आज के दिन स्वतंत्र भारत ने अपना संविधान अंगीकार किया था। डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की अध्यक्षता वाली संविधान सभा ने इसको बनाया था। देश ने इस संविधान के अनुसार प्रजातांत्रिक शासन प्रणाली स्वीकार की जिसमें जनता का,जनता के लिये,जनता के द्वारा शासन तंत्र बनाया जाता है। संविधान के अनुसार देश ने धर्मनिरपेक्ष प्रजातांत्रिक समाजवादी व्यवस्था को अपनाया। संविधान निर्माताओं ने विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के रूप में तीन स्तम्भों को मान्यता प्रदान की है। इसके साथ ही तीनों अंगों की कार्यप्रणाली पर सतत निगरानी की जवाबदारी मीडिया की मानी गयी थी। हमारे संविधान में कुछ संवैधानिक संस्थाओं की भी व्यवस्था की गयी जिनसे यह अपेक्षा की गई है कि वे राजनेतिक प्रभाव से परे रहकर अपना काम करेंगी जिनमें निर्वाचन आयोग, कैग आदि शामिल है। हमारे संविधान की उम्र 69 वर्ष की हो गयी है। इसमें समय समय पर आवश्यकता के अनुसार संशोधन भी किये गये। बीते कुछ वर्षों से धर्मनिरपेक्षता को लेकर राजनीतिक विवाद छिड़ा रहा। कोई किसी पर संतुष्टिकारण का आरोप लगाता तो कोई किसी को छद्म धर्मनिरपेक्ष कहता रहा। समय समय पर राजनेतिक हस्तक्षेप के आरोप भी चस्पा होते रहे है। जिनके पीछे प्रमुख कारण यह रहा है कि सेवानिवृत्त होने कुछ समय पहले ही कोई राजनेतिक रूप से महत्वपूर्ण निर्णय देने के बाद संबंधित पदाधिकारी राजनेतिक पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर लेता है या फिर सरकार उसे किसी बड़े पद देकर उपकृत कर देती है। इन तमाम विवादों के चलते हुये भी न्याय पालिका पर देश के आम आदमी का विश्वास अडिग रहा है। आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि यदि देश मे किसी के साथ अन्याय होगा तो उसे न्यायपालिका से न्याय जरूर मिलेगा। लेकिन हाल में घटित एक घटना ने पूरे देश को चौकाकर रख दिया है। पिछले 69 सालों से ऐसा होता रहा है कि न्याय माँगने के लिये लोग न्यायालय जाते थे लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के चार वरिष्ठ न्यायाधीशों मीडिया के सामने आकर न्याय के लिये जनता की अदालत में गुहार लगा दी है। इन्होंने ना केवल देश के मुख्य न्यायाधीश को कठघरे में खड़ा कर दिया वरन न्यायपालिका में राजनेतिक रूप से प्रकरणों को बैंच में दिये जाने की बात भी ईशारों ईशारों में कह डाली गयी। इस घटना ने पूरे देश को हतप्रभ कर दिया है। यह एक महत्वपूर्ण विचारणीय प्रश्न है कि आखिर ऐसा क्या हो गया था कि इतने वरिष्ठ न्यायाधीश गण मीडिया तक पहुच गये? क्या इस मामले में न्यायपालिका की छवि प्रभावित नही हुयी है? क्या न्यायपालिका से निष्पक्ष न्याय की चाहत रखने वाले आम आदमी के मन में संदेह नही पैदा हो गया है? क्या इस घटना ने हमारे संविधान और प्रजातंत्र की जड़ों को झकझोर कर नही रख दिया है? ये तमाम ऐसे प्रश्न है जिनके न केवल हमें जवाब तलाश करने है वरन गणतंत्र दिवस की पावन बेला में यह संकल्प भी लेना है कि हमें अपने संवैधानिक और प्रजातांत्रिक मूल्यों की रक्षा करना है ताकि आम आदमी की आजादी को ग्रहण ना लग सके। यही गणतंत्र दिवस पर हमारी शुभकामनाएं है।
संवैधानिक और प्रजातांत्रिक मूल्यों की रक्षा का संकल्प लें ताकि आजादी को ग्रहण ना लगे
संवैधानिक और प्रजातांत्रिक मूल्यों की रक्षा का संकल्प लें ताकि आजादी को ग्रहण ना लगे