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Wednesday, September 3, 2014

विधान सभा में मुनमुन ने बागरी जाति का मामला तो उठाया लेकिन उससे बागरी समाज के हित पूरे होते नहीं दिख रहें है
हाल ही में हुये विस सत्र में जिले के बागरी समाज के लोगों को अनुसूचित जाति के प्रमाण पत्र मिलना बंद हो जाने का मामला सिवनी के विधायक दिनेश मुनमुन राय ने उठाया। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने यह जवाब देकर मामले को समाप्त कर दिया कि केन्द्र सरकार की अधिसूचना जारी होने के बाद प्रमाण प. देना बंद किये गये हैं। बागरी समाज का यह विवाद  1998 के विस चुनाव के पहले से चल रहा है। इस रिपोर्ट के आधार पर भविष्य में प्रमाण पत्र जारी नही होंगें इसकी भनक जैसे ही समाज के लोगों को लगी वैसे ही पूरी समाज में हड़कंप मच गया। बागरी समाज के तत्कालीन अध्यक्ष स्व. हिम्मत सिंह बघेल के नेतृत्व में जिला मुख्यालय में एक विशाल जुलूस निकाला गया था। किसी पार्टी में की गयी कोई शिकायत पर भी नौ महीन बाद कार्यवाही होेती है यह पहली बार ही देखने सुनने को मिला है। जी हां प्रदेश भाजपा कार्यालय ने नवम्बर 2013 में की गयी किसी शिकायत पर सहकारी बैंक के पूर्व अध्यक्ष अशोक टेकाम और सिवनी के पूर्व पार्षद अजय डागोरिया सहित चार नेताओं को कारण बताओ नोटिस जारी किया है। लोग तो यह कहते भी देखे जा रहें है कि कांग्रेस में बहोरीबंद का बंद खुलता ही नजर नहीं आ रहा है कि जीत कैसे हुयी।
सवाल तो विस में उठा लेकिन बागरी समाज को मिला कुछ नहींः-हाल ही में हुये विस सत्र में जिले के बागरी समाज के लोगों को अनुसूचित जाति के प्रमाण पत्र मिलना बंद हो जाने का मामला सिवनी के विधायक दिनेश मुनमुन राय ने उठाया। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने यह जवाब देकर मामले को समाप्त कर दिया कि केन्द्र सरकार की अधिसूचना जारी होने के बाद प्रमाण प. देना बंद किये गये हैं। बागरी समाज का यह विवाद  1998 के विस चुनाव के पहले से चल रहा है। यहां यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि 1978 में केन्द्र की जनता पार्टी सरकार ने जिले की बागरी समाज को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल किया था। उसके बाद इस जाति के लोगों को अनुसूचित जाति के प्रमाण पत्र मिलना चालू हो गये थे जो कि बिना किसी बाधा के 1997 तक जारी रहे। इस दौन शिकायत होने पर प्रदेश सरकार द्वारा इस जाति की जांच के लिये वैष्ठव समिति का गठन किया था कि इस जाति के लोग अनुसूचित जाति के हैं या नहीं? जिला कलेक्टर मो. सुलेमान के कार्यकाल में वैष्ठव समिति ने  जांच हेतु बागरी बाहुल्य क्षेत्रों का भ्रमण किया था। इस कमेटी ने आपनी रिपोर्ट में इस जाति के लोगों को अनुसूचित जाति में शामिल करने योग्य नहीं माना था तथा इस आशय की रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंपी थी। इस रिपोर्ट के आधार पर भविष्य में प्रमाण पत्र जारी नही होंगें इसकी भनक जैसे ही समाज के लोगों को लगी वैसे ही पूरी समाज में हड़कंप मच गया। बागरी समाज के तत्कालीन अध्यक्ष स्व. हिम्मत सिंह बघेल के नेतृत्व में जिला मुख्यालय में एक विशाल जुलूस निकाला गया तथा समाज का पूरा आक्रोश केवलारी क्षेत्र के तत्कालीन विधायक एवं राज्य सरकार के ताकतवर मंत्री स्व. हरवंश सिंह के खिलाफ फूट पड़ा। यहां यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि केवलारी विस क्षेकत्र में सिवनी और केवलारी ब्लाक का बहुत बड़ा ऐसा इलाका शामिल था जिसमें बागरी समाज का बाहुल्य था। ऐन चुनाव के समय बागरी समाज के इस आक्रोश का थामना स्व. हरवंश सिंह के लिये राजनैतिक रूप से बहुत जरूरी था। वे प्रदेश सरकार की राजनैतिक मामलों की समिति के भी सदस्य थे। उन्होंने अपने प्रभाव का उपयोग करते हुये इस रिपोर्ट पर पुर्नविचार करने का प्रस्ताव लेकर उसे लंबित करा दिया था। इसके बाद उसी बागरी समाज के उनका ग्राम भोंगाखेड़ा में पगड़ी और शाल पहना कर सम्मान भी किया था। 1998 का चुनाव निपटने के बाद कब वैष्ठव समिति की रिपोर्ट अनुशंसा के साथ केन्द्र सरकार को भेज दी गयी और कब केन्द्र की एन.डी.ए. सरकार ने उसे मंजूर कर लिया? इसकी भनक तक किसी को नहीं लगी। जब प्रमाण पत्र मिलना फिर से बंद हो गये तब पता चला कि खेल खत्म हो गया है। तब से लेकर अब तक चाहे कांग्रेस हो या भाजपा उसके नेता इस सामज के लोगों को दिलाया ही देते आये हैं लेकिन किसी ने भी ऐसी पहल नहीं कह है जिससे उसे पुनः वो लाभ मिल सके। अब विधायक बनने के बाद मुनमुन ने यह मामला विधानसभा में उठाकर अखबारों की सुर्ख्राी तो बटोर ली लेकिन नतीजा सिफर ही निकला है। आज तक किसी ने भी यह मांग नहीं उठायी कि वैष्ठन समिति की रिपोर्ट पर आपत्तियों के कारण एक नयी जांच समिति बनायी जाये और उस जांच समिति के आधार पर प्रदेश सरकार अपनी नवीन अनुशंसा केन्द्र सरकार को भेजे ताकि बागरी समाज को एक बार फिर से अन.जाति के प्रमाण पत्र मिलना प्रारंभी हो सके।
विस चुनाव में भीतरघात करने का नोटिस मिला अशोक टेकाम को:-यह ताक शाष्वत सत्य है कि मां के गर्भ मे नौ महीने रहने के बाद ही शिशु का जन्म होता है। लेकिन किसी पार्टी में की गयी कोई शिकायत पर भी नौ महीन बाद कार्यवाही होेती है यह पहली बार ही देखने सुनने को मिला है। जी हां प्रदेश भाजपा कार्यालय ने नवम्बर 2013 में की गयी किसी शिकायत पर सहकारी बैंक के पूर्व अध्यक्ष अशोक टेकाम और सिवनी के पूर्व पार्षद अजय डागोरिया सहित चार नेताओं को कारण बताओ नोटिस जारी कर पूछा गया है कि क्यों ना आपके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाये? आरोप है कि उन्होंने विस चुनाव में भीतरघात किया है। हालांकि नोटिस में यह भी स्पष्ट नहीं है कि शिकायत किसने की है और किस विस क्षेत्र में इन नेताओं ने भीतरघात किया है या पूरे जिले में भाजपा की इस दुर्गति के लिये भी ये ही जवाबदार हैं?जिले के राजनैतिक क्षेत्रों में इन नोटिसों को आगामी सहकारी बैंक के चुनाव से जोड़ कर देखा जा रहा है। 
बहोरीबंद के बंद ही नहीं खुल पा रहें हैं कांग्रेस में:-वैसे तो विधानसभा के उप चुनावों के परिणाम देश में कांग्रेस के लिये संजीवनी का काम कर गये है।बिहार और पंजाब के साथ ही कांग्रेस ने मध्यप्रदेश में भी एक सीट पर जीत दर्ज की हैं। कांग्रेस ने भाजपा से बहोरीबंद सीट छीन कर जीत दर्ज की है। बहोरीबंद सीट की जीत को लेकर प्रदेश के स्टार प्रचारक एवं पूर्व मंत्री स्व. हरवंश सिंह के पहली बार विधायक बने रजनीश सिंह की प्रशंसा में एक समाचार प्रकाशित हुआ जिसमे युवा रजनीश को जीत का पूरा श्रेय देते हुये बताया गया कि कैसे उन्होंने वहां प्रयास कियें जो सफल हुये। जिले के कांग्रेस के दूसरे युवा विधायक योगेन्द्र सिंह बाबा, जो कि हिमाचल प्रदेश की राज्यपाल उर्मिला सिंह के बेटे हैं, ने विज्ञप्ति जारी कर बहोरीबंद सीट पद कांग्रेस की जीत को जनता की जीत बताया और कहा कि कांग्रेस की एकता और क्षेंत्रीय कार्यकर्त्ताओं की मेहनत से यह जीत पार्टी को मिली है। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि जिस हिस्से का उन्हें प्रभारी बनाया गया था वहां से पार्टी को भारी जीत हासिल हुयी है।वहीं दूसरी ओर जिला कांग्रेस कमेटी ने इस जीत पर कोई बयान भी जारी नहीं किया है। अब ऐसे हालात में लोग तो यह कहते भी देखे जा रहें है कि कांग्रेस में बहोरीबंद का बंद खुलता ही नजर नहीं आ रहा है कि जीत कैसे हुयी। “मुसाफिर”
Sabhar Darpan Jhoot Na Baole Seoni
02 Sep 2014

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