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Tuesday, February 2, 2010

फोर लेन केस : नाथ चाहते हैं चौड़ीकरण : राम चाहते है फ्लाई ओवाराशेरों की रक्षा भी करना है और पेसा भी खर्च नहीं करना है ऐसा कैसे होगा?
कोर्ट ने परिवहन और वन मन्त्रालय के अयिाकारियों को बैठक कर सुझाव का दिया निर्देश
सिवनी।फोर लेन का मामला सुप्रीम कोर्ट में रोचक मोड़ पर आ गया हैं। परिवहन मन्त्री कमलनाथ चाहते हैं कि वर्तमान रोड़ का चौड़ीकरण हो लेकिन वन मन्त्री जयराम रमेश पर्यवरण और शेरों की रक्षा के लिये फ्लाई ओवर बनाने के पक्ष में हैं। माननीय न्यायालय ने कहा है कि शेरों और पर्यवरण की रक्षा पैसे नहीं खर्च करने की बात नहीं हो सकती। अत: देानो मन्त्रालय के अधिकारी बैठक कर मतभेदों को दूर कर कोर्ट में कंपोजिट प्लान प्रस्तुत करें। उत्तर इक्षिण गलियारे का निर्माण पेंच टाइगर रिर्जव के इलाके में विवाद के कारण रुका पड़ा हैं। फोर लेन जाने की आशंका से शहर के जागरूक नागरिकों ने जनमंच का गठन कर ऐतिहासकि बन्द का आयोजन किया था और सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामले में हस्तक्षेपकत्ताZ के रूप में शामिल हुआ था। सुप्रीम कोर्ट मे पिछली सुनवायी में सड़क परिवहन और वन मन्त्रालय के बीच मतभेदों के चलते कांर्ट के एमायकस क्यूरी हरीश साल्वे ने अपने सुझाव वापस लेने की भावनात्मक पेशकश कर दी थी। उन्होंने यह पेशकश सुप्रीम कोर्ट की फंारेस्ट बैंच के समक्ष रखा जिसमें सी.जे. के.जी.बालाकृषणन,एस.एच.कपाड़िया और आफन्ताब आलम शामिल हैं। कोर्ट द्वारा बनायी गई सी.ई.सी. ने पेंच टाइगर रिर्जव के क्षेत्र में सुरक्षा की दृष्टि से फ्लाई ओवर बनाने का सुझाव दिया था जिसमें 900 करोड़ रुपये लागत आने की संभावना हैं। लेकिन एन.एच.ए.आई. अधिक लागत लगने के कारण वर्तमान रोड़ के ही चौड़ीकरण करने के लिये सहमत हैं। उनके वकील श्री तन्खा ने कहा कि सभी पक्ष जिनमें मध्यप्रदेश सरकार,एन.एच.ए.आई.और परिवहन मन्त्रालय श्री साल्वे के वर्तमान सड़क के चौड़कीरण के सुझाव से सहमत हैं। कोर्ट में वन एवं पर्यवरण मन्त्री जयराम रमेश के वकील श्री हरीश बैरन ने कहा कि वन मन्त्री को सड़क परिवहन विभाग के चौड़ीकरण के सुझाव पर गम्भीर आपत्ति हैं। ऐसा करने से झाड़ों की कटाई और शेरों की सुरक्षा पर विपरीत असर पड़ सकता हैं। उन्होंने कहा कि वन मन्त्री सी.ई.सी. के फ्लाई ओवर के सुझाव पर सहमत हैं। यहां यह विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं कि एन.एच.ए.आई.ने वन विभाग से अनुमति लेने के लिये तथा सुप्रीम कोर्ट में जो अपना लिखित जवाब पेश किया हें उसमें पहला ऑप्शन फ्लाई ओवर बनाने का ही दिया था। लेकिन अब ना जाने क्यों इसके लिये कोर्ट में वे अपनी सहमति नहीं दे रहें हैं। माननीय न्यायालय ने सड़क परिवहन को कहा है कि सरकार दो रतफा रुख नही अपना सकती कि एक रतफ शेरों और पर्यावरण की रक्षा भी की जाये और पैसे भी खर्च ना किये जायें। कोर्ट ने सड़क परिवहन और वन एवं पर्यवरण मन्त्रालय के अधिकारियों को निर्देशित किया है कि वे बैठक कर मतभेदों का निराकरण करें और सम्भव हो तो एक कंपोजिट प्लान अगली पेशी में कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत करें। मामले की अगली सुनवायी 19 फरवरी 2010 को निर्धारित की गई हैं।

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