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Tuesday, May 17, 2011

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गेंहूं खरीदी में किसाना ेके शोषण का नायाब तरीका ढूंढ निकाला निगम और समितियों ने  
हर बोरी पर आधा किलो अधिक मांगता हैं   निगम : समिति में खाता खोलने बाध्य किया जाता हैं  किसान : प्रति िक्वं. किसान से  पच्चीस और कुचिया व्यापारी से पचास रु. लेने की चर्चा : अकेले नहीं होने का दावा : कहीं भी शिकायत करने की चुनौती 
सिवनी। गेहूं खरीदी में जिले के किसानों के शोषण के नायाब तरीके नागरिक आपूर्ति निगम और सहकारी समितियों ने तलाश लिये हैं। जहां एक ओर निगम समितियों से एक िक्वण्टल पर एक किलो गेहूं अधिक ले रहा है तो वहीं दूसरी ओर सहकारी समितियां किसान द्वारा खाते से पैसा निकालते समय 25 रु. प्रति िक्वण्टल के हिसाब से नगदी काटकर पैसा दे रहें हैं। जिले पांच मई तक 5 लाख 76 हजार 18 िक्वण्टल गेहूं खरीदा जा चुका हैं। शिकायत करने की बात कहने वाले किसानों को यह कह कर टाल दिया जाता हैं कि कहां कहां शिकायत करोगे सभी जगह पैसा जाता हैं कोई हमारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता हैं।
किसानों के हितों के लिये गेहूं खरीदी में इस बार सरकार ने कई एतिहातन कदम उठाये थे। लेकिन तुम डाल डाल हम पान्त पान्त की तर्ज पर निगम और समितियों ने तरीके खोज लिये हैं। नागरिक आपूर्ति निगम वाल सहकारी समितियों पर दवाब डाल कर हर पचास किलो की बोरी पर आधा किलो गेहूं अधिक मांगते हैं। जिसे उनकी भाषा में यह कहा जाता है कि आधा किलो ज़िन्दा तौल चाहिये। इस तरह नागरिक आपूर्ति निगम के कारण किसानों  का हर िक्वण्टल पर एक किलो ज्यादा गेहूं ज्यादा गेहूं जा रहा हैं। प्रशानिक अधिकारी यदि जांच करना चाहें तो भंड़ारण किये गये किसी भी गोदाम में बोरियां तुलवा कर इस तथ्य की पुष्टि कर सकतें हैं। जानकार सूत्रों कायह भी दावा है कि जब यही बोरियां पी.डी.एफ. के लिये उन्हीं सहकारी समितियों को दी जातीं हैं तो उन बोरियों में बमुश्किल 49 किलो गेहूं ही निकलता हैं। इस तरह हर िक्वण्टल पर तीन किलो बचाया हुआ गेंहू आखिर कहां जाता है और बन्दर बाण्ट में कौन कौन शामिल हैंर्षोर्षो यह एक शोध का विषय बना हुआ है।   
ऐसा नहीं है कि सरकार ने शोषण रोकने के कोई उपाय ना किये हों। सरकार ने किसानों के खातों में सीधे भुगतान की राशि जमा करने के निर्देश दिये थे। लेकिन खरीदी करने वाली सहकारी समितियों ने इसकी भी नायाब बोड़ ढूंढ निकाली हें। केवलारी विस क्षेत्र की अधिकांश समितियों के बारे में किसानों ने बताया हैं कि यदि वे किसी बैंक खाते का अपना नम्बंर बतातें है तो उन्हें बाध्य किया जाता हैं कि वे समिति में ही अपना खाता खोलें नहीं तो उनका गेंहू नहीं खरीदा जायेगा। फिर जब किसान अपना खाता खुलवा लेता है तो निगम भुगतान का पैसा किसान के खाते में जमा करा देता हैं। किकसान जब विड्राल फार्म भर कर पैसा निकालने जाता हैं तब उससे 25 रु. प्रति िक्वण्टल की रकम देने को बाध्य किया जाता हैं। जो किसान रकम देने में आना कानी करता हैं उसका पैसा ही नहीं निकाला जाता हैं। पलारी क्षेत्र के कई किसान ऐसे भरे विड्राल लेकर चक्कर काट रहें हैं। कई किसानों ने तो यह भी दावा किया हैं कि उन्हें 25 रु. प्रति िक्वण्टल पैसा समिति वालों को देने के बाद ही भुगतान प्राप्त हुआ हैं। यह भी बताया जाता हैं कि यदि कोई किसान शिकायत करने की बात करता हैं तो उसे यह भी सुना दिया जाता हैं कि इतना सब कुछ हम अकेले ही थोड़ी कर रहें हैं। जहां चाहो वहां शिकायत कर दो हमारा कुछ नहीं बिगड़ने वाला हैं।
जानकार सूत्रों का यह भी दावा हैं कि कुचिया व्यापारियों से भी बेधड़क खरीदी की जा रही हैं लेकिन उनका रेट 50 रु. प्रति िक्वण्टल हैं। ये व्यापारी किसान से एक हजार रुपये से 11 सौ िक्वण्टल के हिसाब से घर में ही माल खरीद लेते हैं। फिर उनसे आवश्यक सभी दस्तावेज जैसे बही,परिचय पत्र,खाता नम्बंर ले लेते हैं। फिर उनके विड्राल पर भी साइन करा लेते हैं। इसलिये कानूनन तरीके से पूरी औपचारिकता करने के बाद वे माल समितियों में तुलवा देते हैं और जब 1270 रु. िक्वण्टल की दर से पैसा मिल जाता हैं तब 50 रु. प्रति िक्वण्टल समिति वालों को देने के बाद किसान को पैसा दे देते हें और लगभग 100 से 150 रु. प्रति िक्वण्टल के भाव से कमायी कर लेते हैं। ऐसा नहीं हैं कि खरीदी करने वाले कुचिया व्यापारियों को पहचानते नहीं हैं लेकिन रेट दुगना होने के कारण उन्हें रोकने की कोशिश नहीं करते हैं। ऐसा नहीं हैं कि यह गोरख धन्धा सभी सहकारी समितियों में चल रहा हो लेकिन केवलारी विस क्षेत्र, जो कि जिले का सबसे बड़ा गेंहू उत्पादक इलाका हैं, वहां जरूर यह गोरख धन्ध खूब फल फूल रहा हैं।  
किसनों का शोषण करने वाले निगम और समितियों ने ऐसा नायाब तरीका ढूंढ निकाला हैं जिसमें नियमानुसार सभी दस्तावेज भी रिकार्ड में रहते हैं और पैसे की निकासी भी खुद किसान के नाम से ही होती हैं।       
बताया तो यह भी जा रहा हैं कि पलारी इलाके कुछ किसानों ने जिला कलेक्टर से इसकी शिकायत भी की हैं। सबसे ताज्जुब की बात तो यह है कि एक किसान पुत्र मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह के राज में दूसरे किसान पुत्र विस उपाध्यक्ष इंका विधायक हरवंश सिंह के क्षेत्र किसान खुले आम लूटा जा रहा हैं और किसान पुत्रों का ना तो इस ओर ध्यान जा रहा हैं और ना ही किसानों की कोई जाजय सुनवायी ही हो रही हैं।            

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