जिला पंचायत चुनाव में डाले गये वोटों में एक ही खाने में पायी गयी एक से अधिक सीलों से गोपनीयता भंग नहीं हुयी?
भाजपा के रणनीतिकारों के अनुसार उन्होंने जो व्यवस्था जमायी थी उससे एक वोट कम मिला तो कैसे? भाजपा के रणनीतिकारों को कांग्रेस के सदस्यों के साथ साथ अपनी खुद की पार्टी के सदस्यों को भी “मैनेज“ करना पडा। भाजपायी सूत्रों का दावा है कि जो एक वोट निरस्त हुआ है वो भाजपा के किसी जयचंद का ही है। प्रदेश कांग्रेस के सचिव राजा बघेल ने बहुत स्पष्ट शब्दों में यह कहा था कि हर चुनाव के बाद समीक्षा बैठक होना चाहिये और उसके अनुसार कार्यवाही होना चाहिये ना कि कभी भी किसी चुनाव को लेकर आरोप प्रत्यारोप लगते रहें। इंका के वरिष्ठ नेता आशुतोष वर्मा ने अपने संबोधन में कहा था कि कांग्रेस के जिन उम्मीदवारों को जनादेश मिला हैं उन्हें सब नेता अपना मानें। अपनों में ज्यादा अपना तलाशने के प्रयास नुकसानदायक हो जाते हैं। लेकिन इतिहास में पहली बार कांग्रेस ने बहुमत होने के बाद भी जिला पंचायत पर अपना कब्जा बरकरार नहीं रख पायी जो कि पिछले चार चुनावों से बना हुआ था। इसे लेकर राजनैतिक हल्कों में तरह तरह की चर्चायें हैं। बीते दिनों संपन्न इस चुनाव में तीन या चार मतपत्रों में एक ही प्रत्याशी के सामने वाले खाने में एक से अधिक सील लगी पायी गयीं। इन मतपत्रों में दो से लेकर चार और पांच सीले लगी पायीं गयीं। एक बात और आश्चर्य के साथ यह पायी कि सभी सीलें स्पष्ट रूप से दिखायी दे रहीं थी। क्या मात्र 19 वोटों में ऐसा करना गोपनीयता को भंग करने वाला कृत्य नहीं हैं? क्या इन वोटों को निरस्त नहीं किया जाना चाहिये था ?
जिपं चुनाव में भाजपायी जयचंद की भी चर्चा-जिला पंचायत के चुनावों के बाद जयचंदों की चर्चा थमने का नाम ही ले रहीं है। भाजपा के रणनीतिकारों के अनुसार उन्होंने जो व्यवस्था जमायी थी उससे एक वोट कम मिला तो कैसे? भाजपा को 6 तथा उसकी बागी गोमती ठाकुर सहित कुल 7 मेम्बर थे। भाजपा के रणनीतिकारों का दावा है कि उन्होंने कांग्रेस के तीन मेम्बरों को मैनेज किया था। एक कांग्रेसी वोट उन्हें चंद्रशेखर चर्तुवेदी का विधायक मुनमुन राय के माध्यम से मिलना था।इस तरह भाजपा को अध्यक्ष के लिये 11 वोट मिलना थे लेकिन भाजपा को दस वोट ही मिले। और एक वोट निरस्त हो गया। भाजपायी सूत्रों का दावा है कि जो एक वोट निरस्त हुआ है वो भाजपा के किसी जयचंद का ही है। चूंकि भाजपा अल्पतम में होने के बाद भी चुनाव जीत गयी है इसीलिये वहां जयचंद की तलाश करने के बजाय जीत श्रेय लेने का सिलसिला जारी है। अखबारों में विज्ञापनों की होड़ लगी हुयी हैं। भाजपा के बड़े नेताओं ्रके साथ जिले के इकलौते भाजपा विधायक कमल मर्सकोले और निर्दलीय विधायक दिनेश मुनमुन राय की फोटो े प्रकाशित हो रही हैं और उन्हें इन चुनावों का कुशल रणनीतिकार माना जा रहा है।संगठन को सत्ता से प्रमुख मानने वाली भाजपा के हाल भी कंछ अलग थे। इन चुनावों में भाजपा के जिलाध्यक्ष वेदसिंह ठाकुर की भूमिका भी सत्तासीनों के बगलगीर होने से ज्यादा और कुछ नहीं थी। इसके अलावा एक बात और सामने आयी है कि भाजपा के रणनीतिकारों को कांग्रेस के सदस्यों के साथ साथ अपनी खुद की पार्टी के सदस्यों को भी “मैनेज“ करना पडा।
प्रदेश सचिव के कहने के बाद भी नहीं हो पायी कांग्रेस की समीक्षा बैठक-नव निर्वाचित जिला पंचायत सदस्यों के अभिनंदन के लिये आयोजित बैठक में ही प्रदेश कांग्रेस के सचिव राजा बघेल ने बहुत स्पष्ट शब्दों में यह कहा था कि हर चुनाव के बाद समीक्षा बैठक होना चाहिये और उसके अनुसार कार्यवाही होना चाहिये ना कि कभी भी किसी चुनाव को लेकर आरोप प्रत्यारोप लगते रहें। इसके पूर्व इंका के वरिष्ठ नेता आशुतोष वर्मा ने अपने संबोधन में कहा था कि कांग्रेस के जिन उम्मीदवारों को जनादेश मिला हैं उन्हें सब नेता अपना मानें। अपनों में ज्यादा अपना तलाशने के प्रयास नुकसानदायक हो जाते हैं। इन्हीें कांग्रेसी मेम्बरों में से जिन्हें ज्यादा मेम्बर पसंद करें उसे अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष बनाना चाहिये। लकिन जब जिला पंचायत के अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष के चुनाव हुये तो दोनो ही पदों पर कांग्रेस का हार का सामना करना पड़ा। हालांकि इस चुनाव के पहले इंका विधायक रजनीश सिंह के निावास स्थान बर्रा में जिले के कांग्रेस नेताओं की प्रदेश के पर्यवेक्षकों सुरेश राय और पाली भाटिया की उपस्थिति और जिला इंकाध्यक्ष हीरा आसवानी की अध्यक्षता में एक बैठक रखी गयी जिसमें विधायक योगेन्द्र सिंह बाबा सहित सभी नेता शामिल हुये। इस बैठक में कांग्रेस समर्थित चंद्रशेख चर्तुवेदी के अलावा सभी सदस्य शामिल हुये जो कि बाद में भाजपा की ओर से उपाध्यक्ष बने। बैइक के उदबोधनों के बाद रात में अधिकांश नेता चले गये लेकिन पर्यवेक्षक सहित सभी सदस्य रात को वहीं रहें। सदस्यों की रायशुमारी के अलावा प्रत्याशी चयन के लिये और क्या प्रक्रिया अपनायी गयी इसकी जानकारी अधिकांश नेताओं को नहीं दी गयी और दूसरे दिन सुबह लगभग सवा दस बजे मेम्बरों की उपस्थिति में सुरेश राय ने अध्यक्ष पद के लिये ऊषा पटले के नाम के साथ ही उपाध्यक्ष पद के लिये अशोक सिरसाम के नाम की घोषणा कर दी थी और तत्काल ही वाहनों में सवार होंकर काफिला सिवनी रवाना कर दिया गया था। किसी भी मेम्बर की किसी भी नेता से बात ही नहीं हुयी कि मेम्बर इस फैसले से संतुष्ट हैं कि नहीं? यहां यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि श्रीमती पटेल केवलारी क्षेत्र से निर्वाचित हुयीं है तो अशोक सिरसाम के निर्वाचन क्षेत्र में केवलारी विस के एक प्रमुख राजनैतिक केन्द्र भोमा सहित कुछ गांव आते हैं। उम्मीद की जा रही थी कि प्रदेश कांग्रेस सचिव राजा बघेल के निर्देश के अनुसार इस बार समीक्षा बैठक होगी जिसमें खुल कर सभी बातों की चर्चा होगी और जयचंदों को तलाश कर उन्हें दंड़ित किया जायेगा लेकिन ऐसा कुछ भी तक नहीं हो पाया है। चुनाव के बाद कुछ मेम्बरों ने कांग्रेस के कुछ नेताओं को यह जरूर बताया कि अधिकांश मेम्बरों की राय अध्यक्ष पद के लिये चित्रलेखा नेताम और उपाध्यक्ष पद के लिये जयकेश ठाकुर के लिये थी लेकिन उन पर यह फैसला थोप दिया गया। यदि ऐसा भी हाता तो क्याा होता? यह कहना आसान नहीं हैं लेकिन इतिहास में पहली बार कांग्रेस ने बहुमत होने के बाद भी जिला पंचायत पर अपना कब्जा बरकरार नहीं रख पायी जो कि पिछले चार चुनावों से बना हुआ था। इसे लेकर राजनैतिक हल्कों में तरह तरह की चर्चायें हैं।
मतपत्र में एक से अधिक सील से क्या गोपनीयता भंग नहीं होती?-सिवनी जिला पंचायत में मात्र 19 सदस्य मतपत्र के माध्यम से वेट डालकर अपने अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष का चुनाव करते हैं। बीते दिनों संपन्न इस चुनाव में तीन या चार मतपत्रों में एक ही प्रत्याशी के सामने वाले खाने में एक से अधिक सील लगी पायी गयीं। इन मतपत्रों में दो से लेकर चार और पांच सीले लगी पायीं गयीं। एक बात और आश्चर्य के साथ यह पायी कि सभी सीलें स्पष्ट रूप से दिखायी दे रहीं थी। क्या मात्र 19 वोटों में ऐसा करना गोपनीयता को भंग करने वाला कृत्य नहीं हैं? क्या इन वोटों को निरस्त नहीं किया जाना चाहिये था?ये ऐसे सवाल है जो कि इस चुनाव के बाद से सियासी हल्कों में चर्चित हैं। यह बात भी साफ है कि जनादेश के अनुसार तो यह चुनाव कांग्रेस को जीतना था। लेकिन भाजपा की जीत से यह स्पष्ट है कि कुछ मैनेज किया गया। जब मैनेजमेंट किया जाता है तो यह भी सुनिश्चित करने का प्रयास किया जाता है कि यह पता चल जाये कि जिसये मैनेज किया है उसने वोट दिया है कि नहीं? क्या एक से अधिक लगायी गयी सीलें इसी योजना का हिस्सा थी? यदि ऐसे वोट निकले थे तो फिर निरस्त करने की मांग क्यों नहीं की गयी? प्रशासनिक अधिकारी तो यह कह सकते हैं कि ऐसी कोई आपत्ति नहीं लगायी गयी। तब यह सवाल ाी उठता है कि क्या जो एक वोट निरस्त हुआ है उसके लिये आपत्ति लगायी गयी थी?क्या मतदान की गोपनीयता बनाये रखना निर्वाचन में लगे प्रशासनिक अमले की जवाबदारी नहीं हैं? ये तमाम ऐसे सवाल है जो इसलिये चर्चित हो रहें हैं क्योंकि प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा ने बहुमत ना होने के बाद भी अपना अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष बनवा लिया है। “मुसाफिर“
सा. दर्पण झूठ ना बोले सिवनी
31 मार्च 2015 से साभार