सांसद बसोरी सिंह का यह बयान कि हरवंश मेरे माई बाप हैं को आदिवासियों के अपमान का मुद्दा बनाया रामगुलाम ने
ध्वज वाहिनी योजनाओं का चेयरमेन असलम भाई को बनाने को लेकर जिले के इंकाइयों में तरह तरह की चर्चायेजारी हैं। यह एक महत्वपूर्ण नियुक्ति है या झुनझुना? इसे लेकर कांग्रेसी ही अलग अलग तर्क देते देखे जा रहे है। असलम भाई केी नियुक्ति को लेकर सबसे आश्चर्यजनक बात तो यह है कि उनको बधायी देने के लिये कांग्रेसियों का जो पहला विज्ञापन अखबारों में प्रकाशित हुआ उसमें उन तमाम इंका नेताओं के नाम ही शामिल थे जोे असलम विरोध के ध्वजवाहक थे। अब ऐसे में भला लोग ये कहें कि वाह क्या बात हैं हरवंश? तो भला क्या गलत हैं।दुगनी लागत मंें बनी घटिया सड़क के भाजपायी ठेकेदारों के संरक्षक भी नरेश थे और अब नयी रोड़ बनवाने को सेहरा भी उनके ही सर बंध रहा हैं।येहुयी ना वही बात कि तुम्हीं ने दर्द दिया है तुम्हीं दवा देना?अपने से उम्र और सियासी कद में छोटे हरवंश सिंह को इंका सांसद बसोरी सिंह द्वार यह कहना कि “हरवंश मेरे माई बाप है”ं सियासी हल्कों में चर्चा का विषय बना हुआ हैं। इसी कार्यक्रम में जिला इंकाध्यक्ष हीरा आसवानी ने महंगे टेंकर बांटने को लेकर सिवनी विधायक नीता पटेरिया को आरोपों के कठघरे में खड़ा किया। दोनों ही पार्टियां आरोप तो लगा रहीं हैं लेकिन ना जाने क्यों बाकायदा शिकायत करके जांच कराने से बच रहीं हैं।
असलम की नियुक्ति झुनझुना या महत्वपूर्ण?-पिछले दिनों कांग्रेस की राजनीति में हुयी एक नियुक्ति से फिर से हलचल मच गयी हैं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने असलम भाई पत्ते वाले को कांग्रेस की ध्वजवाहिनी योजनाओं के प्रचार प्रसार एवं मानीटरिंग के लिये बनायी गयी समिति का चेयरमेन नियुक्त किया हैं। इस नियुक्ति की इंकाई हल्कों में इसलिये ज्यादा कानाफूसी हो रही हैं क्योंकि 1/14 के किस्से के चलते जिले के एक मात्र इंका विधायक हरवंश सिंह ने असलम भाई को महामंत्री के बजाय सिर्फ कार्यकारिणी सदस्य बनाया था।जिले की कार्यकारिणी की घोषणा के कुछ दिन बाद ही असलम भाई को जिले का चेयरमेन बना दिया गया है।इस पर एक धड़ा यह कहते दिख रहा है कि आगामी चुनावों की दृष्टि से यह एक महत्वपूर्ण पद है जिसमें केन्द्र की महत्वपूर्ण योजनाओं का ना केवल प्रचार प्रसार करना है वनर उनकी निगरानी कर उनकी रिपोर्ट भी करना हैं। वहीं दूसरी ओर एक धड़ा यह कहते देखा जा रहा है कि नाराज असलम को मनाने के लिये हरवंश सिंह ने उन्हें एक झुनझुना थमा दिया है जो वे 2014 के लोस चुनाव तक बजाते रहेंगें। इसमें सच्चायी क्या है? यह तो समय असने पर ही पता चल सकेगा।
वाह क्या बात है हरवंश ?-सियासत में शह और मात का खेल तो चलते रहता हैं चाहे वो दो सियासी पार्टियों के बीच हो या फिर एक ही पार्टी के दो गुटों के बीच हो। लेकिन जब यह खेल एक ही पार्टी के एक ही गुट के लोगों के बीच खेला जाता हैं तो वह सुर्खियों में अवश्य ही आ जाता हैं। ऐसा ही कुछ इन दिनों जिले के कांग्रेसियों के बीच चर्चित हो रहा हैं। मुसाफिर ने अपने पाठकों को पहले ही बहुत निरीह दिखे हरवंश शीर्षक में बता दिया था कि जिला इंका के गठन में 1/14 के खेल में हरवंश सिंह ने दवाब में आकर असलम भाई को सिर्फ कार्यकारिणी सदस्य बनाया हैं। इसका कारण यह था कि विरोध करने वाले 14 नेताओं में अधिकांश ऐसे थे जिनका परिसीमन के पहले वाले केवलारी क्षेत्र में व्यापक प्रभाव था जहां से पिछले चुनाव में हरवंश सिंह हार गये थे और नये जुड़े क्षेत्रों से बढ़त लेंकर चुनाव जीत लिया था। लेकिन अब नये नये क्षेत्रों के लिये भी वे नये नहीं रह गये हैं लिहाजा पुराने क्षेत्र में नाराजगी कम करना जरूरी हो गया था। लेकिन जिला इंका की घोषणा के कुछ दिनों बाद ही उन्हीं असलम भाई के हवाले कांग्रेस की ध्वज वाहिनी योजनाओं की कमान सौंपना कम आश्चर्यजनक नहीं हैं। उससे भी ज्यादा आश्चर्यजनक यह है कि इस नियुक्ति के बाद असलम भाई को बधायी देने का सबसे पहला विज्ञापन उन्हीं इंका नेताओं का आया जो कि 1/14 की लड़ाई के प्रमुख ध्वजवाहक थे।ऐसा नजारा देखकर राजनैतिक विश्लेषकों के मुंह से यह वाक्य निकलना कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि वाह क्या बात है हरवंश?
तुम्हीं ने दर्द दिया है तुम्हीं दवा देना की तर्ज पर दिखे नरेश-पुरानी फिल्म का एक बहुत ही मशहूर गाना था “तुम्हीं ने दर्द दिया है तुम्हीं दवा देना”। कुछ इसी तर्ज पर काम करते दिख रहे हैं मविप्रा के अध्यक्ष नरेश दिवाकर। दुगनी लागत में बनी घटिया सड़क के रूप में शहर में मशहूर बाहुबली रोड के लिये नरेश दिवाकर ने प्राधिकरण से इस सड़क को डामर की बनाने के लिये 30 लाख रुपये मंजूर कर दिये। इस बार एक सावधानी बरतते हुये उन्होंने यह सड़क बनाने के लिये नगरपालिका के बजाय पी.डब्ल्यू.डी. को ऐजेन्सी बनाया। उसी के द्वारा बनाये गये प्राक्कलन के अनुसार ही दिवाकर ने तीस लाख रू. की राशि स्वीकृत की। टेंडर लगे लेकिन किसी ने फार्म ही नहीं भरा। चर्चा चली कि इतने में सड़क नहीं बन सकती। अतः और राशि दी जाये। बताया जाता है कि फिर रिवाइस एस्टीमेट बना और इसी बहुचर्चित रोड़ के लिये सांसद के.डी.देशमुख ने भी दस लाख रु. की राशि मंजूर कर दी। बताया जा रहा है कि अब चालीस लाख रुपये की लागत से एस.पी.बंगले के सामने से सर्किट हाउस तक की करीब 700 मीटर की यह रोड डामर की बनायी जायेगी।हाल ही में अखबारों में प्रकाशित बयान में मविप्रा के अध्यक्ष नरेश दिवाकर ने कहा है कि इस रोड़ में गुणवत्ता का पूरा ध्यान रखा जायेगा। यहां यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि नपा द्वारा दियेे गये ठेके में दुगनी लागत में इस घटिया सड़क को बनाने वाले भाजपायी ठेकेदारों को भी तत्कालीन विधायक के रूप में नरेश दिवाकर का ही संरक्षण प्राप्त था जिसका खामियाजा आज तक शहर के लोग भोग रहें हैं। जबकि इस सड़क के दोनों ओर नाली बनाने का काम भाजपा के राजेश त्रिवेदी की अध्यक्षता वाली पालिका ही कर रही हैं। ऐसे हालात में क्या यह कहना गलत है कि तुम्हीं ने दर्द दिया है तुम्हीं दवा देना?
हरवंश मेरे माई बाप हैं सांसद बसोरी का कथन चर्चित -बीते दिनों धनोरा ब्लाक की केवलारी विस क्ष़्ोत्र में आने वाली पंचायतों को भी छपारा की तर्ज पर ही टेंकर बांटे गये।कार्यक्रम में उपस्थित मंड़ला के इंका सांसद बसोरी सिंह मसराम ने अपने संबांेधन में इंका विधायक और विस उपाध्यक्ष हरवंश सिंह को अपना माई बाप तक कह डाला। ये समाचार जबलपुर से निकलने वाले दो प्रमुख समाचार पत्रों में सुर्खी बना। हालांकि उम्र और ओहदे दोनों में ही सांसद हरवंश सिंह से बड़े है लेकिन उनका यह कहना उनकी सहजता है या फिर चाटुकारिता की सीमा? इस पर कुछ भी नहीं कहा सकता। हालांकि यह भी एक कटु सत्य हैं कि मंड़ला संसदीय क्षेत्र में आठ में से सिर्फ केवलारी के हरवंश सिंह और गोटेगांव के नर्मदा प्रजापति ही इंका के तथा शेष छःविधायक भाजपा के थे। लोकसभा चुनाव में बसोरी सिंह दोनों ही इंका विधायकों के क्षेत्रों से चुनाव हारे थे। उसके बाद भी हरवंश को महिमा मंड़ित करने के लिये उनका यह बयान विवादित हो गया हैं और घंसौर के पूर्व विधायक रामगुलाम उइकें ने इसे आदिवासियों को अपमानित करने वाला बयान निरूपित किया हैं।
टेंकर वितरण में टेंकर को लेकर नीता पर आरोप लगाये हीरा ने -इसी कार्यक्रम में जिला इंकाध्यक्ष हीरा आसवानी ने महंगे टेंकर बांटने को लेकर सिवनी विधायक नीता पटेरिया को आरोपों के कठघरे में खड़ा किया। उनका कहना था कि इनकी खरीदी में भारी कमीशन खोरी हुयी हैं। वैसे भी टेंकरों और जनप्रतिनिधियों का इसजिले में चोरी दामन का साथ रहा हैं। सबसे तत्कालीन विधायक नरेश दिवाकर के घटिया टेंकरों के मामले ने ऐसा तूल पकड़ा था कि खुद के द्वारा लोकार्पित किये गये टेंकरों के लिये दी गयी विधायक निधि वापस लेनी पड़ी थी और बिना भुगतान हुये टेंकर वापस चले गये थे।फिर अपने ही जन्मदिन पर एक शासकीय समारोह में विधायक निधि से टेंकर इंका विधायक हरवंश सिंह ने बांटें और उन पर बाकायदा यह लिखाया गया कि उनके जन्मदिन पर भेंट। फिर अटल जी के जन्मदिन पर भाजपा विधायक नीता पटेरिया ने भी टेंकर बांटे जो कि अधिक कीमत के कारण सुर्खियों मेंरहें। हरवंश और नीता के टेंकरों पर इंका और भाजपा में विज्ञप्ति युद्ध भी जम कर हुआ। नीता समर्थथकों का कहना है कि उन्होंने किसी जिनी व्यक्ति से बनवाने के बजाय शासकीय ऐजेन्सी से बनवाये हैं। जबकि हरवंश के टेंकरों की खरीदी में शासकीय नियमों का उल्लंघन किया गया हैं। हरवंश समर्थकों का आरोप हैं कि नीता ने टेंकरों में भारी कमीशन बाजी की हैं। दोनों ही पार्टियां आरोप तो लगा रहीं हैं लेकिन ना जाने क्यों बाकायदा शिकायत करके जांच कराने से बच रहीं हैं।