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Wednesday, December 23, 2009

इंका और भाजपा के स्थानीय कर्णधारों की पसंद के विपरीत टिकिट आने से शुरुआती दौर से ही तरह तरह की अटकलें शुरू हो गयीं थीसिवनी में भाजपा और बरघाट में इंका का कब्जा -नगरपालिका चुनाव की चहल पहल समाप्त हो गयी हैं। जिले में सिवनी पालिका में भाजपा और बरघाट नगर पंचायत में इंका को सफलता मिली हैं। जहां एक ओर सिवनी नपा में भाजपा के राजेश त्रिवेदी ने अध्यक्ष पद पर विपरीत परिस्थितियों में भी अपना कब्जा बरकरार रखा है वहीं दूसरी ओर बरघाट में यदि यह कहा जाय कि कांग्रेस के बजाय अनिल ठाकुर ने लगातार तीसरी बार अपने परिवार का कब्जा बनाये रखा है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। यहां दो बार अनिल ठाकुर खुद तथा इस बार उनकी पत्नी संध्या ठाकुर ने अध्यक्ष पद पर जीत दर्ज की हैं।इंका और भाजपा के स्थानीय कर्णधारों की पसंद को दरकिनार कर मिली टिकिट-सिवनी नपा के चुनाव में दोनो ही पार्टियों इंका और भाजपा में टिकिट तय होने से ही तरह तरह की चर्चायें शुरू हो गयीं थी। इंका में अध्यक्ष पद के प्रत्याशी संजय भारद्वाज के बनते ही ये चर्चायें शुरू हो गयीं थीं कि इस चुनाव में प्रदेश इंका के उपाध्यक्ष हरवंश की क्या भूमिका रहेगी। यह भी कहा जा रहा था कि संजय हरवंश सिंह के मनपसंद उम्मीदवार ना होकर मजबूरी में दी गयी सहमति के उम्मीदवार थे। इसी तरह भाजपा के अध्यक्ष पद के प्रत्याशी राजेश त्रिवेदी भी स्थानीय भाजपा नेताओं की पसंद के प्रत्याशी ना होकर सीधे संघ के कोटे के उम्मीदवार थे और उनकी उम्मीदवारी से ना तो विधायक नीता पटेरिया तथा ना ही पूर्व विधायक नरेश दिवाकर खुश थे। दोनों की ही पसंद के उम्मीदवारों को दरकिनार कर भाजपा ने संघ की पसंद के राजेश को अपना प्रत्याशी बनाया था। इंका और भाजपा के स्थानीय कर्णधारों की पसंद के विपरीत टिकिट आने से चुनाव के शुरुआती दौर से ही तरह तरह की अटकलें लगना प्रारंभ हो गयीं थी।सिवनी के समान कभी केवलारी में क्यों नहीं खेला जाता अल्पसंख्यक कार्डर्षोर्षो-नगर पालिका सिवनी के चुनाव के पहले ही कांग्रेस में परम्परानुसार बिसात बिछानी शुरू कर दी गयी गयी थी। पिछले कई चुनावों से यह देखा जा रहा हैं कि चाहे सिवनी विस का चुनाव हो या सिवनी नपा का कांग्रेस का एक धड़ा सुनियोजित तरीके से यह शिगूफा छोड़ना चालू कर देता हैं कि इस बार अल्पसंख्यक विशेषकर मुसलमान वर्ग से कांग्रेस का उम्मीदवार होना चाहिये। इसकी बाकायदा चर्चा होती ह,ैं प्रत्याशियो के नाम उछाले जाते हैं, उनके आवेदन लगाये जाते हैं और बाकायदा आलाकमान तक नाम चलाये भी जाते हैं। इसके बाद जब टिकिट अल्पसंख्यक वर्ग को नहीं मिलती हैं तो कांग्रेस प्रत्याशी की राह वैसे ही कठिन हो जाती हैं। ऐसा ही कुछ इस पालिका चुनाव में भी हुआ। अध्यक्ष पद के लिये हॉजी सुहैल पाशा का नाम चला। कई बार नाम चलने और टिकिट कटने से इंकाई मुस्लिम नेताओं का नाराज होना स्वभाविक भी था। पाशा सहित इंका के अधिकांश मुस्लिम नेताओं के कांग्रेस का काम भी किया लेकिन निर्दलीय मुस्लिम उम्मीदवार राजा बाडी मेकर ने लगभग चार हजार वोट ले लिये और कांग्रेस को इस चुनाव में फिर 2950 वोटों से हार का सामना करना पड़ा। वैसे यदि संख्या के आधार पर देखा जाये तो सिवनी और केवलारी विस क्षेत्रों में मुसलमान वोटों की संख्या में कोई खास फर्क नहीं हैं। ऐसे ही एक बार 1985 में मुस्लिम कार्ड केवलारी क्षेत्र में भी खेला गया था। तत्कालीन म.प्र.हाथ करघा संघ के अध्यक्ष हरवंश सिंह ने शफीक पटेल का नाम तत्कालीन क्षेत्रीय इंका विधायक विमला वर्मा के खिलाफ चलाया था। लेकिन हरवंश सिंह के 1993 में विधायक बनने के बाद से आज तक केवलारी क्षेत्र में ना तो कभी किसी मुस्लिम नेता को उम्मीदवार बनाने की बात चली तथा ना ही क्षेत्र के किसी मुस्लिम इंका नेता ने केवलारी विस से कांग्रेस की टिकिट ही मांगी। यह जरूर हुआ है कि केवलारी क्षेत्र के इंका नेताओं ने सिवनी विस क्षेत्र से टिकिट मांगी और नहीं मिलने पर नाराजगी भी सिवनी में ही निकाली। इसीलिये कांग्रेस के इस निर्णायक वोट बैंक में केवलारी विस क्षेत्र में कभी कोई आक्रोश पैदा नहीं हुआ और हरवंश सिंह की राह आसान बनी रही। लेकिन सिवनी विस और नपा चुनाव के समय ही अल्पसंख्यक वर्ग के साथ यह खेल क्यों और कौन के द्वारा खेला जाता हैंर्षोर्षो इसका खुलासा होने के साथ साथ इलाज होना भी जरूरी हैं वरना हर चुनाव में कांग्रेस के पात्र भले ही बदलते जायें लेकिन चुनाव परिणाम बदलना तो असंभव ही दिखायी देता हैं।इंका एवं भाजपा के अलावा सभी की हुई जमानत-नगरपालिका चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के अलावा किसी भी प्रत्याशी की जमानत जप्त होने से बच नहीं पायी। इस चुनाव में मतदाताओं ने निर्दलीयों को बुरी तरह नकार दिया। मुस्लिम प्रत्याशी राजा बाडी मेकर को छोड़कर एक भी उम्मीदवार चार अंकों के आकड़ा पार नहीं कर पाया। इसमें जाति और क्षेत्र का मुद्दा भी काम नहीं कर पाया। राजनैतिक विश्लेष्कों का यह मानना हैं इस चुनाव का निर्णायक मुद्दा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का दौरा रहा जिसके कारण इस चुनाव में भाजपा की जीत को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया गया। तमाम आकलनों को नकारते हुये भाजपा प्रत्याशी राजेश त्रिवेदी ने जीत दर्ज कर ली और लगातार दूसरी बार नपा पर भाजपा का कब्जा बरकरार रखा।क्या भ्रष्टाचार राजनैतिक शिष्टाचार बन जायेगार्षोर्षो-भाजपा शासित नगरपालिका में हुआ भारी भ्रष्टाचार पूरे चुनाव में प्रमुख मुद्दा बना रहा। लगभग सभी प्रत्याशियों ने इसे प्रमुखता से उछाला था। इसी बीच हाई कोर्ट ने भी अपने एक आदेश से भाजपा को कठघरे में खड़ा कर दिया था। इसके बाद भी मतदाताओं ने इस मुद्दे को नकार दिया और भाजपा को ही दोबारा पालिका में जिता दिया। इसे लेकर राजनैतिक क्षेत्रों में तरह तरह की चर्चायें जारी हैं कि आखिर ऐसा हुआ क्योंर्षोर्षो कुछ विश्लेषकों का ऐसा मानना हैं कि भ्रष्ट राजनेताओं का लगातार चुनाव जीतना और सत्ता के गलियारों में उनकी पूछ परख रहने से लोगों की ऐसी धारणा बन गयी हैं कि जब राजनैतिक दलों के आलाकमान चाहे वे कांग्रेस के हों या भाजपा के जब वे ही इस मामले को कोई महत्व नहीं देते तो फिर भला उन्हें महत्वपूर्ण क्यों माना जायेर्षोर्षो यदि ऐसे ही भ्रष्ट राजनेताओं को राजनैतिक और सामाजिक रूप से महिमा मंड़ित किया जाता रहा तो भ्रष्टाचार भ्रष्टाचार ना रहकर राजनैतिक शिष्टाचार का स्वरूप ले ले कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। आशुतोष वर्मा, सिवनीमो. 09425174640

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