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Monday, October 11, 2010

राहुल गांधी की मंड़ली के युवा नेताओं में अपनी पैठ बनाना तो दूर उन्हें पहचानते तक नहीं हैं हरवंश सिंह

राहुल का दौरा क्यों? सियासी हल्कों में चर्चा-बीते दिनों कांग्रेस के भावी कर्णधार राहुल गांधी का ना सिर्फ सिवनी का दौरा हुआ वरन काफी प्रयासों के बाद भी उनका रात्रि विश्राम का कार्यक्रम भी नहीं बदल पाया। जिले के आला नेतृत्व के लिये यह दौरा काफी चौंकाने वाला था। पहले तो प्रदेश में सिवनी जिले का चयन और फिर उसमें लखनादौन में कार्यक्रम और जिला मुख्यालय में रात्रि विश्राम क्यों हुआर्षोर्षो इसे लेकर जिले के कांग्रेंसी हल्कों सहित विपक्ष में चर्चायें जारी हैं। सियासी हल्कों में जारी चर्चाओं को यदि सही माना जाये तो इस तथ्य पर विश्वास करना पड़ेगा कि पिछले लंबे असेZ से कभी कांग्रेस के गढ़ माने जाने वाले जिले में पिछले 15.20 सालों से कांग्रेस की दुर्गति क्यों हो रही है? वे यह जानना चाहते थे। लंबे समय से इस बाबत शिकायतें प्रप्त हो रहीं थीं। प्रदेश के इस दौरे ज्यादातर वे ही जिले शामिल किये गये थे जहां से कांग्रेस लंबे समय से हार रही हैं। गांधी परिवार के लिये सिवनी जिले का एक विशेष महत्व हैं। इन्दिरा गांधी 1977 एवं 1979 में सिवनी आयीं थीं। 1980 की लोकसभा और विधानसभा की पाचों सीटें कांग्रेस जीती थी। फिर देश के प्रधानमन्त्री बनने के बाद 1985 के विस चुनाव में जब स्व. राजीव जी ने जब कांग्रेस के वोट बैंक आदिवासी वर्ग पर पकड़ बनाये रखने के प्रयास किये थे तब भी उन्होंने लखनादौन को ही चुना था। इस चुनाव में भी कांग्रेस ने जिले की पाचों सीटें जीती थीं। इसके बाद दिसम्बर 2002 में श्रीमती सोनया गांधी लखनादौन आयीं थीं लेकिन 2003 के विस चुनाव में ना केवल जिले की दोनों आदिवासी सीटें, लखनादौन और घंसौर कांग्रेस हार गई थी वरन दो सामान्य सीटें बरघाट एवं सिवनी भी हार गये थे। जिले में सिर्फ हरवंश सिंह की केवलारी सीट भर जीते थे। अगले 2008 के चुनाव में भी हरवंश सिंह चुनाव जीते थे लेकिन 2004 और 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस केवलारी से हार गई थी। राजनैतिक विश्लेषकों का मानना हैं कि राहुल गांधी ने भी लखनादौन का चयन इसलिये किया था क्योंकि 77 की जनता लहर और 90 की राम लहर में भी कांग्रेस का अजेय गढ़ रहने वाली कांग्रेस पिछले दो चुनावों से क्यों हार रही हैं र्षोर्षो राहुल गांधी, गांधी परिवार की तीसरी पीढ़ी के सदस्य हैं जिन्होंने कांग्रेस को मजबूत बनाने के लिये जिले का दौरा किया हैं।

क्या राहुल की मण्डली के नेताओं को पहचानते भी नहीं हैं हरवंश?जिले के एकमात्र कांग्रेस विधायक और विस उपध्यक्ष हरवंश सिंह राहुल गांधी के कार्यक्रम में कटे कटे से रहे। उन्हें वो तव्वजो नहीं मिली जिसके वे आदी हो चुके थे। राहुल गांधी की तो छोड़ो उनकी अन्तरंग मंड़ली में भी हरवंश सिंह की धुसपैठ तो दूर उन्हें वे पहचानते तक नहीं हैं। कोई यदि इस बात को बताता तो शायद ही जिले का कोई कांग्रेसी इस बात पर विश्वास करता। लेकिन लखनादौन हेलीपेड पर इसे कई लोगों ने साक्षात देखा हैं। एक प्रत्यक्षदशीZ के अनुसार हेलीकाफ्टर से उतर कर जब राहुल गांधी पब्लिक में मिलने लगे थे तब कुर्ते पाजामा पहने राहुल के साथ आये एक युवा नेता एक कोने में जब गुफ्तगू कर रहे थे तो हरवंश सिंह भी तपाक से उनकी ओर लपके और उन्हें कनिष्क जी कनिष्क जी कहकर बुलाने लगे। तीन चार बुलाने पर भी जब कोई जवाब नहीं मिला तो उन्हें यह बताया गया कि ये कनिष्क जी ब्लकि जितेन्द्र सिंह जी हैं जो कि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सचिव हैं और राहुल जी से संबन्द्ध हैं। इतना ही नहीं वरन जितेन्द्र सिंह जी राजस्थान से निर्वाचित लोक सभा सदस्य भी हैं जिन्होंने हरवंश सिंह की इस हरकत के बाद उनसे बात करना भी उचित नहीं समझा। गांधी परिवार में अपनी पैठ का रुतबा बताकर अपने विरोधियों को चमकाते रहने वाले हरवंश की यह गत देखकर कांग्रेसियों के अलावा युवक इंकाइयों में तो चटखारे लेकर तरह तरह की चर्चायें होते देखीं जा सकतीं हैं।

कांग्रेसियों के ही षड़यन्त्र का शिकार होते रहें हैं महाकौशल के आदिवासी इंका नेता -लखनादौन के वन विद्यालय में राहुल गांधी विशेष तौर पर 18 से 35 आयु वर्ग के आदिवासी युवकों से मिलना चाहते थे। वे यह भी जानना चाहते थे कि आदिवासी वर्ग क्यों कांग्रेस से कट कर गौंड़वाना गणतन्त्र पार्टी की ओर आकषिZत हुआ। हरवंश सिंह उनके परिजन यह बात भली भान्ति समझते थे कि कहीं आदिवासी युवकों ने उनके द्वारा आदिवासी नेताओं का उपयोग कर कैसे दर किनार किया जाता थार्षोर्षो इसकी पोल ना खोल दें। वरन इस सूची में स्व. वसन्तराव उइके से लेकर मेहतलाल बरकड़े तक के नाम शामिल हैं। जिले की कांग्रेसी राजनीति में हरवंश सिंह का कोई विकल्प ना होने के कारण शोषण होने के बावजूद भी इनकी यह मजबूरी हैं कि वे इनके साथ ही बनें रहें। फिर भी कोई पोल ना खोल दे इस डर से राहुल गांधी के आनें से पहले तक रजनीश सिंह इसी पण्डाल में बने रहे तथा युवकों को समझाते रहें कि खिलाफ में कुछ नहीं बोलना हैं। इसी बीच पंड़ाल में किसी युवक ने जोर से चिल्ला कर कहा कि रजनीश मरावी को तो बाहर करो। तब कहीं जाकर कार्यक्रम के युवा इंका के प्रभारी ने उन्हें पंड़ाल से बाहर करवाया। महाकौशल अंचल के कई वरिष्ठ आदिवासी कांग्रेसी नेता हरवंश सिंह से प्रताड़ित होकर चुनाव हार चुके हैं। इनमें श्रीमती उर्मिला सिंह,जो कि आज हिमाचल प्रदेश की राज्यपाल हैं, प्रेम नारायण ठाकुर,जो आज छिन्दवाड़ा जिले में भाजपा से विधायक हैं,बालाघाट जिले के स्व. गनपत सिंह उइके, मंड़ला जिले के स्व. छोटेलाल उइके, दयाल सिंह तुमराची आदि कई नेता शामिल हैंजो कि इनके षड़यन्त्र का शिकार हाकर काल के गाल में समा गयें हैं। यहां यह भी विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं सन 1996 के लोक सभा चुनाव में सिवनी लोकसयभा क्षेत्र से केन्द्रीय मन्त्री कु. विमला वर्मा के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले आदिवासी नेता शोभाराम भलावी ने 45 हजार वोट लेकर कांग्रेस को हरवा दिया था। इस चुनाव में हरवंश सिंह पर भलावी को मदद करने के आरोप लगे थे जो बाद मे भलावी को पुरुस्कृत कराने से प्रमाणित भी हो गये थे। पुरुस्कृत कराने का कारण यह था कि भलावी ने इस चुनाव में हरवंश सिंह के विधानसभा क्षेत्र केवलारी से 12 हजार वोट ले लिये थे। यहां यह भी उल्लेखनीय हैं कि इसी चुनावके बाद यह आभास हुआ कि आदिवासी यदि लामबन्द हो जायें तो कांग्रेस को हराया जा सकता हैं। इसी आधार पर गौंड़वाना गणतन्त्र पार्टी ने समूचे महाकौशल क्षेत्र में कांग्रेस को भारी चुनौती दी और कांग्रेसी क्षत्रपों ने ही अपनी ही पार्टी के आदिवासी नेताओं को निपटाने के लिये उन्हें रसद भी उपलब्ध करायी इसीलिये 2003 के विस चुनाव में जबलपुर संभाग में गौगपा तीन सीटें जीत गईं थी और कई सीटों पर कांग्रेस की हार का कारण बन गई थी। अब जब राहुल गांधी इसी बात का पतालगाने आ रहें तो भला रसद पहुचाने वाले इंका नेता तो हलाकान होंगें ही।



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