प्रदेश में इंका भाजपा के नूरा कुश्ती के किस्से : कितने झूठे कितने सच्चे?
कैसी चल रही हैं मध्यप्रदेश में भाजपा की सरकार और कैसे निभा रही हैं कांग्रेस विपक्षी दल का धर्म। इसके रोचक किस्से समय समय पर ना केवल राजनैतिक हल्कों में चर्चित होते रहतें हैं वरन कई मामले तो ऐसे भी सामने आये हैं कि जिन्हें राजनैतिक विश्लेषक नूरा कुश्ती के प्रमाण के रूप में मानने से भी परहेज नहीं कर रहें हैं।
वैसे तो प्रदेश में इंका और भाजपा के बीच नूरा कुश्ती के किस्से कहानी राजनैतिक क्षितिज में उभरना कोई नई बात नहीं हैं। सन 1980 में जब अर्जुन सिंह कांग्रेस की ओर से मुख्यमन्त्री बनाये गये थे तब भाजपा के सुन्दरलाल पटवा प्रतिपक्ष के नेता थे। इस दौरान एक मुकाम ऐसा भी आया था कि पटवा को अर्जुन केबिनेट का 33 वां मन्त्री भाजपायी ही बोलने लगे थे। हालांकि ऐसी दोस्ती प्रजातन्त्र के लिये लाभ दायक नहीं होती लेकिन प्रदेश में इसे रोकने की दिशा में दोनों ही पार्टियों में से किसी ने भी प्रयास नहीं किया वरन ऐसे किस्से दिन प्रतिदिन और अधिक परवान ही चढ़ते गये।
प्रदेश में शिवराजसिंह चौहान के मुख्यमन्त्री बनने के बाद सबसे पहला निर्णायक मोड़ तब आया था जब मुख्यमन्त्री सपत्नीक डंपर घोटाले में फंस गये थे। हालांकि डंपर कांड़ को सबसे पहले उठाने वाले भाजश नेता और पूर्व केन्द्रीय मन्त्री प्रहलाद पटेल अब भाजपा में पुन: वापस आ गये हैं लेकिन उन्हें अभी भी कोई मुकाम हासिल नहीं हो पाया हैं। डंपर घोटाले की जांच के लिये कांग्रेस आलाकमान ने भी इंका विधायक तथा प्रदेश इंका के उपाध्यक्ष हरवंश सिंह की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की थी। इस कमेटी के तत्वावधान में पूरे प्रदेश में जो आन्दोलन हुये वे औपचारिक ही रहे थे। इसी बीच 26 दिसम्बर 2007 को आमानाला सिंचायी परियोजना के उदघाटन समारोह को लेकर तत्कालीन भाजपा सांसद एवं वर्तमान विधायक नीता पटेरिया और क्षेत्रीय इंका विधायक हरवंश सिंह के बीच विवाद हो गया। मामला इतना अधिक बढ़ गया कि सांसद की गाड़ी की कांच फूट गईं जिसमें उनका बेटा बैठा हुआ था एवं ड्रायवर जख्मी हो गया। पुलिस थाना बंड़ोल में हरवंश सिंह और उनके अन्य सहयोगियो के खिलाफ धारा 307 सहित अन्य आपराधिक धाराओं में प्रकरण दर्ज हो गया। इंका विधायक हरवंश सिह ने जिला न्यायाधीश के यहां से अिग्रम जमानत ली तथा जिले में विशाल न्याय रैली आयोजित की गई जिसमें लगभग पचास हजार लोगों ने हिस्सा लिया था। इस आन्दोलन को भी डंपर कांड़ के आन्दोलन का हिस्सा बताया गया।
इसके बाद से आज तक ना तो पुलिस ने कोर्ट में हरवंश सिंह के खिलाफ धारा 307 याने हत्या के प्रयास जैसे गम्भीर अपराध का चालान पेश किया हैं और ना ही आज तक इस बात का खुलासा हुआ हैं कि डंपर जांच कमेटी के अध्यक्ष के रूप में हरवंश सिंह ने सोनिया गांधी को क्या रिपोर्ट पेश की हैं? और तो और लगभग तीन साल बाद हरवंश सिंह ने खुद हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटा के धारा 307 के मामले में न्याय मांगा हैं और यह कहा हैं कि पुलिस ने ना तो चालान पेश किया हैं और ना ही मामले में खात्मा लगया हैं। इसयलिये कोर्ट उन्हें न्याय दे जिस पर कोर्ट ने डायरी पेश करने के आदेश जारी कर दिये हैंं।
इतना ही नहीं वरन शिवराज सरकार के दूसरे कार्यकाल में कांग्रेस की ओर से जब विधानसभा उपाध्यक्ष पद के लिये हरवंश सिंह का नाम प्रस्तावित किया गया तो तो कुछ दिग्गज कांग्रेस नेताओं सहित राजनैतिक हल्कों में इस बात की चर्चा थी कि धारा 307 का अपराध पंजीबद्ध होने के कारण इस पर आम सहमति नहीं बन पायेगी और भाजपा इसका विरोध करेगी। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ और हरवंश सिंह निर्विरोध उपाध्यक्ष निर्वाचित हो गये। इसके बाद मुख्यमन्त्री द्वारा आहूत विधानसभा के विशेष सत्र के बहिष्कार का निर्णय कांग्रेस ने लिया। इस बहिष्कार में विधानसभा उपाध्यक्ष जैसे संवैधानिक पद पर रहते हुये भी ना केवल हरवंश सिंह शामिल हुये वरन एक बयान में यह भी कहा कि मेरे लिये पार्टी पहले हैं फिर विस उपाध्यक्ष का पद हैे। इस पर हंगामा मचा। सदन में संसदीय कार्यमन्त्री ने अध्यक्ष से व्यवस्था की मांग की थी। सदन से बाहर पार्टी के नवनिर्वाचित अध्यक्ष प्रभात झा ने पूर्व मुख्यमन्त्री कैलाश जोशी और कप्तानसिंह सौलंकी के साथ राज्पाल से मिलकर कार्यवाही की मांग की थी। लेकिन भाजपा ने ना तो अविश्वास प्रस्ताव लाने का नोटिस दिया और ना ही कोई ऐसी कार्यवाही की जिससे हरवंश सिंह का पद खतरेे में पड़ सके।
इसी बीच सिवनी जिले के लखनादौन की कोर्ट के निर्देश पर हरवंश सिंह और उनके पुत्र रजनीश सिंह पर आमानाला गांव के एक जमीन घोटाले के सम्बंध में पुलिस ने धारा 420 के तहत धोखाधड़ी के आरोप का मामला पंजीबद्ध किया। जिसे पिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया ने खूब उछाला था। इसी बीच वषाZकालीन सत्र भी हुआ लेकिन इस मामले को उठाना किसी ने भी उचित नहीं समझा। जिले के भाजपा नेताओं ने तो खूब विज्ञप्तियां जारी की जिसके जवाब में हरवंश सिंह ने प्रेस वार्ता भी आयोजित की थी लेकिन सदन में कांग्रेस के भ्रष्टाचार के आरोपो को झेलने वाली भाजपा ने इस मामले को छूना भी पसन्द नहीं किया जबकि गृह मन्त्री ने सदन में दागी विधायकों की जो सूची पेश की थी उसमें हरवंश सिंह के इस मामले का भी उल्लेख हैं। हाल ही में प्रेस में सिवनी जिले के नगर भाजपा अध्यक्ष प्रेम तिवारी का मुख्यमन्त्री को संबाोधित पत्र प्रकाशित हुआ कि हरवंश सिंह के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों से गृह जिले के लोगों में आक्रोश हैं इसलिये 15 अगस्त को सिवनी में ध्वजारोहण उनसे ना कराया जाये। इसी बीच ध्वजारोहण के आवंटित जिलों की सूची भी जारी हो गई जिसमें हरवंश सिंह को बालाघाट जिला आवंटित किया गया था। नगर भाजपा अध्यक्ष ने इसके लिये मुख्यमन्त्री के आभार की विज्ञप्ति भी जारी कर दी थी। इसके जवाब में कांग्रेस के नगर प्रवक्ता जे.पी.एस.तिवारी का बयान प्रकाशित हुआ कि यदि ऐसा हैं तो प्रदेश के मुख्यमन्त्री सहित 28 मन्त्री किसी भी जिले में झंड़ा नहीं फहरा सकेंगें। इसी बयान में यह भी प्रकाशित हुआ हैं कि विस उपाध्यक्ष हरवंश सिंह से मुख्यमन्त्री कें सचिव दुबे ने फोन पर बात करके पूछा था तो उन्होंने यह कह दिया था कि सिवनी में तो वे तीन चार बार झंड़ा फहरा चुके हैं। उनकी नज़र में प्रदेश के सभी जिले बराबर हैं। जहां आप उचित समझें वहां झुड़ फहरा दूंगा। इस तरह से एक तरफ तो उन्होंने यह राजनैतिक सन्देश देने का प्रयास किया कि शिवराज ने नगर भाजपा की मांग पर नहीं वरन उनकी सहमति लेकर बालाघाट जिला आवंटित किया हैं। दूसरी तरफ इसके साथ ही उन्होंने पूरे प्रकरण को मुख्यमन्त्री की जानकारी में लाकर अपनी आपत्ति दर्ज करायी। बस फिर क्या था आनन फानन में फिर नया आदेश जारी हुआ और हरवंश सिंह को पुन: सिवनी जिला आवंटित कर दिया गया और बालाघाट की जवाबदारी कलेक्टर को सौंप दी गई। 13 अगस्त की देर शाम को जब ये आदेश यहां आये तो ना केवल नये कार्ड दोनों जिलो में छपवाये गये वरन जिले के भाजपा के संगठन मन्त्री सहित सभी विधायकों ने अपना विरोध दर्ज किया लेकिन उसका कोई असर नहीं हुआ। भाजपा के शासन काल में अपने गृह जिलें में ऐसा परिवर्तन करवा कर हरवंश सिंह ने भाजपा की जो भद्द पिटवायी हैं उसकी कोई मिसाल नहीं हैं। लेकिन यह सब कुछ जिस कार्यक्रम को लेकर हुआ उसमें ऐसी गन्दी राजनीति खेलना किसी भी कीमत पर उचित नहीं कहा जा सकता। देश के स्वाधीनता दिवस पर एक जिले के शासकीय कार्यक्रम में ध्वजारोहण के लिये मुख्य अतिथि कौन बने ? यह कोई मायने नहीं रखता। लेकिन इस राष्ट्रीय पर्व पर भी राजनीति का जो गन्दा खेल खेला गया हैं उससे ना तो कांग्रेस और ना भाजपा दोनों ही अपने आप को दोष से बरी नहीं कर सकतीं हैं।
उपरोक्त घटनाक्रमों से यह स्पष्ट हैं कि प्रदेश में कैसे भाजपा अपना सत्ता धर्म और कांग्रेस अपना विपक्षी धर्म निबाह रही हैं।इससे स्वयं इस बात का खुलासा हो जाता हें कि प्रदेश में इंका भाजपा के नूरा कुश्ती के किस्से कितने झूठे हैं और कितने सच्चेे हैं? आशुतोष वर्मा, 16,शास्त्री वार्ड,सिवनी म.प्र. मो. 09425174640
कैसी चल रही हैं मध्यप्रदेश में भाजपा की सरकार और कैसे निभा रही हैं कांग्रेस विपक्षी दल का धर्म। इसके रोचक किस्से समय समय पर ना केवल राजनैतिक हल्कों में चर्चित होते रहतें हैं वरन कई मामले तो ऐसे भी सामने आये हैं कि जिन्हें राजनैतिक विश्लेषक नूरा कुश्ती के प्रमाण के रूप में मानने से भी परहेज नहीं कर रहें हैं।
वैसे तो प्रदेश में इंका और भाजपा के बीच नूरा कुश्ती के किस्से कहानी राजनैतिक क्षितिज में उभरना कोई नई बात नहीं हैं। सन 1980 में जब अर्जुन सिंह कांग्रेस की ओर से मुख्यमन्त्री बनाये गये थे तब भाजपा के सुन्दरलाल पटवा प्रतिपक्ष के नेता थे। इस दौरान एक मुकाम ऐसा भी आया था कि पटवा को अर्जुन केबिनेट का 33 वां मन्त्री भाजपायी ही बोलने लगे थे। हालांकि ऐसी दोस्ती प्रजातन्त्र के लिये लाभ दायक नहीं होती लेकिन प्रदेश में इसे रोकने की दिशा में दोनों ही पार्टियों में से किसी ने भी प्रयास नहीं किया वरन ऐसे किस्से दिन प्रतिदिन और अधिक परवान ही चढ़ते गये।
प्रदेश में शिवराजसिंह चौहान के मुख्यमन्त्री बनने के बाद सबसे पहला निर्णायक मोड़ तब आया था जब मुख्यमन्त्री सपत्नीक डंपर घोटाले में फंस गये थे। हालांकि डंपर कांड़ को सबसे पहले उठाने वाले भाजश नेता और पूर्व केन्द्रीय मन्त्री प्रहलाद पटेल अब भाजपा में पुन: वापस आ गये हैं लेकिन उन्हें अभी भी कोई मुकाम हासिल नहीं हो पाया हैं। डंपर घोटाले की जांच के लिये कांग्रेस आलाकमान ने भी इंका विधायक तथा प्रदेश इंका के उपाध्यक्ष हरवंश सिंह की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की थी। इस कमेटी के तत्वावधान में पूरे प्रदेश में जो आन्दोलन हुये वे औपचारिक ही रहे थे। इसी बीच 26 दिसम्बर 2007 को आमानाला सिंचायी परियोजना के उदघाटन समारोह को लेकर तत्कालीन भाजपा सांसद एवं वर्तमान विधायक नीता पटेरिया और क्षेत्रीय इंका विधायक हरवंश सिंह के बीच विवाद हो गया। मामला इतना अधिक बढ़ गया कि सांसद की गाड़ी की कांच फूट गईं जिसमें उनका बेटा बैठा हुआ था एवं ड्रायवर जख्मी हो गया। पुलिस थाना बंड़ोल में हरवंश सिंह और उनके अन्य सहयोगियो के खिलाफ धारा 307 सहित अन्य आपराधिक धाराओं में प्रकरण दर्ज हो गया। इंका विधायक हरवंश सिह ने जिला न्यायाधीश के यहां से अिग्रम जमानत ली तथा जिले में विशाल न्याय रैली आयोजित की गई जिसमें लगभग पचास हजार लोगों ने हिस्सा लिया था। इस आन्दोलन को भी डंपर कांड़ के आन्दोलन का हिस्सा बताया गया।
इसके बाद से आज तक ना तो पुलिस ने कोर्ट में हरवंश सिंह के खिलाफ धारा 307 याने हत्या के प्रयास जैसे गम्भीर अपराध का चालान पेश किया हैं और ना ही आज तक इस बात का खुलासा हुआ हैं कि डंपर जांच कमेटी के अध्यक्ष के रूप में हरवंश सिंह ने सोनिया गांधी को क्या रिपोर्ट पेश की हैं? और तो और लगभग तीन साल बाद हरवंश सिंह ने खुद हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटा के धारा 307 के मामले में न्याय मांगा हैं और यह कहा हैं कि पुलिस ने ना तो चालान पेश किया हैं और ना ही मामले में खात्मा लगया हैं। इसयलिये कोर्ट उन्हें न्याय दे जिस पर कोर्ट ने डायरी पेश करने के आदेश जारी कर दिये हैंं।
इतना ही नहीं वरन शिवराज सरकार के दूसरे कार्यकाल में कांग्रेस की ओर से जब विधानसभा उपाध्यक्ष पद के लिये हरवंश सिंह का नाम प्रस्तावित किया गया तो तो कुछ दिग्गज कांग्रेस नेताओं सहित राजनैतिक हल्कों में इस बात की चर्चा थी कि धारा 307 का अपराध पंजीबद्ध होने के कारण इस पर आम सहमति नहीं बन पायेगी और भाजपा इसका विरोध करेगी। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ और हरवंश सिंह निर्विरोध उपाध्यक्ष निर्वाचित हो गये। इसके बाद मुख्यमन्त्री द्वारा आहूत विधानसभा के विशेष सत्र के बहिष्कार का निर्णय कांग्रेस ने लिया। इस बहिष्कार में विधानसभा उपाध्यक्ष जैसे संवैधानिक पद पर रहते हुये भी ना केवल हरवंश सिंह शामिल हुये वरन एक बयान में यह भी कहा कि मेरे लिये पार्टी पहले हैं फिर विस उपाध्यक्ष का पद हैे। इस पर हंगामा मचा। सदन में संसदीय कार्यमन्त्री ने अध्यक्ष से व्यवस्था की मांग की थी। सदन से बाहर पार्टी के नवनिर्वाचित अध्यक्ष प्रभात झा ने पूर्व मुख्यमन्त्री कैलाश जोशी और कप्तानसिंह सौलंकी के साथ राज्पाल से मिलकर कार्यवाही की मांग की थी। लेकिन भाजपा ने ना तो अविश्वास प्रस्ताव लाने का नोटिस दिया और ना ही कोई ऐसी कार्यवाही की जिससे हरवंश सिंह का पद खतरेे में पड़ सके।
इसी बीच सिवनी जिले के लखनादौन की कोर्ट के निर्देश पर हरवंश सिंह और उनके पुत्र रजनीश सिंह पर आमानाला गांव के एक जमीन घोटाले के सम्बंध में पुलिस ने धारा 420 के तहत धोखाधड़ी के आरोप का मामला पंजीबद्ध किया। जिसे पिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया ने खूब उछाला था। इसी बीच वषाZकालीन सत्र भी हुआ लेकिन इस मामले को उठाना किसी ने भी उचित नहीं समझा। जिले के भाजपा नेताओं ने तो खूब विज्ञप्तियां जारी की जिसके जवाब में हरवंश सिंह ने प्रेस वार्ता भी आयोजित की थी लेकिन सदन में कांग्रेस के भ्रष्टाचार के आरोपो को झेलने वाली भाजपा ने इस मामले को छूना भी पसन्द नहीं किया जबकि गृह मन्त्री ने सदन में दागी विधायकों की जो सूची पेश की थी उसमें हरवंश सिंह के इस मामले का भी उल्लेख हैं। हाल ही में प्रेस में सिवनी जिले के नगर भाजपा अध्यक्ष प्रेम तिवारी का मुख्यमन्त्री को संबाोधित पत्र प्रकाशित हुआ कि हरवंश सिंह के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों से गृह जिले के लोगों में आक्रोश हैं इसलिये 15 अगस्त को सिवनी में ध्वजारोहण उनसे ना कराया जाये। इसी बीच ध्वजारोहण के आवंटित जिलों की सूची भी जारी हो गई जिसमें हरवंश सिंह को बालाघाट जिला आवंटित किया गया था। नगर भाजपा अध्यक्ष ने इसके लिये मुख्यमन्त्री के आभार की विज्ञप्ति भी जारी कर दी थी। इसके जवाब में कांग्रेस के नगर प्रवक्ता जे.पी.एस.तिवारी का बयान प्रकाशित हुआ कि यदि ऐसा हैं तो प्रदेश के मुख्यमन्त्री सहित 28 मन्त्री किसी भी जिले में झंड़ा नहीं फहरा सकेंगें। इसी बयान में यह भी प्रकाशित हुआ हैं कि विस उपाध्यक्ष हरवंश सिंह से मुख्यमन्त्री कें सचिव दुबे ने फोन पर बात करके पूछा था तो उन्होंने यह कह दिया था कि सिवनी में तो वे तीन चार बार झंड़ा फहरा चुके हैं। उनकी नज़र में प्रदेश के सभी जिले बराबर हैं। जहां आप उचित समझें वहां झुड़ फहरा दूंगा। इस तरह से एक तरफ तो उन्होंने यह राजनैतिक सन्देश देने का प्रयास किया कि शिवराज ने नगर भाजपा की मांग पर नहीं वरन उनकी सहमति लेकर बालाघाट जिला आवंटित किया हैं। दूसरी तरफ इसके साथ ही उन्होंने पूरे प्रकरण को मुख्यमन्त्री की जानकारी में लाकर अपनी आपत्ति दर्ज करायी। बस फिर क्या था आनन फानन में फिर नया आदेश जारी हुआ और हरवंश सिंह को पुन: सिवनी जिला आवंटित कर दिया गया और बालाघाट की जवाबदारी कलेक्टर को सौंप दी गई। 13 अगस्त की देर शाम को जब ये आदेश यहां आये तो ना केवल नये कार्ड दोनों जिलो में छपवाये गये वरन जिले के भाजपा के संगठन मन्त्री सहित सभी विधायकों ने अपना विरोध दर्ज किया लेकिन उसका कोई असर नहीं हुआ। भाजपा के शासन काल में अपने गृह जिलें में ऐसा परिवर्तन करवा कर हरवंश सिंह ने भाजपा की जो भद्द पिटवायी हैं उसकी कोई मिसाल नहीं हैं। लेकिन यह सब कुछ जिस कार्यक्रम को लेकर हुआ उसमें ऐसी गन्दी राजनीति खेलना किसी भी कीमत पर उचित नहीं कहा जा सकता। देश के स्वाधीनता दिवस पर एक जिले के शासकीय कार्यक्रम में ध्वजारोहण के लिये मुख्य अतिथि कौन बने ? यह कोई मायने नहीं रखता। लेकिन इस राष्ट्रीय पर्व पर भी राजनीति का जो गन्दा खेल खेला गया हैं उससे ना तो कांग्रेस और ना भाजपा दोनों ही अपने आप को दोष से बरी नहीं कर सकतीं हैं।
उपरोक्त घटनाक्रमों से यह स्पष्ट हैं कि प्रदेश में कैसे भाजपा अपना सत्ता धर्म और कांग्रेस अपना विपक्षी धर्म निबाह रही हैं।इससे स्वयं इस बात का खुलासा हो जाता हें कि प्रदेश में इंका भाजपा के नूरा कुश्ती के किस्से कितने झूठे हैं और कितने सच्चेे हैं? आशुतोष वर्मा, 16,शास्त्री वार्ड,सिवनी म.प्र. मो. 09425174640
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