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Monday, January 10, 2011

plitical dairy of seoni disst. of M.P.

पिछले पंद्रह सालों से कांग्रेस को हराने वालों पुरुस्कृत करने की हरवंशी संस्कृति आज भी बदस्तूर जारी है

प्रहलाद पटेल का स्वागत सत्कार पूरे झंके मंके के साथ हो गया। वैसे भी महाकौशल क्षेंत्र के एक दबंग भाजपा नेता माने जाते है। लेकिन भाजपा की गुटीय राजनीति के चलते सिवनी की सड़कों पर भी यह साफ साफ देखा गया। भाजपा के जिला प्रमुख से लेकर ऐसे तमाम चेहरे गायब थे जिन्हें भाजपा का पर्याय माना जाने लगा हैं। अब जो नहीं शामिल हुये वे आगे कैसे समन्वय बनायेंगें या उन्हें समन्वय बनाने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी? यह अभी तो भविष्य की गर्त में ही हैं। कांग्रेस को हराने वालों को पुरुस्कृत करने की हरवंशी संस्कृति इस जिले में पिछले पंद्रह सालों से लगातार चल रही हैं और यह कब तक जारी रहेगी इसकी जानकारी कोई भविष्य वक्ता भी नहीं दे सकता हैं। दलों में गुट बंदी होना कोई नयी बात नहीं हैं। लेकिन जब चुनाव या अन्य मोर्चे पर किसी दूसरे राजनैतिक दल से लड़ने की बात होती थी तो अमूमन सभी नेता एक साथ हो जाते थे। लेकिन ऐसा कभी नहीं होता था कि अपना स्वार्थ साधने के लिये कोई अपनी ही पार्टी को नुकसान पहुंचाये और दूसरे दलों से तालमेल कर ले। अब ऊपर से लेकर नीचे तक भाजपाइयों और कांग्रेसियो के बीच नूरा कुश्ती के किस्से ना केवल सुने जाते हैं वरन दोंनों ही पार्टियों के कार्यकत्र्ता आम तौर पर चटखारे लेकर मजे लेते सरेआम देखा जा सकता है। इस सारे खेल में सबसे ताज्जुब और आश्चर्य की बात यह है कि पार्टी के साथ गद्दारी करने वाले ऐसे नेता पार्टी मंच से कार्यकत्ताओं से पार्टी के लिये सब कुछ कुर्बान कर देने की अपील करने में भी जरा सा संकोच या शर्म नहीं महसूस करते है।

कई भाजपाइयों ने कन्नी काटी प्रहलाद से-

प्रहलाद पटेल का स्वागत सत्कार पूरे झंके मंके के साथ हो गया। भाजपा अध्यक्ष नितिन गड़करी द्वारा नव रचित असंगठित कामगार मजदूर संघ का उन्हें अध्यक्ष बनाया गया हैं। देश में चालीस करोड़ ऐसे मजदूर हैं जिनमें से दस प्रतिशत को रजिस्टर्ड कराने का लक्ष्य उन्हें दिया है। भाजपा ने भी मिशन 2013 के लिये अपने वोट बैंक में 10 फीसदी की बढ़ोतरी करने का लक्ष्य रख गया हैं। यदि उस हिसाब से एक देखा जाये तो भाजपा नेतृत्व ने प्रहलाद पटेल पर बहुत बड़ा विश्वास व्यक्त उन्हें इतनी महती जवाबदारी दी हैं। अब यह उन पर निर्भर करेगा कि वे इस कसौटी पर कितना खरा उतरते है। वैसे भी महाकौशल क्षेंत्र के एक दबंग भाजपा नेता माने जाते है। सिवनी से दो बार, बालाघाट से से एक बार सांसद रहने वाले प्रहलाद कांग्रेसी दिगग्ज कमलनाथ के खिलाफ भी छिंदवाड़ा से चुनाव लड़ चुके है। नरसिंहपुर जिले के वे रहने वाले हैं और जबलपुर की छात्र राजनीति से उन्होंने राजनीति प्रारंभ की थी। भाजपा में उन्हें एक जनाधार वाला नेता माना जाता है। लेकिन भाजपा की गुटीय राजनीति के चलते सिवनी की सड़कों पर भी यह साफ साफ देखा गया। भाजपा के जिला प्रमुख सुजीत जैन से लेकर ऐसे तमाम चेहरे गायब थे जिन्हें भाजपा का पर्याय माना जाने लगा हैं। पहले सांसद एवं वर्तमान विधायक नीता पटेरिया, पूर्व विधायक नरेश दिवाकर,विधायक शशि ठाकुर,नपा अध्यक्ष राजेश त्रिवेदी नदारत थे। इस कार्यक्रम में पूर्व मंत्री डाॅ. ढ़ालसिंह बिसेन, बरघाट के विधायक कमल मर्सकोले, को आपरेटिव बैंक अध्यक्ष अशोक टेकाम जीप में साथ दिखायी दिये। लेकिन जिला भाजपा के कई उपाध्यक्ष,कोषाघ्यक्ष संतोष अग्रवाल सहित लगभग सभी मंड़ल अध्यक्षों की उपस्थिति रही। जिला भाजपा यह कहना था कि उन्हें कोई सूचना नहीं दी गयी थी। इसलिये उन्होंने ऐसा किया। कुछ वरिष्ठ एवं भूतपूर्व लेकिन महत्वपूर्ण भाजपा नेताओं ने तो यह स्वीकार करने में भी कोई संकोच नहीं किया कि उन्हें प्रदेश से दवाब हैं इसलिये वे निजी काम से बाहर चले गये थे। अब चाहे जो भी रहा हो इतना सब तीन पांच होने के बाद भी कार्यक्रम तो फीका रहा नहीं अब जो नहीं शामिल हुये वे आगे कैसे समन्वय बनायेंगें या उन्हें समन्वय बनाने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी? यह अभी तो भविष्य की गर्त में ही हैं।

कांग्रेस को हराने वाले फिर हुये पुरुस्कृत-

लगभग छः माह के लंबे इंतजार के बाद जिलें में कांग्रेसियों को 9 नये ब्लाक अध्यक्ष मिल गये हैं। वैसे तो निर्वाचित हाने वाले जिन 9 अध्यक्षों के नाम ना केवल अखबारों में प्रकाशित हो गये थे वरन वरन यह दावा किया जा रहा था कि विधिवत चुनाव हुये हैं। उसी दौरान कई कांग्रेस नेताओं ने आरोप लगाये थे कि चुनाव के नाम पर जिले में हरवंश सिंह की मन मर्जी खोपी गयी हैं। इसकी गूंज दिल्ली तक उठी लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। कहा गया कि प्रक्रिया पूरी हो चुकी हैं अब इसमें कुछ भी करना संभव नहीं हैं। लेकिन अब जब ब्लाक अध्यक्षों की सूची जारी हुयी तो एक बार सभी फिर भौंचक रह गये। तथाकथित चुनावों के बाद जब नाम छपे थे तब धनौरा ब्लाक से चुने गये अध्यक्ष के रूप में मुकेश जैन का नाम प्रकाशित हुआ था लेकिन अब जब आदेश जारी हुये तो तिवारी लाल उइके को धनौरा का अध्यक्ष घोषित किया गया हैं। इससे कम से कम एक बात तो प्रमाणित हो गयी हैं कि चुनाव के नाम पर सिर्फ धांधलियां ही की गयी हैं। अभी तक जिला इंका अध्यक्ष के नाम की धोषणा भी नहीं हुयी हैं जो कि अगले सप्ताह तक होने की संभावना व्यक्त की जा रही है। इस चयन में भी कांग्रेस को चुनाव हराने वालों को पुरुस्कृत करने की परंपरा को बाकायदा जारी रखा हैं। कुरई ब्लाक के अध्यक्ष पद पर अनिल भलावी की घोषणा हुयी हैं जो कि सिवनी विधानसभा चुनाव से 2003 में चुनाव लड़ चुके हैं और लगभग 12000 वोट ले चुके हैं। यहां यह भी उल्लेखनीय हैं कि तत्कालीन जिला इंका के महामंत्री स्व. विपतलाल सर्याम भी सिवनी विस से चुनाव लड़े थे और उन्होंने 31 सौ वोट लिये थे और कांग्रेस 15 हजार 3 सौ वोटो से चुनाव हार गयी थी। कांग्रेस को हराने वालों को पुरुस्कृत करने की हरवंशी संस्कृति इस जिले में पिछले पंद्रह सालों से लगातार चल रही हैं और यह कब तक जारी रहेगी इसकी जानकारी कोई भविष्य वक्ता भी नहीं दे सकता हैं।

नेताओं में सरे आम चल रहा है नूरा कुश्ती का खेल-

राजनैतिक दलों में गुट बंदी होना कोई नयी बात नहीं हैं। लगभग सभी दल इस राजरोग ग्रसित रहें हैं। गुटबंदी में अपनी ही पार्टी के नेता को नीचा दिखाना आम बात होती थी। इसके लिये सत्ता और संगठन में अपने लोगों को बिठाने की होड़ भी रहती थी लेकिन जब चुनाव या अन्य मोर्चे पर किसी दूसरे राजनैतिक दल से लड़ने की बात होती थी तो अमूमन सभी नेता एक साथ हो जाते थे। लेकिन ऐसा कभी नहीं होता था कि अपना स्वार्थ साधने के लिये कोई अपनी ही पार्टी को नुकसान पहुंचाये और दूसरे दलों से तालमेल कर ले। लेकिन अब ऐसा करने में किसी बड़े से बड़े नेता को कोई परहेज नहीं होता हैं। जिसे आजकल नूरा कुश्ती के नाम से कार्यकत्र्ता चर्चा करते हैं। पहले जनसंघ जो कि अब भारतीय जनता पार्टी के नाम से अस्तित्व में है ऐसा दावा किया करती थी कि वे सबसे अलग हैं और उनमें ऐसा कोई राजरोग नहीं है।लेकिन अब ऊपर से लेकर नीचे तक भाजपाइयों और कांग्रेसियो के बीच नूरा कुश्ती के किस्से ना केवल सुने जाते हैं वरन दोंनों ही पार्टियों के कार्यकत्र्ता आम तौर पर चटखारे लेकर मजे लेते सरेआम देखा जा सकता है। ऐसे राज्यों में तो ये किस्से आम हैं जहां भाजपा और कांग्रेस के अलावा दूसरे दल मुकाबले में नहीं हैं। ऐसे राज्यों में इनमें से ही किसी एक की सरकार परिवर्तन के नाम पर बनती रहना है। इसलिये अपने काले कारनामों को छिपाने और खुद अपना चुनाव जीतने के लिये अपनी ही पार्टी को अन्य क्षेत्र में नुकसान पहुंचा दोनों ही पार्टी के कई नेता मजे मार रहें हैं। लेकिन ऐसे नेताओं को एक बात खलती भी है जब ऐसे मामलों में सरे आम मुंह पर कोई बोलने लगे। प्रदेश की राजधानी से लेकर जिला मुख्यालय तक खुले आम ऐसे नूरा कुश्ती के मुकाबले चल रहें हैं और कुछ मजे ले रहें हैं तो कुछ “रेफरशिप” करके कभी इसको तो कभी उसको चित करार देकर अपना उल्लू सीधा कर रहें हैं। इस सारे खेल में सबसे ताज्जुब और आश्चर्य की बात यह है कि पार्टी के साथ गद्दारी करने वाले ऐसे नेता पार्टी मंच से कार्यकत्ताओं से पार्टी के लिये सब कुछ कुर्बान कर देने की अपील करने में भी जरा सा संकोच या शर्म नहीं महसूस करते है।









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