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Monday, February 4, 2013


कांग्रेसियों द्वारा कांग्रेसियों को हरा कर कांग्रेस को ही निपटा देने संबंधी हरवंश सिंह के बयान की जिले के राजनैतिक हल्कों में चर्चा
साल का वह एक दिन 30 जनवरी का होता था जब समूचा शहर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को अपने श्रृद्धांजली अर्पित कर उन्हें नमन करता था। लेकिन अब 30 जनवरी को ना तो डिस्लरी का भैंपू सुनायी देता है और ना ही डालडा फेक्टरी का सायरन क्योंकि ये दोनों ही फेक्टरियां अब बंद हो चुकीं हैं। यह सच्चायी हमें यह सोचने को मजबूर कर देंती हैं कि हम अपने जिले के विकास के लिये कुछ नया लाना तो दूर पुराना भी सहेज कर नहीं रख पायें हैं। हम मतदाताओं का काम तो जनप्रतिनिधियों को चुनने का रहता हैं। हमारी समस्याओं को प्रदेश और केन्द्र सरकार तक पहुंचाना और उनका निराकरण कराना हमारे जनप्रतिनिधियों का काम होता हैं। जिले में कांग्रेस और भाजपा में कोई और समानता हो या ना हो लेकिन एक समानता जरूर दिखायी दे रही हैं कि दोनों ही पार्टियों में जब भी कोई समिति गठित होती है तो वह जम्बो जेट ही होती हैं। अब देखना यह है कि कांग्रेस और भाजपा में किसकी जम्बो जेट फौज चुनाव की जंग जीतती हैं। हरवंश सिंह ने कहा है कि कांग्रेसियों द्वारा कांग्रेसियों को निपटाने के कारण आज कांग्रेस ही निपट गयी है। कहा जा रहा है कि उनके इस बयान की पुष्टि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया ने भी यह कह कर दी हैं कि हरवंश सिंह ने क्या गलत कहा है। 
नया लाना तो दूर पुराना भी सहेजकर नहीं रख पाये हम-आज से कई बरस पहले साल में एक दिन सुबह 11 बजने के एक मिनिट पहले,11बजे और 11 बजकर दो मिनिट पर शहर की डिस्लरी का भौंपू सुनायी देता था। फिर इसमें डालडा फेक्टरी का सायरन भी शामिल हो गया था। साल का वह एक दिन 30 जनवरी का होता था जब समूचा शहर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को अपने श्रृद्धांजली अर्पित कर उन्हें नमन करता था। लेकिन अब 30 जनवरी को ना तो डिस्लरी का भौंपू सुनायी देता है और ना ही डालडा फेक्टरी का सायरन क्योंकि ये दोनों ही फेक्टरियां अब बंद हो चुकीं हैं। यह सच्चायी हमें यह सोचने को मजबूर कर देंती हैं कि हम अपने जिले के विकास के लिये कुछ नया लाना तो दूर पुराना भी सहेज कर नहीं रख पायें हैं। जिले के औद्योगिक विकास के इस पिछड़ेपन के लिये कौन दोषी है? इस पर जरूर विवाद हो सकता हैं। इसका दोष कांग्रेस भाजपा पर और भाजपा कांग्रेस पर मढ़ सकती हैं लेकिन यह कहने में कोई संकोच नहीं होना चाहिये इसके ना सिर्फ कांग्रेस और भाजपा वरन हम सभी दोषी हैं। जिले के जनप्रतिनिधि यदि दोषी हैं तो हम सभी मतदाता भी इस बात के लिये बराबरी के दोषी हैं कि हम ऐसे नाकारा जनप्रतिनिधियों को बार बार चुनकर भेज देते हैं। जब बिना कुछ ही चुनाव जीते जा सकते हैं तो भला नेताओं को कुछ करने की जरूरत ही क्यों महसूस होगी? विकास के लिये आवश्यक बड़ी रेल लाइन आज भी विज्ञप्तियों और छोटे मोटे आंदोलनों तक ही सीमित रह गयी हैं तो उत्तर दक्षिण गलियारे के तहत बन रही फोर लेन का विवाद भी अभी तक सुलझा नहीं हैं। मामले चाहे प्रदेश सरकार के कारण लंबित हों या केन्द्र सरकार के इसके लिये क्या जिले के हमारे जनप्रतिनिधि दोषी नहीं हैं? हम मतदाताओं का काम तो जनप्रतिनिधियों को चुनने का रहता हैं। हमारी समस्याओं को प्रदेश और केन्द्र सरकार तक पहुंचाना और उनका निराकरण कराना हमारे जनप्रतिनिधियों का काम होता हैं। जबकि आज हमारे जिले का प्रतिनिधित्व तीन सांसद और चार विधायक कर रहें हैं। सन 2013 और 14 चुनावी साल हैं इसमें हमें हमारे जनप्रतिनिधियों से हिसाब लेना चाहिये नहीं तो चुनाव के समय फिर से एक बार गल्ती दोहरा कर हमें आने वाले पांच सालों तक एक बार फिर पछताने के अलावा कुछ हाथ नहीं आने वाला हैं। 
इंका और भाजपा में से किसकी जम्बो जेट फौज जीतेगी चुनावी जंग?-जिले में कांग्रेस और भाजपा में कोई और समानता हो या ना हो लेकिन एक समानता जरूर दिखायी दे रही हैं कि दोनों ही पार्टियों में जब भी कोई समिति गठित होती है तो वह जम्बो जेट ही होती हैं। इन दिनों जिले में भाजपा की मंड़ल समितियों की घोषणायें हो रही हैं। सभी समितियों में भारी भरकम मात्रा में कार्यकर्त्ताओं को पद देकर संतुष्ट किया जा रहा हैं। इसी तरह कांग्रेस में भी संगठन की मोर्चा समितियों सहित सभी में ढ़ेरों पदाधिकारी बना दिये गये थे। दोनों ही पार्टियों की यह कार्यवाही आने वाले विस और लोस चुनावों को ध्यान में रख कर की जा रही हैं। भाजपा में मंड़ल समितियों में अध्यक्ष के अलावा 6 उपाध्यक्ष,2 महामंत्री,6 मंत्री,1 कोषाध्यक्ष सहित 60 सदस्यों की समिति बन रहीं तो वहीं जिले में अध्यक्ष सहित 91 सदस्यीय कार्यकारिणी समिति बनना है जिसमें 8 उपाध्यक्ष, 3 महामंत्री,8 मंत्री एवं 1 कोषाध्यक्ष की नियुक्ति होगी। जिले में भाजपा के 24 मंड़ल हैं। इनमें  1 हजार 4 सौ 40 कार्यकर्त्ताओं को पदों से नवाजा गया हैं। जिले में 91 इस तरह कुल 1 हजार 5 सौ 31 नेताओं को पदों पर बिठाया जा रहा हैं। इसी तरह कांग्रेस में भी जिले एवं ब्लाक की भारी भरकम समितियों के अलावा सेवादल,महिला कांग्रेस,युवक कांग्रेस एवं एन.एस.यू.आई में नेताओं को पदों पर बिठाया गया हैं। समितियों में संतुलन के नाम पर अभी भी नियुक्तियों का दौर चालू ही हैं। एक बात यह भी है कि इन दिनों कांग्रेस और भाजपा दोनों को ही पार्टियों को प्रदेश और केन्द्र सरकार के खिलाफ जिले में आंदोलन करना पड़ता हैं। दोनों ही पार्टियों में आलम एक सा ही हैं। हजारों पदधिकारियों वाली भाजपा और कांग्रेस के आंदोलन के सैकड़ों लोग भी शिरकत नहीं करते हैं। और तो और अपनी अपनी पार्टी के महापुरुषों की जयंती और पुण्य तिथि के अवसर पर पार्टी कार्यालयों में आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में तो संख्या अगुलियों पर गिनने लायक ही रहती हैं। इस पर अंकुश ना तो जिला भाजपा अध्यक्ष नरेश दिवाकर लगा पा रहें हैं और ना ही इंकाध्यक्ष हीरा आसवानी। इससे क्या ऐसा प्रतीत नहीं होता हैं कि पदाधिकारियों की लंबी फौज को अपने महापुरुषों और नेताओं के प्रति कोई श्रृद्धा नहीं हैं क्योंकि पार्टियों में उन्हें पद उनके आकाओं के रहमोकरम पर मिले हैं और उनकी इस लापरवाही से उनके आका जब नाराज नहीं होते हैं तो भला उनकी राजनैतिक सेहत पर क्या असर पड़ेगा? अब देखना यह है कि कांग्रेस और भाजपा में किसकी जम्बो जेट फौज चुनाव की जंग जीतती हैं।
कांग्रेसी ही कांग्रेस की हार का कारण सबंधी हरवंश का बयान चर्चित-प्रदेश के वरिष्ठ कांग्रेस नेता एवं विस उपाध्यक्ष ठा. हरवंश सिंह का पिपरिया में दिया गया एक बयान इन दिनों अखबारों की सुर्खियों में है। अपने बयान में हरवंश सिंह ने यह कहा था कि कांग्रेसियों द्वारा कांग्रेसियों को निपटाने के कारण आज कांग्रेस ही निपट गयी है। कहा जा रहा है कि उनके इस बयान की पुष्टि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया ने भी यह कह कर दी हैं कि हरवंश सिंह ने क्या गलत कहा है। यहां यह उल्लेखनीय है कि पिछले दस सालों हरवंश सिंह जिले के इकलौते कांग्रेसी विधायक हैं। जिले से कांग्रेस की टिकिट पर चुनाव लड़कर लोकसभा,विधानसभा और नगर पालिका अध्यक्ष का चुनाव हारने वाले नेता भी उनके इस बयान को सही मानते है। फर्क सिर्फ इतना है कि हारने वाले नेताओं की अगुंलिया किसी और कांग्रेसी के बजाय उनकी ओर ही सालों से उठती रहीं हैं। इस जिले में एक विशेष बात यह और रही हैं कि बागी होकर या भीतरघात करके कांग्रेस को हराने वाले नेताओं को पुरुस्कृत भी किया जाता हैं। इस कारण अब जिले में कांग्रेस के यह हाल हो गये हैं कि स्थानीय निकायों में कांग्रेस का बहुमत होने के बाद भी अध्यक्ष या उपाध्यक्ष बनने के लिये पार्टी के लोगों को ही पैसा देना पड़ता है जब उसे वोट मिलते हैं। इसीलिये जिले में कांग्रेस तो नेस्त नाबूत हो गयी है लेकिन धनबल और बाहुबल पर राजनीति करने वाले नेता ही सिरमौर हो गये हैं। “मुसाफिर“
साप्ताहिक दर्पण झूठ ना बोले
05 फरवरी 2013 से साभार

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