राजनैतिक स्वार्थों ने प्रजातांत्रिक मूल्यों को तार तार कर दिया है
15 अगस्त 1947 को हमारा देश अंग्रेजी हुकूमत से आजाद हुआ था। आज हम 75 वां स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं। भारत ने शासन चलाने के लिये प्रजातंत्र, समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों को अंगीकार किया था। भारत के साथ ही पाकिस्तान भी आजाद हुआ था। लेकिन हमारे देश के तत्कालीन कर्णधारों ने दूरदर्शिता और समझदारी के साथ देश के बहुमुखी विकास की ऐसी ठोस बुनियाद रखी थी कि आज हम विश्व के महत्वपूर्ण और ताकतवर देशों में गिने जाते है। वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तान बहुत ही निचली पायदान पर पहुँच गया है और अपने लोगों के पेट पालने के लिये याचक की दृष्टि से पूरी दुनिया को निहारते रहता है।
आजादी मिलने के बाद महात्मा गांधी ने कहा था कि ये आजादी तभी सही मायने में आजादी मानी जायेगी जब इसका लाभ देश के अंतिम छोर के व्यक्ति तक पहुचे। जनता की सत्ता जनता के ही हाथों में रहे। इसीलिए प्रजातंत्र को अंगीकार किया गया जिसमें जनता का, जनता के द्वारा, जनता के लिये शासन चलाने की व्यवस्था है। देश के संविधान में बाबा साहेब अम्बेडकर ने हर पाँच साल में चुनाव कराने और देश के पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए सीमित अवधि के लिये आरक्षण का भी प्रावधान किया ताकि देश के हर नागरिक को विकास के बराबरी से अवसर मिल सके। गरीब और गरीब और अमीर और अमीर न होते जाये।
देश की 75 साल की विकास यात्रा भी कोई सीधी सरल नहीं रही वरन कई उतार चढ़ावों से होकर गुजरी है। आजाद होते वक्त देश में जहाँ सुई भी नहीं बनती थी वहीं आज भारत की गिनती परमाणु बम रखने वाले देशों में होती है। बापू के सपने को साकार करते हुऐ देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने संविधान संशोधन कर हर पांच साल में तीन स्तरीय पंचायती राज और स्थानीय निकायों के चुनाव अनिवार्य कर जनता की सत्ता जनता के हाथों में सौपने का कार्य किया। इन 75 सालों में देश मे प्रजातंत्र भी मजबूत तो हुआ लेकिन उस मुकाम तक नहीं पहुँचा जहां तक पहुँचना था। पिछले कुछ सालों में ऐसा देखा जा रहा है कि पार्टियों और नेताओं के राजनैतिक स्वार्थों ने प्रजातांत्रिक मूल्यों को छलनी करके रख दिया है। सत्ता पक्ष और विपक्ष की हठधर्मिता के चलते प्रजातंत्र के सर्वोच्च मंदिर संसद को भी कई बार शर्मसार होना पड़ा है।प्रजातंत्र में पक्ष और विपक्ष दोनों की ही विचारधाराओं के प्रति जनता अपना मत देती है और बहुमत प्राप्त करने वाला पक्ष सत्ता के संचालन के साथ ही विपक्ष के सम्मान की भी रक्षा करने की जवाबदारी निभाता है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में ऐसा क्या हो गया है कि प्रजातांत्रिक अधिकारों के चलते सत्ता पक्ष के किसी निर्णय या नीति से असहमति रखने वाले लोगों को राम भक्त या राष्ट्र भक्त नहीं होने का लेबल चस्पा कर देना आम बात हो गयी है। कोई भी मौका मिलते ही राजनैतिक वार करने से कोई भी चूकता ही नही है। इसका ताजा उदाहरण हाल ही में देखा गया जब सालों बाद भारतीय हॉकी टीम के ओलम्पिक में अच्छे प्रदर्शन के तत्काल बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नाम से दिये जाने वाले खेल रत्न पुरस्कार का नाम बदलकर हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के नाम से दिये जाने की घोषणा कर दी। प्रधानमंत्री यदि चाहते तो मेजर ध्यानचंद के नाम से किसी और पुरस्कार की घोषणा कर सकते थे जो उनकी गरिमा और कद को बढ़ाने वाला कदम साबित हो सकता था। लेकिन उन्होंने प्रधानमंत्री पद की गरिमा के बजाय अपनी राजनैतिक कुंठा को ही प्रदर्शित करना बेहतर समझा है।
75 सालों में पिछले कुछ वर्षों से पार्टियों और नेताओं द्वारा राजनैतिक हितों को देशहित से ज्यादा महत्व देने के कारण देश में प्रजातांत्रिक मूल्य तार तार हो गये है। स्वतंत्रता दिवस की हीरक जयंती पर हमारी यही अपेक्षा है कि देश में दिनों दिन प्रजातांत्रिक मूल्यों की तेजी से पुनर्स्थापना हो और भारत दुनिया का सबसे मजबूत प्रजातंत्र वाला देश बन जाये। स्वतंत्रता दिवस की हीरक जयंती पर यही हमारी शुभकामनाएं है।।
आशुतोष वर्मा
अंबिका सदन
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