सबसे अलग दिखने का भाजपायी दावा जिले में खोखला साबित हो गया हैं। जिले की भाजपायी राजनीति में सर्वोच्च माने जाने वाले संगठन मन्त्री भी आरोपों के घेरे से अपने आप को बचा नहीं पाये हैं। पिछले कई सालों से गुटबाजी के राजरोग से ग्रस्त भाजपा रसातल में जाते जा रही हैं।संघीय पृष्ठभूमि के पूर्व विधायक नरेश दिवाकर की ओर संघीय संगठन मन्त्रियों का झुकाव स्वभाविक ही हैं। लेकिन बीते कुछ सालों से यह सब कुछ इतना एकतरफा चल रहा हैं कि अब असन्तोष अपनी हदें पार कर गया हैं। इसी की परिणिति यह हैं कि जिला पंचायत चुनाव के क्षेत्र क्र. 2 के भाजपा के अधिकृत घोषित किये गये प्रत्याशी गिरधारी पटेल ने पूर्व विधायक नरेश दिवाकर और संगठन मन्त्री सन्तोष त्यागी पर खुले आम ना सिर्फ आरोप लगाये वरन उसे प्रेस को जारी भी किया जो स्थानीय अखबारों में प्रमुखता के साथ प्रकाशित भी हुआ।उनका आरोप था कि उन्हें पहले तो प्रत्याशी घोषित किया गया फिर चुनाव के दो दिन पहले दिवाकर और त्यागी ने क्षेत्र में घूम कर यह प्रचारित किया कि अब बागी राजकुमार अधिकृत प्रत्याश्ी हैं। इसका परिणाम यह हुआ कि ना तो गिरधारी जीते और ना ही राजकुमार ब्लकि जीत इस क्षेत्र से कांग्रेस की हो गई। भाजपायी चटखारे लेकर यह कहने से नहीं चूक रहें हैं कि जब नरेश के साथ त्यागी भी विश्वासघाती हो जायेंगें तो भला रोना रोने अब कार्यकत्ताZ कहां जायेंगेंर्षोर्षोगिरधारी पटेल ने अपने आलाकमान को भेजे पत्र में नरेश और त्यागी दोनों पर ही कांग्रेस से सांठ गांठ करने के आरोप लगाये हैं। सियासी हल्कों में इस आरोप पर यह चर्चा चटखारों के साथ हैं कि नरेश पर ऐसे आरोप तो पहला चुनाव जीतने के समय से ही लगते रहें हैं और वे दोनो चुनाव कांग्रेसियों के बल पर ही जीतते भी रहें हैं। हरवंश नरेश नूरा कुश्ती के किस्से पिछले दस सालों तक चर्चित रहें हैं। यह बात अलग हैं कि हरवंश सिंह आज जिस मुकाम पर हैं उन्हें वहां अब नरेश से नूरा कुश्ती की जरूरत ज्यादा ना बची हो परन्तु जिले के स्तर पर एक दूसरे के हित तो साधे ही जा सकते हैं। मामला जो कुछ भी हो लेकिन एक बात तो अब बिल्कुल साफ हो गई हैं कि सबसे अलग दिखने का भाजपायी दावा तार तार हो चुका हैं और अब जिले में भाजपा भी हरवंशी चाल ही चलने लगी हैं जिसमें बागियों को पुरुस्कृत और निष्ठावानों को तिरस्कृत किया जाता हैं। यह सब किसके कारण हो रहा हैंर्षोर्षो इसे खोजना और इससे बचने के उपाय खोजना तो अब भाजपा का ही काम रह गया हैं।
Sunday, January 31, 2010
सबसे अलग दिखने का भाजपायी दावा जिले में खोखला साबित हो गया हैं। जिले की भाजपायी राजनीति में सर्वोच्च माने जाने वाले संगठन मन्त्री भी आरोपों के घेरे से अपने आप को बचा नहीं पाये हैं। पिछले कई सालों से गुटबाजी के राजरोग से ग्रस्त भाजपा रसातल में जाते जा रही हैं।संघीय पृष्ठभूमि के पूर्व विधायक नरेश दिवाकर की ओर संघीय संगठन मन्त्रियों का झुकाव स्वभाविक ही हैं। लेकिन बीते कुछ सालों से यह सब कुछ इतना एकतरफा चल रहा हैं कि अब असन्तोष अपनी हदें पार कर गया हैं। इसी की परिणिति यह हैं कि जिला पंचायत चुनाव के क्षेत्र क्र. 2 के भाजपा के अधिकृत घोषित किये गये प्रत्याशी गिरधारी पटेल ने पूर्व विधायक नरेश दिवाकर और संगठन मन्त्री सन्तोष त्यागी पर खुले आम ना सिर्फ आरोप लगाये वरन उसे प्रेस को जारी भी किया जो स्थानीय अखबारों में प्रमुखता के साथ प्रकाशित भी हुआ।उनका आरोप था कि उन्हें पहले तो प्रत्याशी घोषित किया गया फिर चुनाव के दो दिन पहले दिवाकर और त्यागी ने क्षेत्र में घूम कर यह प्रचारित किया कि अब बागी राजकुमार अधिकृत प्रत्याश्ी हैं। इसका परिणाम यह हुआ कि ना तो गिरधारी जीते और ना ही राजकुमार ब्लकि जीत इस क्षेत्र से कांग्रेस की हो गई। भाजपायी चटखारे लेकर यह कहने से नहीं चूक रहें हैं कि जब नरेश के साथ त्यागी भी विश्वासघाती हो जायेंगें तो भला रोना रोने अब कार्यकत्ताZ कहां जायेंगेंर्षोर्षोगिरधारी पटेल ने अपने आलाकमान को भेजे पत्र में नरेश और त्यागी दोनों पर ही कांग्रेस से सांठ गांठ करने के आरोप लगाये हैं। सियासी हल्कों में इस आरोप पर यह चर्चा चटखारों के साथ हैं कि नरेश पर ऐसे आरोप तो पहला चुनाव जीतने के समय से ही लगते रहें हैं और वे दोनो चुनाव कांग्रेसियों के बल पर ही जीतते भी रहें हैं। हरवंश नरेश नूरा कुश्ती के किस्से पिछले दस सालों तक चर्चित रहें हैं। यह बात अलग हैं कि हरवंश सिंह आज जिस मुकाम पर हैं उन्हें वहां अब नरेश से नूरा कुश्ती की जरूरत ज्यादा ना बची हो परन्तु जिले के स्तर पर एक दूसरे के हित तो साधे ही जा सकते हैं। मामला जो कुछ भी हो लेकिन एक बात तो अब बिल्कुल साफ हो गई हैं कि सबसे अलग दिखने का भाजपायी दावा तार तार हो चुका हैं और अब जिले में भाजपा भी हरवंशी चाल ही चलने लगी हैं जिसमें बागियों को पुरुस्कृत और निष्ठावानों को तिरस्कृत किया जाता हैं। यह सब किसके कारण हो रहा हैंर्षोर्षो इसे खोजना और इससे बचने के उपाय खोजना तो अब भाजपा का ही काम रह गया हैं।
Saturday, January 30, 2010
काश राहुल जी यह भी कह जाते
अपनी स्पष्टवादिता के लिये मशहूर इंका के युवा राष्ट्रीय महासचिव राहुल गांधी ने अपने मध्यप्रदेश प्रवास के दौरान भोपाल में कांग्रेस कार्यालय मेे यह कह कर एक मिसाल पेश की हैं कि कांग्रेस को कांग्रेस ही हराती हैं यदि कांग्रेस एक रहे तो किसी भी प्रदेश में कांग्रेस को कोई नहीं हरा सकता। उनका यह कथन शत प्रतिशत सही हैं। मैं 57 वषीZय कांग्रेसी कार्यकत्ताZ हूंं। मैंने सन 1974-1975 में स्व. जयप्रकाश नारायण जी की समग्र क्रान्ति के दौर में शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय सिवनी म.प्र. के छात्र संघ अध्यक्ष एवं सागर विश्वविद्यालय छात्र महासंघ के कार्यकारिणी सदस्य का चुनाव कांग्रेसी विचारधारा वाले छात्र के रूप में जीता था। इसके बाद मैं जिला एन.एस.यू.आई. का अध्यक्ष, मध्यप्रदेश युवक कांग्रेस में कार्यकारिणी सदस्य तथा 1978 से 1999 तक जिला कांग्रेस कमेटी का महामन्त्री एवं प्रवक्ता के पद पर भी कार्यरत रहा हंूं तथा पिछले दस सालों से जिले में कांग्रेस के सक्रिय सदस्य के रूप में कार्यरत हूंंं। मुझे इस बात का गौरव प्राप्त हैं कि पार्टी ने मुझे मध्यप्रदेश के सिवनी विधानसभा क्षेत्र से 1993 और 1998 के चुनाव में अपना प्रत्याशी बनाया था। सन 1990 के चुनाव में सिवनी विस क्षेत्र से कांग्रेस से चुनाव लड़कर हारने वाले श्री हरवंश सिंह 1993 के चुनाव में तत्कालीन सांसद कुमारी विमला वर्मा के पुराने निर्वाचन क्षेत्र केवलारी से पार्टी के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे थे। जहां से कु. विमला वर्मा सन 1967 से चुनाव जीतते आ रहीं थी। मैं 93 और 98 के दोनों ही चुनाव राहुल जी के कथानुसार कांग्रेसियों के भीतरघात के कारण ही हारा था। इसके बाद इसी क्षेत्र से 2003 का चुनाव कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में श्री राजकुमार उर्फ पप्पू खुराना और 2008 का चुनाव कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में श्री प्रसन्न मालू हार गये थे। हार का कारण वही था। इतना ही नहीं वरन सिवनी लोकसभा क्षेत्र से 1996 और 1999 में कु. विमला वर्मा,2004 में कु. कल्याणी पांड़े और 2009 में सिवनी बालाघाट क्षेत्र से लोकसभा चुनाव में श्री विश्वेश्वर भगत कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में चुनाव इन्हीं कारणों से हार चुके हैं। नगरपालिका अध्यक्ष सिवनी के चुनाव में 1999 में श्री महेश मालू, 2004 में श्रीमती चमेली सनोड़िया और 2009 के चुनाव में संजय भारद्वाज कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में चुनाव हार चुके हैं।जिले की बरघाट विधानसभा क्षेत्र में भी कांग्रेस 1990 से लगातार चुनाव हार रही हैं। कांग्रेस के अभेद्य गढ़ रहे लखनादौन विस क्षेत्र में भी कांग्रेस 2003 के से हार रही हैं। इसी चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में गौंड़वाना गणतन्त्र पार्टी के रामगुलाम उइके से कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में श्रीमती उर्मिला सिंह चुनाव हार चुकीं हैं। समूचे जिले में हारने वाली कांग्रेस 1993 से लगातार अभी तक सिर्फ केवलारी विधानसभा से जीतते आ रही हैं । यहां के कांग्रेस विधायक हरवंश सिंह आजकल विधानसभा के उपाध्यक्ष हैं। एक बात और विशेष तौर पर गौर करने लायक हैं कि सन 1993 के चुनाव के बाद से इस जिले में कांग्रेस में बागियों को पुरुस्कृत करने की परंपरा चल रही हैं। लोकसभा के 96 के चुनाव के बागी श्री शोभाराम भलावी को पहले केबिनेट रेंक के साथ निगम अध्यक्ष बनाया फिर 2003 में लखनादौन विस क्षेत्र से कांग्रेस के प्रत्याशी अप्रत्याशित रूप से बना दिये गये थें। 1998 के चुनाव में इसी विस क्षेत्र से बागी रहे श्री बेनी परतें इंका के युवा विधायक श्री रणधीर सिंह के असामयिक निधन के बाद 2000 के उप चुनाव में ही कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में टिकिट लाने और जीतने में कामयाब हो गये थे लेकिन अगले चुनाव में इंका विधायक रहते हुये भी उनकी टिकिट काट कर श्री शोभाराम भलावी को टिकिट दे दिया गया। सन 2008 के चुनाव में श्री बेनी परते को फिर से कांग्रेस की टिकिट मिली लेकिन वे चुनाव जीत नहीं पाये। ऐसा ही कुछ बरघाट विधानसभसा क्षेत्र में भी हुआ हैं। 1998 का विधानसभा चुनाव बागी उम्मीदवार के रूप में केवलारी जनपद पंचायत के उपाध्यक्ष श्री भोयाराम चौधरी ने लड़ा था जो कि काग्रेंस की हार कारण बने थे। लेकिन अगले ही विधानसभा चुनाव 2003 में श्री भोयाराम चौधरी को इसी क्षेत्र से कांग्रेस की टिकिट मिली और वे भी हार गये। राहुल जी ने भोपाल में जो कुछ कहा उसके प्रमाण इस जिले में साक्षात देखने को मिले हैं कि काग्रेस कांग्रेस के ही कारण लगातार हारते चली आ रही हैं। हर चुनाव की हार के बाद विश्लेषण भी हुये और हारने वाले पार्टी प्रत्याशियों ने भीतरघात की शिकायतें भी की हैं। लेकिन भीतरघातियों के खिलाफ कोई कार्यवाही होने के बजाय इस जिले में बागियों को पुरुस्कृत और निष्ठावान कार्यकत्ताZओं को तिरस्कृत किया जाता रहा हैं। काश राहुल जी यह भी कह जाते कि अब आने वाले समय में पार्टी से गद्दारी करने वालों बख्शा नहीं जायेगा तो हम जैसे निराशा की गर्त में जाते जा रहे निष्ठावान कांग्रेसियों के हौसले एक बार फिर बुलन्द हो जाते।
Wednesday, January 27, 2010
on republic day of india
Saturday, January 23, 2010
artical on republic day of india
Tuesday, January 19, 2010
wah kya rajneeti hai
क्या विस चुनाव का भुवन का कर्जा चुकाया हरवंश नेर्षोर्षोजिला पंचायत के चुनाव में केवलारी विधानसभा क्षेत्र के वार्ड क्र. 11 का चुनाव अत्यन्त रोचक था। यहां से इंका समर्थक श्रीमती फरीदा साबिर अंसारी के विरुद्ध भाजपा समर्थित प्रत्याशी के रूप में वृन्दा भुवन ठाकुर चुनाव मैदान में थीं। यहां यह विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं कि फरीदा अंसारी 1999 से 2004 तक केवनारी जनपद पंचायत की अध्यक्ष थीं। पिछले जिला पंचयात चुनाव में इसी वार्ड के वे ना केवल सशक्त दावेदार थीं वरन पिछड़ा वर्ग महिला के लिये अध्यक्ष पद आरक्षित होने के कारण वे एक योंग्य उम्मीदवार थीं। लेकिन विधानसभा चुनाव के कुछ समय पहले भाजपा से कांग्रेस में आये आनन्द भगत के लिये क्षेत्रीय इंका विधायक रहवंश सिंह ने फरीदा अंसारी को चुनाव नहीं लड़ने दिया। इस बार जब वे चुनाव लड़ीं तो अध्यक्ष पद अनारक्षित वर्ग के लिये था। दूसरी ओर यह तथ्य भी कम महत्वपूर्ण नहीं हैं कि पंवार समाज की भाजपा समर्थित घोषित की गई प्रत्याशी वृन्दा ठाकुर के पति भुवन ठाकुर ने केवलारी विस क्षेत्र से भाजपा के बागी उम्मीदवार के रूप में 2009 का चुनाव लड़ा था। इससे पंवार समाज के ही भाजपा प्रत्याशी डॉ. ढ़ालसिंह बिसेन समाजिक वोटों में बिखराव के राजनैतिक सन्देश को झुठला नहीं पाये थे। कंवलारी से भाजपा उम्मीदवार के रूप मे 93 और 98 का चुनाव लड़ चुकीं नेहा सिंह के समर्थकों ने यह भी बताया हैं कि इन चुनावों में भी भुवन ने भाजपा के बजाय हरवंश का ही काम किया था और शायद इसीलिये भाजपा नेत्री नेहा सिंह के कांग्रेस प्रवेश के समय उनके साथ भुवन ने कांग्रेस ज्वाइन नहीं की थी। अब तो जिले में कांग्रेस की तरह ही भाजपा में भी बागियों को पुरुस्कृत का दौर शुरू हो गया हैं। इस चयन को लेकर भाजपा में काफी हड़कंप मचा और भाजपा के उगली मंड़ल ने आशा राजपूत को सतर्थित प्रत्याशी घोषित कर दिया। इसके कारण जिले से उन्हें नोटिस भी मिला। भाजपा जैसी अनुशासित पार्टी में इतनी बगावत होने के बावजूद भी भाजपा प्रत्याशी का भारी वोटों से जीतना सियासी गलियारों में चर्चित हैं। ऐसा मानने वालों की भी कमी नहीं हैं कि हरवंश सिंह ने भुवन ठाकुर का विधानसभा चुनाव का कर्जा चुकाने और ताकतवर अंसारी परिवार को धूल चटाने लिये ऐसी सियासी बिसात बिछायी कि एक तीर से दो दो शिकार हो गये।आशुतोष वर्मा
political analysis of seoni
जिले की कांग्रेसी राजनीति का हाल यह हो गया हैं कि सिवनी और बरघाट विस क्षेत्र से 1990 के चुनाव से कांग्रेस हारती चली आ रही हैं। पिछले तीन लोक सभा चुनावों में भी कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी हैं। हर बार भीतरघात के आरोप प्रत्याशियों ने लगाये लेकिन भीतरघात करने वाले कांग्रेसियों के आका मध्यप्रदेश विधानसभा के उपाध्यक्ष हरवंश सिंह इतने अधिक ताकतवर हो चुकें हैं कि इनके समर्थकों का बाल भी बांका नहीं हो पाता हैं। ऐसा ही कुछ दृश्य इस नगरपालिका चुनाव में भी दिखा। सिवनी के अध्यक्ष पद के इंका प्रत्याशी संजय भारद्वाज ने चुनाव के दौरान ही चार इंका नेताओं जिला इंका के महामन्त्री द्वय हीरा आसवानी,असलम खॉन,युवा इंका के राष्ट्रीय समन्वयक राजा बघेल और नपा उपाध्यक्ष सन्तोष उर्फ नान्हू पंजवानी के खिलाफ लिखित शिकायत की थी। इनमें राजा बधेल और नान्हू पंजवानी को तो निष्कासित और निलंबित कर दिया गया हैं लेकिन असलम भाई को नोटिस जारी किया गया हैं तथा हीरा आसवानी का मामला प्रदेश इंका को भेज दिया गया हैं। इंकाई खेमे में एक बार फिर यह चर्चा चल पड़ी हैं कि हरवंश सिंह इन नेताओं के बचाव में सामने आ गये हैं। वैसे भी इंका में यह कहावत चटखारे के साथ चर्चित रहती हैं कि पार्टी और प्रत्याशी भले ही हारते रहें पर बन्दों पर ना आये आंच, आका ऐसी करायें जांच, अब देखना यह हैं कि जिन इंका नेताओं पर अनुशासन का डं़ड़ा चला हैं वे इस बार भी हमेशा की तरह बच जाते हैं या फिर सजा पाते हैं।
क्या विस चुनाव का भुवन का कर्जा चुकाया हरवंश
जिला पंचायत के चुनाव में केवलारी विधानसभा क्षेत्र के वार्ड क्र. 11 का चुनाव अत्यन्त रोचक था। यहां से इंका समर्थक श्रीमती फरीदा साबिर अंसारी के विरुद्ध भाजपा समर्थित प्रत्याशी के रूप में वृन्दा भुवन ठाकुर चुनाव मैदान में थीं। यहां यह विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं कि फरीदा अंसारी 1999 से 2004 तक केवनारी जनपद पंचायत की अध्यक्ष थीं। पिछले जिला पंचयात चुनाव में इसी वार्ड के वे ना केवल सशक्त दावेदार थीं वरन पिछड़ा वर्ग महिला के लिये अध्यक्ष पद आरक्षित होने के कारण वे एक योंग्य उम्मीदवार थीं। लेकिन विधानसभा चुनाव के कुछ समय पहले भाजपा से कांग्रेस में आये आनन्द भगत के लिये क्षेत्रीय इंका विधायक रहवंश सिंह ने फरीदा अंसारी को चुनाव नहीं लड़ने दिया। इस बार जब वे चुनाव लड़ीं तो अध्यक्ष पद अनारक्षित वर्ग के लिये था। दूसरी ओर यह तथ्य भी कम महत्वपूर्ण नहीं हैं कि पंवार समाज की भाजपा समर्थित घोषित की गई प्रत्याशी वृन्दा ठाकुर के पति भुवन ठाकुर ने केवलारी विस क्षेत्र से भाजपा के बागी उम्मीदवार के रूप में 2009 का चुनाव लड़ा था। इससे पंवार समाज के ही भाजपा प्रत्याशी डॉ. ढ़ालसिंह बिसेन समाजिक वोटों में बिखराव के राजनैतिक सन्देश को झुठला नहीं पाये थे। जिले में कांग्रेस की तरह ही भाजपा में भी बागियों को पुरुस्कृत का दौर शुरू हो गया हैं। इस चयन को लेकर भाजपा में काफी हड़कंप मचा और भाजपा के उगली मंड़ल ने आशा राजपूत को सतर्थित प्रत्याशी घोषित कर दिया। इसके कारण जिले से उन्हें नोटिस भी मिला। भाजपा जैसी अनुशासित पार्टी में इतनी बगावत होने के बावजूद भी भाजपा प्रत्याशी का भारी वोटों से जीतना सियासी गलियारों में चर्चित हैं। ऐसा मानने वालों की भी कमी नहीं हैं कि हरवंश सिंह ने भुवन ठाकुर का विधानसभा चुनाव का कर्जा चुकाने और ताकतवर अंसारी परिवार को धूल चटाने लिये ऐसी सियासी बिसात बिछायी कि एक तीर से दो दो शिकार हो गये।