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Monday, August 26, 2013

जिला मुख्यालय की सीट से टिकिट के लिये इंका और भाजपा में मची भारी घमासान से राजनैतिक हल्कों में  सरगर्मी बढ़ी
 जिला मुख्यालय की राजनैतिक रूप से सर्वाधिक मूहत्वपूर्ण सिवनी विधानसभा सीट के लिये टिकिट की मारामारी कांग्रेस और भाजपा में तेज हो गया हैं। पिछले पांच चुनावों से भाजपा इस सीट से जीत रही है। इसलिये भाजपा नेताओं का मानना है कि सिर्फ टिकिट मिल जाये जीतना तो सुनिश्चित है ही। जिले की कांग्रेसी राजनीति में केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ का सीधा हस्तक्षेप बढ़ गया है इसीलिये राजनैतिक जानकारों का मानना है कि जिले में कांग्रेस की चुनावी रणनीति में होने ंवाला आमूल चूल परिवर्तन भाजपा की डगर आसान नहीं रहने देगा और जिले चारों विस क्षेत्रों में बिना कठिन परिश्रम किये जीतना संभव नहीं होगा। कांग्रेस भी टिकिट की लड़ायी में उलझी हुयी हैं। राहुल गांधी के नेतृत्व में टिकटार्थियों के लिये बनाये गये मानदंड़ और टिकिट का आवेदन लगाने वालों से मांगी गयी जानकारियों के कारण समीकरण काफी उलझ गये है। वैसे कांग्रेस इस द्वोत्र से 1990 से चुनाव हार रही हैं। लेकिन यह भी राजनैतिक रूप से कम महत्वपूर्ण बात नहीं है कि इस क्षेत्र से टिकिट मांगने वालों की संख्या में कोई कमी नहीं आ रही है। इस बार कांग्रेस और भाजपा के आलाकमान ने टिकिट देने की प्रक्रिया निर्धारित की है उससे एक बात तो हुयी है कि चुनाव लड़नें इच्छुक नेता जो मंड़ल या ब्लाक के पदाधिकारियों को अपने आधीन समझते थे उन्हें अपनी ही टिकिट ले लिये उनके दर पर पहुंचना पड़ रहा है। 
आयती जीत की संभावना नहीं फिर भी मची भाजपा में होड़ -जिला मुख्यालय की राजनैतिक रूप से सर्वाधिक मूहत्वपूर्ण सिवनी विधानसभा सीट के लिये टिकिट की मारामारी कांग्रेस और भाजपा में तेज हो गया हैं। पिछले पांच चुनावों से भाजपा इस सीट से जीत रही है। इसलिये भाजपा नेताओं का मानना है कि सिर्फ टिकिट मिल जाये जीतना तो सुनिश्चित है ही।इस क्षेत्र से दो बार स्व. महेश शुक्ला, दो बार नरेश दिवाकर चुने गये और वर्तमान में नीता पटेरिया भाजपा से विधायक है। भाजपा में टिकिट के लिये इस बार नीता और नरेश के अलावा पालिका अध्यक्ष राजेश त्रिवेदी भी दावेदार के रूप में उभर कर सामने आयें है।लेकिन कार्यकर्त्ताओं एक वर्ग ने ब्राम्हण बनिया विरोधी मोर्चा खोल रखा है। क्षेत्र के कार्यकर्त्ता सम्मेलन में यह मुहिम जोरदार तरीके से चली भी थी। इसके बाद भाजपा में अब यह चर्चित हे गया है कि चौथा कौन? चौथा कौन की चर्चा चालू होते ही पूर्व मंत्री स्व. महेश शुक्ला कि पुत्र अखिलेश शुक्ला एवं पूर्व जिला भाजपा अध्यक्ष द्वय प्रमोद कुमार जैन कंवर साहब,सुदर्शन बाझल एवं सुजीत जैन के नामों की चर्चा भी चाले हो गयी हैं। लेकिन ये सभी संभावित नाम भी ब्राम्हण एवं बनिया वर्ग से ही हैं। इन वर्गों के विरोध में मुहिम चलाने वाला तबका अपनी ओर से किसी सशक्त दावेदार का नाम आम सहमति से सामने नहीं ला पाया है। वैसे राजेन्द्रसिंह बघेल,नरेन्द्र टांक, घासीराम सनोड़िया, राजेश उपाध्याय,ज्ञानचंद सनोड़िया आदि नेताओं के नाम भी दावेदारों के रूप में सामने आ रहें है। इनमें से कौन बाजी मार लेगा? इस पर कुछ कहा नहीं जा सकता है लेकिन इस बार का चुनाव पिछले चुनावों जैसा नहीं होगा यह बात भाजपा आलाकमान भी जानता है कि सिवनी क्षेत्र में भाजपा को बिना कमर कस कर चुनाव लड़े आयती जीत नहीं मिलने वाली हैं। जिले के कांग्रेस के पुरोधा हरवंश सिंह के आकस्मिक निधन के बाद जिले की कांग्रेसी राजनीति में केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ का सीधा हस्तक्षेप बढ़ गया है इसीलिये राजनैतिक जानकारों का मानना है कि जिले में कांग्रेस की चुनावी रणनीति में होने ंवाला आमूल चूल परिवर्तन भाजपा की डगर आसान नहीं रहने देगा और जिले चारों विस क्षेत्रों में बिना कठिन परिश्रम किये जीतना संभव नहीं होगा। 
सिवनी क्षेत्र से कांग्रेस में भी मची है घमासान-कांग्रेस भी टिकिट की लड़ायी में उलझी हुयी हैं। एक तरफ तो राहुल गांधी के नाम पर राजा बघेल की टिकिट काफी पहले से सुनिश्चित मानी जा रही थी। लेकिन टिकिट की कवायत चालू होने के बाद बहुत सारा पानी बैनगंगा के पुल के नीचे से बह चुका है। राहुल गांधी के नेतृत्व में टिकटार्थियों के लिये बनाये गये मानदंड़ और टिकिट का आवेदन लगाने वालों से मांगी गयी जानकारियों के कारण समीकरण काफी उलझ गयें हैं। वैसंे तो कांग्रेस में 38 लोगों ने टिकिट मांगी थी लेकिन अनुशासनहीनता के आरोपों के चलते जिले के उपाध्यक्ष खुमान सिंह के निष्कासन के बाद यह संख्या अब 37 रह गयी है। कांग्रेस के प्रमुख दावेदारों में राजकुमार खुराना,नेहा सिंह,दिलीप बघेल,रमेश जैन, मोहन चंदेल, चंद्रभान सिंह बघेल,ठा. धमेन्द्र सिंह के अलावा अल्पसंख्यक नेताओं में जकी अनवर, सुहेल पाशा, असलम भाई,आरिफ पटेल,साबिर अंसारी प्रमुख हैं। वैसे कांग्रेस इस द्वोत्र से 1990 से चुनाव हार रही हैं। लेकिन यह भी राजनैतिक रूप से कम महत्वपूर्ण बात नहीं है कि इस क्षेत्र से टिकिट मांगने वालों की संख्या में कोई कमी नहीं आ रही है। हाल ही में प्रदेश कांग्रेस के निर्देश पर इस क्षेत्र में कांग्रेस संदेश यात्रा भी प्रारंभ हो गयी हैं। 24 अगस्त से प्ररंभ यह यात्रा 30 अगस्त चलेगी। इस यात्रा में सभी संबंधित ब्लाक कांग्रेस के पदाधिकारी एवं टिकटार्थी शामिल हो रहें हैं। इस यात्रा के दौरान कांग्रेस नेता एक फोल्डर के माध्यम से कांग्रेस की केन्द्र सरकार की उपलब्धि और भाजपा की प्रदेश सरकार की पोल भी खोल रहें है। कांग्रेस में एक यह मांग भी जबरदस्त तरीके से उठ रही है कि इस बार सिवनी या केवलारी क्षेत्र से मुस्लिम नेता को टिकिट दी जाये। राहुल गांधी की गाइड लाइन,कांग्रेस के पर्यवेक्षकों की कवायत एवं नव नियुक्त प्रदेश प्रभारी मोहनप्रकाश के सख्त निर्देशों के चलते किसे टिकिट मिली है यह तो अभी नहीं कहा जा सकता लेकिन इतना जरूर है कि अच्छे उम्मीदवार को टिकिट और कांग्रेसी यदि एक रहे तो भाजपा के लियें सीट गंवाने का खतरा भी हो सकता है। 
तो कांग्रेस और भाजपा में उत्साह का संचार तो हो ही जायेगा-इस बार कांग्रेस और भाजपा के आलाकमान ने टिकिट देने की प्रक्रिया निर्धारित की है उससे एक बात तो हुयी है कि चुनाव लड़नें इच्छुक नेता जो मंड़ल या ब्लाक के पदाधिकारियों को अपने आधीन समझते थे उन्हें अपनी ही टिकिट ले लिये उनके दर पर पहुंचना पड़ रहा है। राहुल गांधी के भोपाल प्रवास के दौरान अधिकांश पदाधिकारियों ने उन्हें महत्व ना मिलने की बात की थी। राहुल गांधी के निर्देश पर कांग्रेस पर्यवेक्षकों ने इस बार ब्लाक कांग्रेस कमेटी से भी सुझाव मांगे तथा तीन तीन नाम प्रस्तावित करने को कहा। इससे यह हुआ कि अपने आप को बहुत बड़ा नेता मानकर टिकिट मांगने वालों को अपनी मनुहार लेकर उनके दर तक जाना पड़ा। इसी तरह भाजपा में भी रायशुमारी देने का जिन कार्यकर्त्ताओं को अधिकार दिये गये हैं उनके पास अपनी जुगाड़ जमाने के लिये वर्तमान और भावी विधायक पहुंच रहें हैं।दोनों ही पार्टियों द्वारा इस प्रक्रिया को अपनाने से पार्टी के कार्यकर्त्ताओं की प्रतिक्रिया संतोषजनक देखी जा रही हैं। यदि वास्तव में इसी के आधार पर टिकटें बंटतीं हैं तो इससे कार्यकर्त्ताओं में उत्साह का संचार तो हों ही जायेगा। 
“मुसाफिर“ 
सा. दर्पण झूठ ना बोले, सिवनी से साभार
27 अगस्त 2013   

Thursday, August 15, 2013

राजनैतिक हित साधने के लिये  धर्म , जाति और क्षेत्रीयता के आधार पर नफरत के बीज बोने से परहेज करें वरना देश में विकास के पहिये थम जायेंगें
आज पूरा देश स्वतंत्रता दिवस की 66 वीं वर्षगांठ मना रहा हैं। आजादी के बाद देश ने प्रजातंत्र के साथ साथ धर्मनिरपेक्षता के सिद्धान्त को भी अंगीकार किया है। इसके तहत सर्व धर्म समभाव की नीति का पालन किया गया। हर धर्म के मानने वाले नागरिकों को अपने अपने  धर्मानुसार आचरण करने की स्वतंत्रता तो दी गयी है लेकिन किसी दूसरे के धर्म की आलोचना का अधिकार नहीं दिया गया हैं। लेकिन धर्म के आधार पर ध्रुवीकरण कर सत्ता के गलियारे तक पहुंचने की ललक ने देश के राजनीतिज्ञों को धर्म की आड में राजनीति करने का रास्ता खोल दिया। धर्म,जाति और क्षेत्रीयता के शार्ट कट से सत्ता पाने का लालच राजनीतिज्ञ छोड़ नहीं पाये और इसी कारण वासुदैव कुटुम्बकम् की संस्कृति को मानने वाले देश में तरह तरह के विभाजन दिखायी देने लगे हैं। अब धर्मनिरपेक्षता और छद्म धर्मनिरपेक्षता के शब्द राजनैतिक गलियारों में आरोप प्रत्यारोप लगाने में उपयोग होते दिखायी दे रहें हैं। कोई राजनैतिक दल अपने आप को धर्मनिरपेक्ष कहता है तो दूसरा उसे मुस्लिम तुष्टीकरण की संज्ञा देकर छद्म धर्मनिरपेक्ष होने का आरोप लगाता हैं। वहीं दूसरी ओर आरोप लगाने वाले खुद ही सत्ता में आने के बाद वही कुछ करते नजर आते हैं जिनके आधार पर वे दूसरे दल पर छद्म धर्मनिरपेक्षता का आरोप लगाते हैं। एक ही राजनैतिक दल के दो मुख्यमंत्री सार्वजनिक रूप से अलग अलग आचरण करते दिखायी दे रहें है। एक मुख्यमंत्री सदभावना मंच पर एक मौलवी द्वारा पहनायी जा रही टोपी पहनने से इंकार कर कट्टर हिन्दू होने का संकेत देता है तो दूसरा मुख्यमंत्री ईद मिलन समारोह में इस्लामी टोपी पहनकर खुद को धर्मनिरपेक्ष दिखाने का प्रयास करता है। लेकिन मंशा दोनों की ही एक है कि वे अपनी पार्टी को मजबूत करना चाहते है। क्या राजनेताओं का यह आचरण उचित है? लेकिन यह शाश्वत सत्य है कि विभिन्नता में एकता ही भारत की विशेषता है। हमारे देश में अलग अलग धर्म और जाति के लोग आपस में भाई चारे के साथ रहते है। इसीलिये धर्म और जाति को आधार मानकर राजनैतिक बिसात बिछाना देश के लिये हितकारी नहीं हैं। भारत एक विकासशील देश है। विकास की प्रक्रिया सतत जारी रखने के लिये यह आवश्यक है कि देश में अमन चैन कायम रहे। आज यह समय की मांग है कि देश में राजनैतिक नेतृत्व करने वाले राजनेता अपने राजनैतिक हित साधने के लिये  धर्म और जाति के आधार पर नफरत के बीज बोने से परहेज करें वरना देश में विकास के पहिये थम जायेंगें और देश के नौनिहालों का भविष्य अंधकारमय हो जायेगा और आने वाली पीढ़ी हमें कभी माफ नहीं करेगी।़ इसलिये आइये आज के दिन हम यह संकल्प लें कि हम अपने राजनैतिक हितों के लिये हम धर्म, जाति और क्षेत्रीयता के आधार पर समाज को बंटने नहीं देंगें और देश के समग्र विकास का मार्ग प्रशस्त करेंगें।     

Tuesday, August 6, 2013

विस चुनाव के इस दौर में जिले में अभी से टिकिट के बजाय के बजाय मंत्री बनने का ताना बाना बुन रहे हैं भाजपा के शीर्ष नेता
 इन दिनों नगरपालिका की लीज को लेकर समाचार पत्रों में तरह तरह के समाचार प्रकाशित हो रहें हैं। बताया जा रहा है कि गंज क्षेत्र के कुछ व्यापारियों की लीज का नवीनीकरण होना हैं। इसमें अधिकांश व्यापारी संघ एवं भाजपा के कट्टर समर्थक हैं। पालिका अध्यक्ष एवं भाजपा नेता राजेश त्रिवेदी का सहयोग ना मिलने पर इन व्यापारियों ने युवा इंका नेता राजा बघेल एवं जिला इंका के महामंत्री चीकू सक्सेना से संपंर्क साधा । कांग्रेस पार्षदों के सहयोग से परिषद में प्रस्ताव भी पारित कर दिया और नियमानुसार कार्यवाही करने के लिये मुनपा अधिकारी को अधिकृत कर दिया गया। कांग्रेस में पर्यवेक्षकों के दौरों के बाद टिकिट मांगने वाले नेताओं ने प्रादेशिक नेताओं से मेल मुलाकात का दौर चालू कर दिया है। मोहन समर्थकों में चल रही चर्चा के अनुसार जिला पंचायत अध्यक्ष होने के नाते मोहन चंदेल अपने आप को महिमा मंड़ित कर स्वयमेव नेता दिखने के राजनैतिक संदेश देने में सफल रहें हैं। जिला भाजपा में चल रही नेतृत्व परिवर्तन की चर्चा के तार विधानसभा चुनाव से जुड़े बताये जा रहें है। दरअसल में इस स्थानीय समीकरण के पीछे कारण यह बताया जा रहा है कि सरकार बनने पर मंत्री बनने की जुगाड़ हैं। यह तो समय आने पर ही पता चलेगा कि ऊंट किस करवट बैठता है?
संघ और भाजपा में सेंध लगायी इंकाइयो ने?-इन दिनों नगरपालिका की लीज को लेकर समाचार पत्रों में तरह तरह के समाचार प्रकाशित हो रहें हैं। बताया जा रहा है कि गंज क्षेत्र के कुछ व्यापारियों की लीज का नवीनीकरण होना हैं। इसमें अधिकांश व्यापारी संघ एवं भाजपा के कट्टर समर्थक हैं। इन समाचारों में यह भी उल्लेख किया गया है कि पालिका अध्यक्ष एवं भाजपा नेता राजेश त्रिवेदी का सहयोग ना मिलने पर इन व्यापारियों ने युवा इंका नेता राजा बघेल एवं जिला इंका के महामंत्री चीकू सक्सेना से संपंर्क साधा और कांग्रेस पार्षदों के सहयोग से परिषद में प्रस्ताव भी पारित कर दिया और नियमानुसार कार्यवाही करने के लिये मुनपा अधिकारी को अधिकृत कर दिया गया। प्रकाशित समाचारों में यह भी उल्लेख किया गया है कि भारी लेन देन के बाद भी मामला अटकाया जा रहा हैं जिससे व्यापारियों में आक्रोश है। राजनैतिक हल्कों में चर्चा है कि चुनावी समय में इस तरीके से इंकाइयों द्वारा संघ और भाजपा में सेंध लगाने का काम किया गया है जो कि चुनाव में लाभ दायक होगा। भाजपा के पालिका अध्यक्ष होने के बाद भी संघ समर्थक व्यापारी इंका नेताओं के संपंर्क में आये और उनकी मदद से परिषद में प्रस्ताव होने और लीज का नवीनीकरण ना होने से भाजपा के प्रति आक्रोश पैदा हो गया है।बताया जा रहा है कि मुनपा अधिकारी का कहना है कि नियमानुसार परिषद तीन साल से अधिक की लीज नहीं दे सकती जबकि व्यापारियों का कहना है कि भाजपा की पिछली परिषद की तरह इस बार भी 30 साल के लिये नवीनीकरण किया जाय। लेकिन मुनपा अधिकारी अपने अभिमत पर अड़े हुये है कि तीन साल से अधिक की लीज के लिये प्रकरण राज्य शासन को भेजने होंगें। सियासी हल्कों में दूसरी तरफ यह भी चर्चा है कि मामला लेन देन के इर्द गिर्द ही घूम रहा है कि लेन देन कहां हुआ, किसके साथ हुआ और यदि नियम नहीं था तो भाजपा की पिछली परिषद ने तीस साल के लिये लीज कैसे दी? इन सारे सवालों के जवाब तो नगर पालिका परिषद के कर्त्ता धर्त्ता या पालिका के मामलों में विशेष योग्यता हासिल कर चुके नेता ही बता सकते हैं लेकिन इतना तो तय है कि या तो पिछली भाजपा की परिषद ने नियम के विपरीत जाकर तीस साल की लीज दी थी या भाजपा की ही वर्तमान परिषद नियम होने के बाद भी तीस साल की लीज नहीं दे रही है। पालिका परिषद और प्रशासन से इस बात की अपेक्षा करना कोई बेमानी नहीं होगी कि वें इस बात का खुलासा करें कि भाजपा की पिछली परिषद ने नियम विपरीत काम किया है या वर्तमान परिषद नियम विपरीत काम कर रही है? 
प्रदेश के नेताओं के यहां दस्तक दी इंका टिकटार्थियों ने-कांग्रेस में पर्यवेक्षकों के दौरों के बाद टिकिट मांगने वाले नेताओं ने प्रादेशिक नेताओं से मेल मुलाकात का दौर चालू कर दिया है। जिले में पांच बार से हारने वाले सिवनी से 38 और आदिवासी क्षेत्र बरघाट से 19 नेताओं ने टिकिट के लिये आवेदन लगाये है। दोनों ही क्षत्रों क्रमशः 22 और 18 नेता लामबंद हो गये हैं। इन नेताओं ने बीते दिनों छिंदवाड़ा में केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ से भेंट कर अपना पक्ष रखा था। पिछले दिनों सिवनी के 22 नेताओं के समूह ने भोपाल जाकर कांग्रेस नेताओं के यहां दस्तक दी है। इन नेताओं ने प्रभारी महासचिव मोहन प्रकाश, कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह,प्रदेश अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया और नेता प्रतिपक्ष से भेंट कर अपना पक्ष रखा और मांग की है कि इस बार प्रत्याशी ग्रामीण क्षेत्र से ही बनाया जाना चाहिये क्योंकि शहरी क्षत्र के नेता पिछले पांच बार से चुनाव हार रहें हैं। भोपाल गये लगभग 16 टिकटार्थियों में जिला पंचायत अध्यक्ष मोहन चंदेल और सिवनी के पूर्व विधायक रमेश जैन भी शामिल थे। मोहन समर्थकों में चल रही चर्चा के अनुसार जिला पंचायत अध्यक्ष होने के नाते मोहन चंदेल अपने आप को महिमा मंड़ित कर स्वयमेव नेता दिखने के राजनैतिक संदेश देने में सफल रहें हैं।इस प्रतिनिधिमंड़ल द्वारा यह बताये जाने पर कि इस क्षेत्र से 38 नेताओं ने टिकिट के लिये आवेदन लगाया हैं तो कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने आश्चर्य व्यक्त किया कि पांच बार से हारने वाले क्षेत्र से इतने आवेदक? कांग्रेसी हल्कों में चल रही चर्चाओं के अनुसार सिवनी और बरघाट से आवेदकों की संख्या बढ़ने का कारण यह बताया जा रहा है कि इस चुनाव में कांग्रेस में बिलोरन होने की संभावना कम है और कांग्रेस जीत भी सकती हैं। हालांकि इस तर्क के आधार अलग अलग लोग अलग ही बता रहें हैं लेकिन इससे इस बात से भी इंकार नहीं सकता कि हो रहे इस बिखराव को रोकना आसान नहीं होगा। 
भाजपा में मंत्री पद को लेकर बुने जा रहें हैं ताने बाने-जिला भाजपा में चल रही नेतृत्व परिवर्तन की चर्चा के तार विधानसभा चुनाव से जुड़े बताये जा रहें है। नेरश नीता गुट इस मामले में आमने सामने हैं। नरेश समर्थकों का मानना है कि सिवनी विस से नीता पटेरिया का जीतना संभव नहीं है। इसीलिये भाजपा को प्रत्याशी बदल कर नरेश को टिकिट देना चाहिये। केवलारी के इंका विधायक हरवंश सिंह के निधन के कारण आसान हो चुकी सीट को भाजपा को जीतने के लिये नीता पटेरिया को केवलारी से चुनाव लड़ाना चाहिये।वहीं केवलारी क्षेत्र के प्रबल दावेदार डॉ. ढ़ालसिंह बिसेन को बालाघाट संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ाना चाहिये। दरअसल में इस स्थानीय समीकरण के पीछे कारण यह बताया जा रहा है कि सरकार बनने पर मंत्री बनने की जुगाड़ हैं। यदि नरेश चुनाव जीतते है तो वे तीसरी बार के विधायक होगें,नीता केवलारी से जीततीं है तो वे दूसरी बार की विधायक होंगी जबकि यदि केवलारी से चुनाव लड़कर डॉ. बिसेन चुनाव जीतते है तो वे जिले के पांचवी बार के विधायक होंगें और भाजपा की उमा और गौर सरकार में वे मंत्री भी रह चुके है। इस तरह यदि डॉ. बिसेन को लोकसभा चुनाव लड़ाने के लिये कहा जाता है तो नरेश और नीता के मंत्री बनने की होड़ में नरेश बाजी मार सकते है। वैसे वर्तग्मान में डॉ. बिसेन और नरेश दोनों ही केबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त नेता हैं। मंत्री पद को लेकर बुने जा रहे इस ताने बाने के लिये ही भाजपा में नेतृत्व परिवर्तन की बात चल रही है और नरेश अपने ही किसी समर्थक को जिला भाजपा का अध्यक्ष बनाकर बाजी अपने हाथ में रखना चाह रहें हैं। यह तो समय आने पर ही पता चलेगा कि ऊंट किस करवट बैठता है? “ मुसाफिर “    
सा. दर्पण झूठ ना बोले, सिवनी
06 अगस्त 2013