शिव राज में मन्त्री विहीन शिव की नगरी अब प्रभारी अधिकारीमय होती जा रही है
सिवनी। शिव के राज में मन्त्री विहीन रहने वाली शिव की नगरी अब अधिकारी विहीन भी होती जा रही हैं। जाने वाले अधिकारी तो चले जातें हैं लेकिन आने वाले आते ही नहीं हैं। अधिकांश विभागों में ना केवल कई कई पद रिक्त पड़े हुये हैं वरन प्रभारी अधिकारियों का जो जलवा इस जिले में हैं शायद वो कहीं और नहीं होगा।
प्रदेश में भाजपा सरकार का नेतृत्व जबसे मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह के हाथों में आया हैं तब सें ही शिव की नगरी सिवनी को वो सम्मान नहीं मिल पा रहा हैं जो पहले मिला करता था।कांग्रेस शासन काल में तो अधिकांश समय दो मन्त्री ही रहा करते थे। दिग्गी राजा के दूसरे कार्यकाल के अन्तिम दिनों में तों जिले में सात सात लालबत्ती घूमा करती थीं। शिवराज सिंह जब मुख्यमन्त्री बने थे तो जिले के पांच विधायकों में से तीन विधायक भाजपा के थे। नये परिसीमन के बाद वर्तमान में जिले के चार विधायकों में से तीन विधायक भाजपा के हैं। इनमें एक शिक्षित युवा आदिवासी विधायक हैं तो दूसरी शिक्षित आदिवासी महिला विधायक हैं तो तीसरी ब्राम्हण समाज की विधि स्नातक महिला विधायक हैं जो कि सांसद भी रह चुकीं हैं। प्रदेश के चारों सांसदों में से विधायक बनी नीता पटेरिया ही एकमात्र शेष बचीं हैं जिन्हें शिवराज ने मन्त्री नहीं बनाया हैं। अन्य तीन गौरीशंकर बिसेन,रामकृष्ण कुसमारिया और सरताज सिंह तीनों ही कबीना मन्त्री बनाये जा चुकें हैं।
मन्त्री नहीं बनने का दर्द तो शिव की नगरी सिवनी झेल ही रही थी लेकिन शिव राज में अब तो अशिकारी विहीन भी होती जा रही हैं। जिले के अधिकांश विभागों का नेतृत्व या तो प्रमोटी अधिकारी कर रहें हैं या फिर प्रभारी अधिकारी जुगाड़ जमा कर बैठे हुये हैं। डॉ. रमनसिंह सिकरवार इस जिले के पहले नॉन आई.पी.एस. पुलिस अधीक्षक हैं। जिले में आठ उप जिलाध्यक्षों के पद हैं जो वर्तमान में तो सभी भरे हुयें हैं लेकिन एस.डी.एम.जैन तथा अतिरिक्त कलेक्टर अलका श्रीवास्तव का तबादला हो चुका हैं और उनके बदले किसी की नियुक्ति नहीं हुयी हैं। सिंचाई विभाग में मुख्य अभियन्ता से लेकर अनुविभागीय अधिकारी तक अधिकांश प्रभारी अधिकारी के रूप में कार्यरत हैं। स्वास्थ्य विभाग में तो प्रभारी सी.एम.ओ. डॉ.पटेरिया,जो कि भाजपा विधायक नीता पटेरिया के पति हैं, के स्थान पर डॉ. चौहान प्रभारी बन कर आ चुके हैं। इस विभाग में अधिकांश पद खाली पड़े हैं। जिससे स्वास्थ्य सेवायें चरमरा गईं हैं।
आबकारी और वन विभाग में कमान अधिकांश प्रमोटी अधिकारियों के हाथों में हैं। लोक निर्माण और ग्रामीण यान्त्रिकी विभाग में कार्यपालन यन्त्री तो नियमित हैं लेकिन एस.डी.ओ. के पद पर प्रभारी अधिकारी की परंपरा बदस्तूर जारी हैं। शायद ही जिले में कोई भी कॉलेज ऐसा होगा जिसमें पढ़ाने वालों के सभी पद भरे होंगें। सहायक आयुक्त आदिवासी विभाग ऊषा सिंह तो ऐसी बहुचर्चित अधिकारी रहीं जिन्हें पूरी भाजपा भी हटा नहीं पायी थी और जब वे गईं तो अपने मन से ही गई और कई दिनों तक उनसे चार्ज लेने वाले को इन्तजार करना पड़ा। ऐसा लगता हैं कि शिवराज शिव की नगरी सिवनी के लिये मन्त्री तो मन्त्री अधिकारी भी प्रभारी देकर ही काम चलाना चाहते हैं। ऐसी परिस्थिति में मतदाता अपने आप को ठगा हुआ सा महसूस कर रहा हैं।
सिवनी। शिव के राज में मन्त्री विहीन रहने वाली शिव की नगरी अब अधिकारी विहीन भी होती जा रही हैं। जाने वाले अधिकारी तो चले जातें हैं लेकिन आने वाले आते ही नहीं हैं। अधिकांश विभागों में ना केवल कई कई पद रिक्त पड़े हुये हैं वरन प्रभारी अधिकारियों का जो जलवा इस जिले में हैं शायद वो कहीं और नहीं होगा।
प्रदेश में भाजपा सरकार का नेतृत्व जबसे मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह के हाथों में आया हैं तब सें ही शिव की नगरी सिवनी को वो सम्मान नहीं मिल पा रहा हैं जो पहले मिला करता था।कांग्रेस शासन काल में तो अधिकांश समय दो मन्त्री ही रहा करते थे। दिग्गी राजा के दूसरे कार्यकाल के अन्तिम दिनों में तों जिले में सात सात लालबत्ती घूमा करती थीं। शिवराज सिंह जब मुख्यमन्त्री बने थे तो जिले के पांच विधायकों में से तीन विधायक भाजपा के थे। नये परिसीमन के बाद वर्तमान में जिले के चार विधायकों में से तीन विधायक भाजपा के हैं। इनमें एक शिक्षित युवा आदिवासी विधायक हैं तो दूसरी शिक्षित आदिवासी महिला विधायक हैं तो तीसरी ब्राम्हण समाज की विधि स्नातक महिला विधायक हैं जो कि सांसद भी रह चुकीं हैं। प्रदेश के चारों सांसदों में से विधायक बनी नीता पटेरिया ही एकमात्र शेष बचीं हैं जिन्हें शिवराज ने मन्त्री नहीं बनाया हैं। अन्य तीन गौरीशंकर बिसेन,रामकृष्ण कुसमारिया और सरताज सिंह तीनों ही कबीना मन्त्री बनाये जा चुकें हैं।
मन्त्री नहीं बनने का दर्द तो शिव की नगरी सिवनी झेल ही रही थी लेकिन शिव राज में अब तो अशिकारी विहीन भी होती जा रही हैं। जिले के अधिकांश विभागों का नेतृत्व या तो प्रमोटी अधिकारी कर रहें हैं या फिर प्रभारी अधिकारी जुगाड़ जमा कर बैठे हुये हैं। डॉ. रमनसिंह सिकरवार इस जिले के पहले नॉन आई.पी.एस. पुलिस अधीक्षक हैं। जिले में आठ उप जिलाध्यक्षों के पद हैं जो वर्तमान में तो सभी भरे हुयें हैं लेकिन एस.डी.एम.जैन तथा अतिरिक्त कलेक्टर अलका श्रीवास्तव का तबादला हो चुका हैं और उनके बदले किसी की नियुक्ति नहीं हुयी हैं। सिंचाई विभाग में मुख्य अभियन्ता से लेकर अनुविभागीय अधिकारी तक अधिकांश प्रभारी अधिकारी के रूप में कार्यरत हैं। स्वास्थ्य विभाग में तो प्रभारी सी.एम.ओ. डॉ.पटेरिया,जो कि भाजपा विधायक नीता पटेरिया के पति हैं, के स्थान पर डॉ. चौहान प्रभारी बन कर आ चुके हैं। इस विभाग में अधिकांश पद खाली पड़े हैं। जिससे स्वास्थ्य सेवायें चरमरा गईं हैं।
आबकारी और वन विभाग में कमान अधिकांश प्रमोटी अधिकारियों के हाथों में हैं। लोक निर्माण और ग्रामीण यान्त्रिकी विभाग में कार्यपालन यन्त्री तो नियमित हैं लेकिन एस.डी.ओ. के पद पर प्रभारी अधिकारी की परंपरा बदस्तूर जारी हैं। शायद ही जिले में कोई भी कॉलेज ऐसा होगा जिसमें पढ़ाने वालों के सभी पद भरे होंगें। सहायक आयुक्त आदिवासी विभाग ऊषा सिंह तो ऐसी बहुचर्चित अधिकारी रहीं जिन्हें पूरी भाजपा भी हटा नहीं पायी थी और जब वे गईं तो अपने मन से ही गई और कई दिनों तक उनसे चार्ज लेने वाले को इन्तजार करना पड़ा। ऐसा लगता हैं कि शिवराज शिव की नगरी सिवनी के लिये मन्त्री तो मन्त्री अधिकारी भी प्रभारी देकर ही काम चलाना चाहते हैं। ऐसी परिस्थिति में मतदाता अपने आप को ठगा हुआ सा महसूस कर रहा हैं।
does not make any difference
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