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Monday, May 10, 2010

नेता तो बन गये भागीरथ लेकिन गंगा कर्जदार हो गई
22 करोड़ की योजना का 12 करोड़ रु. बिजली का बिल बकाया : पालिका को मिलने वाले 80 लाख रु. सरकार ने कराये समायोजित :सरचार्ज हो माफ और शेष प्रदेश सरकार दे अनुदान

सिवनी। वरदान कही जाने वाली भीमगढ़ जलावर्धन योजना अब शहर के लिये अभिशाप बन चुकी हैं। फरवरी 2010 तक इस परियोजना का 13 करोड़ 51 हजार रुपये का बिजली का बिल बकाया हैं जिसमे राज्य शासन ने इस साल पालिका को मिलने वाले 80 लाख रुपये का समायोजन कराया हैं। इसमें 5 लाख रुपये नपा ने मार्च में नगद जमा कराये हैं। इसके बावजूद भी अभी पालिका को 11 करोड़ 45 लाख 27 हजार रुपये पटाना हैं।
राज्य सरकार ना जाने क्यों इस परियोजना के घटिया निर्माण कार्य की जांच कराने से क्यों कतरा रही हैं जबकि दुगना बिजली का बिल पटाने के बाद भी नागरिकों को आधा पानी ही मिल रहा हैं। शहर के लिये वरदान मानी जाने वाली भीमगढ़ जलावर्धन योजना अपने घटिया निर्माण के कारण अब अभिशाप बन गई हैं। इस योजना के बनते समय भाजपा ने इसका भारी विरोध किया था। दुगाZ उत्सव के वक्त एक समय इसकी झांकी भी लगायी गई थी। बिजली की दुगनी खपत के बाद भी लोगों को आधा पानी मिलने की इंका नेता आशुतोष वर्मा ने एक अभियान चलाया था। इस पर मुख्यमन्त्री कार्यालय से जांच भी आदेशित हुयी थी लेकिन फिर वह ठंड़े बस्ते में चली गई थी। भाजपा की सरकार बनने के बाद तत्कालीन जिला भाजपाध्यक्ष वेदसिंह ठाकुर ने भी इस परियोजना की जांच कराने के लिये मुख्यमन्त्री को पत्र लिखा था। लेकिन इसके बाद भी जांच नहीं हो पायी। ऐसा लगता हैं कि इस घटिया काम करने वाले हाथ इतने अधिक पावरफुंल हैं कि इंका और भाजपा दोनों ही सरकारें इन पर हाथ डालने से कतरा गईं हैे।
कभी भगीरथी प्रयासों से लायी गई यह योजना अब अभिशाप बन गई हैं। चालू वित्त वर्ष में माह फरवरी 2010 तक श्रीवनी का बिजली का बिल 7 करोड़ 18 लाख 99 हजार रुपये बाकी था जबकि सुआखेड़ा का बिल 5 करोड़ 81 लाख 52 हजार रुपये बाकी था। कई बार लाइन काटने का नोटिस भी विद्युत मंड़ल देता रहता हैं। इस दवाब के चलते हर साल राज्य सरकार भोपाल से पालिका को विकास कार्य के लिये मिलने वाली राशि का एक अच्छा खासा हिस्सा विद्युत मंड़ल को समायोजित कर देती हैं। इस साल भी मार्च 2010 में सरकार ने 80 लाख रुपये की राशि समायोजित कर दी हैं। पालिका ने भी मार्च 2010 में 5 लाख रुपये की नगद राशि जमा कर दी हैं। इसके बावजूद भी श्रीवनी का 6 करोड़ 51 लाख 76 रु. तथा सुआ खेड़ा का 5 करोड़ 93 लाख 51 हजार रु. इस तरह कुल 11 करोड़ 45 लाख 27 हजार रु. देना बाकी हैं। पालिका पर बाकी बिजली के बिल पर इतना अधिक सरचार्ज लग रहा हैं कि बिल कम करने के लिये जो भी राशि पटायी जा रही हैं वह सरचार्ज की राशि में ही समाहित हो जाती हें और मूल बकाया जस का तस रह जाता हैं। पालिका हर महीने जो पांच रुपये पटा रही हैं उसका भी यही हाल हो रहा है। इसका खुलासा मार्च 2010 के बिजली के बिल से हो जाता हैं। इस महीने श्रीवनी का बिल 17 लाख 87 हजार रु. एवं सुआखेड़ा का बिल 12 लाख 17 हजार रु. आया हैे। इस तरह इस योजना में लगभग 1 लाख रु. रोज की बिजली जल रही हैं।
यहां यह विशेष रूप से उल्लेंखनीय है कि इंका और भाजपा शासन में बन और प्रस्तावित लगभग 22 करोड़ रुपये की योजना का श्रेय लेकर भागीरथ बनने के दावे तो कई नेता करते रहें हें लेकिन 22 करोड़ की इस योजना के 12 करोड़ रुपये के बिजली के बिल के बकाये के जवाबदारी लेने को कोई तैयार नहीं हैं। नेता तो भागीरथ बन गये लेकिन गंगा कर्जदार हों गई हैं। इससे मुक्ति के दो ही उपाय हैं। पहला या तो घटिया काम की जांच कर योजना को तकनीकी स्वीकृति के अनुसार ठीक करायें और यदि राजनैतिक मजबूरियों से ऐसा करना सम्भव ना हो तो प्रदेश सरकार विद्युत मंड़ल से बकाया बिजली के बिल का सरचार्ज माफ कराये और शेष राशि के भुगतान के लिये विशेष अनुदान दे जो सिवनी नगर पालिका को मिलने वाली से ना काटा जाये तथा इसके बाद पालिका इस सफेद हाथी के रख रखाव का आकलन कर जल कर की राशि बढ़ाये और इसे सुचारू रूप से संचालित करने का प्रयास करें। अन्यथा हर साल यही कहानी दोहरायी जायेगी और हर साल पालिका को विकास कार्यों के लिये मिलने वाली राशि का सरकार ऐसे ही समायोजन कराते रहेगी।

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