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Tuesday, December 29, 2009

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इंका नेताओं के खिलाफ हुई कार्यवाही -सिवनी नगरपालिका चुनाव में मतदाताओं द्वारा साीधे चुनाव में कांग्रेस के संजय भारद्वाज को हार का सामना करना पड़ा। प्रदेश इंका के उपाध्यक्ष एवं जिले के इकलौते इंका विधायक ठाकुर हरवंश सिंह भी प्रचार कार्य में सम्मलित थे। लेकिन उनके समर्थकों की चुनावी गतिविधियां प्रारंभ से ही संदिग्ध लग रहीं थी। चुनाव के दौरान जिला इंका को मिली शिकायतों के आधार पर जिला इंका ने नपा उपाध्यक्ष संतोष उर्फ नान्हू पंजवानी को निलंबित किया तो जिला युवा इंका के पूर्व अध्यक्ष राजा बघेल को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया। जिला इंका के महामंत्री असलम भाई को भी कारण बताओं नोटिस जारी होने के चर्चे अखबारों में सुर्खियों में हैं। ये सभी इंका नेता हरवंश सिंह के समर्थक माने जाते हैें। ऐसा मानने वालों की भी कमी नहीं हैं कि इनसे हरवंश सिंह कुछ कहें और ये नेता वैसा ना करें ऐसी तो कल्पना भी नहीं की जा सकती। नेता प्रचार करें और समर्थकों के विरुद्ध पार्टी को अनुशासनात्मक कार्यवाही करना पड़े तो भला जीत की कल्पना कैसे की जा सकती हैर्षोर्षो अब इंका पुरोधा हरवंश सिंह हार के इस कलंक को मिटाकर जिला और जनपद पंचातों में जीत दर्ज कर जीत का सेहरा अपने सिर बांधने की जुगत जमाने में जुट गये हें। यहां यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि इन चुनावों में अध्यक्ष सीघे मतदाताओं के बजाय सदस्यों के द्वारा चुने जातें हैं और ऐसे चुनावों में हरवंश सिंह की महारथ से सभी वाकिफ हैं। इस चुनाव में पहली बार जिला पंचायत अध्यक्ष का पद अनारक्षित वर्ग से हैं इस कारण इस चुनाव में घमासान होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।आशुतोष वर्मा, सिवनीक्या राजेश की जीत भाजपायी राजनीति में परिवर्तन का कारण बनेगी र्षोर्षो-जिले की भाजपायी राजनीति में नपा अध्यक्ष का चुनाव राजेश त्रिवेदी द्वारा जीतने के बाद बदलाव आने के दावे किये जा रहें हैं। जिला भाजयुमो का अध्यक्ष बनने और उसे तीसरी बार भी बरकरार रखने में राजेश त्रिवेदी की जिले के लगभग सभी ग्रुपों से नजदीकियां और दूरियां बन ही गयीं थीं। इसी बीच उन्होंने भाजपा की संघीय राजनीति में अपनी पैठ बनाना शुरू कर दी थी। संघीय राजनीति का कमाल वे देख ही चुके थे। युवा नरेश दिवाकर ने अपनी संघीय पृष्ठभूमि के चलते प्रदेश के पूर्व मंत्री और तत्कालीन विधायक स्व. महेश शुक्ला के बदले खुद ना केवल टिकिट ले आये थे वरन दस साल तक जिला मुख्यालय के विधायक भी रहे थे। संघ की नाराजगी ने एक झटके में ही उन्हें पूर्व विधायक बना दिया था और आज तक उनके खाते में कुछ भी नहीं आया हैं। इसे भांपकर ही युवा राजेश ने स्थानीय भाजपायी झंड़बरदारों के बजाये संघ के नेताओं से नजदीकी बनाना शुरू कर दी थी। भाजपायी राजनीति के जानकारों का मानना हैं कि इसी कारण स्थानीय विधायक नीता पटेरिया,पूर्व विधायक नरेश दिवाकर,जिला एवं नगर भाजपा की मर्जी के बिना वे ना केवल नपा अध्यक्ष की टिकिट ले आये वरन अच्छे वोटों से जीत भी गये। राजेश समर्थकों का दावा हैं कि पूरा शहर इस बात को जानता हैं कि किसी भी वरिष्ठ भाजपा नेता ने उनका काम गंभीरता से नहीं किया और अधिकांश नेता रस्म अदायगी करते रहे। चुनाव के दौरान भी कई भाजपा नेता राजेश को बड़बोला और अपरिपक्व नेता बताने में कोई संकोच नहीं करते थे और भाजपायी हल्कों में यह चर्चा जोरों पर थी कि यह भाजपा का अब तक का सबसे अव्यवस्थित चुनाव हैं जिसमें सब कुछ प्रत्याशी ही हैं तथा किसी को भी कोई जवाबदारी नहीं सौंपी गयी हैं। लेकिन इसके बाद भी राजेश की जीत ने जिले की भाजपायी राजनीति को एक ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया हैं जहां से परिवर्तन की कुछ आहटें सुनायी देने लगीं हैं। अब राजेश अपने इस सियासी सफर को कैसे तय करते हैंर्षोर्षो यह उन पर तथा उनके सलाहकारों पर ही निर्भर करेगा।आशुतोष वर्मा,सिवनीलोग भूल गये कि सांसद भी होता हैं क्या रामटेक गोटेगांव रेल लाइन के लिये होंगें सर्वदलीय प्रयासर्षोर्षो -प्रदेश परिसीमन आयोग के सह सदस्य भाजपा सांसद फग्गनसिंह कुलस्ते और इंका विधायक ठाकुर हरवंश सिंह की सांठ गांठ से विलुप्त मंड़ला लोकसभा और केवलारी विधानसभा क्षेत्र तो बच गये थे लेकिन आयोग द्वारा प्रस्तावित सिवनी लोकसभा और घंसौर विस क्षेत्र विलुप्त हो गये थे। नये परिसीमन के बाद जिले के सिवनी और बरघाट विस क्षेत्र बालाघाट लोस में तथा केवलारी और लखनादौन विस क्षेत्र मंड़ला लोस में शामिल कर दिये गये थे। लोस चुनाव के दौरान दोनों ही लोस क्षेत्रों के प्रत्याशियो ने सिवनी जिले के लिये बड़ी बड़ी बातें तो कहीं थीं लेकिन अब उन पर अमल नहीं हो रहा हैं। बालाघाट से भाजपा के के.डी.देखमुख और इंका के बसोरी सिंह मसराम चुनाव जीत गये हें लेकिन दोनो ही सांसद कहने को तो कभसी कभार जिले मेें आयें हें लेकिन उनका संपर्क मात्र कुछ इंकाइयों और भाजपाइयों तक ही सीमित रह गया हैं। जिले का आम मतदाता अब यह भूलने लगा है कि जिले में सांसद नाम की भी कोई चीज होती है। संसद में जिले का नाम ही समाप्त हो जाने से केन्द्रीय स्तर की कई योजनाओं से जिले को महरूम रहना पड़ रहा हैं। सबसे बड़ खामियाजा तो बड़ी रेल लाइन को लेकर हो रहा हैं। पिछले रेल बजट में िंछदवाड़ा नैनपुर बड़ी रेल की घोषणा तो की गयी थी जिसका श्रेय दोनों ही सांसदों ने लिया था लेकिन वित्तीय वर्ष समाप्त होने को आ रहा है अब तक इस लाइन पर एक तसला गिट्टी तक नहीं डली हैें और दोनों ही सांसद ऐसे चुप्पी साधे हुये हें मानो उनका इससे कोई लेना देना ही नहीं हैं। संसद में की गयी घोषणा के अमल पर ही जब सांसदों का यह रुख हैं तो फिर देश के पूर्व प्रधानमंत्री द्वारा आम सभा में की गयी रामटेक गोटेगांव बड़ी रेल लाइन के संबंध में क्या उम्मीद की जायेर्षोर्षो यहां यह उल्लेखनीय है कि इस नयी रेल लाइन के लिये जिले मेें पिछले तीन साल से लगातार कई प्रयास किये गये लेकिन राजनेताओं और दोनों ही पार्टियों के जनप्रतिनिधियों की उदासीनता के चलते कोई कामयाबी नहीं मिल पायी हैं। औपचारिकता निबाहने के लिये तो कभी कोई दिल्ली प्रतिनिधिमंड़ल ले गया तो कभी कोई रेल मंत्री से मिल लिया लेकिन वैसा जन दवाब और राजनैतिक दवाब कभी नहीं बनाया गया जो ऐसे कामों के लिये आवयक होता हैं। जिले के विकास के लिये यह रेल लाइन जीवन रेखा का काम करने वाली सिद्ध होगी। क्या इस बार ऐसी अपेक्षा की जा सकती हैं कि इस नयी रेल परियोजना के लिये ऐसे सर्वदलीय प्रयास किये जायें कि आगामी रेल बजट में इस परियोजना के लिये बजट आवंटन हो सकेर्षोर्षोवरना यह योजना एक घोषणा बनकर ही रह जायेगी।आशुतोष वर्मा,सिवनी

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