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Monday, August 31, 2015

लखनादौन को जिला बनाने की मांग
क्या एक विधानसभा क्षेत्र  की सीमाओं का विस्तार दो जिलों तक हो सकता है या फिर होगा परिसीमन?
तीस तक नहीं हो सकता परिसीमनःप्रस्तावित क्षेत्र में पहले दो ही विस क्षेत्र थेः अब तीन विस क्षेत्र आते हैं प्रस्तावित क्षेत्र मेंः कैसे होगा  इसका हल? 
सिवनी। लखनादौन को जिला बनाने की मांग बहुत पुरानी हैं। आज से लगभग 12-13 साल पहले सोनिया गांधी के लखनादौन प्रवास की तैयारियों की कांग्रेस की बैठक में डॉ. आनंद तिवारी ने यह मांग उठायी थी तब यह कह कर दबा दिया गया था कि जिला क्या संभाग बनाने की मांग कर लो। लेकिन अंदर ही अंदर यह मांग सुलगती रही और अब इसे लेकर विगत पंद्रह दिनों से आंदोलन चल रहा है जिसे भारी जन समर्थन भी मिल रहा है।
जब परिसीमन हुआतो लोकसभा और जिले का एक विस क्षेत्र विलुप्त हो गया तब क्षेत्र कुछ इस तरह से काटे गये कि आज लखनादौन जिले के लिये जो सीमायें प्रस्तावित की जा रहीं हैं उसमें जिले के चार में से तीन विस क्षेत्रों के हिस्से शामिल है। इन क्षेत्रों में लखनादौन के अलावा केवलारी और सिवनी विस क्षेत्र के हिस्ससे भी आ रहें हैं जो कि छपारा विकास खंड़ के इलाके है। 
यहां यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है वर्तमान परिसीमन के पहले जिलें के लो पांच विस क्षेत्र थे एनमें से दो लखनादौन और घंसौर क्षेत्र छपारा,लखनादौन,घंसौर और धनोरा विकास खंड़ में आते थे जो कि वर्तमान में प्रस्तावित लखनादौन जिले की सीमायें है। शेष चार विकासखंड़ों सिवनी,बरघाट,केवलारी और कुरई में सिवनी,केवलारी और बरघाट विस क्षेत्र आते थे जो कि सामान्य क्षेत्र थे। 
पिछले परिसीमन के दौरान केन्द्र की अटल सरकार ने यह प्रतिबंध लगा दिया था कि सन 2030 तक इसके बाद परिसीमन नहीं हो सकेगा। वैसे हर दस साल में जनगणना के बाद देश के लोकसभा एवं विधानसभा क्षेत्रों का परिसीमन होता था। पछिला परिसीमन 2001 की जन गणना के आधार पर हुआ था जबकि अब 2011 की जन गणना भी पूरी हो गयी है लेकिन केन्द्र सरकार के प्रतिबंध के कारण परिसीमन 2030 तक होना संभव नहीं है। 
सामान्य तौर पर एक से अधिक जिलों में लोकसभा क्षेत्र की सीमायें तो विस्तारित होतीं हैं लेकिन विधानसभा क्षेत्रों के मामले में ऐसी कोंई नजीर सामने नहीं आयीं है। ब्लकि परिसीमन आयोग के निर्देश ऐसे रहते है कि विस क्षेत्रों के परिसीमन में जहां तक संभव हो ग्राम पंचायत भी ना तोड़ी जाये तो फिर जिले से ही बाहर जाने का तो कोई सवाल ही नहीं उठता हैं।
इस मांग को लेकर चलाये जा रहे इस आंदोलन को भारी जन समर्थन मिल रहा हैं। जन भावनाओं का प्रजातंत्र में आदर किया जाना चाहिये यह भी सही हैं लेकिन यदि विस क्षेत्रों वाला पेंच फंसा तो फिर इसका क्या और कैसे हल निकलेगा? इस पर भी विचार करना बहुत जरूरी है नहीं तो जन भावनाओं के साथ एक बड़ा खिलवाड़ हो जायेगा।  
दर्पण ढूठ ना बोले सिवनी
01 सितम्बर 2015 से साभार

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