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Monday, April 25, 2011

political naws of M.P.

क्या इंका और भाजपा में होगी लाल बत्ती की अदला बदली ?

हरवंश की लालबत्ती जाना तय, क्या शशि,कमल,ढ़ालसिंह या नरेश को मिलेगी लालबत्ती या शिव की नगरी रहेगी लाल बत्ती विहीन

सिवनी। प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस में हुये परिवर्तन को लेकर भाजपा मे भी ऊहा पोह के हालात बन गये हैं। इसका जिले की राजनीति में भी व्यापक असर पड़े की सम्भावनायें व्यक्त की जा रहीं हैं। जहां एक ओर कांग्रेस के हरवंश सिंह को मिली लाल बत्ती जाना तय माना जा रहा हैं तो वहीं दूसरी ओर भूरिया फेक्टर के कारण जिले के किसी आदिवासी विधायक को मन्त्री बनाकर या पूर्व विधायकों में से किसी एक को निगम में नवाज कर लाल बत्ती मिलने की सम्भावना हैं। अब देखना यह हैं कि इंका और भाजपा में लाल बत्ती की अदला बदली होकर लाल बत्ती जिले में बनी रहती हैं या फिर जिला लालबत्ती विहीन हो जायेगा।

प्रदेश कांग्रेस में कान्तिलाल भूरिया के अध्यक्ष और अजय सिंह के नेता प्रतिपक्ष बनने से प्रदेश की राजनीति में अचानक तेजी आ गई हैं। प्रदेश की अधिकांश आदिवासी सीटों को जीतने वाली भाजपा इंका के आदिवासी कार्ड से विचलित दिखायी दे रही हैं। नेता प्रतिपक्ष के रूप में अजय सिंह की ताजपोशी और चन्द महीनों पहले सिधिंया गुट के महेन्द्र सिंह कालूखेड़ा का लोक लेखा समिति का अध्यक्ष बनना जातीय समीकरणों के चलते विस उपाध्यक्ष हरवंश सिंह को भारी पड़ रही हैं। विपक्ष को मिलने वाले तीनों प्रमुख पदों पर ठाकुर नेताओ का कब्जा आड़े आने से यह तय माना जा रहा हैं कि जिले के इकलौते इंका विधायक हरवंश सिंह लाल बत्ती से महरूम होने वाले हैं।

भूरिया फेक्टर से विचलित भाजपा मन्त्री मंड़ल विस्तार के दौरान हो सकता हैं कि दो आदिवासी विधायकों को मन्त्री बना कर आदिवासी वोटों के बिखराव को रोकने की कोशिश कर सकती हैं। ऐसा भी माना जा रहा हैं कि इनमें से एक मन्त्री महाकौशल क्षेत्र से होगा। इस क्षेत्र के दो जिले डिण्डोरी और सिवनी मन्त्री विहीन जिले हैं। इनमें से डिण्डोरी में सभी विधायक कांग्रेस के हैं जबकि सिवनी जिले में चार में से तीन विधायक भाजपा के हैं जिनमें से दो आदिवासी वर्ग के है।कांग्रेस के गढ़ माने जाने वाले लखनादौन क्षेत्र की भाजपा विधायक शशि ठाकुर दूसरी बार विधायक बनीं हैं जबकि बरघाट क्षेत्र के युवा विधायक कमल मर्सकोले पहली बार बरघाट सीट से विधायक बन कर इस सीट पर पांचवी बार भाजपा का कब्जा बरकरार रखने में सफल रहें हैं। मन्त्री मंड़ल के प्रस्तावित फेर बदल में इन दोनों में से किसी एक को लालबत्ती मिल सकती हैं। वैसे भी भाजपा का यह मानना है कि पचास साल से अधिक उम्र वाले आदिवासी आज भी कांग्रेस के ही पक्ष में जाते हें इसलिये युवा आदिवासियों को अपनी ओर आकषिZत करने के लिये युवा विधायकों पर दांव खेला जा सकता हैं।

सिवनी की विधायक नीता पटेरिया के प्रदेश महिला मोर्चे के अध्यक्ष बन जाने के बाद उनके मन्त्री बनने की सम्भावनायें कम हो गईं हैं। यदि मन्त्री मंड़ल में जिले को लालबत्ती नहीं मिल पाती हैं तो ऐसा भी माना जा रहा हैं कि पूर्व मन्त्री डॉ. ढ़ालसिंह बिसेन या पूर्व विधायक नरेश दिवाकर को किसी निगम में लाल बत्ती दी जा सकती हैं। दोनों के ही पक्ष विपक्ष में तर्क दिये जा रहें हैं। जहां एक ओर डॉ. बिसेन के चुनाव हारने की बात कही जा रही हैं तो वहीं नरेश की टिकिट कटने के कारण गिनाते हुये भाजपायी ही भ्रष्टाचार की बात कहने से नहीं चूक रहें हैं। पिछले चुनावों में हारी हुयी सीटों को जीतने की रणनीतिबनाने में जुटी भाजपा यदि इसपर अमल करती हें तो डॉ. बिसेन की सम्भावनायें प्रबल हो सकती हैं।

अब देखना यह हैं कि अपने राज में शिव की नगरी सिवनी को लालबत्ती विहीन रखने वाले शिवराज जिले को लाल बत्ती देकर इंका और भाजपा में लाल बत्ती की अदला बदली करतें हैं या फिर जिला लाल बत्ती विहीन होकर रह जायेगा क्योंकि विस उपाध्यक्ष हरवंश की लाल बत्ती छिनना तो तयही माना जा रहा हैं।





आदिवासी एवं सामान्य के बाद अब पिछडों पर कांग्रेस की नज़र !

मिशन 2013 फतह करने हरवंश सिंह को देनी पड सकती है कुबाZनी .क्षेत्रीय एवं गुटीय सन्तुलन के मद्देनज़र विस उपाध्यक्ष पद महाकौशल को ही .विधायक कटंगी विश्वेश्वर भगत प्रबल दावेदार

सिवनी (सञ्जय सिंह) । प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं विधायक अजय सिंह राहुल की नेता प्रतिपक्ष पर हुई ताजपोशी के बाद प्रदेश के कांग्रेसी हलकोें में यह चचाZ बडे जोरों से चल रही है कि जातीय समीकरण के चलते अब प्रदेश के कद्दावर कांग्रेसी नेता ठा. हरवंश Çसह का विधानसभा उपाध्यक्ष के पद से इस्तीफा देना तय माना जा रहा है। कांग्रेसियों का मानना है कि विधानसभा में विपक्ष को मिलने वाले तीनों पदों प्रतिपक्ष नेता, विधानसभा उपाध्यक्ष एवं लोक लेखा समिति पर ठाकुरों का कब्जा हो गया है। लोक लेखा समिति के अध्यक्ष बनाये गये महेन्द्र सिंह कालूखेडा की नियुक्ति हुये अभी करीब 2 माह ही हुये हैं और वे ज्योतिरादित्य सिन्धिया के गुट के हैं। ऐसे में उनको हटाया जाना राजनैतिक समीकरणों की दृष्टि से उचित नहीं होगा। यदि तीनों ठाकुर अपने-अपने पदों पर विराजमान रहते हैं तो कांग्रेस पर नि:सन्देह ठाकुरवाद का ठप्पा लग जायेगा जो भविष्य में बीजेपी के लिये जातीय समीकरण के आधार पर राजनैतिक लाभ देने वाला सिद्Ëा होगा।

प्रदेश के साथ-साथ जिले के कांग्रेसियों खास कर हरवंश समर्थकों द्वारा छिपे हुये अन्दाज और दबी हुई जुबान से यहां तक कहा जा रहा है कि विगत दिनों साहब का दिल्ली प्रवास इसी सिलसिले में था। आलाकमान ने साहब को दिल्ली तलब कर उनसे इस्तीफा ले लिया है उसके बाद ही राहुल की ताजपोशी का रास्ता बनाया गया। हरवंश समर्थकों का यह मानना है कि अब साहब को विधानसभा 2.13 के मिशन के मद्देनज़र संगठन में महती जिम्मेदारी मिलने वाली है, ताकि कांग्रेस उनकी सर्वविदित संगठनात्मक क्षमता का पूरा लाभ उठाकर प्रदेश अगली सरकार पार्टी की बना सके। श्री सिंह के समर्थकों एवं कांग्रेसी हलकों में व्याप्त चचाZ को सच मान लिया जाये तो अगली विधानसभा चुनाव में सरकार बनाने की कांग्रेस की कवायदों को देखते हुये आदिवासी प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद विधानसभा उपाध्यक्ष का पद किसी पिछडे वर्ग के विधायक की झोली में जा सकता है। सम्भावना यह भी है कि चूंकि वर्तमान में यह पद महाकौशल क्षेत्र के पास है इसीलिये अगल विस उपाध्यक्ष भी महाकौशल क्षेत्र से ही बनाया जाये ताकि क्षेत्रीय सन्तुलन भी बरकरार रखा जा सके। ज्ञातव्य हो कि नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष कान्तिलाल भूरिया एवं लोक लेखा समिति अध्यक्ष महेन्द्र सिंह कालूखेडा मध्य क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, वहीं अभी हाल ही में नियुक्त हुये प्रतिपक्ष नेता अजय सिंह विन्ध्य के साथ-साथ बुन्देलखण्ड का भी प्रतिनिधित्व करते हैं।

यदि कांग्रेस के रणनीतिकार पिछडा वर्ग का कार्ड खेलते हैं और महाकौशल को प्रतिनिधित्व देते हैं तो सीधे राजनैतिक संकेत यही कहते हैं कि गुटीय सन्तुलन का यदि ताना-बाना बुना गया तो विधानसभा उपाध्यक्ष का पद कमलनाथ समर्थक की झोली में जायेगा। महाकौशल क्षेत्र में कांग्रेस के पिछडे वर्ग के विधायकों और कमलनाथ समर्थकों में दो ही नाम उभरकर आते हैं और ये दोनों ही नाम बालाघाट जिले से हैं, कटंगी विधायक विश्वेश्वर भगत एवं वारासिवनी विधायक प्रदीप जायसवाल । महाकौशल क्षेत्र के मण्डला, डिण्डोरी जिले में आदिवासी विधायक हैं तथा छिन्दवाडा जिले में दीपक सक्सेना छिन्दवाडा, मेहरसिंह चौधरी चौरई सामान्य से, तेजीलाल सरयाम आदिवासी वर्ग से, नरसिंहपुर जिले की गोटेगांव से नरबदा प्रसाद प्रजापति हरिजन वर्ग से, सुनील जायसवाल नरसिंहपुर पिछडा वर्ग से एवं साधना स्थापक गाडरवाडा सामान्य वर्ग से , जबलपुर जिले में जबलपुर पूर्व विधानसभा के विधायक लखन घनघोरिया हरिजन वर्ग से, कटनी जिले में सञ्जय पाठक विजय राघवगढ सामान्य वर्ग से एवं निषिद पटेल बहोरीबन्द पिछडा वर्ग से हैं। आदिवासी वर्ग और सामान्य वर्ग के लिये अब कोई राजनैतिक समीकरण बनता नहीं दिखाई दे रहा है। पिछडे वर्ग से नरसिंहपुर के सुनील जायसवाल जरूर विधायक हैं , किन्तु वे जूनियर हैं। इसी तरह बहोरीबन्द के निषिद पटेल पिछडा वर्ग से जरूर हैं, किन्तु वे सिन्धिया गुट के हैं तथा इस गुट के महेन्द्र सिंह कालूखेडा को विधानसभा में एक पद दिया जा चुका है। पिछडे वर्ग के प्रदीप जायसवाल सीनियर तो जरूर हैं , किन्तु कलार जाति की अपेक्षा भाजपा समर्थक पंवार जाति पर कांग्रेस की नज़रें गढी होने के कारण कटंगी के विधायक विÜवेÜवर भगत खरे उतर सकते हैं। श्री भगत के पास काफी राजनैतिक अनुभव भी है तथा बालाघाट से लेकर ब्ौतूल जिले तक फैली और वोट ब्ौंक के हिसाब से निर्णायक पंवार जाति में यदि किसी कांग्रेसी नेता की पकड है तो सिर्फ वे ही हैं। श्री भगत को दो बार सांसद (वर्ष 1991 से 1996 एवं 1996 से 1998) तथा वर्तमान मिलाकर 3 बार विधायक एवं मन्त्री(वर्ष 1985 से 1990 ) का पद सम्भालने का अनुभव है। विÜवेÜवर भगत को विधानसभा उपाध्यक्ष बनाकर कांग्रेस विधानसभा में जहां उनके राजनीतिक अनुभव का लाभ ले सकेगी , वहीं भाजपा के पंवार जाति के थोक वोट ब्ौंक में सेन्धमारी भी कर सकेगी।

महाकौशल क्षेत्र के बालाघाट ,सिवनी, छिन्दवाडा एवं ब्ौतूल की करीब 15 से अधिक विधानसभा सीटों पर पंवार जाति निर्णायक भूमिका में है। कांग्रेस से मोह भंग होने पर जब से पंवार जाति ने भाजपा का दामन थामा है, तब से परिसीमन के पूर्व बालाघाट जिले की 8 विधानसभा में कम से कम 4 एवं अधिकतम 6 विधानसभा सीट कटंगी, बालाघाट, लांजी, ब्ौहर, किरनापुर , सिवनी जिले की वर्ष 199. से लगातार बरघाट एवं सिवनी विधानसभा सीट , छिन्दवाडा की पांढुनाZ एवं सौंसर विधानसभा सीट तथा ब्ौतूल जिले की मुलताई विधानसभा सीट भाजपा के पास ही रही है। परिसीमन के पूर्व बालाघाट जिले की खैरलाञ्जी सीट से विÜवेÜवर भगत जीतते रहे हैं भले ही वे बतौर कांग्रेस प्रत्याशी जीते हों। खेैरलाञ्जी से बोधÇसह भगत भाजपा भी पंवारों के बल पर ही जीतते थे। इसी तरह पंवार बाहुल्य किरनापुर विधानसभा सीट से वर्ष 198. एवं 1985 में भुवनलाल पारधी भाजपा के ही विधायक थे। बालाघाट जिले की कटंगी विधानसभा सीट से भी विधायक पंवार जाति का ही चुना गया है भले ही वह कांग्रेस या भाजपा का हो। एक बार ही वर्ष 1985 में इस विधानसभा से ग्ौर पंवार डॉ निर्मल सिंह हीरावत कांग्रेस से चुने गये थे। परिसीमन के बाद बालाघाट जिले में भाजपा के 4 विधायक एवं 2 विधायक कांग्रेस के हैं जिनमें गौरीशंकर बिसेन भाजपा(बालाघाट) एवं विÜवेÜवर भगत कांग्रेस(कटंगी) पंवार जाति के हैंं। बालाघाट जिले की लांजी सीट में भी पंवार निर्णायक हैं, वर्तमान में वहां से रामकिशोर कांवरे भाजपा के विधायक हैं। सिवनी जिले की बरघाट विधानसभा में पंवार जाति पूर्णत: निर्णायक है तो सिवनी विधानसभा में भी पंवारों की संख्या पर्याप्त है, वर्ष 1990 से ये दोनों सीटें भाजपा की झोली में हैं। बरघाट विधानसभा सीट से वर्ष 1990 से वर्ष 2003 के विधानसभा चुनावों में डॉ ढालसिंह बिसेन एवं वर्ष 2008 के विधानसभा चुनाव से कमल मर्सकोले तथा सिवनी विधानसभा सीट से वर्ष 1990 से वर्ष 1998 तक स्व. पण्डित महेश प्रसाद शुक्ला, वर्ष 1998 से वर्ष 2008 तक नरेश दिवाकर एवं वर्ष 2008 के विधानसभा चुनाव से श्रीमती नीता पटेरिया भाजपा का परचम लहरा रहे हैं। इसी तरह जिला छिन्दवाडा की पंवार बाहुल्य पांढुनाZ विधानसभा सीट(परिसीमन से पूर्व) से पंवार जाति के मारूतिराव खपसे 4 बार विधायक चुने जा चुके हैं। ब्ौतूल जिले की पंवार बाहुल्य मुलताई विधानसभा सीट(परिसीमन के पूर्व) से भी पंवार जाति के ही मनिराम बारंगे 1 बार निर्दलीय एवं दो बार भाजपा से जीतते रहे थे। यही नहीं जिला पंचायत के पिछले चुनावों में बालाघाट , छिन्दवाडा और ब्ौतूल में जिला पंचायत अध्यक्ष के पद भी भाजपा क ी झोली में गया था। सिवनी में श्रीमती गोमती ठाकुर भाजपाई गुटबन्दी के चलते जिला पंचायत अध्यक्ष नहीं बन सक ीं थीं।

यही कारण है कि राजनीति में पिछडे वर्ग के पंवारों के बढते वचZस्व को देखते हुये परिसीमन के दौरान भाजपा के ही पंवार विरोधी नेताओं और कांग्रेसी नेताओं ने मिलकर पंवार बाहुल्य बालाघाट जिले की किरनापुर एवं खैरलाञ्जी विधानसभा सीट, छिन्दवाडा जिले की पांढुनाZ एवं ब्ौतूल की मुलताई विधानसभा सीट को समाप्त कर दिया, वहीं सिवनी की बरघाट विधानसभा सीट को आदिवासी कोटे में डाल दिया। व्ौसे तो पिछडे वर्ग की यह पंवार जाति आर्थिक , शैक्षणिक, राजनेैतिक क्षेत्र में काफी आगे है तथा सामाजिक तौर से लामबन्द भी है। वर्तमान राजनैतिक परिस्थितियों में पंवार वोट ब्ौंक भाजपा के साथ है। वर्ष 1985 के राजनैतिक परिदृश्य को टटोला जाये तो इस जाति का उसी समय से धीरे-धीरे कांग्रेस से मोहभंग होने लगा था और वर्ष 1990 के आते-आते पंवार जाति पूरी तरह भाजपा के साथ हो गई थी। इस जाति का साथ भाजपा को मिलने से महाकौशल के बालाघाट, सिवनी, छिन्दवाडा और ब्ौतूल के अनेक कांग्रेसी गढ ध्वस्त होते चले गये और वहां भगवा लहराने लगा। कांग्रेस की लाख कोशिशों के बाद भी उसके हाथ से गई सीटें उसे वापस नहीं मिल सक ीं। पिछडे वर्ग की पंवार जाति में जातिगत नेतृत्व भाजपा के हाथ में चला गया है। कांग्रेस यदि इसे तोडना चाहती है तो जरूरी है कि उस नेता को आगे करे जिसकी इस जाति में पकड है। बालाघाट से लेकर ब्ौतूल तक कांग्रेस के पास ऐसा कोई नेता है तो वो है विश्वेÜवर भगत।

श्री भगत ने अपने राजनैतिक जीवन में पंवारों के समर्थन से ही दो बार सांसद एवं 3 बार विधायक की कुसीZ हासिल कर चुके हैं। विधानसभा का लम्बा अनुभव भी जितना उन्हें विधानसभा उपाध्यक्ष पद के लिये उपयुक्त माना जा सकता है, वहीं गुटीय सन्तुलन के हिसाब से भी कमल नाथ समर्थक होने के कारण उनका दावा पुख्ता बनता है। राजनैतिक समीकरण इस ओर भी संकेत कर रहे हैं कि कांग्रेस विश्वेÜवर भगत को विधानसभा उपाध्यक्ष बनाकर भाजपा द्वारा महाकौशल के साथ किये जा रहे पक्षपातपूर्ण रव्ौये , पीएचई मन्त्री गौरीशंकर बिसेन की पंवारों के बीच होती कमजोर पकड तथा उनकी बेलगामी पर नकेल कसने एवं पंवारों के सर्वमान्य नेता पूर्व मन्त्री डॉ ढालसिंह बिसेन की भाजपा द्वारा लगातार की जा रही उपेक्षा का लाभ भी ले सकती है।

Monday, April 18, 2011

plitical dairy of seoni disst. of M.P.

दिग्गी समर्थक भूरिया और अजयसिंह की ताजपोशी और हरवंश के कुछ ना बन पाने से मातम छा गया समर्थकों में

प्रदेश भाजपा तो पिछले कई महीनों से तीसरी पारी खेलने की कवायत में जुट गई हैं। उसने पिछले चुनावों हारी हुयी सीटों को चििन्हत कर उन्हें जीतने की योजना बनानी शुरूकर दी हैं। जिले भाजपा में किसी की भी ताजपोशी होती हैं तोपहले वो भाजपा विधायकों के क्षेत्र में जाकर शानदार स्वागत सत्कार कराना चाहता हैं। हाल ही में युवा मोर्चे के अध्यक्ष बने ठाकुर नवनीत सिंह ने भी ऐसाही किया। जबकि मिशन 2013 के लिये हर एक शुरुआत केवलारी से होना चाहिये ताकि भाजपा चार बार की हारी इस सीट को जीतने का सपना देख सके। पिछले लगभग एक दशक से भी अधिक समय से जिले के इकलौते विधायक एवं विधानसभा उपाध्यक्ष ठा. हरवंश सिंह की एक तरफा तूती बोल रही हैं। हालांकि हरवंश सिंह जरूर प्रदेश के कद्दावर इंका नेताओं में गिने जाने लगे लेकिन जिले में कांग्रेस का सफाया हो गया।उनके मेनेजमेण्ट फंड़ें का प्रदेश के बड़े बड़े नेता लोहा मानते हैं। इसलिये उनकी कांग्रेस के साथ भीतरघात करने की पुख्ता शिकायतें भी दरकिनार हो जाती थीं और जिले में कांग्रेस के हर पतन के साथ हरवंश सिंह की एक पदोन्नति हो जाती थी। लेकिन इस बार प्रदेश के बड़े नेता हरवंश सिंह से खफा दिखायी दे रहें हैं। जिसका प्रमाण उस वक्त देखने को मिला जब अजय सिंह उर्फ राहुल भैया ने अपने भाषण में खुले आम यह कह दिया कि हम सब तो मिल कर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बना लेंगेंं बशर्ते ठाकुर साहब(हरवंश सिंह की ओर इशारा करते हुये) शिवराज सिंह को सपोर्ट करना बन्द कर दें।

नूरा कुश्ती से परेशान केवलारी के भाजपा कार्यकत्ताZ निराश-प्रदेश में इस बार समय से बहुत पहले ही विधानसभा और लोकसभा के चुनावों की जमावट दिखने लगी हैं। प्रदेश भाजपा तो पिछले कई महीनों से तीसरी पारी खेलने की कवायत में जुट गई हैं। उसने पिछले चुनावों हारी हुयी सीटों को चििन्हत कर उन्हें जीतने की योजना बनानी शुरूकर दी हैं। प्रदेश के इन निर्देशों पर यदि पालन करने की बात देखी जाये तो जिले में भाजपा को सिर्फ केवलारी एक ऐसी सीट हैं जिस पर ध्यान देना ज्यादा जरूरी हैं। कांग्रेस के दिग्गज नेता हरवंश सिंह सन 1993 से लगातार इस क्षेत्र से जीतते आये हैं और अपनी शानदार चौथी पारी खेल रहें हैं। वे निZविरोध चुनाव जीतकर आज विधानसभा केे उपाध्यक्ष भी हैं। लेकिन इस दौरान उल्टा ही देखने को मिल रहा हैं। जिले भाजपा में किसी की भी ताजपोशी होती हैं तोपहले वो भाजपा विधायकों के क्षेत्र में जाकर शानदार स्वागत सत्कार कराना चाहता हैं। हाल ही में युवा मोर्चे के अध्यक्ष बने ठाकुर नवनीत सिंह ने भी ऐसाही किया। जबकि मिशन 2013 के लिये हर एक शुरुआत केवलारी से होना चाहिये ताकि भाजपा चार बार की हारी इस सीट को जीतने का सपना देख सके। यहां यह उल्लेखनीय हैं कि ठाकुर हरवंश सिंह से केवलारी क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी के रूप में दो बार श्रीमती नेहा सिंह, फिर वेदसिंह ठाकुर और पिछले चुनाव में प्रदेश के पूर्व मन्त्री डॉ. ढ़ालसिंह बिसेन चुनाव हारे हैं। हरवंश से हारे हर भाजपा प्रत्याशी का यही रोना रहा हैं कि भाजपा के बड़े नेता हरवंश से हाथ मिला कर दूसरे क्षेत्रों में तो चुनाव जीत जाते हैं और बदले में केवलारी सीट थाली में सजाकर हरवंश सिंह को दे देते हैं। ऐसा आरोप लगाने वाले यह प्रमाण देना नहीं भूलते कि विधानसभा चुनाव में केवलारी से हारने वाली भाजपा लोकसभा चुनावों में जीत जाती हैं। लोकसभा के 2004 के चुनाव में नीता पटेरिया और 2009 के चुनाव में फग्गनसिंह कुलस्ते केवलारी क्षेत्र से जीते जबकि चार महीने पहले होने वाले चुनाव में भाजपा हरवंश सिंह से हारी। इस नूराकुश्ती की एक और विशेषता यह हैं कि एक तरफ तो पहलवान इंका नेता हरवंश सिंह ही हरते हैं लेकिन दूसरी तरफ केवलारी के भाजपा प्रत्याशी के अनुसार भाजपायी पहलवान बदलते रहते हैं। हरवंश सिंह के चुनाव मेनेजमेण्ट करने वालो का दावा हैं कि बिरला ही कोई भाजपा नेता होगा जिसका नाम चुनाव के दौरान रकम लेने वाली डायरी में टंका हों। नेताओं की इस नूरा कुश्ती के चलते केवलारी क्षेत्र का भाजपा का समर्पित कार्यकत्ताZ निराश हो चुका हैं।अब यदि भाजपा को मिशन 2013 में केवलारी को अपवाद नहीे रहने देंना हैं तो जिले केहर बड़े और महत्वपूर्ण कार्यक्रम की शुरुआत केवलारी क्षेत्र से करना चाहिये और निराश कार्यकत्ताZओं को इसबात का विश्वास दिलाना चाहिये कि इस बार ऐसा कुछ नहीं होगा जैसा पहले होता आया हैं।

कुछ ना बनने का मातम छाया रहा हरवंश समर्थकों में-प्रदेश में कांग्रेस की राजनीति में आये उलट फेर से जिले की इंकाई राजनीति में भी भारी हलचल मची हुयी हैं। हालांकि पिछले लगभग एक दशक से भी अधिक समय से जिले के इकलौते विधायक एवं विधानसभा उपाध्यक्ष ठा. हरवंश सिंह की एक तरफा तूती बोल रही हैं। हालांकि हरवंश सिंह जरूर प्रदेश के कद्दावर इंका नेताओं में गिने जाने लगे लेकिन जिले में कांग्रेस का सफाया हो गया। उनके मेनेजमेण्ट फंड़ें का प्रदेश के बड़े बड़े नेता लोहा मानते हैं। इसलिये उनकी कांग्रेस के साथ भीतरघात करने की पुख्ता शिकायतें भी दरकिनार हो जाती थीं और जिले में कांग्रेस के हर पतन के साथ हरवंश सिंह की एक पदोन्नति हो जाती थी। प्रदेश के कांग्रेसी समीकरण अब पूरी तरह दिग्गी राजा के पक्ष में दिखायी दे रहें हैं। प्रदेश अध्यक्ष के रूप में कान्तिलाल भूरिया और नेता प्रतिपक्ष के रूप में अजय सिंह उर्फ राहुल भैया की नियुक्ति आलाकमान ने कर दी हैं। इस नियुक्ति के बाद 15 अप्रेल को पूरे ताम झाम के साथ भूरिया की ताजपोशी भी हुयी जिसमें सालों बाद प्रदेश के सभी दिग्गज नेता एक साथ दिखायी दिये। कार्यकत्ताZओं के उत्साह और जोश से दिग्गी राजा तो इतने खुश थे कि उन्होंने यह कहने में भी कोई संकोच नहीं किया कि अपने चालीस साल के राजनैतिक जीवन में उन्होंने कार्यकत्ताZओं में ऐसा जोश कभी नहीं देखा। लेकिन प्रदेश के माहोल से अछूता रहा हरवंश सिंह के गृह जिले सिवनी का माहोल।ना तो यहां की जिला कांग्रेस ने कोई उत्साह दिखाया और ना ही किसी अन्य संगठन ने और तो और निवर्तमान होने वाले अध्यक्ष महेश मालू और भावी अध्यक्ष हीरा आसवानी दोनों ने ही भूरिया की ताजपोशी में खास सक्रियता दिखाना जरूरी नहीं समझा। प्रदेश में इन्तजामअली के रूप में भले ही हरवंश सिंह सक्रिय दिखायी दे रहें हों लेकिन उनके गृह जिले में ऐसी तैयारियां नही दिखी जैसी कि वे मन से करते हैं। ना तो बसें लगी और ना ही छोटे चौपहिया वाहनों को रैला ही तैयार हुआ। ऐसी रस्म अदायगी जरूर की गई कि जिससे यह ना आरोपित किया जा सके कि कुछ किया ही नहीं गया। वास्तव में दिग्गी राजा की सहमति और प्रयासों से हुयी इन ताजपाशियों से जिले के हरवंश समर्थकों में निराशा छा गई हैं और मातम जैसा माहौल छाया हुआ हैं। वास्तविकता यह हैं कि हरवंश सिंह भली भान्ति यह जानते हैं कि मुख्यमन्त्री की कुर्सी तक पहुचने वाला रास्ता या तो प्रदेश अध्यक्ष या नेता प्रतिपक्ष के पद से गुजरता हैं और ऐसे ही दिग्गी राजा और स्व. अर्जुन सिंह मुख्यमन्त्री बने थे। इसीलिय विधानसभा के उपाध्यक्ष रहते हुये भी वे हमेशा इन पदों को पाने के लिये प्रयासरत रहें लेकिन उनकी चली नहींं। और तो और अब तो यह भी कहा जाने लगा हैं कि जातीय समीकरण के चलते अजय सिंह के नेता प्रतिपक्ष की घोषणा के पहले ही हरवंश सिंह से विस उपाध्यक्ष पद से त्यागपत्र ले लिया गया हैं। इसीलिये इस बार प्रदेश के बड़े नेता हरवंश सिंह से खफा दिखायी दे रहें हैं। जिसका प्रमाण उस वक्त देखने को मिला जब अजय सिंह उर्फ राहुल भैया ने अपने भाषण में खुले आम यह कह दिया कि हम सब तो मिल कर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बना लेंगेंं बशर्ते ठाकुर साहब(हरवंश सिंह की ओर इशारा करते हुये) शिवराज सिंह को सपोर्ट करना बन्द कर दें। अर्जुन सिंह की राजनैतिक विरासत सम्भालने वाले राहुल सिंह के शब्द अपने आप में बहुत कुछ कह जाते हैं। यहां यह उल्लेखनीय हैं कि स्व. अर्जुन सिंह ने ही हरवंश सिंह को फर्श से उठाकर अर्श तक पहुंचा दिया था। लेकिन यह भी एक हकीकत हैं कि हरवंश सिंह के राजनैतिक सफर पर यदि बारीकी से नज़र डाली जाये तो यह आसानी देखा जा सकता हैं अगली सीढ़ी चढ़ने के लिये उन्होंने पिछली सीढ़ी को खुद लुड़काने का काम किया हैं। इसी की पुनरावृत्ति करते हुये वे आज इस मुकाम तक पहुंचें हें अब देखना यह हैं कि मुख्यमन्त्री बनने का अपना आखिरी सपना पूरा करने के लियेवे कौन से दांवपेंच यूज करते हैं और किसे मैनेजर्षोर्षो