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Thursday, January 24, 2013


गण और तंत्र देश हित को सर्वोपरि माने तभी सार्थकता 
15 अगस्त 1947 को देश गुलामी की जंजीरों से आजाद हुआ था। 26 जनवरी 1950 को देश ने अपने संविधान को अंगीकार कर एक विशाल गणतांत्रिक देश के रूप में अपनी पहचान बनायी ।आज हम गणतंत्र दिवस की 63 वीं सालगिरह मना रहें हैं। इन सालों में एक सवाल हमारे सामने जरूर आया है कि आखिर हमारे देश में गण के लिये तंत्र है या तंत्र के लिये गण ? यह सवाल क्यों आज हमारे सामने आया इसके लिये कमोबेश गण और तंत्र दोनों ही अपनी जवाबदारी  से मुकर नहीं सकते हैं। संविधान बनाने वालों की धारणा थी कि गण देश के प्रति अपने कर्त्तव्यों को बखूबी निभाये और तंत्र निष्पक्ष और निर्भीक होकर गण की सेवा करें। संविधान में गण याने आम आदमी को मताधिकार देकर सबसे अहम जवाबदारी डाली थी कि वो अच्छी जन प्रतिनिधियों को चुनकर देश को दे। क्या हम आज यह कह सकते हैं कि गण अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन ठीक से कर रहें है? क्या चुनावी राजनीति में सदगुणों और बुद्धिबल पर धनबल और बाहुबल हावी नहीं हो गया है?यदि इन आधारों पर जन प्रतिनिधियों का निर्वाचन होगा तो फिर प्रजातांत्रिक मूल्यों में गिरावट तो आयेगी ही जिसके परिणाम अंततः हमें भोगने पड़ेंगें।
गण जब तंत्र चलाने के लिये अच्छे एवं गुणवान जनप्रतिनिधि चुनकर नहीं देंगें तो भला तंत्र को नियंत्रित करने का अधिकार रखने वाली सरकार अच्छी कैसे बन पायेगी? राजनैतिक दल भी सिद्धान्तों और नीतियों को दर किनार करके महज सत्ता पाने के लक्ष्य को लेकर गठबंधन करते दिखायी दे रहें है। समाज के हर क्षेत्र में राजनीति के हावी हो जाने के कारण प्रशासनिक तंत्र में भी राजनैतिक हस्तक्षेप इतना अधिक बढ़ गया है कि नैतिक अनैतिक के बीच की विभाजन रेखा ही कहीं गुम हो गयी हैं। महज वोट हासिल करने की खातिर सर्व धर्म समभाव की भावना कहीं गुम होते दिखायी दे रही हैं।
गणतंत्र दिवस की 63 वीं वर्षगांठ पर आज इन सवालों के जवाब तलाशना समय की मांग बन गयी हैं। ऐसा भी नहीं है कि आजादी के बाद देश में कुछ विकास हुआ ही नहीं हैं। हां इस बात पर विवाद जरूर हो सकता हैं कि जितना विकास होना था उतना शायद ना हुआ हो। आज यह वक्त का तकाजा हैं कि गण सिर्फ यह ना सोचे कि देश हमें क्या दे रहा है वरन वे ये भी सोचें कि वे देश को क्या दे रहें ? इसके साथ ही चुनाव की प्रजातांत्रिक प्रक्रिया में जो विकृतियां आ गयी हैं और धनबल और बाहुबल का जो बोलबाला हो गया हैं उसे रोकने के उपाय किये जायें। प्रशासनिक तंत्र को भी अपने मात्र हितों के लिये राजनैतिक हस्तक्षेप को नकार कर निष्पक्ष और निर्भीक बनना समय की मांग हैं। देश में ना सिर्फ गण के लिये तंत्र या तंत्र के लिये गण हो वरन गण और तंत्र आपसी तालमेल से देश हित को सर्वोपरि मान कर देश की पताका पूरी दुनिया में शान के साथ फहरायें, यही गणतंत्र दिवस पर हमारी हार्दिक शुभकामनायें हैं।      

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