कांग्रेस चुनावों को लेकर अखबारों ये समाचार सुर्खियों में रहें कि कांग्रेस में चुनाव की सिर्फ औपचारिकता ही पूरी की जा रही हैं। सुपात्र,अपात्र और कृपापात्र को लेकर भी अटकलें लगायी जा रहीं हैं। कृपापात्रों की ताजपोशी की संभावनाये हैं। वैसे भी कृपापात्र और कुपात्र में फर्क करना आसान नहीं हैं क्योंकि हरवंश सिंह के अधिकांश कृपापात्र पार्टी के लिये कुपात्र ही साबित होते रहें हैं। कांग्रेसी हल्कों में इन दिनों एक चर्चा ऐसी भी हैं कि जिला इंका अध्यक्ष महेश मालू के पारिवारिक वारसानों ने उनसे यह आग्रह किया हैं कि यदि इस बार कोई पीले चांवल लेकर भी आयें तो अध्यक्ष बनने की सहमति नहीं देना। शिवराज के बयान पर जिले की इंकाईचुप्पी और हरवंश सिंह के आरोपी बनने पर भाजपा की सदन में चुप्पी सियासी हल्कों की चर्चाओं में आकर्षण का केन्द्र बनी हुयी है। कई दिनों से तो आलम यह है कि इंकायी और भाजपा खेमे में खुलआम नूरा कुश्ती के चर्चे होते हें और छोटे कार्यकत्ताZ यह मानने लगे हैं कि मरना तो अपना ही हैं बड़े नेता तो बुरे वक्त में एक दूसरे का साथ देकर बचा ही लेते हैं। चाहें फिर वह मुख्यमन्त्री का डंपर मामला हो या हरवंश सिंह का जमीन घोटाले मामले में मुिल्जम बनना हो। वैसे तो मामले में दोषी केन्द्र की कांग्रेस सरकार भी हें और प्रदेश की भाजपा सरकार भी हैं। इसलिये जनमंच का आक्रमण दोनों ही दिशा में बराबर रहना आवयक हें अन्यथा राजनैतिक भेद भाव से बचना मुश्किल हो जावेगा।
सुपात्र,अपात्र और कृपापात्र के चर्चे हो रहें हैं इंकाई चुनाव में -
जिले में कांग्रेस के चुनाव होने की औपचारिकता पूरी होने लगी हैं।सबसे पहले जिले के चुनाव अधिकारी उस समय आकर चले गये जब ब्लाक कमेटियों ने जिला प्रतिनिधियों का भी चुनाव नहीं किया था। बाद में ब्लाक कमेटियों के चुनाव अधिकारी आये और अपना काम करके चले गये। जिले सहित किसी भी ब्लाक के चुनाव अधिकारी के आने या बैठक लेने कोई विज्ञप्ति जारी नहीं की गई तथा ना ही सभी सुपात्रों को सूचित किया गया जो कि जो कि चुनाव लड़ने की पात्रता रखते हैं। इसे लेकर अखबारों में भी ये समाचार सुर्खियों में रहें कि कांग्रेस में चुनाव की सिर्फ औपचारिकता ही पूरी की जा रही हैं। सुपात्र,अपात्र और कृपापात्र को लेकर भी अटकलें लगायी जा रहीं हैं। सुपात्र तो कांग्रेस आलाकमान की देन हैं जिसके लिये बाकायदा कार्यकत्ताZओं से फोटो सहित फार्म भराया गया हैं और जिनकी सूची बनायी गई हैं। अपात्रों को पात्र जिले इंकाई महाबली हरवंश सिंह और उनकी अंध समर्थक जिला इंका ने बनायी हैं। जिला इंका ने ही अपात्र बनायी थी और फिर ना जाने कैसे और कब जिला इंका ने ही उन्हें पात्र बना दिया। वैसे अपात्र बनाने की तो बाकायदा विज्ञप्ति प्रकाशित की गईं थीं लेकिन वे पात्र कब और कैसे बन गये इसका पता ही किसी को नहीं चला हैं। अपात्र से पात्र बने ये इंकाई यदि कृपापात्र भी बन गये तो ताज इन्हीं के सिर पर पहना दिया जाये तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिये। इंकाई हल्कों में तो लोग चटखारे लेकर यह भी कहने से नहीं चूक रहें कि आलाकमान के सुपात्र भले ही एक कौने में चलें जायें लेकिन हरवंश के कृपापात्र को दरकिनार करना असम्भवा सा ही हैं। वैसे भी कृपापात्र और कुपात्र में फर्क करना आसान नहीं हैं क्योंकि हरवंश सिंह के अधिकांश कृपापात्र पार्टी के लिये कुपात्र ही साबित होते रहें हैं।
जिनसे गाली खाओ उन्हीं को टीका लगाओं संस्कृति से त्रस्त- कांग्रेसी हल्कों में इन दिनों एक चर्चा ऐसी भी हैं कि जिला इंका अध्यक्ष महेश मालू के पारिवारिक वारसानों ने उनसे यह आग्रह किया हैं कि यदि इस बार कोई पीले चांवल लेकर भी आयें तो अध्यक्ष बनने की सहमति नहीं देना। उनके परिजन इस बात से दुखी हैं कि जब देखो तब कोई भी गाली गलौच कर के चला जाता हैं। फिर यह भी एक अजीब मजबूरी रहती हैं कि जिससे गाली खाओ उसी का किसी के कहने पर टीका लगाकर सम्मान करो। वैसे भी जिला इंका अध्यक्ष महेश मालू का परिवार स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों का परिवार रहा हैं। ऐसे में जिले के कांग्रेसियों द्वारा उनके परिजनों के साथ ऐसा व्यवहार करना सर्वथा अनुचित हैं। इसीलिये इस बार उनके परिजनों ने विशेषकर वारसानों ने उनसे कहा है कि अब वे उन सब झंझटों से मुक्त हो जायें। अब होता क्या हैं र्षोर्षो यह तो भविष्य ही बतायेगा।
प्रदेश में इंका भाजपा में नूरा कुश्ती के चर्चे आम- प्रदेश और जिले के रानजैतिक पटल पर इन दिनों दो महत्व पूर्ण घटनायें हुयी हैं। वषाZकालीन सत्र के पहले मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह चौहान ने शिवपुरी जिले के एक गांव में यह बयान देकर सनसनी फैला दी कि उन्हे हटाने के लिये संगठित प्रयास किये जा रहे हैं और भू माफिया इसके लिये पैसा इकट्ठा कर रहा हैं। इसे लेकर कांग्रेस ने दो दिनो तक सदन में हंगामा मचाया और सथगन प्रस्ताव पर चर्चा के बिना माने नहीं। जिले के राजनैतिक पटल पर एक जमीन घोटाले में इंका विधायक एवं विस उपाध्यक्ष हरवंश सिंह पर कोर्ट के निर्देश से धोखा धड़ी का मामला दर्ज हो गया और अब पुलिस उसमें जांच कर रही हैं। पहले ऐसी उम्मीद थी कि 20 जुलाई की पेशी में मामला समाप्त हो जायेगा लेकिन पुलिस ने जांच के लिये समय ले लिया और अब अगली पेशी 19 अगस्त को होगी। इस पर जिले में भाजपा और उनके नेताओं ने काफी हल्ला मचाया लेकिन प्रदेश भाजपा और सदन में इस मामले में भाजपायी चुप्पी सियासी हल्कों में चर्चित हैं। कांग्रेस द्वारा सदन में मुख्यमन्त्री को घेरने के बावजूद भी हरवंश सिंह के मामले में भाजपायी चुप्पी लोगों के गले के नीचे नहीं उतर नहीं हैं। जबकि इस मामले को राजनैतिक रूप से प्रताड़ना का मामला भी नहीं कहा जा सकता हैं क्योंकि यह मामला कोर्ट के निर्देश पर पुलिस ने कायम किया हैं। ब्लकि इस मामलें में पुलिस की आलोचना तो इस बात पर हुई है कि कोर्ट के तीन बार निर्देश दने के बाद बमुश्किल पुलिस ने प्रकरण दर्ज किया था अन्यथा परिवादी के 156(3) के तहत दर्ज किये गये परिवाद में मेन्डेटरी प्रावधानों के बावजूद भी पुलिस ने अपने प्रतिवेदन में बिना अपराध कायम किये यह प्रतिवेदन में लिख दिया था कि आरेपी क्र. 2 और 3 , रजनीश सिंह एवं हरवंश सिंह के खिलाफ कोई साक्ष्य ना होने से अपराध दर्ज नहीं किया गया एवं परिवादी के भाई नियाज अली के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया गया हैं। इसलिये इस मामले में भाजपा की राज्य सरकार या उसकी जिला पुलिस पर राजनैतिक विद्वेष के कारण फर्जी मामला दर्ज करने का आरोप तो कांग्रेस चस्पा ही नहीं कर सकती थी। लेकिन इसके बावजूद भी सदन में कांग्रेस के द्वारा सरीकार को कठघरे में खड़ा किये जाने के बाद भी भाजपा की विस उपाध्यक्ष पर दर्ज मुकदमे पर भाजपा की चुप्पी समझ से परे हैं। दूसरी ओर कांग्रेस के प्रवक्ताओं की शिवराज के बयान पर चुप्पी भी सियासी हल्कों में चर्चित हैं। राजनैतिक खांसी और झींक में फर्क बताने में दो दो पेज की विज्ञप्तियां जारी करने में महारथ रखने वाले महारथी इतने संवेदनशील मामले में चुप्पी क्यों साधे रहेर्षोर्षो जबकि जिले के मुद्दों को छोड़ प्रदेश और राष्ट्रीय मुद्दों पर जिले के लोगों ने प्रवक्ताओं का लंबा विज्ञप्ति युद्ध भी देखा हैं। इन सबके चलते कई दिनों से तो आलम यह है कि इंकायी और भाजपा खेमे में खुलआम नूरा कुश्ती के चर्चे होते हें और छोटे कार्यकत्ताZ यह मानने लगे हैं कि मरना तो अपना ही हैं बड़े नेता तो बुरे वक्त में एक दूसरे का साथ देकर बचा ही लेते हैं। चाहें फिर वह मुख्यमन्त्री का डंपर मामला हो या हरवंश सिंह का जमीन घोटाले मामले में मुिल्जम बनना हो।
फोर लेन के लिये जनमंच की बैठक संपन्न-
सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन नार्थ साउथ कॉरीडोर का मामला एक बार फिर गर्मा गया हैं। बीते दिनों जनमंच की आयोजित बैठक में कई सुझाव आये और कुछ निर्णय भी लिये गये। 1 अगस्त से आन्दोलन की फिर शुरुआत की जा रही हैं। इसके स्वरूप को लेकर रणनीति बनाने के लिये फिर बैठक होगी। वैसे तो मामले में दोषी केन्द्र की कांग्रेस सरकार भी हें और प्रदेश की भाजपा सरकार भी हैं। जनमंच की एक अपील कमिश्नर के यहां लंबित हैं जो कलेक्टर के उस आदेश को निरस्त करने के लिये लगी हैं जिसके कारण काम रोका गया हैं। और एक केस सुप्रीम कोर्ट में लगा हैं जिसमें केन्द्र सरकार के दो विभागों में समन्वय नहीं हो पा रहा हैं। इसलिये जनमंच का आक्रमण दोनों ही दिशा में बराबर रहना आवयक हें अन्यथा राजनैतिक भेद भाव से बचना मुश्किल हो