अमन चैन के लिये
अपराधियों में धर्म या मजहब तलाशना बन्द करें
अपराध अपराध होता हैं। गुनाह गुनाह होता हैं। अपराधी अपराधी होता हैं। गुनहगार गुनहगार होता हैं।दंगाई दंगाई होता हैं। इनका कोई धर्म या मजहब नहीं होता। इनके ना तो परवरदिगार होते हैं और ना ही भगवान होते हैं। ये ना तो पूजा में विश्वास करते हैं और ना ही इबादत में। इनके ना तो कोई पूजा स्थल होते हैं और ना ही इबादतगाह होते हैं। समाज और राजनेता इनमें यदि धर्म और मजहब तलाशना बन्द कर दे और अपराधियों को सिर्फ अपराधी, गुनहगारों को सिर्फ गुनहगार तथा दंगाइयों को सिर्फ दंगाई मानकर चले तो ज्यादातर फसादों का तो वैसे ही खात्मा हो जायेगा।
आज समस्या इसी बात की हैं कि इन तत्वों में समाज और राजनेता धर्म और मजहब को तलाशने लगे हैं। राजनेता अपनी सुविधा और लाभ के लिये ऐसे तत्वों को संरक्षण देकर बवाल खड़ा करने में भी कोई संकोच नहीं करते हैं। यही मूल कारण है कि जब देखो तब सांप्रदायिक दंगों की आग में कई शहर कई बार धधक जाते हैं और आग जब लगती हैं तो वह यह नहीं देखती कौन आग लगाने वाले धर्म या मजहब का हैं और कौन दूसरे मजहब या धर्म का हैंर्षोर्षो वह अपनी चपेट में सबको समेट लेती हैं और सब कुछ जलाकर खाक कर देती हैं।
स्वामी विवेकानन्द जी ने यह कहा है कि इस देश में कोई भी बड़ा सामाजिक,आर्थिक या राजनैतिक परिवर्तन धर्म के माध्यम से ही सम्भव हैं। इसे मूल मन्त्र मानकर कई राजनेताओं ने धर्म और राजनीति का घालमेल कर दिया हैं। राजनीति यदि धर्म के नियन्त्रण में रहे तो ठीक हैं लेकिन होने यह लगा हें कि राजनेता धर्मावलंबी लोगों की घार्मिक भावनायें भड़का कर अपनी राजनीति चमकाने में लग जातेे हैं। फिर वे ये भी नहीं देखते कि जिस जगह मन्दिर या मिस्जद बनाने की बात कर रहें हैं वह जगह ही मानव मात्र के खून से रंग गई हैं। आदमी के खून से लाल हुयी ऐसी जमीन पर बनी इमारत में ना तो भगवान का वास होगा और ना ही परवरदिगार का। और भला होगा भी कैसे र्षोर्षो जिन्हें पूजा या इबादत करना हैं जब उनका ही खून उसे बनाने के लिये बहा हों तो भला भगवान या खुदा उसे कैसे माफ कर सकते हैं र्षोर्षो
Þईश्वर अल्लाह तेरो नाम, सबको सन्मति दे भगवानß आजादी के छ: दशक बाद भी बापू की लाइनों की देश को जरूरत हैं। आज आवश्यक्ता इस बात की हैं कि धर्म या मजहब का नियन्त्रण धर्माचार्यों और मौलवियों के हाथों में रहे और प्रजातन्त्र में शासन चलाने का काम राजनेताओं के नियन्त्रण में रहे। इन दोनों में घालमेल ना हो। साथ यह भी आवश्यक हैं कि अपराधियों और गुनहगारों में धर्म और मजहब को तलाशने तथा उस आधार पर संरक्षण देने का काम भी बन्द हो। प्रशासनिक अमला भी इन आपराधिक तत्वों के नियन्त्रण में राजनैतिक हस्तक्षेप को बरदाश्त ना करें और कड़ाई से कार्यवाही करें। ऐसा सब कुछ हो जाये तो आपसी भाईचारा और सांप्रदायिक सदभाव देश में हमेशा बना रहेगा।
सम सामयिक टिप्पणी हस्ताक्षर
विदज ातनजकमअ10
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