www.hamarivani.com

Thursday, August 26, 2010

नार्थ साउथ कॉरीडोर निर्माण में वन एवं भूतल परिवहन मन्त्रालय के अड़़ंगें से अरबों का चूना लगेगा भारत सरकार को


सिवनी। सुप्रीम कोर्ट में एक राय ना बन पाने के कारण केन्द्र सरकार प्रतिदिन लाखों रुपयों के हर्जाने की देनदार होती जा रही हैं। कलेक्टर द्वारा प्रदेश सरकार को भेजे पत्र में उल्लेखित दरों के अनुसार अब तक 87 करोड़ 90 लाख रुपये का हर्जाना देय होगा। सरकार द्वारा बाधा मुक्त भूमि उपलब्ध ना कराने के कारण समय पर टोल वसूली प्रारंभ ना कर पाने के कारण यदि ठेकेदारों ने पूरी 105 कि.मी. मीटर की लंबाई पर यदि हर्जाना क्लेम किया तो वह राशि 2 अरब 47 करोड़ रूपये के आस पास होगी। प्रदेश सरकार द्वारा कलेक्टर के पत्र पर उचित पहल ना करने से भी यह स्थिति निर्मित हुयी हैं। इससे जल्दी छुटकारा पाने हेतु शीघ्र ही आवश्यक कार्यवाही करने का अनुरोध प्रधानमन्त्री,सोनिया गांधी एवं राहुल गांधी से किया गया हैं।


जिले के वरिष्ठ इंका नेता आशुतोष वर्मा ने अपने माह सितम्बर के पूर्व पत्र की ओर ध्यानाकषिZत करात हुये अपने पत्र में उल्लेख किया है कि समूचे देश में चारों महानगरो और चारों दिशाओं को न्यूनतम लंबाई के मार्गों को जोड़कर ईंधन एवं समय की बचत के लिये प्रधानमन्त्री स्विर्णम चतुर्भुज योजना के तहत एक्सप्रेस हाई वे बनाये जा रहे हैं। इसके तहत कन्याकुमारी से काश्मीर तक बनने वाला चार हजार कि. मी. लंबा उत्तर दक्षिण कॉरीडोर मध्यप्रदेश के सिवनी जिले से होकर नागपुर से कन्याकुमारी तक बन रहा हैं। यह मार्ग सिवनी जिले में कुरई विकासखंड़ में स्थित पेंच नेशनल पार्क की सीमाओं के बाहर से जा रहा हैं। जिले में यह कॉरीडोर मार्ग लगभग 63 किलोमीटर बन चुका हैं और मात्र 38 किलो मीटर बनना शेष हैं।


सुप्रीम कोर्ट में लंबित इस पकरण की विस्तृत जानकारी देते हुये इंका नेता वर्मा ने भेजे गये फ्ेक्स में लिखा हैं कि इस कारीडोर के निर्माण को रोकने के लिये एक एन.जी.ओं. वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंड़िया दिल्ली द्वारा सुप्रीम कोर्ट में उक्त याचिका आई.ए.क्र. 1124/09 पेश की गई हैं जो कि विचाराधीन हैं। कोर्ट में प्रस्तुत इस याचिका में भारत शासन के अलावा सचिव वन एवं पर्यावरण विभाग, राष्ट्रीय राजमार्ग विकास प्राधिकरण एवं नेशनल टाइगर कंजरवेशन अर्थारिटी को पक्षकार बनाया गया हैं एवं कोर्ट में इन सभी के अलग अलग वकील अपना पक्ष रखते हैं। इस याचिका के जवाब में संप्रग शासनकाल के प्रथम कार्यकाल में राष्ट्रीय राजमार्ग विकास प्राधिकरण ने शपथ पत्र के साथ जो जवाब दिया था उसमें प्रथम आप्शन के रूप में फ्लाई ओवर(एलीवेटेड हाई वे) और आप्शन दो में वर्तमान एन.एच. के चौड़ीकरण का प्रस्ताव किया था। सी.ई.सी. की रिपोर्ट के बाद सिवनी के जनमंच नामक संगठन की ओर से इंटरवीनर बनने का आवेदन लगाया गया। इस पर माननीय सुप्रीम कोर्ट ने अपने एमाइकस क्यूरी श्री साल्वे को यह निर्देश दिया कि वे सी.ई.सी. और एन.एच.ए.आई. के साथ बैठक कर एलीवेटेड हाई वे सहित अन्य विकल्प तलाशने का प्रयास करें। एक बैठक के बाद एन.एच.ए.आई. ने 9 अक्टूबर 2009 को एक शपथ पत्र देकर बैठक में सी.ई.सी. द्वारा आप्शन दो के बारे में सुझाये गये संशोधनों पर अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी हैं लेकिन आप्शन एक के बारे में शपथपत्र में कुछ भी नहीं कहा हैं। इसके बाद संप्रग शासन के दूसरे कार्यकाल में दिनांक 6 नवम्बर 2009 को श्री साल्वे ने कोर्ट में जो अपना नोट प्रस्तुत किया है उसमें यह उल्लेख किया है कि एन.एच.ए.आई. आप्शन एक, जो कि एलीवेटेट हाइ वे का था, के लिये सहमत नहीं हैं क्योंकि उसमें लगभग 900 करोड़ रूपये की राशि व्यय होगी। कोर्ट में एन.एच.ए.आई. द्वारा स्वयं के सुझाये गये प्रस्ताव पर अब असहमत होना समझ से परे हैं। जबकि ईंधन और समय की बचत के मूल मन्त्र को लेकर बनायी जा रही परियोजना में निर्माण लागत का प्रश्न उठाना ही नहीं चाहिये। अत: केन्द्र शासन के इन दो विभागों में एक राय बनाना आवश्यक हैं क्योंकि अन्यथा सरकार को निर्माण करने वाली कंपनियों को हर्जाने के रूप में करोड़ो रुपये की भारी रकम चुकानी पड़ेगी।


इंका नेता आशुतोष ने अपने पत्र में जिला कलेक्टर के पत्र का हवाला देकर ध्यानाकषिZत कराते हुये आगे बताया हैं कि इस सम्बंध में कृपया जिला कलेक्टर सिवनी के पत्र क्र./9025/रीडर-अपर कले./08 दिनांक 19/12/2008 का अवलोकन करने का कष्ट करें जो कि मध्यप्रदेश सरकार के अतिरिक्त मुख्य सचिव वन विभाग एवं प्रमुख सचिव लोक निर्माण विभाग को संबोधित हैं।इस पत्र में विस्तृत विवरण देते हुये बताया गया हैं कि राज्य शासन की अनुशंसा की प्रत्याशा में पेड़ कटाई प्रतिबंधित कर दी गई हैं। इस पत्र में यह भी उल्लेख किया गया गया है कि केन्द्रीय साधिकार समिति के सदस्य डॉ. राजेश गोपाल ने 18 एवं 19 नवम्बर 2008 को जब कोर्ट के निर्देश पर विवादास्पद स्थल का भ्रमण किया था तो उसकी सूचना ना तो जिला कलेक्टर को दी गई थी और ना ही स्थानीय वन विभाग और प्रोजेक्ट डॉयरेक्टर एन.एच.ए.आई.को दी गई थी। ऐसी परिस्थिति में जनमत का आकलन करना या आम आदमी को होने वाली असुविधाओं के बारे में विचार करना तो सम्भव था ही नहीं। इस पत्र में जिला कलेक्टर ने यह भी उल्लेख किया था कि रोके गये मार्ग में कई पुलियां अत्यन्त कमजोर हैं जिनसे दुघZटनायें होने की संभावना से कानून एवं व्यवस्था की स्थिति भी बन सकती हैं।


केन्द्रीय नेताओं को भेजे गये पत्र में इंका नेता वर्मा ने यह भी उल्लेख किया हैं कि कलेक्टर के इस पत्र में एक सबसे महत्वपूर्ण तथ्य का भी उल्लेख किया हैं कि,Þ चूंकि रोक लग जाने पर ये बाधामुक्त भूमि उपलब्ध नहीं करा पायेंगे। जिससे भारतीय राष्ट्रीय राज मार्ग प्राधिकरण को प्रोजेक्ट में देरी होने पर अपने कंशसेनर को प्रतिदिन करीब 6 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर के हिसाब से मुआवजा देना होगा जिससे उन पर अनावश्यक वित्तीय भार पड़ेगा।ंß बी.ओ.टी. योजना के तहत बनाये जाने इस मार्ग की जिले में लंबाई 105.58 कि.मी. हैं। जिसका लगभग 37.5 कि. मी. क्षेत्र का काम बाधा मुक्त भूमि उपलब्ध नहीं करा पाने के कारण रुका पडा़ हैं। विवादास्पद पेंच पार्क के बाजू के हिस्से के अलावा छपारा के पास भी 9.24 कि.मी. मार्ग का निमार्ण भी वन विभाग की अनुमति नहीं होने से रुका पड़ा हैं। इस मार्ग की भूमि की चौड़ाई 60 मीटर हैं। यह रकबा 55.44 हेक्टेयर होता हैं। इस पर प्रतिदिन 6 हजार रु. की दर से 3 लाख 32 हजार 6 सौ 40 रु. प्रतिदिन हर्जाना देना पड़ा तो 31 अगस्त 2010 तक 651 दिन होते हैं जिसकी कुल राशि 21 करोड़ 65 लाख 48 हजार 6 सौ 40 रु. होती हैं। इसी तरह पेंच टाइगर के बाजू वाले विवादास्पद मार्ग की लंबाई 28.27 कि.मी. हैं जो कि क्षेत्रफल में 169.62 हेक्टेयर होती हैं। इस पर प्रतिदिन 6 हजार रु. की दर से 10 लाख 17 हजार 7 सौ 20 रु. प्रतिदिन हर्जाना देना पड़ा तो 31 अगस्त 2010 तक 651 दिन होते हैं जिसकी कुल राशि 66 करोड़ 25 लाख 35 हजार 7 सौ 20 रु. देय होगी। इस तरह दोनों कंपनियों को दिये जाने वाले हर्जाने की राशि 87 करोड़ 90 लाख 84 हजार 3 सौ 60 रु. हो जाती हैं। इस तरह सरकार को दोनों कंपनियों को प्रतिदिन 13 लाख 50 हजार 3 सौ 60 रु. की दर से हर्जाना देय होगा। जिले में कार्यरत रोड़ बनाने वाली दोनों कंपनियो को कुल 105.58 कि.मी. रोड़ बनाना था जिसमें से वे निघाZरित समयावधि के पहले ही लगभग 63 कि.मी. रोड़ बना चुके हैं और शासन द्वारा बाधा मुक्त भूमि ना मिलने के कारण 38.5 कि. मी. रोड़ का निर्माण नहीं कर पा रहें हैं। इसके कारण दोनो ही कंपनियां टोल टैक्स की वसूली भी प्रारंभ नहीं कर पा रहीं हैं। इस आधार पर यदि दोनों कंपनियां पूरे 105.58 कि. मी. पर हर्जाने की मांग करती हैं तो इस भूमि का कुल क्षेत्रफल 633.58 हेक्टेयर होता हें जिस पर 6 हजार रुपये प्रतिदिन के हिसाब से हर्जाने की राशि 38 लाख 8 सौ 80 रु. होती हैं। इस हिसाब से 31 अगस्त 2010 तक की राशि 2 अरब 47करोड़ 43 लाख 72 हजार 8 सौ 80 रु. होती हैं जो शासन को देय होगी।जितना अधिक इस मामले के फैसले में विलंब होगा शासन को इसी दर से देने वाले हर्जाने की राशि बढ़ती जायेगी।


इंका नेता वर्मा ने प्रधानमन्त्री का इस ओर भी ध्यानाकषिZत कराया हैं कि प्रदेश सरकार ने जिला कलेक्टर के उक्त पत्र पर क्या कार्यवाही कीर्षोर्षो या जिला कलेक्टर द्वारा राज्य शासन की अनुशंसा की प्रत्याशा में जारी किये गये काम रोकने के आदेश की अनुशंसा की हैं या नहींर्षोर्षो यह अभी तक स्पष्ट नहीं हें। लेकिन इसमें बरती गई लापरवाही से केन्द्र शासन को करोड़ों रुपयों की चपत लग गई हैं तथा एक महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय परियोजना के क्रियान्वयन में विलंब हो रहा हैं।


पत्र के अन्त में इंका नेता वर्मा ने यह अनुरोध किया हैं कि आप तत्काल ऐसा निर्णय लेने का कष्ट करें ताकि सरकार लाखों रुपये रोज के हर्जाने से बच सके और इस कॉरीडोर के मार्ग में कोई परिवर्तन ना हो तथा समय और ईंधन को बचाने के मूल मन्त्र का पालन हो सके।

No comments:

Post a Comment