शिवराज की प्रशासनिक पकड़ ना होने से भ्रष्टाचार का चरम पर पहुंचना भाजपा को पड़ सकता है भारी?
भाजपा नेता लोगों को टका सा जवाब
देते हैं कि अधिकारी सुनते ही नहीं
सिवनी । प्रदेश में भाजपा की सरकार बने 9 साल पूरे हो गये हैं। लेकिन सरकार की प्रशासनिक अमले पर पकड़ ना बन पाने के कारण आम जनता तो दूर भाजपायी तक त्रस्त हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की यह कमी भाजपा को भारी पड़ सकती हैं।
प्रदेश में स्थापित 10 साल की कांग्रेस की दिग्गी सरकार को भाजपा की तेज तर्रार साध्वी उमा भारती ने उखाड़ फेंका था। उस वक्त भाजपा का यह नारा खूब लोकप्रिय हुआ था कि “सरकार तुम बदलो, व्यवस्था हम बदलेंगें“। प्रदेश के मतदाताओं ने सरकार तो बदल दी लेकिन भाजपा व्यवस्था अभी तक नहीं बदल पायी हैं।
प्रदेश की मुख्यमंत्री की कुर्सी पर उमा भारती तो कुछ समय ही बैठ पायीं। हुबली कांड़ के कारण उन्हें स्तीफा देना पड़ और उनकी जगह बाबूलाल गौर मुख्यमंत्री बने। लेकिन कुछ ही समय बाद उन्हें भी गद्दी छोड़नी पड़ी और शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बने और लगभग सात साल वे मुख्यमंत्री हैं।
इस दौरान शिवराज द्वारा बनायी गयी लोक लुभावन योजनाओं के कारण उन्हें लोकप्रियता भले ही हासिल हो गयी हो लेकिन प्रशासनिक अमले पर अपनी पकड़ ना बना पाने के कारण आम आदमी त्रस्त हैं।
आम आदमी त्रस्त होकर जब भाजपा के जनप्रतिनिधियों या नेताओं के पास निराकरण के लिये जाता हैं तो उन्हें एक टका सा जवाब मिल जाता हैं कि क्या करें अधिकारी कुछ सुन ही नहीं रहें हैं। प्रशासनिक अमले की इस निरंकुशता के चलते स्थानीय स्तर पर सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं का कोई नियंत्रण ही नहीं रह गया हैं। कहा तो यहां तक जा रहा है कि प्रदेश स्तर पर भाजपा नेताओं द्वारा की गयी शिकायतें भी कारगर साबित नहीं हो पा रहीं हैं। बताया जाता है कि जिले के शीर्ष अधिकरियों के तार सीधे भोपाल से जुड़े होने के कारण वे किसी की परवाह ही नहीं करते हैं।
प्रदेश सरकार की प्रशासन पर पकड़ ना होने से आम आदमी के साथ साथ भाजपा के नेता और कार्यकर्त्ता भी त्रस्त हैं। इससे ना केवल भ्रष्टाचार चरम पर पहुंच गया है वरन लोक लुभावन योजनाओं का लाभ लेने के लियें भी लोगों को चढ़ोत्री चढ़ाना उनकी मजबूरी बन गयी हैं।
भाजपा के शासन काल के दौरान ही प्रदेश में अधिकारियो के यहां डाले गये लोकायुक्त या आयकर अधिकारियों के छापों में उनके यहां करोड़ों रुपयों की आय से अधिक संपत्ति पायी है। और तो और परिवहन विभाग के बाबू और नगर निगम के चपरासी तक केरोड़ों में खेलते पकड़े गये हैं। यह प्रदेश में निरंकुश भ्रष्टाचार के आरोपों की पुष्टि ही करती हैं।
इतना ही नहीं वरन प्रदेश के एक दर्जन से अधिक मंत्री लोकायुक्त की जांच के घेरे में हैं। बताया जाता है कि राजनैतिक दवाब के चलते अभी तक ये मामले अभी भी लंबित पड़े पड़े हैं। कई दर्जन अधिकारियों के खिलाफ लोकायुक्त की जांच पूरी हो हो गयी हैं और वे दोषी भी पाये गये हैं लेकिन प्रदेश सरकार की लोकायुक्त को अनुमति ना मिलने कारण मामले कोर्ट तक नहीं पहुंच पाये हैं।
प्रदेश सरकार और उसके मुखिया शिवराज सिंह चौहान की यह कमजोरी आने वाले समय में भाजपा को भारी भी पड़ सकती हैं।
No comments:
Post a Comment