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Monday, April 18, 2011

plitical dairy of seoni disst. of M.P.

दिग्गी समर्थक भूरिया और अजयसिंह की ताजपोशी और हरवंश के कुछ ना बन पाने से मातम छा गया समर्थकों में

प्रदेश भाजपा तो पिछले कई महीनों से तीसरी पारी खेलने की कवायत में जुट गई हैं। उसने पिछले चुनावों हारी हुयी सीटों को चििन्हत कर उन्हें जीतने की योजना बनानी शुरूकर दी हैं। जिले भाजपा में किसी की भी ताजपोशी होती हैं तोपहले वो भाजपा विधायकों के क्षेत्र में जाकर शानदार स्वागत सत्कार कराना चाहता हैं। हाल ही में युवा मोर्चे के अध्यक्ष बने ठाकुर नवनीत सिंह ने भी ऐसाही किया। जबकि मिशन 2013 के लिये हर एक शुरुआत केवलारी से होना चाहिये ताकि भाजपा चार बार की हारी इस सीट को जीतने का सपना देख सके। पिछले लगभग एक दशक से भी अधिक समय से जिले के इकलौते विधायक एवं विधानसभा उपाध्यक्ष ठा. हरवंश सिंह की एक तरफा तूती बोल रही हैं। हालांकि हरवंश सिंह जरूर प्रदेश के कद्दावर इंका नेताओं में गिने जाने लगे लेकिन जिले में कांग्रेस का सफाया हो गया।उनके मेनेजमेण्ट फंड़ें का प्रदेश के बड़े बड़े नेता लोहा मानते हैं। इसलिये उनकी कांग्रेस के साथ भीतरघात करने की पुख्ता शिकायतें भी दरकिनार हो जाती थीं और जिले में कांग्रेस के हर पतन के साथ हरवंश सिंह की एक पदोन्नति हो जाती थी। लेकिन इस बार प्रदेश के बड़े नेता हरवंश सिंह से खफा दिखायी दे रहें हैं। जिसका प्रमाण उस वक्त देखने को मिला जब अजय सिंह उर्फ राहुल भैया ने अपने भाषण में खुले आम यह कह दिया कि हम सब तो मिल कर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बना लेंगेंं बशर्ते ठाकुर साहब(हरवंश सिंह की ओर इशारा करते हुये) शिवराज सिंह को सपोर्ट करना बन्द कर दें।

नूरा कुश्ती से परेशान केवलारी के भाजपा कार्यकत्ताZ निराश-प्रदेश में इस बार समय से बहुत पहले ही विधानसभा और लोकसभा के चुनावों की जमावट दिखने लगी हैं। प्रदेश भाजपा तो पिछले कई महीनों से तीसरी पारी खेलने की कवायत में जुट गई हैं। उसने पिछले चुनावों हारी हुयी सीटों को चििन्हत कर उन्हें जीतने की योजना बनानी शुरूकर दी हैं। प्रदेश के इन निर्देशों पर यदि पालन करने की बात देखी जाये तो जिले में भाजपा को सिर्फ केवलारी एक ऐसी सीट हैं जिस पर ध्यान देना ज्यादा जरूरी हैं। कांग्रेस के दिग्गज नेता हरवंश सिंह सन 1993 से लगातार इस क्षेत्र से जीतते आये हैं और अपनी शानदार चौथी पारी खेल रहें हैं। वे निZविरोध चुनाव जीतकर आज विधानसभा केे उपाध्यक्ष भी हैं। लेकिन इस दौरान उल्टा ही देखने को मिल रहा हैं। जिले भाजपा में किसी की भी ताजपोशी होती हैं तोपहले वो भाजपा विधायकों के क्षेत्र में जाकर शानदार स्वागत सत्कार कराना चाहता हैं। हाल ही में युवा मोर्चे के अध्यक्ष बने ठाकुर नवनीत सिंह ने भी ऐसाही किया। जबकि मिशन 2013 के लिये हर एक शुरुआत केवलारी से होना चाहिये ताकि भाजपा चार बार की हारी इस सीट को जीतने का सपना देख सके। यहां यह उल्लेखनीय हैं कि ठाकुर हरवंश सिंह से केवलारी क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी के रूप में दो बार श्रीमती नेहा सिंह, फिर वेदसिंह ठाकुर और पिछले चुनाव में प्रदेश के पूर्व मन्त्री डॉ. ढ़ालसिंह बिसेन चुनाव हारे हैं। हरवंश से हारे हर भाजपा प्रत्याशी का यही रोना रहा हैं कि भाजपा के बड़े नेता हरवंश से हाथ मिला कर दूसरे क्षेत्रों में तो चुनाव जीत जाते हैं और बदले में केवलारी सीट थाली में सजाकर हरवंश सिंह को दे देते हैं। ऐसा आरोप लगाने वाले यह प्रमाण देना नहीं भूलते कि विधानसभा चुनाव में केवलारी से हारने वाली भाजपा लोकसभा चुनावों में जीत जाती हैं। लोकसभा के 2004 के चुनाव में नीता पटेरिया और 2009 के चुनाव में फग्गनसिंह कुलस्ते केवलारी क्षेत्र से जीते जबकि चार महीने पहले होने वाले चुनाव में भाजपा हरवंश सिंह से हारी। इस नूराकुश्ती की एक और विशेषता यह हैं कि एक तरफ तो पहलवान इंका नेता हरवंश सिंह ही हरते हैं लेकिन दूसरी तरफ केवलारी के भाजपा प्रत्याशी के अनुसार भाजपायी पहलवान बदलते रहते हैं। हरवंश सिंह के चुनाव मेनेजमेण्ट करने वालो का दावा हैं कि बिरला ही कोई भाजपा नेता होगा जिसका नाम चुनाव के दौरान रकम लेने वाली डायरी में टंका हों। नेताओं की इस नूरा कुश्ती के चलते केवलारी क्षेत्र का भाजपा का समर्पित कार्यकत्ताZ निराश हो चुका हैं।अब यदि भाजपा को मिशन 2013 में केवलारी को अपवाद नहीे रहने देंना हैं तो जिले केहर बड़े और महत्वपूर्ण कार्यक्रम की शुरुआत केवलारी क्षेत्र से करना चाहिये और निराश कार्यकत्ताZओं को इसबात का विश्वास दिलाना चाहिये कि इस बार ऐसा कुछ नहीं होगा जैसा पहले होता आया हैं।

कुछ ना बनने का मातम छाया रहा हरवंश समर्थकों में-प्रदेश में कांग्रेस की राजनीति में आये उलट फेर से जिले की इंकाई राजनीति में भी भारी हलचल मची हुयी हैं। हालांकि पिछले लगभग एक दशक से भी अधिक समय से जिले के इकलौते विधायक एवं विधानसभा उपाध्यक्ष ठा. हरवंश सिंह की एक तरफा तूती बोल रही हैं। हालांकि हरवंश सिंह जरूर प्रदेश के कद्दावर इंका नेताओं में गिने जाने लगे लेकिन जिले में कांग्रेस का सफाया हो गया। उनके मेनेजमेण्ट फंड़ें का प्रदेश के बड़े बड़े नेता लोहा मानते हैं। इसलिये उनकी कांग्रेस के साथ भीतरघात करने की पुख्ता शिकायतें भी दरकिनार हो जाती थीं और जिले में कांग्रेस के हर पतन के साथ हरवंश सिंह की एक पदोन्नति हो जाती थी। प्रदेश के कांग्रेसी समीकरण अब पूरी तरह दिग्गी राजा के पक्ष में दिखायी दे रहें हैं। प्रदेश अध्यक्ष के रूप में कान्तिलाल भूरिया और नेता प्रतिपक्ष के रूप में अजय सिंह उर्फ राहुल भैया की नियुक्ति आलाकमान ने कर दी हैं। इस नियुक्ति के बाद 15 अप्रेल को पूरे ताम झाम के साथ भूरिया की ताजपोशी भी हुयी जिसमें सालों बाद प्रदेश के सभी दिग्गज नेता एक साथ दिखायी दिये। कार्यकत्ताZओं के उत्साह और जोश से दिग्गी राजा तो इतने खुश थे कि उन्होंने यह कहने में भी कोई संकोच नहीं किया कि अपने चालीस साल के राजनैतिक जीवन में उन्होंने कार्यकत्ताZओं में ऐसा जोश कभी नहीं देखा। लेकिन प्रदेश के माहोल से अछूता रहा हरवंश सिंह के गृह जिले सिवनी का माहोल।ना तो यहां की जिला कांग्रेस ने कोई उत्साह दिखाया और ना ही किसी अन्य संगठन ने और तो और निवर्तमान होने वाले अध्यक्ष महेश मालू और भावी अध्यक्ष हीरा आसवानी दोनों ने ही भूरिया की ताजपोशी में खास सक्रियता दिखाना जरूरी नहीं समझा। प्रदेश में इन्तजामअली के रूप में भले ही हरवंश सिंह सक्रिय दिखायी दे रहें हों लेकिन उनके गृह जिले में ऐसी तैयारियां नही दिखी जैसी कि वे मन से करते हैं। ना तो बसें लगी और ना ही छोटे चौपहिया वाहनों को रैला ही तैयार हुआ। ऐसी रस्म अदायगी जरूर की गई कि जिससे यह ना आरोपित किया जा सके कि कुछ किया ही नहीं गया। वास्तव में दिग्गी राजा की सहमति और प्रयासों से हुयी इन ताजपाशियों से जिले के हरवंश समर्थकों में निराशा छा गई हैं और मातम जैसा माहौल छाया हुआ हैं। वास्तविकता यह हैं कि हरवंश सिंह भली भान्ति यह जानते हैं कि मुख्यमन्त्री की कुर्सी तक पहुचने वाला रास्ता या तो प्रदेश अध्यक्ष या नेता प्रतिपक्ष के पद से गुजरता हैं और ऐसे ही दिग्गी राजा और स्व. अर्जुन सिंह मुख्यमन्त्री बने थे। इसीलिय विधानसभा के उपाध्यक्ष रहते हुये भी वे हमेशा इन पदों को पाने के लिये प्रयासरत रहें लेकिन उनकी चली नहींं। और तो और अब तो यह भी कहा जाने लगा हैं कि जातीय समीकरण के चलते अजय सिंह के नेता प्रतिपक्ष की घोषणा के पहले ही हरवंश सिंह से विस उपाध्यक्ष पद से त्यागपत्र ले लिया गया हैं। इसीलिये इस बार प्रदेश के बड़े नेता हरवंश सिंह से खफा दिखायी दे रहें हैं। जिसका प्रमाण उस वक्त देखने को मिला जब अजय सिंह उर्फ राहुल भैया ने अपने भाषण में खुले आम यह कह दिया कि हम सब तो मिल कर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बना लेंगेंं बशर्ते ठाकुर साहब(हरवंश सिंह की ओर इशारा करते हुये) शिवराज सिंह को सपोर्ट करना बन्द कर दें। अर्जुन सिंह की राजनैतिक विरासत सम्भालने वाले राहुल सिंह के शब्द अपने आप में बहुत कुछ कह जाते हैं। यहां यह उल्लेखनीय हैं कि स्व. अर्जुन सिंह ने ही हरवंश सिंह को फर्श से उठाकर अर्श तक पहुंचा दिया था। लेकिन यह भी एक हकीकत हैं कि हरवंश सिंह के राजनैतिक सफर पर यदि बारीकी से नज़र डाली जाये तो यह आसानी देखा जा सकता हैं अगली सीढ़ी चढ़ने के लिये उन्होंने पिछली सीढ़ी को खुद लुड़काने का काम किया हैं। इसी की पुनरावृत्ति करते हुये वे आज इस मुकाम तक पहुंचें हें अब देखना यह हैं कि मुख्यमन्त्री बनने का अपना आखिरी सपना पूरा करने के लियेवे कौन से दांवपेंच यूज करते हैं और किसे मैनेजर्षोर्षो



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