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Monday, August 30, 2010

नार्थ साउथ कारीडोर विवाद




अभी ना हार हुई ना जीत फिर कैसे जीत गये जयराम रमेश?


इंड़िया टू डे में प्रकाशित लेख से जिले वासी भौंचक सिवनी वासी भी हैं हतक्षेपकत्ताZ

सिवनी। फोर लेन मामले के सुप्रीम कोर्ट में लंबित रहते हुये एक राष्ट्रीय पत्रिका ने इस मामले में जयराम रमेश जीत बता दी हैं। दो केन्द्रीय मन्त्रियों के बीच की इस टकराहट में अटके उत्तर दक्षिण कॉरीडोर के मामले में दोनों में एक राय ना बनने से सरकार को अरबों रुपयों का चूना लग चुका हैें।


देश की प्रसिद्ध पत्रिका इंड़िश टू डे के 1 सितम्बर 2010 के अंक में राष्ट्र.पर्यावरण सक्रिय पहरुआ शीर्षक से एक लेख पेज नं. 14 में प्रकाशित हुआ हैं। इस लेख में पेज नं. 17 के पहले कालम में लिखा हैं कि,Þ ईसा के जन्म से दो सौ वर्ष से भी ज्यादा पहले रोमन सम्राट हेलियोगाबलस अपने पकड़े गये लोगों का कत्ल करवाना पसन्द करता था,क्योंकि उसे हरी घांस पर लाल रंग देखना पसन्द था।और जब रमेश के हरे भरे ऐजेंड़ा का सवाल आता हैं, तो डनहें भी खूब खून खराबा करवाने से कोई आपत्ति नहीं होती। एक केन्द्रीय मन्त्री का कहना हैं कि बोलने में तेज रमेश कई केबिनेट बैठकों को तू तू मैं मैं का अखाड़ा बनवा चुकें हैं।जब सड़क परिवहन और राजमार्ग मन्त्री कमलनसथ ने सिवनी(मध्यप्रदेश) से नागपुर(महाराष्ट्र)राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या सात को,जो संयोग वश पेंच टाइगर रिजर्व से होकर जाता हैं,चौड़ा करनें की अनुमति दीतो रमेश खफा हो गये। मामला सुप्रीम कोर्ट में गया जहां जहां हरियाली के योद्धा की जीत हुई। कमलनाथ के अनुसार यह सड़क कई दशकों से हैं। Þ जबकि वास्तविकता कुछ और ही हैं।


मामला नागपुर सिवनी के चौड़ीकरण का हैं ही नहीं। मामला हें प्रधानमन्त्री स्विर्णम चतुभुZज योजना के तहत बनने उत्तर दक्षिण का कारीडोर का हें जो कि श्रीनगर से कन्याकुमारी तक जायेगा। इस मार्ग की लंबाई 4 हजार कि.मी. हैं। जिसमें कई चरणों में कई स्थानों पर काम चल रहा हें हैं कुछ हिस्से तो बन कर पूरे होने की कगार मेें हैं। इसी के तहत सिवनी जिले के लखनादौन से खवासा नागपुर तक का रोड़ फोर लेन का बन रहा हैं। इस समय ना तो कमलनाथ भूतल परिवहन मन्त्री थे और ना ही जयराम रमेश वन एवं पर्यावरण मुन्त्री थे। इसमें जिले में बनने वाले हिस्से का सत्तर प्रतिशत मार्ग बन भी चुका हैं।


इसी बीच दिल्ली के एक एन.जी.ओ. वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इण्डिय़ा ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका लगायी थी। यह याचिका अभी भी लंबित हैं। दोनों मन्त्रालयों में एक मत ना होने से मामला लटक गया हैं। कॉरीडोर बनाने वाली कंपनियों को बाधा मुक्त जमीन उपलब्ध ना करा पाने के कारण अभी तक सरकार को लगभग दो अरब पचास करोड़ रुपये की हर्जाने के रूप में चपत लग चुकी हैं।


ना जाने क्यों कैसे इंड़िया टू डे ने इा मामले में सुप्रीम कोर्ट में हार जीत होने के पहले ही रमेश की जीत कैसे करा दी हैं?

हरवंश का नाम लेकर उनके नाम को राजनीति में जिदा ना रखने की जिले के भाजपाइयों को समझाइश दी अरविन्द मैनन ने

जिला भाजपा की नव निर्वाचित कार्यकारिणी की पहली बैठक संभागीय संगठन मन्त्री अरविन्द मैनन की उपस्थिति में राशि लॉन में संपन्न हुयी।बताया जाता है कि संगठन मन्त्री ने यह कहा कि कैसे जिले की चारों सीटें जीतना हैं इसकी रणनीति बनायें और अमल में जुट जायें।बार बार क्यों हरवंश सिंह का नाम लेकर उन्हें राजनीति में ज़िन्दा रख रहे हो। संभागीय संगठन मन्त्री के के इस कथन को लेकर तरह तरह की चर्चायें भाजपा कार्यकत्ताZओं के बीच होने लगीं हैं। कांग्रेस और भाजपा दोनो ही दलों में नूराकुश्ती के किस्से चर्चित रहने से अब तो ऐसा प्रतीत होने लगा हैं कि यह तो अब नूरा कुश्ती भी नहीं रह गई हैं वरन सब कुछ खुला खुला हैं और किसी को किसी की चिन्ता भी नहीं हैं। इससे ज्यादा राजनैतिक बेशर्मी की बात और भला क्या हो सकती हैंर्षोर्षो हिन्दी,हिन्दू,हिन्दुस्तान और राममन्दिर काश्मीर से धारा 370 हटाना और कामन कोड विल लागू करना भाजपा के जनसंध के समय से छ: मूल मन्त्र रहें हैं। जब जब विपक्ष में रहे तो सभी मुद्दे बुलन्द रहे और जब सत्ता में आये तो यह आड़ कर ली कि ये मुद्दे एन.डी.ए. के ऐजेन्डे में शामिल नहीं हैं और सरकार एन.डी.ए. की हैं। जिला इंका अध्यक्ष महेश मालू ने इसके विरोध में आयोजित बन्द को समर्थन देते हुये जो विज्ञप्ति जारी की थी उसमें यह उल्लेख किया कि 15 अगस्त के बाद इंका का एक प्रतिनिधि मंड़ल दिल्ली जायेगा और केप्द्रीय मन्त्री कमलनाथ और जयराम रमेश से भेंट कर मामले को शीघ्र सुलझाने का अग्रह करेगा।लेकिन अभी तक तारीख भी तय नहीं है।

हरवंश के बारे में मैनन के टके से जवाब से भौंचक हैं भाजपायी -
बीते सप्ताह में जिले में भाजपा की गतिविधियां कुछ अधिक ही रहीं हैं। जिला भाजपा की नव निर्वाचित कार्यकारिणी की पहली बैठक संभागीय संगठन मन्त्री अरविन्द मैनन की उपस्थिति में राशि लॉन में संपन्न हुयी। इस बैठक में जिले में संगठनात्मक गतिविधियों को संचालित करने के अलावा शिकवा शिकायतों का भी दौर चला। हाल ही में 15 अगस्त के ध्वजारोहण समारोह के मुख्य अतिथि को लेकर हुये विवाद पर चर्चा हुयी। कुछ नेताओं ने इसे जबरन का विवाद बनाना निरूपित किया तो कुछ नेताओं का यह भी मानना था कि प्रदेश में बड़े नेताओं की मिली भगत के कारण जिले में निष्ठावान कार्यकत्ताZओं को नीचा देखना पड़ता हैं। उल्लेखनीय हैं कि नगर भाजपा अध्यक्ष प्रेम तिवारी ने मुख्यमन्त्री को पत्र लिखकर आग्रह किया था कि विस उपाध्यक्ष हरवंश सिंह पर आपराधिक मामले दर्ज हैं इसलिये उन्हें सिवनी में मुख्यअतिथि ना बनाया जाये। इस पर इंका के नगर प्रवक्ता ने बयान जारी कर मुख्यमन्त्री सहित 28 मन्त्रियों पर मामले दर्ज होने का मुद्दा उछाल दिया। इसी बीच हरवंश सिंह बालाघाट में ध्वजारोहण करेंगें यह प्रकाशित हो गया। हरवंश सिंह की मुख्यमन्त्री सचिवालय के हवाले से उनसे पूछ किया जाना बताया गया तो नगर भाजपा अध्यक्ष ने इस निर्णय के लिये मुख्यमन्त्री का आभार व्यक्त कर दिया। दूसरे ही दिन सरकार ने फिर नये आदेश प्रसारित कर हरवंश सिंह को सिवनी जिला आवंटित कर दिया। सरकार के इस निर्णय से भाजपाइयों ने अपने आप को घोर अपमानित महसूस किया हैं। बताया जाता है कि ेकार्यकत्ताZओं की इस पीड़ा को दर किनार करते हुये इस पर संगठन मन्त्री ने यह कहा कि कैसे जिले की चारों सीटें जीतना हैं इसकी रणनीति बनायें और अमल में जुट जायें।बार बार क्यों हरवंश सिंह का नाम लेकर उन्हें राजनीति में ज़िन्दा रख रहे हो। संभागीय संगठन मन्त्री के के इस कथन को लेकर तरह तरह की चर्चायें भाजपा कार्यकत्ताZओं के बीच होने लगीं हैं। कुछ वरिष्ठ भाजपाइयों का तो यह भी ेकहना हैं कि हरवंश सिंह एक भी चुनाव खुद नहीं जीते हें वरन उन्हें जिताने में भाजपाइयों का टेका ही हमेशा रहा हैं। हारने वाले प्रत्याशियों द्वारा गिनाये गये हार के कारणों को दरकिनार कर दिया जाता था जो कि भाजपा के अगला चुनाव हारने के कारण बन जाते थे। यह सिलसिला पिछले विस चुनाव तक चलते रहा हैं। अब तो भाजपा में भी ऐसा मानने वालों की कमी नहीं हैं कि भाजपा का नेतृत्व ही एक सीट देकर जिले की शेष विस सीटें और लोकसभा सीट जीतने के लिये सौदा कर लेते हैं।और तो और जिले में संगठन के स्तर पर भी केवलारी क्षेत्र की उपेक्षा की जाती हैं। जबकि इसके विपरीत कांग्रेस के चुनाव के दौरान जिले के कई कांग्रेसियों ने हरवंश सिंह पर यह आरोप लगया हैं कि पूरे संगठन का केन्द्र केवलारी क्षेत्र को बना कर किया गया हें जबकि जहां से कांग्रेस पांच पांच बार से चुनाव हार रही हैं उन विस क्षेत्रों की चुनावों में अनदेखी की गई हैं। कांग्रेस और भाजपा दोनो ही दलों में नूराकुश्ती के किस्से चर्चित रहने से अब तो ऐसा प्रतीत होने लगा हैं कि यह तो अब नूरा कुश्ती भी नहीं रह गई हैं वरन सब कुछ खुला खुला हैं और किसी को किसी की चिन्ता भी नहीं हैं। इससे ज्यादा राजनैतिक बेशर्मी की बात और भला क्या हो सकती हैं?


एक बार फिर पुराने मुद्दों पर लौट कर आ रही हैं भाजपा -
हिन्दी,हिन्दू,हिन्दुस्तान और राममन्दिर काश्मीर से धारा 370 हटाना और कामन कोड विल लागू करना भाजपा के जनसंध के समय से छ: मूल मन्त्र रहें हैं। जब जब विपक्ष में रहे तो सभी मुद्दे बुलन्द रहे और जब सत्ता में आये तो यह आड़ कर ली कि ये मुद्दे एन.डी.ए. के ऐजेन्डे में शामिल नहीं हैं और सरकार एन.डी.ए. की हैं। एक चुनाव तो भाजपा ने एन.डी.ए. के उस ऐजेन्डे पर लड़ना भी स्वीकार कर लिया जिसमें भाजपा के ये सभी मूलमन्त्र ही गायब थे। उत्तर प्रदेश और केन्द्र में भी भाजपा के नेतृत्व में सरकार रही लेकिन इन मुद्दों के लिये भाजपा ने कभी सरकार भी दांव पर लगाने की कोशिश नहीं की जैसी कि कांग्रेस ने परमाणु करार के दौरान वामदलों के विरोध के भी सरकार को दांव पर लगा दिया था। लेकिन भाजपा समय समय पर इन मुद्दों पर कुछ ना कुछ करके अपनी प्रतिबद्धता दिखाती रहती हैं। ऐसा ही कुछ अभी काश्मीर के मुद्दे को लेकर जल रहा हैं। भाजपा ने राष्ट्रव्यापी काश्मीर बचाओ देश बचाओ आन्दोलन छेड़ा हैं। भाजपा ने यह चिन्ता भी व्यक्त की हें कि वहां से हिन्दुओं को खदेड़ा जा रहा हैं। लोक सभा में भाजपा की प्रतिपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने इस समस्या को नेहरू की देन बताया हैं। इसी के तहत जिले के गांधी चौक में भी भाजपा ने धरना देकर ज्ञापन दिया। इसमें राज्य सभा सदस्य अनुसुइया उइके उपस्थित रहीं। वैसे यह बात सही हैं कि इन दिनों काश्मीर के हालात खराबक हैं और इसकी जवाबदारी भी सरकार पर आती हें। भाजपा ने भी गठबंधन की सरकार काश्मीर में चलायी थी। हालात बेकाबू होने में जिम्मेदार विपक्ष की भूमिका तो यह होनी चाहिये कि पहले हालात को सुधारने म3ें सरकार का सहयोग करें और फिर उसे कठघरें में खड़ा करें कि उसकी किन खामियों की वजह से ऐसे बदतर हालात बने थे। लेकिन ऐसा प्रतीत होता हें कि काश्मीर मामले को उठाना भाजपा की राजनैतिक रणनीति के तहत उठाया गया कदम हों। क्योंकि सम्भवत: अगले महीने इलाहाबाद हाई कोर्ट में राम जन्म भूमि विविाद से सम्बंधित केस का फैसला आ जायेगा और उसके अनुरूप भाजपा को अपनी राम मन्दिर के मामले में रणनीति बनाना पड़ेगा। इसीलिये शायद उन छ: मूल सूत्रों की ओर लौटने की रणनीति के तहत ही काश्मीर मुद्दा उठाया गया हो वरना यह बात तो भाजपायी भी जानते हैं कि दिल्ली की सरकार में रह कर जब अपन काश्मीर का मुद्दा हल नहीं कर पाये तो भला शुक्रवारी के गांधी चौक से उसे कैसे हल कर लेंगें?


फोर लेन के लिये कब जायेगा इंकाई प्रतिनिधि मंड़ल दिल्ली? -फोर लेन को लेकर इंका का प्रतिनिधि मंड़ल कब दिल्ली जायेगार्षोर्षो इसे लेकर चर्चायें जारी हैं। जिला इंका अध्यक्ष महेश मालू ने इसके विरोध में आयोजित बन्द को समर्थन देते हुये जो विज्ञप्ति जारी की थी उसमें यह उल्लेख किया कि 15 अगस्त के बाद इंका का एक प्रतिनिधि मंड़ल दिल्ली जायेगा और केप्द्रीय मन्त्री कमलनाथ और जयराम रमेश से भेंट कर मामले को शीघ्र सुलझाने का अग्रह करेगा। लैकिन अभी तक ना तो प्रतिनिधि मंड़ल दिल्ली गया और ना ही कोई तिथि घोषित की गई हैंं। इसे लेकर तरह तरह की चर्चायें व्याप्त हैं।







Thursday, August 26, 2010

नार्थ साउथ कॉरीडोर निर्माण में वन एवं भूतल परिवहन मन्त्रालय के अड़़ंगें से अरबों का चूना लगेगा भारत सरकार को


सिवनी। सुप्रीम कोर्ट में एक राय ना बन पाने के कारण केन्द्र सरकार प्रतिदिन लाखों रुपयों के हर्जाने की देनदार होती जा रही हैं। कलेक्टर द्वारा प्रदेश सरकार को भेजे पत्र में उल्लेखित दरों के अनुसार अब तक 87 करोड़ 90 लाख रुपये का हर्जाना देय होगा। सरकार द्वारा बाधा मुक्त भूमि उपलब्ध ना कराने के कारण समय पर टोल वसूली प्रारंभ ना कर पाने के कारण यदि ठेकेदारों ने पूरी 105 कि.मी. मीटर की लंबाई पर यदि हर्जाना क्लेम किया तो वह राशि 2 अरब 47 करोड़ रूपये के आस पास होगी। प्रदेश सरकार द्वारा कलेक्टर के पत्र पर उचित पहल ना करने से भी यह स्थिति निर्मित हुयी हैं। इससे जल्दी छुटकारा पाने हेतु शीघ्र ही आवश्यक कार्यवाही करने का अनुरोध प्रधानमन्त्री,सोनिया गांधी एवं राहुल गांधी से किया गया हैं।


जिले के वरिष्ठ इंका नेता आशुतोष वर्मा ने अपने माह सितम्बर के पूर्व पत्र की ओर ध्यानाकषिZत करात हुये अपने पत्र में उल्लेख किया है कि समूचे देश में चारों महानगरो और चारों दिशाओं को न्यूनतम लंबाई के मार्गों को जोड़कर ईंधन एवं समय की बचत के लिये प्रधानमन्त्री स्विर्णम चतुर्भुज योजना के तहत एक्सप्रेस हाई वे बनाये जा रहे हैं। इसके तहत कन्याकुमारी से काश्मीर तक बनने वाला चार हजार कि. मी. लंबा उत्तर दक्षिण कॉरीडोर मध्यप्रदेश के सिवनी जिले से होकर नागपुर से कन्याकुमारी तक बन रहा हैं। यह मार्ग सिवनी जिले में कुरई विकासखंड़ में स्थित पेंच नेशनल पार्क की सीमाओं के बाहर से जा रहा हैं। जिले में यह कॉरीडोर मार्ग लगभग 63 किलोमीटर बन चुका हैं और मात्र 38 किलो मीटर बनना शेष हैं।


सुप्रीम कोर्ट में लंबित इस पकरण की विस्तृत जानकारी देते हुये इंका नेता वर्मा ने भेजे गये फ्ेक्स में लिखा हैं कि इस कारीडोर के निर्माण को रोकने के लिये एक एन.जी.ओं. वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंड़िया दिल्ली द्वारा सुप्रीम कोर्ट में उक्त याचिका आई.ए.क्र. 1124/09 पेश की गई हैं जो कि विचाराधीन हैं। कोर्ट में प्रस्तुत इस याचिका में भारत शासन के अलावा सचिव वन एवं पर्यावरण विभाग, राष्ट्रीय राजमार्ग विकास प्राधिकरण एवं नेशनल टाइगर कंजरवेशन अर्थारिटी को पक्षकार बनाया गया हैं एवं कोर्ट में इन सभी के अलग अलग वकील अपना पक्ष रखते हैं। इस याचिका के जवाब में संप्रग शासनकाल के प्रथम कार्यकाल में राष्ट्रीय राजमार्ग विकास प्राधिकरण ने शपथ पत्र के साथ जो जवाब दिया था उसमें प्रथम आप्शन के रूप में फ्लाई ओवर(एलीवेटेड हाई वे) और आप्शन दो में वर्तमान एन.एच. के चौड़ीकरण का प्रस्ताव किया था। सी.ई.सी. की रिपोर्ट के बाद सिवनी के जनमंच नामक संगठन की ओर से इंटरवीनर बनने का आवेदन लगाया गया। इस पर माननीय सुप्रीम कोर्ट ने अपने एमाइकस क्यूरी श्री साल्वे को यह निर्देश दिया कि वे सी.ई.सी. और एन.एच.ए.आई. के साथ बैठक कर एलीवेटेड हाई वे सहित अन्य विकल्प तलाशने का प्रयास करें। एक बैठक के बाद एन.एच.ए.आई. ने 9 अक्टूबर 2009 को एक शपथ पत्र देकर बैठक में सी.ई.सी. द्वारा आप्शन दो के बारे में सुझाये गये संशोधनों पर अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी हैं लेकिन आप्शन एक के बारे में शपथपत्र में कुछ भी नहीं कहा हैं। इसके बाद संप्रग शासन के दूसरे कार्यकाल में दिनांक 6 नवम्बर 2009 को श्री साल्वे ने कोर्ट में जो अपना नोट प्रस्तुत किया है उसमें यह उल्लेख किया है कि एन.एच.ए.आई. आप्शन एक, जो कि एलीवेटेट हाइ वे का था, के लिये सहमत नहीं हैं क्योंकि उसमें लगभग 900 करोड़ रूपये की राशि व्यय होगी। कोर्ट में एन.एच.ए.आई. द्वारा स्वयं के सुझाये गये प्रस्ताव पर अब असहमत होना समझ से परे हैं। जबकि ईंधन और समय की बचत के मूल मन्त्र को लेकर बनायी जा रही परियोजना में निर्माण लागत का प्रश्न उठाना ही नहीं चाहिये। अत: केन्द्र शासन के इन दो विभागों में एक राय बनाना आवश्यक हैं क्योंकि अन्यथा सरकार को निर्माण करने वाली कंपनियों को हर्जाने के रूप में करोड़ो रुपये की भारी रकम चुकानी पड़ेगी।


इंका नेता आशुतोष ने अपने पत्र में जिला कलेक्टर के पत्र का हवाला देकर ध्यानाकषिZत कराते हुये आगे बताया हैं कि इस सम्बंध में कृपया जिला कलेक्टर सिवनी के पत्र क्र./9025/रीडर-अपर कले./08 दिनांक 19/12/2008 का अवलोकन करने का कष्ट करें जो कि मध्यप्रदेश सरकार के अतिरिक्त मुख्य सचिव वन विभाग एवं प्रमुख सचिव लोक निर्माण विभाग को संबोधित हैं।इस पत्र में विस्तृत विवरण देते हुये बताया गया हैं कि राज्य शासन की अनुशंसा की प्रत्याशा में पेड़ कटाई प्रतिबंधित कर दी गई हैं। इस पत्र में यह भी उल्लेख किया गया गया है कि केन्द्रीय साधिकार समिति के सदस्य डॉ. राजेश गोपाल ने 18 एवं 19 नवम्बर 2008 को जब कोर्ट के निर्देश पर विवादास्पद स्थल का भ्रमण किया था तो उसकी सूचना ना तो जिला कलेक्टर को दी गई थी और ना ही स्थानीय वन विभाग और प्रोजेक्ट डॉयरेक्टर एन.एच.ए.आई.को दी गई थी। ऐसी परिस्थिति में जनमत का आकलन करना या आम आदमी को होने वाली असुविधाओं के बारे में विचार करना तो सम्भव था ही नहीं। इस पत्र में जिला कलेक्टर ने यह भी उल्लेख किया था कि रोके गये मार्ग में कई पुलियां अत्यन्त कमजोर हैं जिनसे दुघZटनायें होने की संभावना से कानून एवं व्यवस्था की स्थिति भी बन सकती हैं।


केन्द्रीय नेताओं को भेजे गये पत्र में इंका नेता वर्मा ने यह भी उल्लेख किया हैं कि कलेक्टर के इस पत्र में एक सबसे महत्वपूर्ण तथ्य का भी उल्लेख किया हैं कि,Þ चूंकि रोक लग जाने पर ये बाधामुक्त भूमि उपलब्ध नहीं करा पायेंगे। जिससे भारतीय राष्ट्रीय राज मार्ग प्राधिकरण को प्रोजेक्ट में देरी होने पर अपने कंशसेनर को प्रतिदिन करीब 6 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर के हिसाब से मुआवजा देना होगा जिससे उन पर अनावश्यक वित्तीय भार पड़ेगा।ंß बी.ओ.टी. योजना के तहत बनाये जाने इस मार्ग की जिले में लंबाई 105.58 कि.मी. हैं। जिसका लगभग 37.5 कि. मी. क्षेत्र का काम बाधा मुक्त भूमि उपलब्ध नहीं करा पाने के कारण रुका पडा़ हैं। विवादास्पद पेंच पार्क के बाजू के हिस्से के अलावा छपारा के पास भी 9.24 कि.मी. मार्ग का निमार्ण भी वन विभाग की अनुमति नहीं होने से रुका पड़ा हैं। इस मार्ग की भूमि की चौड़ाई 60 मीटर हैं। यह रकबा 55.44 हेक्टेयर होता हैं। इस पर प्रतिदिन 6 हजार रु. की दर से 3 लाख 32 हजार 6 सौ 40 रु. प्रतिदिन हर्जाना देना पड़ा तो 31 अगस्त 2010 तक 651 दिन होते हैं जिसकी कुल राशि 21 करोड़ 65 लाख 48 हजार 6 सौ 40 रु. होती हैं। इसी तरह पेंच टाइगर के बाजू वाले विवादास्पद मार्ग की लंबाई 28.27 कि.मी. हैं जो कि क्षेत्रफल में 169.62 हेक्टेयर होती हैं। इस पर प्रतिदिन 6 हजार रु. की दर से 10 लाख 17 हजार 7 सौ 20 रु. प्रतिदिन हर्जाना देना पड़ा तो 31 अगस्त 2010 तक 651 दिन होते हैं जिसकी कुल राशि 66 करोड़ 25 लाख 35 हजार 7 सौ 20 रु. देय होगी। इस तरह दोनों कंपनियों को दिये जाने वाले हर्जाने की राशि 87 करोड़ 90 लाख 84 हजार 3 सौ 60 रु. हो जाती हैं। इस तरह सरकार को दोनों कंपनियों को प्रतिदिन 13 लाख 50 हजार 3 सौ 60 रु. की दर से हर्जाना देय होगा। जिले में कार्यरत रोड़ बनाने वाली दोनों कंपनियो को कुल 105.58 कि.मी. रोड़ बनाना था जिसमें से वे निघाZरित समयावधि के पहले ही लगभग 63 कि.मी. रोड़ बना चुके हैं और शासन द्वारा बाधा मुक्त भूमि ना मिलने के कारण 38.5 कि. मी. रोड़ का निर्माण नहीं कर पा रहें हैं। इसके कारण दोनो ही कंपनियां टोल टैक्स की वसूली भी प्रारंभ नहीं कर पा रहीं हैं। इस आधार पर यदि दोनों कंपनियां पूरे 105.58 कि. मी. पर हर्जाने की मांग करती हैं तो इस भूमि का कुल क्षेत्रफल 633.58 हेक्टेयर होता हें जिस पर 6 हजार रुपये प्रतिदिन के हिसाब से हर्जाने की राशि 38 लाख 8 सौ 80 रु. होती हैं। इस हिसाब से 31 अगस्त 2010 तक की राशि 2 अरब 47करोड़ 43 लाख 72 हजार 8 सौ 80 रु. होती हैं जो शासन को देय होगी।जितना अधिक इस मामले के फैसले में विलंब होगा शासन को इसी दर से देने वाले हर्जाने की राशि बढ़ती जायेगी।


इंका नेता वर्मा ने प्रधानमन्त्री का इस ओर भी ध्यानाकषिZत कराया हैं कि प्रदेश सरकार ने जिला कलेक्टर के उक्त पत्र पर क्या कार्यवाही कीर्षोर्षो या जिला कलेक्टर द्वारा राज्य शासन की अनुशंसा की प्रत्याशा में जारी किये गये काम रोकने के आदेश की अनुशंसा की हैं या नहींर्षोर्षो यह अभी तक स्पष्ट नहीं हें। लेकिन इसमें बरती गई लापरवाही से केन्द्र शासन को करोड़ों रुपयों की चपत लग गई हैं तथा एक महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय परियोजना के क्रियान्वयन में विलंब हो रहा हैं।


पत्र के अन्त में इंका नेता वर्मा ने यह अनुरोध किया हैं कि आप तत्काल ऐसा निर्णय लेने का कष्ट करें ताकि सरकार लाखों रुपये रोज के हर्जाने से बच सके और इस कॉरीडोर के मार्ग में कोई परिवर्तन ना हो तथा समय और ईंधन को बचाने के मूल मन्त्र का पालन हो सके।

Sunday, August 22, 2010

Tuesday, August 17, 2010

प्रदेश में इंका भाजपा के नूरा कुश्ती के किस्से : कितने झूठे कितने सच्चे?
कैसी चल रही हैं मध्यप्रदेश में भाजपा की सरकार और कैसे निभा रही हैं कांग्रेस विपक्षी दल का धर्म। इसके रोचक किस्से समय समय पर ना केवल राजनैतिक हल्कों में चर्चित होते रहतें हैं वरन कई मामले तो ऐसे भी सामने आये हैं कि जिन्हें राजनैतिक विश्लेषक नूरा कुश्ती के प्रमाण के रूप में मानने से भी परहेज नहीं कर रहें हैं।
वैसे तो प्रदेश में इंका और भाजपा के बीच नूरा कुश्ती के किस्से कहानी राजनैतिक क्षितिज में उभरना कोई नई बात नहीं हैं। सन 1980 में जब अर्जुन सिंह कांग्रेस की ओर से मुख्यमन्त्री बनाये गये थे तब भाजपा के सुन्दरलाल पटवा प्रतिपक्ष के नेता थे। इस दौरान एक मुकाम ऐसा भी आया था कि पटवा को अर्जुन केबिनेट का 33 वां मन्त्री भाजपायी ही बोलने लगे थे। हालांकि ऐसी दोस्ती प्रजातन्त्र के लिये लाभ दायक नहीं होती लेकिन प्रदेश में इसे रोकने की दिशा में दोनों ही पार्टियों में से किसी ने भी प्रयास नहीं किया वरन ऐसे किस्से दिन प्रतिदिन और अधिक परवान ही चढ़ते गये।
प्रदेश में शिवराजसिंह चौहान के मुख्यमन्त्री बनने के बाद सबसे पहला निर्णायक मोड़ तब आया था जब मुख्यमन्त्री सपत्नीक डंपर घोटाले में फंस गये थे। हालांकि डंपर कांड़ को सबसे पहले उठाने वाले भाजश नेता और पूर्व केन्द्रीय मन्त्री प्रहलाद पटेल अब भाजपा में पुन: वापस आ गये हैं लेकिन उन्हें अभी भी कोई मुकाम हासिल नहीं हो पाया हैं। डंपर घोटाले की जांच के लिये कांग्रेस आलाकमान ने भी इंका विधायक तथा प्रदेश इंका के उपाध्यक्ष हरवंश सिंह की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की थी। इस कमेटी के तत्वावधान में पूरे प्रदेश में जो आन्दोलन हुये वे औपचारिक ही रहे थे। इसी बीच 26 दिसम्बर 2007 को आमानाला सिंचायी परियोजना के उदघाटन समारोह को लेकर तत्कालीन भाजपा सांसद एवं वर्तमान विधायक नीता पटेरिया और क्षेत्रीय इंका विधायक हरवंश सिंह के बीच विवाद हो गया। मामला इतना अधिक बढ़ गया कि सांसद की गाड़ी की कांच फूट गईं जिसमें उनका बेटा बैठा हुआ था एवं ड्रायवर जख्मी हो गया। पुलिस थाना बंड़ोल में हरवंश सिंह और उनके अन्य सहयोगियो के खिलाफ धारा 307 सहित अन्य आपराधिक धाराओं में प्रकरण दर्ज हो गया। इंका विधायक हरवंश सिह ने जिला न्यायाधीश के यहां से अिग्रम जमानत ली तथा जिले में विशाल न्याय रैली आयोजित की गई जिसमें लगभग पचास हजार लोगों ने हिस्सा लिया था। इस आन्दोलन को भी डंपर कांड़ के आन्दोलन का हिस्सा बताया गया।
इसके बाद से आज तक ना तो पुलिस ने कोर्ट में हरवंश सिंह के खिलाफ धारा 307 याने हत्या के प्रयास जैसे गम्भीर अपराध का चालान पेश किया हैं और ना ही आज तक इस बात का खुलासा हुआ हैं कि डंपर जांच कमेटी के अध्यक्ष के रूप में हरवंश सिंह ने सोनिया गांधी को क्या रिपोर्ट पेश की हैं? और तो और लगभग तीन साल बाद हरवंश सिंह ने खुद हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटा के धारा 307 के मामले में न्याय मांगा हैं और यह कहा हैं कि पुलिस ने ना तो चालान पेश किया हैं और ना ही मामले में खात्मा लगया हैं। इसयलिये कोर्ट उन्हें न्याय दे जिस पर कोर्ट ने डायरी पेश करने के आदेश जारी कर दिये हैंं।
इतना ही नहीं वरन शिवराज सरकार के दूसरे कार्यकाल में कांग्रेस की ओर से जब विधानसभा उपाध्यक्ष पद के लिये हरवंश सिंह का नाम प्रस्तावित किया गया तो तो कुछ दिग्गज कांग्रेस नेताओं सहित राजनैतिक हल्कों में इस बात की चर्चा थी कि धारा 307 का अपराध पंजीबद्ध होने के कारण इस पर आम सहमति नहीं बन पायेगी और भाजपा इसका विरोध करेगी। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ और हरवंश सिंह निर्विरोध उपाध्यक्ष निर्वाचित हो गये। इसके बाद मुख्यमन्त्री द्वारा आहूत विधानसभा के विशेष सत्र के बहिष्कार का निर्णय कांग्रेस ने लिया। इस बहिष्कार में विधानसभा उपाध्यक्ष जैसे संवैधानिक पद पर रहते हुये भी ना केवल हरवंश सिंह शामिल हुये वरन एक बयान में यह भी कहा कि मेरे लिये पार्टी पहले हैं फिर विस उपाध्यक्ष का पद हैे। इस पर हंगामा मचा। सदन में संसदीय कार्यमन्त्री ने अध्यक्ष से व्यवस्था की मांग की थी। सदन से बाहर पार्टी के नवनिर्वाचित अध्यक्ष प्रभात झा ने पूर्व मुख्यमन्त्री कैलाश जोशी और कप्तानसिंह सौलंकी के साथ राज्पाल से मिलकर कार्यवाही की मांग की थी। लेकिन भाजपा ने ना तो अविश्वास प्रस्ताव लाने का नोटिस दिया और ना ही कोई ऐसी कार्यवाही की जिससे हरवंश सिंह का पद खतरेे में पड़ सके।
इसी बीच सिवनी जिले के लखनादौन की कोर्ट के निर्देश पर हरवंश सिंह और उनके पुत्र रजनीश सिंह पर आमानाला गांव के एक जमीन घोटाले के सम्बंध में पुलिस ने धारा 420 के तहत धोखाधड़ी के आरोप का मामला पंजीबद्ध किया। जिसे पिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया ने खूब उछाला था। इसी बीच वषाZकालीन सत्र भी हुआ लेकिन इस मामले को उठाना किसी ने भी उचित नहीं समझा। जिले के भाजपा नेताओं ने तो खूब विज्ञप्तियां जारी की जिसके जवाब में हरवंश सिंह ने प्रेस वार्ता भी आयोजित की थी लेकिन सदन में कांग्रेस के भ्रष्टाचार के आरोपो को झेलने वाली भाजपा ने इस मामले को छूना भी पसन्द नहीं किया जबकि गृह मन्त्री ने सदन में दागी विधायकों की जो सूची पेश की थी उसमें हरवंश सिंह के इस मामले का भी उल्लेख हैं। हाल ही में प्रेस में सिवनी जिले के नगर भाजपा अध्यक्ष प्रेम तिवारी का मुख्यमन्त्री को संबाोधित पत्र प्रकाशित हुआ कि हरवंश सिंह के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों से गृह जिले के लोगों में आक्रोश हैं इसलिये 15 अगस्त को सिवनी में ध्वजारोहण उनसे ना कराया जाये। इसी बीच ध्वजारोहण के आवंटित जिलों की सूची भी जारी हो गई जिसमें हरवंश सिंह को बालाघाट जिला आवंटित किया गया था। नगर भाजपा अध्यक्ष ने इसके लिये मुख्यमन्त्री के आभार की विज्ञप्ति भी जारी कर दी थी। इसके जवाब में कांग्रेस के नगर प्रवक्ता जे.पी.एस.तिवारी का बयान प्रकाशित हुआ कि यदि ऐसा हैं तो प्रदेश के मुख्यमन्त्री सहित 28 मन्त्री किसी भी जिले में झंड़ा नहीं फहरा सकेंगें। इसी बयान में यह भी प्रकाशित हुआ हैं कि विस उपाध्यक्ष हरवंश सिंह से मुख्यमन्त्री कें सचिव दुबे ने फोन पर बात करके पूछा था तो उन्होंने यह कह दिया था कि सिवनी में तो वे तीन चार बार झंड़ा फहरा चुके हैं। उनकी नज़र में प्रदेश के सभी जिले बराबर हैं। जहां आप उचित समझें वहां झुड़ फहरा दूंगा। इस तरह से एक तरफ तो उन्होंने यह राजनैतिक सन्देश देने का प्रयास किया कि शिवराज ने नगर भाजपा की मांग पर नहीं वरन उनकी सहमति लेकर बालाघाट जिला आवंटित किया हैं। दूसरी तरफ इसके साथ ही उन्होंने पूरे प्रकरण को मुख्यमन्त्री की जानकारी में लाकर अपनी आपत्ति दर्ज करायी। बस फिर क्या था आनन फानन में फिर नया आदेश जारी हुआ और हरवंश सिंह को पुन: सिवनी जिला आवंटित कर दिया गया और बालाघाट की जवाबदारी कलेक्टर को सौंप दी गई। 13 अगस्त की देर शाम को जब ये आदेश यहां आये तो ना केवल नये कार्ड दोनों जिलो में छपवाये गये वरन जिले के भाजपा के संगठन मन्त्री सहित सभी विधायकों ने अपना विरोध दर्ज किया लेकिन उसका कोई असर नहीं हुआ। भाजपा के शासन काल में अपने गृह जिलें में ऐसा परिवर्तन करवा कर हरवंश सिंह ने भाजपा की जो भद्द पिटवायी हैं उसकी कोई मिसाल नहीं हैं। लेकिन यह सब कुछ जिस कार्यक्रम को लेकर हुआ उसमें ऐसी गन्दी राजनीति खेलना किसी भी कीमत पर उचित नहीं कहा जा सकता। देश के स्वाधीनता दिवस पर एक जिले के शासकीय कार्यक्रम में ध्वजारोहण के लिये मुख्य अतिथि कौन बने ? यह कोई मायने नहीं रखता। लेकिन इस राष्ट्रीय पर्व पर भी राजनीति का जो गन्दा खेल खेला गया हैं उससे ना तो कांग्रेस और ना भाजपा दोनों ही अपने आप को दोष से बरी नहीं कर सकतीं हैं।
उपरोक्त घटनाक्रमों से यह स्पष्ट हैं कि प्रदेश में कैसे भाजपा अपना सत्ता धर्म और कांग्रेस अपना विपक्षी धर्म निबाह रही हैं।इससे स्वयं इस बात का खुलासा हो जाता हें कि प्रदेश में इंका भाजपा के नूरा कुश्ती के किस्से कितने झूठे हैं और कितने सच्चेे हैं?
आशुतोष वर्मा, 16,शास्त्री वार्ड,सिवनी म.प्र. मो. 09425174640

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प्रदेश में इंका भाजपा के नूरा कुश्ती के किस्से : कितने झूठे कितने सच्चे ?
कैसी चल रही हैं मध्यप्रदेश में भाजपा की सरकार और कैसे निभा रही हैं कांग्रेस विपक्षी दल का धर्म। इसके रोचक किस्से समय समय पर ना केवल राजनैतिक हल्कों में चर्चित होते रहतें हैं वरन कई मामले तो ऐसे भी सामने आये हैं कि जिन्हें राजनैतिक विश्लेषक नूरा कुश्ती के प्रमाण के रूप में मानने से भी परहेज नहीं कर रहें हैं।
वैसे तो प्रदेश में इंका और भाजपा के बीच नूरा कुश्ती के किस्से कहानी राजनैतिक क्षितिज में उभरना कोई नई बात नहीं हैं। सन 1980 में जब अर्जुन सिंह कांग्रेस की ओर से मुख्यमन्त्री बनाये गये थे तब भाजपा के सुन्दरलाल पटवा प्रतिपक्ष के नेता थे। इस दौरान एक मुकाम ऐसा भी आया था कि पटवा को अर्जुन केबिनेट का 33 वां मन्त्री भाजपायी ही बोलने लगे थे। हालांकि ऐसी दोस्ती प्रजातन्त्र के लिये लाभ दायक नहीं होती लेकिन प्रदेश में इसे रोकने की दिशा में दोनों ही पार्टियों में से किसी ने भी प्रयास नहीं किया वरन ऐसे किस्से दिन प्रतिदिन और अधिक परवान ही चढ़ते गये।
प्रदेश में शिवराजसिंह चौहान के मुख्यमन्त्री बनने के बाद सबसे पहला निर्णायक मोड़ तब आया था जब मुख्यमन्त्री सपत्नीक डंपर घोटाले में फंस गये थे। हालांकि डंपर कांड़ को सबसे पहले उठाने वाले भाजश नेता और पूर्व केन्द्रीय मन्त्री प्रहलाद पटेल अब भाजपा में पुन: वापस आ गये हैं लेकिन उन्हें अभी भी कोई मुकाम हासिल नहीं हो पाया हैं। डंपर घोटाले की जांच के लिये कांग्रेस आलाकमान ने भी इंका विधायक तथा प्रदेश इंका के उपाध्यक्ष हरवंश सिंह की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की थी। इस कमेटी के तत्वावधान में पूरे प्रदेश में जो आन्दोलन हुये वे औपचारिक ही रहे थे। इसी बीच 26 दिसम्बर 2007 को आमानाला सिंचायी परियोजना के उदघाटन समारोह को लेकर तत्कालीन भाजपा सांसद एवं वर्तमान विधायक नीता पटेरिया और क्षेत्रीय इंका विधायक हरवंश सिंह के बीच विवाद हो गया। मामला इतना अधिक बढ़ गया कि सांसद की गाड़ी की कांच फूट गईं जिसमें उनका बेटा बैठा हुआ था एवं ड्रायवर जख्मी हो गया। पुलिस थाना बंड़ोल में हरवंश सिंह और उनके अन्य सहयोगियो के खिलाफ धारा 307 सहित अन्य आपराधिक धाराओं में प्रकरण दर्ज हो गया। इंका विधायक हरवंश सिह ने जिला न्यायाधीश के यहां से अिग्रम जमानत ली तथा जिले में विशाल न्याय रैली आयोजित की गई जिसमें लगभग पचास हजार लोगों ने हिस्सा लिया था। इस आन्दोलन को भी डंपर कांड़ के आन्दोलन का हिस्सा बताया गया।
इसके बाद से आज तक ना तो पुलिस ने कोर्ट में हरवंश सिंह के खिलाफ धारा 307 याने हत्या के प्रयास जैसे गम्भीर अपराध का चालान पेश किया हैं और ना ही आज तक इस बात का खुलासा हुआ हैं कि डंपर जांच कमेटी के अध्यक्ष के रूप में हरवंश सिंह ने सोनिया गांधी को क्या रिपोर्ट पेश की हैं? और तो और लगभग तीन साल बाद हरवंश सिंह ने खुद हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटा के धारा 307 के मामले में न्याय मांगा हैं और यह कहा हैं कि पुलिस ने ना तो चालान पेश किया हैं और ना ही मामले में खात्मा लगया हैं। इसयलिये कोर्ट उन्हें न्याय दे जिस पर कोर्ट ने डायरी पेश करने के आदेश जारी कर दिये हैंं।
इतना ही नहीं वरन शिवराज सरकार के दूसरे कार्यकाल में कांग्रेस की ओर से जब विधानसभा उपाध्यक्ष पद के लिये हरवंश सिंह का नाम प्रस्तावित किया गया तो तो कुछ दिग्गज कांग्रेस नेताओं सहित राजनैतिक हल्कों में इस बात की चर्चा थी कि धारा 307 का अपराध पंजीबद्ध होने के कारण इस पर आम सहमति नहीं बन पायेगी और भाजपा इसका विरोध करेगी। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ और हरवंश सिंह निर्विरोध उपाध्यक्ष निर्वाचित हो गये। इसके बाद मुख्यमन्त्री द्वारा आहूत विधानसभा के विशेष सत्र के बहिष्कार का निर्णय कांग्रेस ने लिया। इस बहिष्कार में विधानसभा उपाध्यक्ष जैसे संवैधानिक पद पर रहते हुये भी ना केवल हरवंश सिंह शामिल हुये वरन एक बयान में यह भी कहा कि मेरे लिये पार्टी पहले हैं फिर विस उपाध्यक्ष का पद हैे। इस पर हंगामा मचा। सदन में संसदीय कार्यमन्त्री ने अध्यक्ष से व्यवस्था की मांग की थी। सदन से बाहर पार्टी के नवनिर्वाचित अध्यक्ष प्रभात झा ने पूर्व मुख्यमन्त्री कैलाश जोशी और कप्तानसिंह सौलंकी के साथ राज्पाल से मिलकर कार्यवाही की मांग की थी। लेकिन भाजपा ने ना तो अविश्वास प्रस्ताव लाने का नोटिस दिया और ना ही कोई ऐसी कार्यवाही की जिससे हरवंश सिंह का पद खतरेे में पड़ सके।
इसी बीच सिवनी जिले के लखनादौन की कोर्ट के निर्देश पर हरवंश सिंह और उनके पुत्र रजनीश सिंह पर आमानाला गांव के एक जमीन घोटाले के सम्बंध में पुलिस ने धारा 420 के तहत धोखाधड़ी के आरोप का मामला पंजीबद्ध किया। जिसे पिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया ने खूब उछाला था। इसी बीच वषाZकालीन सत्र भी हुआ लेकिन इस मामले को उठाना किसी ने भी उचित नहीं समझा। जिले के भाजपा नेताओं ने तो खूब विज्ञप्तियां जारी की जिसके जवाब में हरवंश सिंह ने प्रेस वार्ता भी आयोजित की थी लेकिन सदन में कांग्रेस के भ्रष्टाचार के आरोपो को झेलने वाली भाजपा ने इस मामले को छूना भी पसन्द नहीं किया जबकि गृह मन्त्री ने सदन में दागी विधायकों की जो सूची पेश की थी उसमें हरवंश सिंह के इस मामले का भी उल्लेख हैं। हाल ही में प्रेस में सिवनी जिले के नगर भाजपा अध्यक्ष प्रेम तिवारी का मुख्यमन्त्री को संबाोधित पत्र प्रकाशित हुआ कि हरवंश सिंह के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों से गृह जिले के लोगों में आक्रोश हैं इसलिये 15 अगस्त को सिवनी में ध्वजारोहण उनसे ना कराया जाये। इसी बीच ध्वजारोहण के आवंटित जिलों की सूची भी जारी हो गई जिसमें हरवंश सिंह को बालाघाट जिला आवंटित किया गया था। नगर भाजपा अध्यक्ष ने इसके लिये मुख्यमन्त्री के आभार की विज्ञप्ति भी जारी कर दी थी। इसके जवाब में कांग्रेस के नगर प्रवक्ता जे.पी.एस.तिवारी का बयान प्रकाशित हुआ कि यदि ऐसा हैं तो प्रदेश के मुख्यमन्त्री सहित 28 मन्त्री किसी भी जिले में झंड़ा नहीं फहरा सकेंगें। इसी बयान में यह भी प्रकाशित हुआ हैं कि विस उपाध्यक्ष हरवंश सिंह से मुख्यमन्त्री कें सचिव दुबे ने फोन पर बात करके पूछा था तो उन्होंने यह कह दिया था कि सिवनी में तो वे तीन चार बार झंड़ा फहरा चुके हैं। उनकी नज़र में प्रदेश के सभी जिले बराबर हैं। जहां आप उचित समझें वहां झुड़ फहरा दूंगा। इस तरह से एक तरफ तो उन्होंने यह राजनैतिक सन्देश देने का प्रयास किया कि शिवराज ने नगर भाजपा की मांग पर नहीं वरन उनकी सहमति लेकर बालाघाट जिला आवंटित किया हैं। दूसरी तरफ इसके साथ ही उन्होंने पूरे प्रकरण को मुख्यमन्त्री की जानकारी में लाकर अपनी आपत्ति दर्ज करायी। बस फिर क्या था आनन फानन में फिर नया आदेश जारी हुआ और हरवंश सिंह को पुन: सिवनी जिला आवंटित कर दिया गया और बालाघाट की जवाबदारी कलेक्टर को सौंप दी गई। 13 अगस्त की देर शाम को जब ये आदेश यहां आये तो ना केवल नये कार्ड दोनों जिलो में छपवाये गये वरन जिले के भाजपा के संगठन मन्त्री सहित सभी विधायकों ने अपना विरोध दर्ज किया लेकिन उसका कोई असर नहीं हुआ। भाजपा के शासन काल में अपने गृह जिलें में ऐसा परिवर्तन करवा कर हरवंश सिंह ने भाजपा की जो भद्द पिटवायी हैं उसकी कोई मिसाल नहीं हैं। लेकिन यह सब कुछ जिस कार्यक्रम को लेकर हुआ उसमें ऐसी गन्दी राजनीति खेलना किसी भी कीमत पर उचित नहीं कहा जा सकता। देश के स्वाधीनता दिवस पर एक जिले के शासकीय कार्यक्रम में ध्वजारोहण के लिये मुख्य अतिथि कौन बने ? यह कोई मायने नहीं रखता। लेकिन इस राष्ट्रीय पर्व पर भी राजनीति का जो गन्दा खेल खेला गया हैं उससे ना तो कांग्रेस और ना भाजपा दोनों ही अपने आप को दोष से बरी नहीं कर सकतीं हैं।
उपरोक्त घटनाक्रमों से यह स्पष्ट हैं कि प्रदेश में कैसे भाजपा अपना सत्ता धर्म और कांग्रेस अपना विपक्षी धर्म निबाह रही हैं।इससे स्वयं इस बात का खुलासा हो जाता हें कि प्रदेश में इंका भाजपा के नूरा कुश्ती के किस्से कितने झूठे हैं और कितने सच्चेे हैं?

आशुतोष

16,शास्त्री वार्ड,सिवनी म.प्र. मो. 09425174640

Saturday, August 14, 2010

प्रजातन्त्र में आ रहे बिगड़ाव को रोकने के लिये संकल्प लेकर अमल करने का समय आ गया हैं
15 अगस्त 2010। याने देश की आजादी की 63 वीं वर्षगांठ। जिसे हम हर साल की तरह हषोZल्लास और पूरे उत्साह के साथ मनायेंगें। आज के दिन हमारे द्वारा निर्वाचित जनप्रतिनिधि या हमारी सरकार द्वारा नियुक्त किये गये प्रतिनिधि ध्वजारोहण करते हैं। कल और आज में क्या फर्क आया हैं इस पर विचार करना भी समय की मांग हैं। देश के आजाद होने के बाद ध्वजारोहण करने के लिये खींचीं जाने वाली रस्सी की डोर उन पाक साफ हाथों में हुआ करती थी जिनके दिलों में देश के लिये कुछ कर गुजरने की तमन्ना रहा करती थी। जिन्होंने देश की आजादी की लड़ाई में बहुत कुछ करके दिखाया था। लेकिन हम धीरे धीरे यह देख रहें कि प्रजातान्त्रिक व्यवस्था के बदलाव या उन्हें बिगड़ाव कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी ,के कारण आज हमसे हमारे प्रतिनिधियों के चुनने में कहीं ना कहीं चूक हो रही हैं। आज सिद्धान्तों और नीतियों पर चलने वाले व्यक्तित्व दर किनार हो जाते हैं और धन बल और बाहुबल के जरिये नेता सत्ता की डोर थाम लेते हैं। जिन हाथों में सत्ता की डोर आ जाती हैं आज उन्हीं हाथों में हमारे राष्ट्रध्वज को फहराने के खींचीं जाने वाली रस्सी की डोर भी उन्हीं हाथों में आ जाती हैं।उन पाक साफ हाथों की तुलना में आज हम कहां आकर खड़े हो गये हैं? इस पर विचार करें तो हमें शर्मसार ही होना पड़ेगा। क्या हमेशा ऐसा ही होता रहेगा? तो इसका जवाब यही है कि नियति का चक्र चलता रहता हैं और बदलाव भी समय के साथ होते रहते हैं। एक बात जरूर हैं कि अच्छे बदलाव के लिये प्रयास करने पड़ते हैं। राजनैतिक दलों के भटकाव, नेताओं की सत्ता के लिये की जाने वाली उछलकूद, चुनावों में धनबल और बाहुबल का जोर और कर बल छल से चुनाव जीतने की लालसा ये ही सभी वो कारण हैं जिनसे प्रजातन्त्र में बिगड़ाव आ रहा हैं और जो थमने का नाम ही नहीं ले रहा हैं। लेकिन इस सब की जड़ में सेाचा जाये तो अन्त में हम ही हैं जो इस सब ताम झाम के प्रभाव में आकर ऐसे लोगों को चुनने की गलती कर बैठते हैं।
तो आइये अच्छे बदलाव की प्रत्याशा में आज आजादी की 63 वीं वर्षगांठ पर हम यह संकल्प लें कि हम भविष्य में कम से कम ऐसे जनप्रतिनिध चुनने की भूल तो नहीं करेंगें जिनसे ध्वजारोहण ना कराये जाने की ही मांग उठने लगे। साथ ही हमें सत्ता के लिये दिशाहीन हो चुके राजनेताओं को नकारना होगा। यदि हम यह सब कुछ नहीं कर सकते तो फिर बिगड़ाव के लिये किसी दूसरे को दोष देने का अधिकार भी हमें नहीं हैं।
आशुतोष वर्मा
अंबिका सदन16 शास्त्री वार्ड
सिवनी म.प्र.
09425174640

Friday, August 13, 2010

इंका नेताओं द्वारा दिल्ली में आलाकमान को सप्रमाण दिये गये विवरण ने हरवंश सिंह के महाबली होने की छवि प्रभावित कर दी है
देश की आजादी के दिन के ध्वजारोहण को लेकर की गई इय तरह की बयान बाजी किसी भी कीमत पर उचित नहीं कही जा सकती। वैसे भी भाजपा को ऐसा बयान जारी करने का कोई नैतिक आधिकार इसलिये भी नहीं हैं क्योंकि जब कांग्रेस ने विस उपाध्यक्ष पद के लिये हरवंश सिंह का नाम प्रस्तावित किया था तब भी उनके खिलाफ धारा 307 का आपराधिक प्रकरण कायम था। भाजपा की सहमति के कारण ही वे सदन की सर्वसम्मति से उपाध्यक्ष बने थे। उपाध्यक्ष पद पर उन्हे रखना या अविश्वास प्रस्ताव लाकर हटाना जब भाजपा के हाथ में हैं तो फिर वो मात्र दिखावे के लिये एक संवैधानिक पद के लिये ऐसी ओछी हरकतें क्यों करती हैंर्षोर्षो यह समझ से परे हैं। जिला कांग्रेस के चुनावों को लेकर इस बार तबेले में उठा तूफान थमने का नाम ही नहीं ले रहा हैं। अपनी आदत के अनुसार उन्होंने सभी को दरकिनार कर दिया। इसका पता जब नेताओं को लगा तो असन्तोष की ज्वाला धधक उठी। जिसकी लपटें दिल्ली तक पहुंच गई। दिल्ली में यह धारणा बना दी गई थी कि सिवनी में हरवंश सिंह ही सब कुछ हैं और उनकी मर्जी ही चलती हैं। लेकिन इंका नेताओं के सप्रमाण दिये गये विवरण ने हरवंश सिंह के महाबली होने की छवि जरूर प्रभावित की हैं।इस सबके बावजूद भी हरवंश समर्थक आश्वस्त हैं कि इन सबसे कुछ होना जाना नहीं हैं और होगा वही जो हरवंश सिंह चाहेंगें क्योंकि प्रदेश का काई भी बड़ा नेता उनके खिलाफ नहीं हैं। विस उपाध्यक्ष के खिलाफ दिखावे की बयानबाजी करती हैं भाजपा-
भाजपा के नगर अध्यक्ष प्रेम तिवारी ने मुख्यमन्त्री को पत्र लिखकर आग्रह किया कि विस उपाध्यक्ष ठा. हरवंश से जिले में ध्वजारोहण ना कराया जाये क्योंकि उनके विरुद्ध हाल ही में चार सौ बीसी का मामला कोर्ट के निर्देश पर कायम हुआ हैं। बयान छपने के साथ दूसरे ही दिन सूची भी प्रकाशित हो गई कि प्रदेश के किस जिले में कौन ध्वजारोहण करेगा। इस सूची में विस उपाध्यक्ष हरवंश सिंह को बालाघाट जिला आवंटित किया गया था। इतना था नहीं कि प्रेम तिवारी ने जन भावनाओं का आदर रखने के लिये मुख्यमन्त्री का आभार भी बयान जारी कर व्यक्त कर डाला। प्रेम तिवारी के बयान और सूची के छपने के बाद नगर इंका के प्रवक्ता जे.पी.एस.तिवारी के हवाले से एक बयान छपा कि प्रेम तिवारी औकात से ज्यादा बात करते हैं और पालिका के पिछले भ्रष्टाचार के वे जनक रहें हैं। इस बयान में हरवंश सिंह के हवाले से यह भी छपा कि मुख्यमन्त्री के यहां से उनसे पूछा गया था कि वे कहां ध्वजारोहण करना चाहेंगें तो उन्होंने कह दिया था कि सिवनी में तो वे तीन चार बार ध्वजारोहण कर चुके हें और उनके लिये प्रदेश के सभी जिले बराबर हैं वे जहां चाहें आवंटित कर दें। नगर इंका के प्रवक्ता के बयान में मुख्यमन्त्री सहित 28 मन्त्रियों के भी आरोपी होने का उल्लेख किया गया हैं और कहा हैं कि यदि प्रेम तिवारी की बात मान ली जाये तो ये सभी झंड़ा नहीं फहरा सकेंगें। इस बयान में सबसे अधिक आश्चर्य केी बात तो यह हैं कि नगर इंका के प्रवक्ता मुख्यमन्त्री सचिवालय और विस उपाध्यक्ष की चर्चा तथ्यों सहित कर रहें हैं। इंकाई हल्कों में तो यह भी चर्चित हैं कि हैण्डिंग सहित बयान बर्रा से ही कम्प्यूटर पर बन के आते हैं और किसे जारी करना हैं यह भी हरवंश सिंह ही तय करते हैं। जिसका नाम नीवे लिखा आता हैं उसे अपने दस्तखत करके बयान को बटवाना भर पड़ता हैं। मीडिया में भी जिला इंका के घिसे पिटे टाइपराइटर के स्थान पर जब कम्प्यूटर से बनी विज्ञप्ति टेबिल पर आती हैं तो सभी समझ जाते हैं कि यह बयान कहां बना हैं और किसने बनवाया हैर्षोर्षो इसके बाद अचानक ही फिर फेरबदल होता हैं और प्रदेश सरकार विस उपाध्यक्ष हरवंश सिंह के लिये फिर सिवनी जिला आवंटित कर देती हैं।इस घटनाक्रम ने इंका और भाजपा की बयान बाजी को खोखला साबित कर दिया हैं। यदि हरवंश सिंह के आग्रह पर ही शिवराज ने उन्हें बालाघाट जिला आंटित किया था तो फिर भाजपा की बयान बाजी के बाद ऐसे क्या कारण बन गये कि फिर से हरवंश सिंह को सिवनी जिला ही आवंटित कर दिया गया। और आखिर यह बदलाव भी हुआ तो होगा किसी की पहल पर हीर्षोर्षो यह पहल किसने की होगी इस पर अधिक कुछ सोचने की तो जरूरत ही नहीं हैं।देश की आजादी के दिन के ध्वजारोहण को लेकर की गई इय तरह की बयान बाजी किसी भी कीमत पर उचित नहीं कही जा सकती। वैसे भी भाजपा को ऐसा बयान जारी करने का कोई नैतिक आधिकार इसलिये भी नहीं हैं क्योंकि जब कांग्रेस ने विस उपाध्यक्ष पद के लिये हरवंश सिंह का नाम प्रस्तावित किया था तब भी उनके खिलाफ धारा 307 का आपराधिक प्रकरण कायम था। वे सदन की सर्वसम्मति से उपाध्यक्ष बने थे जिसमें उन्हें वोट देने वालों में भाजपा भी शामिल थी। उपाध्यक्ष पद पर उन्हे रखना या अविश्वास प्रस्ताव लाकर हटाना जब भाजपा के हाथ में हैं तो फिर वो मात्र दिखावे के लिये ऐसी ओछी हरकतें क्यों करती हैंर्षोर्षो यह समझ से परे हैं।
कांग्रेस संगठन चुनाव के असन्तोष की आग दिल्ली पहुंची-
जिला कांग्रेस के चुनावों को लेकर इस बार तबेले में उठा तूफान थमने का नाम ही नहीं ले रहा हैं। पहले तो जिले के इकलौते इंका विधायक और प्रदेश इंका के उपाध्यक्ष ठा. हरवंश सिंह ने इंका नेता आशुतोष वर्मा को छोड़कर अधिकांश इंका नेताओं को आश्वस्त कर दिया था कि वे सभी को साथ लेकर चलेंगें और कमेटियों में सभी का समावेश होगा। लेकिन अपनी आदत के अनुसार उन्होंने सभी को दरकिनार कर दिया। इसका पता जब नेताओं को लगा तो असन्तोष की ज्वाला धधक उठी। जिसकी लपटें दिल्ली तक पहुंच गई। दिल्ली में यह धारणा बना दी गई थी कि सिवनी में हरवंश सिंह ही सब कुछ हैं और उनकी मर्जी ही चलती हैं। संगठन चुनावों के इतिहास में यह पहली बार हुआ कि चुनाव की धांधलियों की शिकायत दिल्ली आला कमान तक पहुचीं हैं। जिले से पहले जत्थे में आशुतोष वर्मा और प्रसन्न मालू के साथ आठ इंका नेता शामिल थे। इस जत्थे ने आस्कर फर्नाण्डीस,वी.के.हरिप्रसाद,दिग्विजय सिंह,मोतीलाल वोरा,कमलनाथ, मूलचन्द मीना, नरेन्द्र बुढ़ानिया,प्रदेश इंकाध्यक्ष सुरेश पचौरी के अलावा अन्य नेताओं से मिलकर अपनी बात रखी। चुनाव के नाम पर की गई औपचारिकताओं का विवरण दिया। चुनाव अधिकारियों के दौरों को गुप्त रखने सहित निष्ठावान कार्यकत्ताZओं की उपेक्षा एवं एक गुट विशेष को महत्व देने की बात भी रखी। इस प्रतिनिधि मंड़ल ने इस बात की ओर भी ध्यानाकषिZत कराया है कि जिले की दो विधानसभा सिवनी और बरघाट पांच बार से तथा एक लखनादौन विधानसभा दो बार से चुनाव कांग्रेस हार रही हैं। जिले में मात्र एक विधानसभा केवलारी चार बार से कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में हरवंश सिंह जीत रहें हैं लेकिन लोकसभा चुनाव में कांग्रेस इसी क्षेत्र से हार जाती हैं। कांग्रेस 1999,2003 एवं 2008 का लोकसभा चुनाव भी हार चुकी हैं।इसी तरह तीन नगरपालिका अध्यक्ष के चुनाव भी कांग्रेस सिवनी से हार चुकी हैं। इतना सब कुछ होने के बाद जिले के कांग्रेस नेतृत्व को अन्य क्षेत्रों में कांग्रेस को मजबूत करने के प्रयास करने चाहिये थे जो कि नहीं किये गये हैं। संगठन चुनावों में केवलारी विस क्षेत्र को ही आधार मानकर ताना बाना बुना गया हैं।जिले के आठ राजस्व विकासखंड़ों में से चार विकास खंड़ों का कुछ कुछ हिस्सा केवलारी क्षेत्र में आता हैं। लेकिन केवलारी ब्लाक को छोड़कर शेष तीन का बहुत छोटा हिस्सा केवलारी क्षेत्र में आता हैं लेकिन चुनाव के नाम पर जिन नेताओं को इन चारों ब्लाकों से अध्यक्ष एवं प्रदेश प्रतिनिधि बनाया गया हैं वे सभी केवलारी क्षेत्र के निवासी हैं। जिला इंकाध्यक्ष पद के लिये भी केवलारी क्षेत्र के निवासी नेता की तलाश जारी हें। ऐसे में जिले को कांग्रेस को मजबूत करना असम्भव हैं। इसलिये इनकी सू़क्ष्म जांच की जाये और कांग्रेस हित में उचित निर्णय लिया जाये। इसके दो दिन बाद ही जिले के इंका नेता राजकुमार पप्पू खुराना के नेतृत्व में एक बीस सदस्यीय प्रतिनिधि मंड़ल ने भी दिल्ली जाकर इन अनियमितताओं के बारे में आलाकमान का ध्यानाकषिZत कराया हैेंं। इस सबके बावजूद भी हरवंश समर्थक आश्वस्त हैं कि इन सबसे कुछ होना जाना नहीं हैं और होगा वही जो हरवंश सिंह चाहेंगें क्योंकि प्रदेश का काई भी बड़ा नेता उनके खिलाफ नहीं हैं।अब देखना यह हैं कि हरवंश समर्थकों के दावे सही होंगें या महाबली की छवि पर कुछ आंच आयेगीर्षोर्षो ß