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Monday, April 15, 2013


सिवनी विस और नपा में क्या कुछ कांग्रेसी नेता जानबूझ कर अल्प संख्यक कार्ड खेल कर अपना स्वार्थ साधते हैं?
सिवनी जिले में कभी कांग्रेस का मजबूत किला हुआ करता था। आज जिले में काग्रेस का किला ध्वस्त होकर एक खंड़हर बन कर रह गया हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ और समर्पित कांग्रेसी आज भी इस खंड़हर को सुधार कर इतिहास दोहराने की कल्पना तो संजोये हुये है लेकिन उन्हें कांग्रेस के संगठनात्मक और सक्रिय क्षेत्र से धकेल कर दर किनार कर दिया गया हैं। ़सन 1980 में इंदिरा गांधी की शानदार वापसी के बाद कांग्रेस की टिकिट पर सिवनी विस क्षेत्र से चुनाव अब्दुल रहमान फारूखी सिवनी विस क्षेत्र से चुनाव जीते थे। सन 1985 के विस चुनाव में जिले के वरिष्ठ कांग्रेसी नेता एवं वर्तमान में प्रदेश प्रतिनिधि शफीक पटेल से केवलारी क्षेत्र से कांग्रेस की टिकिट के लिये आवेदन लगवाया गया जहां से विमला वर्मा, लंबें समय से विधायक थीं। 1990 के चुनाव में कांग्रेस की टिकिट पर हरवंश सिंह चुनाव हार गये और 1993 का चुनाव केवलारी से लड़कर आज तक वे विधायक हैं। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि 1985 के बाद से आज तक कभी केवलारी क्षेत्र से मुस्लिम वर्ग को टिकिट देने की मांग नहीं उठ रहीं है और ना ही कांग्रेस का कोई मुस्लिम नेता टिकिट मांगता है। जबकि सिवनी और केवलारी क्षेत्र में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या लगभग बराबर हैं।
ध्वस्त होकर खंडहर बन चुका है कांग्रेस का किला -सिवनी जिले में कभी कांग्रेस का मजबूत किला हुआ करता था। आजादी के बाद से लेकर 1962 तक जिले में एक छत्र कांग्रेस का वर्चस्व था। 1962 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को तगड़ा झटका लगा और तीनों सामान्य सीटें, बरघाट,सिवनी और केवलारी, कांग्रेस हार गयी तथा राम राज्य परिषद ने कब्जा कर लिया। लेकिन अगले ही विधान सभा चुनाव 1967 में कांग्रेस ने ये तीनों ही सीटें जीत ली थी। तब से लेकर 1990 तक सिर्फ बरघाट सीट को छोड़कर, जहां कांग्रेस एक बार जीतती तो एक बार हारती थी,कांग्रेस का पूरे जिले में कब्जा रहा। यहां तक 1977 की जनता आंधी, जिसमें समूचे उत्तर भारत में कांग्रेस हार गयी थी,उसमें भी जिले के पांचों विस क्षेत्रों में कांग्रेस ने जीत हासिल कर एक कीर्तिमान बनाया था। 1990 के विस चुनाव में कांग्रेस को चार सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था। पहली बार आदिवासी क्षेत्र घंसौर में भी कांग्रेस की दिग्गज श्रीमती उर्मिला सिंह को हार का सामना करना पड़ा था। इसके अलावा केवलारी से विमला वर्मा और सिवनी से हरवंश सिंह भी चुनाव हार गये थे। लेकिन कांग्रेस 1993 में 1967 का इतिहास नहीं दोहरा पायी और दोनों आदिवासी क्षेत्रों के अलावा सिर्फ केवलारी से हरवंश सिंह ही चुनाव जीत पाये थे। और अब हालात यह हैं कि पिछले दो चुनावों से सिर्फ कांग्रेस के हरवंश सिंह  ही केवलारी विस क्षेत्र से चुनाव जीत रहें हैं। आज जिले में काग्रेस का किला ध्वस्त होकर एक खंड़हर बन कर रह गया हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ और समर्पित कांग्रेसी आज भी इस खंड़हर को सुधार कर इतिहास दोहराने की कल्पना तो संजोये हुये है लेकिन उन्हें कांग्रेस के संगठनात्मक और सक्रिय क्षेत्र से धकेल कर दर किनार कर दिया गया हैं।
कांग्रेस में जानबूझ कर खेला जाता है माइनरटी कार्ड?-़सन 1980 में इंदिरा गांधी की शानदार वापसी के बाद कांग्रेस की टिकिट पर अब्दुल रहमान फारूखी सिवनी विस क्षेत्र से चुनाव जीते थे। लेकिन उनका कार्यकाल समाप्त होने के पहले ही उनका इंतकाल हो गया था। 1983 में जिले की राजनीति में हरवंश सिंह नये क्षत्रप के रूप में उभर कर आये और मंत्री के दर्जे के साथ निगम का अध्यक्ष बनाया गया। उन दिनों जिले में दबंग एवं ईमानदार छवि वाली वरिष्ठ नेत्री विमला वर्मा की तूती बोलती थी। जिले में पहली बार अल्पसंख्यक मुस्लिम वर्ग  को एक कार्ड के रूप में इस्तेमाल किया गया। सन 1985 के विस चुनाव में जिले के वरिष्ठ कांग्रेसी नेता एवं वर्तमान में प्रदेश प्रतिनिधि शफीक पटेल से केवलारी क्षेत्र से कांग्रेस की टिकिट के लिये आवेदन लगवाया गया जहां से विमला वर्मा,1990 के चुनाव को छोड़कर, 1967 से लगातार विधायक चुनी जा रहीं थीं। जबकि 1980 मेूं सिवनी से मुस्लिम वर्ग के अब्दुल रहमान फारूखी चुनाव जीते थे। ऐसे हालात में सिवनी के बजाय केवलारी से मुस्लिम वर्ग की दोवेदारी इस वर्ग के हित के लिये नहीं वरन राजनैतिक कारणों से की गयी थी। इसके बाद जिले के राजनैतिक समीकरणों में बदलाव आया और 1990 के चुनाव में कांग्रेस की टिकिट पर हरवंश सिंह ने चुनाव लड़ा और वे 6086 वोटों से चुनाव हार गये। इस क्षेत्र से चुनाव लड़ने वाले पांच मुस्लिम प्रत्याशियों ने 5345 वोट लेकर मतों का भारी विभाजन करा दिया था। हरवंश सिंह आज भी यह मानते हैं कि सिवनी क्षेत्र के मुस्लिम वर्ग के कारण उनकी चुनावी पारी कमी शुरुआत हार से हुयी थी। इस चुनाव के बाद जिले के राजनैतिक समीकरणों में बदलाव क्षेत्र के सांसद रहे पं. गार्गीशंकर की मृत्यु  के कारण बदल गये। 1991 में सिवनी लोस क्षेत्र से विमला वर्मा कांग्रेस की टिकिट पर चुनाव लड़ कर जीत गयीं। केवलारी विस क्षेत्र खाली हो गया। सन 1993 के विस चुनाव में कांग्रेस ने यह नीति बनायी थी कि पांच हजार से पिछला चुनाव हारने वाले नेताओं को टिकिट नहीं दी जायेगी। इसीलिये हरवंश सिंह ने सिवनी के बजाय केवलारी क्षेत्र से   टिकिट मांगी और वहां से चुनाव जीतकर आज तक वे उसी क्षेत्र से विधायक हैं। यहां यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि सिवनी और केवलारी विस क्षेत्रों में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या लगभग बराबर हैं। लेकिन 1993 के चुनाव से सिवनी विस क्षेत्र और नगरपालिका अध्यक्ष के चुनाव में लगता है कि जानबूझ कर मुस्लिम कार्ड खेला जाता हैं। कांग्रेस के जो नेता मुस्लिमों के मसीहा बनकर उन्हें टिकिट के लिये प्रेरित करते हैं वास्तव में उनका उद्देश्य उन्हें टिकिट दिलाने के बजाय शायद मुस्लिम वर्ग में कांग्रेस के खिलाफ नाराजगी पैदा करने कर भाजपा को लाभ पहुंचाने का ही रहता हैं। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि 1985 के बाद से आज तक कभी केवलारी क्षेत्र से मुस्लिम वर्ग को टिकिट देने की मांग नहीं उठ रहीं है और ना ही कांग्रेस का कोई मुस्लिम नेता टिकिट मांगता है। ब्लकि केवलारी क्षेत्र के मुस्लिम नेता भी सिवनी से दावेदार बनने की कोशिश करते हैं। इसी रणनीति के कारण सिवनी विस से आशुतोष वर्मा दो बार, राजकुमार पप्पू खुराना और प्रसन्न मालू और पालिका अध्यक्ष के चुनाव में संजय भारद्वाज चुनाव हारते आ रहें हैं। ऐसी ही बिसात इस बार भी बिछायी जा रही हैं। सिवनी विस क्षेत्र से मुस्लिम प्रत्याशी की मांग जोर शोर से उठ गयी हैं। प्रदेश कांग्रेस के महामंत्री एवं मुस्लिम नेता साजिद अली का बीते दिनों नगरागमन हुआ था। उन्होंने ने भी सिवनी से मुस्लिम प्रत्याशी की मांग का समर्थन किया था। उनसे मिलने वाले बहुसंख्यक समाज के कई कांग्रेस के नेताओं और दावेदारों ने भी यह कह दिया कि इस क्षेत्र से मुस्लिम प्रत्याशी बना दिया जाय। यह चर्चा भी हुयी की यदि अल्पसंख्यक वर्ग को टिकिट नहीं देना है तो ऐसा प्रसार प्रचार ना किया जाये जिससे मुस्लिम समुदाय में पार्टी के खिलाफ नाराजगी पनप जाये। राजनैतिक विश्लेषकों का तो यहां तक कहना है कि आज भी यह जिला भाजपा का गढ़ नहीं बना है वरन कांग्रेसियों के भीतरघात के कारण ही बी.जे.पी. चुनाव जीत जाती हैं। कांग्रेस में यह प्रवृत्ति पिछले कुछ सालों में तेजी से इसलिये भी पनप रही है क्योंकि जिले में कांग्रेस के बागियों और भीतरघात करने वाले नेताओं को पुरुस्कृत करने का सिलसिला चल रहा हैं।“मुसाफिर”

सा. दर्पण झूठ ना बोले 
16 अप्रेल 2013 से साभार

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