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Monday, March 29, 2010

गुरूवाणी में हुये बिटिया की बिदायी के बिदायी के भावनात्मक चित्रण से हुयी हजारों आंखें नम
,राष्ट्र सन्त तरुण सागर जी महाराज के कड़वे प्रवचनों के अन्तिम दिन भारी जन समूह उमड़ पड़ा धर्म सभा में
सिवनी 29 मार्च। जनसन्त तरुण सागर जी के कड़वे प्रवचनों के अन्तिम दिन प्रवचन स्थल में आये हजारो श्रृद्धालुओं की आंखे आज उस समय नम हो गईं जब महाराज श्री ने भावनात्मक रूप से बिटिया की बिदायी का चित्रण किया। प्रवृति,विकृति और संस्कृति का उल्लेख करते हुये महाराज श्री ने कहा कि भूख लगने पर भोजन करना प्रकृति हैं, भूख ना लगने पर भी भोजन करना विकृति हैं और किसी भूखे को खिलाकर भोजन करना संस्कृति हैं।गुरूवर ने कहा कि पीकर पिलाने का मजा कुछ और हैं। घर आये अतिथि को भोजन के लिये पूछा। भोजन के लिये ना पूछो तो कम से कम पानी के लिये पूछो। पानी के लिये भी ना पूछो तो दो मीठे बोल बोलो। दोमीठे बोल भी ना बोल पाओ तो कम से कम मुस्कुरा दो। चेहरे पर यदि मुस्कान भी ना ला सको तो चुल्लू भर पानी में डूब मरो। अब सोचेंगें कि छ: फुटा आदमी भला चुल्लू भर पानी में कैसे डूब मरेगा। लेकिन ऐसा व्यक्ति तो छुद्र कीड़े के समान होता हैं और उसे डूब मरने के लिये चुल्लू भर पानी काफी होता हैं। महाराज श्री ने कहा कि आज के युग में मोबाइल से ज्यादा स्माइल की जरूरत हें। मोबादल तो सिर्फ पैसे वालों के पास होता हें लेकिन इस्माइल हर व्यक्ति के पास होती हैं। इसलिये आप अपने चेहरे पर हमेशा इस्माइल बनाये रखिये ताकि फोटोग्राफर को इस्माइल प्लीज ना कहना पड़े। यदि आप हंसते हैं तो ईश्वर की आराधना करतें हैं और यदि आप किसी की आंखों के आंसू पांछकर उसे हंसाते हैं तो ईश्वर आपकी आराधना करते हैं। इसलिये निवेदन है कि आप हंसते रहें और रोते हुओं को हंसाते रहें। गुरूवर ने आगे कहा कि सीधे और सरल रास्तों पर चलने वालों का कोई इतिहास नहीं बनता है। सीधे सरल रास्तों पर चल कर आप अपने जीवन का सफर तो आसानी से तय कर सकते हैं लेकिन चुनोतियों को स्वीकार किये बिना जीवन अधूरा हैं। जो चुनोतियों को स्वीकार करते हैं, जो टेढ़े मेढ़े रास्तो पर चलकर सफलता की मंजिल पाते हैं इतिहास उन्हीं का बनता हैं। मुनिवर ने धर्म सभा को संबोधित करते हुये कहा कि अपने आप पर भरोसा करना सीखो। अपने आप पर भरोसा नहीं करोगे तो राम भरोसा भी तुम्हारे साथ नहीं होगा। अपने आत्म विश्वास का उल्लेख करते हुये महाराज श्री ने कहा कि यदि तुम्हारे घर से प्रवचन सुनने कोई नहीं आ रहा हें तो एक बार लाने का काम तुम्हारा है। रोज रेाज बुलाने का काम तरुण सागर का है। आपने चुटकी लेते हुये कहा कि एक बार भी लाने का काम तुम्हारा इसलिये हें क्योंकि मुझे तुम्हारे घर का पता नहीं मालूम है। आपने कहा कि विश्वनाथ और पाश्र्वनाथ के राज में कोई अनाथ नहीं होता हैं। महाराज श्री ने नसीहत देते हुये कहा कि अपने आप को कमजोर मत समझो। आपने चिड़िया का एक किस्सा सुनाते हुये कहा कि एक चिडिय़ा अपनी चोंच में पानी भरकर आती थी और जहां आग लगी थी उसे बुझाने के लिये पानी डालकर फिर पानी लेने चली जाती थी। उसे किसी ने टोका कि तुम्हारे चोंच भर पानी से तो आग का एक शोला भी बुझने वाला नहीं हैं। फिर तुम क्यों ऐसा कर रही होर्षोर्षो चिड़िया ने कहा कि भले ही मेरे चांच भर पानी से आग ना बुझे लेकिन जब इस घटना इतिहास लिखा जायेगा तो मरा नाम आग बुझाने वालों में शामिल होगा। आग लगाने वालों में नहीं।हिंसा और बुराइयों के खिलाफ ताल ढ़ोंकना पड़ेगा। इनसे समाज को मुक्त कराना होगा। राष्ट्र सन्त तरुण सागर जी महाराज ने धर्म सभा में आगे कहा कि एक ही झाड़ से निकली सीघी लकड़ी का तो फर्नीचर बनाने में उपयोग होता हैं लेकिन टेढ़ी मेढ़ी लकड़ी को आग में झोंक दिया जाता हैं।इसकिलये आप सीधे सरल और धर्ममय बने ताकि समाज में आपका सदुपयोग हो सके। अपाने एक उदाहरण देते हुये बताया कि जब एक मित्र ने अपने यहां लड़के के होने की तारीख बतायी तो मित्र ने कहा अरे उस दिन तो इतवार की छुट्टी थी। लेकिन जन्म और के लिये जो दिन निर्धारित होता हें वह तय हैं। महाराज श्री ने कहा कि जन्म मृत्यु के दफ्तर में कभी कोई छुट्टी नहीं होती हैं। गुरुवर ने समाज में फैले बेइमान चरित्र की चर्चा करतें हुये कहा कि जिन्हें चोरी करने का, बेइमानी करने का मौका मिला वे चोर और बेइमान हो गये और जिन्हें चोरी करने और बेइमानी करने का मौका नहीं मिला वे ईमानदार हो गये। ऐसी ईमानदारी कोई काम की नहीं हैं। समाज में बेइमान चरित्र हो गया हैं। यदि हमें ईमानदार बनना हैं तो हम मन से बनें, स्वभाव से बनें,संस्कार से बनें,चरित्र से बनें। तभी समाज को आपकी ईमानदारी का लाभ मिलेगा अन्यथा बेईमानी का मौका नहीं मिलने से ईमानदार बने लोग समाज में बोझ ही बनें रहेंगें और उनकी ऐसी ईमानदारी समाज के लिये उपयोगी नहीं होगी। इसी सन्दर्भ में महाराज श्री ने मारवाड़ी,बनिया और चोर का रोचक किस्सा सुनाया। आपने कहा कि भगवान ने मारवाड़ी,एक बनिये और चोर को अलग अलग बुलाकर पूछा कि बताओ तुम्हें क्या चाहियेर्षोर्षो मारवाड़न ने एक करोड़ रूपये और एक आलीशान मकान मांगा भगवान ने तथास्तु कह दिया। फि बनिये ने भी भगवान से यही मांग लिया। भगवान ने उसे भी तथास्तु कह दिया। फिर जब भगवान ने चोर से पूछा कि अब तुम बताओ तुम्हें क्या चाहिये तो चोर ने भगवान से कहा कि मुझे उन दोनों का पता बता दीजिये। महाराज श्री ने कहा कि आदमी के चेहरे पे चेहरे चढ़ें हैं। लोग अंधें और बहरे हैंं।इसलिये आप अपना असली चेहरा पहचानिये। धर्म सीाा को संबोधित करते हुये मुनिवर ने कहा कि धर्म क्या हैर्षोर्षो जा व्यवहार हमें खुद अच्छा ना लगे वह दूसरों के साथ नही करो। यही धर्म हैं।जा हम अपने लिये चाहते हैं वही दूसरों के लिये भी चाहें।गुरूवर ने कहा कि इस लोक को सुधारने के लिये मदिरा का त्याग करें और परलोक को सुधारने के लियें मांसाहार का त्याग करें। पक्षी और जानवरों के पास भले ही जुबान हो लेकिन जान तो उनके पास भी रहती हैं। महारज श्री ने कहा कि नेता अपके पास वोट मांगने आते हैं,नोंट मांगने आते हैं,सपोर्ट मांगने आते हैं लेकिन मैं तुम्हारे पास तुम्हारी खोट मांगने आया हूंं। इसलिये इस पंड़ाल से आज एक बुराई झोड़कर जाने का संकल्प लें तो मैं समझूंगा कि मुझे गुरुदक्षिणा मिल गई और मेरा पसीना बहाना सार्थक हो गया। आज के हालात की ओर इशारा करते हुये मुनिवर ने कहा कि पंड़ाल से उठकर जब लोग जाते हैं तो कहते कि महाराज ने बहुत अच्छा बोला पर यदि कोई पूछता हैं कि क्या बोलर्षोर्षो तो फट से कह देता पता नहीं। लो गई ना भैंस पानी में।कहते हैं कि कुत्ते की पूंछ को बारह साल तक भी पोंगली में भरकर तो भी टेढ़ी निकली। ऐसा ही हाल श्रोताओं का हो गया हैं। वे कहते हैं कि महाराज का काम कहने का है और अपना काम सुनने का है।जैन सन्त तरुण सागर जी महाराज कि आप दुनिया के बदलने की रास्ता मत देखिये। दुनिया नहीं बदलेगी आपको अपने आप को बदलना होगा। आप यदि अपने आप को बदलेंगें तो इसका समाज में दस गुना फर्क पड़ता हैं। मुनि श्री ने नसीहत देते हुये कहा कि घर में बहू लाना बहूरानी नहीं।बहू आयेगी तो संस्कार लेकर आयेगी,बुलाने पर सर के बल चली आयेगी पर बहूरानी आयेगी तो कार लेकर आयेगी और अपनी सरकार चलायेगी। बहू लाओगी तो बेटे को अच्दे पाठ पढ़ायेगी और जीवन स्वर्ग बना देगी पर बहूरानी लाओगी तो बेटे को रोज उल्टी सीधी पट्टी पढ़ायेगी और जीते जी मर जाओगी। इसलिये आप बेटियों को संस्कारित बनायें ताकि वे बहू बन सकें बहूरानी नहीं।आप जोड़ने काम करिये तोड़ने का नहीं। कैंची काटने का काम कमरती हें इसलिये दर्जी के पैरों के पास पड़ी रहती हैं और सुई जोड़ने को काम करती हैं इसलिये दर्जी के दिल में कमीज मे टंकी रहती है।। गुरुवर ने दहेज पर प्रहार करते हुये कहा कि आप कमाई सबसे अच्छी होती हें, बाप कमाई उससे कम अच्छी होती हैं और ससुर कमाई सबसे घटिया कमाई होती हैं।डाकू तो रात के अंधेरे में डाका डालते हैं लेकिन ये दहेज लोभी डाकू दिन दहाड़े आते हें और लूट के ले जाते हैं।इसलिये आप ऐसे परिवार में बेटी मत दीजिये जहां दहेज के लोभी रहते हैं।बेटी वहां दीजिये जहां दुल्हन को ही दहेज मानते हों। बहू को बेटी के समान सम्मान दें। बेटे के पिता को भी नसीहत देते हुये महाराज श्री ने कहा कि आप भी संकल्प लें कि आप बेटे का विवाह तो करेंगें लेकिन उसे बेंचेंगें नहीं। उसकी बोली नहीं लगायेंगें। जो लोग विवाह को दो दिलों के मिलन से ज्यादा उसे आमदनी का जरिया मानतें हों वहां अपनी बेटी मत दीजिये।दहेज हत्याओं पर कटाक्ष करते हुये मुनिवर ने कहा कि स्टोव फटा और बहू जलकर मरी। ये किस्से आये दिन सुनने को मिल रहें हैं लेकिन एक भी किस्सा ऐसा सुनने को नहीं मिलता हें कि स्टोव फटा और सास जलकर मरी।ऐसा लगता है कि मानो स्टोव यह पहचानता हो कि कौन सास हैं और कौन बहूर्षोर्षो मुनिवर ने कन्या भ्रूण हत्या का जिक्र करते हुये कहा कि इसके लिये प्रेरित करने वाला पति, भ्रूण हत्या कराने वाली उसकी पत्नी और डॉक्टर तीनों ही हत्यारे हैं।इसे रोकन के लिये सभी के द्वारा उपाय किये जाने चाहिये। सरकार निर्णय ले कि जिसकी बेटी नहीं उसे नौकरी नहीं, चुनाव लड़ने का हक नहीं। सन्त मुनि यह तय करें कि जिसके यहां बेटी नहीं उसके यहां आहार नहीं लेंगें।समाज तय करें कि जिसके यहां लड़की नहीं उसके घर लड़की नहीं देंगें।महाराज श्री ने एक किस्सा बताया कि उनके पास एक उदास मन आया और बताया कि मेरे यहां लड़की हुयी हैं। मैंने कहा अच्छा हैं लक्ष्मी आयी। वह बोला कि दो और पहले से हें मैंने कहा कि यह तो और अच्छा हैं अब तुझे और क्या चाहिये तेरे यहां तो दुगाZ,सरस्वती और लक्ष्मी तीनों हो गईं। फिर उसने कहा कि मेरे वंश का क्या होगार्षोर्षोमैंने कहा कि यह जरूरी नहीं है कि वंश का अंश परमहंस ही हो।वह कंस भी हो सकता हैं। मुनिश्री ने गुजारिश की कि स्वभाव बदलिये। बेटी और बेटे में फर्क करना बन्द करें। बेटी के महत्व को प्रतिपादित करते हुये गुरुवर ने कहा कि बेटों से ज्यादा बेटियां मां बाप का ध्यान देती हें। बेटा तो एक कुल में ध्यान रखता हैं लेकिन बेटी दो कुलों में ध्यान रखती हैं।सुसराल में वह अपनी कितनी भी बुराई सुन लेती हैं लेकिन बाप की बुराई बर्दाश्त नहीं करती। मां ना रहे तो बेटी को ज्यादा दुख होता हैं। क्योंकि मां ना रहे तो मायका नहीं रहता वह भाई भाभी का घर हो जाता हैं।धर्मात्मा सास वह होती हें जो बहू और बेटी में फर्क नहीं समझती है।।वो घर भाग्यशाली होता हैं जिस घर से बेटी भरे हाथों बिदा होती हैं। बेटी की बिदाई का अत्यन्त भावनात्मक चित्रण करते हुये राष्ट्र सन्त तरुण सागर जी ने कहा कि मां बेटी को बिदा करती हैं। गले से लगा लेती हैं।उसका माथा चूमती हैं।आशीZवाद देती हैं। जा बेटा तेरा सुहाग बना रहे।बेटी लिपट कर आंसू बहाने लगती हेंमां भी रोना शुरू कर देती हें।दूर खड़ा बाप भी उदास हो जाता हें।उसके भी आंसू आ जाते हें।मां तो बेटी के बिदा का दुख सहन कर लेती हैं क्योंकि उसे बिदा का अनुभव होता हें। लेकिन बाप बेटी की बिदा को सहन हनीं कर पाता हें। सबसे ज्यादा दुख बाप को होता हें। बाप पूरे परिवार की चिन्ता करता हें लेकिन बाप की चिन्ता करने वाली सिर्फ बेटी ही होती हें।बेटी जब बाप के गले से लिपट कर यह पूछती हैं किे उसका क्या अपराध हें जो उसे आज घर से भेजा जा रहा हैं तो बाप के पास सिवाय रोने के और कोई जवाब ही नहीं होता हैं।एक बिना मां की बेटी और एक विधवा मां की बेटी की बिदायी का चित्रण करते हुये महाराज श्री ने कहा कि जब वह बेटी को उसकेे मृत पिता की फोटो के पास आशीZवाद दिलाने लाती हें तो पिता के फोटो से भी झर झर आंसू गिरने लगते हें। बेटी के महत्व पर यह लाइने कहते हुये महाराज श्री ने आज के प्रवचन समाप्त किये कि ओस की एक बून्द सी होती हें बेटियां। तकलीफ मां बाप को हो तो रोनी हैं बेटियां। रोशन करेगा बेटा तो एक कुल की शान को।दो कुलों की शान होती हैं बेटियां। कोई नहीं है कम एक दूसरे से,हीरा हैं बेटा तो मोती हें बेटियां। मुनिवर के इस भावनात्मक बिदायी चित्रण ने धर्म में उपस्थित हजारों आंखों को नम कर दिया।
धर्म सत्ता के द्वार पहुची राज सत्ता
सिवनी। जिले की इस पावन धरा पर आज यह दृश्य दिखायी देने लगा कि मानो राज सत्ता धर्म सत्ता के द्वार पहुच गई हो । ऐसी अनुभूति तब हुयी जब जिले की बेटी और हिमाचल प्रदेश की राज्यपाल उर्मिला सिंह राष्ट्र सन्त तरुण सागर जी की धर्म सभा में पहुची और उन्हें मुनिवर ने अपना आशीZवाद दिया। हजारों धर्म प्रमियों के बीच महामहिम ने उनके श्री चरणों में नमन किया और उनकी कृपा बनाये रखने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि महावीर के सत्य और अहिंसा के दो शब्दों से गांधी ने देश को आजादी दिलायी थी। आज तरुण सागर जी के कड़वे प्रवचन देश के युवाओं को दिशा दे रहें हैं। बाक्स

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