कटारे विधानसभा में काम कर रहें है। जबकि पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह भी विधायक दल के सदस्य है। लेकिन कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक एवं तत्कालीन विस उपाध्यक्ष हरवंश सिंह का स्वर्गवास हो जाने कारण वे अब सदन में नहीं रहेंगें। उनके स्थान पर उनके पुत्र रजनीश सिंह अब विधायक है। भाजपा की सदस्यता ग्रहण करने वाले कौन विधायक हैं? इनके नामों को लेकर तमाम कयास लगाये जा रहें हैं। जानकारों का यह भी दावा है कि इनमें महाकौशल अचंल के भी कुछ विधायक शामिल है। लोकसभा चुनावों में भाजपा को मिली भारी सफलता के बाद इन चर्चाओं को और अधिक बल मिल गया है। अब यह तो वक्त ही बतायेगा कि कौन कौन से कांग्रेस विधायक भाजपा में शामिल होगें या यह चर्चा सिर्फ चर्चा ही रह जायेगी? एक चर्चा यह भी है कि भाजपा यह कोशिश में लगी है कि दल बदल कानून के प्रावधानों से बचने के लिये इतनी संख्या बढ़ाने की कोशिश की जा रही है ताकि दल बदल करने वाले विधायकों की सदस्यता बरकरार रहें। उल्लेखनीय है कि यदि सदन की सदस्य संख्या में से एक तिहायी से अधिक सदस्य अलग होते है तो वह उस राजनैतिक दल का विभाजन माना जाता है।
क्या कुछ कांग्रेस विधायक भाजपा में शामिल होंगें ?-विधानसभा चुनावों में जिले में भाजपा बैकपुट पर आ गयी थी। जिले की चार सीटों में से तीन पर काबिज भाजपा इस चुनाव में बमुश्किल एक सीट ही जीत पायी थी। जबकि कांग्रेस ने दो सीटें जीत ली थींे। इस दौरान जिले के पूर्व विधायक मविप्रा के पूर्व अध्यक्ष नरेश दिवाकर के हाथों में भाजपा की कमान थी। वे खुद भी चुनाव हार गये थे। इसलिये नैतिक आधार पर उन्होंनें भाजपा के अध्यक्ष पद से स्तीफा दे दिया था। प्रदेश भाजपा ने जिले की कमान वरिष्ठ नेता वेदसिंह को सौंप दी थी। उनके नेतृत्व में जिले में भाजपा को रिकार्ड तोड़ जीत हासिल हुई और चारों विस क्षेत्रों में भाजपा ने बढ़त ली है। बालाघाट लोस में आने वाली सिवनी सीट से भाजपा ने रिकार्ड 53487 तथा बरघाट सीट से 22004 वोटों से बढ़त हासिल कर ली। जबकि मंड़ला लोस में आने वाली केवलारी सीट से 28500 तथा लखनादौन विस से 9546 वोटों से जीत हासिल की है। यहां यह उल्लेखनीय है इन दोनों ही सीटों से कांग्रेस के रजनीश सिंह और योगेन्द्र सिंह बाबा विधायक है और नवम्बर 13 की शिवराज लहर में ये दोनों चुनाव जीते थे।“मुसाफिर“
साप्ता. दर्पण झूठ ना बोले, सिवनी
20 मई 2014 से साभार
Thursday, May 15, 2014
लोस चुनाव में केवलारी में बनेगा नया कीर्तिमान या विस जीतने और लोस में कांग्रेस के हारने का इतिहास रहेगा कायम?
लोकसभा चुनावों के परिणामों को लेकर लोगों में कयासबाजी के दौर चल रहें हैं। बालाघाट लोस क्षेत्र से कांग्रेस की हिना कांवरें,भाजपा के बोधसिंह भगत,सपा की अनुभा मुंजारे के अलावा आप के कर्नल चौधरी भी मैदान में थे। इस क्षेत्र से कांग्रेस के विश्वेश्वर भगत ने 2009 का चुनाव 40819 मतों से हारा था। जबकि हाल ही में हुये विस चुनाव में शिवराज की भारी लहर में इस क्षेत्र में भाजपा कांग्रेस से सिर्फ 39771 वोटों से ही आगे रही जबकि सिर्फ बालाघाट विस क्षेत्र में ही भाजपा को कांग्रेस से 66207 वोटों की बढ़त मिल गयी थी।कांग्रेस और भाजपा की जीत हार इस बात पर भी निर्भर करेगी कि सपा उम्मीदवार चुनाव को त्रिकोणी संघंर्ष में बदल पाता है या नहीं? मंडला लोकसभा क्षेत्र में भी जिले की केवलारी और लखनादौन विस सीटें शामिल हैं। इसीलिये इस क्षेत्र के परिणामों को लेकर भी यहां उत्सुकता के साथ विश्लेषण किया जा रहा है। वैसे मंड़ला क्षेत्र में यह प्रचार भी अंदर ही अंदर चला है कि फग्गन सिंह तो सांसद हैं ही यदि ओंकार जीत जायेगें तो जिले को दो दो सांसद मिल जायेगें। मंड़ला सेसदीय क्षेत्र में भी कांग्रेस या भाजपा की जीत गौगपा के प्रत्याशी के मत विभाजन पर निर्भर करती है।अब देखना यह है कि केवलारी क्षेत्र में कांग्रेस जीत कर एक नया कीर्तिमान बनाती है या विस में जीतने और लोस में हारने का अपना इतिहास दोहराती है ?
बालाघाट क्षेत्र में सपा पर निर्भर है इंका या भाजपा की जीत -लोकसभा चुनावों के परिणामों को लेकर लोगों में कयासबाजी के दौर चल रहें हैं। जिले के चार विस क्षेत्रों के आकलन के अलावा भी बालाघाट और मंड़ला लोस क्षेत्रों से कौन जीतेगा इसे लेकर भी अटकलों का दौर जारी है। बालाघाट लोस क्षेत्र से कांग्रेस की हिना कांवरें,भाजपा के बोधसिंह भगत,सपा की अनुभा मुंजारे के अलावा आप के कर्नल चौधरी भी मैदान में थे। इस क्षेत्र में भाजपा प्रत्याशी के समर्थन में नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने,कांग्रेस प्रत्याशी के समर्थन में केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ और पूर्व मुूख्यमंत्री एवं कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह ने और सपा प्रत्याशी के समर्थन में मुलायम सिंह यादव ने सभायें ली। इस क्षेत्र से कांग्रेस के विश्वेश्वर भगत ने 2009 का चुनाव 40819 मतों से हारा था। जबकि हाल ही में हुये विस चुनाव में शिवराज की भारी लहर में इस क्षेत्र में भाजपा कांग्रेस से सिर्फ 39771 वोटों से ही आगे रही जबकि सिर्फ बालाघाट विस क्षेत्र में ही भाजपा को कांग्रेस से 66207 वोटों की बढ़त मिल गयी थी। लेकिन इस क्षेत्र में सपा की अनुभा मुंजारे ने 69493 वोट लिये थे जिनसे प्रदेश के मंत्री गौरी शंकर बिसेन सिर्फ 2500 वोटों से जीते थे। विस चुनावों में कांग्रेस ने बैहर से 32352 और लांजी से 31750 वोट की भाजपा से बढ़त ली थी। इन आंकड़ों को यदि ध्यान में रखा जाये तो यह कहना सही नहीं होगा कि बालाघाट क्षेत्र से भाजपा पांचवी बार अपना कब्जा कर ही लेगी। राजनैतिक विश्लेषकों का यह भी मानना है कि बालाघाट संसदीय क्षेत्र के चुनाव परिणाम जातीय आधार पर भी प्रभावित होते है। इस आधार से कांग्रेस,भाजपा और सपा के प्रत्याशी क्रमशः मरार,पंवार और लोधी जाति के हैं। वैसे तो आप का प्रत्याशी भी पंवार जाति का है। यदि जातिगत आधार पर धु्रवीकरण होता है तो तो किस पार्टी को ज्यादा लाभ या नुकसान होता है? इस पर परिणाम निर्भर करेंगें। सियासी जानकारों का यह भी मानना है कि इस क्षेत्र का परिणाम आदिवासियों और मुस्लिम मतदाताओं के रुझान पर निर्भर करेगा। भाजपा में अंतिम समय तक प्रत्याशी को लेकर मची घमासान और अंत में प्रदेश के मंत्री गौरीशंकर बिसेन की बेटी मौसम की टिकिट कट कर बोध सिंह को मिल गयी। हालांकि ऐसा भी पहली बार देखने को मिला कि प्रत्याशी की अधिकृत घोषणा के पूर्व ही मौसम हरिनखेड़े की फोटो से युक्त चुनावी रथ भी पूरे क्षेत्र में भ्रमण कर चुका था। वैसे भाजपा ने नुकसान रोकने की दृष्टि से इस क्षेत्र में जीत सुनिश्चित करने के लिये मंत्री गौरीशंकर बिसेन को ही जवाबदारी सौंप दी थी। कांग्रेस और भाजपा की जीत हार इस बात पर भी निर्भर करेगी कि सपा उम्मीदवार चुनाव को त्रिकोणी संघंर्ष में बदल पाता है या नहीं? यदि सपा प्रत्याशी मुस्लिम मतदाताओं में भी सेंधमारी करता है तो कांग्रेस को नुकसान होगा और यदि जातिगत आधार पर लोधी मतदाताओं को लामबंद कर लेता है तो भाजपा को अधिक नुकसान होगा। इसलिये इस क्षेत्र में कांग्रेस या भाजपा दोनों के ही जीतने की संभावना बराबरी की बनी हुयी हैं।
मंड़ला क्षेत्र में गौगपा पर निर्भर है इंका या भाजपा की जीत -मंडला लोकसभा क्षेत्र में भी जिले की केवलारी और लखनादौन विस सीटें शामिल हैं। इसीलिये इस क्षेत्र के परिणामों को लेकर भी यहां उत्सुकता के साथ विश्लेषण किया जा रहा है। पिछले लोस चुनाव में कोग्रेस के बसोरीसिंह मसराम ने भाजपा के फग्गनसिंह कुलस्ते को 65053 मतों से हराया था। फग्गन सिंह भाजपा के राष्ट्रीय आदिवासी नेता हैं। इसीलिये चुनाव हारने के बाद भी उनका राजनैतिक महत्व कम नहीं हुआ और अभी वे राज्यसभा के सदस्य है। 2009 के लोस चुनाव में कांग्रेस के पक्ष में प्रचार करने अध्यक्ष सोनिया गांधी आयीं थीं तो इस बार राहुल गांधी ने आदिवासियों की चौपाल मंड़ला में लगायी थी। 20013 के विस चुनावों में इस संसदीय क्षेत्र में भाजपा को कांग्रेस से 54279 वोटों की बढ़त मिली हुयी है।शहपुरा से 32681,निवास से 10910,गोटेगांव से 20171और बिछिया से 18316 वेटों से कांग्रेस पीछे रही है जबकि केवलारी से 4803,डिंडोरी से 6388,मंड़ला से 3827 और लखनादौन से 12781 वोटों से कांग्रेस ने भाजपा से बढ़त ली है। इस तरह कांग्रेस और भाजपा दोना ही पार्टियों के चार चार विधायक है।भाजपा की तरफ से नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने चुनावी सभायें की है। इस क्षेत्र के कांग्रेस प्रत्याशी भी कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल की पसंद के प्रत्याशी है। ये भी वर्तमान में विधायक है।वैसे मंड़ला क्षेत्र में यह प्रचार भी अंदर ही अंदर चला है कि फग्गन सिंह तो सांसद हैं ही यदि ओंकार जीत जायेगें तो जिले को दो दो सांसद मिल जायेगें। मंड़ला सेसदीय क्षेत्र में भी कांग्रेस या भाजपा की जीत गौगपा के प्रत्याशी के मत विभाजन पर निर्भर करती है।
केवलारी में बनेगा कीर्तिमान या दोहराया जायेगा इतिहास -जिले के राजनैतिक क्षेत्रों की पैनी नजर केवलारी विस के परिणामों पर लगी हुयी जहां से कांग्रेस के युवा रजनीश सिंह पहली बार विधायक बने है। इसके पहले उनके पिता स्व. हरवंश सिंह इस क्षेत्र से चार चुनाव जीते थे।लेकिन केवलारी क्षेत्र का भी अजीब इतिहास रहा है। पिछले 2003 के विस चुनाव में इस क्षेत्र से जहां कांग्रेस 8658 वोटों से जीती थी वहीं 2004 के लोस चुनाव में कांग्रेस 16340 वोटों से हार गयी थी। इसी तरह 2008 के विस चुनाव में इस क्षेत्र से 6276 वोटों से जीतने वाली कांग्रेस 2009 के लोस चुनाव में 3493 वोटों से हार गयी थी। 2013 के विस चुनावों में भी कांग्रेंस यहां से 4803 वोटों से जीती है। अब देखना यह है कि केवलारी क्षेत्र में कांग्रेस जीत कर एक नया कीर्तिमान बनाती है या विस में जीतने और लोस में हारने का अपना इतिहास दोहराती है ? “मुसाफिर”
साप्ताहिक दर्पण झूठ ना बोले, सिवनी
6 मई 2014 से साभार
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