www.hamarivani.com

Monday, February 14, 2011

फोर लेन विवाद

अरबों में दी जाने वाली हर्जाने की राशि ही तो कहीं विलंब का कारण नहीं बन रही है?

एन.एच.ए.आई. के अधिकारियों द्वारा किया जा रहा विलंब बना पहेली: 8.7 कि.मी. की आड़ में 38 कि.मी. का काम रोेकना समझ से परे

सिवनी। फोर लेन विवाद में हो रहे विलंब को लेकर तरह तरह की चर्चायें होने लगीं है। राष्ट्रीय राज मार्ग विकास प्राधिकरण के ठेकेदारों साथ हुये करार के अनुसार 14 फरवरी 2011 तक सरकार को 337 करोूड़ 85 लाख 17 हजार 4 सौ रुपये हर्जाना देय हो गया हैं। साने के अंडे देने वाली इस मुर्गी के कारण ही शायद एन.एच.ए.आई. के अधिकारी इस मामले को लटका रहे हैं। वरना खुद के द्वारा ही दिये गये विकल्प से अब उनका मुकरना समझ से परे हैं।

कुरई के विवादास्पद 8.7 कि.मी. का मार्ग पेंच नेशनल पार्क को आधार बना कर प्रस्तुत किया गया था। सुप्रीम कोर्ट की सी.ई.सी. को अपने जवरब में एन.एच.ए.आई. ने प्रथम विकल्प के रूप में एलीवेटेड हाई वे याने फ्लाई ओवर बनाने का रखा था लेकिन वन एवं पर्यावरण मंत्रालय इस पर भी सहमत नहीं था। लेकिन जब जिले के नागरिकों की ओर से जनमंच के माध्यम से जब दूसरा पक्ष कोर्ट के समक्ष आया तो वन मंत्रालय भी इस पर सहमत हो गया। लेकिन आम सहमति इसलिये नहीं बन पा रहीं है क्योंकि भू तल परिवहन मंत्रालय ही 900 करोड़ रुपये की लागत की आड़ लेकर अब इससे मुकर रहा है।

जिला कलेक्टर सिवनी ने राज्य शासन को भेजे अपने एक पत्र में उल्लेख किया हैं कि ठेकेदार को बाधा मुक्त जमीन उपलब्ध ना करा पाने के कारण एन.एच.ए.आई. को 6हजार रुपये प्रति हेक्टेयर प्रतिदिन हर्जाना देना होगा। इसके अनुसार 14 फरवरी 2011 तक सरकार को 337 करोड़ 85 लाख 17 हजार 4 सौ रु. की राशि ठेकेदार को हर्जाने के रूप में देय हो गयी हैं।

जनचर्चा हैं कि इसी कारण एन.एच.ए.आई. के अधिकारी यह नहीं चाहते हैं कि मामला जल्दी निपट जाये। इतनी बड़ी राशि का भुगतान ाी कोई वैसे ही होने की संभावना भी नहीं व्यक्त की जा रही हैं। इसीलिये शायद इस मामले में उनके अधिकारी बात करना नहीं चाहते हैं। बीती 13 फरवरी को जब नरसिंहपुर में पदस्थ उनके अधिकारी श्री सिंघई से चर्चा करने का प्रयास किया गया तो उन्होंने यह कहा कि अभी वे खाना खा रहे हैं और बात नहीं कर सकते। लेकिन इसके बाद भी शिष्टाचारवश उन्होंने भी बात करना जरूरी नहीं समझा।

ऐसे हालात में इसविवाद का कब हल और होता हें और केन्द्र सरकार को कितने अरब रुपयों का चूना लगता हैं? यह तो आने वाला समय ही बतायेगा।

No comments:

Post a Comment