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Sunday, May 8, 2011

plitical dairy of seoni disst. of M.P.

राहुल गान्धी की मंशानुसार युवा इंका के चुनावों के बाद इंकाई राजनीति में कोई परिवर्तन आयेगा या पुराना ढ़र्रा ही चलेगा?

सिवनी और बरघाट विस क्षेत्रों के युवा इंका के चुनावों में शिव सनोड़िया और देवेन्द्र ठाकुर अध्यक्ष चुन लिये गये हैं। राहुल गान्धी युवा इंका की कमान ऐसे नेतृत्व के हाथों में सौम्पना चाहते हैं जो कि ना केवल नया हो वरन उसका कांग्रेस का कोई बड़ा नेता Þकेअर आफÞ भी ना हो। जहां चुनाव हों वहां चुनावी हथकंड़े ना अपनाये जाये इसकी तो कल्पना ही नहीं करनी चाहिये। ऐसा ही सब कुछ युवक कांग्रेस के चुनावों में भी हुआ। वैसे तो चुनावों में ऐसा ही रहता हैं कि जो जीता वही सिकन्दर कहलाता है। लेकिन इन चुनावों में हार का गम कम करने की व्यवस्था की गई है। अत्याचार ना भ्रटाचार हम देंगें अच्छी सरकार के नारे पर भाजपा ने प्रदेश की सरकार पर आज से सात साल पहले अपना कब्जा किया था। लेकिन भ्रष्टाचार के मामले में भाजपा कितनी गम्भीर हैं ये प्रदेश की जनता बखूबी देख चुकी है। भाजपा का यह मानना हैं कि अपना यदि कोई करे तो शिष्टाचार हो और दूसरा कोई करे तो भ्रष्टाचार। गोंड़वाना गणतन्त्र पार्टी ने मोगली उत्सव पर सवाल उठाते हुये भाजपा और प्रदेश सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया हैं। एक विज्ञप्ति जारी कर प्रशासन द्वारा प्रेस के प्रवेश निषेघ किये जाने की आलोचना की गई थी। फिर एक अन्य विज्ञप्ति में यह सवाल उठाया गया था कि विधायक श्रीमती नीता पटेरिया और नपा अध्यक्ष राजेश त्रिवेदी के यहां विवाह समारोह में आने के लिये मुख्यमन्त्री और अन्य भाजपा नेताओं के कारण भीषण गर्मी में बच्चों को परेशान किया गया

सिवनी और बरघाट विस क्षे के चुने गये युवा इंका के अध्यक्ष -इस सप्ताह की सबसे महत्वपूर्ण राजनैतिक हलचल रही युवक कांग्रेस के चुनाव की। कांग्रेस के महासचिव और युवक कांग्रेस के प्रभारी राहुल गान्धी कांग्रेस से युवाओं को जोड़ने के लिये नये प्रयोग कर रहें हैं। इन प्रयोगों में से एक ये चुनाव भी हैं। देश के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त लिंगदोह के मार्ग दर्शन और देख रेख में ये चुनाव हो रहें हैं। मध्यप्रदेश में इन चुनावों का दूसरा चरण समाप्त हो गया हैें और अब तीसरे चरण में लोकसभा क्षेत्र एवं प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव होना हैं। इन चुनावों के माध्यम से राहुल गान्धी युवा इंका की कमान ऐसे नेतृत्व के हाथों में सौम्पना चाहते हैं जो कि ना केवल नया हो वरन उसका कांग्रेस का कोई बड़ा नेता Þकेअर आफÞ भी ना हो। जिमें के बालाघाट लोस में आने वाले सिवनी और बरघाट विस क्षेत्रों के अध्यक्ष सहित पदाधिकारियों का चुनाव 3 मई को हो गया जिसमें सिवनी से शिव सनोड़िया और बरघाट से देवेन्द्र ठाकुर अध्यक्ष चुन लिये गये हैं।सिवनी से चुने गये शिव सनोड़िया का नाम कांग्रेस की छात्र और युवा राजनीति में नया नहीं हैं। वे पिछले कुछ सालों से जिला एन.एस.यू.आई. के अध्यक्ष पद कार्य कर रहें हैं और आज भी अध्यक्ष हैं। उनका कार्यकाल यदि प्रशंसनीय नहीं रहा तो निन्दनीय भी नहीं कहा जा सकता हैं। छात्र संघों के चुनावों के दौरान इनकी सक्रियता देखी जाती रही हैं। अब देखना यह हैं कि पिछले पांच चुनावों से जिन सिवनी और बरघाट क्षेत्रों से कांग्रेस चुनाव हारती चली आ रही हैं वहां राहुल गान्धी की मंशा के अनुसार ये दोनो युवा नेता पार्टी को कितनी मजबूती प्रदान करते हैं या जिले की पिछले पन्द्रह सालों से चली आ रही कांग्रेस की परम्परा के अनुसार गुटबाजी में व्यस्त रह कर कांग्रेस के बजाय नेता विशेष को मजबूत करतें हैं।

चुनव हो तो हथकंड़े भी होंगं ही-जहां चुनाव हों वहां चुनावी हथकंड़े ना अपनाये जाये इसकी तो कल्पना ही नहीं करनी चाहिये। ऐसा ही सब कुछ युवक कांग्रेस के चुनावों में भी हुआ। राहुल गान्धी चाहते थे कि इन चुनावों के जरिये हर विधान सभा की प्रत्येंक ग्राम पंचायत और हर वार्ड में युवा इंका की निर्वाचित इकाई हो। लेकिन ऐसा नही हो पाया। चुनाव होने के लिये जितनी इकाइयां आवश्यक थी उतनी इकाइयां बनायीं गईं और शेष को छोड़ दिया गया। उदाहरण के लिये सिवनी विधानसभा क्षेत्र में शहर के सभी वाडोZं के अलावा मात्र चालीस पंचायतों में ही इकाइयों का गठन किया गया जबकि इस क्षेत्र में सौ से अधिक ग्राम पंचायतें हैं। रहा सवाल चुनावी हथकंड़ों के अपनाने का तो इसके बारे में तो अध्यक्ष पद एक प्रत्याशी आसिफ इकबाल ने बाकायदा विज्ञप्ति जारी कर इसका खुलासा किया हैं। वैसे तो चुनावों में ऐसा ही रहता हैं कि जो जीता वही सिकन्दर कहलाता है। लेकिन इन चुनावों में हार का गम कम करने की व्यवस्था की गई है। जिन पांच पदाधिकारियों को चुना था उसमें नियमानुसार सबसे अधिक मत पाने वाना अध्यक्ष उससे कम वोट पाने वाला उपाध्यक्ष और फिर उनसे कम मत पाने वाले तीन प्रत्याशी महामन्त्री चुने गये हैं।

भ्रष्टाचार कोई मुद्दा नही रह गया है भाजपा के लिये -अत्याचार ना भ्रटाचार हम देंगें अच्छी सरकार के नारे पर भाजपा ने प्रदेश की सरकार पर आज से सात साल पहले अपना कब्जा किया था। लेकिन भ्रष्टाचार के मामले में भाजपा कितनी गम्भीर हैं ये प्रदेश की जनता बखूबी देख चुकी है। आज लगभग एक दर्जन मन्त्री लोकायुक्त की जांच में के दायरे में हैं। जो जहां चुनकर आया उसमें से अधिकांश भाजपा नेता भ्रष्टाचार के एक सूत्री कार्यक्रम को लेकर चलना अपना ही सब कुछ समझने लगे हैं। भ्रष्टाचार के प्रमाणिक मामलों में भी अपने कार्यकत्ताZओं को बचाव करना भाजपा नेता अपना कत्तZव्य मानते हैं। पिछले दिनो भाजपा की प्रदेश सरकार ने ही सिवनी नगर पालिका की तत्कालीन अध्यक्ष श्रीमती पार्वती जंघेला को भ्रष्टाचार के मामले में दोषी पाते हुये उनसे ना केवल तीन लाख रुपये की वसूली के आदेश दिये हैं वरन पांच साल के लिये चुनाव लड़ने के लिये भी अयोग्य घाषित कर दिया हैं। पार्वती जंघेला जिला महिला मोर्चे की अध्यक्ष हैं। उनके नेतृत्व में भाजपा ने महंगायी और केन्द्र शासन के तमाम घोटालों और गलत नीतियों के खिलाफ आन्दोलन किया। मीडिया में इस बात को लेकर कमेण्ट भी किये गये लेकिन भाजपा नेतृत्व पर इसका कोई असर नहीं हुआ और उनके ही नेतृत्व में जिले के तमाम वरिष्ठ नेताओं पैदल मार्च भी किया। और और उनके बचाव भी यह कहा गया कि अभी उनके लिये आदालत के दरवाजे खुले हुये हें और हो सकता है कि वे वहां से निर्दोष साबित हो जायें। उनके बचाव में कही गई यह बात भाजपा चाल चरित्र और चेहरे के दावे को बेनकाब कर देता हें और इससे यह भी साबित होता है कि भाजपा का यह मानना हैं कि अपना यदि कोई करे तो शिष्टाचार हो और दूसरा कोई करे तो भ्रष्टाचार। जिले में यदि संगठन के प्रमुख पदों पर भी यदि भ्रष्टाचार के आरोप प्रमाणित होने वाले नेताओं को पद बनाये रखा जायेगा तो प्रदेश में भाजपा की सरकार रहते जिले में भ्रष्टाचार समाप्त होने की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती है।

मोगली उत्सव पर सवाल खड़े कर गौगपा ने भाजपा को कठघरे में किया खड़ा- गोंड़वाना गणतन्त्र पार्टी ने मोगली उत्सव पर सवाल उठाते हुये भाजपा और प्रदेश सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया हैं। पहले तो एक विज्ञप्ति जारी कर प्रशासन द्वारा प्रेस के प्रवेश निषेघ किये जाने की आलोचना की गई थी। फिर एक अन्य विज्ञप्ति में यह सवाल उठाया गया था कि विधायक श्रीमती नीता पटेरिया और नपा अध्यक्ष राजेश त्रिवेदी के यहां विवाह समारोह में आने के लिये मुख्यमन्त्री और अन्य भाजपा नेताओं के कारण भीषण गर्मी में बच्चों को परेशान किया गया और उसकी तारीख 9 से 11 मई रखी गया है। उल्लेखनीय है कि दोनों ही विवाह समारोह 11 मई को होने वाले हैं। वैसे भी इस बार मोगली महोत्सव प्रारम्भ से ही विवादों में घिर गया था। प्रदेश की भाजपा सरकार ने यह घोषणा की थी हर साल मोगली उत्सव पेंच नेशनल पार्क में मनाया जायेगा। लेकिन इस साल सरकार ने इस उत्सव को पन्ना नेशनल पार्क में मनाने का फैसला कर लिया था। वैसे भी शिव की नगरी सिवनी को शिवराज ने कुछ दिया तो नहीं लेकिन छिन बहुत कुछ गया था। इसर तर्ज पर इस बार मोगली उत्सव भी छिन रहा था। लेकिन बाद में फिर स्थान परिवर्तित कर पेंच नेशनल पार्क तो कर दिया गया लेकिन आयोजन की तिथि बझ़ा कर एक नये विवाद को पैदा कर दिया हें। लेकिन आजकल तो राजनेताओं की यह प्रवृत्ति हो गई हैं कि कोई कुछ बोलता रहे हमें जो करना हैं वह हम करते रहेंगें भले ही वह गलत ही क्यों ना हो।



ये क्या होता जा रहा है शिव की नगरी सिवनी को



ना जाने ये क्या होता जा रहा ह ैशिव की नगरी सिवनी कोर्षोर्षो एक दौर ऐसा भी था जबकि सन 1962 में जिले से लगे हुये जबलपुर में ऊषा भार्गव कांड़ के रूप में भयंकर साम्प्रदायिक दंगा हुआ था। इसकी चपेट में सम्भाग के कई जिले आ गये थे। लेकिन उसकी आग की लपटें सिवनी को छू भी नहीं पायीं थीं। लेकिन इसी सिवनी में तीस साल बाद 1992 में अयोध्या में विवादित ढांचा गिराये जाने से हुयी अशान्ति के चलते लगभग 19 दिन का कफ्Zयू लगाना पड़ा था। आज प्रदेश में साम्प्रदायिक रूप से संवेदनशील जिलों की सूची में सिवनी का नाम काफी ऊंंची पायदान पर हैं। जहां 1962 में जिले में कहीं कुछ नहीं हुआ था वहां अब कहां और कब क्या हो जायेर्षोर्षो इसके बारे में कुछ भी कहा नहीं जा सकता हैं।

कभी देश में मध्यप्रदेश शान्ति का टापू माना जाता था। उसमें सिवनी जिला तो ऐसा था कि उसने सन 1967 के मेजर पेर सिंह - गौतम इंस्पेक्टर कांड़ के पहले अश्रु गेस के गोले तक नहीं देखे थे। पहली बार जब 1971 के दंगें में शहर में कफ्Zयू लगा था तब गांव के कुछ भोले भाले लोग तो सर्कस के समान कफ्Zयू देखने शहर आ गये थे और पुलिस की गिरफ्त में आ गये थे जिन्हें पुलिस ने भी नादान समझ कर छोड़ दिया था। आज उसी शिव की नगरी सिवनी में गैंगवार जैसी घटनायें भी होने लगीं हैं।

सिवनी में घोड़ी पर सवार दूल्हे पर कभी गोली चल जायेगी और शहनायी की गूञ्ज चीत्कारों में बदल जायेगी। मेंहदी हाथों में सजाकर वैवाहिक जीनव में प्रवेश करने के सपने सञ्जोयी दुल्हन को फेरों का इन्तजार करते रह जाना पड़ेगा। ऐसा तो कभी सोचा भी नहीं था। लेकिन आशीष नगपुरे के साथ ऐसा ही हो गया। इतना ही नहीं वरन गोली की घटना से आक्रोशित बरातियो द्वारा हमलावर एक युवक सतीश कुचबुन्दिया को इतनी बुरी तरह पीटा गया कि वह भी मौत से संघर्ष कर रहा हैं। व्यवसायिक प्रतिद्वन्दिता की यह खूनी परिणिति बहुत कुछ सोचने को मजबूर कर देती हैं।

आज के दौर में राजनीति इतनी ज्यादा प्रभावशाली हो गई हैं कि वह समाज के हर वर्ग को प्रभावित कर रही हैं। राजनेताओं को इतना भी परहेज नहीं रह गया है कि उनके द्वारा आपराधिक तत्वों को दिया जाने वाला संरक्षण कभी कभी ना केवल उनके लिये ही घातक हो जाता हैं वरन शहर के अमन चैन को भी नाश करके रख देता हैं। अधिकारियों को भी नेताओं की हर सिफारिश को मान कर सिर्फ अपनी सुविधा का ध्यान रखने के बजाय अपने कत्तZव्यों को भी याद रखना चाहिये। यदि ऐसा सब नहीं होता हैं तो फिर अमन चैन के लिये मशहूर इस शहर का भगवान ही मालिक होगा।









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