धार्मिक उत्सवों से समाप्त होती धर्मिकता ना केवल चिंता का विषय है वरन इसे पुर्नजीवित करने के प्रयास करना जरूरी है
आजकल यह देखने मे आ रहा है कि धार्मिक उत्सवों में से धार्मिकता विलुप्त होते जा रही है और ये सिर्फ उत्सव ही बच गये हैं। सिवनी का दश्हरा ऐतिहासिक और पूरे प्रदेश में प्रसिद्ध था लेकिन धीरे धीरे यह अपनी पहचान खोते जा रहा है। प्रशासन के लिये तो यह मुश्किल काम हो सकता है कि एक ही दिन में दो आयोजनों को कैसे संपन्न करायें? लेकिन क्या एक ही धर्म के दो कार्यक्रमों को एक साथ या कुछ आगे पीछे संपन्न नहीं करा सकते ? यदि ऐसा संभव हो जाये तो व्यायाम शालाओं में मुहुर्त में ही शस्त्र पूजन भी हो जायेगा और दशहरा भीं मुहूर्त में मन जायेगा तथा इसकी ऐतिहासिकता और प्रसिद्धि भी धीरे धीरे पुनः स्थापित हो जायेगी। महाराष्ट्र और हरियाणा के विस चुनावों में जिले के कुछ भाजपा नेताओं को भी अहम जिम्मेदारी दी गयी है। लेकिन कांग्रेस से टीम राहुल की हिना कांवरे ही गयीं हैं। इससे ऐसा लगने लगा है कि कांग्रेस अलाकमान की नजरों में जिले का राजनैतिक महत्व बहुत कम हो गया है। दीपावली के बाद नपा चुनावों को लेकर आचार संहिता लगने की संभावना है। इस बीच अध्यक्ष के लिये आरक्षण के लाट भी शायद डाल दिये जायेंगें और तब पूरी तस्वीर स्पष्ट हो जावेगी।इसके बाद ही राजनैतिक दलों के साथ साथ सभी नेताओं की राजनैतिक सक्रियता भी दिखने लगेगी।
धार्मिक उत्सवों में समाप्त होती धार्मिकता चिंता का विषय:-आजकल यह देखने मे आ रहा है कि धार्मिक उत्सवों में से धार्मिकता विलुप्त होते जा रही है और ये सिर्फ उत्सव ही बच गये हैं। सिवनी का दश्हरा ऐतिहासिक और पूरे प्रदेश में प्रसिद्ध था लेकिन धीरे धीरे यह अपनी पहचान खोते जा रहा है। पिछले कुछ सालों से यह देखने में आ रहा है कि जब पूरे देश में दशहरा मनाया जाता है तो उसके दूसरे दिन सिवनी में दशहरा मनाने का निर्णय ले लिया जाता है। इस साल भी कुछ ऐसा ही हुआ। इस कारण होता यह है कि गांव के लोग दशहरे के दिन आते हैं और निराश होकर लौट जाते हैं। उन्हें इस बात का पता ही नहीं रहता कि शहर में आज नहीं ब्लकि कल मनाया जाने वाला हैं। ऐसे आयोजनों में यदि भटकाव आता है तो धर्म गुरु राह दिखाते हैं। कई साल पहले शहर में मां दुर्गा के मंड़पों में नौ दिनों तक ना केवल बेतुके फिल्मी गाने बजते थे ब्लकि कई स्थानों पर फूहड़ नृत्य भी हुआ करते थे। तब जगतगुरू शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी सरस्वती ने यह कहा कि मां जगदम्बा के पंड़ालों में फिल्मी गीत नहीं बजना चाहिये औ फूहड़ नृत्य नहीं होना चाहिये ब्लकि जस और भजन बजना चाहिये ताकि धार्मिक वातावरण बने और दर्शक पूरे श्रृद्धा भाव से मां के दर्शन कर धर्म लाभ ले सकें। इसका यह असर हुआ कि आज शहर में ना तो कोई फूहड़ नृत्य होते है और ना ही फिल्मी गाने बजते है ब्लकि मां अम्बे के जस की गूंज पूरे शहर में भक्ति भाव का संचार करते हैं। इस साल भी पं. रविशंकर शास्त्री जी ने यह कहा था कि धर्मानुसार सभी पूजन पाठ मुहुर्त के हिसाब से होना चाहिये। लेकिन दशहरा एक दिन बाद मनाने का निर्णय ले लिया गया था। जानकार लोगों का दावा है कि ऐसा इसलिये होता है क्योंकि दुर्गा चौक के माता राज राजेश्वरी मंदिर के जवारे नवमी के दिन विसर्जन के लिये निकलते हैं। कई बार जब तिथियों के घटने के कारण दशहरा भी नवमी के दिन पड़ता है तो समस्या आती है। वैसे यदि देखा जाये तो सिर्फ सिंघानिया जी के मकान से स्व.महेश मालू के घर के सामने तक की कुछ मीटर की सड़क ही ऐसी कामन है जो दशहरे के जुलूस मार्ग और जवारे के मार्ग में शामिल रहती हैं। प्रशासन के लिये तो यह मुश्किल काम हो सकता है कि एक ही दिन में दो आयोजनों को कैसे संपन्न करायें? लेकिन क्या एक ही धर्म के दो कार्यक्रमों को एक साथ या कुछ आगे पीछे संपन्न नहीं करा सकते ? यदि ऐसा संभव हो जाये तो व्यायाम शालाओं में मुहुर्त में ही शस्त्र पूजन भी हो जायेगा और दशहरा भीं मुहूर्त में मन जायेगा तथा इसकी ऐतिहासिकता और प्रसिद्धि भी धीरे धीरे पुनः स्थापित हो जायेगी।
कांग्रेस में सिवनी का कम होता महत्व:-महाराष्ट्र और हरियाणा के विस चुनावों में जिले के कुछ भाजपा नेताओं को भी अहम जिम्मेदारी दी गयी है। जिले के भाजपा के के तीन पूर्व विधायकों डॉ. ढ़ालसिंह बिसेन और नरेश दिवाकर को महाराष्ट्र तथा नीता पटेरिया को हरियाणा में प्रभार दिया गया है। इसके अलावा नपा अध्यक्ष राजेश त्रिवेदी और पूर्व जिला भाजप अध्यक्ष सुजीत जैन भी महाराष्ट्र में चुनाव प्रचार करने गये हैं। केन्द्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद देश में विस के उप चुनावों में भाजपा को करारा झटका लगने के बाद ये चुनाव भाजपा के लिये प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गयें हैं। यहां यह उल्लेखनीय है कि इन दोनों ही प्रदेशों में कांग्रेस की सरकार है। इसी कारण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जरूरत से ज्यादा प्रचार को महत्व दे रहें हैं। जिसके कारण उन्हें आलोचना भी झेलनी पड़ी है। ऐसे महत्वपूर्ण मिशन में जिले के भाजपा नेताओं को भी प्रभार मिलना काफी महत्वपूर्ण हैं। दूसरी तरफ कांग्रेस के लिये भी ये चुनाव महत्वपूर्ण हैं लेकिन कांग्रेस के नेतृत्व ने जिले के किसी भी नेता को इन राज्यों में चुनाव में कोई जवाबदारी नहीं दी है। और तो और टीम राहुल से भी सिर्फ बालाघाट लोस क्षेत्र की कांग्रेस उम्मीदवार रहीं विधायक हिना कांवरे कांग्रेस के प्रचार में महाराष्ट्र गयीं हैं। इससे ऐसा लगने लगा है कि कांग्रेस अलाकमान की नजरों में जिले का राजनैतिक महत्व बहुत कम हो गया है।
दिवाली के बाद लग सकती है नपा चुनाव के लिये आचार संहिताः-दीपावली के बाद नपा चुनावों को लेकर आचार संहिता लगने की संभावना है। इस बीच अध्यक्ष के लिये आरक्षण के लाट भी शायद डाल दिये जायेंगें और तब पूरी तस्वीर स्पष्ट हो जावेगी।इसके बाद ही राजनैतिक दलों के साथ साथ सभी नेताओं की राजनैतिक सक्रियता भी दिखने लगेगी। वैसे तो वार्डों के आरक्षण के बाद से ही मोहल्लों में चुनावी रणवीरों ने अपने दांव पेंच दिखाने लगे है। हालांकि अभी किसी भी पार्टी ने अपने उम्मीदवार तय नहीं किये हैं लेकिन अपने अपने आकाओं के आश्वासन पर पार्षद बनने की उम्मीद रखने वाले नेताओं ने अपनी अपनी बिसात बिछाना चालू कर दी है। तब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि भाजपा और कांग्रेस इस चुनाव में क्या रणनीति अपनाते है और किन मुद्दों को उठाया जाता है। इसके अलावा यह भी महत्वपूर्ण होगा कि सिवनी के निर्दलीय विधायक मुनमुन राय इस चुनाव में सीधे मैदान में उतरते हैं या फिर कोई और रणनीति बना कर किसी को लाभ पहुचाने और किसी को नुकसान करने करने की बिसात बिछाते है? राजनैतिक विश्लेषकों की इन्हीं सब पर पैनी नजर है जो चुनावों के परिणामों को प्रभावित करन वाली साबित होंगीं।“मुसाफिर”
साप्ता. दर्पण झूठ ना बोले सिवनी
14 अक्टूबर 2014