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Sunday, May 16, 2010

हरवंश सिंह का सदन से बहिष्कार पार्टी प्रेम हैं या कुछ बेहतर पाने के लिये किया जा रहा राजनैतिक ढ़ोंग
इस सप्ताह की सर्वाधिक महत्वपूर्ण राजनैतिक घटना विधान सभा के विशेष सत्र में विस उपाध्यक्ष, प्रदेश इंका के उपाध्यक्ष और जिले के इकलौते इंका विधायक हरवंश सिंह का बहिष्कार करना और यह बयान देना कि उनके लिये उनकी पार्टी बड़ी हैं फिर वे उपाध्यक्ष हैं।हरवंश सिंह की राजनीति को जानने वालों का दावा हैं कि वे इतने नादान नहीं हैं कि अनजाने में इतना बड़ा कदम उठा लेें। रहा सवाल पार्टी बड़ी होने का तो जिले में चोट खाये कई कांग्रेसी बैठे हैं जो इनके पार्टी प्रेम को अच्छी तरह जानते हैं। इन दिनों कांग्रेस में नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद में बदलाव होने की चर्चायें जोरों पर हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि इनमें से किसी एक पद पर उनकी निगाहें लगी हों और इसीलिये एक सोची समझी रणनीति के तहत उन्होंने यह कदम उठाया हो। प्रदेश भाजपा द्वारा राज्यपाल को ज्ञापन देकर विधानसभा उपाध्यक्ष हरवंश सिंह के खिलाफ कार्यवाही की मांग करना, संसदीय कार्य मन्त्री द्वारा सदन में मामला उठाने के बाद भी विस अध्यक्ष ईश्वरदास रोहाणी द्वारा कोई व्यवस्था ना देना तथा जिला भाजपा द्वारा की गई बयानबाजी इस मामले में अखबारों में चर्चित हुयी हैं। प्रदेश के जिन कुछ इंका नेताओं की भाजपा के साथ नूरा कुश्ती चलने के किस्से सियासी हल्कों में चर्चित रहतें हैं उनमें इंका नेता हरवंश सिंह का नाम भी शामिल हैं। ऐसे में मात्र रस्म अदायगी वाली जो भी कार्यवाहियां होतीं हैं उसे लोग अपने आप ही शंका की निगाहों से देखने लगते हैं।
हरवंश सिंह का बहिष्कार : पार्टी प्रेम या ढ़ोंग-
इस सप्ताह की सर्वाधिक महत्वपूर्ण राजनैतिक घटना विधान सभा के विशेष सत्र में विस उपाध्यक्ष, प्रदेश इंका के उपाध्यक्ष और जिले के इकलौते इंका विधायक हरवंश सिंह का बहिष्कार करना और यह बयान देना कि उनके लिये उनकी पार्टी बड़ी हैं फिर वे उपाध्यक्ष हैं।इस पर जिला भाजपा ने बयान जारी किया और प्रदेश भाजपा ने अपने नवनिर्वाचित अध्यक्ष प्रभात झा,पूर्व मुख्यमन्त्री कैलाश जोशी और कप्तान सिंह सौलंकी के साथ राज्यपाल से भेंट कर उन्हें ज्ञापन सौंप कर कार्यवाही करने की मांग की हैं। संसदीय कार्य मन्त्री ने भी सदन में मामले को उठाया लेकिन अध्यक्ष ने इस पर कोई व्यवस्था नहीे दी। इस पूरे घटनाक्रम को लेकर राजनैतिक हल्कों में तरह तरह की चर्चायें हैं। हरवंश सिंह की राजनीति को जानने वालों का दावा हैं कि वे इतने नादान नहीं हैं कि अनजाने में इतना बड़ा कदम उठा लेें। वे छोटी छोटी बातों में अपने संवैधानिक पद की दुहायी देकर ऐसे राजनैतिक कामों से बचते रहें हें जिन्हें वे नहीं करना चाहते थे। तो फिर सदन की कार्यवाही से सम्बंधित बहिष्कार जैसे कदम को क्या उन्होंने बिना सोचे समझे उठा लिया होगा र्षोर्षो इसे कैसे माना जा सकता है। इन दिनों कांग्रेस में नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद में बदलाव होने की चर्चायें जोरों पर हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि इनमें से किसी एक पद पर उनकी निगाहें लगी हों और इसीलिये एक सोची समझी रणनीति के तहत उन्होंने यह कदम उठाया हो। उनके द्वारा दिया गया यह बयान क्या इसी बात का प्रमाण नहीं हैं कि पार्टी उनके लिये बड़ी हैं बाद में विस उपाध्यक्ष पद। ऐसा बयान देकर वे पार्टी के प्रति अपनी निष्ठा का इजहार करते हुये शायद शहीद होकर आलाकमान की सहानुभूति बटोरना चाह रहें हैं। रहा सवाल पार्टी का उनके लिये बड़ी होने का तो इसे सिवनी जिले के कई कांग्रेसी भली भान्ति जानते हें जो कि इनके कारनामों से चुनाव हारकर राजनैतिक गुमनामी के दौर में चले गये हैं। और आज पार्टी का जिले में यह हाल हैं कि जिले से वे अकेले विधानसभा का चुनाव जीते हैं। लोकसभा के तीन तीन चुनाव पार्टी लगातार हार चुकी हैं। सिवनी और बरघाट विधानसभा पांच बार तथ लखनादौन विधान सभा में कांग्रेस दो बार चुनाव हार गई हैं। सिवनी नगर पालिका में भी लगातार तीन बार कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव हार गई हैे। लगभग हर चुनाव में हरवंश सिंह पर भीतरघात करने के आरोप चस्पा होते रहें हैं। यह वही सिवनी जिला हैं जहां 1977 में कांग्रेस ने जनता लहर में विधानसभा की पांचों सीटें जीत कर समूचे उत्तर भारत में एक रिकार्ड बनाया था। हरवंश सिंह का विशेष सत्र से बहिष्कार करना उनका पार्टी प्रेम हैं या राजनैतिक ढ़ोंग से लेकर लोगों के अलग अलग विचार सुनने को मिल रहें हैं।
भाजपा ने उपाध्यक्ष के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव क्यों नही लाया-
प्रदेश भाजपा द्वारा राज्यपाल को ज्ञापन देकर विधानसभा उपाध्यक्ष हरवंश सिंह के खिलाफ कार्यवाही की मांग करना, संसदीय कार्य मन्त्री द्वारा सदन में मामला उठाने के बाद भी विस अध्यक्ष ईश्वरदास रोहाणी द्वारा कोई व्यवस्था ना देना तथा जिला भाजपा द्वारा की गई बयानबाजी इस मामले में अखबारों में चर्चित हुयी हैं। भाजपा की कार्यवाही से कुछ सवाल अपने आप ही उठ खड़े हुये हैं। क्या भाजपा को यह नहीं मालूम था कि कांग्रेस ने जब हरवंश सिंह का चयन उपाध्यक्ष पद के लिये था तब उन पर अदालत में 307 का मामला कायम था था जो कि भाजपा की तत्कालीन सांसद एवं वर्तमान विधायक नीता पटेरिया के साथ आमानाला में हुयी घटना पर आधारित था और जिले की पूरी भाजपा ने बंड़ोल थाने में धरना देकर मामला कायम करवाया था। फिर भी उन्हें सर्वसम्मति से उपाध्यक्ष चुना गया। क्या भाजपा को अभी तक यह नहीं मालूम था कि विस उपाध्यक्ष बनने के बाद भी हरवंश सिंह ने प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष पद से त्यागपत्र नहीं दिया था और वे उस रूप में अपने राजनैतिक दायित्वों का निर्वाह करते आ रहे थे। क्या भाजपा को यह नहीं मालूम कि राज्यपाल महोदय के पास ज्ञापन देने के बजाय सदन में अविश्वास प्रस्ताव लाकर निर्धारित समयावधि के बाद अपने बहुमत के बूते पर उपाध्यक्ष पद से पृथक करना भाजपा के लिये ज्यादा आसान थार्षोर्षो यदि भाजपा यह मानती हैं कि विधानसभा उपाध्यक्ष के संवैधानिक पद पर रहते हुये हरवंश सिंह ने कांग्रेस के सदन से बहिष्कार के निर्णय को मानकर अपने संवैधानिक दायित्वों का निर्वाह नहीं किया हैं तो उसे सीधे सीधे सदन में अविश्वास प्रस्ताव पेश करना था तथा निर्धारित समयावधि के बाद अगले सत्र में उस पर बहस करके अपने खुद के बहुमत के आधार पर पास कर लेना था। इसके लिये कहीं किसी की मदद और किसी के पास जाने की भाजपा को जरूरत ही नहीं थी। वैसे भी प्रदेश के जिन कुछ इंका नेताओं की भाजपा के साथ नूरा कुश्ती चलने के किस्से सियासी हल्कों में चर्चित रहतें हैं उनमें इंका नेता हरवंश सिंह का नाम भी शामिल हैं। ऐसे में मात्र रस्म अदायगी वाली जो भी कार्यवाहियां होतीं हैं उसे लोग अपने आप ही शंका की निगाहों से देखने लगते हैं। वैसे प्रदेश भाजपा के नव निर्वाचित अध्यक्ष प्रभात झा से ऐसे राजनैतिक और कूटनीतिक दांव पेंचों की अपेक्षा नहीं की जा रही हैं। लेकिन भाजपा में भी ऐसे नेताओं की कमी नहीं हैं जो अपने हित साधनें के लिये ऐसे इंका नेताओं से सांठ गांठ किये बैठे हैं जिन पर विपक्ष में रहते हुये भ्रष्टाचार के आरोप लगाते थे और अब दोनों एक दूसरे के हित साध रहें हैं। इस पूरे प्रकरण में मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह चौहान की चुप्पी ने भी सियासी हल्कों का ध्यानाकषिZत किया हैं। कुछ राजनैतिक विश्लेषकों का मानना हैं कि पार्टी प्रेम दिखाकर यदि कुछ बेहतर मिल जाये तो ठीक हैं अन्यथा जो पास में हैं वो बचा रहे इस रणनीति पर हरवंश सिंह चल रहें हैं। अब देखना यह हैं कि उनकी रणनीति कितनी सफल होती हैं
और अन्त में-
प्रदेश विधान सभा के उपाध्यक्ष और इंका विधायक हरवंश सिंह ने एक बयान जारी कर सिवनी आकर जिला भाजपा अध्यक्ष सुजीत जैन से पाठ पढ़ने की इच्छा जाहिर की हैं। श्री सिंह ने कहा हैं कि वे संवैधानिक दायित्व और नैतिकता पर सुजीत जैन से सबक सीखेंगें। वैसे तो ये सबक भोपाल में ही प्रदेश भाजपा अध्यक्ष प्रभात झा,कैलाश जोशी जी या स्वजातीय कप्तान सिंह जी से ही सीख सकते थे पर ना जाने क्यों उन्होंने इसके लिये सुजीत को ही उपयुक्त पात्र समझा हैं।


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