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Monday, July 16, 2012


लखनादौन नपं के चुनाव में निर्दलीय की जीत से कांग्रेस       और भाजपा के कई नेताओं के चेहरे बेनकाब हो गये 
 प्रदेश के आदिवासी क्षेत्रों में हुये नगरीय निकायों के चुनावों में भाजपा को मिली रिकार्ड सफलता ने कांग्रेस के मिशन 2013 को गहरा आघात पहुंचाया हैं। प्रदेश के दिग्गज कांग्रेसी क्षत्रपों के क्षेत्रों के मतदाताओं ने भी इन चुनावों में शिवराज राग अलाप कर उनको कठघरे में खड़ा कर दिया हैं।इस सफलता से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह और प्रदेश भाजपा अघ्यक्ष प्रभात झा की बांछें खिल गयीं हैं। प्रदेश के एक और कांग्रेसी क्षत्रप विस उपाध्यक्ष हरवंश सिंह के गृह जिले में तो कांग्रेस के इतिहास का सबसे अधिक काला अध्याय इन चुनावों में जुड़ गया हैं जहां कांग्रेस रणछोड़दास बन गयी हैं। मुनमुन हरवंश नूरा कुश्ती के चलते ही ऐसा हो पाना संभव हुआ हैं। लखनादौन के इस चुनाव में पूरी ताकत झोंकने की बात करने वाली भाजपा का पूरी तरह सफाया होना भी राजनैतिक हल्कों में चर्चित हैं।मविप्रा के लाल बत्तीधारी   अध्यक्ष नरेश दिवाकर के अलावा जिला भाजपा अध्यक्ष सुजीत जैन पूरे चुनाव की कमान संभाले हुये थे। जीत का सेहरा अपने सिर बांधने के लिये जितने भी भाजपा नेता उतावले थे वे सब मिलकर अब हार ठीकरा स्थानीय भाजपा विधायक शशि ठाकुर के सिर पर फोड़ने की योजना में जुट गये हैं।इस चुनाव में कांग्रेेस के चुनाव चिन्ह पंजे पर  15 वार्डों में 3226 मतदाताओं ने सील लगाकर वोट दिया था। ऐसे राजनैतिक हालात में अध्यक्ष पद में हुयी नूरा कुश्ती ने कांग्रेस के गढ़ रहे लखनादौन में एक बार फिर से पैर जमाने का मौका कांग्रेस ने गंवा दिया। अब इसके दुष्परिणाम 2013 के विस चुनावों में किस किस क्षेत्र में कांग्रेस को भुगतना पड़ेगा और किस क्षेत्र में कांग्रेस को लाभ मिलेगा? यह तो विस चुनावों के बाद ही पता चलेगा।
कांग्रेस के क्षत्रपों के इलाके मे भी खिला कमल-प्रदेश के आदिवासी क्षेत्रों में हुये नगरीय निकायों के चुनावों में भाजपा को मिली रिकार्ड सफलता ने कांग्रेस के मिशन 2013 को गहरा आघात पहुंचाया हैं। प्रदेश के दिग्गज कांग्रेसी क्षत्रपों के क्षेत्रों के मतदाताओं ने भी इन चुनावों में शिवराज राग अलाप कर उनको कठघरे में खड़ा कर दिया हैं।प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया,केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ, इंका महासचिव दिग्विजय सिंह,पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरुण यादव के क्षेत्रों में भी मतदाताओं ने कमल खिलाकर सभी को भौंचक कर दिया हैं। इस सफलता से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह और प्रदेश भाजपा अघ्यक्ष प्रभात झा की बांछें खिल गयीं हैं। वैसे तो कहने के लिये ये चुनाव आदिवासी अंचलों में हुये हैं लेकिन वास्तविकता तो यह हैं कि नगरीय क्षत्रों में आदिवासी मतदाताओं की संख्या हर जगह बहुमत में नहीं थी। इसलिये भाजपा का यह मानना कि प्रदेश का आदिवासी मतदाता उनके पक्ष में लामबंद हो गया हैं एक राजनैतिक भूल भी साबित हो सकती हैं। जहां तक प्रदेश के कांग्रेसी क्षत्रपों की बात हैं तो पिछले कई सालों से यह देखा जा रहा हैं कि सभी क्षत्रप अपने समर्थकों को ही कांग्रेस मानकर उनके सौ खून भी माफ करवा कर उन्हें ही मजबूत करने में लगे रहते हैं जिससे कांग्रेस कमजोर होते जा रही हैं। यदि प्रदेश के सभी कांग्रेसी क्षत्रप निष्ठावान एवं समर्पित,प्रताड़ित और उपेक्षित सभी कांग्रेसियों को अपना समर्थक मानकर प्रदेश में कांग्रेस को मजबूत करने में जुट जायें तो भाजपा का प्रदेश में डटकर मुकाबला किया जा सकता हैं। अन्यथा सभी क्षत्रप तो चुनाव जीतते जायेंगें और कांग्रेस प्रदेश में ऐसे ही चुनाव हारती जायेगी और यह सिलसिला थमने वाला नहीं हैं।  
हरवंश के जिले में रणछोड़दास बनी कांग्रेस - प्रदेश के एक और कांग्रेसी क्षत्रप विस उपाध्यक्ष हरवंश सिंह के गृह जिले में तो कांग्रेस के इतिहास का सबसे अधिक काला अध्याय इन चुनावों में जुड़ गया हैं जहां कांग्रेस रणछोड़दास बन गयी हैं। मुनमुन हरवंश नूरा कुश्ती के चलते ही ऐसा हो पाना संभव हुआ हैं। नगर पंचायत लखनादौन के चुनाव में वही हुआ जिसकी आशंका मुसाफिर अपने इस सियासी सफरनामे में व्यक्त कर चुका था। कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष पद की प्रत्याशी ने अपना नाम ही वापस ले लिया और कांग्रेस मैदान से बाहर हो गयी। इस सांठ गांठ के चलते ही कांग्रेस ने किसी भी उम्मीदवार को अपना समर्थ भी नहीं दिया। यहां यह विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं कि जब भी प्रदेश में कांग्रेस अध्यक्ष,नेता प्रतिपक्ष या भावी मुख्यमंत्री के नामों की चर्चा चलती हैं तो मीडिया में प्रमुखता से हरवंश सिंह का नाम भी सामने आता हैं। ऐसे में उनके गृह जिले में कांग्रेस के लखनादौन जैसे गढ़ रहे इलाके में कांग्रेस एक अदद उम्मीदवार भी तलाश नहीं कर पाने को भला क्या कहा जा सकता हैं। यहां यह विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं कि आजादी के बाद से लेकर 2003 तक लखनादौन विस क्षेत्र कांग्रेस का ऐसा मजबूत किला रहा हैं जिसे ना तो 77 की जनता आंधी और ना ही 1990 की रामलहर भी ढहा नहीं पायी थी। लेकिन पिछले दस पंद्रह साल में कांग्रेसी क्षत्रप हरवंश सिंह की स्वार्थपरक राजनीति के चलते पिछले दो चुनाव से भाजपा यहां से चुनाव जीत रही हैं। लेकिन इस चुनाव में पूर्व अध्यक्ष दिनेश मुनमुन राय की माता जी सुधा राय ने भाजपा को भी धूल चटा दी हैं। इस तरह चुनाव से पहले ही कांग्रेस और चुनाव के बाद भाजपा की भी यहां भद्द पिट गयी हैं। 
फिर चर्चित हुयी हरवंश नरेश नूरा कुश्ती- लखनादौन के इस चुनाव में पूरी ताकत झोंकने की बात करने वाली भाजपा का पूरी तरह सफाया होना भी राजनैतिक हल्कों में चर्चित हैं। अध्यक्ष पद में जहां भाजपा को सिर्फ 1880 वोट मिले वहीं 15 में से सिर्फ तीन पार्षद ही चुनाव जीते हैं। इसमें भी एक मजेदार बात यह हैं कि पूरे पंद्रह वार्डों में भाजपा को जो वोट मिले हैं उससे अध्यक्ष पद की प्रत्याशी को 500 से अधिक कम वोट मिले हैं। उल्लेखनीय हैं कि प्रदेश भाजपा अध्यक्ष प्रभात झा और संगठन मंत्री अरविंद मैनन के दौरे भी भाजपा को पार नहीं लगा सकी। इसके अलावा जिले के सभी भाजपा   विधायकों सहित पूरी नेताओं की फौज लगी थी। मविप्रा के लाल बत्तीधारी   अध्यक्ष नरेश दिवाकर के अलावा जिला भाजपा अध्यक्ष सुजीत जैन पूरे चुनाव की कमान संभाले हुये थे। भाजपायी हल्कों में ही इस बात की चर्चा हो रही हैं कि इस चुनाव में कुछ नेताओं ने आने वाले 2013 के विस चुनाव के हिसाब से बिसात बिछायी और निर्दलीय उम्मीदवार से सांठ गांठ कर ली। वैसे भी जिले के इंकाई और भाजपायी हल्कों में हरवंश नरेश नूरा कुश्ती के किस्से बहुत आम रहें हैं। 2008 के चुनाव में भाजपा विधायक नरेश दिवाकर की टिकिट कट जाने से उनके कई समर्थकों ने निर्दलीय मुनमुन राय का चुनाव चिन्ह कप प्लेट अपने हाथ में थाम लिया था। जीत का सेहरा अपने सिर बांधने के लिये जितने भी भाजपा नेता उतावले थे वे सब मिलकर अब हार ठीकरा स्थानीय भाजपा विधायक शशि ठाकुर के सिर पर फोड़ने की योजना में जुट गये हैं।
कांग्रेस का आभार हुआ चर्चित- लखनादौन नपं के चुनाव में जिला कांग्रेस ने अधिकृत विज्ञप्ति जारी कर कांग्रेसी पार्षदों को जिताने और भाजपा को सफाये के लिये मतदाताओं का आभार व्यक्त किया हैं। यह तो कुछ ऐसा ही हुआ कि अपनी दोनों आंख फूट जाने का गम मरने के बजाय सामने वाले की एक आंख फूट जाने की खुशी मनायी जा रही हो। वैसे तो चुनाव के पहले ही एक बैठक लेकर यह प्रस्ताव पास किया गया था कि अपिहार्य कारणों से अध्यक्ष पद के लिये कांग्रेस का उम्मीदवार नहीं हैं इसलिये कार्यकर्त्ता स्वविवेक से निर्णय लेकर तथा पार्षद पद के कांग्रेसी प्रत्याशियों को जितायें तथा भाजपा को हरायें। निर्दलीय उम्मीदवार श्रीमती सुधा राय जो कि पूर्व अध्यक्ष दिनेश मुनमुन राय जी की माताजी हैं जिनसे सांठ गांठ का खुले आरोप हरवंश सिंह पर लग रहे थे उनके बारे में चुप रह कर भाजपा को हराने की इस अपील ने रहा सहा काम भी पूरा कर दिया था। वैसे कांग्रेस ने 15 में से 8 पार्षद जीत कर नगर पंचायत में अपना बहुमत बना लिया हैं। इस चुनाव में कांग्रेेस के चुनाव चिन्ह पंजे पर  15 वार्डों में 3226 मतदाताओं ने सील लगाकर वोट दिया था। ऐसे राजनैतिक हालात में अध्यक्ष पद में हुयी नूरा कुश्ती ने कांग्रेस के गढ़ रहे लखनादौन में एक बार फिर से पैर जमाने का मौका कांग्रेस ने गंवा दिया। अब इसके दुष्परिणाम 2013 के विस चुनावों में किस किस क्षेत्र में कांग्रेस को भुगतना पड़ेगा और किस क्षेत्र में कांग्रेस को लाभ मिलेगा? यह तो विस चुनावों के बाद ही पता चलेगा।“मुसाफिर“       
साप्ताहिक दर्पण झूठ ना बोले से साभार

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